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राष्ट्रपति - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था | Revision Notes for UPSC Hindi PDF Download

राष्ट्रपति

  • भारतीय संघ की कार्यपालिका के शीर्ष पर राष्ट्रपति है।
  • भारतीय संविधान का 52वाँ अनुच्छेद राष्ट्रपति से संबंधित है।
  • राष्ट्रपति विषयक प्रावधान संविधान के संघीय सरकार के खण्ड के साथ दिये जाने का यह तात्पर्य कदापि नहीं लगाया जाना चाहिये कि राष्ट्रपति संघ सरकार (केन्द्रीय सरकार) का प्रधान है।
  • भारतीय राष्ट्रपति भारतवर्ष का प्रधान है। वह भारत का प्रथम नागरिक कहा जाता है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 में कहा गया है कि ”भारत का एक राष्ट्रपति होगा।“

राष्ट्रपति का निर्वाचन

  • भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन भारतीय जनता द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से होता है। राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से एक निर्वाचक मण्डल द्वारा किया जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 54 एवं 55 में राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली का उल्लेख किया गया है।

निर्वाचन पद्धति

संविधान के अनुच्छेद 54 में कहा गया है कि-

1. राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण (निर्वाचक मण्डल के सदस्य) करेंगे जिसमें-
(क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, और
(ख) राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य होंगे।

  • संविधान के अनुच्छेद 55 में कहा गया है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि निर्वाचक मण्डल में राज्यों की जनसंख्या का जितना संभव हो सके समान प्रतिनिधित्व रखने का प्रयत्न किया जाए तथा इसके साथ राज्य विधानसभा के सदस्य द्वारा दिये गये मतों एवं संसद के सदस्यों द्वारा दिये गये मतों में समानता स्थापित करने का प्रयत्न किया जाए।
  • इन्हीं दोनों उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये भारत में आनुपातिक प्रतिनिधित्व के साथ एकल संक्रमणीय मत प्रणाली का सामंजस्य किया गया है।
  • किसी राज्य की विधानसभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत माने जाएंगे, जितने कि 1000 के गुणित उस भागफल में हो जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की सम्पूर्ण संख्या से भाग देने पर आये। इसे निम्न सूत्रा से स्पष्ट समझा जा सकता है।
  • विधान सभा के निर्वाचित सदस्य की मत संख्या = राज्यों की कुल जनसंख्या/राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या ÷ 1000
  • संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि यदि एक हजार से उक्त गुणितों (उपर्युक्त सूत्रा से जो संख्या आये) को गिनने के पश्चात् यदि शेष 500 से कम न हो तो प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाता है।
  • राज्यों की जनसंख्या के संबंध में जनसंख्या का आधार सन् 2000 तक 1971 की जनगणना रखने का प्रावधान है।
  • इस प्रकार जब भारत के समस्त राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के मतों की मूल्य संख्या प्राप्त हो जाए, तो उन सब के योग को संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर जो भागफल प्राप्त होगा वही संसद के प्रत्येक सदस्य की मत संख्या मानी जाएगी। इसे निम्न सूत्र से समझा जा सकता है-
  • एक निर्वाचित सांसद के मत का मूल्य = सभी राज्यों की विधानसभाओं के कुल प्राप्त निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्याओं का योग /संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या
  • इसमें यदि शेष आधे से अधिक बचता है तो उसे एक गिन लिया जाता है और यदि शेष आधे से कम बचे तो उसे छोड़ दिया जाता है।
  • जिन राज्यों में विधानमण्डल द्विसदनात्मक हैं वहाँ केवल विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों को ही शामिल किया जाएगा। यदि किसी राज्य की विधानसभा विघटित है तो उस राज्य को छोड़कर बाकी द्वारा निर्वाचन सम्पन्न करा लिया जाता है।
  • राष्ट्रपति पद पर विजयी होने वाले प्रत्याशी को मात्रा साधारण बहुमत के आधार पर विजयी घोषित नहीं किया जा सकता। इसके लिये उसे स्पष्ट बहुमत अर्थात् निर्धारित कोटा प्राप्त करना होता है।
  • निर्धारित कोटा निकालने के लिये राष्ट्रपति के निर्वाचन में डाले गये वैध मतों की कुल संख्या में राष्ट्रपति पद की (कितने उम्मीदवार चुने जाएंगे) संख्या में 1 जोड़कर उससे भाग देकर उसमें 1 जोड़ दिया जाता है। भारत में चूंकि राष्ट्रपति पद पर एक ही उम्मीदवार चुना जाता है। इसलिये-
    डाले गये कुल वैध मतों की कुल संख्या / 1 + 1 =. . . . + 1
  • निर्धारित कोटा निकालने के लिये डाले गये वैध मतों की कुल संख्या के आधे से अधिक मत प्राप्त करने पर ही राष्ट्रपति निर्वाचित माना जाएगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 55 (3) में कहा गया है कि-
    राष्ट्रपति का निर्वाचन गुप्त मतदान द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा होगा-

