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मौर्यकालीन इतिहास के स्रोत - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

मौर्यकालीन इतिहास के स्रोत

  • मौर्य साम्राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। इसी के साथ भारतीय इतिहास के बारे में ठोस एवं स्पष्ट सबूत मिलने प्रारम्भ हो जाते हैं । मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी हेतु 

हमें मुख्यत

निम्नलिखित स्रोतों पर निर्भर होना पड़ता है 

  • विदेशी वृतांत: मेगास्थनीज ने, जो चंद्रगुप्त के दरबार में ई. पू. 302 से ई. पू. 298 तक रहा था, अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य काल का अच्छा खांका खींचा है। दुर्भाग्यवश वह पुस्तक अपने मूल रूप में उपलब्ध नहीं है लेकिन उसका अंश स्ट्राबो, डायोडोरस, एरियन, प्लिनी एवं जस्टिन आदि की पुस्तकों में मिलता है। प्लुटार्क, निआर्कस, ओनेसिक्रिटस, अरिस्टोबुलस आदि द्वारा लिखा गया भारत का वर्णन भी उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त बिन्दुसार का दरबारी पेट्रोक्लीज तथा चीनी यात्री फाह्यान और ह्नेनसांग के वृतांत भी कुछ जानकारी देते हैं।
  • साहित्य: चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्री कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा लिखित पुस्तक अर्थशास्त्र से तत्कालीन राजव्यवस्था पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। विशाखदत्त द्वारा पांचवीं सदी ई. में रचित मुद्राराक्षस से यह पता चलता है कि किस तरह चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य और पौरव कुमार की मदद से नंद वंश का तख्ता पलटने में सफलता हासिल की।
  • धार्मिक साहित्य: बौद्ध स्रोतों में दीपवंश, महावंश, महावंश टीका, महाबोधिवंश, दिव्यावदान, अशोकावदान आदि रचनाओं का नाम उल्लेखनीय है। भद्रबाहु का कल्पसूत्र, हेमचंद्र का परिशिष्टपर्वन आदि जैन साहित्य से भी कुछ जानकारी मिलती है। जैन स्रोत से ही पता चलता है कि अपने शासन के अंतिम वर्षों में चंद्रगुप्त मौर्य राजकाज छोड़कर जैन मुनि भद्रबाहु का शिष्य बन गया तथा जैन मुनि की तरह काया-क्लेश द्वारा प्राण त्याग दिया।
  • पुरातात्त्विक स्रोत: इसमें कुम्हरार (पटना) तथा बुलंदी बाग में मिले काले पालिशदार बर्तन, चांदी एवं तांबे के पंचमार्क सिक्के आदि शामिल हैं।
  • अभिलेख एवं शिलालेख: अशोक के अभिलेखों एवं शिलालेखों से उसके राज-काज के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है। इनमें 14 बड़े शिलालेख, कुछ लघु शिलालेख, सात स्तम्भ लेख तथा अनेक अभिलेख शामिल हैं । रूद्रदामण के जूनागढ़ अभिलेख से भी मौर्यों के बारे में जानकारी मिलती है।

चन्द्रगुप्त मौर्य (322.298 ई. पू.)

  • चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नंद वंश का तख्ता पलट दिया और मगध साम्राज्य पर मौर्यवंश का आधिपत्य कायम किया।
  • ब्राह्मण परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की माता शूद्र जाति की थी लेकिन बौद्ध परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त नेपाल की तराई से लगे गोरखपुर के मौर्य नामक एक क्षत्रिय कुल का था। 
  • मगध में अपनी शक्ति स्थापित करने के बाद चंद्रगुप्त ने अपना ध्यान पश्चिमोत्तर में पंजाब की ओर लगाया। उस समय पंजाब पर सिकंदर के गवर्नर शासन करते थे। चंद्रगुप्त ने जल्दी ही समूचे पंजाब को जीत लिया। 
  • सुदूर उत्तर में कुछ प्रदेश यूनानी सेनापति सेल्यूकस निकेटर के अधीन थे। चंद्रगुप्त ने एक लंबे अभियान के बाद अंत में उसे 305 ई.पू. में हरा दिया। उसने सिंधु नदी के पार के उस प्रदेश को भी जीत लिया जो आजकल अफगानिस्तान का हिस्सा है। 
  • अंत में दोनों राजपरिवारों के बीविवाह-संबंध भी स्थापित हो गया। चंद्रगुप्त का साम्राज्य बंगाल से हिन्दूकुश एवं हिमालय से विंध्य तक फैला था, जिसमें काबुल, हेरात, कन्धार, बलूचिस्तान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, गुजरात, काठियावाड़ तथा विंध्य के पार की भी कुछ सीमाएँ शामिल थीं।
  • ग्रीक लेखों में उसे सैन्ड्रोकोट्टस के नाम से जाना जाता है। विलियम जोन्स प्रथम विद्वान थे जिन्होंने सैन्ड्रोकोट्टस की पहचान भारतीय ग्रंथों के चंद्रगुप्त से की।
  • जैन साहित्य के अनुसार अपने जीवन के अंतिम काल में वह जैन धर्म स्वीकार कर अपने पुत्र को शासन साप दिया तथा धीरे-धीरे अन्न त्याग कर श्रवण बेलगोला में प्राण त्याग दिया।

