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लेखांश - 2 (Mental Ability) UPSC Previous Year Questions | UPSC Topic-wise Previous Year Questions (Hindi) PDF Download

आगे आने वाले 7 (सात) प्रश्नांशों के लिए निर्देशः
निम्नलिखित पाँच परिच्छेदों को पढ़िए और प्रत्येक परिच्छेद के बाद आने-वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इस प्रश्नांशों के लिए आपके उत्तर केवल संबंधित परिच्छेद पर आधारित होने चाहिए। [2019]

परिच्छेद-1

भारत का आर्थिक पदछाप (फुटप्रिंट), इसकी जनसंख्या को देखते हुए, अभी भी US यूरोपीय संघ या चीन की तुलना में कम है। अन्य अर्थव्यवस्थाओं से सीखने के लिए इसके पास काफी कुछ है, तथापि इसे उन समाधनों को ही कार्यन्वित करना चाहिए जो इसकी अनूठी परिस्थितियों के अनुरूप हैं। भारत को वर्तमान अधोगामी उपागम की बजाय एक सहयोग आधारित प्रभावी दीर्घकालिक नियामक व्यवस्था की खास तौर पर आवश्यकता है। विनियम वांछित परिणाम लाने का प्रयास करते हैं, तथापि ये किसी न किसी कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक उपकरण के रूप में बार-बार इस्तेमाल किए जाते हैं। प्रायः विनियम रोज़गार और आर्थिक संवृद्धि पर पड़ने वाले असर-या कम प्रतिबंधी विकल्पों का विचार करने में असफल रह जाते हैं। विनियमों का इस्तेमाल भविष्य में और अधिक व्यापक रूप से साझी होने वाली समृद्धि की कीमत पर स्थानीय बाजारों को बचाने में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, विनियमों के अनिवार्य रूप से अनेक अनैच्छिक परिणाम होते हैं। आज की अति प्रतियोगी वैश्विक अर्थव्यवस्था में विनियमों को ऐसे‘‘हथियारों’’ के रूप में देखा जाना चाहिए जो अधिकांश नागरिकों के आर्थिक कल्याण को समुन्नत करते हुए लागत के औचित्य के साथ सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ लाने का प्रयास करें।
प्रश्न.24. उपर्युक्त परिच्छेद से निम्नलिखित में से कौन-सा एक, सर्वाधिक तर्कसंगत, विवकेपूर्ण और निर्णायक निष्कर्ष निकाला जा सकता है ? [2019] 
(क) एक बेहतर नियामक व्यवस्था भारत को इसकी जनसंख्या के यथा-उपुयक्त आमाप की अर्थव्यवस्था प्राप्त करने में सहायक होगी।
(ख) प्रतियोगी 
वैश्विक अर्थव्यवस्था में, भारत को विनियमों का युक्तिपूर्वक ही इस्तेमाल करना चाहिए।
(ग) भारत में विनियम आज की अति प्रतियोगी वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अपने एकीकरण का समर्थन नहीं करते।
(घ) भारत की नियामक व्यवस्था के विकास के रोजगार के सृजन और आर्थिक संवृद्धि के विचार को प्रबल रूप में रखा जाना चाहिए।

उत्तर. (ख) 
उपाय:
परिच्छेद के अनुसार भारत को स्थानीय बाजार को इसके खर्च पर सुरक्षा प्रदान करने के बजाय व्यापक रूप से साझा समृद्धि के उद्देश्य से विनियमों की एक सहयोगात्मक प्रणाली की आवश्यकता है। अंतिम वाक्य का संदर्भ लें। शब्द ‘हथियार’ विनियमों के एक रणनीतिक उपयोग की ओर संकेत करता है जो लागत-न्यायोचित लाभ एवं समग्र कल्याण चाहता है।

प्रश्न.25. उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैं: [2019] 
आजकल की वैश्विक अर्थव्यवस्था में,
1. विनियमों का प्रभावी इस्तेमाल स्थानीय बाजारों को बचाने के लिए नहीं किया गया है।
2. विनियमों का कार्यान्वयन करते समय समाजिक एवं पर्यावरणीय सरोकारों की पूरे विश्व में सरकारों द्वारा आमतौर पर उपेक्षा की जाती है।
 
उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणा/पूर्वधारणाएँ वैध है/हैं ? 
(क) केवल 1
(ख) केवल 2
(ग) 1 और 2 दोनों  
(घ) न तो 1 न ही 2 

उत्तर. (ख)
उपाय:
परिच्छेद के अनुसार व्यापक समृद्धि की अनदेखी करने वाले स्थानीय बाजारों की सुरक्षा के लिए विनियमों का उपयोग किया जाता है। अतः 1 सही नहीं है। परिच्छेद के अंतिम वाक्य के अनुसार लागत-प्रभावशीलता व सामाजिक, पयार्वरणीय एवं आर्थिक मुद्दों को, सामान्यतः विनियमों को लागू करते समय अनदेखा किया जाता है।

