UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi  >  Politics and Governance (राजनीति और शासन): September 2022 UPSC Current Affairs

Politics and Governance (राजनीति और शासन): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सामाजिक लोकतंत्र का नॉर्डिक मॉडल

चर्चा में क्यों?

  • स्वीडन में नई दक्षिणपंथी सरकार बनने वाली है, जो सामाजिक लोकतंत्र के नॉर्डिक (स्कैंडिनेवियाई) मॉडल के लिये खतरा है।
  • मॉडरेट पार्टी के नेतृत्व में स्वीडन के दक्षिणपंथी गठबंधन ने सोशल डेमोक्रेट्स पार्टी के नेतृत्व वाले सेंटर लेफ्ट ब्लॉक गठबंधन को हराया, इसके बावजूद सोशल डेमोक्रेट पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी रही।
  • स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, डेनमार्क और आइसलैंड को सामूहिक रूप से नॉर्डिक देशों के रूप में जाना जाता है

लोकतंत्र का नॉर्डिक मॉडल

  • नॉर्डिक मॉडल स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, डेनमार्क और आइसलैंड में पालन किये जाने वाले मानकों को संदर्भित करता है। ये राष्ट्र उच्च जीवन स्तर और निम्न-आय असमानता के लिये जाने जाते हैं।
  • मॉडल मुक्त-बाज़ार पूंजीवाद और समाज कल्याण का एक अनूठा संयोजन है।
  • आपूर्ति और मांग पर आधारित आर्थिक प्रणाली मुक्त बाज़ार के रूप में जानी जाती है।
  • सामाजिक लाभों को करदाताओं द्वारा वित्तपोषित किया जाता है और सभी नागरिकों के लाभ के लिये सरकार द्वारा प्रशासित किया जाता है।
  • यह एक मिश्रित आर्थिक प्रणाली है जो पूंजीवाद के लाभों को संरक्षित करते हुए पुनर्वितरण कराधान और एक मज़बूत सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से अमीर एवं गरीब के बीच की खाई को कम करती है।
  • लैंगिक समानता संस्कृति की एक विशिष्ट विशेषता है जिसके परिणामस्वरूप न केवल महिलाओं द्वारा कार्यस्थल में उच्च स्तर की भागीदारी बल्कि पुरुषों द्वारा उच्च स्तर की पैतृक भागीदारी भी सुनिश्चित होती है।

Politics and Governance (राजनीति और शासन): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindiनॉर्डिक मॉडल के कार्य

  • साझा इतिहास और सामाजिक विकास के संयोजन को इसकी अधिकांश सफलता का श्रेय दिया जाता है।
  • बड़े कॉरपोरेट-स्वामित्व वाले खेतों के गठन के आसपास विकसित क्षेत्रों के विपरीत, दुनिया के इस हिस्से का इतिहास काफी हद तक परिवार संचालित कृषि में से एक है।
  • परिणामतः समान चुनौतियों का सामना कर रहे नागरिकों द्वारा निर्देशित छोटे उद्यमशील उद्यमों का देश है। समाज के एक सदस्य को लाभ पहुँचाने वाले समाधानों से सभी सदस्यों को लाभ होने की संभावना है।
  • इस सामूहिक मानसिकता का परिणाम एक ऐसे नागरिक के रूप में होता है जो अपनी सरकार पर भरोसा करता है क्योंकि सरकार का नेतृत्व नागरिकों द्वारा किया जाता है जो ऐसे कार्यक्रम बनाने की कोशिश करते हैं जो सभी को लाभान्वित करें।
  • नतीजा यह है कि सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित सेवाएँ, जैसे कि स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा, इतनी उच्च गुणवत्ता की हैं कि निजी उद्यमों के पास इन सेवाओं या उन्हें बेहतर बनाने के लिये पेशकश करने का कोई कारण नहीं है। पूंजीवादी उद्यमों के विकसित होने के साथ यह मानसिकता बरकरार रही।

