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यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ

यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiयूरोपीय व्यापारिक कंपनियों का भारत में आगमन

  • प्राचीन काल में भारत का यूनानियों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था।
  • मध्य युग के दौरान भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशिया का यूरोप से व्यापार निम्नलिखित रास्तों से होता था
  • फारस की खाड़ी तक समुद्र के जरिए तथा वहाँ से इराक और तुर्की होकर स्थल मार्ग से तथा फिर समुद्र के जरिए वेनिस और जेनेवा तक।
  • लाल सागर होकर मिस्र के सिकन्दरिया तक स्थल मार्ग से और वहाँ से समुद्र के जरिए वेनिस और जेनेवा तक।
  • भारत के उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त के दर्रों से होकर मध्य एशिया और रूस तथा बाल्टिक सागर को पार करता हुआ।
  • पश्चिम और पूरब के बीच के पुराने व्यापार मार्ग आटोमन साम्राज्य द्वारा एशिया माइनर को जीतने तथा 1453 में कुस्तुनिया को हथियाने के बाद तुर्की के नियंत्राण में आ गया।  वेनिस और जेनेवा के व्यापारियों ने यूरोप और एशिया के बीच व्यापार पर एकाधिकार कर लिया और उन्होंने स्पेन और पुर्तगाल को पुराने रास्तों से होने वाले व्यापार में हिस्सा देने से वंचित कर दिया।
  • पश्चिम यूरोप के राज्यों और सौदागरों ने भारत और इंडोनेशिया के मसाला द्वीपों तक पहुंचने के लिये नया मार्ग ढुंढ़ने का प्रयास प्रारम्भ किया। इस दिशा में प्रथम प्रयास पुर्तगाल और स्पेन के व्यापारियों का था।
  • 1494 में स्पेन का कोलम्बस भारत के लिए रवाना हुआ परन्तु वह अमेरिका पहुँच गया।
  • 1498 में पुर्तगाल के वास्कोडिगामा ने यूरोप से भारत का एक नया और प्रत्यक्ष समुद्री मार्ग खोज निकाला।

