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भुगतान संतुलन व असंतुलन - पारंपरिक अर्थव्यवस्था | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भुगतान संतुलन के कारण

  • प्रायः भुगतान संतुलन एवं व्यापार संतुलन को एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता है किन्तु दोनों दो अर्थ वाले होते हैं। व्यापार शेष, भुगतान शेष का एक अंग है। 
  • व्यापार शेष या व्यापार संतुलन में हम एक देश के अन्य देशों के साथ आयातों एवं निर्यातों को ही सम्मिलित करते हैं, जबकि भुगतान शेष के अन्तर्गत आयात-निर्यात के अतिरिक्त अदृश्य मदों के आदान-प्रदान को भी सम्मिलित किया जाता है। 
  • जब हम अनुकूल या प्रतिकूल भुगतान संतुलन की बात करते हैं, तो इसका अर्थ भुगतान शेष से नहीं बल्कि व्यापार शेष से होता है। 
  • जब एक देश के आयातों की तुलना में निर्यात अधिक होतेे हैं, तो उसे प्रतिकूल व्यापार संतुलन कहा जाता है। जब केवल वस्तुओं का ही आयात-निर्यात हो तो उसे दृश्य आयात-निर्यात कहा जाता है जबकि सेवाओं के आयात-निर्यात को अदृश्य अयात-निर्यात कहते हैं। 
  • व्यापार संतुलन का सम्बन्ध दृश्य मदों से होता है, जबकि भुगतान संतुलन में दृश्य मदों के साथ-साथ अदृश्य मदों को भी सम्मिलित किया जाता है। 
  • चूंकि भुगतान संतुलन में समस्त दृश्य एवं अदृश्य मदों को सम्मिलित किया जाता है, इसीलिए यह सदैव संतुलित होता है जबकि व्यापार संतुलन का सदैव संतुलित होना आवश्यक नहीं होता।

भुगतान संतुलन के मुख्य दो भाग होते हैं-

  • चालू खाता     
  • पूंजी खाता    

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रकाशित सूची के अनुसार मुख्य रूप से चालू खातों में प्रविष्ट मदें तीन प्रकार की होती हैं- 

  • वस्तुएं (आयात एवं निर्यात)  
  • सेवाएं  
  • उपहार या भेंट 
  • वस्तुओं के खाते में आयातित एवं निर्यातित सामान जैसे - निर्मित या अर्द्ध-निर्मित वस्तुएं, कच्चा माल, खाद्यान्न आदि को सम्मिलित किया जाता है। 
  • सेवाओं के खाते में विशेषज्ञों द्वारा देशों को अर्पित सेवाएं (जमा) तथा परिवहन, बीमा, बैंकिग, पर्यटन, यात्रा, रायल्टी, टेलीफोन आदि से सम्बद्ध प्राप्य एवं देय भुगतानों को सम्मिलित किया जाता है।
  • उपहार खाते में अन्य देशों से प्राप्त एवं दिये गये अनुदान तथा उपहारों को सम्मिलित किया जाता है।

इस खाते में आयात-निर्यात व सेवाओं के बदले प्राप्त एवं देय राशि को लिखा जाता है। पूंजी खाते में निम्न मदें सम्मिलित की जाती हैं-

  • निजी खातों का शेष भुगतान 
  • स्वर्ण का हस्तांतरण 
  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से संबंद्ध भुगतान एवं प्राप्तियां  
  • सरकारी खातों का शेष भुगतान।
  • निजी पूंजीगत भुगतान संस्थाओं, व्यक्तियों, बैंकों तथा व्यापारियों से सम्बद्ध होता है। निजी खातों को भी दो भागों में बंटा जाता है। 
  • पहला, अल्पकालीन पूंजीगत भुगतान, जिसमें अल्पकालीन दायित्वों को सम्मिलित करते हैं तथा दूसरा दीर्घकालीन निजी पूंजीगत भुगतान, जिसमें प्रत्यक्ष विनियोग, वित्तीय विनियोग एवं स्थगित भुगतानों को सम्मिलित करते हैं। 
  • स्वर्ण के हस्तांतरण को भी पूंजी खाते में सम्मिलित किया जाता है
  • अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के द्वारा भी अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन वित्तीय सहायता की जाती है, जिसे पंूजी खाते में जमा पक्ष में लिखा जाता है। 
  • इन संस्थाओं को भुगतान की गयी राशि को देय पक्ष में दिखाया जाता है। 
  • सरकारी खातों में शेष भुगतान के अन्तर्गत सरकार द्वारा प्राप्य एवं देय पूंजीगत राशियों (ऋण व ब्याज आदि) तथा अनुदान को सम्मिलित किया जाता है।