फायदे और नुकसान

फायदे

  • नॉर्डिक मॉडल समानता और सामाजिक गतिशीलता पैदा करता है।
  • दुनिया में कई जगह बेहतरीन शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सहित अच्छी सार्वजनिक सेवाओं तक सभी की मुफ्त पहुँंच है और यह सुनिश्चित करने के लिये कि यह जारी रहे, लोग अपने करों का प्रसन्नतापूर्वक भुगतान करते हैं।
  • इन सामूहिक लाभों को उद्यमिता के साथ मिश्रित कर दिया जाता है, जिससे पूंजीवाद और समाजवाद का एक कुशल मिश्रण बनता है।

नुकसान

  • उच्च करों, उच्च स्तर के सरकारी हस्तक्षेप और अपेक्षाकृत कम सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तथा उत्पादकता के कारण मॉडल की आलोचना की जाती है, जिससे आर्थिक विकास सीमित हो जाता है।
  • नॉर्डिक मॉडल संपत्ति का पुनर्वितरण करता है, व्यक्तिगत खर्च और उपभोग के लिये उपलब्ध धन की मात्रा को सीमित करता है तथा सरकार द्वारा सब्सिडी वाले कार्यक्रमों पर निर्भरता को प्रोत्साहित करता है।

इस मॉडल की चुनौतियाँ

वृद्धों की बढती आबादी

  • वृद्ध आबादी के संदर्भ में आदर्श परिदृश्य युवा करदाताओं की बड़ी जनसंख्या और सेवा प्राप्त करने वाले वृद्ध निवासियों की छोटी आबादी है। लेकिन जब जनसंख्या संतुलन वृद्ध जनसंख्या की ओर स्थांतरित होता है तो लाभ और सुविधाओं में कटौती की संभावना बढ़ जाती है।

अप्रवासन

  • आप्रवास के संदर्भ में इन देशों में उदार सार्वजनिक लाभों का आनंद लेने के लिये नए लोगों की एक उल्लेखनीय आमद आकर्षित होती है। ये नए आगमन अक्सर उन देशों से होते हैं जिनके पास अच्छे निर्णय लेने का एक लंबा, साझा इतिहास नहीं है।
  • नए आगमन, प्रणाली के लिये एक गंभीर भार पेश कर सकते हैं और अंततः इसके अंत का परिणाम हो सकते हैं।

आगे की राह

  • ऐसी आशंकाएँ हैं कि बढ़ती आबादी, वैश्वीकरण और बढ़ते आप्रवासन नॉर्डिक मॉडल के कुशल कल्याणकारी राज्य को धीरे-धीरे अलग कर देंगे।
  • कराधान एक सीमा तक बढ़ाया जा सकता है और हमेशा जोखिम भरा होता है कि अधिक व्यक्तिवादी संस्कृति उभरेगी।
  • नॉर्डिक मॉडल में कई आलोचकों की अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन करता है। यह मानने के कारण हैं कि इसके पीछे के मूल मूल्य इन देशों में इतने अंतर्निहित हैं कि वे हमेशा किसी-न-किसी रूप में मौजूद रहेंगे।

मुस्लिम पर्सनल लॉ केस


चर्चा में क्यों?

  • मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा अनुमत बहु विवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय में सूचीबद्ध किया गया है।
  • पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC), राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission of Women-NCW) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस जारी की है।

याचिकाकर्त्ताओं के तर्क

  • याचिकाकर्त्ताओं ने बहुविवाह और निकाह-हलाला पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा है कि यह मुस्लिम महिलाओं को असुरक्षित और कमज़ोर बनाता है एवं उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • उन्होंने मांग की कि मुसलिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम की धारा 2 को असंवैधानिक घोषित किया जाए और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध) और 21 (जीवन का अधिकार) के उल्लंघनकर्त्ता के रूप में घोषित किया जाए जो बहुविवाह और निकाह-हलाला की प्रथा को मान्यता प्रदान करता है।
  • संविधान व्यक्तिगत कानूनों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है, इसलिये सर्वोच्च न्यायालय इन प्रथाओं की संवैधानिक वैधता के मुद्दे की जाँच नहीं कर सकता है।
  • याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि यहाँ तक कि शीर्ष न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी अन्य अवसरों पर पर्सनल लॉ द्वारा स्वीकृत प्रथाओं के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है,  याचिकाकर्त्ताओं द्वारा  तीन तालक चुनौती मामले को सर्वोच्च न्यायालय पहले ही खारिज़ कर चुका है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ

  • शरिया या मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, पुरुषों को बहुविवाह करने की अनुमति दी गई है, जिसका अर्थ है वे एक ही समय में एक से अधिक पत्नियों के साथ रह सकते हैं, विवाह की अधिकतम संख्या 4 निर्धारित की गई है।
  • 'निकाह हलाला' एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला को अपने तलाकशुदा पति से दोबारा शादी करने से पूर्व दूसरे व्यक्ति से शादी करनी होती है और फिर उससे तलाक लेना पड़ता है।

भारत में मुस्लिम कानून

  • मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम (Shariat Application Act) वर्ष 1937 में भारतीय मुसलमानों के लिये इस्लामी कानून सहिंता तैयार करने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
  • ब्रिटिश जो उस समय भारत पर शासन कर रहे थे, यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे थे कि भारतीयों पर उनके अपने सांस्कृतिक मानदंडों के अनुसार शासन किया जाए।
  • जब हिंदुओं और मुसलमानों के लिये बनाए गए कानूनों के बीच अंतर करने की बात आई, तो उन्होंने यह बयान दिया कि हिंदुओं के मामले में "उपयोग का स्पष्ट प्रमाण कानून की लिखित सहिंता से अधिक होगा"। दूसरी ओर मुसलमानों के लिये कुरान में लिखित सहिंता सबसे महत्त्वपूर्ण होगी।
  • वर्ष 1937 के बाद से शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम मुस्लिम सामाजिक जीवन के पहलुओं, जैसे शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक संबंधों को अनिवार्य करता है। अधिनियम के अनुसार, व्यक्तिगत विवाद के मामलों में राज्य हस्तक्षेप नहीं करेगा।

अन्य धर्मों के पर्सनल लॉ

  • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच संपत्ति विरासत के दिशा-निर्देश देता है।
  • पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 पारसियों द्वारा उनकी धार्मिक परंपराओं के अनुसार पालन किये जाने वाले नियमों को निर्धारित करता है।
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानूनों को संहिताबद्ध किया था

भारत में शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम अपरिवर्तनीय:

  • शरीयत अधिनियम की प्रयोज्यता वर्षों से विवादास्पद रही है। ऐसे उदाहरण पहले भी देखे गए हैं जब व्यापक मौलिक अधिकारों के भाग के रूप में महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण का मुद्दा धार्मिक अधिकारों के साथ विवाद में आ गया।
  • इनमें सबसे चर्चित शाह बानो मामला है।
    • वर्ष 1985 में 62 वर्षीय शाह बानो ने अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में उसके गुजारा भत्ता के अधिकार को बरकरार रखा लेकिन इस फैसले का इस्लामिक समुदाय ने कड़ा विरोध किया था, जो इसे कुरान में लिखित नियमों के खिलाफ मानते थे। इस मामले ने इस बात को लेकर विवाद पैदा कर दिया कि न्यायालय किस हद तक व्यक्तिगत/धार्मिक कानूनों में हस्तक्षेप कर सकते है।
    • भारत में शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम पर्सनल लाॅ संबंधों में इस्लामी कानूनों के अनुप्रयोग की रक्षा करता है, लेकिन यह अधिनियम कानूनों को परिभाषित नहीं करता है।
    • पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत 'कानून' की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। पर्सनल लॉ की वैधता को संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।

क्षेत्रीय भाषा का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अध्यक्ष ने मातृभाषा सीखने की प्रारंभिक शुरुआत की भूमिका पर ज़ोर दिया, जो बच्चे की रचनात्मक सोच के लिये महत्त्वपूर्ण है।

क्षेत्रीय भाषाएँ

  • क्षेत्रीय भाषा एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल उस भाषा के लिये किया जाता है जो बड़ी संख्या में लोगों द्वारा बोली जाती है लेकिन देश के बाकी हिस्सों में संचार की वास्तविक भाषा नहीं है।
  • एक भाषा को क्षेत्रीय तब माना जाता है जब वह ज़्यादातर उन लोगों द्वारा बोली जाती है जो बड़े पैमाने पर किसी राज्य या देश के एक विशेष क्षेत्र में रहते हैं।
  • भले ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343(1) में कहा गया है कि संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी।

