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राजनीतिक सभाओं की स्थापना
 

  • प्रथम राजनीतिक संगठन ‘बंगभाष प्रकासिक सभा’ की उत्पत्ति 1836 ई. में हुई। 
  • जमींदारों के हितों की रक्षा के लिए जुलाई 1838 ई. में ‘जमींदार एसोसिएशन’ (लैंड होल्डर्स सोसाइटी) की स्थापना हुई। 
  • कलकत्ता के इस ‘लैंड होल्डर्स सोसाइटी’ और लंदन में जुलाई 1839 में श्रीमती एडम द्वारा स्थापित ‘ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी’ के बीसहयोग चलता रहा। 
  • अप्रैल 1843 में ‘बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना हुई। 
  • ‘लैंड होल्डर्स सोसाइटी’ और ‘बंगाल ब्रिटिश इंडिया सोसाइटी’ के विलय से 29 अक्टूबर, 1851 को एक नए संगठन का जन्म हुआ जिसका नाम पड़ा ‘ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन’। इसने अन्य बातों के अलावा देश के प्रशासन में भारतीयों को भागीदार बनाने की मांग उठाई।
  • भारतीय जनता के कल्याणार्थ भारत तथा ब्रिटेन के ब्रिटिश अधिकारियों के पास अभिवेदनों को भेजने के लिए 1852 ई. में ‘बम्बई एसोसिएशन’ की स्थापना हुई। 
  • ऐसे ही उद्देश्य के लिए 1852 ई. में ‘मद्रास नेटिव एसोसिएशन’ की स्थापना हुई। उसने इस बात की भी मांग उठाई कि भारतीयों को प्रशासन में उच्पद मिलने चाहिए।
  • इन सभी एसोसिएशनों-संघों के सदस्य अधिकतर भारतीय समाज के उच्वर्गों के लोग थे। 
  • इनकी सीमित गतिविधियाँ थीं - प्रशासन में सुधार करने, सरकार के संचालन में भारतीयों को भागीदार बनाने, करों में कमी करने और भारतीयों के प्रति भेदभाव की नीति खत्म करने के लिए सरकार और ब्रिटिश संसद के पास याचिकाएं भेजना। 
  • अपने-अपने प्रांतों में ही काम करती थी, मगर इनके घोषित उद्देश्य भारतीय जनता के उद्देश्य थे, न कि देश के किसी एक प्रदेश या समुदाय के उद्देश्य।  यद्यपि ये सभाएँ मुख्यतःऔर 1885 ई. में स्थापित ‘बाम्बे प्रेसिडüसी एसोसिएशन’। 
  • बाद में ऐसे कई संगठन बने जो उपर्युक्त संघों की अपेक्षा जनता का ज्यादा प्रतिनिधित्व करते थे। ऐसे कुछ संगठन थे - 1870 ई. में स्थापित ‘पुणे सार्वजनिक सभा’, 1876 ई. में स्थापित ‘इंडियन एसोसिएशन’, 1884 ई. में स्थापित ‘मद्रास महाजन सभा’  
प्रमुख षड्यंत्रों के चर्चित मामले
     मामले    वर्ष    विषय

     पेशावर षड्यंत्र मामला    1922.24    सोवियत संघ से भारत आने वाले साम्यवादी क्रान्तिकारियों का दल जिसे सम्राट के विरुद्ध षड्यंत्र रचने के अपराध में बन्दी बनाया गया। पेशावर में मुकदमें चला कर इन क्रान्तिकारियों को लम्बी सजायें दी गईं।
     कानपुर षड्यंत्र मामला    1924  कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृत डांगे, मुजफ्फर अहमद, मालिनी गुप्ता एवं शौकत उस्मानी आदि को कानपुर में गिरफ्तार कर कानपुर षड्यंत्र के तहत चले मुकदमे में 4 वर्ष का कारावास दिया गया।
     मेरठ षड्यंत्र मुकदमा    1929.33    1929 में सरकार ने 32 ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जिनमें क्रांतिकारी, राजनीति व ट्रेड युनियन से जुडे़ लोग एवं तीन अंग्रेज कम्युनिस्ट (फिलिप स्प्रेट, बेन ब्रैडले एवं लेस्ट हचिन्सन) आदि शामिल थे पर मेरठ षडयंत्र के तहत साढ़े तीन वर्ष तक मुकदमा चला। राष्ट्रीय स्तर पर यह मुकदमा खूब चर्चित रहा। अभियुक्तों की ओर से जवाहरलाल नेहरू, कैलाशनाथ काटजू, डा. एफ. एच. अंसारी आदि ने पैरवी की।
  •  ये संगठन सरकार की आलोचना करने में पहले के संगठनों की अपेक्षा अधिक प्रखर थे और भारतीयों के प्रति सरकार द्वारा अपनाई गई भेदभाव और दमन की नीतियों के खिलाफ सभाएं आयोजित करने में नहीं हिचकिचाते थे।
  • कुछ घटनाओं के कारण 1870 और 1880 के दशकों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष और अधिक बढ़ गया। सरकार ने भारतीय मांगों को पूरा करने का प्रयास करने की बजाए  दमनकारी कदम उठाए। 
  • 1878 ई. में ‘शस्त्र कानून’ बना जिसने भारतीयों के शस्त्र रखने पर प्रतिबंध लगा दिया। उसी साल भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए। 
  • 1883 ई. में सरकार ने भारत में रहने वाले अंग्रेजों और अन्य यूरोपवासियों के जातीय अहंकार को चोट पहुँचाने वाले एक ऐसे विधेयक को वापस ले लिया जो उसने स्वयं पेश किया था। 