स्मरणीय तथ्य

  • फ्रांसिस्को डी अल्मीडा भारत में नियुक्त प्रथम पुर्तगाली गवर्नर था।

यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

प्रथम पुर्तगाली गवर्नर- फ्रांसिस्को डी अल्मीडा

  • भारत में पुर्तगाली सत्ता का वास्तविक संस्थापक अल्बुकर्क को माना जाता है। वह 1503 में एक छोटी जहाज के नायक के रूप में भारत आया था।
  • अल्बुकर्क ने 1510 में गोवा को बीजापुर के सुल्तान से छीन लिया जिसे ‘ऐस्तादो डि इण्डिया’ या गोवा के नाम से जाना गया।
  • अल्बुकर्क ने ‘कैसड़ोस’ लोगों को भारत में पुर्तगालियों की आबादी बढ़ाने के लिए भारतीय स्त्रियों से विवाह के लिए प्रोत्साहित किया।
  • फ्रांसिस्को डी अल्मीडा ‘नीले पानी’ नीति के लिए प्रसिद्ध था।
  • 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने सुरक्षित व्यापार के लिए ‘काफिला प्रणाली’ की शुरुआत की।
  • पुर्तगाली दूत अन्तानियो कैब्राल अकबर के समय में भारत आया।
  • हालैण्ड की डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना 1602 में की गई।
  • अंग्रेजों ने डचों को 1757 तक भारतीय व्यापार से बेदखल कर दिया।
  • अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक फैक्ट्री 1608 में सूरत में खोली।
  • अंग्रेजों की ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ को सिक्का ढालने का अधिकार पहली बार 1617 में मिला।
  • 1632 में गोलकुण्डा के सुल्तान द्वारा कम्पनी के लिए जारी किये गये फरमान को ‘सुनहरा फरमान’ कहा गया।
  • 1639 में मद्रास में की गयी किलेबंदी को ‘फोर्ट सेन्ट जार्ज’ नाम दिया गया।
  • दक्षिण में अंग्रेजों ने पहली व्यापारिक कोठी की स्थापना 1611 में मसुलीपट्टनम में की।
  • ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय द्वारा 1668 में मुंबई को दस पौण्ड वार्षिक किराये पर कम्पनी को दे दिया गया।
  • 1690 में जॉब चार्नाक ने आधुनिक कलकत्ता की नींव डाली।
  • 1698 में अंग्रेजों ने सुतानाती, कालीकट एवं गोविंदपुर की जमींदारी 1200 रु. में प्राप्त कर ‘फोर्ट विलियम’ की स्थापना की। इसके पहले अध्यक्ष ‘सर चाल्र्स आयर’ थे।
  • फ्रेंको कैरों ने सूरत में 1668 में पहली फ्रेंच फैक्ट्री खोली।
  • रिजविक संधि द्वारा फ्रांसीसियों को 1697 में पुनः पांडिचेरी पर अधिकार प्राप्त हुआ।
  • पांडिचेरी फ्रांसीसियों का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था।
  • डेनिश कम्पनी (डेनमार्क) की स्थापना भारत में 1661 में हुई। 1845 में डेनिश कम्पनी को ब्रिटेन ने खरीद लिया।
  • वास्कोडिगामा पुर्तगाल के शासक के प्रतिनिधि के रूप में भारत आया था और जमोरिन ने उसे भारत से व्यापार करने की अनुमति दे दी तथा इस प्रकार भारत और पुर्तगाल के मध्य व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हो गया।
  • 1505 में अल्मीडा पुर्तगालियों के व्यापारिक हितों को देखने के लिये गवर्नर बनकर भारत आया तथा 1509 में अल्बुकर्क गवर्नर बनकर भारत आया। उसने कोचीन में एक दुर्ग बनवाया तथा 1510 में गोवा पर आक्रमण करके अधिकार जमा लिया जो बाद में पुर्तगालियों का प्रमुख केन्द्र बन गया। 1515 में अल्बुकर्क की मृत्यु हो गयी।
  • अल्बुकर्क के उत्तराधिकारियों ने उसकी नीतियों का अनुसरण करते हुए धीरे-धीरे गोवा, दमन, दीव, बसीन, चोल, बम्बई, बंगाल के हुगली तथा मद्रास तट के सेन्ट थोम पर कब्जा किया।
  • लगभग एक शताब्दी तक पुर्तगाल का पूर्वी व्यापार पर एकाधिकार रहा।
  • 1580 में पुर्तगाल स्पेन के साथ सम्मिलित हो गया और मुगलों तथा मराठों ने पुर्तगालियों का सशक्त विरोध किया।
  • पुर्तगालियों की धार्मिक कट्टरता, धर्म प्रसार, व्यापार में उदासीनता तथा स्थानीय राजनीति में सक्रियता उनकी असफलता के प्रमुख कारण थे। इन सबके अतिरिक्त वे अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों का मुकाबला करने में भी सक्षम नहीं थे।
  • धीरे-धीरे पुर्तगालियों के पैर उखड़ गये तथा वे गोवा, दमन, दीव तक ही सीमित हो गये।
  • पुर्तगालियों के पश्चात् भारत में डच आये जो हाॅलैण्ड के रहने वाले थे।
  • 1595 में चार डच जहाज उत्तमाशा अन्तरीप होकर भारत के लिये रवाना हुए।