क्षेत्रीय भाषा की आवश्यकता

  • दुविधा दूर करना: किसी भी स्थानीय भाषा के बज़ाय अंग्रेजी भाषा को वरीयता देने की दुविधा को दूर करना और बच्चे को अपनी मातृभाषा में स्वाभाविक रूप से सोचने देना।
  • औपनिवेशिक मानसिकता: हमारे दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है ताकि जब कोई किसी कक्षा में क्षेत्रीय भाषा में प्रश्न पूछे तो उन्हें हीन भावना महसूस न हो।
  • लाभ
    • विषय-विशिष्ट सुधार: भारत और अन्य एशियाई देशों में कई अध्ययन अंग्रेजी माध्यम के बज़ाय क्षेत्रीय माध्यम का उपयोग करने वाले छात्रों के लिये सीखने के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव का सुझाव देते हैं।
    • विशेष रूप से विज्ञान और गणित में प्रदर्शन अंग्रेजी की तुलना में अपनी मूल भाषा में पढ़ने वाले छात्रों के बीच बेहतर पाया गया है।
  • भागीदारी की उच्च दर: मातृभाषा में अध्ययन के परिणामस्वरूप उच्च उपस्थिति, प्रेरणा और छात्रों के बीच बोलने के लिये आत्मविश्वास में वृद्धि होती है तथा मातृभाषा के साथ सहज होने के कारण माता-पिता की भागीदारी और पढ़ाई हेतु समर्थन में सुधार होता है।
  • कई शिक्षाविदों द्वारा प्रमुख इंजीनियरिंग शिक्षा संस्थानों में ड्रॉपआउट दरों के साथ-साथ कुछ छात्रों के खराब प्रदर्शन के लिये अंग्रेजी की खराब पकड़ को प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार पाया गया है।
  • कम-लाभकारी के लिये अतिरिक्त लाभ: यह विशेष रूप से उन छात्रों के लिये प्रासंगिक है जो पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं (अपनी पूरी पीढ़ी में स्कूल जाने और शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति) या ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले लोगों के लिये जो एक विदेशी भाषा के अपरिचित अवधारणाओं से भयभीत महसूस कर सकते हैं।

स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये सरकार की पहल

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिये बार काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे विभिन्न नियामक निकायों के साथ बातचीत कर रहा है इसलिये भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई है जो यह देखेगी कि संस्थान स्थानीय भाषाओं में कानूनी शिक्षा कैसे प्रदान कर सकते हैं?
  • भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (All India Council for Technical Education-AICTE) ने भी 10 कॉलेजों में क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम शुरू किए थे।
  • इसके अलावा, यह विशेषज्ञों के साथ-साथ 10-12 विषयों की पहचान करने के लिये शिक्षा मंत्रालय द्वारा स्थापित भारतीय भाषा विकास पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति के साथ भी कार्य कर रहा है ताकि पुस्तकों का या तो अनुवाद किया जा सके या उन्हें नए सिरे से लिखा जा सके।
  • नियामक संस्था अगले एक वर्ष में विभिन्न विषयों में क्षेत्रीय भाषाओं में 1,500 पुस्तकें तैयार करने का लक्ष्य लेकर चल रही थी।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग (Commission for Scientific and Technical Terminology-CSTT) क्षेत्रीय भाषाओं में विश्वविद्यालय स्तरीय पुस्तकों के प्रकाशन को बढ़ावा देने हेतु प्रकाशन अनुदान प्रदान कर रहा है।
  • राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (The National Translation Mission-NTM) को केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages-CIIL) के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है।

शिक्षा में क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने के उपाय

  • संस्थान एक क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में अपनाएँगे अथवा वह अंग्रेजी माध्यम में उन छात्रों को इसे सीखने में सहायता प्रदान करेगा जो किसी क्षेत्रीय भाषा में कुशल नहीं हैं।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: भविष्य में कक्षाओं में देखे जाने वाले वास्तविक समय के अनुवादों को सक्षम करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित तकनीक उपलब्ध कराना।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति: राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2022 मातृभाषा को बढ़ावा देने पर ज़ोर देती है जो कम से कम पाँचवीं या आठवीं कक्षा तक शिक्षा का माध्यम होना चाहिये और उसके बाद इसे एक भाषा के रूप में पेश किया जाना चाहिये ।यह विश्वविद्यालयों से क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री विकसित करने का भी आग्रह करता है।

