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राष्ट्रपति (भाग - 1) - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

  • भारतीय संघ की कार्यपालिका के शीर्ष पर राष्ट्रपति है।
  • भारतीय संविधान का 52वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति से संबंधित है।
  • राष्ट्रपति विषयक प्रावधान संविधान के संघीय सरकार के खण्ड के साथ दिये जाने का यह तात्पर्य कदापि नहीं लगाया जाना चाहिये कि राष्ट्रपति संघ सरकार (केन्द्रीय सरकार) का प्रधान है।
  • भारतीय राष्ट्रपति भारतवर्ष का प्रधान है। वह भारत का प्रथम नागरिक कहा जाता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि "भारत का एक राष्ट्रपति होगा।"


राष्ट्रपति का निर्वाचन

  • भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन भारतीय जनता द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से होता है। राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से एक निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 54 एवं 55 में राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली का उल्लेख किया गया है।

निर्वाचन पद्धति

  • संविधान के अनुच्छेद 54 में कहा गया है कि- 

    1. राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण (निर्वाचक मण्डल के सदस्य) करेंगे जिसमें
    (क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, और
    (ख) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य होंगे।

  • संविधान के अनुच्छेद 55 में कहा गया है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि निर्वाचक मण्डल में राज्यों की जनसंख्या का जितना संभव हो सके समान प्रतिनिधित्व रखने का प्रयत्न किया जाए तथा इसके साथ राज्य विधानसभा के सदस्य द्वारा दिये गये मतों एवं संसद के सदस्यों द्वारा दिये गये मतों में समानता स्थापित करने का प्रयत्न किया जाए।
  • इन्हीं दोनों उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये भारत में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के साथ एकल संक्रमणीय मत प्रणाली का सामंजस्य किया गया है।
  • किसी राज्य की विधानसभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत माने जाएंगे, जितने कि 1000 के गुणित उस भागफल में हो जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की सम्पूर्ण संख्या से भाग देने पर आये। इसे निम्न सूत्रा से स्पष्ट समझा जा सकता है।
  • विधान सभा के निर्वाचित सदस्य की मत संख्या = राज्यों की कुल जनसंख्या/राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या /1000
  • संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि यदि एक हजार से उक्त गुणितों (उपर्युक्त सूत्रा से जो संख्या आये) को गिनने के पश्चात् यदि शेष 500 से कम न हो तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाता है।     
  • राज्यों की जनसंख्या के संबंध में जनसंख्या का आधार सन् 2000 तक 1971 की जनगणना रखने का प्रावधान है।
  • इस प्रकार जब भारत के समस्त राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मतों की मूल्य संख्या प्राप्त हो जाए, तो उन सब के योग को संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर जो भागफल प्राप्त होगा वही संसद के प्रत्येक सदस्य की मत संख्या मानी जाएगी। इसे निम्न सूत्रा से समझा जा सकता है 
  • एक निर्वाचित सांसद के मत का मूल्य = सभी राज्यों की विधानसभाओं के कुल प्राप्त निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्याओं का योग /संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या
  • इसमें यदि शेष आधे से अधिक बचता है तो उसे एक गिन लिया जाता है और यदि शेष आधे से कम बचे तो उसे छोड़ दिया जाता है।
  • जिन राज्यों में विधानमण्डल द्विसदनात्मक हैं वहाँ केवल विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को ही शामिल किया जाएगा। यदि किसी राज्य की विधानसभा विघटित है तो उस राज्य को छोड़कर बाकी द्वारा निर्वाचन सम्पन्न करा लिया जाता है।
  • राष्ट्रपति पद पर विजयी होने वाले प्रत्याशी को मात्रा साधारण बहुमत के आधार पर विजयी घोषित नहीं किया जा सकता। इसके लिए उसे स्पष्ट बहुमत अर्थात् निर्धारित कोटा प्राप्त करना होता है।

