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लोक सेवा आयोग - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

लोक सेवा आयोग का गठन एवं आयोग के सदस्यों को अपदस्थ करने की प्रक्रिया

  • आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संघ और संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति द्वारा और राज्य आयोग की दशा में राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी।
  • आयोग के कम-से-कम आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होते है जिन्होंने भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन दस वर्ष तक कोई पद धारण किया हो (अनुच्छेद 316)। इस उपबन्ध का अभिप्राय यह निश्चित करना है कि आयोग के सदस्य अनुभवी व्यक्ति हों तथा आयोग विशेषज्ञों की संस्था के रूप में कार्य कर सके।
  • आयोग के सदस्य की पदावधि पद ग्रहण करने की तारीख से छः वर्ष या संघ आयोग की दशा में  65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक होती है और राज्य आयोग की दशा में या संयुक्त आयोग की दशा में 62 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक होती है।
  • किसी भी सदस्य की पदावधि इसके पहले भी समाप्त की जा सकती है। संघ या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति को सम्बोधित त्यागपत्रा द्वारा या राज्य आयोग की दशा में राज्यपाल को सम्बोधित त्याग पत्रा द्वारा समाप्त हो सकता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 317 में आयोग के सदस्यों को अपदस्थ करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। आयोग के सदस्यों को दुराचार के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा पदच्युत किया जा सकता है। दुराचार को प्रमाणित करने की प्रक्रिया संविधान द्वारा निश्चित कर दी गयी है। राष्ट्रपति द्वारा ऐसा मामला सर्वोच्च न्यायालय के पास विचारार्थ प्रस्तुत किया जायेगा। संविधान के अनुच्छेद 145 द्वारा निर्धारित प्रक्रियानुसार जांच करने के बाद न्यायालय राष्ट्रपति के सम्मुख अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा। इस जांच के पूर्ण होने तक राष्ट्रपति उक्त सदस्य को आयोग से निलम्बित कर सकता है।
  • लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष तथा किसी सदस्य को राष्ट्रपति द्वारा निम्नलिखित किसी कारण के आधार पर भी अपदस्थ किया जा सकता है।
    1. वह दिवालिया हो, या
    2. वह अपने कार्यकाल में कोई अन्य संवैधानिक कार्य स्वीकर कर लेता है, या
    3. राष्ट्रपति की सम्मति में वह व्यक्ति मानसिक या शारीरिक दुर्बलता के कारण अपने पद पर कार्य करने में असमर्थ हो गया है, या
    4. अनुच्छेद 317 के अनुसार यदि भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा इनके वास्ते किये गये किसी संविधा या करार से लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य का सम्बन्ध हो तो इसको दुराचार समझा जाएगा और इस आधार पर उसको पदच्युत किया जा सकेगा।
  •  राज्य आयोग की दशा में भी राष्ट्रपति ही उच्चतम न्यायालय को निर्देश कर सकता है और उच्चतम न्यायालय के प्रतिवदेन के अनुसरण में हटाने का आदेश दे सकता है। राज्यपाल को उच्चतम न्यायालय के प्रतिवेदन की प्राप्ति पर राष्ट्रपति के अंतिम आदेश के लम्बित रहने पर निलम्बित करने का अंतरिम आदेश पारित करने की शक्ति है (अनुच्छेद 317 (1) (2)।

