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बुद्धकाल में राज्य और समाज - बौद्ध एवं जैन धर्म, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

बुद्धकाल में राज्य और समाज

भौतिक जीवन

  • पुरातात्विक आधार पर ईसा पूर्व छठी सदी उत्तरी काला पालिशदार मृद्धभांड (उ. का पा. मृ. - NBPW) अवस्था का आरम्भ काल है। यह मृद्धभांड बहुत ही चिकना और चमकीला होता था।
  • इस मृदभांड के साथ आम तौर से लोहे के उपकरण भी पाए जाते हैं। इसी अवस्था में धातु-मुद्रा का प्रचलन भी आरम्भ हुआ।
  • पकी ईंटों और पक्के कुओं का प्रयोग इसी अवस्था के मध्य में अर्थात् ईसा पूर्व तीसरी सदी में शुरू हुआ।
  • उ. का. पा. मृ. अवस्था में ही गंगा के मैदानों में नगरीकरण की शुरुआत हुई। यह भारत का द्वितीय नगरीकरण कहलाता है। 1500 ई. पू. के आसपास हड़प्पाई नगर के अंतिम रूप से विलुप्त होने के बाद करीब 1000 वर्षों तक भारत में कोई शहर नहीं पाया जाता है। फिर इसके प्रथम दर्शन ईसा पूर्व छठी सदी के आसपास मध्य गंगा के मैदान में होते हैं।
  • अनेक नगर शासन के मुख्यालय थे, पर उनका मूल प्रयोजन जो भी रहा हो, अंततः वे बाजार बन गए और वहां शिल्पी और बनिक आ-आ कर बसते गए।
  • इस काल के सभी प्रमुख नगर नदी के किनारे और व्यापार मार्गों के पास बसे थे, और एक-दूसरे से जुड़े थे।
  • मुद्रा के प्रचलन से व्यापार को बढ़ावा मिला। वैदिक ग्रंथों में आए निष्क और सतमान शब्द मुद्रा के नाम माने जाते हैं लेकिन प्राप्त सिक्के ईसा पूर्व छठी सदी से पहले के नहीं हैं।
  • सम्भव है कि लिखने की कला अशोक से करीब दो शतक पहले शुरू हुई हो। इससे भी व्यापारिक लेखा-जोखा रखना आसान हुआ होगा।
  • किसान अपनी उपज का छठा भाग कर या राजांश के रूप में चुकाते थे। इस काल में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में पैदा होने वाला मुख्य अनाज चावल था।
  • मध्य गंगा घाटी के वर्षापोषित, जंगलों से भरे, कड़ी मिट्टी वाले प्रदेश की सफाई तथा इसे खेती और बस्ती के योग्य बनाने में लोहे की महत्वपूर्ण भूमिका रही।


प्रशासन-पद्धति

  • यों तो इस काल में हम बहुत से राज्य पाते हैं, पर उनमें केवल कोसल और मगध शक्तिशाली हुए। दोनों क्षत्रिय वर्ण के आनुवंशिक राजाओं द्वारा शासित राज्य थे।
  • राजा मुख्यतः युद्ध नेता होता था जो अपने राज्य को युद्धों में विजय दिलाता था।
  • जान पड़ता है कि उच्च अधिकारी और मंत्री अधिकतर ब्राह्मण या पुरोहित वर्ग से चुने जाते थे। सामान्यतः वे राजा के अपने कुल के लोगों में से नहीं लिए जाते थे।
  • गांवों का प्रशासन गांव के मुखिया के हाथ में रहता था। वह अपने इलाके में शांति-व्यवस्था बनाए रखता था।
  • राज्य की शक्ति में वास्तविक वृद्धि का संकेत उसकी विशाल स्थायी सेना से मिलता है। इस सेना का भरण-पोषण राज्य-कोष से करना होता था।
  • पूर्व की सभा और समिति उत्तर वैदिक काल के साथ ही लुप्त हो गई। उनकी जगह परिषद नाम की एक छोटी-सी समिति बनी जिसमें केवल ब्राह्मण रहते थे।


गणतांत्रिक प्रयोग

  • गणतांत्रिक शासन पद्धति या तो सिंधु घाटी में थी या पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के अंतर्गत हिमालय की तराइयों में।
  • सिन्धु घाटी के गणराज्य वैदिक कबीलों के अवशेष रहे होंगे, हालांकि कुछ गणराज्य राजतंत्रों की जगह भी विकसित हुए होंगे।
  • बुद्ध के युग में कुछ ऐसे राज्य भी थे जिनका शासन वंशानुगत राजा नहीं करते थे, बल्कि जनसभाओं के प्रति उत्तरदायी लोग करते थे।
  • राजतंत्र में प्रजा से राजस्व पाने का दावेदार एकमात्र राजा होता था, जबकि गणतंत्र में इसका दावेदार गण या गोत्र का हर अल्पाधिपति होता था जो राजन् कहलाता था।
  • गणराज्य और राजतंत्र में मुख्य अंतर यह था कि गणतंत्र का संचालन अल्पतांत्रिक सभाएं करती थीं, न कि कोई एक व्यक्ति, जबकि राजतंत्र में यह काम एक व्यक्ति करता था।


