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संविधान में संशोधन की प्रक्रिया - भारतीय राजव्यवस्था | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

साधारण विधि द्वारा संशोधन

  • संविधान के कछ उपबंध ऐसे हैं जो कि साधारण विधि (प्रक्रिया) द्वारा संशोधित किये जा सकते हैं।
  • इस प्रक्रिया के अन्तर्गत साधारण कानून एवं संवैधानिक संशोधनों में कोई अन्तर नहीं किया जा सकता।
  • इस संबंध में संविधान के अनच्छेद 4(2) में यह संवैधानिक संशोधन होने के बावजूद भी संवैधानिक संशोधनों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
  • इस विधि के अन्तर्गत संविधान के कछ उपबन्ध संसद अपने दोनों सदनों के केवल साधारण बहमत से पारित कर राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति प्राप्त करके संशोधित कर सकती है।
  • इस प्रकार के संशोधन संबंधी प्रस्ताव किसी भी संसद सदस्य द्वारा या मंत्राी द्वारा संसद के किसी भी सदन में रखे जा सकते हैं तथा संसद साधारण विधेयकोंके लिए निर्धारित प्रक्रिया के अनरूप साधारण बहमत अर्थात् उस सदन की कल सदस्य संख्या के बहमत (50 प्रतिशत से अधिक) से प्रस्ताव पारित कर सकती है।
  • इस प्रक्रिया के अन्तर्गत संशोधित किए जा सकने वाले उपबन्ध निम्न हैं - 

(i) संविधान के अनच्छेद 2, 3 व 4 के अधीन नये राज्यों का निर्माण, राज्योंके नाम तथा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन तथा नये राज्यों को भारतीय संघ में प्रवेश देना तथा इसी के अनरूप पहली एवं चैथी अनसूची मेंपरिवर्तन करना।
(ii)  अनच्छेद 73(2) के तहत संसद को किसी नयी व्यवस्था के होने तक राज्य को कछ निश्चित शक्तियाँ प्रदान करना।
(iii) अनच्छेद 100(3) के अधीन संसदीय गणपूर्ति संबंधी प्रावधान निर्धारित करना।
(iv) अनच्छेद 75, 97, 125, 148, 165(5) एवं 221 (2) के उपबन्धोंके अधीन दूसरी अनसूची मेंपरिवर्तन करना।
(v) अनच्छेद 105(3) के अधीन संसदीय विशेषाधिकारोंको परिभाषित करना।
(vi) अनच्छेद 106 के अधीन संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्तों की व्यवस्था करना या उनमें बढ़ोत्तरी करना।
(vii) अनच्छेद 120(3) के अधीन किसी नयी व्यवस्था के न किये जाने पर 15 वर्षों के पश्चात् (संविधान लागू होने के) अंग्रेजी को संसदीय भाषा के रूप में छोड़ने की व्यवस्था करना।
(viii) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन करना।
(ix) अनच्छेद 169(1) के अधीन कछ शर्तों के साथ विधानपरिषदों को भंग करने की व्यवस्था करना।
(x) नागरिकता संबंधी तथा अनसूचित जाति एवं अनसूचित जनजाति से संबंधित कछ उपबन्धों को भी इसी प्रक्रिया के अधीन संशोधित किया जा सकता है।

संसद के विशिष्ट बहमत द्वारा संशोधन

  • इस प्रक्रिया के अधीन संविधान के कछ विशिष्ट उपबन्धों को छोड़कर अन्य सभी उपबन्धों में संशोधन किये जा सकते हैं। इस प्रक्रिया के अधीन किए जा सकने वाले संशोधनों के संबंध में प्रस्ताव किसी भी संसद सदस्य द्वारा संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है।
  • ऐसा प्रस्ताव दोनों सदनों द्वारा पृथक-पृथक सदनों के कल सदस्य संख्या के बहमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक है।
  • दोनों सदनों द्वारा इस प्रकार पारित किये जाने के पश्चात् राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर प्रस्ताव पारित माना जाएगा और संविधान में आवश्यक संशोधन लागू होगा।
  • यही व्यवस्था संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकार तथा भाग 4 में वर्णित नीति निदेशक तत्वोंमें संशोधन करने के लिए लागू होगी।

राज्य विधान मंडलों की स्वीकृति से किये जाने वाले संशोधन

  • इसके माध्यम से कतिपय ऐसे विशिष्ट उपबन्ध संशोधित किये जा सकते हैं जो वास्तव में संघ एवं राज्यों दोनों से संबंधित हैं।
  • इस प्रक्रिया के अधीन संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • इस प्रकार के विधेयक को संसद के दोनोंसदनोंद्वारा पृथक-पृथक सदन की कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान मेंभाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना आवश्यक है।
  • इस प्रक्रिया के अनुरूप संसद द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजे जाने से पूर्व आवश्यक है कि विधेयक को संघ के कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों का अनुसमर्थन (स्वीकृति) प्राप्त हो।
  • कम से कम आधे राज्योंके विधानमण्डलोंके अनुसमर्थन के पश्चात् वह विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतभेजा जाएगा तथा राष्ट्रपति की सहमति के पश्चात् वह संशोधन पारित मान लिया जाएगा।
  • इस प्रक्रिया के अधीन निम्न विषयों से संबंधित उपबन्ध संशोधित किये जा सकते हैं -