  • 1602 में डच ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हुई और डच संसद ने उसे एक अधिकार पत्रा दिया जिसके अनुसार वह युद्ध और सन्धियां कर सकती थी, क्षेत्रा प्राप्त कर सकती थी तथा किला बना सकती थी।
  • डच लोगों की मुख्य दिलचस्पी भारत में अधिक नहीं थी बल्कि इंडोनेशियाई द्वीपों यथा जावा, सुमात्रा और मसाला द्वीपों में थी जहाँ मसाला का उत्पादन होता था। उन्होंने शीघ्र ही पुर्तगालियों को मलय जलडमरूमध्य तथा इंडोनेशियाई द्वीपों से भगा दिया तथा 1623 में अंग्रेजों के वहाँ जमने के प्रयास को विफल कर दिया।
  • डचों ने पश्चिम भारत के भड़ौच, कैम्बे और अहमदाबाद, दक्षिण भारत के कोचीन, तमिलनाडु, नागपत्तम, मछलीपत्तम, बंगाल के चिनसुरा, बिहार के पटना और उत्तर प्रदेश के आगरा में व्यापारिक गोदाम बनाया।
  • डचों ने 1658 में श्रीलंका को पुर्तगालियों से जीत लिया।
  • डच भारत से नील, कच्चा रेशम, सूती कपड़ा, शोरा और अफीम निर्यात करते थे।
  • ब्रिटेन में मर्चेन्ट एडवेन्चर्स नामक सौदागरों के एक समूह के तत्वावधान में 1599 में पूरब के साथ व्यापार करने के लिए एक कम्पनी की स्थापना हुई जिसे रानी एलिजाबेथ ने 31 दिसम्बर, 1600 को एक सनद देकर पूरब के साथ व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया। यह ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
  • ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1601 में पहली समुद्री यात्रा की और उसके जहाज इंडोनेशिया के मसाला द्वीप पहुंचे।
  • अंग्रेज भारत में मुगल राज्य के अन्तर्गत व्यापारिक कोठियां खोलना चाहते थे जिसके लिये 1609 में कप्तान हाकिन्स इंग्लैण्ड के सम्राट जेम्स प्रथम का पत्रा लेकर जहाँगीर के दरबार में पहुँचा परन्तु उसे सफलता नहीं मिली।
  • अंग्रेजों ने सूरत के नजदीक स्वाल्ली में पुर्तगाली नौसैनिक बेड़े को 1612 और 1614 में पराजित कर दिया।
  • 1615 में सर टामस रो मुगल दरबार में आया जिसे जहाँगीर द्वारा भारत में व्यापारिक कोठियां बनाने की अनुमति मिल गयी, फलतः अंग्रेजों ने भारत में कई कोठियां स्थापित की।
  • 1620 के बाद अंग्रेजों ने पुर्तगालियों को नौसैनिक लड़ाई में कई बार पराजित किया।
  • पुर्तगालियों ने मुंबई टापू इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय को एक पुर्तगाली राजकुमारी से शादी करने के उपलक्ष्य में दहेज के रूप में दे दिया।
  • अंग्रेजों और डचों का विवाद जो 1654 में आरम्भ हुआ था वह 1667 में तब समाप्त हुआ जब अंग्रेजों ने इंडोनेशिया के ऊपर अपने सारे दावे छोड़ दिए तथा डच भारत में अपने सारे दावे छोड़ दिए।
  • फ्रांस के लुई गिफ्ट के मंत्री कोलार्ट ने अपने कार्य काल में भारत में फ्रांसीसियों की रुचि बढ़ायी और सरकार की सहायता से 1664 में भारत से व्यापार करने के लिये फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना हुई।
  • फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कलकत्ता के नजदीक चन्द्र नगर और पूर्वी समुद्र तट पर पांडिचेरी में अपनी जड़ें जमायी। उसने पांडिचेरी की किलेबन्दी भी की।
  • फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने हिन्द महासागर में स्थित मारीशस और रीयूनियन टापुओं पर भी अधिकार कर लिया था।
  • फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कम्पनी फ्रांसीसी सरकार पर निर्भर थी तथा उसे सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त होती थी। फ्रांस सरकार 1723 के पश्चात् कम्पनी के निदेशकों की नियुक्ति स्वयं करने लगी।
  • जहाँ सोलहवीं सदी में पुर्तगाल तथा सत्रहवीं सदी में डचों का भारत में अधिक प्रभाव रहा वहीं अठारहवीं सदी में भारत के व्यापार पर नियंत्राण और यहां की राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिये अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों में संघर्ष हुआ।
  • 1742 में फ्रांस और इंग्लैंड के बीच लड़ाई छिड़ जाने के कारण ब्रिटिश तथा फ्रांसीसी कम्पनियों के बीच भी भारत में प्रत्यक्ष टकराव शुरू हुआ।
  • 1745 में अंग्रेजी नौ सेना ने भारत के दक्षिण पूर्व समुद्र तट से आगे समुद्र में फ्रांसीसी जहाजों पर कब्जा कर लिया तथा पांडिचेरी को हथियाने की धमकी दी। पांडिचेरी के फ्रांसीसी गवर्नर जनरल डुप्ले ने जवाबी हमला करके 1746 में मद्रास पर कब्जा कर लिया।