क्षेत्रीय भाषा से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 345: अनुच्छेद 346 और 347 के प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य का विधानमंडल कानून द्वारा राज्य में प्रयोग में आने वाली किसी एक या अधिक भाषाओं को या हिंदी को उस राज्य के सभी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अथवा भाषाओं के रूप में अपना सकता है।
  • अनुच्छेद 346: संघ में आधिकारिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच एवं एक राज्य तथा संघ के बीच संचार के लिये आधिकारिक भाषा होगी।
    • उदाहरण: यदि दो या दो से अधिक राज्य सहमत हैं कि ऐसे राज्यों के बीच संचार के लिये हिंदी भाषा, आधिकारिक भाषा होनी चाहिये तो उस भाषा का उपयोग ऐसे संचार के लिये किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 347: यह राष्ट्रपति को किसी दिये गए राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में किसी भाषा को मान्यता देने की शक्ति प्रदान करता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि उस राज्य का एक बड़ा हिस्सा भाषा को मान्यता देना चाहता है। ऐसी मान्यता राज्य के किसी हिस्से या पूरे राज्य के लिये हो सकती है।
  • अनुच्छेद 350A: प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा।
  • अनुच्छेद 350B: यह भाषाई अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 351: यह केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास हेतु निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।

सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग

चर्चा में क्यों

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने महत्त्वपूर्ण संविधान पीठ के मामलों में अपनी कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम करने का निर्णय लिया, जिसकी सुनवाई 27 सितंबर, 2022 से होगी।
    • न्यायालयी कार्यवाही के प्रसारण के कारण सकारात्मक प्रणालीगत सुधार संभव हुए हैं।

पृष्ठभूमि

  • स्वप्निल त्रिपाठी बनाम भारतीय सर्वोच्च न्यायालय मामले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिये इसे खोलने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
  • इसने माना कि लाइव स्ट्रीमिंग की कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत न्याय तक पहुँचने के अधिकार का हिस्सा है।
  • गुजरात उच्च न्यायालय, कर्नाटक उच्च न्यायालय के बाद न्यायालयी कार्यवाही को लाइवस्ट्रीम करने वाला उच्च न्यायालय था
  • वर्तमान में, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पटना उच्च न्यायालय अपनी कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम करते हैं।
    • इलाहबाद उच्च न्यायालय भी इस विषय पर विचार कर रही है।

भारत के महान्यायवादी का सुझाव

  • लाइव-स्ट्रीमिंग को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की पीठ और केवल संविधान पीठ के मामलों में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पेश किया जाना चाहिये।
  • इस परियोजना की सफलता यह निर्धारित करेगी कि सभी न्यायालयों यानी सर्वोच्च न्यायालय एवं अखिल भारतीय न्यायालय में लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की जानी चाहिये या नहीं।
  • महान्यायवादी (AG) ने अपनी सिफारिश के समर्थन में न्यायालयों की भीड़ को कम करने और वादियों के लिये न्यायालयों तक बेहतर भौतिक पहुँच का हवाला दिया, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय तक आने के लिये अन्यथा लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ती है।
  • महान्यायवादी द्वारा सुझाए गए दिशा-निर्देशों के एक सेट को सर्वोच्च द्वारा अनुमोदित किया गया था। हालाँकि, महान्यायवादी ने सुझाव दिया कि प्रसारण की अनुमति का अधिकार न्यायालय के पास होना चाहिये तथा निम्नलिखित मामलों में इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिये
  • वैवाहिक मामले,
    • किशोरों के हितों या युवा अपराधियों के निजी जीवन की रक्षा एवं सुरक्षा से जुड़े मामले,
    • राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामले,
    • यह सुनिश्चित करना कि पीड़ित, गवाह या प्रतिवादी ईमानदारी से और बिना किसी डर के गवाही दे सकें।
    • कमज़ोर या भयभीत गवाहों को विशेष सुरक्षा दी जानी चाहिये।
    • यह गवाह के चेहरे के विरूपण का प्रावधान कर सकता है यदि वह गुमनाम/अज्ञात रूप से प्रसारण के लिये सहमति देता है।
    • यौन उत्पीड़न और बलात्कार से संबंधित सभी मामलों सहित गोपनीय या संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा करना।
    • ऐसे मामले जहाँ प्रचार/पब्लिसिटी न्याय के प्रशासन के विरुद्ध हो, और
    • ऐसे मामले जो लोगों की भावनाओं को भड़का सकते हैं या उत्तेजित कर सकते हैं और समुदायों के बीच शत्रुता उत्पन्न करने का कार्य कर सकते हैं।

