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भारत में बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रम - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारत में बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रम

  • राष्ट्रीय समस्याओं में एक प्रमुख समस्या बेरोजगारी की है। लाख प्रयासों के बावजूद रोजगार के उतने अवसर नहीं पैदा किये जा सके, जितनी बेरोजगारी बढ़ी है। 
  • बेरोजगारी का आशय उस स्थिति से होता है जिससे काम चाहने वाले सक्षम व्यक्तियों की सेवाओं की पूर्ति उनकी मांग की तुलना में अधिक होती है। 
  • देश में खुली और छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या व्यापक रूप धारण कर चुकी है।
  • ग्रामीण क्षेत्र में विशेष रूप से छिपी हुई बेरोजगारी है तो शहरी क्षेत्रों में खुली बेरोजगारी ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया है। 

बेरोजगारी को मुख्यतः निम्न भागों में बांटा जा सकता है-

मौसमी बेरोजगारी - प्रारम्भ में ही भारत में मौसमी बेरोजगारी की समस्या रही है। 

  • ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों के कमी के कारण वर्ष में केवल एक या दो बार ही फसल तैयार की जाती है, अतः श्रमिकों को पूरे वर्ष काम नहीं मिल पाता है। 
  • शहरी कृषि आयोग ने अनुमान लगाया था कि ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरों को लगभग छह माह काम नहीं मिल पाता है।

छिपी बेरोजगारी 

  • छिपी बेरोजगारी का आशय किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लोगों के लगे रहने से है, जिसमें उनका सहयोग प्रायः शून्य के बराबर होता है। 
  • ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक होने के कारण सीमांत उपयोगिता बहुत कम होती है। कृषि जैसे क्षेत्र में तो वह शून्य या ऋणात्मक होती है।

स्थायी बेरोजगारी - इसके अंतर्गत प्रायः कृषिविहीन मजदूर आते हैं।

  • हाल के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा के काफी प्रसार हुआ है। 
  • इससे शिक्षित बेरोजगारों की एक फौज तैयार हो गयी है। 
  • शिक्षा प्रणाली गलत होने के कारण वे न तो कृषि कर सकते हैं और न ही उन्हें नौकरी मिलती है।
  • प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. जाॅन मेनार्ड कीन्स ने अपनी पुस्तक ”रोजगार, मुद्रा और ब्याज के सामान्य सिद्धांत” में बेरोजगारी का प्रमुख कारण प्रभावपूर्ण मांग में कमी होना बतलाया है। 
  • किन्तु कीन्स का यह मत विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं के सन्दर्भ में अधिक सही बैठता है। 
  • भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के सन्दर्भ में बेरोजगारी के कई अन्य कारण होते हैं, जैसे-ग्रामीण क्षेत्रों से काम की तलाश में युवकों का शहर की तरफ पलायन, व्यावसायिक शिक्षा का अभाव आदि। 
  • सरकार एक डाॅक्टर या इंजीनियर बनाने के लिए लाखों रुपये खर्च करती है और वह व्यक्ति आगे चलकर प्रशासनिक या अन्य सेवाओं में चला जाता है। 
  • इसे धन का दुरुपयोग ही माना जायेगा। 
  • मानव शक्ति के उचित नियोजन का अभाव भी बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी है। 
  • कई बार यह भी देखने को मिला है कि काफी लोग मन मसोसकर या अधमने मन से काम करते हैं। यह सब मानव शक्ति के उचित नियोजन व प्रबंधन के अभाव का परिणाम है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • वरिष्ठों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना का प्रारंभ 14 जुलाई, 2003
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का आरंभ 2 फरवरी, 2006
  • कपार्ट (CAPART) का मुख्यालय नई दिल्ली
  • सांसदों की स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत प्रत्येक सांसद के लिए संस्तृति की राशि 5 करोड़ रुपए
  • स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (SJSRY) का प्रारंभ 1 दिसम्बर, 1997
  • स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का आरम्भ 1 अप्रैल, 1999
  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) जून 2011
  • सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) का प्रारम्भ 25 दिसम्बर, 2001
  • हरियाली परियोजना का प्रारंभ 27 जनवरी, 2003
  • कृषक बीमा आय योजना (2003-04) रबी फसल
  • ग्रामीण आवास-इंदिरा आवास योजना आरम्भ वर्ष 1999-2000
  • प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना का आरम्भ वर्ष 2000-01 

