ब्रिटिश राज्य-विस्तार(1798-1809 ई.) और ब्रिटिश प्रभुसत्ता की स्थापना(1848-1856 ई.)
ब्रिटिश राज्य-विस्तार
(1798-1809 ई.)
¯ वेल्ज़ली ने जो 1798 ई. में गवर्नर-जनरल बना, पुनः राज्य-विस्तार की शुरुआत कर दी।
¯ नए इलाकों पर कब्जा करने के अलावा वेल्ज़ली ने एक भारतीय शासक को दूसरे के विरुद्ध सैनिक सहायता देकर अपना प्रभाव बढ़ाने की वारेन हेस्टिंग्स की पुरानी नीति अपनाई।
¯ कई भारतीय शासकों ने ‘सहायक संधि’ स्वीकार कर ली।
सहायक संधि: इसके अंतर्गत भारतीय शासक को अपने क्षेत्र में ब्रिटिश फौज रखनी पड़ती थी और उसका खर्च देना पड़ता था। इस खर्च के भुगतान के लिए कभी-कभी राज्य का एक भाग ही अंग्रेजों को दे देना पड़ता था।
¯ आमतौर पर भारतीय शासक को अपने दरबार में एक अंग्रेज अफसर भी रखना पड़ता था जिसे ‘रेजिडेंट’ कहा जाता था।
¯ सतही तौर पर यह व्यवस्था भारतीय शासक को सुरक्षा प्रदान करती थी, मगर असल में यह उसकी आजादी को खत्म कर देती थी।
¯ सहायक संधि को स्वीकार करने वाला पहला शासक निजाम तथा दूसरा शासक अवध का नवाब था। इन दोनों शासकों ने अपने राज्यों के कुछ हिस्से अंग्रेजों को दे दिए।
¯ सन् 1799 ई. में चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध शुरू हुआ।
¯ अंग्रेजों को डर था कि फ्रांसीसी सैनिक शायद टीपू की मदद को पहुंच जाएं, परंतु वैसा नहीं हुआ।
¯ श्रीरंगपट्टनम् में लड़ते हुए टीपू मारा गया।
¯ हैदर अली ने जिस राजवंश को गद्दी से हटाया था, उसी वंश के एक बालक को मैसूर की गद्दी पर बैठाया गया।
¯ मैसूर राज्य के कुछ इलाके अंग्रेजों ने हथिया लिए और कुछ निजाम ने।
¯ अंग्रेजों ने कर्नाटक, तंजाबूर तथा सूरत पर भी कब्जा कर लिया।
¯ पेशवा पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए 1801-1802 ई. में होलकर और सिंधिया के बीच लड़ाई हुई।
¯ तरुण पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अंग्रेजों से संरक्षण मांगा और 1803 ई. में वसई में संधि कर ली। उसने सहायक संधि को भी स्वीकार कर लिया।
¯ पेशवाओं की राजधानी पुणे पर अंग्रेजों की फौज ने कब्जा कर लिया और होलकर को वहां से भगा दिया।
¯ अब सिंधिया और भोंसले एकजुट हुए, मगर तब तक काफी विलंब हो चुका था। मराठों की सेनाएं उत्तर और दक्षिण दोनों जगहों में हार गईं।
¯ अंग्रेजों ने सिंधिया के नियंत्रण से दिल्ली छीन ली और अंधा बादशाह शाह आलम उनके संरक्षण में आ गया।
¯ भोंसले और सिंधिया ने अंग्रेजों के साथ संधियां कर लीं और अपने राज्यों के कई इलाके अंग्रेजों को दे दिए। उन्होंने सहायक संधि की शर्तों को भी स्वीकार कर लिया।
¯ होलकर अभी डटा हुआ था। वेल्ज़ली के उत्तराधिकारी ने होलकर के साथ शांति समझौता कर लिया।
ब्रिटिश राज्य-विस्तार
(1809-1848 ई.)
