वहाबी आंदोलन और मुंडा अभ्युदय (विद्रोह)
वहाबी आंदोलन
¯ इस आंदोलन के पथ प्रदर्शक सैयद अहमद बरेलवी एवं इस्माइल हाजी मुहम्मद तीतू मीर थे।
¯ यह आंदोलन 19वीं सदी के चैथे दशक तक अपने चरम सीमा पर पहुँच गया था।
¯ वहाबी आंदोलन के नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का नारा दिया।
¯ भारत में इसका प्रमुख केन्द्र पटना था परन्तु यह आंदोलन अरब से प्रभावित था।
¯ वहाबी आंदोलन के नेता सैयद अहमद बरेलवी अरब के अब्दूल वहाब से प्रभावित थे।
¯ वहाबियों को विशेषकर बंगाल और बिहार के मुसलमान किसानों, दस्तकारों तथा कस्बों के दुकानदारों का समर्थन प्राप्त था।
¯ सन् 1820 में कम्पनी ने वहाबियों को बिहार से खदेड़ा तो वे उत्तर पश्चिम भारत भाग गये जहाँ उनकी मुठभेड़ सिक्खों से हुई।
¯ सन् 1831 में बरेलवी का सिक्खों से मुठभेड़ के दरम्यान वध कर दिया गया।
¯ 1831 में ही वहाबियों ने कलकत्ते पर आक्रमण कर दिया। कम्पनी को तोप का इस्तेमाल करना पड़ा।
¯ बहाबियों ने जनसाधारण के लिये कुरान का फारसी में अनुवाद सुलभ बनाया।
¯ बरेलवी ने अपने को इमाम का नेता बताया और अपना चार उप नेता यानि खलीफा नियुक्त किया।
¯ इस आंदोलन को विशेष सफलता नहीं मिली।
संथाल विद्रोह
¯ आदिवासियों के विद्रोह में संथालों का विद्रोह सबसे जबरदस्त था।
¯ भागलपुर से राजमहल के बीच का क्षेत्र ”दामन-ए-कोह“ के नाम से जाना जाता था।
¯ विद्रोहियों ने गैर आदिवासियों को भगाने तथा उनकी सत्ता समाप्त कर अपनी सत्ता स्थापित करने के लिये जोरदार संघर्ष छेड़ा।
¯ इसका प्रमुख कारण था -
(i) संथालों की जमीन जायदाद छीन ली गयी थी।
(ii) संथालों को कर्ज देकर 50 से 500ः की दर से ब्याज वसूला जाता था।
(iii) दिकू (गैर आदिवासी), आदिवासी लोगों की नजर में अत्याचारी थे।
(iv) दिकू लोग संथालों से बेगार कराते, इनकी फसलें हाथी से रा®दवा देते एवं उन्हें मारते-पीटते थे।
¯ इन सबके बाद संथालों ने अपनी मजलिस और बैठकें कीं।
¯ 30 जून, 1855 को भगनीडीह (बिहार का संथाल परगना) में 400 आदिवासी गांवों के 6000 आदिवासी प्रतिनिधि इकट्ठे हुये और सभा की एवं एक स्वर से निर्णय लिया गया की बाहरी लोगों को भगाया जाये और विदेशियों का राज हमेशा के लिये खत्म कर सतयुग का राज स्थापित किया जाये।
¯ विद्रोहियों के दो प्रमुख नेता सीदो और कान्हू ने घोषणा की कि ठाकुर जी (भगवान) ने उन्हें निर्देश दिया है कि आजादी के लिये हथियार उठा लो।
¯ इन आदिवासियों ने गांवों में जुलूस निकाले। ढोल एवं नगाड़े बजाते थे। पुरुषों एवं महिलाओं से संघर्ष का आह्नान करते। संथालों के नेता हाथी, घोड़ा एवं पालकी पर चलते थे।
¯ कुछ ही दिनों में 60,000 हथियारबंद संथालों को इकट्ठा कर लिया गया। इनसे कहा गया कि नगाड़ा बजे तो हथियार उठा लेना। उन सभी जगहों पर हमला किया गया जो दिकू (गैर आदिवासी) और उपनिवेशवादी सत्ता के शोषण के माध्यम थे।
