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जोखिम न्यूनीकरण एवं प्रत्यास्थता में वृद्धि करना

संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (United Nations Office for Disaster Risk Reduction: UNISDR) द्वारा स्वीकृत शब्दावली में, आपदा जोखिम न्यूनीकरण संबंधी अवधारणा और कार्यप्रणाली में आपदा के कारण संबंधी कारकों के विश्लेषण एवं प्रबंधन संबंधी सुनियोजित प्रयास सम्मिलित किये गये हैं। इनमें जोखिम की प्रकृति की जानकारी, व्यक्तियों तथा परिसंपत्ति की बेहतर सुरक्षा, भूमि तथा पर्यावरण का बुद्धिमतापूर्ण प्रबंधन तथा प्रतिकूल प्रभावों हेतु बेहतर तैयारी सम्मिलित है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार शमन से तात्पर्य ऐसे उपायों से है जिनका लक्ष्य किसी आपदा या आसन्न आपदा स्थिति के जोखिम, संघात तथा प्रभाव का न्यूनीकरण करना है। दी गयी सारणी में आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु प्रधानमंत्री के 10-सूत्री एजेंडे का उल्लेख किया गया है।
भारत में आपदा प्रबंधन और आपदा प्रबंधन चक्र - 2 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

भारत में आपदा प्रबंधन और आपदा प्रबंधन चक्र - 2 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

राष्ट्रीय नीति में आपदा जोखिम न्यूनीकरण तथा शमन हेतु एक बहु-आयामी दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया है, जिसमें निम्नलिखित तथ्य सम्मिलित हैं:

  • सभी विकासात्मक परियोजनाओं में जोखिम न्यूनीकरण संबंधी उपायों को सम्मिलित करना।
  • केंद्र तथा राज्य सरकारों के सम्मिलित प्रयासों के माध्यम से निर्धारित उच्च प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों
  • में शमन परियोजनाओं को प्रारंभ करना।
  • राज्य स्तरीय शमन परियोजनाओं को प्रोत्साहन तथा सहायता प्रदान करना।
  • आपदा तथा उसका सामना करने सम्बन्धी प्रणालियों के संबंध में स्थानीय ज्ञान को महत्व देना।
  • विरासत अवसंरचनाओं की सुरक्षा को उचित महत्व प्रदान करना।

सेंडाई फ्रेमवर्क के निदेशक सिद्धांतों के अनुसार, आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए विभिन्न सरकारी प्रभागों तथा विभिन्न एजेंसियों द्वारा उत्तरदायित्वों को साझा करने की आवश्यकता होती है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण की प्रभावशीलता सभी क्षेत्रकों के मध्य, क्षेत्रकों के भीतर तथा सभी स्तरों पर सम्बंधित हितधारकों के समन्वय तंत्रों पर निर्भर करती है। प्रत्येक संकट के लिए, सेंडाई फ्रेमवर्क में घोषित चार प्राथमिकताओं को आपदा जोखिम न्यूनीकरण के फ्रेमवर्क में शामिल किया गया है।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए पांच कार्यक्षेत्र निम्नलिखित हैं:

