मृदा के रासायनिक गुण
मृदा में सूक्ष्म जीवों का महत्व
विभिन्न फसलें | ||||
फसल | उचित तापक्रम डिग्री से.ग्रे. | वार्षिक वर्षा सेमी. | मृदा | उत्पादन क्षेत्र |
1. धान | 20-35 | 100 | भारी मृदा, सीवेज द्वारा जल की धारण शक्ति अच्छी हो अधिक क्षति न हो तथा जल | उत्तर प्रदेश (गोरखपुर वाराणसी, आजमगढ़,इलाहाबाद, लखनऊ मण्डल) मध्य प्रदेश, बिहार, पं. बंगाल, केरल, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के तटीय भाग,तमिलनाडु आदि |
2. ज्वार | 22.5-35 | 40-60 | हल्की मृदा (दोमट) | महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पं. मध्य प्रदेश। |
3. बाजरा | 25-35 | 30-50 | बलुई दोमट | राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, उत्तर.प्रदेश. एवं तमिलनाडु। |
4. मक्का | 30-45 | 50-60 | जीवांश युक्त अच्छे जल-निकास वाली दोमट मृदा | उत्तर प्रदेश. राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब,गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर। |
5. गेहूँ | 16-25 | 25-150 | अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ दोमट या चिकनी मिट्टी | पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार। |
6. चना | 16-25 | 65-95 | हल्की एल्युवियल मृदा, पानी धारण की अच्छी क्षमता, जल निकास की समुचित व्यवस्था | मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब एवं बिहार। |
7. अरहर | 25.35 पाला सेप्रभावित | 75-100 | उचित जल निकास वाली उपजाऊ दोमट मृदा जिसका पी-एच मान उदासीन हो। | उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि। |
8. मूँगफली | 22.5-30 | 60-130 | बलुई दोमट मिट्टी या अच्छे जल | गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट,ª कर्नाटक, उत्तर प्रदेश। |
9. सरसो | 16.25 | 30-75 | मध्यम उपजाऊ, उदासीन अथवा हल्की क्षारीय दोमट मिट्टी | राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश। |
10. कपास | 30-40 | 75-120 | अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ काली मिट्टी | महाराष्ट्र, गुजरात, पं. मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडु। |
11. जूट | 25-32.5 | 100-150 | रेतीली दोमट मिट्टी | पं. बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश। |
12. गन्ना | 20-35 | 60-250 | अच्छी जल निकास वाली उपजाऊ भारी मिट्टी | उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब एवं महाराष्ट्र। |
13. आलू | 15-30 ओला और पाला हानिकारक | 50-120 | उचित जल निकास वाली उपजाऊ, जीवांश युक्त रेतीली दोमट मिट्टी | उत्तर प्रदेश, असम, बिहार, उड़ीसा। |
14. तम्बाकू | 8o-30o | 50-100 | उचित जल निकास वाली भारी मृदा पाला | उपजाऊ, कम जैविक पदार्थयुक्त, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात एवं बिहार, हरियाणा। |
फसलों के प्रमुख कीट | ||
नाम | क्षति | रोकथाम |
1. धान की गन्धी | दूधिया बालियों के रस चूसते है । | 10% बी. एच. सी. |
2. धानका बंका | पत्तियों को खाने के साथ-साथ पत्तियों का खोल बनाती है । | 10% बी. एच. सी. इन्डोसल्फान |
3. तना छेदक (धान एवं मक्का) | ये तने को छेदकर अन्दर ही अन्दर खाती है । | कार्बोफ्यूरान 30%, फास्फेमिडान |
4. कपास का फुदका | पत्तियों के रस को चूसते है । | मिथाइल डेमेटान |
5. दीमक तथा मुझिया (गेहूँ) | रात्रि में उगते पौधों को जमीन के पास से काटती है । | एल्ड्रिन, बी. एच. सी. |
6. चने का फली छेदक | ये फली के अन्दर दाने को खाती है । | इन्डोसल्फान, मैलाथियान |
7. गन्ने का दीमक | गन्ने की आँखों को क्षति पहुँचाते है । | एल्ड्रिन 5% |
8. पायरिला (गन्ना) | पत्तियों की निचली सतह से रस चूसता है। | बी. एच. सी. 10% मैलाथियान, थापोडान |
