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भौतिक स्वरूप - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारत का भूगोल या भारत का भौगोलिक स्वरूप से आशय भारत में भौगोलिक तत्वों के वितरण और इसके प्रतिरूप से है जो लगभग हर दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है।  

  • दक्षिण एशिया के तीन प्रायद्वीपों में से मध्यवर्ती प्रायद्वीप पर स्थित यह देश अपने 32,87,263 वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग 1.3 अरब जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है।
  • भारत के सम्पूर्ण क्षेत्रफल का 10.7% पर्वतीय भाग, 18.6% पहाड़ियाँ, 27.7% पठारी क्षेत्र और 43% भूभाग मैदानी है।

भौगोलिक दृष्टिकोण से भारत को चार भागों में बाँटा जा सकता है जो अपनी भौतिक और भौगोलिक विशेषताओं में एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न हैं:

भौतिक स्वरूप - भारतीय भूगोल | भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

उत्तरी पर्वतीय प्रदेश 

इस क्षेत्र के अंतर्गत हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा में पश्चिम से पूर्व की ओर 2,400 कि. मी. लम्बाई में एक वृहद् चाप के आकार में फैला है।

  • इनकी चैड़ाई 150 से 400 कि.मी. और ऊँचाई 6,000 मीटर तक है। यह करीब 5 लाख वर्ग कि. मी. में फैला है।
  • ये पर्वत उस विशाल पर्वत प्रणाली के भाग है जो मध्य एशिया से मध्य यूरोप तक फैले है। इस पर्वत-प्रणाली को पामीर की गाँठ (Pamir Knot) कहते है। पश्चिमी भाग में इसकी तीन श्रेणियाँ प्रत्यक्ष हैः
    (i) लद्दाख-जास्कर श्रेणी,
    (ii) पंगी श्रेणी और ठमेर,
    (iii) पीर पंजाल श्रेणी।
  • पूर्वी भाग में हिमालय श्रेणी और सबसे उत्तर में काराकोरम श्रेणी है जो चीन तक चली गयी है। इन पर्वतों ने भारत को शेष एशिया से पृथक कर दिया है।

सतलुज-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान

यह मैदान हिमालय की उत्पत्ति के बाद बना है। यह हिमालय पर्वत के दक्षिण में और दक्षिण पठार के उत्तर में भारत का ही नहीं वरन् विश्व की सबसे अधिक उपजाऊ और घनी जनसंख्या वाला मैदान है।