मतदान प्रक्रिया एवं गणना

  • राष्ट्रपति के चुनाव के लिये मत पत्रा ;ठंससवज च्ंचमतद्ध पर एक ओर उम्मीदवारों के नाम और उनके राजनीतिक दलों के नाम (यदि वे किसी दल के सदस्य हो या किसी दल के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रह हों तो) अंकित रहते है।
  • मतदाता को उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी पसंद के अनुसार प्राथमिकताएँ-1, 2, 3, 4 (अर्थात् 1 पहली पसंद 2 द्वितीय पसंद) अंकित करनी होती है।
  • मतगणना के प्रथम चक्र में (अर्थात् सबसे पहली गणना के दौर में) केवल प्रथम पसंद के मतों की गणना की जाती है। यदि किसी उम्मीदवार को इस गणना में निर्धारित कोटा प्राप्त हो जाता है तो वह विजयी घोषित कर दिया जाता है।
  • यदि प्रथम चक्र में किसी भी उम्मीदवार को निर्धारित कोटा प्राप्त नहीं हुआ हो तो मतगणना का दूसरा चक्र चलाया जाता है, (अर्थात् दो बार मतगणना होती है) इसमें उम्मीदवारों को मिली द्वितीय पसंद के मतों को गिना जाता है।
  • यदि इसमें भी किसी उम्मीदवार को निर्धारित मत प्राप्त न हो तो अब मतों का संक्रमण अर्थात् हस्तांतरण किया जाता है। इसमें जिस उम्मीदवार को द्वितीय चक्र में सबसे कम मत प्राप्त हो उसके द्वितीय पसंद के मतों को अन्य उम्मीदवारों के मतों में जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार जो निर्धारित कोटा प्राप्त कर ले वही विजयी घोषित होगा। यदि इस पर भी किसी उम्मीदवार को निर्धारित मत प्राप्त न हों तो तीसरी एवं फिर चैथी गणना का क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक कि कोई उम्मीदवार निर्धारित मत प्राप्त न कर ले। यदि अन्त में दो प्रत्याशी रह जाए और दोनों में से किसी को भी निर्धारित मत प्राप्त न हो तो फिर सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले व्यक्ति को निर्वाचित मान लिया जाता है।
  • भारत में अब तक केवल सन् 1969 में राष्ट्रपति के निर्वाचन में द्वितीय गणना में द्वितीय पसंद के मतों की गणना हुई और तब श्री वी. वी. गिरी को निश्चित कोटा प्राप्त हुआ। अन्यथा भारत के अन्य सभी राष्ट्रपति प्रथम गणना में ही निर्वाचित हो गये।
  • राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था भारत का निर्वाचन आयोग ही करता है और यदि राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित कोई विवाद हो तो वे केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही ले जाए जा सकते है और इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय अन्तिम एवं सर्वमान्य होता है।

राष्ट्रपति की पदावधि

संविधान के अनुच्छेद 56 में राष्ट्रपति के पद की अवधि एवं उसे पद से हटाये जाने संबंधी प्रावधान दिये गये है।

  • संविधान के अनुच्छेद 56 में कहा गया है कि-
  • राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक अपने पद पर रह सकता है।
  • पांच वर्ष के भीतर भी राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है यदि-
    (i) राष्ट्रपति स्वयं उपराष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लिखित रूप में अपना त्यागपत्रा दे दे।
    (ii) राष्ट्रपति द्वारा संविधान का अतिक्रमण या उल्लंघन करने पर, अनुच्छेद 61 में निर्धारित महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा।
    (iii) संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त होने पर भी तब तक अपने पद पर बना रहेगा जब तक कि नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण न कर ले।
    (iv) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 57 में यह कहा गया है कि इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए कोई भी व्यक्ति जो एक बार राष्ट्रपति रह चुका है, उस पद के लिये पुनः निर्वाचन का पात्रा होगा।

राष्ट्रपति पद की योग्यताएँ (अर्हताएँ)

  • संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्रा तभी होगा जबकि वह-
    (i) भारत का नागरिक हो,
    (ii) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
    (iii) लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो
    (iv) वह भारत सरकार या किसी भी राज्य की सरकार के अधीन या उक्त दोनों सरकारों में से किसी के भी नियंत्राण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिये।
  • यदि कोई व्यक्ति अन्य दी हुई योग्यताएँ रखता है और उपबंध (iv) के अधीन किसी सरकारी लाभ के पद पर है तो वह अपने पद से त्यागपत्रा देकर राष्ट्रपति पद के लिये निर्वाचन हेतु चुनाव लड़ सकता है।
  • इस संबंध में संविधान में स्पष्ट कर दिया है कि यदि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति अथवा राज्यपाल या संघ का कोई मंत्राी राष्ट्रपति पद के लिये उम्मीदवार होना चाहे तो उसे अपने पद से त्यागपत्रा नहीं देना पड़ता क्योंकि इन पदों को संविधान में लाभ का पद नहीं माना गया है। इन पदों पर कार्यरत व्यक्ति के राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाने के उपरान्त ये पद स्वतः ही रिक्त मान लिये जाते है।
  • राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन का सदस्य नहीं माना जाएगा।