  • मद्रास उस समय कर्नाटक के नवाब के क्षेत्र में था इसलिए कर्नाटक के नवाब ने फ्रांसीसियों पर आक्रमण कर दिया जिसमें फ्रांसीसियों की विजय हुई। यह युद्ध अडयार नदी के किनारे सेंट टोम में लड़ा गया।
  • 1748 में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ाई के समाप्त होने पर शांति समझौते के तहत मद्रास अंगेजों को वापस दे दिया गया।
  • 1749 में डुप्ले, चांद साहब तथा मुजफ्फर जंग की सम्मिलित सेना ने कर्नाटक पर हमला कर दिया जिसमें कर्नाटक का नवाब अनवरउद्दीन मारा गया तथा चांद साहब कर्नाटक का और मुजफ्फर जंग हैदराबाद का नवाब बना। अनवरउद्दीन का पुत्रा मोहम्मद अली भाग कर तिरूचिनापल्ली पहुंचा तथा अंग्रेजों से सहायता माँगा। अंग्रेजों ने राबर्ट क्लाइव के अधीन सेना भेजकर कर्नाटक की राजधानी अर्काट को घेर लिया तथा चाँद साहब को घेर कर मार डाला। मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बन गया।
  • 1754 में फ्रांस सरकार ने डुप्ले को वापस बुला लिया और गोडयू को उसके स्थान पर भेजा।
  • 1755 में अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच पांडिचेरी की संधि हुई जिसके तहत दोनों पक्षों ने युद्ध विराम स्वीकार किया।
  • 1756 में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच सप्तवर्षीय युद्ध प्रारम्भ हो जाने के कारण भारत में भी उनके बीच युद्ध प्रारम्भ हो गया जिसे कर्नाटक का तृतीय युद्ध कहते है । 1758 में काउन्ट लैली फ्रांसीसी सेनापति बनकर भारत आया। उसने सेंट डेविड के किले को लूट लिया।
  • 1760 में वांडीवाश के युद्ध में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को पराजित करके पाण्डिचेरी, माही तथा जान्जी पर अधिकार कर लिया। इस लड़ाई मे अंग्रेज सेनापति आयर कूट तथा फ्रांसीसी प्रमुख काउन्ट लैली था।
  • 1763 में पेरिस की संधि पर हस्ताक्षर होने के पश्चात् फ्रांसीसियों को भारत स्थित उनके सारे कारखाने वापस कर दिए गये परन्तु उनकी न तो किलेबन्दी की जा सकती थी और न ही वहाँ सैनिक डेरा डाल सकते थे।
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FAQs on यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ कब हुआ?
उत्तर. यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ 15वीं सदी में हुआ। राष्ट्र आपूर्ति के विकास के साथ-साथ, यूरोपीय व्यापारियों ने नए व्यापारिक संबंध विकसित किए, जिनका प्राथमिकता गैर-यूरोपीय देशों के साथ थी।
2. यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ किस दशक में हुआ?
उत्तर. यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ 15वीं सदी के दौरान हुआ। इस दौरान यूरोप का व्यापार गैर-यूरोपीय देशों के साथ विस्तार पाया और व्यापारिक संबंधों में मजबूती आई।
3. यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ किसलिए हुआ?
उत्तर. यूरोपीय वाणिज्य का प्रारम्भ दो मुख्य कारणों से हुआ - पहला, यूरोप में नवीनतम व्यापारिक औद्योगिक तकनीकों का विकास हुआ, जिसने उत्पादन को बढ़ावा दिया। दूसरा, यूरोपीय व्यापारियों ने नए व्यापारिक मार्ग खोजे और विदेशी बाजारों में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया।
4. यूरोपीय वाणिज्य के प्रारंभिक दौर में यूरोपीय व्यापारियों की प्रमुख गतिविधियाँ क्या थीं?
उत्तर. यूरोपीय वाणिज्य के प्रारंभिक दौर में यूरोपीय व्यापारियों की प्रमुख गतिविधियाँ शिपिंग, वस्त्र व्यापार, स्पाइस व्यापार, और धातु व्यापार थीं। वे विदेशी मूल्यवान माल खरीदकर इसे यूरोप लाते थे और यूरोपीय उत्पादों को विदेश में बेचते थे।
5. यूरोपीय वाणिज्य के प्रारंभिक दौर में यूरोप के कौन-कौन से देश व्यापारिक महत्वपूर्ण थे?
उत्तर. यूरोपीय वाणिज्य के प्रारंभिक दौर में यूरोप के कई देश व्यापारिक महत्वपूर्ण थे। इनमें पुराने यूरोपीय व्यापारिक राज्यों के साथ ही नए देश भी शामिल थे। उदाहरण के लिए, इंग्लैंड, पुर्तगाल, स्पेन, और नीदरलैंड्स यूरोपीय वाणिज्य के प्रमुख देश थे।
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