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  • इसका क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग कि. मी. है। यह मैदान पूर्व में 145 कि. मी. से लेकर पश्चिम में 480 कि. मी. चैड़ा है तथा 2,414 कि. मी. की लम्बाई में धनुष के आकार में फैला है। इस मैदान की ढाल समतल है। अतः ऊँचे भाग बहुत कम है।
  • अरावली पर्वत श्रेणी को छोड़कर कोई भी भाग समुद्र तल से 150 मीटर से अधिक ऊँचा नहीं है। यह मैदान अधिक गहरा है।
  • पाताल-तोड़ कुएँ बनाने के लिए की गयी खुदाई के फलस्वरूप यह प्रकट हुआ है कि इसकी मोटाई पृथ्वी की ऊपरी धरातल से 400 मीटर तक तथा समुद्री धरातल से 3,050 मीटर नीचे तक है।
  • इस मैदान में सिन्ध का अधिकांश भाग (पाकिस्तान), उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, प. बंगाल, बंगलादेश और असम का आधा भाग सम्मिलित है।
Question for भौतिक स्वरूप - भारतीय भूगोल
Try yourself:तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी किस नाम से जानी जाती है।
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  • यह मैदान सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टी से बना है, अतः यह बहुत उपजाऊ है। इस मैदान के बीच में अरावली पर्वत आ जाने के कारण सिन्धु और उसकी सहायक नदियाँ (झेलम, चिनाव, रावी, व्यास तथा सतलज) पश्चिम में तथा गंगा और उसकी सहायक नदियाँ (यमुना, गंडक, घाघरा, गोमती, सरयू, सोन) तथा ब्रह्मपुत्र पूर्व में बहती है।
  • अरावली पर्वत इन नदी समूहों के बीच में जल विभाजक (Water-parting) का काम करता है। अतः इस मैदान के पश्चिमी और पूर्वी भाग क्रमशः पश्चिमी और पूर्वी मैदान कहलाते है। पश्चिमी मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है और पूर्वी मैदान का ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है।
  • इसका पूर्वी भाग ही वास्तव में मुख्य मैदान है। इस मैदान की गहराई बहुत अधिक है। प्रतिवर्ष गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी बारीक लाँप मिट्टी की तहें जमती जाती है, अतः हजारों मीटर की गहराई तक खुदाई करने पर भी पुरानी चट्टानों का पता नहीं चलता है। यह मैदान अपेक्षाकृत अधिक नम तथा निम्न भूमि वाला है। इस मैदान का क्षेत्रफल 3,57,000 वर्ग कि. मी. है।
  • गंगा के मैदान को धरातल की ऊँचाई-निचाई के विचार से दो भागों में बाँटा गया है:
    (i) बाँगर और (ii) खादर।
    इस मैदान में उन भागों के, जहाँ नदियों द्वारा कछार के प्राचीनतम संग्रहीत पुरानी मिट्टी के ऊँचे मैदान बन गये है और जहाँ सामान्य रूप से नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुँच जाता बाँगर (Bangar) कहते है। नये कछारी भाग जो निचले मैदान है और जहाँ बाढ़ का पानी प्रतिवर्ष पहुँचकर नयी मिट्टी की परत जमा देता है, खादर (Khadar) के नाम से पुकारे जाते है। कहीं-कहीं नदियों के पास ऊँचे किनारे विस्तृत उप-घाटियों के रूप में परिवर्तित हो गये है। इन छोटे-छोटे मैदानी भागों को दोआब (Doab) कहा जाता है। गंगा और यमुना नदियों के बीच पड़ने वाले समतल मैदानी भाग काफी उपजाऊ है जिन्हें गंगा-यमुना दोआब कहा जाता है। यह भारत की सबसे उपजाऊ भूमि है।