राष्ट्रपति के लिए आवश्यक शर्तें

संविधान के अनुच्छेद 59 के अनुसार-;
(i) राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन (लोकसभा अथवा राज्यसभा) या किसी भी राज्य के विधानमंडल के किसी भी सदन (विधानसभा या विधान परिषद्) का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या राज्य विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि राष्ट्रपति पद ग्रहण करने की तारीख से संबंधित सदन में उसका स्थान रिक्त हो गया है।
(ii) राष्ट्रपति लाभ का अन्य कोई भी पद धारण नहीं कर सकेगा।

अनुच्छेद 59 (3) के अनुसार-

  • राष्ट्रपति बिना किराया दिये, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा। वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों एवं विशेषाधिकारों का हकदार होगा जो इस संबंध में संसद ने विधि (कानून) द्वारा निर्धारित की है। जब तक संसद ऐसी कोई व्यवस्था न करे तब तक वह संविधान की दूसरी अनुसूची में निर्धारित उपलब्धियों, भत्तों तथा विशेषाधिकारों का हकदार होगा।
  • संविधान के अनुच्छेद 59(4) के अनुसार-राष्ट्रपति की उपलब्धियों और भत्तों में उसकी पदावधि के दौरान कटौती अथवा कमी नहीं की जा सकती।


राष्ट्रपति की उन्मुक्तियाँ

भारत का राष्ट्रपति अपने पद द्वारा किये गये किसी भी कार्य के लिए स्वयं उत्तरदायी नहीं माना जाएगा। अपने पद की शक्तियों एवं कर्त्तव्यों का प्रयोग करते हुए उनके सम्बन्ध में उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, उसे न्यायालय में प्रस्तुत होने या गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उसके विरुद्ध कोई भी कार्यवाही दो माह का नोटिस देकर ही की जा सकती है। यहाँ तक कि महाभियोग के लिए भी उसे 14 दिन पूर्व लिखित नोटिस देना अनिवार्य है।

राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया

  • महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है।
  • राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन या अतिक्रमण के आरोप होने पर उसे संसद द्वारा महाभियोग लगाकर हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 61 में राष्ट्रपति पर महाभियोग
  • लगाने की प्रक्रिया उल्लेख किया गया है।
  • इस संबंध में अनुच्छेद 61 में ही यह व्यवस्था है कि संसद का कोई भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) राष्ट्रपति पर महाभियोग लगा सकता है; किन्तु कोई सदन तब तक आरोप नहीं लगा सकता जब तक कि वह-
    (क) कम से कम चैदह दिन की लिखित सूचना दिये जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया हो और जिस पर प्रस्तावित करने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक चैथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का आशय प्रकट किया हो;और
    (ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा प्रस्ताव (संकल्प) पारित नहीं किया गया हो।
  • संविधान के अनुच्छेद 61 (3) में यह भी कहा गया है कि-
  • जब संसद के किसी सदस्य द्वारा इस प्रकार का आरोप लगाया गया हो तब दूसरा सदन उस आरोप का अन्वेषण करेगा (उस आरोप की जाँच करेगा कि वह सत्य है या नहीं) या करवाएगा और ऐसे अन्वेषण के समय उस राष्ट्रपति की उपस्थिति होने या अपना प्रतिनिधित्व करने अथवा अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार होगा।
  • यदि अन्वेषण के परिणामस्वरूप राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाये गये आरोप सिद्ध हो गये और इस आशय का प्रस्ताव (संकल्प) यदि अन्वेषण करने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित होने की तारीख से मान लिया जाएगा और इस तारीख से राष्ट्रपति को अपने पद से हटना होगा।
  • राष्ट्रपति के पद में रिक्ति                    