निवारण के उपाय

  • भारत में सभी सक्षम लोगों के लिए रोजगार उपलब्ध कराना और बाल मजदूरी पूरी तरह समाप्त करना; स्कूलों में निचले स्तर से ही व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्ध
  • अनिवार्य भूमि सुधारों सहित सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार ताकि 14 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को स्कूल भेजने और सभी वयस्कों के लिए खेती और फैक्टरी कार्यों संबंधी आधुनिक कौशल सीखने की पक्की व्यवस्था की जा सके; 
  • जीविका, आत्मरक्षा और आत्म सुरक्षा के स्थाई साधन;
  • सभी के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रोग-प्रतिरोधी दवाओं में बढ़ोतरी देश के सभी भागों में प्रचुर मात्र मेें पेयजल उपलब्ध कराना; 
  • अधिक पैदावार देने वाले बीजों, सिंचाई योजनाओं और बुनियादी आवश्यकता-आधारित खेती की अन्य अपेक्षाएं पूरी करना; 
  • आवास एवं सफाई, कचरा निपटान और गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था सहित रहने के स्वस्थ वातावरण का निर्माण; और कचरे को खाद एवं ऊर्जा के संसाधनों में परिवर्तित करना; 
  • करोड़ों निर्धनों को कपड़ा मुहैया कराना; 
  • हरी, पत्ते वाली सब्जियों और स्वच्छ एवं सुरक्षित प्रोटीन युक्त भोजन की अन्य वस्तुओं के माध्यम से पौष्टिक भोजन; 
  • संचार माध्यमों तथा सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के अन्य स्रोतों तक पहुंच।
  • सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित व्यक्तिगत एवं  सामाजिक विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना।

ग्रामीण विकास कार्यक्रम 

जवाहर ग्राम समृद्धि योजना 

  • जवाहर ग्राम समृद्धि योजना, पहले की जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुव्यवस्थित और व्यापक स्वरूप है।
  • पहली अप्रैल 1999 को शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य गांव में रहने वाले गरीबों का जीवन स्तर सुधारना और उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान करना है।
  • इस योजना के लक्ष्य हैं
    (i) गांव में निरंतर रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए स्थायी परिसंपत्तियों सहित मांग, पे्ररित बुनियादी सुविधा ढांचे के निर्माण।
    (ii) ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब बेरोजगारों के लिए रोजगार के पूरक अवसर उत्पन्न करना।
  • गांवों में रहने वाले लोगों को इस योजना का प्रमुख लक्ष्य बनाया गया है। 
  • गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवारों तथा शारीरिक रूप से अक्षम  व्यक्तियों को वरीयता दी जाती है।
  • जिला ग्रामीण विकास एजेंसियां और जिला परिषदें सीधे ग्राम पंचायतों को धन देंगी, जिसमें राज्य का हिस्सा भी शामिल होगा।
  • ग्राम सभा की मंजूरी से वार्षिक कार्य योजना तैयार करने और उसे लागू करने का पूरा अधिकार ग्राम पंचायत को है।
  • योजना की 22.5 प्रतिशत धनराशि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों की अलग लाभार्थी योजनाओं के लिए निर्धारित की गई है।
  • वार्षिक आबंटन का तीन प्रतिशत विकलांगों के लिए अवरोध-मुक्त बुनियादी ढांचा तैयार करने पर खर्च किया जाएगा। योजना के अंतर्गत मजदूरी राज्य सरकार तय करेगी।
  • ग्राम पंचायतों को ग्राम सभा की मंजूरी से 50000 रु. तक के निर्माण कार्यों/योजनाओं को क्रियान्वित करने का अधिकार होगा। लेकिन 50 हजार रुपये से अधिक के निर्माण कार्यों/योजनाओं के लिए ग्राम सभा की मंजूरी के बाद ग्राम पंचायत उपयुक्त अधिकारियों का तकनीकी/प्रशासनिक अनुमोदन लेंगी।  ग्राम पंचायतों को जनसंख्या के आधार पर धनराशि आबंटन किया जाएगा।
  • समग्र मार्गदर्शन, समन्वय, निरीक्षण, निगरानी और समय-समय पर रिपोर्ट देने के लिए जिला ग्रामीण विकास एजेंसियां/जिला परिषदें/मध्यवर्ती पंचायतें उत्तरदायी होंगी।