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  • गंगा के डेल्टा के उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र का मैदान है। यह गारो और हिमालय पहाड़ के बीच में एक लम्बा और पतला मैदान है जिसमें ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ का पानी पर्वतों से लायी मिट्टी को जमा देता है। पानी में मिट्टी की मात्रा इतनी अधिक होती है कि जल के बहाव में थोड़ी-सी रूकावट पड़ने पर ही मिट्टी के ढेर एकत्रित हो जाते है और चारों ओर फैल जाते हैं। यही कारण है कि ब्रह्मपुत्र नदी में द्वीप बहुत पाये जाते है। ब्रह्मपुत्र की घाटी में चावल, नारंगी, फल, जूट तथा चाय की पैदावार होती है।
  • जहाँ हिमालय पर्वत और सतलज गंगा के मैदान मिलते है वहाँ हिमालय से आने वाली असंख्य धाराओं ने अपने साथ पर्वतीय क्षेत्र से टूट कर गिरे हुए पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़े काफी गहराई तक जमा कर दिये है। इन कंकड़-पत्थरों के ढँके हुए भाग को ही भाबर कहा जाता है। यह प्रदेश हिमालय के एक सिरे से दूसरे सिरे तक लगभग 8 कि. मी. तक चैड़ा है। इस प्रदेश में लम्बी जड़ों वाले बड़े-बड़े वृक्ष तो अवश्य दृष्टिगोचर होते है किन्तु छोटे पौधों, खेतों तथा जनसंख्या का प्रायः अभाव पाया जाता है।
  • भाबर प्रदेश के आगे जाकर भाबर के नीचे बहने वाला जल ऊपरी धरातल पर प्रकट हो जाता है। इसके बड़े-बड़े दलदल हो जाते है। इन दलदलों में ऊँची घास, वृक्ष और असंख्य पशु पाये जाते है। इन घने वनों वाले प्रदेश को तराई कहते है। मलेरिया के कारण यहाँ की जनसंख्या काफी कम होती है। भाबर की अपेक्षा तराई का प्रदेश अधिक चैड़ा है। उत्तर प्रदेश की सरकार इस भाग को साफ कराकर मशीनों द्वारा सामूहिक खेती करवा रही है। तराई की रचना बारीक कंकड़-पत्थर, रेत और चिकनी मिट्टी से हुई है।
  • हिमालय पर्वत की रचना के कारण उसके और प्रायद्वीपीय भारत के मध्य में एक गहरी खाई बन गयी जिसमें टैथिस सागर की अवशिष्ट जल खाड़ियों के रूप में भरा हुआ रह गया। इन खाड़ियों को वर्तमान अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी का उत्तरी भाग कहा जा सकता है जो अब नष्ट हो चुका है। हिमालय से निकलने वाली आरम्भिक नदियों ने अपने साथ कंकड़-पत्थर और मिट्टी लाकर इन खाड़ियों के तल में जमा कर दिया। इस प्रकार नवसृजित हिमालय की आरम्भिक नदियों द्वारा जो मिट्टी का एक बड़ा भाग सतलज प्रदेश, हिमालय और प्रायद्वीपीय भारत के मध्य बना वही आज सिन्धु-सतलुज-गंगा मैदान प्रदेश कहलाता है।
  • इस मैदान का विस्तार अधिक है। यह भारत के लगभग एक-तिहाई क्षेत्रफल को घेरे हुए है। यहाँ सम्पूर्ण देश की लगभग 45ः जनसंख्या निवास करती है। यद्यपि भौगोलिक तथा आर्थिक दृष्टि से यह भारत का सर्वोत्तम भाग है किन्तु भूगर्भशास्त्रो की दृष्टि से इसका महत्व अधिक नहीं है क्योंकि यह भारत का नवीनतम भाग है और इसकी भौतिक संरचना सरल है।
  • इस भाग में खनिज पदार्थों का नितांत अभाव है किन्तु भूमि समतल होने के कारण रेलमार्गों और नदियों का जाल बिछा है, जिस कारण इस भाग में देश के अनेक प्रमुख व्यापारिक और औद्योगिक केन्द्र स्थित है तथा जनसंख्या भी घनी है। सिन्धु, सतलज, गंगा और ब्रह्मपुत्रा नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टी से बने होने के कारण और सिंचाई की सुविधा के कारण यह मैदान हिमालय पर्वत का उपहार (Gift of the Himalaya) कहलाता है।

दक्षिण का पठार 

पठार के उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियां, पश्चिम में ऊँचे पश्चिम घाट और पूरब में निम्न पूर्वी घाट और दक्षिण में नीलगिरि पर्वत है। इस प्रायद्वीप की औसत ऊँचाई 487 से 762 मीटर है।