बिन्दुसार (298.273 ई. पू.)

  • करीब 25 वर्षों तक शासन करने के बाद चंद्रगुप्त ने अपना सिंहासन अपने पुत्र बिंदुसार को साप दिया। 
  • बिंदुसार के शासन काल में मौर्य साम्राज्य दक्षिण में मैसूर तक फैल गया। केवल कलिंग प्रदेश (उड़ीसा) और सुदूर दक्षिण के राज्य ही उसके साम्राज्य में नहीं थे। परंतु दक्षिण के राज्यों के साथ उसकी मैत्री थी, इसलिए उन्हें जीतना जरूरी नहीं था।
  • दिव्यावदान में उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में विद्रोह का उल्लेख है। इस विद्रोह को शांत करने के लिए बिंदुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था।
  • यूनानी लेखों के अनुसार उसका नाम अमित्रकेटे था। विद्वानों के अनुसार अमित्रकेटे का संस्कृत रूप है अमित्रघाट यानि शत्रुओं का नाश करने वाला। 
  • स्ट्राबो के अनुसार सेल्यूकस के उत्तराधिकारी एण्टियोकस प्रथम ने अपना राजदूत डायमेकस बिन्दुसार के दरबार में भेजा। 
  • प्लिनी के अनुसार टॉलेमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डायोनिसस को बिन्दुसार के दरबार में नियुक्त किया।
  • ऐथेनियस के अनुसार बिंदुसार ने एण्टियोकस (सीरिया का शासक) को मीठी शराब, सूखे अंजीर और यूनानी दार्शनिक भेजने के लिए लिखा था। 
  • दिव्यावदान की एक कथा के अनुसार आजीवक परिव्राजक बिंदुसार की सभा को सुशोभित करते थे। 
  • पुराणों के अनुसार बिंदुसार ने 24 वर्ष तक, किंतु महावंश के अनुसार 27 वर्ष तक राज किया।
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FAQs on मौर्यकालीन इतिहास के स्रोत - मौर्य साम्राज्य, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. What is Mauryan Empire?
Ans. The Mauryan Empire was a geographically extensive and powerful empire in ancient India, ruled by the Maurya dynasty from 321 to 185 BCE. The empire was founded by Chandragupta Maurya, who had overthrown the Nanda Dynasty, and rapidly expanded his power westwards across central and western India, taking advantage of the disruptions of local powers in the wake of the withdrawal westward by Alexander the Great.
2. What are the sources of Mauryan history?
Ans. The sources of Mauryan history include literary and archaeological sources. Literary sources include ancient texts such as the Arthashastra, Mudrarakshasa, Indica, and Buddhist texts. Archaeological sources include inscriptions, coins, and monuments such as the Pillars of Ashoka.
3. What is the Arthashastra?
Ans. The Arthashastra is an ancient Indian treatise on statecraft, economic policy, and military strategy, written by the philosopher Chanakya (also known as Kautilya) around the 3rd century BCE. It is one of the key literary sources for the study of the Mauryan Empire.
4. Who was Ashoka the Great?
Ans. Ashoka the Great was an Indian emperor of the Maurya Dynasty who ruled from 268 to 232 BCE. He was the grandson of Chandragupta Maurya, and is considered one of India's greatest emperors. Ashoka is known for his military conquests, as well as his conversion to Buddhism and his efforts to spread the religion throughout his empire.
5. What was the impact of the Mauryan Empire on Indian history?
Ans. The Mauryan Empire had a significant impact on Indian history, particularly in the areas of politics, economics, and culture. The empire established a centralized and bureaucratic government, with a highly organized administration that set the standard for future Indian empires. The Mauryan Empire also facilitated trade and commerce, and promoted cultural exchange and religious tolerance. Additionally, the spread of Buddhism during the Mauryan period had a lasting impact on Indian religion and philosophy.
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