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भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारतीय मानक ब्यूरो

  • भारतीय मानक ब्यूरो, भारत सरकार का राष्ट्रीय मानक निकाय है। इसके प्रमुख कार्यों में मानक तैयार करना और उन्हें लागू करना, उपभोक्ताओं में जागरूकता पैदा करना, परीक्षण प्रयोगशालाओं का गठन व प्रबंध तथा अंतर्राष्ट्रीय मानक निकायों के साथ निकट संपर्क बनाये रखना शामिल हैं।
  • ब्यूरो की तकनीकी समितियों के सदस्यों के रूप में 26000 से भी अधिक तकनीकी विशेषज्ञ शामिल हैं, जिनकी मदद से आवश्यकता-आधारित मानक तैयार किये जाते हैं। 
  • इस समय अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण अंगों के लिए 17120 भारतीय मानक उपलब्ध हैं, जो उद्योग को अपने उत्पादों व सेवाओं का स्तर उन्नत बनाने में मदद करते हैं।
  • ब्यूरो ने भारतीय मानकों को अंतर्राष्ट्रीय और यूरोपीय संघ के मानकोें के संगत बनाया है, ताकि विश्व व यूरोपीय बाजारों में भारतीय निर्यात में आसानी हो। ब्यूरो की उत्पाद प्रमाणीकरण चिन्ह योजना में उपभोक्ताओं को राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप गुणवत्ता आश्वासन मिलता है। 
  • मूल रूप से यह योजना स्वैच्छिक स्वरूप की है। लेकिन कुछ उत्पादों के व्यापक उपयोग व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रसोई गैस सिलिडरों, इस्पात, वनस्पति, सीमेंट, खाद्य सामग्री में मिलाये जाने वाले रंग आदि जैसे 136 मदों के लिए इसे अनिवार्य बना दिया गया है। 
  • देश भर में ब्यूरो की आठ प्रयोगशालाएं हैं, जो प्रमाणित उत्पादों की स्वतंत्रा रूप से जांच करती हैं। 

एगमार्क मानक

  • उपभोक्ता के हित के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि उसे उचित मूल्य पर खाद्य पदार्थों की उचित किस्म की वस्तु उपलब्ध कराये। तथापि आम उपभोक्ताओं को प्रायः सही मूल्य पर पर्याप्त मात्रा में शुद्ध वस्तुएं नहीं मिल पातीं। वस्तुओं का नकली होने एवं उनमें मिलावट आदि की बातें अब सामान्य हो गयी हैं। 
  • इसीलिए सरकार द्वारा उपभोक्ताओं को बेहतर संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से अनेक कानून बनाये गये हैं। उनमें से खाद्य पदार्थों के एक निर्धारित मानक पर विक्रय हेतु एगमार्क अधिनियम अत्यंत ही महत्वपूर्ण है।
  • कृषि पदार्थों के प्रमाणीकरण एवं गुणवत्ता नियंत्राण हेतु कृषि उपज (श्रेणीकरण व चिन्हीकरण) अधिनियम, 1937 पारित किया गया है, जिसे साधारणतः ‘एगमार्क अधिनियम’ के नाम से जाना जाता है। 
  • यह अधिनियम केंद्र सरकार को कृषिगत वस्तुओं की मानक श्रेणी, मांग, चिन्हीकरण, पैकिंग आदि से संबंधित नियम बनाने का अधिकार प्रदान करता है। इस अधिनियम के तहत प्रस्तावित मानक ही ‘एगमार्क मानक’ कहलाते हैं। इस निमित श्रेणीकरण एवं चिन्हीकरण नियम के अंतर्गत 142 कृषि, बागवानी एवं वन संबंधी उत्पादों  के लिए ऐसे मानकों की व्यवस्था की गयी है।
  • एगमार्क अधिनियम, 1937 में अब तक चार संशोधन किये गये थे, प्रथम तीन संशोधन साधारण प्रकृति के थे, लेकिन वर्ष 1986 से लागू चतुर्थ संशोधन अपेक्षातया अधिक व्यापक एवं प्रभावशाली था। इस संशोधन के माध्यम से गैर-श्रेणीकृत वस्तु के विक्रय पर 6 महीने तक का कारावास एवं 5000 रुपये तक जुर्माने की व्यवस्था की गयी है। 
  • ज्ञातव्य है कि इसके पूर्व ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। 
  • इससे अब अनधिकृत चिन्हीकरण, जालसाजी एवं बिना अनिवार्य श्रेणीकरण के एगमार्क लगाये, डिब्बा बंद की हुई अनुसूचित वस्तु के विक्रय को ऐसा दण्ड दिया जा सकता है तथा श्रेणीकरण मार्क में जालसाजी के मामले में 3 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है। 
  • इसके अतिरिक्त अधिनियम के अधीन निर्मित सामान्य श्रेणीकरण एवं चिन्हीकरण नियम, 1998 एक विस्तृत लेख-पत्रा है, जिनके अंतर्गत प्रायः किस्म नियंत्राण, अपील एवं उपभोक्ता की शिकायतों का निपटारा आदि जैसे समस्त आयाम सम्मिलित हैं।
  • एगमार्क के अंतर्गत किसी वस्तु की विस्तारपूर्वक व्याख्या करके घातक वस्तु की उपस्थिति को निषेध किया जाता है। इस व्याख्या के माध्यम से खाद्य की संबद्ध किस्म के साथ ही उसकी पैकिंग में काम आने वाली सामग्री की उत्तम किस्म का निर्धारण भी किया जाता है। 
  • मानक श्रेणी की पैकिंग सामग्री को किसी विशेषीकृत संस्थान, यथा-केंद्रीय खाद्य तकनीकी शोध संस्थान या भारतीय पैकिंग संस्थान से सुनिश्चित होने के पश्चात् ही स्वीकृति प्रदान की जाती है। समस्त एगमार्क उत्पादों पर उससे संबंधित श्रेणी के पदनाम आदि से सम्बद्ध आकर्षक शब्दों मेें लिखित लेबल लगा रहता है। 
  • इसके माध्यम से उपभोक्ता को वे समस्त सूचनायें प्राप्त हो जाती हैं कि एगमार्क उत्पादों का क्रय करते समय वास्तव में वह क्या खरीद रहा है। नवीन सामान्य श्रेणीकरण व चिन्हीकरण नियम, 1988 में उपभोक्ता की शिकायतों के आधार पर क्षतिपूर्ति का प्रावधान है। 
  • इसके अनुसार एगमार्क उत्पाद के दोषयुक्त पाये जाने पर बिना किसी अतिरिक्त लागत के सामग्री की वापसी अथवा संबद्ध उत्पाद की वास्ततिक लागत के वापसी भुगतान की व्यवस्था है। 
  • इस प्रकार ‘एगमार्क मानक’ एक उत्तम मानक है, जिसमें एक निश्चित द्रव्य की सम्पूर्ण श्रेणियों की किस्म संबंधी विशेषताएं पायी जाती हैं।

