UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  भारत में ब्रिटिश शासन का आर्थिक प्रभाव - इतिहास,यु.पी.एस.सी

भारत में ब्रिटिश शासन का आर्थिक प्रभाव - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download


-    अंग्रेजों द्वारा भारत में अपनायी जाने वाली आर्थिक नीतियों का निर्धारण ब्रिटिश अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुसार होता था। इसलिये इंग्लैण्ड के आर्थिक ढांचे में हो रहे परिवर्तनों के परिणामस्वरूप भारत में ब्रिटिश शासन की नीति शुरू से लेकर अन्त तक एक सी नहीं रही और भारत के आर्थिक अधिशेष हड़पने के लिए भिन्न-भिन्न तरीके अपनाये गये।
-    ब्रिटिश शासकों ने भारत की पुरानी अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। अंग्रेज भारतीय संशाधनों का उपयोग करते और भारतीय समृद्धि को नजराने के रूप में   ले जाते रहे।
-    1793 में कार्नवालिस ने स्थायी बन्दोबस्त की घोषणा की जिसके द्वारा जमींदार को उसकी भूमि का स्वामी मानकर उसे उस भूमि के समस्त अधिकार दे दिये गये। जमींदार को पूरे लगान का 10ध्11 भाग सरकार को देना पड़ता था और निश्चित तिथि पर राजस्व न देने पर उसकी भूमि नीलाम भी कर दी जाती थी।
-    स्थायी बंदोबस्त के परिणामस्वरूप 1815 तक बंगाल की लगभग आधी भू सम्पत्ति हस्तांतरित होकर कलकत्ता के व्यापारिक एवं वनिक वर्ग के हाथों में चली गयी।
-    मद्रास, बनारस तथा आसाम के कुछ हिस्सों में भी यह व्यवस्था लागू की गयी।
-    जमींदार लगान अधिकतम सीमा तक बढ़ाकर स्वयं समृद्ध होने लगे।
-    स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था ने आम लोगों के हितों को कुचलते हुए एक छोटे वर्ग को महत्व दिया।
-    मद्रास-बम्बई के कुछ हिस्सों, आसाम, बरार और कुर्ग के कुछ हिस्सों में 1820 तक रैयतवारी प्रथा लागू की गयी जिसके अनुसार लगान जमा करने का अधिकार काश्तकारों को दिया गया जो कि भूमि के मालिक बनाये गये। इस व्यवस्था के अन्तर्गत ब्रिटिश भूमि के 51ः हिस्से को शामिल किया गया।
-    रैयतवारी व्यवस्था के अन्तर्गत किसान तथा सरकार के बीच जमींदार, नंबरदार तथा ताल्लुकेदार जैसे कोई बिचैलिये नहीं थे। रैयत किसान और सरकार के बीच सीधा सम्बन्ध था। सरकार ने जमीन की उत्पादकता के आधार पर भूमि से प्राप्त शुद्ध आय के मूल्य के आधे के बराबर लगान निश्चित किया।
-    रैयतवारी व्यवस्था के अन्तर्गत सरकारी अधिकारी द्वारा निश्चित किया गया लगान प्रायः अधिक होता था जिससे किसान प्रायः लगान देने में विफल रहता था और सरकार उसकी जमीन जब्तकर लेती थी।
-    उत्तर पश्चिम प्रान्त, मध्य भारत, पंजाब तथा दक्कन के कुछ भागों में महालवारी व्यवस्था या ग्राम व्यवस्था आरम्भ की गयी। इस व्यवस्था के अनुसार भूमि पर कर की इकाई ग्राम या महाल या एस्टेट को माना गया और भूमि कर एकत्रित करने का कार्यभार परिवार के सबसे बड़े व्यक्ति या जमींदार को सौंपा गया।
-    महालवारी व्यवस्था के अन्तर्गत गांव की विरादरी अपने मुखियों या प्रतिनिधियों के माध्यम से निश्चित अवधि तक रकम चुकाये जाने का भार अपने ऊपर ले लेती थी और फिर सारी देनदारी आपस में बांटकर सबके अंश निर्धारित किये जाते थे। इस व्यवस्था में मुख्यतः प्रत्येक व्यक्ति खेती करके अपने ही लिए निर्धारित रकम चुकाता था पर अन्ततः वह अपने साथियों के अंश के लिए और वे सब उसके अंश के लिए उत्तरदायी होते थे। इस प्रकार सब पर सम्मिलित दायित्व था।
-     महालवारी व्यवस्था ब्रिटिश भारत के कुल 30ः भाग में लागू की गयी थी।
-     फ्रांसिस किसानों को भू-स्वामी का दर्जा देने का पक्षधर था जबकि हेस्टिंग्स और बारवेल भूमि पर सम्राट का आधिपत्य मानते थे। कार्नवालिस एवं शोर ने जमींदारों को भूमि का स्वामी माना और उनके साथ भू-राजस्व का समझौता किया।
-     ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था ने पुरानी प्रचलित मान्यताओं को तोड़ दिया और पुरानी ग्रामीण आत्मनिर्भरता की स्थिति को समाप्त कर दिया।
-     स्थायी बंदोबस्त ने एक ऐसे कुलीन वर्ग को जन्म दिया जो भारतीय सामाजिक रीति के अनुकूल नहीं था। स्थायी बंदोबस्त ने सरकार को स्थायित्व दिया लेकिन ग्रामीण कृषक वर्ग को और भी गरीब बना दिया।
-     नई कृषि व्यवस्था के अन्तर्गत गांव कर निर्धारण और भुगतान की इकाई नहीं रह गये थे बल्कि व्यक्तिगत कर निर्धारण और कर अदायगी की प्रथा शुरू हुई। पहले जहाँ लगान खड़ी फसल का एक भाग होता था वहीं नई व्यवस्था के अन्तर्गत लगान का आधार फसल न होकर भूमि का टुकड़ा हो गया। लगान का भुगतान भी वस्तुतः अब मुद्रा में किया जाता था।
-     भूमि पर निजी मिल्कियत के सिद्धान्त के अन्तर्गत अब भूमि को खरीदा और बेचा जा सकता था। लगान की दर, महाजन का ब्याज एवं कुटीर उद्योगों  के विनाश के कारण किसानों की गरीबी बढ़ने लगी और धनाभाव में धीरे-धीरे वह जमीन बेचने लगा और अन्ततः वह खेतिहर मजदूर हो गया।
-     ब्रिटिश औद्योगिक नीति के कारण भारत में दस्तकारों और शिल्पकारों का पतन हो गया। अंग्रेजों ने 1813 के बाद एकतरफा मुक्त व्यापार की नीति भारत पर लाद दी जिसके कारण ब्रिटिश विनिर्मित वस्तुओं विशेषकर वस्त्रों की तुरन्त बड़ी भरमार हो गयी। आदिम तकनीकों से बनी भारतीय वस्तुएं मशीनों से बनी ब्रिटिश वस्तुओं से प्रतिद्वंद्विता करने में असफल रही।
-     भारत में सूत कातने और सूती कपड़ा बुनने के उद्योगों के साथ-साथ रेशम और ऊनी वस्त्र उद्योग, लोहा तथा मिट्टी के बर्तन, शीशा, कागज, धातु, जहाजरानी, तेलघानी, चमड़ा शोधन और रंगाई जैसे उद्योगों की हालत खराब होती चली गयी।
-     भारतीय वस्तुओंके आयात पर लगाये गये उच्च आयात शुल्कों तथा अन्य प्रतिबन्धों और उनके साथ ही ब्रिटेन में आधुनिक विनिर्माण उद्योगों के विकास के फलस्वरूप उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही यूरोपीय बाजारों के दरवाजे भारतीय विनिर्माताओं के लिये वस्तुतः बन्द हो गये।
-     उन्नीसवीं सदी के छठे दशक में सूती कपड़ा, जूट और कोयला खान उद्योगों की स्थापना के साथ भारत में मशीनों पर आधारित उद्योगों की स्थापना हुई। भारत में पहली कपड़ा मिल 1853 में कावसजी नाना भाई ने बम्बई में तथा पहली जूट मिल 1855 में रिशरा (बंगाल) में शुरू की गयी। इन उद्योगों का विस्तार धीरे-धीरे मगर लगातार होता रहा।

