महाजनपद और मगध साम्राज्य
महाजनपद
(i) कुछ जनों या कबीलों ने अकेले ही जनपद की अवस्था प्राप्त कर ली। मत्स्य, चेदि, काशी, कोसल तथा कुछ अन्य जन इस श्रेणी में आते हैं।
(ii) कुछ जनों में पहले संयोग हुआ और उसके पश्चात् उसका जनपद के रूप में विकास हुआ। इस प्रकार का उदाहरण पांचाल जनपद है, जिसमें पांच जनों का संयोग था।
(iii) अनेक जन अधिक शक्तिशाली जनों के द्वारा विजितहोने के बाद, उन्हीं में मिला लिए गए। अंग जन इस प्रकार का एक उदाहरण है।
मगध की सफलता के कारण
मगध साम्राज्य के शासक
बिंबिसार (544-492 ई. पू.) : महावंश के अनुसार बिंबिसार 15 वर्ष की आयु में मगध नरेश बना। उसने गिरिव्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बनाकर हर्यंक वंश की नींव डाली। उसने पड़ोसी राज-परिवार की राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध जोड़े। मगध के दक्षिण-पूर्व में अंग राज्य था जिसकी राजधानी आधुनिक भागलपुर के पास थी। बिंबिसार ने अंग राज्य को जीत लिया। अंग राज्य में गंगा के तट पर चंपा एक प्रसिद्ध बंदरगाह था, जहां से जहाज गंगा के मुहाने तक और आगे पूर्वी समुद्रतट के साथ-साथ दक्षिण भारत को जाते थे। दक्षिण भारत से ये जहाज मसाले और मणि-माणिक्य लेकर लौटते थे जिनसे मगध धनवान बन गया था।
उसने मगध पर अच्छा शासन किया। उसकी मदद के लिए सलाहकारों की एक समिति थी। उसने गांवों के मुखिया को सीधे खुद से मिलने की अनुमति दे रखी थी, क्योंकि वह जानना चाहता था कि उसकी प्रजा क्या चाहती थी। वह दोषी पाए जाने पर पदाधिकारियों को भी दंडित करता था। उसने विभिन्न शहरों और गांवों को आपस में जोड़ने के लिए सड़कें बनवाईं और नदियों पर पुल बनवाए। राज्य की दशा स्वयं जानने के लिए उसने अपने सारे राज्य के दौरे किए। वह दूसरे राज्यों के साथ (अंग को छोड़कर) मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखना चाहता था। उसने सुदूर देशों को, यहां तक कि पश्चिमोत्तर भारत के गांधार राज्य को भी, अपने राजदूत भेजे थे।
स्मरणीय तथ्य
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अजातशत्रु (492-460 ई.पू.) : बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बिंबिसार की मृत्यु अपने महत्वाकांक्षी पुत्र अजातशत्रु के हाथों हुई, परंतु जैन साहित्य में अजातशत्रु को पितृ-हत्या का दोषी नहीं ठहराया गया है। अजातशत्रु ने आरम्भ से ही विस्तार की नीति अपनाई। बिंबिसार के प्रति अजातशत्रु के व्यवहार से क्षुब्ध होकर उसके मामा कोशलराज प्रसेनजित ने काशी को मगध से वापस ले लिया। अजातशत्रु का कोसल से युद्ध हुआ। पहले तो प्रसेनजित की हार हुई किंतु कुछ समय बाद दोनों में संधि हो गई और अजातशत्रु को न केवल काशी का प्रदेश मिला, अपितु कोसल की राजकुमारी वाजिरा का हाथ भी। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र के अनुसार अजातशत्रु का वज्जि संघ के साथ भी युद्ध हुआ। मगध सम्राट ने अपने कूटनीतिज्ञ मंत्री वत्सकार की सहायता से लिच्छवियों की शक्ति पर विजय पाई।
उदयन (460-444 ई. पू.) : उसने पटना में गंगा और सोनके संगम पर एक किला बनवाया। उदयन के बाद अनिरूद्ध, मुण्ड तथा दर्शक सिंहासन पर आए। महावंश नामक श्रीलंका के बौद्धों के इतिहास से ज्ञात होता है कि उनमें से प्रत्येक अपने-अपने पिता की हत्या करके सिंहासन पर बैठा था। सम्भवतः जनता ने 413 ई. पू. में अंतिम राजा को पदच्युत कर बनारस के उपराजा शिशुनाग को सिंहासन पर बिठाया।
शिशुनाग वंश (413-362 ई. पू.) : पुराणों के अनुसार शिशुनाग ने प्रद्योत वंश की सेना को नष्ट कर दिया। अवंति मगध साम्राज्य का भाग बन गया। इसी समय वत्स तथा कोसल पर भी शिशुनाग ने विजय पाई और इन राज्यों की विजय से मगध का बहुत विस्तार हो गया। कुछ समय के लिए राजधानी वैशाली ले आई गई।
नंद वंशः मगध का राज्य अब नंद वंश के हाथ में आ गया। इस वंश की स्थापना महानंदिन ने की, परंतु महापद नंद ने शीघ्र ही उसका वध कर दिया। वह एक शूद्र दासीपुत्र था। पुराणों में उसे सर्वक्षतांतक कहा गया है। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार महापद नंद के आठ पुत्र थे जिनमें से केवल अंतिम पुत्र धननंद के विषय में थोड़ी जानकारी मिलती है। धननंद उस समय मगध पर राज्य कर रहा था, जब भारत पर सिकंदर का आक्रमण हुआ। चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से मगध पर आक्रमण किया और धननंद को मारकर राजसिंहासन प्राप्त कर लिया।
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1. महाजनपद और मगध साम्राज्य के बीच क्या अंतर है? |
2. बौद्ध और जैन धर्म में क्या अंतर है? |
3. महाजनपद क्या थे? |
4. मगध साम्राज्य की महत्वपूर्ण घटनाएं क्या थीं? |
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