परिच्छेद-2

किसी अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने अल्प-पोषित तथा सुपोषित शिशुओं और छोटे बच्चों के सूक्ष्मजीवों (माइक्रोबायोम्स) की तुलना की। कुपोषित और स्वस्थ बच्चों के मल के नमूनों से आहार-नली के रोगाणुओं को अलग किया गया। एक ही उम्र के स्वस्थ बच्चों में पाए गए सुविकसित ‘‘परिपक्व’’ सूक्ष्मजीवोम की तुलना में कुपोषित बच्चों में सूक्ष्मजीवोम ‘‘अपरिपक्व’’ और कम विविध पाया गया। कुछ अध्ययनों के अनुसार, माँ के दूध के रासायनिक संघटन में एक आपरिवर्तित शर्करा (सायलीलेटेड ओलिगोसैक्काराइड्स) पाई गई है। इसका शिशु द्वारा अपने खुद के पोषण के लिए उपयोग नहीं किया जाता। तथापि, शिशु का सूक्ष्मजीवोम संरचित करने वाले जीवाणु इस शर्करा पर, जो उनके खाद्य की तरह काम आता है, फलते-फूलते हैं। कुपोषित माताओं के दूध में इस शर्करा की मात्रा कम होती है। परिणामस्वरूप, उनके शिशुओं के सूक्ष्मजीवोम परिपक्व होने में विफल हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप शिशुओं में कुपोषण पाया जाता है।
प्रश्न.26. उपर्युक्त परिच्छेद से निम्नलिखित में से कौन-सा एक, सर्वाधिक तर्कसंगत, विवकेपूर्ण और निर्णायक निष्कर्ष  निकाला जा सकता है ? [2019] 
(क) यदि बच्चों में कुपोषण की दशा आहार-नली के जीवाणुओं के कारण होता है, तो इसका उपचार नहीं किया जा सकता।
(ख) कुपोषित शिशुओं की आहार-नलियों में परिपक्व सूक्ष्मजीवोम संरोपित किए जाने चाहिए।
(ग) कुपोषित माताओं के शिशुओं को माँ के दूध की जगह डेरी का सायलीलेटेड ओलिगोसेक्कराइड्स से प्रबलित दूध पिलाया जाना चाहिए।
(घ) पोषण पर आहार-नली के जीवाणुओं के अहानिकर प्रभावों पर अनुसंधान के नीतिगत निहितार्थ हैं।

उत्तर. (घ)
उपाय: 
कुपोषित का समाधान नहीं है इसका उल्लेख परिच्छेद में नहीं किया गया है; शिशुओं के आँत में इंजेक्ट किए जाने वाला परिपक्व मिक्रोबॉयोम एक चिकित्सीय विपथन है तथा डेयरी दूध माँ के दूध का विकल्प नहीं हो सकता है। हालाँकि आंत्रीय जीवाणु के सौम्य प्रभावों पर किया जाने वाला अनुसंधान खाद्य एवं पोषण पर सरकार की नीतियों का आधार बन सकता है।

प्रश्न.27. उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैंः [2019] 
1. अपरिपक्व आहार-नली जीवाणु संघटन के कारण कुपोषण से ग्रस्त बच्चों के उपचार के लिए एक समाधन प्रसंस्कृत जीवाणुयुक्त (प्रोबायोटिक) खाद्य पदार्थ हैं। 
2. कुपोषित माताओं के शिशुओं में आमतौर पर कुपोषित होने की प्रवृत्ति है।
उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणा/पूर्वधारणाएँ वैध है/हैं ?
(क) केवल 1
(ख) केवल 2
(ग) 1 और 2 दोनों  
(घ) न तो 1, और न ही 2
उत्तर. 
(ख)
उपाय: 
पूर्वधारणा 1 मान्य नहीं है, क्योंकि कुपोषित शिशुओं के इलाज के लिए परिच्छेद में प्रोबायोटिक के उपयोग का उल्लेख नहीं है। परिच्छेद में पूर्वधारणा 2 की स्पष्टता है और यह अधिक मान्य है।

परिच्छेद-3

पश्चिमी अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर तापमान पिछले पाँच दशकों में भूमंडलीय औसत से लगभग पाँच गुना तेजी से बढ़े हैं। अनुसंधानकर्ताओं को अब पता लगा है कि पिघलते हुए हिमनदों के कारण अंटार्कटिक प्रायद्वीप के तटीय जलों में नितल जीवजात (बेंथोस) के बीच कुछ जाति विविधता नष्ट हो रही है, जिसका प्रभाव समग्र समुद्र अधस्तल पारितंत्र पर पड़ रहा है। उनका विश्वास है कि जल में निलंबित अवसाद के बढ़े हुए स्तर ही तटीय क्षेत्र में क्षीयमाण जैव-विविधता का कारण है।
प्रश्न.28. उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैंः [2019] 
1. भूमंडलीय तापन के कारण अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा हिमनदों के क्षेत्र तेजी से गर्म होते हैं।
2. भूमंडलीय तापन के परिणामस्वरूप कछु क्षेत्रों में समुद्र अधस्तलीय अवसादन हो सकता है।
3. पिघलते हुए हिमनद कछु क्षेत्रों में समुद्री जैव -विविधता को कम कर सकते हैं।

उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणा/पूर्वधारणाएँ वैध है/हैं ?
(क) केवल 1 और 2
(ख) केवल 3
(ग) केवल 2 और 3  
(घ) 1, 2 और 3
उत्तर. 
(घ)
उपाय:
 
परिच्छेद के प्रथम वाक्य से पूर्वधारणा 1 की पुष्टि होती है। परिच्छेद के अंतिम वाक्य.....‘निलंबित तलछट के स्तर में वृद्धि....’ से पूर्वधारणा 2 की पुष्टि होती है। द्वितीय वाक्य-‘शोधकर्ताओं ने अब पाया है....., से पूर्वधारणा 3 की पुष्टि स्पष्टत: होती है।

परिच्छेद-4

किसी अनुसंधान दल के उल्लू के एक दीर्घकालीन बसेरे की परीक्षा की। उल्लू छोटे स्तनपायी जंतुओं का शिकार करते हैं, और दीर्घकाल में एकत्रित होने वाले उन आहारों के उत्सर्जित अवशिष्टों से हमें पूरी पिछली सहस्त्राब्दी में छोटे स्तनपायी जंतुओं की बनावट और संरचना की समझ मिलती है। इस अनुसंधान से यह संकेत मिला है कि जब पृथ्वी लगभग 13,000 वर्ष पूर्व तीव्र तापन की अवधि से गुज़री, तब छोटे स्तनपायी जंतुओ का समुदाय स्थिर और प्रतिस्कन्दी बना रहा। किन्तु, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चतुर्थांश से पर्यावरण में मानव-कृत कारणों से हुए परिवर्तनों के परिणामस्वरूप जैवमात्रा और ऊर्जा-प्रवाह में बहुत बड़ी गिरावट आती गई। ऊर्जा-प्रवाह में इस नाटकीय गिरावट का अर्थ यह है कि आधुनिक पारितंत्रों में उतनी सहजता से अनुकूलन नहीं हो रहा है जितनी सहजता से अतीत में हुआ करता था।
प्रश्न.29. उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैंः [2019] 
1. भूमंडलीय तापन बारंबार होने वाली एक प्राकृतिक घटना है।
2. आसन्न भूमंडलीय तापन का छोटे स्तनपायी जंतुओं पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
3. पृथ्वी के प्राकृतिक प्रतिस्कंदन में कमी के लिए मनुष्य उत्तरदायी है।

उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणा/पूर्वधारणाएँ वैध है/हैं ?
(क) केवल 1 और 2
(ख) केवल 3
(ग) केवल 2 और 3  
(घ) 1, 2 और 3
उत्तर. 
(ख)
उपाय:
पूर्वधारणा 1 अमान्य है क्योंकि वैश्विक ऊष्मन का वर्तमान चरण तथा 13000 वर्ष पूर्व की घटित अवस्था, प्राय: होने वाली घटना नहीं है। परिच्छेद के अनुसार पूर्वधारणा 2 विरोधाभासी है। केवल पूर्वधारणा 3 परिच्छेद के अनुसार स्पष्ट है, यहाँ यह उल्लेखित है कि 13000 वर्ष पूर्व तीव्र ऊष्मन के दौरान छोटे स्तनपायी समूह स्थिर एवं प्रतिरोधी थे, लेकिन ऊष्मन के वर्तमान चरण में, वे आसानी से अनुकूलित नहीं हो पा रहे हैं।

परिच्छेद-5

खाद्य की किस्मों का पूरे विश्व में विलोपन हो रहा है और यह तेजी से हो रहा है। उदाहरण के लिए, उन्नीसवीं शताब्दी में उगाई जाने वाली सेब की 7,000 किस्मों में से 100 से भी कम बची है। फिलिपींस में कभी धान की हजारों किस्में फल-फूल रही थी; किन्तु अब मुश्किल में सौ किस्में तक ही उपजायी जा रही हैं। चीन में मात्र एक शताब्दी पूर्व खेती में प्रयुक्त होने वाली गेहूँ की किस्मों में से 90 प्रतिशत किस्में विलुप्त हो चुकी है। विगत समय में किसानों ने बहुत परिश्रम से अपने स्थानीय जलवायु और पर्यावरण की विलक्षणताओं के काफी अनुरूप फसलों को उपजाया और विकसित किया। हाल के पिछले वर्षों में, कुछ थोड़ी सी भारी उपज वाली किस्मों पर और खाद्य के प्रौद्योगिकी-चालित उत्पादन तथा वितरण पर हमारी भारी निर्भरता के कारण खाद्य फसलों की विविधता में कमी हो रही है। यदि कोई उत्परिवर्तनकारी फसल रोग या भावी जलवायु परिवर्तन उन कुछ फसल पादपों का संहार कर दे, जिन पर हम अपनी बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए निर्भर हो चुके हैं, तो हमारे लिए उन कुछ किस्मों की घोर आवश्यकता हो सकती है, जिन्हें हमने विलुप्त हो जाने दिया। 
प्रश्न.30. उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैंः [2019]
1. पादप जातियों के बड़े पैमाने पर विलोपन होने का प्रमुख कारण मनुष्य ही रहे हैं।
2. मुख्यत: स्थानीय रूप से उपजायी जा रही फसलों के उपभोग से फसल विविधता सुनिश्चित होती है।
3. खाद्य उत्पादन और वितरण की वर्तमान शैली अंततोगत्वा निकट भविष्य में खाद्य की कमी की समस्या की ओर ले जाएगी।
4. हमारी खाद्य सुरक्षा, स्थानीय रूप से उपजायी जा रही फसलों की किस्मों को बचाए रखने की हमारी योग्यता पर निर्भर हो सकती है।

उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणाएँ वैध हैं ?
(क) 1 और 3
(ख) 2 और 4
(ग) 2 और 3  
(घ) 1 और 4
उत्तर.
(ख)
उपाय: 
परिच्छेद में यह तर्क दिया गया है कि अपने जलवायु तथा पर्यावरण की विशिष्टताओं के प्रति अनुकूलित फसलों का उगाना व उपभोग करना अतीत में फसल विविधता को सुनिश्चित किया था; जबकि अधिक उपज देने वाली किस्मों तथा प्रौद्योगिकी से उत्पादन एवं वितरण के लिए हमारी अत्यधिक निर्भरता खाद्य फसलों में विविधता को कम कर रही है।

निम्नलिखित 7 (सात) प्रश्नांशों के लिए निर्देशः
नीचे दिए गए चार परिच्छेदों को पढ़िए और प्रत्येक परिच्छेदों के नीचे आने-वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इस प्रश्नांशों के लिए आपके उत्तर केवल संबंधित परिच्छेदों पर आधारित होने चाहिए। [2018] 