  • भारतीय राष्ट्रपति का पद निम्न रीति से रिक्त हो सकता है-
    (i) पाँच वर्ष की अवधि समाप्त होने पर;
    (ii) पद पर आसीन राष्ट्रपति की मृत्यु;
    (iii) राष्ट्रपति द्वारा स्वेच्छा से पद त्याग देने पर;
    (iv) महाभियोग द्वारा हटाये जाने पर;
    (v) राष्ट्रपति का निर्वाचन रद्द किये जाने।
  • उपर्युक्त कारणों से हुई रिक्त को भरने के लिए संविधान के अनुच्छेद 62 में प्रावधान दिये गये है।
  • संविधान के अनुच्छेद 62(1) के अनुसार-जब राष्ट्रपति पद पदावधि समाप्त हो जाने से रिक्त होना हो तब अगले राष्ट्रपति का निर्वाचन पदावधि की समाप्ति के पूर्व ही कर लिया जाए। लेकिन यदि किसी कारण वश यह सम्भव नहीं हो पाए तब नये राष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक पूर्व राष्ट्रपति ही उस पद पर बना रहेगा। इस स्थिति में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति पद पर कार्य नहीं करता है।
  • जब रिक्ति पदावधि के समाप्त होने के अतिरिक्त अन्य किसी कारण से हो तो उस स्थिति में राष्ट्रपति का निर्वाचन पद रिक्त होने की तारीख के पश्चात् यथाशीघ्र प्रत्येक दशा में छह माह बीतने से पूर्व कर लिया जाना चाहिए।
  • उपर्युक्त विधि के अतिरिक्त किसी अन्य विधि द्वारा अगर राष्ट्रपति पद रिक्त हो तो उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में यह कार्य उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करेगा। 
  • इन प्रावधानों, के अतिरिक्त यदि राष्ट्रपति अस्थायी रूप से अपने कार्य संभालने में असमर्थ है या वह भारत से बाहर गया हो, अथवा बीमार है या अन्य किसी कारण से अवकाश पर है, तब अवकाश की तारीख से उपराष्ट्रपति उसके कार्यों का निर्वहन करेगा।
  • डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद एवं श्री नीलम संजीव रेड्डी दोनों ही दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। इनके अतिरिक्त 3 मई, 1969 से 20 जुलाई, 1969 तक श्री वी. वी. गिरि एवं 20 जुलाई, 1969 से 24 अगस्त, 1969 तक न्यायमूर्ति मो. हिदायतुल्ला एवं 11 फरवरी, 1977 से 25 जुलाई, 1977 तक श्री बी. डी. जत्ती भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे।

 

राष्ट्रपति

  • संविधान के अनुच्छेद 60 के अनुसार, भारत का राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पूर्व भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के उस वक्त उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष शपथ ग्रहण करेगा या प्रतिज्ञा लेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन हेतु निर्वाचक मंडल में राज्यसभा, लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते है। संविधान 70वाँ संशोधन अधिनियम, 1992 के द्वारा संघ राज्य क्षेत्र पांडिचेरी और राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र दिल्ली की विधान सभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में शामिल करने का प्रावधान किया गया।
  • राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए निर्वाचक मंडल के दस सदस्य उसके प्रस्तावक तथा दस सदस्य अनुमोदक होते है।
  • भारत में अब तक 9 बार राष्ट्रपति का चुनाव हुआ है और एक राष्ट्रपति (नीलम संजीव रेड्डी) निर्विरोध चुना गया है।
  • सिर्फ डा. राजेन्द्र प्रसाद दो बार भारत के राष्ट्रपति चुने गए।
  • भारत के दो राष्ट्रपति-डा. जाकिर हुसैन तथा फखरुद्दीन अली अहमद की अपने कार्यकाल के दौरान मृत्यु हुई थी।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्ला कार्यकारी राष्ट्रपति के पद का निर्वहन एक बार किये है।
  • डा. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपति और एक बार राष्ट्रपति रहे।
  • केवल वी.वी गिरि के निर्वाचन के समय दूसरे चक्र की मतगणना करनी पड़ी। अभी तक दूसरे चक्र की मतगणना से गिरि ही राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।
  • केवल नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हुए जो एक बार चुनाव में पराजित हुए तथा बाद में निर्विरोध निर्वाचित हुए।
  • डा. राजेन्द्र प्रसाद, फखरुद्दीन अली अहमद, नीलम संजीव रेड्डी तथा ज्ञानी जैल सिंह को छोड़कर अन्य राष्ट्रपति पूर्व में उपराष्ट्रपति के पद पर रहे है।
  • राष्ट्रपति की शक्तियाँ

    संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार ”संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी, जिनका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा |

