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राज्य के नीति निर्देशक तत्व

राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक कर्त्तव्य - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | Revision Notes for UPSC Hindi

राज्य के नीति निदेशक तत्वों से सामाजिक और आर्थिक न्याय

भारतीय संविधान में नीति-निर्देशक तत्वों का उल्लेख ‘लोककल्याणकारी राज्य’ की स्थापना का आश्वासन है। भारतीय संविधान के भाग चार में अनुच्छेद 36 से 51 तक नीति निर्देशक तत्वों का उल्लेख मिलता है। निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था का उपबन्ध अनुच्छेद 39 (अ) में दिया गया है। अनुच्छेद 44 नागरिको  के लिए समान व्यवहार संहिता का निर्देश देता है। अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों के गठन से संबंधित है। संविधान के अनुच्छेद 51 में अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार के निर्देश उल्लिखित है। नीति-निर्देशक तत्व न्यायालय द्वारा अपरिवर्तनीय है। सर आइवर जैनिंग्स ने नीति-निर्देशक तत्वों को ‘प्रगति विरोधी’ कहा है।

नीति निर्देशक तत्व और मौलिक अधिकार में अंतर

  • मौलिक अधिकार नकारात्मक निषेध आज्ञाएँ है|, जो राज्य की शक्ति पर अंकुश लगाते है|। उदाहरण-अधिकारों के अन्तर्गत यह कहा गया है कि कानून की उचित प्रक्रिया के बिना किसी को भी उनके जीवन और सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। इसके ठीक विपरीत निर्देशक सिद्धान्त सकारात्मक आदेश है| जो यह बतलाते है| कि राज्य को क्या करना है।
  • मौलिक अधिकारों को न्यायपालिका द्वारा लागू कराया जा सकता है, निर्देशक सिद्धान्तों को नहीं। संवैधानिक उपचारों का अधिकार नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है, जिसका अर्थ यह हुआ कि संविधान अधिकारों को लागू किए जाने की उचित व्यवस्था करता है।
  • मौलिक अधिकार ”राजनीतिक लोकतन्त्रा“ की स्थापना करते है|। वे नागरिकों को विचार, भाषण और सभा-सम्मेलन की स्वतन्त्राता प्रदान करते है। नीति-निर्देशक सिद्धान्तों द्वारा आर्थिक और सामाजिक लोकतन्त्रा की स्थापना की गई है। वे राजनीतिक लोकतन्त्रा का पोषण करने वाले तत्वों पर बल देते है।
  • निर्देशक सिद्धान्तों का क्षेत्र मौलिक अधिकारों की अपेक्षा ज्यादा व्यापक है। कई ऐसे निर्देशक सिद्धान्त है| जो अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा से सम्बन्ध रखते है|। इतना ही नहीं उनका सम्बन्ध राजनीतिक और प्रशासनिक विषयों से भी है। इसके ठीक विपरीत मौलिक अधिकारों का क्षेत्र सीमित है।