¯ उन्नीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षों में पिंडारी लुटेरों का उदय हुआ।
¯ भारतीय शासकों ने अंग्रेजों के साथ सहायक संधि करके अपने जिन अनेक सैनिकों को बर्खास्त कर दिया था वे भी पिंडारियों के गिरोहों में शामिल हो गए।
¯ अंग्रेजों ने पिंडारियों के खिलाफ मराठा सेनाओं का इस्तेमाल करने का फैसला किया, मगर कई मराठा नेता पिंडारियों को मदद देते रहे। अतः पिंडारियों के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई जल्दी ही तीसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध (1817-19 ई.) में बदल गई।
¯ पिंडारी हार गए।
¯ एक पिंडारी को पूर्वी राजस्थान के एक छोटे राज्य टोंक का नवाब बना दिया गया।
¯ तीसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध ने मराठों को पूर्णतः बर्बाद कर दिया।
¯ पेशवा को पेंशन देकर उत्तर भारत में निर्वासित कर दिया गया।
¯ उसके देहांत के बाद उसका बेटा नाना साहब पेशवा के विशेषाधिकार हासिल करने के लिए प्रयास करता रहा।
¯ कुछ ही वर्षों में पेशवा के इलाके अंग्रेजों के पश्चिम भारत के क्षेत्रों का हिस्सा बन गए। अन्य मराठा सरदारों ने भी अपने अधिकांश इलाके खो दिए।
¯ जल्दी ही राजपूत राज्यों पर भी सहायक संधि थोप दी गई। अंग्रेजों ने सिंध में अपना प्रभाव जमा लिया था।
¯ सिंध के अमीरों ने उनके साथ सहायक संधि कर ली थी। मगर 1843 ई. में सिंध को ब्रिटिश शासन में मिला लिया गया।
ब्रिटिश प्रभुसत्ता की स्थापना
(1848-1856 ई.)
¯ 1837 ई. में रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता आ गई।
¯ उसका बेटा दलीप सिंह गद्दी पर बैठा था, मगर उसकी मां रानी जिंदन अपने कृपापात्र अफसरों की सहायता से राजकाज चलाती थी। उन अफसरों ने एक तरफ अंग्रेजों के साथ सांठ-गांठ की, तो दूसरी तरफ अपनी सेना में सिक्खों के खालसा समूह को अंग्रेजों पर आक्रमण करने के लिए उकसाया।
¯ 1845 ई. में पहला अंग्रेज-सिक्ख युद्ध शुरू हुआ।
¯ मुदकी, फिरोजशाह, अलीवाल तथा सुबरांव के सभी चार युद्धों में सिक्खों की पराजय हुई।
¯ 1846 ई. में हुई ‘लाहौर की संधि’ द्वारा युद्ध की समाप्ति हुई।
¯ पंजाब ब्रिटिश संरक्षण में आ गया, मगर दलीप सिंह गद्दी पर बना रहा।
¯ अंग्रेजों ने गुलाब सिंह को जम्मू और कश्मीर का महाराजा बना दिया।
¯ सन् 1848 ई. में पंजाब में अंग्रेजों के खिलाफ कई विद्रोह हुए और उसके बाद द्वितीय अंग्रेज-सिक्ख युद्ध (1848-49 ई.) हुआ। पंजाब की सेनाएं बहादुरी से लड़ीं।
¯ जनवरी, 1849 में चेनाब नदी के निकट स्थित गुजरात नामक स्थान पर हुए अंतिम और निर्णायक युद्ध में सर चाल्र्स नेपियर के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा सिक्खों की पराजय हुई और पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय हो गया। इस तरह रणजीत सिंह द्वारा स्थापित शक्तिशाली राज्य का अंत हो गया।
¯ गवर्नर जनरल डलहौजी के कार्यकाल (1848-1856 ई.) में भारत में अंग्रेजों की प्रभुसत्ता स्थापित हो गई।
¯ ब्रिटिश प्रभुसत्ता दो प्रमुख तरीकों से स्थापित हुई - सीधे कब्जा कर लेना और भारतीय राज्यों पर सहायक संधि थोपना, जिसका अंत भी अक्सर कब्जा करने में ही होता था।