परिच्छेद-1

‘मरूभवन (डेजर्टीफिकेशन)’ किसी पारितंत्र की जैव उत्पादकता के ह्रास की उस प्रक्रिया की व्याख्या करने वाला शब्द है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादकता की संपूर्ण हानि हो जाती है। यद्यपि यह घटना प्रायः शुष्क, अर्धशुष्क और अल्पार्द्र पारितंत्रों से जुड़ी हुई है, तथापि आर्द्र उष्णकटिबंधों में भी इसका प्रभाव अत्यंत नाटकीय हो सकता है। मानव-प्रभावित स्थलीय पारितंत्रों का दरिद्रण (इंपावेरिशमेंट) विविध रूपों में दिख सकता है: त्वरित अपरदन, जैसा कि देश के पवर्तीय क्षेत्रों में है भूमि का लवणीभवन, जैसा कि देश के अर्धशुष्क और शुष्क ‘हरितक्रांति’ क्षेत्रों, उदाहरणार्थ हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में है और स्थल गुणता ह्रास, जो कि भारत के सभी मैदानों पर वनस्पति-आच्छादन के व्यापक ह्रास और धान/गेंहूँ की एकरस एकधान्य कृषि के कारण होने वाली एक आम घटना है। वनोन्मूलन का एक प्रमुख दुष्परिणाम जलविज्ञान में प्रतिकूल परिर्वतनों और संबंधित मृदा और पोषकों की हानियों से संबंधित है। वनोन्मूलन के दुष्परिणाम निरपवाद रूप से अपरदनकारी हानियों के माध्यम से होने वाले स्थल अवक्रमण के कारण उत्पन्न होते हैं। उष्णकटिबंधीय एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में अपरदन उच्चतम स्तर पर हैं। उष्णकटिबंधों पर पहले से ही इसकी उच्च दरें वनोन्मूलन के, और वनों के नष्ट हो जाने के उपरांत किए जाने वाले बेमेल भूमि-प्रबंधन प्रणालियों के कारण चिंताजनक दर से बढ़ रही है (उदाहरणार्थ, भारतीय संदर्भ में प्रमुख नदीतंत्रों- गंगा और ब्रह्मपुत्र के माध्यम से)। पर्वत संदर्भ में में, पर्वतीय मृदा का कम होता जा रहा आर्द्रता-धारण, हिमालयी क्षेत्र में अंतर्भौम झरनों और अपेक्षाकृत छोटी नदियों के सूखते जाने का श्रेय वन-आच्छादन में आए उग्र परिर्वतनों को दिया जा सकता है। एक अप्रत्यक्ष परिणाम, जल के माध्यम से होने वाले उच्चभूमि-निम्नभूमि की अन्योन्यक्रिया में आया उग्र बदलाव है। असम के चायरोपण करने वालों की तात्कालिक चिंता ब्रहापुत्र के कछारों के साथ आने वाले बारंबार आप्लावन के कारण चाय-बागानों को होने वाली क्षति के बारे में है, एवं चाय-बागान की क्षति और परिणास्वरूप होने वाली चाय उत्पादकता की हानि, नदीतंत्र के बदलते मार्ग और गाद-भराई (सिल्टेशन) के कारण नदी-तल के बढ़ते जाते स्तर के कारण हैं। स्थल मरुभवन के अंतिम परिणाम है: मृदा निम्नीकरण, उपलब्ध जल और उसकी गुणता में परिवर्तन, और इसके परिणामस्वरूप, ग्रामीण समुदाय के आर्थिक कल्याण के लिए आवश्यक खाद्य, चारा और ईंधन-काष्ठ उत्पादन में होने वाला ह्रास।
प्रश्न.31. इस परिच्छेद के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-से वन-आच्छादन में आए ह्रास के परिणाम हैं ? (2018)
1. उपरिमृदा की हानि 
2. अपेक्षाकृत छोटी नदियों की हानि 
3. कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव 
4. भौमजल की हानि
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(क) केवल 1, 2 और 3
(ख) केवल 2, 3 और 4
(ग) केवल 1 और 4  
(घ) 1, 2, 3 और 4
उत्तर. 
(घ)
उपाय:
दिए गए सभी विकल्प वन आच्छादन में आए ह्रास के परिणाम हैं। ये निष्कर्ष परिच्छेद के इन पंक्तियों से प्राप्त किए जा सकते हैं ‘‘उत्पादकता की संपूर्ण हानि’’, ‘‘त्वरित अपरदन, जैसा कि देश के पर्वतीय क्षेत्रों में है’’, ‘‘जल विज्ञान में प्रतिकूल परिवर्तनों और संबंधित मृदा और पोषकों की हानियों से संबंधित’’, ‘‘हिमालयी क्षेत्र में अंतर्भौम झरनों और अपेक्षाकृत छोटी नदियों के सूखते जाने का श्रेय .............’’।

प्रश्न.32. इस परिच्छेद से, निम्नलिखित में से कौन-सा/से सही निष्कर्ष (इंफेरेंस) निकाला जा सकता है/निकाले जा सकते हैं ? (2018)
1. वनोन्मूलन के कारण नदियों के मार्ग में परिवर्तन हो सकता है। 
2. भूमि का लवणीभवन केवल मानवीय क्रियाकलाप के कारण होता है।
3. मैदानों में गहन एकधान्य कृषि-प्रथा, उष्णकटिबंधीय एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में मरुभवन का प्रमुख कारण है। 
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(क) केवल 1
(ख) केवल 1 और 2
(ग) केवल 2 और 3  
(घ) उपर्युक्त में से कोई भी सही निष्कर्ष नहीं  है

उत्तर. (क)
उपाय: 
कथन (1) को- ‘‘असम के चाय रोपण करने वालों ......... नदी तंत्र के बदलते मार्ग  ...........।’’ वाक्य से प्राप्त किया जा सकता है। वाक्य-‘‘मानव प्रमाणित स्थलीय परितंत्रों का दरिद्रण...... भूमि का लवणीभवन, जैसा कि ..........।’’ से यह स्पष्ट नहीं होता है कि केवल मानव गतिविधियाँ ही मृदा लवणीभवन का कारण हैं। हो सकता है प्राकृतिक कारण भी हो। परिच्छेद में यह उल्लेखित है कि उष्णकटिबंधीय एशिया, अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका में वनोन्मूलन के कारण अपरदन उच्चतम स्तर पर है। भारतीय मैदानों के संदर्भ में केवल एकधान्य कृषि का उल्लेख हैं।
अतः कथन (1) सही निष्कर्ष है।

प्रश्न.33. ‘मरुभवन’ के संदर्भ में, जैसा कि परिच्छेद में वर्णन किया गया है, (2018)
निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैं ?
1. मरुभवन, केवल उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की एक घटना है। 
2. बाढ और मरूभवन, वनोन्मूलन के अनिवार्य परिणाम हैं। 
उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणा/पूर्वधारणाएँ वैध है/हैं ?
(क) केवल 1
(ख) केवल 2
(ग) 1 और 2 दोनों  
(घ) न तो 1 और न ही 2
उत्तर. 
(ख)
उपाय:
पूर्वधारणा (1) वाक्य- ‘‘यद्यपि यह घटना ............... अत्यन्त नाटकीय हो सकता है। ’’ के सदंर्भ  में अवैध है। इस वाक्य से यह पता चलता है कि घटना उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। पूर्वधारणा (2) वैध है क्योंकि परिच्छेद से यह पता चलता है कि बाढ़ तथा मरुभवन का कारण वनोन्मूलन है।