एफ.पी.ओ.

  • एफ.पी.ओ. फल उत्पाद आदेश का संक्षिप्त नाम है। यह आई.एस.आई. और एगमार्क की तरह की एक सरकारी योजना है, जिसके तहत संबंधित उत्पादों की शुद्धता और गुणवत्ता प्रमाणीकृत की जाती है। 
  • एफ.पी.ओ. के अंतर्गत फल और सब्जियों से बने उत्पाद, यथा-शरबत, जैम, अचार, चटनी, कोल्ड ड्रिंक (शीतल पेय), फलों के जूस आदि आते हैं। 
  • एफ.पी.ओ. चिन्ह के इस्तेमाल का लाइसेंस उन उत्पादों को दिया जाता है, जो शुद्धता और गुणवत्ता के निश्चित मापदंडों को पूरा करते हैं। इन मापदंडों का उल्लंघन करने पर लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है। 
  • एफ.पी.ओ. के तहत उत्पादन, भंडारण और बिक्री से जुड़ी शर्तें निश्चित की गयी हैं। 
  • इन शर्तों के अंतर्गत कच्चे माल की गुणवत्ता, कारखाने की स्वच्छता, स्वीकृत खाद्य रंग और उसकी उचित मात्रा आदि की निगरानी की जाती है। एफ.पी.ओ. के तहत आने वाले उत्पादों की शुद्धता और गुणवत्ता की जांच के लिए दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई और कलकत्ता में प्रयोगशालाएं स्थापित की गयी हैं। 
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FAQs on भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था क्या होती है?
उत्तर: भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा है जो पारंपरिक तरीकों पर आधारित है। इसमें व्यापार, व्यवसाय, और वित्तीय प्रणाली के लिए स्थापित नियमों और प्रथाओं का पालन किया जाता है। यह प्रथाएं विभिन्न संगठनों, सरकारी निकायों, और व्यापारिक संस्थाओं द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
2. भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यापार, व्यवसाय, और वित्तीय प्रणाली को सुरक्षित और स्थायी बनाती है। यह नियमों और प्रथाओं के माध्यम से निरंतरता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करती है और अवैध और कुटिल गतिविधियों को रोकती है। इसके माध्यम से व्यापारी और उपभोक्ताओं के बीच विश्वसनीयता और विश्वास सुनिश्चित होता है।
3. भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था क्या-क्या शामिल होती है?
उत्तर: भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था में व्यापार, व्यवसाय, और वित्तीय प्रणाली सम्मिलित होती है। यह संगठनों के लिए व्यापारिक नियमों और प्रथाओं को शामिल करता है जो उन्हें निर्धारित करते हैं। इसमें व्यापारी, उपभोक्ता, और सरकारी निकायों के बीच संबंध और प्रक्रियाएं भी शामिल होती हैं।
4. भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था कैसे सुरक्षित रखी जा सकती है?
उत्तर: भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिए व्यापारियों और संगठनों को नियमों और प्रथाओं का पालन करना चाहिए। सरकारी निकायों को नियमों का पालन सुनिश्चित करने और अवैध गतिविधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की जरूरत होती है। व्यापारियों को भी उपभोक्ताओं के साथ ईमानदारी और विश्वसनीयता का पालन करना चाहिए।
5. भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था के लाभ क्या हैं?
उत्तर: भारतीय मानक - पारंपरिक अर्थव्यवस्था के कई लाभ हैं। यह व्यापार, व्यवसाय, और वित्तीय प्रणाली को स्थिर और सुरक्षित रखती है जो व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए भरोसेमंद होता है। इसके माध्यम से व्यापारी और उपभोक्ता के बीच विश्वसनीयता और विश्वास का आदान-प्रदान होता है। इसके अलावा, यह अवैध और कुटिल गतिविधियों को रोकती है और निरंतरता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करती है।
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