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कार्यपालिका शक्तियाँ

  • संविधान के अनुच्छेद 53 के साथ अनुच्छेद 77 (1) में भी कहा गया है कि भारत सरकार कार्यपालिका संबंधी सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से सम्पादित करेगी।
  • अनुच्छेद 74 (1) के अनुसार भारत के राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार ही किया जा सकेगा।
  • यह अनुच्छेद 42वें संशोधन 1976 से इस प्रकार है-”राष्ट्रपति को उसके कार्यों में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्राी होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में इनकी सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
  • राष्ट्रपति ही भारत सरकार के कार्य संचालन के लिए नियम बनाता है। (अनुच्छेद 77 (3))
  • राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह प्रधानमंत्राी से संघ के प्रशासनिक कार्यों के संबंध में एवं मंत्रिपरिषद् एवं मंत्राीमण्डल के निर्णयों से संबंधित सूचना माँग सकता है तथा किन्हीं निर्णयों को संसद में रखने हेतु कह सकता है।
  • संविधान द्वारा राष्ट्रपति को निम्न नियुक्तियाँ करने की शक्ति दी गई है-
    (i) प्रधानमंत्राी, ;(ii) संघ के अन्य मंत्रियों, ;(iii) भारत के महान्यायवादी, ;(iv) नियन्त्राक एवं महालेखा परीक्षक, ;(v) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश, ;(vi)राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, ;(vii) राज्यों के राज्यपालों, ;(viii) जल प्रदाय में हस्तक्षेप की जाँच करने के लिए आयोग, ;(ix) वित्त आयोग, ;(x)संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों, ;(xi) अन्तर्राज्यीय लोक सेवा आयोग, ;(xii) मुख्य निर्वाचक आयुक्त एवं निर्वाचन आयोग के अन्य सदस्यों, ;(xiii) अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति, ;(xiv) केन्द्र शासित राज्यों के प्रशासन के लिए चीफ-कमिश्नर, ;(xv) अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग, ;(xi) पिछड़े वर्गों की दशाओं की जाँच हेतु आयोग, ;(xii) अन्य जाँचों हेतु आयोग, ;(xiii) राजभाषा आयोग, ;(xiv) भाषायी अल्पसंख्यक आयोग इत्यादि की नियुक्ति की जाती है।
  • राष्ट्रपति अन्य देशों में भारतीय राजदूतों एवं उच्चायुक्तों एवं वाणिज्य दूतों की नियुक्ति करता है। इसके साथ ही वह विदेशों के द्वारा भारत में नियुक्त राजदूतों, उच्चायुक्तों (हाई कमिश्नर) एवं वाणिज्य दूतों एवं अन्य अधिकारियों के परिचय पत्रा प्राप्त करता है।
  • इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति अन्तर्राष्ट्रीय कार्यों में भारत का प्रतिनिधित्व करता है।
  • भारतीय राष्ट्रपति भारतीय सेना का सर्वोच्च सेनापति होता है। वह तीनों सेनाओं जल सेना (नौ सेना), थल सेना एवं वायुसेना के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति निम्न पदाधिकारियों को पद से हटा सकता है-किसी मंत्राी को, राज्य के राज्यपाल, भारत के महान्यायवादी, संसद द्वारा महाभियोग पारित कर देने वाले समावेदन पर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को एवं उच्चतम न्यायालय के प्रतिवेदन पर संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्यों को।
  • यद्यपि राष्ट्रपति की कार्यपालिका संबंधी अधिकार विस्तृत है, लेकिन भारत में संसदीय प्रणाली लागू होने से वह अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिमण्डल की सलाह से ही कर सकता है।

विधायी शक्तियाँ

  • भारत के राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अंग है।
  • भारतीय संसद में-लोकसभा + राज्यसभा + राष्ट्रपति शामिल माने जाते है। 
  • संविधान के अनुच्छेद 85(1) के अनुसार राष्ट्रपति को समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन की बैठक या सत्रा अथवा अधिवेशन बुलाने या आहूत करने का अधिकार है। इस प्रकार के सत्रा की अन्तिम बैठक और आगामी सत्रा की प्रथम बैठक की नियत तारीख से छः माह के अन्तराल पर कम-से-कम एक बार अवश्य बुलाई जाएगी।
  • अनुच्छेद 85(2) के अधीन वह संसद के दोनों सदनों या किसी एक सदन का सत्रावसान कर सकेगा अर्थात् सत्रा को स्थगित या समाप्त घोषित कर सकता है। इसी उपबंध के अधीन वह लोकसभा को विघटित भी कर सकता है।
  • इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 108 के अधीन वह दोनों सदनों में किसी विषय पर गतिरोध हो जाने पर संयुक्त अधिवेशन भी बुला सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 87 में कहा गया है कि राष्ट्रपति लोकसभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम अधिवेशन में एवं प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्रा (अधिवेशन) के आरम्भ में दोनों सदनों में पृथक-पृथक या संयुक्त सत्रा में अभिभाषण देगा।
  • इस अभिभाषण में वह सत्रा के लिए मंत्रिमण्डल के कार्यक्रम की घोषणा और राजनीतिक एवं सामान्य नीति की घोषणा करता है, प्रशासनिक विषयांे पर चर्चा का सूत्रापात करता है तथा वह संसद को उसके आह्नान का कारण भी बताता है।
  • प्रत्येक अधिवेशन के आरम्भ पर राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में अलग-अलग या किसी एक सदन में या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अभिभाषण कर सकता है और बैठक में उपस्थित होने के लिए सदस्यों से उपस्थिति की अपेक्षा भी कर सकता है। (अनुच्छेद 86 (1))
  • संविधान के अनुच्छेद 86(2) के अनुसार-राष्ट्रपति संसद में किसी विधेयक लम्बित ;(Pending) के सम्बंध में या अन्य किसी विषय के संबंध में संदेश किसी भी सदन को भेज सकता है। राष्ट्रपति द्वारा भेजे गये संदेश पर सम्बन्धित सदन सुविधानुसार शीघ्र ही विचार करेगा।
  • अनुच्छेद 80 (1) के अनुसार राष्ट्रपति राज्य सभा में ऐेसे 12 सदस्यों को मनोनीत (नामांकित) करेगा जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक विषयों का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव प्राप्त है।
  • अनुच्छेद 331 के अधीन राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह यदि यह समझे कि लोक-सभा में एंग्लो-इण्डियन समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है तो वह लोकसभा में उस समुदाय के 2 सदस्य मनोनीत कर सकता है।
  • भारत के राष्ट्रपति की अनुमति से ही निम्न प्रतिवेदन संसद के समक्ष रखे जा सकते हैं-
    (1) वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट) एवं अनुपूरक बजट।
    (2) भारत सरकार के लेखाओं के संबंध में भारत के नियन्त्राक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन।
    (3) वित्त आयोग की सिफारिशें एवं उसके साथ उन पर की गई कार्यवाहियों से संबंधित स्पष्टीकरण ज्ञापन प्रस्तुत करना।
    (4) संघ लोक सेवा आयोग का प्रतिवेदन एवं जहाँ आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई वहाँ उसके कारण।
    (5) अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के विशेष अधिकारी का प्रतिवेदन।
    (6) पिछड़ा वर्ग आयोग का प्रतिवेदन।
    (7) भाषाई-अल्पसंख्यकों के विशेष अधिकारियों का प्रतिवेदन।
     