¯ विद्रोहियों का सफाया करने के लिये मेजर जनरल के नेतृत्व में 10 टुकड़ियां भेजी गयी।
¯ उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में मार्शल लाॅ लागू किया गया और विद्रोही नेताओं को पकड़ने पर 10,000 रु. का इनाम घोषित किया गया। विद्रोहियों को बुरी तरह कुचल दिया गया।
¯ 15,000 से अधिक संथाल मार डाले गये। इनके गाँव के गाँव उजाड़ दिये गये।
¯ अगस्त 1855 में सीदो पकड़ा गया और मार डाला गया।
¯ कान्हू फरवरी 1886 में पकड़ा गया।
रम्पा विद्रोह
¯ आन्ध्र के तटवर्ती क्षेत्रों में रम्पा पहाड़ी के आदिवासियों ने 1879 में सरकार समर्थित मनसबदारों के भ्रष्टाचारों और नये जंगल कानून के खिलाफ विद्रोह किया।
¯ इसे सेना द्वारा 1880 में दबा दिया गया।
रम्पा अभ्युदय
¯ गोदावरी पहाड़ियों के पुराने रम्पा में यह विद्रोह 1916 में हुआ जिसने 1922-24 में अल्लूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में होने वाले बड़े विद्रोह की भूमिका तैयार की।
पावना विद्रोह
¯ 1873-76 में यह बंगाल के इलाकों में हुआ।
¯ इसका कारण यह था कि जमींदारों ने लगान की दरें कानूनी सीमा से भी ज्यादा बढ़ा दी। साथ ही 1859 के अधिनियम 10 के तहत काश्तकारों को जमीन पर कब्जे के जो अधिकार मिले थे उससे काश्तकारों को वंचित रखने की साजिशें की गईं।
¯ इसके विरोध में 1873 में पावना जिले के यूसूफशाही परगना में किसान संघ की स्थापना की गयी।
¯ संघ ने किसानों को संगठित किया। संघ ने लगान चुकाने से इंकार कर दिया। किसानों ने जमींदारों पर मुकदमे किये।
¯ इस विद्रोह का नेतृत्व ईशान चन्द्र राय ने किया।
मुंडा अभ्युदय (विद्रोह)
¯ मुंडा आदिवासियों का विद्रोह 1899-1900 के बीच हुआ।
¯ इसका नेतृत्व बिरसा मुं डा ने किया।
¯ इसका कारण था धनी लोगों द्वारा सामूहिक खेती का विरोध। मुं डा सरदार 30 वर्षों तक सामूहिक खेती के लिये लड़ते रहे।
¯ 1895 में बिरसा ने अपने आप को भगवान घोषित कर दिया।
¯ उन्होंने गाँव-गाँव घूमकर इस आंदोलन को धार्मिक और राजनीतिक आंदोलन में बदल दिया।
¯ 1899 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर बिरसा ने मुं डा जाति का शासन स्थापित करने के लिये विद्रोह का ऐलान किया।
¯ उसने इसके लिये ”ठेकेदारों, जागीरदारों, राजाओं, हाकिमों और ईसाइयों“ का कत्ल करने का आह्नान किया। उसने दिकुओं (गैर आदिवासियों) से भी लड़ाई करने की बात की।
¯ बिरसा फरवरी 1900 के शुरू में गिरफ्तार कर लिया गया और जून में ही जेल में मर गया एवं विद्रोह कुचल दिया गया।
मोपला विद्रोह
¯ अगस्त 1921 में देश के दक्षिण छोर केरल (मालाबार) में काश्तकारों का विद्रोह हुआ।
¯ इनकी समस्यायें थी जमींदारों द्वारा किसानों को जमीन से बेदखल करना, मनमाना लगान वसूल करना और तरह-तरह के अत्याचार करना।
¯ इस आंदोलन के प्रमुख स्थानीय नेता अली मुसलियार थे जो स्थानीय मुसलमानों के धर्म गुरु भी थे।