लोक सेवा आयोग का कार्य

  •  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 320 के अनुसार आयोगों को निम्नांकित कार्य सौंपे गये है -
    (i) संघ तथा राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का आयोजन करता है।
    (ii) यदि दो या अधिक राज्य संघ लोक सेवा आयोग को संयुक्त नियोजन अथवा भर्ती के लिए आग्रह करें तो राज्यों को इस प्रकार की योजनाएं बनाने में सहायता करता है।
    (iii) संघ तथा राज्य सरकारों को निम्नलिखित मामलों पर आयोग के साथ परामर्श करना अपेक्षित है-
    • लोक सेवाओं में भर्ती के तरीकों के बारे में सभी मामलों पर
    • लोक सेवाओं में नियुक्ति और पदों के लिए अपनाये जानेवाले सिद्धांतों पर और एक सेवा से दूसरी में स्थानान्तरण और पदोन्नति के मामलों पर
    • अनुशासनात्मक मामलों पर
  •  वास्तव में लोक सेवा आयोग विभिन्न संगठित सेवाओं में भर्ती के लिए साक्षात्कार के माध्यम से चयन करता है, सेवा के नियमों और विनियमों के संबंध में सरकार को परामर्श देता है, विभिन्न पदों और सेवाओं के लिए भर्ती के नियम बनाता है, नयी सेवाओं का गठन करता है, पदोन्नति के लिए सिद्धांत बनाता है, नागरिक कर्मचारियों के अनुशासनात्मक मामलों पर और नागरिक कर्मचारियों द्वारा भारत के राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल को की गयी अपीलों, स्मारकों और याचिकाओं के मामलों में परामर्श देता है।
  • संघ लोक सेवा आयोग को प्रतिवर्ष अपने कार्यों के सम्बन्ध में एक प्रतिवेदन तैयार कर राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता है। सरकार इस प्रतिवेदन के साथ एक ज्ञापन जोड़ते हुए जिसमें इस बात का उल्लेख किया जाता है कि आयोग की सिफारिशों पर किस प्रकार से अमल किया गया है, संसद के दोनों सदनों के सम्मुख प्रस्तुत करती है।
  • इसी प्रकार राज्यों के लोक सेवा आयोग भी अपना प्रतिवेदन राज्यपाल को प्रस्तुत करते हैं और राज्यपाल सरकारी ज्ञापन के साथ उसे राज्य के विधान मंडल के सम्मुख रखवाते है।
  • लोकसेवा आयोगों के प्रतिवेदनों से यह सिद्ध होता है कि कुछ मामलों को छोड़कर विभिन्न सरकारों ने आयोग की सिफारिशों को स्वीकार किया है और समुचित कार्यवाही की है।

लोक सेवा आयोग के सदस्यों की स्वतंत्राता

  • हमारे संविधान में लोक सेवा आयोग के सदस्यों की स्वतंत्राता एवं निष्पक्षता बनाये रखने हेतु अग्रलिखित प्रावधान किये गये है:
    • आयोग के सदस्यों का कार्यकाल संविधान द्वारा निर्धारित है और किसी सदस्य को पुनः उसी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता।
    • आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों को संविधान में निर्धारित प्रक्रियानुसार ही पदच्युत किया जा सकता है।
    • आयोग के किसी भी सदस्य के पद से सम्बन्धित शर्तों को उसके कार्यकाल में (हानि के रूप) में नहीं बदला जा सकता।
    • लोक सेवा आयोग के सदस्यों के वेतन, भत्ते तथा प्रशासकीय व्यय भारत सरकार की संचित निधि पर भारित है। अतः संघ एवं राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों के वेतन तथा भत्तों के सम्बन्ध में संसद तथा राज्य विधानमंडलों में मतदान नहीं किया जा सकता है।
    • संघ तथा राज्यों के लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को कुछ अपवादों को छोड़कर पुनः उसी पद या सरकारी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है। संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की अनुपयुक्तता की प्रकृति महत्वपूर्ण है क्योंकि वह भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कोई नियुक्ति नहीं पा सकता। ऐसा प्रतिबन्ध तो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर भी नहीं है।
  •  उपर्युक्त संवैधानिक उपबन्धों द्वारा लोक सेवा आयोग के सदस्यों की निष्पक्षता बनाये रखने का भरसक प्रयास किया गया है।

 