                                                                       महत्वपूर्ण तथ्य

  • अनुमान न लगाने का सिद्धान्तµइस सिद्धान्त को ”प्रकासा सिद्धान्त“ नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस सिद्धान्त का प्रयोग सबसे पहले 1952 में मद्रास के राज्यपाल प्रकासा द्वारा मद्रास के चुनाव के पश्चात् किया गया था। इस सिद्धान्त के अनुसार जब आम चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं प्राप्त होता, तब राज्यपाल विधानसभा के सबसे बड़े दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है। इस सिद्धान्त का प्रयोग 1952 में मद्रास, पेप्सू तथा ट्रावनकोर कोचीन में, 1957 में उड़ीसा में, 1967 में राजस्थान में, 1974 में पाण्डिचेरी में, 1982 में हरियाणा में तथा 1988 में तमिलनाडु में किया गया था। लेकिन यहां उल्लेखनीय है कि इस सिद्धान्त का प्रयोग केवल तब किया गया है, जब कांग्रेस दल को सरकार बनाने का अवसर मिला है। जब अन्य दल को सरकार बनाने का अवसर मिल रहा था, तब इस सिद्धान्त का अनुसरण नहीं किया गया। उदाहरणार्थ, जब 1957 में केरल में भारतीय साम्यवादी दल, 1965 में केरल में माक्र्सवादी साम्यवादी दल, 1971 में पश्चिम बंगाल में माक्र्सवादी साम्यवादी दल को इस सिद्धान्त के अनुसार सरकार बनाने का अवसर मिला था, तब इस सिद्धान्त का अनुसरण नहीं किया गया।
  • अनुमान लगाने का सिद्धान्त इस सिद्धान्त के अनुसार जब आम चुनाव में किसी भी राजनैतिक दल को विधानसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिलता, तब राज्यपाल अनुमान लगाता है कि किस दल का नेता स्थायी सरकार का गठन कर सकता है और इसके आधार पर यह निर्णय करता है कि किस नेता को मंत्रिमण्डल बनाने के लिए आमंत्रित किया जाये। इस सिद्धान्त का प्रयोग 1954 में ट्रावनकोर कोचीन, 1957 तथा 1965 में केरल, 1967 में उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान, 1969 में बिहार, 1971 में उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल, 1974 में नागालैंड , 1975 में गुजरात, 1978 में महाराष्ट्र और 1982 में कर्नाटक में किया गया। राज्यपाल अनुमान लगाने में लिस्ट पद्धति तथा परेड पद्धति को अपनाते है।

 

  • निर्धारित कोटा निकालने के लिये राष्ट्रपति के निर्वाचन में डाले गये वैध मतों की कुल संख्या में राष्ट्रपति पद की (कितने उम्मीदवार चुने जाएंगे) संख्या में 1 जोड़कर उससे भाग देकर उसमें 1 जोड़ दिया जाता है। भारत में चूंकि राष्ट्रपति पद पर एक ही उम्मीदवार चुना जाता है। इसलिये -  डाले गये कुल वैध मतों की कुल संख्या / 1 + 1 =. . . . + 1
  • निर्धारित कोटा निकालने के लिये डाले गये वैध मतों की कुल संख्या के आधे से अधिक मत प्राप्त करने पर ही राष्ट्रपति निर्वाचित माना जाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 55 (3) में कहा गया है कि -

    राष्ट्रपति का निर्वाचन गुप्त मतदान द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा होगा -

मतदान प्रक्रिया एवं गणना

  • राष्ट्रपति के चुनाव के लिये मत पत्र (Ballot Paper) पर एक ओर उम्मीदवारों के नाम और उनके राजनीतिक दलों के नाम (यदि वे किसी दल के सदस्य हो या किसी दल के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रह हों तो) अंकित रहते है।
  •  मतदाता को उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी पसंद के अनुसार प्राथमिकताएँ - 1, 2, 3, 4 (अर्थात् 1 पहली पसंद 2 द्वितीय पसंद) अंकित करनी होती है।
  •  मतगणना के प्रथम चक्र में (अर्थात् सबसे पहली गणना के दौर में) केवल प्रथम पसंद के मतों की गणना की जाती है। यदि किसी उम्मीदवार को इस गणना में निर्धारित कोटा प्राप्त हो जाता है तो वह विजयी घोषित कर दिया जाता है।
  •  यदि प्रथम चक्र में किसी भी उम्मीदवार को निर्धारित कोटा प्राप्त नहीं हुआ हो तो मतगणना का दूसरा चक्र चलाया जाता है, (अर्थात् दो बार मतगणना होती है) इसमें उम्मीदवारों को मिली द्वितीय पसंद के मतों को गिना जाता है।
  • यदि इसमें भी किसी उम्मीदवार को निर्धारित मत प्राप्त न हो तो अब मतों का संक्रमण अर्थात् हस्तांतरण किया जाता है। इसमें जिस उम्मीदवार को द्वितीय चक्र में सबसे कम मत प्राप्त हो उसके द्वितीय पसंद के मतों को अन्य उम्मीदवारों के मतों में जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार जो निर्धारित कोटा प्राप्त कर ले वही विजयी घोषित होगा। यदि इस पर भी किसी उम्मीदवार को निर्धारित मत प्राप्त न हों तो तीसरी एवं फिर चैथी गणना का क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक कि कोई उम्मीदवार निर्धारित मत प्राप्त न कर ले। यदि अन्त में दो प्रत्याशी रह जाए और दोनों में से किसी को भी निर्धारित मत प्राप्त न हो तो फिर सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले व्यक्ति को निर्वाचित मान लिया जाता है।
  • भारत में अब तक केवल सन् 1969 में राष्ट्रपति के निर्वाचन में द्वितीय गणना में द्वितीय पसंद के मतों की गणना हुई और तब श्री वी. वी. गिरी को निश्चित कोटा प्राप्त हुआ। अन्यथा भारत के अन्य सभी राष्ट्रपति प्रथम गणना में ही निर्वाचित हो गये।
  • राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था भारत का निर्वाचन आयोग ही करता है और यदि राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित कोई विवाद हो तो वे केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही ले जाए जा सकते है और इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अन्तिम एवं सर्वमान्य होता है।