(i) अनुच्छेद 54 एवं 55 - राष्ट्रपति का निर्वाचन एवं निर्वाचन-प्रणाली
(ii) अनुच्छेद 73 - संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
(iii)  अनुच्छेद 162 - संघ के राज्योंकी कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
(iv)  अनुच्छेद 241- केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए उच्च न्यायालय
(v)  भाग 5 का अध्याय 4 - संघ की न्यायपालिका
(vi)  भाग 6 के अध्याय 5 - राज्यों के उच्च न्यायालय
(vii) साँतवी अनुसूची की कोई सूची
(viii)  भाग 11 का अध्याय 1- संघ एवं राज्यों के बीच विधायी शक्ति का वितरण
(ix)  अनुच्छेद 80, 81 तथा चैथी अनुसूची - राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व
(x)  अनुच्छेद 368 - संविधान में संशोधन प्रक्रिया।

नोटः तीनों प्रक्रियाओं में संसद के दोनों सदनों में किसी संवैधानिक संशोधन विधेयक पर विवाद होने की स्थिति में संयुक्त अधिवेशन जैसा कोई प्रावधान नहीं है। किसी संशोधन विधेयक पर यदि दोनों सदनों में मतभेद है और विधेयक किसी भी सदन द्वारा यदि अस्वीकृत कर दिया गया है तो वह प्रस्ताव वहीं समाप्त मान लिया जाता है।

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FAQs on संविधान में संशोधन की प्रक्रिया - भारतीय राजव्यवस्था - भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

1. संविधान में संशोधन की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर: संविधान में संशोधन की प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में विशेष तहत वर्णित है। संविधान को संशोधित करने के लिए, एक संशोधन बिल तैयार किया जाता है जो राज्यसभा और लोकसभा में पारित करना होता है। तब इसे राष्ट्रपति को संविधान के रूप में पेश किया जाता है, जिसे उन्हें समर्पित करना होता है। अगर संविधान का यह संशोधन बिल दोनों सदनों द्वारा बहुमत से मान्यता प्राप्त करता है, तो राष्ट्रपति इसे अपनी संविधानिक सहमति देते हैं और यह संविधान के अंतर्गत एक संशोधन हो जाता है।
2. संविधान की संशोधन प्रक्रिया में राष्ट्रपति की भूमिका क्या है?
उत्तर: संविधान की संशोधन प्रक्रिया में राष्ट्रपति को अहम भूमिका दी गई है। जब कोई संविधान संशोधन बिल पारित होता है, तो राष्ट्रपति को इसे संविधान के रूप में स्वीकार करना होता है। राष्ट्रपति की सहमति बिना संविधान के संशोधन को मान्यता नहीं मिलती है। इसके लिए राष्ट्रपति के पास निर्णय लेने का अधिकार होता है कि उन्हें किसी संशोधन को स्वीकार करना है या नहीं।
3. संविधान में संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में कितने बहुमत की आवश्यकता होती है?
उत्तर: संविधान में संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में अलग-अलग बहुमत की आवश्यकता होती है। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार, एक संशोधन बिल को लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में अधिकांश का आवागमन चाहिए और इसके बाद उसे दोनों सदनों द्वारा एक मान्यता प्राप्त करनी चाहिए।
4. संविधान संशोधन की प्रक्रिया को बदलने के लिए किसे आवश्यकता होती है?
उत्तर: संविधान संशोधन की प्रक्रिया को बदलने के लिए एक संविधानिक संशोधन बिल की आवश्यकता होती है। इसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में अधिकांश की अपेक्षित मान्यता प्राप्त करनी होती है। इस संशोधन बिल को राष्ट्रपति के पास संविधान के रूप में पेश किया जाता है और तब राष्ट्रपति को इसे स्वीकार करना होता है।
5. संविधान संशोधन की प्रक्रिया में राष्ट्रपति के पास कितने निर्णय लेने का अधिकार होता है?
उत्तर: संविधान संशोधन की प्रक्रिया में राष्ट्रपति के पास दो निर्णय लेने का अधिकार होता है। पहला निर्णय होता है कि क्या वह संविधान संशोधन को स्वीकार करेंगे या नहीं। यदि उन्होंने संशोधन को स्वीकार कर दिया है, तो दूसरा निर्णय यह होता है कि किस तारीख से यह संशोधन प्रभावी होगा।
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