                                                        महत्वपूर्ण तथ्य
 भारत की संचित निधि पर भारित व्ययों पर मतदान का प्रतिषेध -
अनुच्छेद 113 के अनुसार भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से सम्बन्धित प्राक्कलन संसद में मतदान के लिए पेश नहीं किये जायेंगे। किन्तु संसद में मतदान के लिए खर्चे की प्रत्येक मद पर बहस का अधिकार होगा। अन्य व्यय से सम्बन्धित खर्चे लोकसभा के समक्ष अनुदान की माँग के रूप में पेश किये जाते है। लोकसभा किसी माँग को स्वीकार कर सकती है, कम कर सकती है या उसे अस्वीकार कर सकती है। किसी भी अनुदान की माँग राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है।
    विनियोग विधेयक - जब तक विनियोग विधेयक नहीं पारित कर दिया जाता है, भारत की संचित निधि से कोई भी धनराशि नहीं निकाली जा सकती है। अतएव लोकसभा द्वारा अनुदान की माँग पारित कर देने के बाद एक विनियोग-विधेयक पेश किया जाता है जिसमें लोकसभा द्वारा अनुमोदित सभी अनुदानों तथा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की पूर्ति के लिये धन के विनियोग का उपबन्ध रहता है। विनियोग विधेयक में ऐसा कोई संशोधन प्रस्तावित नहीं किया जायेगा जो किसी अनुदान की राशि में फेरबदल करने का प्रयास करने वाला हो। विनियोग-विधेयक पारित होने के बाद ही कोई धनराशि भारत की संचित निधि से निकाली जा सकती है।
    अनुपूरक अनुदान - यदि विनियोग विधेयक द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वर्ष के लिए व्यय किये जाने के लिए प्राधिकृत कोई राशि अपर्याप्त पायी जाती है या वर्ष के बजट में उल्लिखित न की गई किसी नयी सेवा पर खर्च की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है तो राष्ट्रपति एक अनुपूरक अनुदान संसद के समक्ष पेश करवायेगा। अनुपूरक अनुदान और विनियोग विधेयक दोनों के लिए एक ही प्रक्रिया विहित की गई है।
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FAQs on लोक सेवा आयोग - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. लोक सेवा आयोग क्या है?
उत्तर. लोक सेवा आयोग (UPSC) भारतीय राजव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण संगठन है, जो संविधानिक रूप से स्थापित किया गया है। यह आयोग भारतीय संविधान के अंतर्गत लोक सेवा पदों की भर्ती और नियुक्ति के लिए जिम्मेदार होता है।
2. लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित होने वाली परीक्षाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर. लोक सेवा आयोग विभिन्न पदों के लिए कई परीक्षाएं आयोजित करता है, जैसे कि सिविल सेवा परीक्षा (सीएसईएस), भारतीय वन सेवा परीक्षा (आईएफएस), रक्षा अधिकारी परीक्षा (सीडीएसईए) आदि।
3. सिविल सेवा परीक्षा क्या है?
उत्तर. सिविल सेवा परीक्षा (सीएसईएस) लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली एक प्रमुख परीक्षा है जिसके माध्यम से भारतीय सरकार में विभिन्न संविधानिक पदों की भर्ती की जाती है। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले उम्मीदवारों को IAS, IPS, IFS, IRS आदि जैसे पदों में नियुक्ति मिलती है।
4. लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के लिए पात्रता मापदंड क्या हैं?
उत्तर. लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के लिए पात्रता मापदंड विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं। आमतौर पर, एक उम्मीदवार को भारतीय नागरिकता होनी चाहिए, उम्र सीमा के अंतर्गत होना चाहिए, आवश्यक शैक्षणिक योग्यता होनी चाहिए, और अन्य योग्यता मापदंडों को पूरा करना चाहिए।
5. लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं ऑनलाइन होती हैं या ऑफ़लाइन?
उत्तर. लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं ऑफ़लाइन (पेपर-पेन) होती हैं, जिसमें उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा देनी होती है। इसके लिए उम्मीदवारों को कक्षा में उपस्थित होना होता है और उत्तर पत्रिका पर उत्तर लिखना होता है।
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