नीति निर्देशक तत्वों की प्रकृति

  • संविधान के भाग चार में अंकित सिद्धांतों का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसके तहत राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व प्रशासनिक के साथ ही साथ अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का भी उल्लेख किया गया है।
  • निर्देशक सिद्धान्तों को अदालतों द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता। निर्देशक सिद्धांतों का उद्देश्य न्याय की स्थापना है, पर इनके पीछे कोई ऐसी कानूनी शक्ति नहीं है जिसके द्वारा राज्य को इनका पालन करने के लिए बाध्य किया जा सके।
  • निर्देशक सिद्धान्त देश के शासन में आधारभूत स्थान रखते है यद्यपि ये सिद्धान्त न्यायालयों द्वारा लागू नहीं होते तथापि वे देश के शासन में मौलिक स्थान रखते है
  • कानून बनाते समय इसका प्रयोग करना राज्य का कर्तव्य होगा। यहां ‘राज्य’ से अभिप्राय सभी राजनीतिक सत्ताओं से है। संसद, राज्यों के विधानमण्डल, नगर निगम, जिला बोर्ड, पंचायतों और शासन के सभी अधिकारियों का यह कर्त्तव्य है कि इन आदर्शों को ध्यान में रखे और कानून या नियम बनाते समय इनको अमल में लाएं।
  • 25वें संशोधन (1971) द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद (31ब) जोड़ा गया जिसके अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि अनुच्छेद 39 (इ) व 39 (ब) को अमल में लाने के लिए यदि कोई कानून बनाया जाता है, तो उसे इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकेगी कि वह मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है। ये दोनों अनुच्छेद धन के न्यायसंगत वितरण की घोषणा करते है|। 42वें संशोधन (1976) द्वारा अन्य निर्देशक सिद्धान्तों को भी इसी कोटि में रख दिया गया है। इन संशोधनों के फलस्वरूप ऐसे कानून बनाए जा सकते थे जो मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करते है|। परन्तु उच्चतम न्यायालय ने मिनर्वा मिल्स केस (1980) में 42वें संशोधन अधिनियम की इस व्यवस्था को अवैध घोषित कर दिया है कि सभी निर्देशक सिद्धान्तों का दर्जा मौलिक अधिकारों से ऊपर है।

मौलिक कर्त्तव्य

  • भारतीय संविधान के भाग IV के अनुच्छेद 51 (अ) में मौलिक कर्त्तव्यों का उल्लेख है।
  • मौलिक कर्तव्य 42 वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़े गये है।
  • मौलिक कर्त्तव्य 1975 में गठित ‘स्वर्ण सिंह समिति’ की सिफारिश के परिणाम-स्वरूप जोड़े गये।
  • भारतीय संविधान में कुल 10 मौलिक कर्तव्य निर्धारित किये गये है।
  • मौलिक कर्तव्य के पीछे न्यायालय की शक्ति नहीं है।

मौलिक कर्त्तव्य

राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक कर्त्तव्य - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | Revision Notes for UPSC Hindi

संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा संविधान के भाग IV के पश्चात् एक नया भाग IV-क जोड़ा गया है जिसके द्वारा पहली बार संविधान में नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों को समविष्ट किया गया है। नये अनुच्छेद 51(क) के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वह-

(i) संविधान, राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान के प्रति आस्था व सम्मान व्यक्त करे,
(ii) स्वतंत्रता संग्राम के पावन दर्शकों को संजोए व उनका अनुसरण करे,
(iii) भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता को समर्थन व प्रोत्साहन दे,
(iv) देश की रक्षा करे व आवश्यकतानुसार राष्ट्र-सेवा में जुटे,
(v) सभी भारतीयों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना को प्रोत्साहित करे तथा महिलाओं की गरिमा के प्रतिकूल किसी भी प्रचलन का परित्याग करे,
(vi) राष्ट्र की समन्वित प्रकृति की समृद्ध विरासत को अनुरक्षण करे,
(vii) प्राकृतिक पर्यावरण के सहारे, उसे संरक्षण दे तथा प्राणि मात्र के प्रति करूणा का भाव रखे,
(viii) वैज्ञानिक मानसिकता, मानवता तथा खोज का भाव विकसित करे,
(ix) जन-संपत्ति की सुरक्षा करे और हिंसा का परित्याग करे, तथा
(x) सभी वैयक्तिक व सामूहिक गतिविधियों में उत्कृष्टता का प्रयास करे।

संविधान में मौलिक कर्तव्यों का समावेश मुख्यतः इस उद्देश्य से किया गया था कि नागरिकों में देशभक्ति की भावना सुदृढ़ हो, एक ऐसी आचरण संहिता का पालन करने में उनकी सहायता हो, जो राष्ट्र को सुदृढ़ बनाए, उसकी संप्रभुता व अखंडता की सुरक्षा करे। मौलिक कर्त्तव्यों का यह भी उद्देश्य है कि राज्य को विविध कार्यों के संपादन और सामंजस्य, एकता, भाईचारा और धार्मिक सहिष्णुता के आदर्शों को बढ़ावा देने में सहायता मिले। ये आदर्श भारतीय संविधान के आधार है। इन मौलिक कत्र्तव्यों ने राज्य की कार्यप्रणाली में नागरिकों के महत्व को दर्शाया है और उनसे यह अपेक्षा की है कि वे अपने कर्त्तव्यों का पूरी सामथ्र्य से पालन करे।

राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की भाँति ये कर्त्तव्य भी अप्रवर्तनीय है। इन्हें न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराया जा सकता। इसके बावजूद ये कर्त्तव्य हमें सदा इस बात की याद दिलाते रहते है कि हमारे राष्ट्रीय उद्देश्य क्या है और हमारी राजनीतिक व्यवस्था किन बुनियादी गुणों से अनुप्राणित है। ये कर्त्तव्य हमें अपने अंदर सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना विकसित करने की सही प्रेरणा देते है।

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FAQs on राज्य के नीति निर्देशक तत्व, मौलिक कर्त्तव्य - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - Revision Notes for UPSC Hindi

1. नीति निर्देशक तत्व क्या हैं और राज्य में उनकी क्या भूमिका होती है?
उत्तर: नीति निर्देशक तत्व एक शासनादेश होता है जो राज्य के नीति निर्धारण और नीति गठन में मदद करता है। यह तत्व नीति के लक्ष्यों और उद्देश्यों को साबित करने और प्राथमिकताओं को निर्धारित करने में मदद करता है। राज्य में नीति निर्देशक तत्वों की मुख्य भूमिका नीति निर्धारित करना, कार्य कारणों को समझना और नई नीतियों का प्रस्तावना करना होती है।
2. राज्य में मौलिक कर्त्तव्य - संशोधन नोटस क्या होते हैं और इनका उपयोग कैसे होता है?
उत्तर: मौलिक कर्त्तव्य - संशोधन नोटस संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत शामिल होते हैं। ये नोटस संविधान में परिवर्तन करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया हैं और इनका उपयोग संविधान को संशोधित करने के लिए होता है। मौलिक कर्त्तव्य - संशोधन नोटस द्वारा संविधान में परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू होती है और इसे राष्ट्रपति द्वारा देश के संविधानिक न्यायाधीशों को भेजा जाता है।
3. भारतीय राजव्यवस्था में UPSC का क्या महत्व है?
उत्तर: UPSC (संघ लोक सेवा आयोग) भारतीय राजव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संस्था है। यह संघीय स्तर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा, विदेशी सेवा और अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए परीक्षा आयोजित करता है। UPSC राष्ट्रीय लेवल पर प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता है और योग्य उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों की नियुक्ति के लिए चुनता है।
4. UPSC परीक्षा की तैयारी के लिए कौन-कौन सी पुस्तकें अच्छी मानी जाती हैं?
उत्तर: UPSC परीक्षा की तैयारी के लिए कुछ अच्छी पुस्तकें हैं जो छात्रों द्वारा प्रस्तावित की जाती हैं। कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों में "Indian Polity" by M. Laxmikanth, "India's Struggle for Independence" by Bipan Chandra, "Indian Art and Culture" by Nitin Singhania, "Indian Economy" by Ramesh Singh, और "General Studies Paper I" by Arihant Experts शामिल हैं। यह पुस्तकें विभिन्न विषयों पर विस्तृत ज्ञान प्रदान करती हैं और UPSC परीक्षा की तैयारी करने के लिए उपयोगी हो सकती हैं।
5. राज्य में नीति निर्देशक तत्वों के अलावा कौन-कौन से तत्व होते हैं जो नीति निर्धारण में मदद करते हैं?
उत्तर: राज्य में नीति निर्देशक तत्वों के अलावा कुछ अन्य तत्व भी होते हैं जो नीति निर्धारण में मदद करते हैं। उनमें से कुछ मुख्य तत्व हैं - नीति निर्माण संस्थान, संशोधन संस्थान, सांख्यिकीय तथ्य और अध्ययन, प्रशासनिक विभाग, और सरकारी नीति निर्देशक तत्व। ये तत्व नीति निर्माण में विशेषज्ञता और विवेचना प्रदान करते हैं और राज्यी
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