¯ पंजाब और सिंध को सीधे ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया था। 1856 ई. में अवध के नवाब को गद्दी से हटाकर कलकत्ता में निर्वासित कर दिया गया और अवध को अंग्रेजों ने अपने राज्य में मिला लिया।
¯ मगर अंग्रेजों ने सहायक संधि का ही ज्यादा इस्तेमाल किया।
¯ इसके अनेक फायदे थे। भारतीय शासक ब्रिटिश फौजों का खर्च उठाते थे और अंग्रेजों पर उन राज्यों के प्रशासन या कानून तथा व्यवस्था की कोई जिम्मेदारी नहीं थी।
¯ इस व्यवस्था के अंतर्गत आश्रित राज्यों की जनता को बेहद कष्ट झेलने पड़े।
¯ खर्च देकर ब्रिटिश सैनिक सहायता प्राप्त करने के बाद भारतीय शासक निश्ंिचत हो जाते थे और अपने राज्यों के प्रशासन पर कोई ध्यान नहीं देते थे।
¯ ब्रिटिश सेना का खर्च देने के लिए किसानों पर भारी कर लादे गए।
सहायक संधि करने वाले राज्य राज्य वर्ष हैदराबाद 1798 (सितम्बर) मैसूर 1799 तंजोर 1799 (अक्टूबर) अवध 1801 (नवम्बर) पेशवा 1801 (दिसम्बर) भा सले 1803 (दिसम्बर) सिन्धिया 1804 (फरवरी) ¹ अन्य सहायक संधि करने वाले राज्य थे - जोधपुर, जयपुर, मच्छेड़ी, बूंदी तथा भरतपुर। |
¯ स्थानीय अधिकारियों और जमींदारों ने लूट-खसोट कर काफी सम्पत्ति अर्जित कर ली।
¯ फलतः इन राज्यों में वित्तीय संकट पैदा हो गया और कानून तथा व्यवस्था खत्म हो गई। जिस राज्य में ऐसी स्थिति पैदा हुई उसे अंग्रेजों ने अपने राज्य में मिला लिया।
विलय नीति: भारतीय राज्यों को हड़पने के अन्य बहाने भी ढूंढ़ निकाले गए। ‘विलय नीति’ ऐसा ही एक बहाना या तरीका था।
¯ जब भारतीय शासक अंग्रेजों पर आश्रित हो गए, तब गोद लिए हुए पुत्र को उत्तराधिकारी स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार अंग्रेजों ने अपने हाथ में ले लिया।
¯ अंग्रेज जब ऐसे उत्तराधिकारी को अस्वीकार करते, तब वे स्वपुत्रहीन उस शासक के राज्य को ब्रिटिश राज में मिला लेते।
¯ डलहौजी के कार्यकाल में इस नीति को कड़ाई से लागू किया गया और अनेक राज्यों को ब्रिटिश राज में मिला लिया गया।
¯ ऐसे राज्यों में झांसी, नागपुर और सतारा शामिल थे। निर्वासित पेशवा को मिलने वाली पेंशन उनके गोद लिए पुत्र नाना साहब को नहीं दी गई।
¯ इसी तरह कर्नाटक के नवाब की मृत्यु के बाद उसको मिलने वाली पेंशन उसके रिश्तेदारों को नहीं दी गई।
¯ लगभग 1856 ई. तक अंग्रेजों की भारत-विजय पूर्ण हो गई और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य दृढ़ता से स्थापित हो गया।
¯ देश के बड़े भू-भागों पर अंग्रेजों का सीधा शासन लागू हो गया था। कई ऐसे क्षेत्र थे जिन पर कहने के लिए तो भारतीय शासकों का अधिकार था, मगर वे अंग्रेजों पर पूर्णतः आश्रित थे।
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1. ब्रिटिश राज्य-विस्तार कब और कैसे शुरू हुआ? |
2. ब्रिटिश प्रभुसत्ता कब और कैसे स्थापित हुई? |
3. ब्रिटिश राज्य-विस्तार और ब्रिटिश प्रभुसत्ता में क्या अंतर है? |
4. ईस्ट इंडिया कंपनी क्या है? |
5. ब्रिटिश राज्य-विस्तार और ब्रिटिश प्रभुसत्ता की प्रमुखता किन राज्यों में थी? |
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