परिच्छेद-2

जलवायु परिवर्तन का सामना करने और उत्पादक कृषि, वानिकी तथा मत्स्यपालन को सुनिश्चित करने के लिए प्राकृतिक परिसम्पत्तियों की विविधता की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए, ऐसी फसल किस्मों की आवश्यकता है जो सूखा, गर्मी और बढी हुई  CO2 के अंतगर्त अच्छा निष्पादन करें। लेकिन फसलों को चनुने के लिए निजी-क्षेत्र और किसान-प्रेरित प्रक्रिया अतीत अथवा वर्तमान दशाओं में अपनाई गई एकरूप किस्मों का समर्थन करती है न कि उन किस्मों का जो अपेक्षाकृत गर्म, आर्द्र अथवा शुष्क दशाओं में सतत उच्च उत्पादन देने में समर्थ हैं। वर्तमान फसलों, नस्लों और उनके वन्य संबंधियों के आनुवंशिक संसाधनों की अपेक्षाकृत व्यापक निकायों (पूल) को संरक्षित रखने के लिए त्वरित प्रजनन कार्यक्रमों की आवश्यकता है। अपेक्षाकृत अक्षुण्ण पारितंत्रों, जैसे कि वनारोपित जलग्रहण-क्षेत्र, मैंग्रोव, आर्द्रभूमियाँ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोक सकते हैं। बदलती हुई जलवायु के अंतर्गत ये पारितंत्र स्वयं संकट में हैं और प्रबंध उपागमों को अपेक्षाकृत अधिक पूर्व-सक्रिय और अनुकूली बनाना होगा। प्राकृतिक क्षेत्रों के बीच के संयोजनों, जैसे कि प्रवासन गलियारों, की आवश्यकता जातियों कि गतिशीलता सुकर बनाने के लिए होगी जिससे कि जलवायु परिवर्तन का सामना किया जा सके।
प्रश्न.34. उपर्युक्त परिच्छेद के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-से, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए सहायक होंगे ?   (2018)
1. प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण 
2. अपेक्षाकृत व्यापक जीन पूल का संरक्षण 
3. विद्यमान फसल प्रबंधन पद्धतियाँ 
4. प्रवासन गलियारे
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(क) केवल 1, 2 और 3
(ख) केवल 1, 2 और 4
(ग) केवल 3 और 4  
(घ) 1, 2, 3 और 4

उत्तर. (ख)
उपाय: 
परिच्छेद में बिंदु (3) के अतिरिक्त सभी बिंदुओं का उल्लेख है। इन्हें निम्न पंक्तियों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है- ‘‘वर्तमान फसलों, नस्लों और उनके वन्य संबंधियों के आनुवंशिक संसाधनों की अपेक्षाकृत व्यापक निकायों को संरक्षित रखने के लिए त्वरित प्रजनन कार्यक्रमों की आवश्यकता है।’’, ‘‘अपेक्षाकृत अक्षुण्ण पारितंत्रों, जैसे कि वनरोपित जलग्रहण क्षेत्र, मैंग्रोव, आर्द्रभूमियाँ ............’’, तथा, ‘‘प्राकृतिक क्षेत्रों के बीच के संयाजेनों, जैसे कि प्रवासन...................’’।

प्रश्न.35. उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैं:  (2018)
1. जीविका का विविधीकरण, जलवायु परिवर्तन का सामना करने की एक योजना के रूप में कार्य करता है। 
2. एकधान्य फसल-पद्धति को अपनाने से पादप किस्में और उनके वन्य संबंधी, समाप्ति की ओर अग्रसर होते हैं। 
उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणा/पूर्वधारणाएँ वैध है/हैं ?
(क) केवल 1
(ख) केवल 2
(ग) 1 और 2 दोनों  
(घ) न तो 1 और न ही 2
उत्तर. 
(ख)
उपाय: परिच्छेद के प्रथम अर्द्ध भाग में उल्लेखित ‘‘एकधान्य कृषि’’ की परिचर्चा से इस पूर्वधारणा को प्राप्त किया जा सकता है।

परिच्छेद-3

आज शीर्ष पर्यावरणीय चुनौती जन इनकी आकांक्षाओं का समुच्चय है। यदि आकांक्षाएँ द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की किफायती प्रकार की हों, तब बहुत अधिक संभावनाएँ बनती हैं, उस दृष्टिकोण की तुलना में जो पृथ्वी को एक विशालकाय शाॅपिंग माॅल की भाँति देखता है। हमें चमक-दमक के आकर्षण के परे जाना चाहिए तथा यह समझना चाहिए कि पृथ्वी एक जैविक तंत्र की भाँति कार्य करती है।
प्रश्न.36. उपर्युक्त परिच्छेद से, निम्नलिखित में से कौन-सा सर्वाधिक निर्णायक और तार्किक निष्कर्ष (इंफेरेंस) निकाला जा सकता है?   (2018)
(क) पृथ्वी मानव की खाद्य, वस्त्र तथा आश्रय की केवल आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है।
(ख) पर्यावरणीय चुनौती का सामना करने का एकमेव मार्ग जनसंख्या को सीमित करना है।
(ग) हमारे लिए उपभोक्तावाद को कम करना अपने ही हित में है।
(घ) केवल जैविक तंत्रों का ज्ञान ही हमें पृथ्वी को बचाने में सहायक है।
उत्तर. (ग)
उपाय: इसका निष्कर्ष निम्न पंक्तियों से प्राप्त किया जा सकता है- “यदि आकांक्षाएं द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की किफायती प्रकार की हों, तब बहुत अधिक संभावनाएं बनती हैं। उस दृष्टिकोण की तुलना में जो पृथ्वी को एक विशालकाय शॉपिंग मॉल की भांति देखता है।