  • संविधान में यह अपेक्षा की गई है कि कुछ विषयों से संबंधित विधेयकों को संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति लेना आवश्यक है। ये विषय निम्न है-
    (i) अनुच्छेद 3 के अधीन नये राज्यों के निर्माण अथवा वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन सम्बन्धी विषय।
    (ii)अनुच्छेद 31 (क) (1) में निर्दिष्ट विषयों से सम्बन्धित (राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिकार के अर्जन से सम्बन्धित प्रावधान) उपबन्ध के लिए विधेयक प्रस्तुत करना।
    (iii) धन विधेयका के सम्बन्ध में (अनु. 117 (1))
    (iv) कोई विधेयक जो वास्तव में धन विधेयक नहीं है, पर जो भारत की संचित निधि में से व्यय करने से संबंधित है। (अनुच्छेद 117 (3))
    (v) कोई विधेयक जो कर सम्बन्धी प्रावधानों से सम्बन्धित है एवं इस सम्बन्ध में वह राज्यों से जुड़ा है या फिर ये उन सिद्धान्तों को प्रभावित करते है जिनसे राज्यों को धन का वितरण किया जाता है। ‘कृषि आय’ से सम्बन्धित विषय जो कि आय-कर से संबंधित हों।
    (vi) व्यापार की स्वतंत्राता पर यदि राज्यों द्वारा कोई प्रतिबन्ध लगाने संबंधी विधेयक हो तो उसे सदन में प्रस्तावित करने से पूर्व इस हेतु राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
     
  • संविधान के अनुच्छेद 111 के अनुसार दोनों सदनों द्वारा पारित किये जाने के पश्चात् कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाएगा और राष्ट्रपति निम्न तीन में से एक निर्णय कर सकता है-
    (i) वह यह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक पर अनुमति प्रदान करता है।
    (i) वह यह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक पर अनुमति रोकता है।
    (iii) यदि विधेयक धन विधेयक नहीं हो तो उसे सदनों को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। धन विधेयक पुनर्विचार के लिए नहीं लौटाया जा सकता।
     
  • यदि राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटाये गये विधेयक को संसद के दोनों सदन संशोधन सहित या बगैर किसी संशोधन के पुनः पारित कर दे तो राष्ट्रपति उस पर अपनी अनुमति देने के लिये अथवा उस पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य होगा।

निलम्बनकारी वीटो-यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति देने से स्पष्ट रूप से इंकार कर देने के स्थान पर विधेयक को कुछ संशोधनों एवं संदेश के साथ अथवा इनके बिना दोनों सदनों को पुनर्विचार करने के लिए लौटा देता है तो इसे राष्ट्रपति का निलंबनकारी वीटो माना जाता है। इसका उद्देश्य केवल विधेयक को थोड़े समय के लिए रोकना या उसके कानून बनने में थोड़ी देर लगाना है। यदि संसद के दोनों सदन उस विधेयक को संशोधनों के साथ या बिना किसी संशोधन के पूर्व स्वरूप में ही पुनः साधारण बहुमत से पारित कर दे तो राष्ट्रपति उस पर स्वीकृति देने के लिए बाध्य है।