भुगतान असंतुलन के कारण

  • विकासशील देशों में अनेक विकास कार्यक्रम चलने के कारण अधिक मात्रा में पूंजीगत वस्तुओं, तकनीकी जानकारी तथा आवश्यक कच्चे माल का आयात करना पड़ता है, जबकि निर्यात में अत्यधिक वृद्धि नहीं हो पाती। इस कारण आयात का निर्यात से आधिक्य बना रहता है और भुगतान असंतुलन बना रहता है। 
  • आर्थिक विकास के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो जाती है। इससे आयात भी बढ़ जाते हैं। 
  • आय की वृद्धि के परिणामस्वरूप आयातों में कितनी वृद्धि होगी, यह सीमान्त आयात प्रवृत्ति पर निर्भर करेगा। 
  • सीमान्त आयात प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, आय की तुलना में आयात में उतने ही अधिक अनुपात में वृद्धि होगी तथा देश का भुगतान संतुलन उतना ही प्रतिकूल हो जायेगा। विकासशील देशों में आयात की प्रवृत्ति अधिक व निर्यात की प्रवृत्ति कम पायी जाती है। 
  • इन देशों में निर्यात की गयी वस्तुओं की मांग लोच विदेशों में कम होने के कारण मूल्यों में कमी करने के बाद भी निर्यात में पर्याप्त वृद्धि सम्भव नहीं हो पाती है। 
  • आयातित वस्तुओं की मूल्य-मांग लोच कम करने से विकसित देशों द्वारा मूल्यों में वृद्धि करने से भी आयात की मात्रा में आनुपातिक कमी सम्भव नहीं हो पाती, इससे विकासशील देशों में भुगतान असंतुलन बना रहता है। 
  • विकासशील देशों में विकसित देशों की अपेक्षा जनसंख्या वृद्धि दर अधिक पायी जाती है। परिणामस्वरूप वस्तुओं की आन्तरिक मांग में तीव्र गति से वृद्धि होती है जिससे निर्यात क्षमता में कमी तथा आयात मांग में वृद्धि होती है। 
  • विकासशील देशों में श्रम की उत्पादकता शून्य या इसके समान रहती है जिससे जनसंख्या वृद्धि से उत्पादन में सहायता नहीं प्राप्त हो पाती। परिणामस्वरूप विकासशील देशों में भुगतान-असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जो काफी लम्बे समय तक बनी रहती है।
  • विकासशील देश विकास कार्यों के लिए दूसरे देशों तथा कई अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से ऋण पर्याप्त मात्रा में लिये होते हैं। 
  • अतः इन ऋणों की किश्तों तथा ब्याज की भुगतान राशि निरन्तर  बढ़ने के कारण विकासशील देशों के समक्ष भुगतान असंतुलन की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है। भुगतान असंतुलन को संतुलित करने का निम्न विधियों द्वारा प्रयास किया जाता है।
  • विनियम दरों में संशोधन।
  • अवमूल्यन लोच विधि (मार्शल-लर्नर शर्त)
  • आय-संशोधन अथवा अवशोषण विधि
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा सुझाये गये उपाय।    
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FAQs on भुगतान संतुलन व असंतुलन - पारंपरिक अर्थव्यवस्था - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. What is payment balance in traditional economy?
Ans. Payment balance refers to the equilibrium between the payments received and the payments made by a country in a given period. In a traditional economy, payment balance is maintained through barter system where goods and services are exchanged for other goods and services.
2. What is payment imbalance in traditional economy?
Ans. Payment imbalance refers to the situation where a country receives more payments than it makes or vice versa. In a traditional economy, payment imbalance can occur when one group or individual has more goods or services to offer in exchange for other goods or services, leading to inequality.
3. How is payment balance maintained in modern economy?
Ans. In a modern economy, payment balance is maintained through international trade. A country exports goods and services to other countries in exchange for payments, and imports goods and services from other countries by making payments. This maintains the balance in payments received and made.
4. What is the impact of payment imbalance on economy?
Ans. Payment imbalance can have a negative impact on the economy. If a country is receiving more payments than it is making, it can lead to inflation as the excess money supply can lead to an increase in prices. On the other hand, if a country is making more payments than it is receiving, it can lead to a decrease in foreign exchange reserves and a weakening of the currency.
5. How can payment imbalance be corrected?
Ans. Payment imbalance can be corrected through various measures such as devaluation of currency, import restrictions, and export promotion. Devaluation of currency can make exports cheaper and imports more expensive, reducing the payment imbalance. Import restrictions can reduce the amount of payments made by a country to other countries. Export promotion can increase the amount of payments received by a country through increased exports.
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