अन्य देशों में परिदृश्य

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 1955 से ऑडियो रिकॉर्डिंग और मौखिक तर्कों के प्रतिलेखों की अनुमति दी गई है
  • ऑस्ट्रेलिया: लाइव या विलंबित प्रसारण की अनुमति है लेकिन सभी न्यायालयों में प्रथाएँ और मानदंड अलग-अलग हैं।
  • ब्राज़ील: वर्ष 2002 से न्यायालय में न्यायाधीशों द्वारा की गई चर्चा और मतदान प्रक्रिया सहित न्यायालयी कार्यवाही के लाइव वीडियो एवं ऑडियो प्रसारण की अनुमति है।
  • कनाडा: कार्यवाही का सीधा प्रसारण केबल संसदीय मामलों के चैनल पर प्रत्येक मामले के स्पष्टीकरण और न्यायालय की समग्र प्रक्रियाओं और शक्तियों के साथ किया जाता है।
  • दक्षिण अफ्रीका: वर्ष 2017 से दक्षिण अफ्रीका के सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के विस्तार के रूप में मीडिया को आपराधिक मामलों में न्यायालयी कार्यवाही को प्रसारित करने की अनुमति दी है।
  • यूनाइटेड किंगडम: वर्ष 2005 के बाद न्यायालय की वेबसाइट पर एक मिनट की देरी से कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाता है, लेकिन संवेदनशील अपीलों में कवरेज वापस लिया जा सकता है।

संबद्ध चिंताएँ और आगे की राह

चिंताएँ

  • भारतीय न्यायालयों की कार्यवाही के वीडियो क्लिप जो पहले से ही YouTube और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर संवेदनात्मक शीर्षक और कम संदर्भ के साथ उपलब्ध हैं, जनता के बीच गलत सूचना का प्रसार कर रहे हैं, जैसा कि हाल के दिनों में देखा गया है।
  • साथ ही, प्रसारकों के साथ वाणिज्यिक समझौते भी संबंधित हैं।
  • लाइव स्ट्रीमिंग वीडियो का अनधिकृत पुनरुत्पादन चिंता का एक और कारण है क्योंकि सरकार द्वारा बाद में इसका विनियमन बहुत मुश्किल होगा।

आगे की राह

  • न्यायालयी कार्यवाही का प्रसारण पारदर्शिता और न्याय प्रणाली तक अधिक पहुँच की दिशा में एक कदम है। संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों को सार्वजनिक दर्शकों के लिये उपलब्ध कराना नागरिकों के सूचना और प्रौद्योगिकी का अधिकार है।
  • यदि शीर्ष न्यायालय की कार्यवाही का सीधा प्रसारण संभव नहीं है, तो वैकल्पिक रूप से कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • प्रसारकों के साथ करार गैर-व्यावसायिक आधार पर होना चाहिये। व्यवस्था से किसी को अनुचित लाभ नहीं होना चाहिये।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देशों का एक सेट तैयार किया जाना चाहिये कि वीडियो शीर्षक और विवरण भ्रामक नहीं हैं तथा केवल सही जानकारी देते हैं।
  • अनधिकृत रूप से वीडियो की लाइव-स्ट्रीमिंग के लिये कड़ी सजा/जुर्माना लगाया जाना चाहिये।
The document Politics and Governance (राजनीति और शासन): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
184 videos|557 docs|199 tests

Top Courses for UPSC

184 videos|557 docs|199 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

pdf

,

shortcuts and tricks

,

practice quizzes

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Viva Questions

,

Free

,

Exam

,

mock tests for examination

,

MCQs

,

past year papers

,

Important questions

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): September 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Objective type Questions

,

Previous Year Questions with Solutions

,

study material

,

Semester Notes

,

ppt

,

Extra Questions

,

video lectures

,

Sample Paper

,

Summary

;