परिच्छेद-4

कुछ लोगों का विश्वास है कि नेतृत्व एक ऐसा गुण है जो या तो जन्म से होता है या बिलकुल नहीं होता। यह सिद्धांत मिथ्या है, क्योंकि नेतृत्व की कला अर्जित की जा सकती है और अवश्य ही सिखाई जा सकती है। यह खोज युद्ध के समय में की गई है और प्राप्त परिणाम प्रशिक्षकों को भी आश्चर्य में डाल सकते हैं। बायें जाने या दायें जाने के विकल्पों का सामना होने पर, हर सैनिक जल्दी ही समझ जाता है कि किसी भी तरफ जाने का एक त्वरित निर्णय लेना अंतहीन चर्चा में लगे रहने से बेहतर है। किसी भी दिशा का एक दृढं चुनाव कर लें तो उसमें सही होने का तब भी संयोग हो सकता है जबकि कुछ न करना लगभग निश्चित तौर पर गलत है।
प्रश्न.37. इस परिच्छेद के लेखक का यह मत है कि    (2018)
(क) नेतृत्व को केवल युद्ध के अनुभव से ही सिखाया जा सकता है
(ख) नेतृत्व का अर्जित भी किया जा सकता है साथ ही सिखाया भी जा सकता है
(ग) प्रशिक्षण के परिणाम दिखाते हैं कि अपेक्षा से अधिक लोग नेतृत्व अर्जित कर लेते हैं
(घ) कठिन प्रशिक्षण के बावजूद बहुत कम नेता बनते हैं
उत्तर. 
(ख)
उपाय: परिच्छेद के निम्न पंक्तियों में यह स्पष्टतः उल्लेखित है “यह सिद्धांत मिथ्या है, क्योंकि नेतृत्व की कला अर्जित की जा सकती है और सिखाई भी जा सकती है।”

निम्नलिखित 4 (चार) प्रश्नांशों के लिए निर्देशः
नीचे दिए गए चार परिच्छेदों को पढ़िए और परिच्छेदों के नीचे बाद आने-वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इस प्रश्नांशों के आपके उत्तर केवल इन परिच्छेदों पर ही आधारित होने चाहिए। [2018]

परिच्छेद-1

विश्व की जनसंख्या 1990 में 1.6 अरब के लगभग थी - आज यह 7.2 अरब के लगभग है और बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि पर किए गए हाल के आकलनों से यह पूर्वानुमान होता है कि विश्व की जनसंख्या 2050 में 9.6 अरब और 2100 में 10.9 अरब हो जाएगी। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के असदृश जहाँ केवल तीन से चार प्रतिशत जनसंख्या ही कृषी में लगी है, भारत की लगभग 47 प्रतिशत जनसंख्या कृषी पर निर्भर है। यदि भारत सेवा क्षेत्र में लगातार प्रगति करता रहे और विनिर्माण क्षेत्र तेजी से बढ़ता रहे, तो भी यह संभावना की जाती है की 2030 के आस-पास जब भारत चीन से आगे निकल कर विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश होगा, भारत की लगभग 42 प्रतिशत जनसंख्या प्रधान रूप से कृषि पर निर्भर होगी।
प्रश्न.38. उपर्युक्त परिच्छेद से निम्नलिखित में से कौन-सा सर्वाधिक तार्किक और तर्कसंगत निष्कर्ष (इंफेरेंस) निकाला जा सकता है?    (2018)
(क) कृषि क्षेत्र की समृद्धता भारत के लिए क्रांतिक महत्त्व की है।
(ख) भारतीय अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से इसकी कृषि पर निर्भर करती है।
(ग) भारत को अपनी तेजी से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए कठोर उपाय अपनाने चाहिए।
(घ)  भारत के कृषि-समुदायों को अपनी आर्थिक दशाओं में सुधार लाने के लिए अन्य व्यवसायों को अपना लेना चाहिए।
उत्तर. 
(ख)
उपाय: परिच्छेद से यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान में भारत की जनसंख्या का 47% भाग कृषि पर आधरित है। यह अनुमान है कि वर्ष 2030 तक भारत की जनसंख्या का 42% भाग कृषि पर निर्भर होगा। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यता: कृषि पर निर्भर करती है।

परिच्छेद-2

खाद्य-जात बीमारियाँ उत्पन्न करने वाले बहुत-से रोगाणुओं के विषय में जानकारी नहीं है। खाद्य सक्रंमण खेत से लेकर थाली तक किसी भी चरण में हो सकता है। चूँकी खाद्य विषाक्तीकरण की अनेकों घटनाएँ अप्रतिवेदित रह जाती हैं, वैश्विक खाद्य-जात बीमारियों का सही प्रसार अज्ञात है। अंतर्राष्ट्रीय परिवेक्षण में सुधार के कारण जन जागरुकता में बढ़ातरी हुई है, तदपि खाद्य उत्पादन में तीव्र वैश्वीकरण से खाद्य को नियंत्रित करना तथा अनुरेखित करना कठिनतर होने के कारण उपभोक्ता की भेद्यता बढ़ गई  है।  डब्ल्यू.एच.ओ. के एक अधिकारी का कथन है, ‘‘विश्व हमरी प्लेट पर है। ’’
प्रश्न.39. निम्नलिखित में से कौन-सा उपर्युक्त परिच्छेद का सर्वाधिक तार्किक और उपनिगमन (कोरोलरी) है?    (2018)
(क) खाद्य के विकल्प अधिक होने के कारण जोखिम अधिक आते हैं।
(ख) समस्त खाद्य-जात बीमारियों का उद्घम खाद्य प्रसंस्करण है।
(ग) हमें केवल स्थानीय उत्पादित खाद्य पर निर्भर रहना चाहिए।
(घ) खाद्य उत्पादन के वैश्वीकरण में कटौती लानी चाहिए।
उत्तर. 
(क)
उपाय: परिच्छेद के वाक्य, ‘‘......... खादय उत्पादन में तीव्र वैश्वीकरण ..........’’ से यह निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है।