राष्ट्रपति की पदावधि

  • संविधान के अनुच्छेद 56 में राष्ट्रपति के पद की अवधि एवं उसे पद से हटाये जाने संबंधी प्रावधान दिये गये है।

  • संविधान के अनुच्छेद 56 में कहा गया है कि -

    • राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक अपने पद पर रह सकता है।

    • पांच वर्ष के भीतर भी राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है यदि -
      (i) राष्ट्रपति स्वयं उपराष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित रूप में अपना त्याग पत्र दे दे।

(ii) राष्ट्रपति द्वारा संविधान का अतिक्रमण या उल्लंघन करने पर, अनुच्छेद 61 में निर्धारित महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा।

(iii) संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त होने पर भी तब तक अपने पद पर बना रहेगा जब तक कि नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण न कर ले

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 57 में यह कहा गया है कि इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए कोई भी व्यक्ति जो एक बार राष्ट्रपति रह चुका है, उस पद के लिये पुनः निर्वाचन का पात्रा होगा।

राष्ट्रपति पद की योग्यताएँ (अर्हताए.)

  • संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्रा तभी होगा जबकि वह-

(i) भारत का नागरिक हो,
(ii) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
(iii) लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो
(iv) वह भारत सरकार या किसी भी राज्य की सरकार के अधीन या उक्त दोनों सरकारों में से किसी के भी नियंत्राण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिये।

  • यदि कोई व्यक्ति अन्य दी हुई योग्यताएँ रखता है और उपबंध  (iv) के अधीन किसी सरकारी लाभ के पद पर है तो वह अपने पद से त्याग पत्र देकर राष्ट्रपति पद के लिये निर्वाचन हेतु चुनाव लड़ सकता है।
  • इस संबंध में संविधान में स्पष्ट कर दिया है कि यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति अथवा राज्यपाल या संघ का कोई मंत्राी राष्ट्रपति पद के लिये उम्मीदवार होना चाहे तो उसे अपने पद से त्यागपत्रा नहीं देना पड़ता क्योंकि इन पदों को संविधान में लाभ का पद नहीं माना गया है। इन पदों पर कार्यरत व्यक्ति के राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाने के उपरान्त ये पद स्वतः ही रिक्त मान लिये जाते है।
  • राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं माना जाएगा।

राष्ट्रपति के लिए आवश्यक शर्तें
संविधान के अनुच्छेद 59 के अनुसार- 
(i) राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन (लोकसभा अथवा राज्यसभा) या किसी भी राज्य के विधानमंडल के किसी भी सदन (विधानसभा या विधान परिषद्) का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या राज्य विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि राष्ट्रपति पद ग्रहण करने की तारीख से संबंधित सदन में उसका स्थान रिक्त हो गया है।
(ii) राष्ट्रपति लाभ का अन्य कोई भी पद धारण नहीं कर सकेगा।

अनुच्छेद 59 (3) के अनुसार -
राष्ट्रपति बिना किराया दिये, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा। वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों एवं विशेषाधिकारों का हकदार होगा जो इस संबंध में संसद ने विधि (कानून) द्वारा निर्धारित की है। जब तक संसद ऐसी कोई व्यवस्था न करे तब तक वह संविधान की दूसरी अनुसूची में  निर्धारित उपलब्धियों, भत्तों तथा विशेषाधिकारों का हकदार होगा।

  • संविधान के अनुच्छेद 59(4) के अनुसार - राष्ट्रपति की उपलब्धियों और भत्तों में उसकी पदावधि के दौरान कटौती अथवा कमी नहीं की जा सकती।