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना

  • स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, गांवों में रहने वाले गरीबों के लिए स्वरोजगार का एक अकेला कार्यक्रम है। 
  • पहली अप्रैल 1999 को शुरू हुई इस योजना में पहले के स्वरोजगार तथा संबद्ध कार्यक्रमों, यथा समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, स्वरोजगार के ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम (ट्राइसेम), ग्रामीण क्षेत्र महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम (ड्वाकरा), ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजारों की किट की आपूर्ति का कार्यक्रम (सिट्रा), गंगा कल्याण योजना तथा दस लाख कुंआ योजना,को समेकित कर दिया गया है और अब ये कार्यक्रम अलग से नहीं चल रहे हैं।
  • इस योजना में पहले के स्वरोजगार कार्यक्रमों की शक्तियों और कमोरियों का ध्यान रखा गया है।
  • यह कार्यक्रम इस प्रकार से बनाया गया है जिससे कि गांवों में रहने वाले गरीबों को उनकी निहित प्रतिभा और क्षमताओं के उपयोग में मदद व प्रोत्साहन दिया जा सके। 
  • कम से कम 50 प्रतिशत अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों, 40 प्रतिशत महिलाओं और 3 प्रतिशत विकलांगों को योजना का लक्ष्य बनाया जाएगा।
  • यह योजना छोटे-उद्योग का एक संपूर्ण कार्यक्रम है, जिसमें ग्रामीण गरीबों के आत्मनिर्भर समूहों में संगठित करने तथा उनकी क्षमता निर्माण, गतिविधियों की योजना, बुनियादी ढांचे के निर्माण, प्रौद्योगिकी, ऋण और विपणन जैसे स्वरोजगार के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
  • इसमें संसाधनों, लोगों की व्यावसायिक प्रतिभाओं और बाजार की उपलब्धता के आधार पर गतिविधि-समूहों पर जोर दिया गया है। 
  • विकास खंड स्तर पर प्रमुख गतिविधियों का चयन पंचायत समितियों द्वारा किया जाएगा, जबकि जिला स्तर पर इस चयन की जिम्मेदारी जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों/जिला परिषदों पर होगी।
  • प्रत्येक पंचायत समिति में कम से कम आधे समूह पूर्णतया महिलाओं के होंगे। 
  • गरीबी रेखा के नीचे की जनगणना में पहचाने गए परिवारों की सूची को ग्राम सभा अधिकृत करेगी। अलग-अलग स्वरोजगारियों का चयन भागीदारी प्रक्रिया के आधार पर किया जाएगा।
  • योजना में दी जाने वाली धनराशि केंद्र और राज्य सरकार 75 के अनुपात में बांटेंगी।
  • राज्यों के निर्धारित केंद्रीय आबंटन राज्यों में गरीबी के आधार पर किया जाएगा।
  • इस योजना पर जिला ग्रामीण विकास एजेंसियों द्वारा पंचायत समितियों के माध्यम से अमल किया जाएगा।
  • नियोजन, क्रियान्वयन और निगरानी के काम में बैंकों तथा पी.आर.आई, गैर-सरकारी संगठनों के साथ-साथ जिलों के तकनीकी संस्थानों को शामिल किया जाएगा।

रोजगार आश्वासन योजना

  • रोजगार आश्वासन योजना की शुरुआत विभिन्न राज्यों के सूखा संभावित क्षेत्रों, मरुभूमि क्षेत्रों, जनजातीय तथा पर्वतीय क्षेत्रों में चुने गए 1778 विकास खंडों में 2 अक्टूबर, 1993 से की गई थी। 
  • बाद में यह योजना चरणबद्ध रूप से देश के शेष विकास खंडों में भी लागू कर दी गई थी। सभी विकास खंडों में चलाई जा रही इस योजना का पहली अप्रैल 1999 से पुनर्गठन किया गया।
  • इस योजना का उद्देश्य खेती के मंडी वाले दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले सभी जरूरतमंद स्वस्थ वयस्कों को लाभकारी मजदूरी उपलब्ध कराना और निरंतर रोजगार तथा विकास के लिए समाजिक और आर्थिक परिसंपत्तियों का निर्माण करना था।
  • योजना के अंतर्गत संसाधनों का बंटवारा केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः 75 रू 25 के अनुपात में करेगी।

राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन

  • भारत सरकार ने पेयजल आपूर्ति की गति में तेजी लाने में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मदद करने के उद्देश्य से 1972.73 में त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम शुरू किया था।
  • 1986 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन के नाम से भी जाने वाले पेयजल संबद्ध जल प्रबंध प्रौद्योगिकी मिशन की शुरुआत के साथ ही इस कार्यक्रम को मिशनरी भावना से चलाए जाने वाले क्रार्यक्रम का रूप दिया गया।
  • 1991 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया।
  • चूंकि ग्रामीण जलापूर्ति राज्य का विषय है, इसलिए राज्य सरकारों न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम पर अमल कर रही हैं।
  • राजीव गांधी पेयजल मिशन के माध्यम से केंद्र सरकार राज्य सरकारों के प्रयासों को बल प्रदान करती है, जिसके लिए त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम के तहत उन्हें सहायता प्रदान की जाती है।

ग्रामीण आवास

  • गांवों में रहने वाले गरीबों की आवास संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मई 1985 में जवाहर रोजगार योजना की एक उपयोजना के रूप में इंदिरा आवास योजना शुरू की गई। 
  • पहली जनवरी 1996 से यह एक स्वतंत्र योजना के रूप में लागू की गयी। 
  • इस योजना का लक्ष्य गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों, मुक्त बंधुआ मजदूर और गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की श्रेणियों में आने वाले ग्रामीण गरीबों को आवासीय इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों को सुधारने में मदद करना है, जिसके लिए उन्हें सहायता अनुदान दिया जाता है।
  • 1995 - 96 से इंदिरा आवास योजना के लाभ लड़ाई में मारे गए रक्षा कर्मियों की विधवाओं या निकटतम संबंधी को भी दिए जाने लगे हैं।
  • योजना के दायरे में भूतपूर्व सैनिकों तथा अर्द्धसैनिक बलों के सेवानिवृत्त सदस्यों को भी शामिल कर लिया गया है, बशर्ते कि वे इस योजना की सामान्य शर्तों को पूरा करते हों।
  • योजना की 3% राशि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित रखी गई है।
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FAQs on भारत में बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रम - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. भारत में बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रम क्या हैं?
उत्तर: बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रम भारत में बेरोजगारी की समस्या को समाधान करने के लिए सरकार द्वारा शुरू किए गए योजनाएं हैं। इन कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार सृजन, अवसरों को बढ़ाना और बेरोजगारों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
2. भारत में बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रम की प्रमुख योजनाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: भारत में बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रम की प्रमुख योजनाएं निम्नलिखित हैं: 1. मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) 2. प्रधानमंत्री रोजगार योजना (मुद्रा लोन योजना) 3. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) 4. राष्ट्रीय कौशल विकास अभियान (NSDC) 5. राष्ट्रीय रोजगार अभियान (NREGA)
3. बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रमों का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: बेरोजगारी एवं रोजगार कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य यह है कि वे बेरोजगारों को रोजगार के अवसर प्रदान करें, उनके कौशल को विकसित करें और उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करें। इसके माध्यम से बेरोजगारी की समस्या को कम किया जा सके और देश की आर्थिक विकास गति में गति लायी जा सके।
4. मनरेगा कार्यक्रम क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना है। इसका महत्व इसलिए है क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी को कम करने के साथ-साथ ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई को बढ़ावा देता है और इनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करता है।
5. प्रधानमंत्री रोजगार योजना क्या है और इसकी विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर: प्रधानमंत्री रोजगार योजना (मुद्रा लोन योजना) भारत में आत्मनिर्भरता को समर्थन करने के लिए शुरू की गई एक योजना है। इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं: - इस योजना के तहत अवसर प्रदान करने के लिए छोटे व्यवसायों, उद्यमियों और गैर-संगठित क्षेत्रों को ऋण प्रदान किया जाता है। - यह योजना आर्थिक स्वायत्तता और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। - इस योजना से छोटे व्यवसायों को वित्तीय संसाधनों की पहुंच मिलती है, जिससे वे अपने व्यवसाय को बढ़ावा दे सकते हैं और रोजगार के अवसर सृजन कर सकते हैं।
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