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भारतीय मूर्तिकला - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारतीय मूर्तिकला
भारत में मूर्तिकला का इतिहास स्थापत्यकला से भी पुराना है। हड़प्पा संस्कृति से भी मूर्तियां प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुई हैं। इस काल में मूर्तियों का निर्माण धार्मिक एवं मनोरंजन के उद्देश्य से होता था। सिंधु घाटी के कलाकार धातु पिघलाना और दो धातुओं के संयोग से मिश्रित धातु बनाना जानते थे। मोहनजोदड़ो से जो एक मूर्ति मिली है, वह तांबे की है। हड़प्पा से एक पुरुष नर्तक की पाषाण मूर्ति प्राप्त हुई है जो कला की दृष्टि से काफी उन्नत हैं। सिंधु सभ्यता से काफी संख्या में मृण्य मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। सिंधु घाटी के नगरों के पश्चात्, अशोक स्तंभों के शीर्ष, जिसमें से कुछ संभवतः उसके राज्यों के पूर्व निर्मित हुए थे, मूर्तिकला के प्रमुख प्रारंभिक उदाहरण है। सारनाथ स्तंभ के सिंह तथा रामपुरवा स्तंभ के वृषभ, यथार्थवादी मूर्तिकारों की कृतियां है जिस पर यूनानी एवं ईरानी परम्परा का प्रभाव है। मौर्यकाल की एक बड़ी शालीन और अत्यन्त सुन्दर और विशाल नारी मूर्ति जो दीदारगंज याक्षिणी या चबरधारिणी कहलाती है, पटना संग्रहालय के प्रवेश द्वार में प्रतिष्ठित है। मौर्यकालीन मूर्तियों की सबसे बड़ी विशेषता है-चिकनी और चमकदार पाॅलिश।

गान्धार कला की मूर्तियां
• कनिष्क के शासन काल में गान्धार कला का विकास हुआ। इस काल के प्रमुख केन्द्र तक्षशिला (रावलपिंडी, पाकिस्तान) से सिलेटी रंग के परतदार पत्थर की हजारों मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। इसे भारतीय-यूनानी शैली या यूनानी बौद्ध कला के नाम से भी अभिहित किया जाता है।
•  इस कला की प्रमुख बुद्ध मूर्तियां तीन प्रकार की हैं:(1) पद्मपणि राजा या अवलोकितेश्वर के रूप में, (2) मंजुश्री या बायें हाथ में पुस्तक तथा दायें हाथ में तलवार लिए हुए और (3) हाथ में अमृत घट लिए हुए मैत्रोय मुद्रा में।
• गान्धार कला की मूर्तियों की प्रमुख विशषताएं इस प्रकार हैं-
1. काल्पनिक दृश्यों का प्रभाव मूर्तियों पर पड़ा है।
2. बुद्ध की मूर्तियों में धोती, चादर, पगड़ी, शरीर पर आभूषण तथा पैरों में चप्पल का निर्माण।
3. बुद्ध के जीवन की चार प्रमुख घटनाओं का निर्माण प्रतिमाओं के रूप में किया गया है, जैसे-(क )बुद्ध का जन्म मायादेवी की प्रतिमा से, (ख) बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति को बुद्ध की ध्यानावस्थित प्रतिमा से, (ग) सारनाथ में धर्मचक्रप्रवर्तन को बुद्ध की प्रवाचक की प्रतिमा से तथा (घ) महापरिनिर्वाण को बुद्ध की शयनावस्था की प्रतिमा से दर्शाया गया है।
4. बुद्ध की मूंछ एवं दाढ़ी से युक्त प्रतिमाएं बनायी गयी हैं।
5. बुद्ध का प्रभामण्डल सादा है।
6. वस्त्रो  पर लहरियां पड़ी हुई हैं।

मथुरा कला की मूर्तियां
• ईसा की प्रारम्भिक तीन शताब्दियों में कुषाणकालीन भारतीय मूर्तिकला के विख्यात केन्द्र मथुरा से भी बुद्ध की कुछ सुन्दर मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त मथुरा में कलाकारों ने स्त्रियों की सुन्दर मूर्तियों का निर्माण किया जिनके अलंकरण में कम से कम आभूषणों एवं वस्त्रो  का प्रयोग किया गया है।

गुप्तकाल की मूर्तिकला
• मथुरा कला के प्रारम्भिक हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियों को पराकाष्ठा पर पहुंचाने का श्रेय गुप्तकाल के मूर्तिकारों को है।
• इस काल में बनायी गयी मूर्तियों के बाह्य तथा आन्तरिक भावों में पूर्ण समन्वय पाया जाता है, जिसके उदाहरण हैं सारनाथ की पद्मासन बुद्धमूर्ति, मथुरा संग्रहालय की खड्गासन बुद्धमूर्ति तथा सुल्तानगंज से प्राप्त बुद्ध की भीमकाय प्रतिमाएं।
• शिव के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप की मूर्तियों का निर्माण सर्वप्रथम गुप्तकाल में ही किया गया।
• इस काल में विष्णु के दशावतारों को सुन्दर मूर्तियों के रूप में निर्मित किया गया। वास्तव में गुप्तकाल की मूर्तिकला प्राचीन भारतीय मूर्तिकला के सर्वश्रेष्ठ रूप का प्रतिनिधित्व करती है।