¯ इन प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करने के लिये तिरुग्रांडी की मस्जिद पर छापा मारा गया जिससे स्थानीय मुसलमानों में काफी असंतोष उत्पन्न हुआ।
¯ इन लोगों ने अपने पवित्र धर्म स्थलों को शासन द्वारा अपवित्र किये जाने पर हिंसक विद्रोह शुरू कर दिया।
¯ इससे पहले नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में लोगों ने जुलूस निकाला था, जिस पर शासन ने इसे बड़ी कड़ाई से दबा दिया।
¯ इस विद्रोह के प्रथम चरण में विद्रोहियों ने बदनाम जमींदारों, जिनमें अधिकतर हिंदू थे, और विदेशी हुकूमत के प्रतिष्ठानों पर हमला किया।
¯ विद्रोही नेता कुन मुहम्मद हाजी इस बात का पूरा ध्यान रखते थे कि हिंदुओं को नहीं सताया जाये।
¯ ब्रिटिश शासन ने इस क्षेत्र में सैनिक शासन की घोषणा कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि यह विद्रोह अब साम्प्रदायिकता के रंग में बदल गया।
¯ दिसम्बर 1921 तक यह आंदोलन पूरी तरह कुचल दिया गया।
चटगांव युवा विद्रोह
¯ यह विद्रोह क्रांतिकारियों का विद्रोह था।
¯ यह बंगाल में सूर्यसेन के नेतृत्व में हुआ। इन्हें लोग मास्टर दा भी कहते थे। ये शिक्षक थे।
¯ गणेश घोष, लौकीनाथ बाऊ आदि लोगों ने चटगांव के दो शस्त्रागारों पर कब्जा कर लिया एवं नगर की टेलिफोन और टेलीग्राफ संचार व्यवस्था को नष्ट कर दिया व चटगाँव और शेष बंगाल के बीच रेल सम्पर्क भी बंद कर दिया।
¯ सूर्यसेन नेे चटगाँव में पुलिस शस्त्रागार पर अधिकार कर लिया और युवकों ने उन्हें सैनिक सलामी दी।
¯ 22 अप्रैल को दोपहर को जलालाबाद की पहाड़ियों में ब्रिटिश सेना के कई हजार जवानों ने सूर्यसेन एवं इनके साथियों को घेर लिया। क्रांतिकारियों और सेना के बीच जमकर लड़ाई हुई।
¯ 16 फरवरी, 1933 को सूर्यसेन को गिरफ्तार कर लिया गया।
¯ उन पर मुकदमा चला और 12 जनवरी, 1934 को इन्हंे फाँसी पर लटका दिया गया।
थारबाऊडी विद्रोह
¯ यह विद्रोह बर्मा में हुआ।
¯ इसका समय 1930-31 था।
¯ इसका नेतृत्व सायासेन ने किया।
भूजप्रा वायलर जन अभ्युदय
¯ यह त्रावणकोर में हुआ जिसका नेतृत्व 1946 में टी. वी. थामस ने किया।
¯ इनमें कम्युनिस्टों ने नारियल के रेशों में काम करने वाले कामगारों, मछुआरों, गछवाहों और खेतिहर मजदूरों के बीच अत्यंत सशक्त आधार बना लिया था।
¯ इनके प्रमुख नेता थे टी. वी. थामस, पत्रम थानु पिल्लई।
बरेली आदिवासी अभ्युदय (बम्बई)
¯ इसका समय 1945-48 है।
¯ इसका नेतृत्व गोदावरी पारुलकर ने किया। ये कम्युनिस्टों के नेता थे।
¯ यह जमींदारों के खिलाफ प्रेरित था।
तेभागा आंदोलन (बंगाल)
¯ सितम्बर 1946 में बंगाल की प्रांतीय किसान सभा ने तेभागा सम्बन्धी फ्लाउड कमीशन की सिफारिश को लागू करवाने के लिये जनसंघर्ष का आरम्भ किया।