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  • यह भारत का सबसे बड़ा पठार है जिसका क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किलोमीटर है। प्रायद्वीप के अंतर्गत दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग, झारखण्ड, महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक आदि राज्य सम्मिलित है।
  • यह प्रायद्वीपीय भारत की प्राचीनतम कठोर चट्टानों का बना वह भू-भाग है जिसका क्षरण मौसमी क्षति की क्रियाओं द्वारा होता रहा है और जिनके कारण यह अनेक छोटे-मोटे पठारों में विभाजित हो गया है-उत्तर में झारखण्ड के राँची जिले में छोटानागपुर का पठार और दक्षिण में दक्षिण का मुख्य पठार आदि इसके उदाहरण है। इस प्रायद्वीप का धरातल कम चपटी है। यह साधारणतः टीलेदार या लहरदार है।
  • मालवा के पठार के पूर्वी भाग महादेव, मैकाल, बराकर और राजमहल की पहाड़ियों के रूप में गंगा नदी की घाटी में वाराणसी तक फैला हुआ है।
  • विन्ध्याचल के दक्षिण में इसके समानान्तर 1,120 किलो मीटर के विस्तार में सतपुड़ा पर्वत फैला है। यह पर्वत श्रेणी मध्य प्रदेश में नर्मदा के दक्षिण और ताप्ती के उत्तर में रीवा से लगकर पश्चिम की ओर राजपीपला पहाड़ियों में होती हुई पश्चिमी घाट तक फैली है। यह श्रेणी अधिकतर बेसाल्ट और ग्रेनाइट चट्टानों की बनी है जिनकी औसत ऊँचाई 762 मीटर है किन्तु अमरकण्टक की पहाड़ियाँ 1,066 मीटर तक ऊँची है जो आगे जाकर पूर्व की ओर छोटानागपुर के पठार पर समाप्त हो जाती है।
  • छोटानागपुर पठार के अन्तर्गत झारखण्ड में राँची, हजारीबाग और गया जिले है जिनके बीच से गहरी नदियाँ (महानदी, दामोदर, सोन और सुवर्णरेखा) बहती है। पठार की औसत ऊँचाई 760 मीटर है किन्तु पाश्र्वनाथ चोटी 1, 365 मीटर ऊँची है। इस पठार पर अधिकतर चावल पैदा होता है। इमारती पत्थरों और खनिज का धनी यह प्रदेश खनिज भण्डार के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

तटीय मैदानी प्रदेश

दक्षिण के पठार के पूर्व और पश्चिम की ओर से पूर्वी तथा पश्चिमी घाट और समुद्र के बीच में समुद्र तटीय मैदान स्थित है। ये मैदान या तो समुद्र की क्रिया द्वारा बने है या नदियों द्वारा लायी गयी कीचड़ मिट्टी द्वारा बने है। ये क्रमशः पश्चिमी समुद्रतटीय मैदान और पूर्वी समुद्रतटीय मैदान कहलाते है।

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  • पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से कुमारी अन्तरीय तक फैले है। इनकी औसत चैड़ाई 64 कि. मी. है। नर्मदा और ताप्ती के मुहानों पर यह 80 कि. मी. चैड़ा है। इस तटीय मैदान में बहनेवाली नदियाँ छोटी और तीव्रगामी है, अतः इनके द्वारा पश्चिमी घाट पर होने वाली वर्षा का जल व्यर्थ ही समुद्र में बहकर चला जाता है। तीव्रगामी होने से ये नदियाँ मिट्टी का जमाव भी नहीं करती है।
  • दक्षिणी भाग में लम्बे और संकरे लैगून (Lagoons) पाये जाते है जो नदियों के मुहाने पर बालू के जम जाने से बने है। इन्हें कायल्स (Kayals) भी कहते है। इन लैगूनों में नावें भी चलायी जाती है तथा मछलियाँ भी पकड़ी जाती है। कोचीन बन्दरगाह ऐसे ही लैगून पर स्थित है।
  • मैदान के उत्तरी भाग को कोंकण और दक्षिणी भाग को मालाबार कहते है। इस मैदान में उत्तम जलवायु, उपजाऊ मिट्टी और चावल उत्पादन के कारण अधिक जनसंख्या पायी जाती है।
  • पूर्वी तटीय मैदान पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक चौड़ा है। इसकी औसत चैड़ाई 161 से 483 कि. मी. तक है। यह गंगा के मुहाने से कुमारी अन्तरीप तक फैला है। यह मैदान दो भागों में बाँटा जा सकता है-निचला भाग जिसमें नदियों की डेल्टा है और ऊपरी भाग जो अधिकांशतः नदियों के ऊपरी मार्ग में है। निचला भाग पूर्णतः उस काँप मिट्टी से बना है जिसे महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों ने पठार के ऊपरी भागों से लाकर बिछा दिया है।
  • समुद्र के निकटवर्ती भागों में बालू के ढेरों की लम्बी श्रंखला मिलती है जो लहरों द्वारा मैदानों पर बन गयी है। इन ढेरों द्वारा चिलका और पुलीकट छिछली झील बन गयी है। ऊपरी भाग अंशतः काँप मिट्टी का अवशिष्ट मैदान है जो उभरे हुए भू-भाग के क्षयीकरण द्वारा बना है।
  • इस सम्पूर्ण तट को कोरोमण्डल तट कहते है। उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार या गोलकुण्डा और दक्षिणी भाग को कर्नाटक या कोरोमण्डल तट कहते है।