  • ‘इलबर्ट बिल’ नामक इस विधेयक के अंतर्गत भारत में रहने वाले किसी अंग्रेज या यूरोपवासी पर भारतीय न्यायाधीश की अदालत में मुकद्दमा चलाया जा सकता था। 
  • भारत में अंग्रेज और भारतीय न्यायाधीशों के बीसमानता स्थापित करने के उद्देश्य से ही यह विधेयक पेश किया गया था। मगर भारत में रहने वाले अंग्रेजों और यूरोपवासियों के विरोध के कारण इस विधेयक को सरकार ने वापस ले लिया।
  • एक लम्बे अरसे से यह आवश्यकता महसूस की जा रही थी कि भारतीय अभिमत का प्रतिनिधित्व करने वाला एक अखिल भारतीय संगठन होना चाहिए। 
  • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कलकत्ता में ‘इंडियन एसोसि- एशन’ की स्थापना करके इस दिशा में कुछ कदम भी उठाए थे। 
  • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी इंडियन सिविल सर्विस में चुने गए थे, मगर निहायत तुच्छ कारणों से उन्हें बरखास्त कर दिया गया था। 
  • वे पहले भारतीयों के नेता थे जिन्होंने दिसम्बर 1883 में कलकत्ता में आयोजित अखिल भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के सभी भागों के लोगों को एकत्र किया। 
  • उन्होंने दिसम्बर 1885 ई. में कलकत्ता में एक और राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया।
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FAQs on राजनीतिक सभाओं की स्थापना - स्वतंत्रता संग्राम, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. राजनीतिक सभाओं की स्थापना क्या है?
उत्तर: राजनीतिक सभाओं की स्थापना एक व्यक्ति या समूह द्वारा संगठित की जाती है जिसका मुख्य उद्देश्य लोकतंत्र के माध्यम से निर्णय लेना और सार्वजनिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करना होता है। इन सभाओं के द्वारा नेताओं को जनमत प्राप्त होता है और उन्हें सरकार में काम करने का अधिकार प्राप्त होता है।
2. स्वतंत्रता संग्राम क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर: स्वतंत्रता संग्राम एक लोकतांत्रिक देश में नागरिकों द्वारा स्वतंत्रता के लिए लड़ा जाने वाला संग्राम है। यह आमतौर पर शासनतंत्र के खिलाफ अधिकारों की रक्षा, न्याय, स्वतंत्रता और भारतीय संविधान की मूलभूत मान्यताओं के लिए लड़ा जाता है। स्वतंत्रता संग्राम का महत्व उसके माध्यम से लोगों को न्याय, स्वतंत्रता और समानता के लिए लड़ने का अवसर मिलता है और देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
3. यूपीएससी और आईएएस क्या हैं और इनका क्या महत्व है?
उत्तर: यूपीएससी (UPSC) और आईएएस (IAS) भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की परीक्षा हैं। यूपीएससी भारतीय संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाती है और इसके माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय वाणिज्यिक सेवा आदि की भर्ती की जाती है। आईएएस एक पद होता है जिसे यूपीएससी की परीक्षा में उत्तीर्ण करने के बाद प्राप्त किया जा सकता है। इन परीक्षाओं का महत्व इसके माध्यम से देश को कुशल प्रशासनिक अधिकारियों की आवश्यकता की पूर्ति होती है और इन पदों के माध्यम से न्यायपालिका, प्रशासनिक सेवा, विदेश सेवा आदि में महत्वपूर्ण योगदान दिया जाता है।
4. राजनीतिक सभाओं की स्थापना में किसे क्रेडिट दिया जा सकता है?
उत्तर: राजनीतिक सभाओं की स्थापना में अनेक लोगों को क्रेडिट दिया जा सकता है, जैसे कि स्वतंत्रता सेनानियों, प्रजातंत्र के प्रणेताओं, समाजसेवी और राष्ट्रनिर्माण के प्रमुख नेता। भारत में गांधीजी, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री आदि को सभाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया जाता है।
5. राजनीतिक सभाओं की स्थापना क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: राजनीतिक सभाओं की स्थापना महत्वपूर्ण है क्योंकि इनसे लोगों को सार्वजनिक मुद्दों को सुलझाने और निर्णय लेने का अवसर मिलता है। इन सभाओं के द्वारा लोगों की आवाज को सरकार तक पहुंचाया जा सकता है और उनकी आवाज को समाज में प्र
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