¯ फ्लाउड कमीशन की सिफारिश थी कि जोतदारों से लगान पर ली गयी जमीन पर काम करने वाले बँटाईदारों को फसल का आधा या उससे भी कम हिस्सा मिलने के स्थान पर दो-तिहाई हिस्सा दिया जाये।
¯ इस आंदोलन का प्रमुख नारा था - ”निज खमारे धानतोला “ अर्थात बँटाईदार पहले की भाँति जोतदार के घर धान ले जाने के स्थान पर अपने खलिहानों में ले जाने लगे।
¯ इस आन्दोलन का केन्द्र उत्तर बंगाल और विशेष रूप से दिनाजपुर का ठाकुरगंज उपसंभाग था।
¯ इनके प्रमुख मुसलमान नेता मुहम्मद दानेश और नियामत अली थे।
हजांग विद्रोह
¯ यह भी बंगाल में ही 1947 में हुआ।
¯ इसका नेतृत्व मणिसिंह ने किया।
तेलंगाना विद्रोह
¯ यह आंदोलन जुलाई 1946 और अक्टूबर 1951 के बीच तेलंगाना में हुआ।
¯ यह विद्रोह आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे बड़े कृषक छापामार युद्ध का साक्षी रहा।
¯ इस विद्रोह की शुरुआत 4 जुलाई, 1946 से मानी जाती है जब विशुनूर के देशमुख द्वारा भेजे गये गंुडों ने टोडीकुमारैया नाम के एक ग्रामीण आंदोलनकारी को मार डाला जो एक गरीब धोबन की थोड़ी-सी जमीन को बचाने का प्रयास कर रहा था। यह घटना नालगोंडा के जनगाँव ताल्लुके में हुई थी। सुंदरैया ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई।
¯ रविनारायण रेड्डी इस आंदोलन के प्रमुख नेताओं में थे।
पिंडारी विद्रोह
¯ सिंधिया और होल्कर की सेनाओं के भूतपूर्व कमांडरों ने बेकारी की बजाय लूटमार की राह अपनायी।
¯ करीमखान रुहल्ला, चीतू और बासिल मोहम्मद ने मध्यभारत में व्याप्त अराजकता का लाभ उठा निरंकुश लूटमार आरम्भ कर दी। ये पिंडारी कहलाते थे।
¯ यह विद्रोह 1817-18 के आस-पास हुआ।
¯ इस समय तत्कालीन गवर्नर जनरल माक्र्विस आॅफ हेस्टिंग्स ने इस विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया।
¯ बासिल मोहम्मद पकड़ा गया और इसने आत्महत्या कर ली।
¯ चीतू जंगलों में भटक-भटक कर खत्म हो गया।
वेल्लोर में सैनिक विद्रोह
¯ यह 1806 में हुआ।
¯ भारतीय सैनिकों ने वेल्लोर किले में कुछ अधिकारियों तथा अंग्रेज प्रहरियों की हत्या कर दी थी तथा किले पर मैसूर राज्य का ध्वज फहरा दिया।
¯ लक्ष्यविहीन अनियंत्रित सैनिकों ने ब्रिटिश शासन को क्षति पहुँचाई व लूटमार आरंभ कर दी, जिसे अंग्रेजों ने तेजी से क्रूरतापूर्वक दबा दिया।
¯ इस विद्रोह में भड़काने का काम टीपू के पुत्रों ने किया, जो उस समय वेल्लौर किले के जेल में बंद थे।
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1. वहाबी आंदोलन क्या है और इसका महत्व क्या है? |
2. मुंडा अभ्युदय का अर्थ क्या है और इसका महत्व क्या है? |
3. 1857 का विद्रोह क्या था और इसके पीछे कारण क्या थे? |
4. विद्रोह के दौरान वहाबी आंदोलन और मुंडा अभ्युदय का क्या योगदान था? |
5. यूपीएससी और आईएएस परीक्षा में वहाबी आंदोलन और मुंडा अभ्युदय के बारे में प्रश्न पूछे जाते हैं? |
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