थार मरुस्थल

थार मरुस्थल, जो महान भारतीय मरुस्थल भी कहलाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी भाग में विस्तारित एक शुष्क व मरुस्थल क्षेत्र है। 

  • यह भारत और पाकिस्तान में 200,000 किमी(77,000 वर्ग मील) पर विस्तारित है। 
  • यह विश्व का 17वाँ सबसे बड़ा मरुस्थल है और 9वाँ सबसे बड़ा गरम उपोष्णकटिबन्धीय मरुस्थल है। थार का 85% भाग भारत और 15% भाग पाकिस्तान में है।

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  • थार का 61.11% भाग राजस्थान राज्य में आता है। 
  • जिनमे राजस्थान के हनुमानगढ़,बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर,बाड़मेर , हालांकि यह मरुस्थल गुजरात, पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में भी फैला हुआ है। पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में थार चोलिस्तान में विस्तारित है। 
  • थार का पश्चिमी भाग मरुस्थली कहलाता है और बहुत शुष्क है, जबकि पूर्वी भाग में कभी-कभी हलकी वर्षा हो जाती है और कम रेत के टीले पाए जाते हैं। 
  • अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार मरुस्थल स्थित है। यह मरुस्थल बालू के टिब्बों से ढँका हुआ एक तरंगित मैदान है।

आपके लिए कुछ प्रश्न उत्तर 

प्रश्न.1: भारत के भू आकृतिक विभाजन का संक्षेप में वर्णन करें!

उत्तर: भारत में पर्वत, पठार, मैदान, मरुस्थल, तटीय मैदान द्वीप समूह के रूप में अनेक धरातलीय विषमताएँ पाई जाती हैं। इन्हीं विषमताओं के आधार पर भारत को निम्नलिखित भू–आकृतिक खंडों में  विभाजित किया गया है:

उत्तर तथा पूर्वी पर्वतमाला
यह पर्वत श्रृंखला उत्तर-पश्चिम में जम्मू-कश्मीर से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश में नामचा बरवा तक विस्तृत है। इसे चार भागों- ट्रांस हिमालय, वृहत हिमालय, लघु या मध्य हिमालय और शिवालिक में बाँटा गया है। 

उत्तरी भारत का मैदान
यह मैदान सिंधु एवं गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों के जलोढ़ अवसादों से निर्मित है। इसका विस्तार 3000 किलोमीटर से भी अधिक है और लगभग 150 से 300 किलोमीटर तक फैला है। इस मैदान को भी धरातलीय विशेषताओं के आधार पर चार भागों में विभाजित किया गया है। 

  • भाबर 
  • तराई 
  • बांगर 
  • खादर

प्रायद्वीपीय पठार
प्राचीन गोंडवाना भूमि का यह हिस्सा त्रिभुजाकार आकृति में फैला है। उत्तर एवं दक्षिण में फैला यह क्षेत्र कई हिस्सों में विभाजित है। बघेलखंड, बुंदेलखंड, रायलसीमा, राजमहल, अरावली आदि इसी प्रायद्वीपीय क्षेत्र के हिस्से हैं।

भारतीय मरुस्थल
इसका विस्तार भारत के पश्चिमोत्तर में राजस्थान एवं गुजरात में है। यह एक शुष्क क्षेत्र है जो भारत और पाकिस्तान की प्राकृतिक सीमा बनाता है।