  • जेबी वीटो-भारतीय संविधान में ऐसी कोई समय-सीमा नहीं दी गई है कि जिसके भीतर राष्ट्रपति किसी विधेयक को जो उसकी अनुमति के लिए भेजा गया है को स्वीकृत करे, इंकार करे या वापस करे। अनुच्छेद 111 में केवल यही कहा गया है कि वह विधेयक को प्रस्तुत किये जाने के बाद यथाशीघ्र लौटा दे। इस प्रकार समय-सीमा के अभाव में भारत का राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है। जेबी वीटो तब कहा जाता है जबकि राष्ट्रपति किसी विधेयक पर न तो अनुमति प्रदान करे और न ही उसे सदन में पुनर्विचार के लिए लौटाये। वह केवल विधेयक को अपने पास रोके रखेगा इस स्थिति में हम कह सकते है कि विधेयक राष्ट्रपति की ‘जेब’ में ही है। इसका एक उदाहरण है-सन् 1986 में भारतीय संसद द्वारा (राजीव गांधी सरकार) ‘भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक’ पारित किया था। इसके कुछ उपबन्धों पर प्रेस ने प्रेस स्वातंत्रा्य के विरुद्ध होने का आक्षेप लगाया था। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने इस विधेयक को न तो अनुमति दी और न ही इस पर अनुमति देने से इंकार ही किया। यह विधेयक दिसम्बर 1989 तक राष्ट्रपति के पास ही (जेब में ही) पड़ा रहा। 7 जनवरी 1990 में राष्ट्रपति वेंकटरमन ने इसके खण्ड 16 पर पुनर्विचार हेतु इसे सदन में भेजा।
  • भारत के संविधान में एक व्यवस्था यह भी की गई है कि किसी राज्य का राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर राज्य विधानमण्डल के द्वारा पारित किसी विधेयक को यदि वह आवश्यक समझे तो राष्ट्रपति की स्वीकृति अथवा अनुमति के लिए भेज सकता है। इस प्रकार के विधेयकों  में राज्य के उच्च न्यायालय की शक्तियों से सम्बन्धित विधेयकों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति लेना आवश्यक है। ((अनुच्छेद 200))
  • राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह राज्यपाल द्वारा भेजे गये किसी विधेयक पर अपनी अनुमति दे या उसे पुनर्विचार के लिए लौटा दे अथवा उसे अनिश्चित काल के लिए अपने पास रोके रखे।
  • राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए भेजे गये विधेयक को यदि राज्य विधानमण्डल सामान्य बहुमत से पुनः पारित कर दे तो भी राष्ट्रपति उस पर अनुमति देने के लिए बाध्य नहीं है। ऐसी स्थिति में विधेयक मृत समझा जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 123 के अनुसार-जब संसद का सत्रा या अधिवेशन नहीं चल रहा हो और राष्ट्रपति यह महसूस करे कि परिस्थितियों के अनुरूप किसी विषय पर तुरन्त कानून निर्माण अथवा कार्यवाही अपेक्षित है तो वह उस परिस्थिति से निबटने के लिए ‘अध्यादेश’ जारी कर सकता है।
  • इस प्रकार का राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया अध्यादेश संसदीय कानूनों की भाँति ही प्रभावशील रहता है।
  • ये अध्यादेश केवल उसी स्थिति में निकाले जा सकते है जबकि संसद के दोनों में से किसी भी एक सदन का सत्रावसान हो गया हो और संसद द्वारा उस सम्बन्ध में विधि या कानून बनाया जाना संभव न हो।
  • राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति का प्रयोग मंत्राीपरिषद् की सलाह पर ही करेगा।
  • ये अध्यादेश संसद का अगला अधिवेशन प्रारम्भ होने के छः सप्ताह पश्चात् समाप्त समझे जाएँगे।
  • संसद चाहे तो इस अवधि के पूर्व भी इन्हें समाप्त कर सकती है।

वित्तीय शक्तियाँ

  • देश का वार्षिक बजट वित्त मंत्राी द्वारा राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से उसी के नाम से प्रस्तावित किया जाता है।
  • राष्ट्रपति ही लेखा परीक्षक की रिपोर्ट एवं वित्त आयोग की सिफारिशें संसद के समक्ष रखवाता है।
  • देश की आकस्मिक निधि पर राष्ट्रपति का नियंत्राण होता है। आकस्मिक जरूरत पड़ने पर वह संसद की अनुमति के बिना भी सरकार को इसमें से धन दे सकता है।
  • देश में  पूरक एवं अनुपूरक बजट भी राष्ट्रपति के नाम से ही संसद में रखा जाता है।
  • राष्ट्रपति राज्यों को अनुदान देने सम्बन्धी आज्ञाप्ति जारी करता है।
  • वित्त आयोग की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करता है।
  • राजकीय आय के राज्यों के मध्य वितरण का निर्धारण भी राष्ट्रपति के नाम से ही किया जाता है।
  • राष्ट्रपति की अनुमति के बिना नये कर लगाने अथवा करों में बढ़ोतरी करने सम्बन्धी विधेयक संसद में प्रस्तुत नहीं किये जा सकते।