  • जोखिम को समझना: इसमें जोखिम की समझ विकसित करने पर बल दिया जाता है तथा यह सेंडाई फ्रेमवर्क के तहत प्रथम प्राथमिकता है। इसमें
    (i) प्रेक्षण नेटवर्क, शोध, पुर्वानुमान,
    (ii) जोनों में वर्गीकरण/मानचित्रण,
    (iii) निगरानी तथा चेतावनी प्रणालियाँ,
    (iv) संकट जोखिम तथा सुभेद्यता मूल्यांकन (Hazard Risk and Vulnerability Assessment: HRVA), तथा
    (v) चेतावनियाँ, आंकड़े तथा सूचना का विस्तार सम्मिलित होते हैं। चेतावनियाँ ज़ारी करने तथा सूचना प्रसारित करने हेतु पर्याप्त सिस्टम का होना जोखिमों की समझ में सुधार का एक अभिन्न हिस्सा है।
  • एजेंसियों के मध्य समन्वय: एजेंसियों के मध्य समन्वय आपदा जोखिम शासन के सुदृढ़ीकरण हेतु मुख्य अवयव है। प्रमुख क्षेत्र, जिनमें एजेंसियों के मध्य शीर्ष स्तरीय समन्वय में सुधार की आवश्यकता है, वे निम्नलिखित हैं:
    (i) समग्र आपदा शासन
    (ii) अनुक्रिया
    (iii) चेतावनियाँ, सूचना और आंकड़े उपलब्ध कराना, तथा
    (iv) गैर-संरचनात्मक उपाय।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश- संरचनात्मक उपाय: आपदा जोखिम न्यूनीकरण तथा प्रत्यास्थता बढ़ाने हेतु प्रमुख कार्य-क्षेत्रों में से एक आवश्यक संरचनात्मक उपायों को आरंभ करना है। इनमें आपदाओं से निपटने में प्रयासरत समुदायों की सहायता हेतु आवश्यक विभिन्न भौतिक अवसंरचनाएं तथा सुविधाएं सम्मिलित हैं।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश-गैर-संरचनात्मक उपाय: यथोचित कानूनों, व्यवस्थाओं तथा तकनीकी-क़ानूनी व्यवस्था का समुच्चय, आपदा जोखिम को प्रबंधित करने के लिए आपदा जोखिम शासन के सुदृढीकरण हेतु महत्वपूर्ण घटक है। इन गैर-संरचनात्मक उपायों में क़ानून, प्रतिमान, नियम, मार्गदर्शक सिद्धांत तथा तकनीकी-कानूनी व्यवस्था (उदाहरण के लिए, संहिताओं का निर्माण) इत्यादि सम्मिलित होते हैं। ये उपाय आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं आपदा प्रत्यास्थता को विकासात्मक गतिविधियों की मुख्य धारा में समाहित करने में प्राधिकारियों की सहायता करते हैं।
  • क्षमता निर्माण: क्षमता निर्माण में प्रशिक्षण कार्यक्रम, पाठ्यक्रम का विकास, व्यापक पैमाने पर जागरुकता का प्रसार करने संबंधी प्रयास, नियमित माक ड्रिल्स तथा आपदा अनुक्रिया अभ्यासों का संचालन सम्मिलित होता है। आपदा जोखिम शमन हेतु संकटों के अनुरूप समुचित उत्तरदायित्व मैट्रिक्स (Responsibility Matrices) विकसित किए गए हैं तथा सम्बंधित हितधारकों की पहचान की गयी है।

10 संकट-बहुल जिलों में आपदा जोखिम का सतत न्यूनीकरण

सर्वाधिक सुभेद्य राज्यों के सर्वाधिक संकट-ग्रस्त जिलों के क्षमता निर्माण के लिए भारत सरकार ने पांच चयनित राज्यों (उत्तराखंड, असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर) में से प्रत्येक के दो जिलों में आपदा जोखिम के सतत न्यूनीकरण हेतु एक परियोजना आरंभ की है।

आपदा तैयारी तथा अनुक्रिया

  • अनुक्रिया संबंधी उपाय उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा पूर्व चेतावनी मिलते ही या किसी घटना के तत्काल पश्चात् अमल में लाये जाते हैं। यह आपदा प्रबंधन के विविध चरणों में सर्वाधिक स्पष्ट चरण होता है। अनुक्रिया में न केवल उन गतिविधियों को सम्मिलित किया जाता है जो तात्कालिक जरूरतों, यथा खोज और बचाव, प्राथमिक उपचार तथा अस्थायी आश्रयस्थलों की उपलब्धता की पूर्ति करें बल्कि प्रयासों के समन्वय और समर्थन हेतु आवश्यक विभिन्न प्रणालियों की त्वरित लामबंदी भी इसके अंतर्गत आती है।
  • जैसा कि UNISDR द्वारा परिभाषित है, तैयारी के अंतर्गत सरकार द्वारा विकसित ज्ञान तथा क्षमता; पेशेवर अनुक्रिया और उस घटना से उबरने में सहायता करने वाले संगठन, समुदाय तथा व्यक्ति; संभावित, आसन्न या वर्तमान संकटपूर्ण घटनाएं या स्थितियों का पूर्वानुमान करने, उनके प्रति अनुक्रिया करने तथा उनसे उबर पाने की क्षमता इत्यादि सम्मिलित होते हैं। तैयारी के आधार पर यह स्पष्ट होते ही कि कोई विनाशकारी घटना आसन्न है, अनुक्रिया संबंधी प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है तथा यह तब तक चलती रहती है जब तक कि आपदा समाप्ति की घोषणा न कर दी जाए।
  • कोई भी एकल एजेंसी या विभाग किसी भी स्तर की आपदा स्थिति से अकेले नहीं निपट सकता। अनुक्रिया के कार्यक्षेत्र में विशिष्ट कार्य, भूमिकाएं तथा उत्तरदायित्व सम्मिलित होते हैं तथा अनुक्रिया को आपदा प्रबंधन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा समय-संवेदनशील (time-sensitive) पहलू माना जाता है।