परिच्छेद-3

मैं वज्ञैानिक हूँ, मेरा सौभाग्य है कि मैं इस प्रकार का व्यक्ति हूँ जो विज्ञान के साधनों का उपयोग प्रकृति को समझ सकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकृति सचमुच में ऐसे हैं, जिनका उत्तर वास्तव में विज्ञान नहीं दे सकता, जैसे कि कुछ भी न होने के स्थान पर कुछ क्यों है? हम यहाँ क्यों हैं? उन दायरों में मैने पाया है कि आस्था इनके उत्तरों के लिए बेहतर मार्ग उपलब्ध कराती है। मैं इसको विषम रूप से कालदोषयुक्त पाता हूँ कि आज की संस्कृति में एक व्यापक धारणा प्रतीत होती है कि वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विचार असगंत हैं। 
प्रश्न.40. उपर्युक्त परिच्छेद से निम्नलिखित में से कौन-सा सर्वाधिक तार्किक और तर्कसंगत निष्कर्ष (इंफेरेंस) निकाला जा सकता है?    (2018)
(क) यह विज्ञान न होकर आस्था है जो अंततः मानव-जाति की सभी समस्याओं को सुलझा सकती है।
(ख) विज्ञान और आस्था आपस में संपूरक हो सकते हैं यदि उनके समुचित दायरों को समझ लिया जाए।
(ग) कुछ ऐसे अत्यंत मूलभूत प्रश्न हैं जिनका उत्तर विज्ञान अथवा आस्था किसी से नहीं दे सकते हैं।  
(घ) आज की संस्कृति में वैज्ञानिक विचारों को, आध्यात्मिक विचारों की तुलना में अधिक महत्व दिया जा रहा है।
उत्तर. 
(ख)
उपाय: लेखक का कथन है कि कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर विज्ञान के पास नहीं है परंतु उनका उत्तर आस्था दे सकती है। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विज्ञान तथा आस्था एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं, यदि उनके वास्तविक प्रक्षेत्र को समझा जाए। इसके अतिरिक्त, विकल्प (b) से भिन्न अन्य विकल्प परिच्छेद के सदंर्भ  के अनुसार अप्रासंगिक हैं।

परिच्छेद-4

यद्यपि मैंने बहुत-सी पुरानी परम्पराओं एवं प्रथाओं को त्याग दिया है और मैं उत्सुक हूँ कि भारत स्वतः उन सभी बेड़ियों को उतार फेंके जो बाँधती हैं, रोकती हैं और उसके लोगों को विभाजित करती हैं, और उनमें से अधिसंख्या लोगों का दमन करती हैं तथा शरीर एवं आत्मा के स्वतंत्र विकास को रोकती हैं। यद्यपि मैं ये सब चाहता हूँ फिर भी अपने-आप को अतीत से पूरी तरह काटना नहीं चाहता। मुझे अपनी महान विरासत पर गर्व है जो हमारी रही है और है भी और मैं सचेत हूँ कि मैं भी, हम सभी की तरह, उस अटूट श्रृंखला की कड़ी हूँ जो इतिहास के उषाकाल के भारत के अविस्मरणीय अतीत से संबद्ध है।
प्रश्न.41. लेखक चाहता है कि भारत अपने को अतीत के बंधनों से मुक्त करे, क्योंकि    (2018)
(क) वह भूतकाल के औचित्य को नहीं समझ पा रहा है
(ख) ऐसा कुछ नहीं है जिस पर गर्व किया जा सके
(ग) उसकी भारत के इतिहास में रुचि नहीं है  
(घ) वे उसके भौतिक और आध्यात्मिक विकास को रोकते हैं
उत्तर. 
(घ)
उपाय: यह निष्कर्ष परिच्छेद के प्रथम वाक्य विशेषकर ‘‘भारत स्वतः उन सभी बेड़ियों को उतार फेंके ............ विकास को रोकती है।’’ से प्राप्त किया जा सकता है।

निम्नलिखित 4 (चार) प्रश्नांशों के लिए निर्देशः
नीचे दिए गए परिच्छेद को पढ़िए और परिच्छेद के नीचे बाद आने-वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इस प्रश्नांशों के आपके उत्तर केवल इन परिच्छेद पर ही आधारित होने चाहिए। [2018]