राष्ट्रपति की उन्मुक्तियाँ
भारत का राष्ट्रपति अपने पद द्वारा किये गये किसी भी कार्य के लिए स्वयं उत्तरदायी नहीं माना जाएगा। अपने पद की शक्तियों एवं कत्र्तव्यों का प्रयोग करते हुए उनके सम्बन्ध में उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, उसे न्यायालय में प्रस्तुत होने या गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उसके विरुद्ध कोई भी कार्यवाही दो माह का नोटिस देकर ही की जा सकती है। यहाँ तक कि महाभियोग के लिए भी उसे 14 दिन पूर्व लिखित नोटिस देना अनिवार्य है।

राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया 

  • महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है।
  • राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन या अतिक्रमण के आरोप होने पर उसे संसद द्वारा महाभियोग लगाकर हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 61 में राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया उल्लेख किया गया है।
  • इस संबंध में अनुच्छेद 61 में ही यह व्यवस्था है कि संसद का कोई भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) राष्ट्रपति पर महाभियोग लगा सकता है; किन्तु कोई सदन तब तक आरोप नहीं लगा सकता जब तक कि वह 

(क) कम से कम चैदह दिन की लिखित सूचना दिये जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया हो और जिस पर प्रस्तावित करने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक चैथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का आशय प्रकट किया हो;और
(ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा प्रस्ताव (संकल्प) पारित नहीं किया गया हो।

  • संविधान के अनुच्छेद 61 (3) में यह भी कहा गया है कि 
    • जब संसद के किसी सदस्य द्वारा इस प्रकार का आरोप लगाया गया हो तब दूसरा सदन उस आरोप का अन्वेषण करेगा (उस आरोप की जाँच करेगा कि वह सत्य है या नहीं) या करवाएगा और ऐसे अन्वेषण के समय उस राष्ट्रपति की उपस्थिति होने या अपना प्रतिनिधित्व करने अथवा अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार होगा।
    • यदि अन्वेषण के परिणामस्वरूप राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाये गये आरोप सिद्ध हो गये और इस आशय का प्रस्ताव (संकल्प) यदि अन्वेषण करने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित होने की तारीख से मान लिया जाएगा और इस तारीख से राष्ट्रपति को अपने पद से हटना होगा।
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FAQs on राष्ट्रपति (भाग - 1) - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. भारतीय राष्ट्रपति कौन होता है?
उत्तर. भारतीय राष्ट्रपति भारतीय राज्यों का राष्ट्रपति होता है। वह भारतीय संविधान के अनुसार निर्वाचित होता है और देश का सबसे उच्च नागरिक पद होता है। राष्ट्रपति को चुनावी माध्यम से चुना जाता है।
2. भारतीय राष्ट्रपति के क्या कार्य होते हैं?
उत्तर. भारतीय राष्ट्रपति के पास कई कार्य होते हैं। वह भारतीय संविधान के अनुसार विधियों की पालना करते हैं, सरकार के नेतृत्व करते हैं, विभाजन और प्रतिष्ठान के सम्बन्ध में संचालन करते हैं, देश के विदेशी राजनयिकों के साथ संबंध स्थापित करते हैं, आदि।
3. भारतीय राष्ट्रपति का कार्यकाल कितने साल का होता है?
उत्तर. भारतीय राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है। यह कार्यकाल निर्वाचित होने के तत्वाधान में छोटा नहीं किया जा सकता है और नियमित रूप से समाप्त होता है। राष्ट्रपति को चुनावी माध्यम से पुनः चुना जा सकता है।
4. भारतीय राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?
उत्तर. भारतीय राष्ट्रपति का चुनाव पांच साल में एक बार होता है। इसमें भारतीय संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवारों की नामांकनीयता, उम्मीदवारों के लिए मतदान, और चुनाव आयोग द्वारा चुनावी प्रक्रिया की व्यवस्था होती है। इसमें भारतीय संसद के सदस्यों और राज्यों के विधानमंडलों के सदस्यों के वोटों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
5. भारतीय राष्ट्रपति को कौन चुनाता है?
उत्तर. भारतीय राष्ट्रपति को भारतीय संसद के सदस्यों और राज्यों के विधानमंडलों के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। इसमें लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों का वोट लिया जाता है, जिन्हें भारतीय संसद के सदस्य चुनते हैं। इसके अलावा, राष्ट्रपति के लिए राज्यों के विधानमंडलों के सदस्यों का वोट भी गिना जाता है।
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