अनुक्रिया प्रणाली की संस्थागत व्यवस्थाओं में निम्नलिखित तत्व सम्मिलित होते हैं:

  • राष्ट्रीय स्तर पर अनुक्रिया के समन्वय तथा सभी आवश्यक संसाधनों की लामबंदी हेतु आपदाविशिष्ट उत्तरदायित्वों वाला नोडल केन्द्रीय मंत्रालय।
  • पूर्व-चेतावनी प्रणालियों तथा चेतावनियों के लिए आपदा-विशिष्ट उत्तरदायित्वों वाली केन्द्रीय एजेंसियां।
    राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF)।
  • राज्य आपदा मोचन बल (SDRF)।

राष्ट्रीय पूर्व-चेतावनी प्रणाली

भारत सरकार ने विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी के लिए विशिष्ट एजेंसियों को प्राधिकृत
किया है। पर्याप्त पूर्व-चेतावनी प्रणालियाँ स्थापित की गयी हैं तथा किसी भी आसन्न संकट के संबंध में चेतावनियों के प्रसारण की व्यवस्था की गयी है। ये एजेंसियां मानव संसाधन विकास मंत्रालय को अपने इनपुट सौंपती हैं, जिसके पश्चात विभिन्न संचार चैनलों के माध्यम से आपदा की सूचना और चेतावनियाँ प्रसारित की जाती हैं।

सारणी : प्राकृतिक संकट-विशिष्ट पूर्व चेतावनी जारी करने हेतु प्राधिकृत केन्द्रीय एजेंसी

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केन्द्रीय एजेंसियों/ विभागों की भूमिका

नेशनल इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर (NEOC) इस चरण के दौरान समन्वय तथा संचार के केंद्र के रूप में कार्य करेगा तथा इनपुट को अपडेट करने हेतु विभिन्न चेतावनी एजेंसियों के साथ सतत संपर्क बनाए रखेगा। यह स्टेट इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर (SEOC) तथा डिस्ट्रिक्ट इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर (DEOC) को आपदा की सूचना प्रदान करेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का आपदा प्रबंधन विभाग प्राधिकृत पूर्व-चेतावनी एजेंसियों, विभिन्न नोडल मंत्रालयों एवं राज्य सरकारों के साथ संपर्क तथा समन्वय स्थापित करेगा।

राष्ट्रीय स्तर पर अनुक्रिया समन्वय

राष्ट्रीय स्तर पर, केंद्र सरकार के द्वारा आपदा-विशिष्ट अनुक्रियाओं के समन्वय हेतु मुख्य उत्तरदायित्व कुछ विशिष्ट मंत्रालयों को सौंपे गए हैं। किसी आपदा की आशंका की स्थिति में या आपदा के दौरान अनुक्रिया का समन्वय NEC द्वारा किया जाता है।

सारणी : राष्ट्रीय स्तर पर अनुक्रियाओं के समन्वय हेतु केन्द्रीय मंत्रालय

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राहत उपाय

यह आवश्यक है कि आपदा प्रभावित क्षेत्र में यथाशीघ्र प्रथम अनुक्रियाकर्ताओं (First Responders) और राहत सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। प्रायः ऐसा पाया गया है 