9. माॅहूं (सरसों) | शिशु तथा प्रौढ़ दोनों पत्तियों तथा फूल से रस चूसते है जिससे फल नहीं लगते है । | मिथाइल डेमेटान |
10. हिस्पा (धान) | कीट तथा लारवा पत्तियों को खुरचकर खाता है जिससे पत्तियों पर सफेद समान्तर रेखाएं बन जाती है । | बी. एच. सी. का 50% घोल, इन्डोसेल्फान, पैराथियान |
11. धान की बाल काटने वाला कीट (सैनिक कीट) | कीट की सूड़ियाँ रातोरात धान की बालियाँ देती है । काटकर गिरा | लोरोपाइरोफास, पैराथियान या इन्डोसल्फान का घोल सन्ध्या को बालियों पर छिड़कना। |
12. सरसों की आरा मक्खी | पत्तियाँ खाती है । | 10% बी. एच. सी. चूर्ण या 2% पैराथियान धूल का प्रयोग |
13. व्हाइट मूव | आलू के कन्द (tuber) को प्रभावित करता है। | फोरेट ग्रेन्यूल का प्रयोग करना चाहिए। |
14. गन्ना भेदक | गन्ने को भेदकर अन्दर ही अन्दर गूदा खाता है। | बी. एच. सी. या थायोडान का छिड़काव करना चाहिए। |
15. मक्का का लाल मुडली | पौधे को काटकर खाता है। यह कोमल अवस्था में खाता है। | बी. एच. सी. या पैराथियान का छिड़काव |
शुष्क-कृषि
शुष्क कृषि क्षेत्रों की समस्यायें
पौधोें के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व
नाइट्रोजन: पौधे की वृद्धि में सहायता करता है तथा हरे रंग को बढ़ाता है। यह फास्फोरस तथा पोटाश के प्रयोग का नियंत्राण करता है और इसकी कमी से वृद्धि रूक जाती है, पौधा पीला होने लगता है तथा उत्पादन कम हो जाता है
स्मरणीय तथ्य 1954 - 55 - कृषि-आर्थिक अनुसंधान अध्ययन योजना शुरू की गई। 1958 - अखिल भारतीय भूमि एवं मृदा उपयोग सर्वेक्षण कार्यालय की स्थापना। 1963 - राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की स्थापना। 1965 - आणंद (गुजरात) में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना। 1966 - अधिक उपज देने वाली किस्मों के कार्यक्रम से हरित क्रांति की शुरुआत। 1968 - बगलौर में मछली पालन के लिए सेंट्रल इन्स्टीट्यूट आॅफ कोस्टल इंजीनियरिंग की स्थापना। 1969 - हेसरगट्टा में सेंट्रल फ्रोजन सीमेन् प्रोडक्शन टेªनिंग इन्स्टीट्यूट की स्थापना। 1970 - पहली बार कृषि-जनगणना कराई गई। 1974 - पशु बीमा योजना लागू। 1983 - राष्ट्रीय भूमि उपयोग एवं संरक्षण बोर्ड की स्थापना। 1988 - डेयरी विकास से संबंधित टेक्नोलाॅजी मिशन की शुरुआत (अगस्त)। 1991 - डेयरी और पशुपालन विभाग का गठन (1 फरवरी) - विश्व बैंक की सहायता से समन्वित जलसंभर विकास परियोजना की शुरुआत। 1993 - देश के सात राज्यों-महाराष्ट्र, केरल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में ”कृषि क्षेत्रा में महिलाएं” योजना की शुरुआत। - व्यापक फसल बीमा योजना लागू। 1994.95 - पूर्वोत्तर में सात राज्यों के झूम खेती क्षेत्रों में जलसंभर विकास परियोजना से संबंधित योजना शुरू। 1998 - राष्ट्रीय कृषि टेक्नोलाॅजी परियोजना की शुरुआत। - किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड योजना शुरू की गई |
राज्यवार ऊसर मृदा का विस्तार राज्य क्षेत्रापफल राज्य क्षेत्रापफल उत्तर प्रदेश 12.95 कर्नाटक 4.04 गुजरात 12.14 मध्य प्रदेश 2.42 पश्चिम बंगाल 8.50 आन्ध्र प्रदेश 0.24 राजस्थान 7.25 दिल्ली 0.16 पंजाब 6.88 केरल 0.16 महाराष्ट्र 5.35 बिहार 04 हरियाणा 5.25 तमिलनाडु 04 उड़ीसा 4.02 |
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1. मृदा के रासायनिक गुण क्या होते हैं? |
2. मृदा के रासायनिक गुण क्यों महत्वपूर्ण होते हैं? |
3. कौन से तत्व मृदा के रासायनिक गुणों में शामिल हो सकते हैं? |
4. मृदा के रासायनिक गुणों का अध्ययन किस विषय में किया जाता है? |
5. मृदा के रासायनिक गुणों का महत्व क्या है? |
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