न्यायिक शक्तियाँ 

  • राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। इसके साथ ही वह सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति के सम्बंध में नियमों का निर्धारण भी करता है।
  • राष्ट्रपति किसी अपराधी को क्षमा कर सकता है। इस क्षमा से अपराधी अपने समस्त दण्डों एवं दोषों से मुक्त हो जाता है। (अनुच्छेद 72))
  • राष्ट्रपति किसी अपराधी के दण्ड को कम भी कर सकता है, जैसे मृत्यु दण्ड को आजीवन कारावास में बदल देना, अथवा कठोर कारावास के स्थान पर सादा कारावास दे सकता है। राष्ट्रपति की इस शक्ति को लघुकरण कहा जाता है।
  • राष्ट्रपति किसी अपराधी के दण्ड की अवधि घटा भी सकता है, जैसे एक वर्ष के कारावास को छः मास का किया जा सकता है। इस शक्ति को परिहार कहा जाता है।
  • राष्ट्रपति किसी विशेष परिस्थिति अथवा तथ्य को देखते हुए दण्ड को कुछ समय के लिए स्थगित भी कर सकता है। इसे विराम कहा जाता है।
  • राष्ट्रपति किसी दण्डादेश पर विचार करने तक के समय के लिए उक्त दण्डादेश के कार्यान्वयन को रोक सकता है। राष्ट्रपति की यह शक्ति प्रतिलम्बन कही जाती है।
  • राष्ट्रपति क्षमादान सम्बन्धी उक्त शक्तियों का प्रयोग निम्न स्थिति में ही कर सकता है-
    (i) सैनिक न्यायालयों द्वारा दिये गये दण्डों पर।
    (ii) केन्द्रीय कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत दिये गये दण्डों पर, अर्थात् संघ एवं समवर्ती सूची के अधीन बनाये गये कानूनों के अधीन किये गये अपराधों पर।
    (iii) किसी अपराधी को यदि मृत्यु दण्ड दिया गया हो।
  • व्यवहार में उपर्युक्त परिस्थितियों में भी राष्ट्रपति अपने क्षमादान के अधिकार का प्रयोग मंत्रिमण्डल के परामर्श से ही करता है।
  • संविधान 143 के अनुसार भारत का राष्ट्रपति सार्वजनिक हित से सम्बन्धित किसी भी प्रश्न पर यदि वह स्वयं आवश्यक समझे तो सर्वोच्च न्यायालय से सम्बन्धित विषय पर कानूनी परामर्श ले सकता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदान किया गया परामर्श बाध्यकारी नहीं है। राष्ट्रपति उसे स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकता है।
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FAQs on राष्ट्रपति - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था - Revision Notes for UPSC Hindi

1. राष्ट्रपति - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था UPSC क्या है?
उत्तर: राष्ट्रपति - संशोधन नोटस, भारतीय राजव्यवस्था UPSC एक अद्यतन समाचार लेख है जो भारतीय राजव्यवस्था और UPSC परीक्षा से संबंधित है। इसमें राष्ट्रपति के संशोधन नोटस के बारे में जानकारी दी गई है जो भारतीय राजव्यवस्था के महत्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करता है।
2. राष्ट्रपति - संशोधन नोटस क्या करता है?
उत्तर: राष्ट्रपति - संशोधन नोटस भारतीय राजव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए संशोधन नोटस को संज्ञान में लेता है और इसे अद्यतित करने के लिए सरकार के साथ समन्वय करता है। इसका उद्देश्य भारतीय संविधान के मूल्यों, सिद्धांतों और दिशानिर्देशों की प्रभावी प्रशासनिक और न्यायिक अनुपालन को सुनिश्चित करना है।
3. राष्ट्रपति - संशोधन नोटस क्या कार्यक्षेत्र है?
उत्तर: राष्ट्रपति - संशोधन नोटस का कार्यक्षेत्र भारतीय संविधान में संशोधन करने के लिए तैयार किए गए संशोधन नोटस को संज्ञान में लेना है। इसका मतलब है कि जब भी किसी संविधानिक प्रावधान को बदलने की आवश्यकता होती है, तो सरकार को राष्ट्रपति को संशोधन नोटस साझा करके उसे अपनी सलाह और समर्थन के लिए अवगत करना होता है।
4. राष्ट्रपति - संशोधन नोटस कैसे जारी किए जाते हैं?
उत्तर: राष्ट्रपति - संशोधन नोटस को जारी करने के लिए सरकार को संशोधन नोटस को तैयार करना होता है। यह संशोधन नोटस संविधानिक प्रावधानों के संशोधन के लिए बनाए जाते हैं और इसे राष्ट्रपति को सौंपा जाता है। राष्ट्रपति इसे संज्ञान में लेते हैं और उसे मंजूर करने के लिए सरकार के साथ समन्वय करते हैं। इसके बाद, राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत संशोधन नोटस भारतीय संविधान में अंतिम रूप दिया जाता है।
5. भारतीय राजव्यवस्था UPSC क्या है?
उत्तर: भारतीय राजव्यवस्था UPSC भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) परीक्षा का आधिकारिक नाम है। यह भारतीय सिविल सेवा के सभी श्रेणियों के लिए एक राष्ट्रीय स्तरीय परीक्षा है जो सरकारी संगठनों और विभागों में सबसे उच्च स्तरीय पदों की भर्ती करती है। UPSC परीक्षा का उद्देश्य भारतीय प्रशासनिक सेवा को नौकरियों के लिए योग्य उम्मीदवारों की भर्ती करना है जो सरकारी सेवाओं में नेतृत्व की भूमिका निभा सकें।
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