कि आपदा की अवस्थिति, प्रकृति तथा अपर्याप्त तैयारियों के कारण उत्पन्न बाधाओं से राहत कार्य में अत्यधिक विलम्ब हो जाता है। एक-दूसरे के कार्य-क्षेत्र के अतिव्यापन से बचने हेतु किसी स्पष्ट योजना के अभाव में तथा राहत के विभिन्न पहलुओं यथा आश्रय स्थलों, वस्त्रों, खाद्य-पदार्थों या औषधियों की प्राथमिकता तय किए बिना ही, एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे विभिन्न संगठनों द्वारा किये गए राहत कार्य प्रायः खण्डित तथा अनियमित होते हैं।

राहत के लिए न्यूनतम मानदंड के संबंध में NDMA द्वारा जारी दिशा-निर्देश

NDMA द्वारा राहत हेतु जारी न्यूनतम मानदंड संबंधी दिशा-निर्देशों में निम्नलिखित सम्मिलित हैं:

  • राज्य तथा जिला प्रशासन को विद्यालयों, आंगनवाड़ी केन्द्रों जैसे ऐसे स्थानों की पहचान पहले से कर लेनी चाहिए जिनका उपयोग आपदा के दौरान राहत शिविर के रूप में किया जा सके। टेंट/शौचालय/मूत्रालय आदि के प्रावधानों हेतु आपूर्तिकर्ताओं के साथ पूर्व में ही समझौता ज्ञापन (MoU) हस्ताक्षरित किया जा सकता है।
  • सुभेद्य वर्गों यथा महिलाओं, बच्चों, वृद्ध व्यक्तियों तथा विकलांगों के लिए विशिष्ट देखभाल की व्यवस्था की जानी चाहिए। बिजली की व्यवस्था के साथ प्रति व्यक्ति 3.5 वर्ग मीटर क्षेत्र अवश्य उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  • पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए प्रति दिन 2,400 किलो कैलोरी युक्त भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। प्रति व्यक्ति कम से कम 3 लीटर पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • व्यक्तिगत स्वच्छता हेतु पर्याप्त जल की व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ ही प्रत्येक कैम्प में स्वच्छता स्तर को अवश्य बनाए रखा जाना चाहिए। शौचालयों से निकली नालियों की दिशा किसी सतही जल स्रोत की ओर नहीं होनी चाहिए।
  • सभी शिविरों में मोबाइल मेडिकल टीमों का नियमित दौरा होना चाहिए तथा गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • जिला प्रशासन द्वारा विधवाओं को उनके पति का मृत्यु प्रमाण-पत्र आपदा के पंद्रह दिनों के भीतर निर्गत किया जाना चाहिए तथा 45 दिनों के भीतर आवश्यक वित्तीय सहायता की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • राहत शिविर अस्थायी होने चाहिए तथा उस क्षेत्र में स्थिति सामान्य होते ही उन्हें बंद कर दिया
    जाना चाहिए।

अग्निशमन तथा आपातकालीन सेवाएं 

  • किसी भी आपदा के पश्चात के गोल्डन ऑवर में FES प्रथम अनुक्रियाकर्ताओं (responders) में
    से एक होती हैं तथा जान-माल की रक्षा में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। FES की मुख्य भूमिका आग की घटनाओं के दौरान अनुक्रिया करना होता है। अग्निशमन के अतिरिक्त, FES अन्य आपात स्थितियों यथा इमारत के ढहने, सड़क दुर्घटनाओं, मानव तथा पशुओं के बचाव तथा अन्य कई आपातकालीन स्थितियों में भी सहायता करती है।
  • वर्तमान में राज्य, संघ शासित प्रदेश तथा ULBS, FES का प्रबंधन करती हैं। यद्यपि उपकरणों के स्तर, प्रकार तथा कर्मचारियों के प्रशिक्षण की बात की जाए तो इस हेतु कोई तय मानक उपलब्ध नहीं हैं। राज्यों द्वारा की गई पहलों तथा FES के लिए उपलब्ध कराए गए धन की मात्रा के अनुसार, प्रत्येक राज्य का अपना पृथक मानदण्ड है।
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