मध्यकाल की मूर्तिकला
गुप्तकाल के अन्त और प्रायः सातवीं सदी तक मूर्तियों की शैली राष्ट्रीय थी, जिस पर बाहरी तत्वों का भी स्पष्ट प्रभाव था। मगर सातवीं शताब्दी के बाद उन्होंने स्थानीय नाम से अपने-आप को परिभाषित किया। इस काल की मूर्तियां विशेषतः मानवीय हैं, पुरुष-स्त्रियों की, देवी-देवियों की। इस काल की अधिकतर मूर्तियां काले या ‘काष्टी-पत्थर’ की बनी है। धातु की मूर्तियां अधिकतर अष्टधातु की बनी हैं। सोना और चांदी की मूर्तियां कम संख्या में बनी हैं। इस काल की मूर्तियों की विषय-वस्तु काफी व्यापक हो गयी। मुख्य रूप से पौराणिक आख्यान, ऐतिहासिक-काव्यगत रामायण-महाभारत के विषय, नृत्य गायन के मूर्तन, मिथुन और मैथुन पाषाण-चित्राण, प्रसाधन और गृहस्थों के घरेलू मूर्तन, युद्ध और योद्धाओं के दृश्य पर मूर्तियां बनी।
दक्षिण भारतीय मूर्तिकला
दक्षिण भारत में मूर्तियों का निर्माण व्यापक पैमाने पर नवीं सदी के मध्य से आरंभ होकर सत्राहवीं सदी तक चलता रहा। उत्तर भारत में, आरंभ में, धातु मूर्तियों का अभाव रहा है। मगर इसके विपरीत, दक्षिण भारत में आरंभ से धातु की मूर्तियां प्रचुर मात्रा में मिली हैं। खासकर, पल्लव काल में धातु की मूर्तियों का निर्माण प्रचुर मात्रा में हुआ है। पल्लव काल की चतुर्भुज खड़ी शिवमूर्ति (कांसे की) मिसौरी (संयुक्त राज्य अमेरिका) के कंसास सिटी के नेल्सन म्यूजियम में रखी है। इस मूर्ति का निर्माण तंजोर में हुआ था। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि यह मूर्ति भाव-शून्यता को प्रदर्शित करती है। यहां की मूर्तियों की विषय-वस्तु शिव, उनके परिवार, अलवार संतों एवं नयनार संतों से जुड़ा है। दक्षिण भारत की धातु मूर्तियों में प्रधान और असाधारण क्षमता वाली मूर्ति नटराज शिव की है।

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FAQs on भारतीय मूर्तिकला - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. भारतीय मूर्तिकला का इतिहास क्या है?
उत्तर: भारतीय मूर्तिकला एक प्राचीन कला शैली है जो भारतीय सभ्यता और धार्मिक आदर्शों को दर्शाती है। यह हजारों वर्षों से चली आ रही है और भारतीय इतिहास और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मूर्तिकला के माध्यम से, भारतीय कलाकारों ने अपने धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को व्यक्त करने का एक अद्वितीय तरीका विकसित किया है।
2. भारतीय मूर्तिकला से संबंधित UPSC परीक्षा में किस प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं?
उत्तर: UPSC परीक्षा में भारतीय मूर्तिकला से संबंधित निम्नलिखित प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं: 1. भारतीय मूर्तिकला के महत्वपूर्ण युग और शैलियों के बारे में बताएं। 2. भारतीय मूर्तिकला में कौन-कौन से प्रमुख शिल्पकार थे और उनके योगदान क्या थे? 3. भारतीय मूर्तिकला के माध्यम से भारतीय सभ्यता और धार्मिक आदर्शों का व्यक्तित्व व्यक्त कैसे होता है? 4. भारतीय मूर्तिकला में कौन-कौन से मूर्ति स्थल और स्मारक महत्वपूर्ण हैं? इनके बारे में विस्तार से बताएं। 5. भारतीय मूर्तिकला के किसी विशेष शैली, युग या कलाकार के बारे में विस्तृत जानकारी दें।
3. भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में कौन-कौन से महत्वपूर्ण युग हैं?
उत्तर: भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में निम्नलिखित महत्वपूर्ण युग हैं: 1. मौर्य युग: इस युग में मौर्य साम्राज्य के समय महान कलाकार अप्परा और सांची की स्तूपना के दौरान बुद्धिस्त मूर्तिकला का विकास हुआ। 2. गुप्त युग: इस युग में गुप्त साम्राज्य के समय हिंदू मूर्तिकला का विकास हुआ और खजुराहो और एलोरा मंदिर बनाए गए। 3. चोल युग: इस युग में चोल साम्राज्य के समय दक्षिण भारतीय मूर्तिकला का विकास हुआ और तंजावुर ब्रिहदीश्वर मंदिर बनाया गया।
4. भारतीय मूर्तिकला में कौन-कौन से प्रमुख शिल्पकार थे और उनके योगदान क्या थे?
उत्तर: भारतीय मूर्तिकला में कुछ प्रमुख शिल्पकारों के नाम और उनके योगदान निम्नलिखित हैं: 1. अर्जुन मिस्र: वह भारतीय मूर्तिकला के मशहूर शिल्पकार थे जिन्होंने खजुराहो मंदिरों की सजावट की थी। 2. एल्लोरा शिल्पकार: एल्लोरा में स्थित गुप्त कालीन शिल्पकला के मशहूर शिल्पकारों ने अपनी कला के माध्यम से कई विश्वविद्यालय और उद्यानों का निर्माण किया। 3. रविवर्मा पण्डित: वह भारतीय मूर्तिकला के प्रमुख शिल्पकार थे जिन्होंने त्रिपुरा संग्रहालय के लिए वृहद्भारती और वृहद्देवी मूर
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