सामाजिक वर्गीकरण और विधान

  • भारतीय विधि और न्याय-व्यवस्था का उद्भव इसी काल में हुआ। पहले कबायली कानून चलते थे जिसमें वर्गभेद का कोई स्थान नहीं था, लेकिन इस काल में आकर कबायली समुदाय स्पष्टतया चार वर्गों या वर्णों में बंट गया - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
  • धर्मसूत्रों में हर वर्ण के लिए अपने-अपने कत्र्तव्य तय कर दिए गए, और वर्णभेद के आधार पर ही व्यवहार विधि (Civil Law) और दंड वधि (Criminal Law)तय हुई।
  • जो वर्ण जितना ऊँचा था, वह उतना ही पवित्र माना गया, और व्यवहार एवं दंड विधान में उससे उतनी ही उच्च कोटि के नैतिक आचरण की अपेक्षा की गई।
  • शूद्रों पर सभी प्रकार की अपात्रता लाद दी गई। इस विषय में जैन और बौद्ध सम्प्रदायों ने भी उनकी स्थिति नहीं सुधारी। हालांकि उन्हें नए धार्मिक संघ में प्रवेश की अनुमति दे दी गई, लेकिन उनका सामान्य स्थान नीचे का नीचे ही रह गया।
  • दीवानी और फौजदारी मामले राजा के प्रतिनिधि देखते थे, जो झटपट कठोर दंड दे देते थे, जैसे - कोड़ा लगाना, सिर काट लेना, जीभ खींच लेना आदि। बहुधा फौजदारी मामलों में जैसा का तैसा दंड दिया जाता था।
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FAQs on बुद्धकाल में राज्य और समाज - बौद्ध एवं जैन धर्म, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. बुद्धकाल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म की महत्वपूर्णता क्या थी?
उत्तर: बुद्धकाल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ही महत्वपूर्ण धर्मीय आंदोलन थे। इन धर्मों के संस्थापक (बुद्ध और महावीर) ने जीवन के संबंध में नए तत्वों को प्रस्तावित किया और उनके उपदेशों ने समाज को व्यापक प्रभाव दिया। इन धर्मों ने वैदिक ब्राह्मणिक व्यवस्था के खिलाफ उठान दिया और अधिकारियों और ब्राह्मणों की अन्यायपूर्ण प्रथाओं का विरोध किया।
2. बुद्धकाल में राज्य और समाज के बीच कैसा संबंध था?
उत्तर: बुद्धकाल में राज्य और समाज के बीच एक गहरा संबंध था। राज्य ने धर्म के प्रचार और समर्थन के लिए अपनी सेना और संसाधनों का उपयोग किया। वैदिक समाज में ब्राह्मणों की सत्ता थी, जबकि बुद्धकाल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने लोगों को स्वतंत्रता की भावना दी और समाज में न्याय की मांग की। यह संघर्ष राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बना।
3. बुद्धकाल में बौद्ध और जैन धर्म के समाज के लिए क्या महत्वपूर्ण बदलाव हुए?
उत्तर: बुद्धकाल में बौद्ध और जैन धर्म ने समाज को कई महत्वपूर्ण बदलावों से गुजारा। इन धर्मों ने जाति प्रथा और जाति अनुसार व्यक्तियों के अधिकारों को मान्यता दी। वे स्त्रियों के लिए भी आजीविका के अवसर प्रदान करने की मांग की। इसके अलावा, बौद्ध और जैन धर्म ने विवाह, व्यापार और संपत्ति के मामलों में सवाल उठाए और सामाजिक न्याय का मांग किया।
4. बुद्धकाल में बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव के बारे में कौन सी विदेशी यात्रियों की रिपोर्टें मिलती हैं?
उत्तर: बुद्धकाल में बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव के बारे में विदेशी यात्रियों की रिपोर्टें उपलब्ध हैं। प्रसियथिनेस के राजा प्रसियतील ने भारतीय सुर्यवंशी राजाओं के बारे में रिपोर्ट दी, जिसमें वह बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव के बारे में भी बताता है। इसके अलावा, चीनी यात्री फाहियान और ह्यूएन त्सांग ने भी बौद्ध धर्म के प्रभाव के बारे में विवरण प्रस्तुत किए हैं।
5. बुद्धकाल के बौद्ध और जैन धर्म के इतिहास में कौन-कौन से महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल थीं?
उत्तर: बुद्धकाल के बौद्ध और जैन धर्म के इतिहास में कई महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल थीं। बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म और महापरिनिर्वाण, जैन धर्म के संस्थापक महावीर का जन्म और मोक्ष, बौद्ध और जैन संघों की स्थापना, बौद्ध और जैन धर्म की ग्रंथ
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