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FAQs on भारत में ब्रिटिश शासन का आर्थिक प्रभाव - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. भारत में ब्रिटिश शासन कब और कितने समय तक चला?
उत्तर. ब्रिटिश शासन भारत में 1858 से 1947 तक चला।
2. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के आर्थिक प्रभाव में क्या बदलाव हुए?
उत्तर. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की आर्थिक स्थिति में कई बदलाव हुए। ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपने लाभ के लिए उपयोग किया, जिससे भारत की संपदा विदेशी देशों में जाने लगी। भारतीय उद्योगों को नष्ट करके ब्रिटिश उद्योगों को बढ़ावा दिया गया। व्यापार में भारतीयों को अनुचित नियमों के तहत बाधा दी गई और कृषि क्षेत्र में भी परिवर्तन किया गया।
3. ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय जनता कैसे प्रभावित हुई?
उत्तर. ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय जनता को कई तरह से प्रभावित किया गया। उनके मूल्यों, संस्कृति और परंपराओं को धीमे धीमे नष्ट किया गया और उन्हें अंग्रेज़ी भाषा, धर्म, और शिक्षा को अपनाने के लिए बल प्रयास किया गया। इसके साथ ही, भारतीय जनता को न्यायपालिका में न्याय करने के लिए ब्रिटिश कानून और न्याय प्रणाली को अपनाना पड़ा।
4. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के आर्थिक विपन्नता में क्या कारण थे?
उत्तर. ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के आर्थिक विपन्नता के कई कारण थे। ब्रिटिश शासन ने भारतीय उद्योगों को नष्ट किया और ब्रिटिश उद्योगों को प्रोत्साहित किया। व्यापार में भारतीयों को अनुचित नियमों के तहत बाधा दी गई और ब्रिटिश कंपनियों को विशेष प्राथमिकता दी गई। इसके अलावा, ब्रिटिश शासन ने कृषि क्षेत्र में भी नये नियमों और करों को लागू किया, जो भारतीय किसानों को आर्थिक संकट में डाल दिया।
5. ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्रोत क्या था?
उत्तर. ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्रोत था विदेशी व्यापार। ब्रिटिश शासन ने भारतीय वस्त्र, मसाले, गुड़, ताम्बे, चीनी, चाय, घी, तेल और अन्य वस्तुओं की उत्पादन और व्यापार में नियमित बदलाव किया। इससे भारतीय संपदा विदेशी देशों में जाने लगी और भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्रोत एक्सपोर्ट व्यापार बन गया।
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