परिच्छेद

अब शिक्षा की सार्वभौम पहुँच प्रदान करने की मात्रा बात करना हमारे लिए पर्याप्त नहीं है। विद्यालयी सुविधाएँ उपलब्ध कराना एक आवश्यक पूर्वापेक्षा तो है, किंतु यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी बच्चे विद्यालय जाएँ और सीखने की प्रक्रिया में भाग लें, यह अपर्याप्त है। संभव है कि विद्यालय हो, किंतु बच्चे न जाएँ या कुछ माह बाद विद्यालय छोड़ दें। विद्यालय और सामाजिक सुव्यवस्था (सोशल मैपिंग) द्वारा, हमें व्यापक सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और अवश्य ही भाषाई और शैक्षिक मुद्दों को तथा उन कारकों को, जो कमजोर वर्गों और सुविधा-वंचित समूहों के बच्चों को, लड़कियों को भी, नियमित विद्यालय जाने और प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने से रोकते हैं, सुलझाना चाहिए। हमारा ध्यान निर्धनतम और सबसे असुरक्षित वर्ग पर केन्द्रित होना चाहिए क्योंकि ये सर्वाधिक अशक्त हैं और इन्हीं को अपने शिक्षा के अधिकार का अतिक्रमण होने या उससे वंचित होने का सबसे अधिक जोखिम है।
शिक्षा के अधिकार का दायरा निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा से कहीं आगे तक है और इसमें सभी के लिए गुणत्तापूर्ण शिक्षा शामिल है। गुणता शिक्षा के अधिकार का अभिन्न अंग है। यदि शिक्षा प्रक्रिया में गुणता का अभाव है, तो बच्चों को उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है। बच्चों का निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम यह अधिकथित करता है कि पाठयक्रम में कार्यकलाप, अन्वेषण और खोज के माध्यम से शिक्षा प्राप्ति का प्रावधान होना चाहिए। इससे हम पर यह बाध्यता आती है कि बच्चों को विद्या के निष्क्रिय प्राप्तकर्ता के रूप के देखने का नजरिया बदला जाए और परीक्षाओं के आधार के रूप में पाठयपुस्तकों के उपयोग की परिपाटी से आगे बढ़ा जाए। शिक्षण और शिक्षा-ग्रहण प्रणाली को तनावमुक्त होना ही चाहिए और शिक्षार्थी-अनुकूली अधिगम प्रणाली की व्यवस्था के लिए पाठयक्रम सुधार का एक व्यापक कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए जो अधिकाधिक संगत और सशक्तीकारक हो। शिक्षक उत्तरदायित्व प्रणालियों और प्रक्रियाओं से यह अवश्य सुनिश्चित होना चाहिए कि बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और शिक्षार्थी-अनुकूली वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने के अनेक अधिकार का उल्लंघन नहीं हो रहा है। परीक्षण और मूल्यांकन प्रणालियों की पुनर्परीक्षा कर उन्हें इस रूप में पुन: अभिकल्पित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि बच्चे विद्यालय और अनुशिक्षण (ट्यूशन) केन्द्रों के बीच संघर्ष करते-करते अपने बचपन से वंचित रह जाने को बाध्य न हों।
प्रश्न.42. इस परिच्छेद के अनुसार, निम्नलिखित में से किसका/किनका शिक्षा के अधिकार के अधीन सर्वोपरि महत्व है?    (2018)
1. सभी माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को विद्यालय भेजा जाना 
2. विद्यालयों में पर्याप्त भौतिक आधारभूत संरचना की व्यवस्था 
3. शिक्षार्थी-अनुकूली शिक्षा-प्राप्ति प्रणाली विकसित करने हेतु पाठ्यक्रम सुधार करना 
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
(क) केवल 1
(ख) केवल 1 और 4
(ग) केवल 3
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर. (ग)
उपाय: 
परिच्छेद के प्रारंभित पंक्ति में यह उल्लेखित है कि ‘शिक्षा की सार्वभौम पहुँच ’ प्रदान करने की मात्रा बात करना ही पर्याप्त नहीं है। अतः पूर्वधारणा (1) प्रबल नहीं है। परिच्छेद के द्वितीय वाक्य की अभिव्यक्ति है कि विद्यालयी सुविधाएं उपलब्ध कराना एक आवश्यक पूर्वापेक्षा तो है, किंतु यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी बच्चे विद्यालय जाएं और सीखने की प्रक्रिया में भाग लें, यह अपर्याप्त है। अतः पूर्वधारणा (2) प्रबल नहीं है। पूर्वधारणा (3) का उल्लेख परिच्छेद के द्वितीय पैराग्राफ में है जो प्रबल है।

प्रश्न.43. उपर्युक्त परिच्छेद के आधार पर निम्नलिखित पूर्वधारणाएँ बनाई गई हैं:   (2018) 
1. शिक्षा का अधिकार बच्चों की शिक्षा-प्राप्ति प्रक्रिया के लिए शिक्षक का उत्तरदायित्व होने की गारंटी देता है। 
2. शिक्षा का अधिकार विद्यालयों में बच्चों के 100% नामांकन होने की गारंटी देता है। 
3. शिक्षा के अधिकार का आशय जनांकिकीय लाभांश का पूरा उठाने का है।  
उपर्युक्त में से कौन-सी पूर्वधारणा/पूर्वधारणाएँ वैध है/हैं ?
(क) केवल 1
(ख) केवल 2 और 3
(ग) केवल 3  
(घ) 1, 2 और 3

उत्तर. (घ)
उपाय: 
पूर्वधारणा (1) का निर्माण वाक्य, ‘‘शिक्षक उत्तरदायित्व प्रणालियों और प्रक्रियाओं........’’ से किया जा सकता है। पूर्वधारणा (2) प्रारंभिक वाक्य ‘‘शिक्षा की सार्वभौम पहुँच’’ का अनुगमन करता है। पूर्वधारणा (3) वाक्य, ‘‘विद्यालय और सामाजिक सुव्यवस्था द्वारा,हमें व्यापक सामाजिक, ........’’ का अनुगमन करता है। इसका आशय यह है कि भारत के जनसांख्यिकी लाभांश अथवा विविधता में विशाल युवा आबादी को आवृत किया जा सकता है।

प्रश्न.44. इस परिच्छेद के अनुसार, शिक्षा में गुणता लाने हेतु निम्नलिखित में से कौन-सा एक निर्णायक है?  (2018)
(क) विद्यालय में बच्चों की और शिक्षकों की भी नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करना
(ख) शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें आर्थिक लाभ प्रदान करना
(ग) बच्चों की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझना  
(घ) कार्यकालाप और खोज के माध्यम से शिक्षा-प्राप्ति का अतंनिर्वेशन (इन्कल्केटिंग  लर्निंग)

उत्तर. (घ)
उपाय: 
परिच्छेद के द्वितीय पैराग्राफ के प्रथम अर्द्ध यह स्पष्टतः उल्लेखित है।

प्रश्न.45. इस परिच्छेद में सारभूत संदेश क्या है?   (2018)
(क) शिक्षा का अधिकार अब मूल अधिकार है।
(ख) शिक्षा का अधिकार समाज के निर्धन और दुर्बल वर्गों के बच्चों को विद्यालय जाने को समर्थ बनाता है।
(ग) निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार में सभी के लिए गुणतापूर्ण शिक्षा शामिल होना चाहिए।

(घ) सरकार को, और माता-पिता को भी, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी बच्चे विद्यालय जाएँ।
उत्तर. (ग)
उपाय: 
संपूर्ण परिच्छेद इस बात पर जोर डालता है कि बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा गुणवत्ता युक्त होनी चाहिए। विकल्प (c) सही प्रतीत होता है जबकि अन्य विकल्प परिच्छेद के प्रसंग के अनुरूप नहीं है।

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