तटीय मैदान
ये मैदान भारत के पूर्वी एवं पश्चिमी तट के सामानांतर विस्तृत हैं। पूर्वी तटीय मैदान के संपूर्ण क्षेत्र को उत्कल तट, उत्तरी सरकार और कोरोमंडल में वर्गीकृत किया जाता है। पश्चिमी तटीय मैदान गुजरात से लेकर कन्याकुमारी तक कोंकण, कन्नड़ और मालाबार तट के नाम से विस्तृत है।

द्वीप समूह
भारत का पूर्वी समुद्री भाग बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूह है। अरब सागर में उपस्थित लक्षद्वीप समूह मूंगा से निर्मित द्वीप है।


प्रश्न.2. भारत के मैदानी भाग की विशेषता क्या है?

उत्तर: 

  • भारत का विशाल मैदान विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी आबादी वाला भू-भाग कहलाता है। यह मैदान प्रायद्वीपीय भारत को बाह्य-प्रायद्वीपीय भारत से बिल्कुल अलग करता है। 
  • हिमालय के निर्माण के बाद बना यह एक नवीनतम भूखंड है, जो सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का प्रमुख भाग (भौगोलिक दृष्टि से एक खण्ड) था, जिसे भारत-पाकिस्तान विभाजन के पश्चात् अलग कर दिया गया।
  • पश्चिम में सिंधु नदी के मैदान का अधिकांश भाग और पूरब में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा का अधिकांश भाग वर्तमान भारत से अलग हो गया है। 
  • यही कारण है कि शेष मैदान को भारत के विशाल मैदान के नाम से संबोधित किया जाता है, जिसमें सतलज व व्यास का मैदानी भाग, हैं। कई भारतीय विद्वानों द्वारा इस मैदान को विशाल मैदान के नाम से भी संबोधित किया गया है।
  • इस विशाल मैदान का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किलोमीटर है। पूरब से पश्चिम दिशा में इसकी लंबाई लगभग 2,400 किलोमीटर है। 
  • चौड़ाई में यह पश्चिम से पूरब की ओर कम होती जाती है। इसकी चौड़ाई पश्चिम में 500 किलोमीटर है तथा पूरब में क्रमशः कम होती हुई घटकर 145 किलोमीटर रह जाती है। 
  • सामान्य तौर पर इस मैदान का ढाल एकदम समतल है। इसका अधिकांश भाग समुद्र तल से लगभग 150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। 
  • इस मैदान का राजनीतिक विस्तार दिल्ली, उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तरी विहार, उत्तर-प्रदेश, असम, बंगाल राज्यों में है। इसकी पश्चिमी सीमा राजस्थान मरुभूमि में विलीन हो गयी है।


 

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FAQs on भौतिक स्वरूप - भारतीय भूगोल - भूगोल (Geography) for UPSC CSE in Hindi

1. What are the geographical regions of Uttar Pradesh?
Ans. Uttar Pradesh has five geographical regions - the Himalayan region, the Sutlej-Ganga-Brahmaputra plain, the southern plateau, the coastal plain, and the Thar Desert.
2. Which river systems are part of the Sutlej-Ganga-Brahmaputra plain in Uttar Pradesh?
Ans. The Sutlej, Ganga, and Brahmaputra rivers are part of the Sutlej-Ganga-Brahmaputra plain in Uttar Pradesh.
3. What is the southern plateau region of Uttar Pradesh known for?
Ans. The southern plateau region of Uttar Pradesh is known for its mineral resources such as coal, limestone, and bauxite.
4. Which region of Uttar Pradesh is known for its desert landscape?
Ans. The Thar Desert is the region of Uttar Pradesh that is known for its desert landscape.
5. What are some key features of the coastal plain region of Uttar Pradesh?
Ans. The coastal plain region of Uttar Pradesh is characterized by sandy beaches, lagoons, mangrove forests, and backwaters. It is also home to important ports such as Kolkata and Haldia.
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