सर्वोच्च न्यायालय
सर्वोच्च न्यायालय देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है।
सर्वोच्च न्यायालय का गठन
न्यायाधीशों की नियुक्ति
न्यायाधीशों की योग्यताएँ
न्यायाधीशों का कार्यकाल
महाभियोग प्रक्रिया
कार्यकारी तथा तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति
न्यायाधीशों के वेतन एवं भत्ते
उन्मुक्तियां एवं विशेषाधिकार
भारत में सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षक बनाया गया है। न्यायाधीश अपना कार्य निष्पक्षता एवं स्वतंत्राता के साथ सम्पन्न करे, इस हेत उन्हें कुछ विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियां प्रदान की गयी हैं। ये निम्न है-
(1) किसी भी न्यायाधीश को केवल साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप ही पदच्युत किया जा सकता है अन्यथा नहीं।
(2) किसी भी न्यायाधीश के वेतन, भत्तों, छुट्टियों या अन्य स विधाओं में उसके कार्यकाल में कटौती नहीं की जा सकती। कटौती केवल अनुच्छेद 360 के अधीन राष्ट्रपति द्वारा घोषित वित्तीय आपातकाल के दौरान की जा सकती है।
(3) न्यायाधीशों का वेतन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के अन्तर्गत आता है।
इसी प्रकार उच्च न्यायालय के सभी प्रशासनिक व्यय तथा उसके अन्य कर्मचारियों के वेतन-भत्ते सभी भारत की संचित निधि में से देय होंगे। इन पर संसद में मतदान नहीं किया जा सकता।
(4) किसी भी न्यायाधीश के आचरण एवं कार्यों के संबंध में संसद में महाभियोग प्रस्ताव के अतिरिक्त किसी भी स्थिति में कोई चर्चा नहीं की जा सकती।
(5) न्यायाधीश अपनी सेवा निवृत्ति के पश्चात् भारत राज्यक्षेत्रा के किसी भी न्यायालय में अथवा किसी भी सरकारी अधिकारी के समक्ष वकालत नहीं कर सकते।
(6) सर्वोच्च न्यायालय को अपने कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिये कर्मचारियों की नियुक्ति में पूर्ण स्वतंत्राता प्रदान की गई है। इनकी सेवा-शर्तें भी इसी न्यायालय द्वारा निर्धारित की जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ
सर्वोच्च न्यायालय की कार्यविधि
सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ
महत्वपूर्ण तथ्य आधे घंटे की चर्चा-जिन प्रश्नों का उत्तर सदन में दे दिया गया हो, उन प्रश्नों से उत्पन्न होने वाले मामलों पर चर्चा लोकसभा में सप्ताह में तीन दिन, यथा-सोमवार, ब धवार तथा श क्रवार को, बैठक के अन्तिम आधे घंटे में की जा सकती है। राज्यसभा में ऐसी चर्चा किसी दिन, जिसे सभापति नियत करे, सामान्यतः 5 बजे से 5.30 बजे के बीच की जा सकती है। ऐसी चर्चा का विषय पर्याप्त लोक महत्व का होना चाहिए तथा विषय हाल के किसी तारांकित, अतारांकित या अल्प सूचना का प्रश्न रहा हो और जिसके उत्तर के किसी तथ्यात्मक मामले का स्पष्टीकरण आवश्यक हो। ऐसी चर्चा को उठाने की सूचना कम से कम तीन दिन पूर्व दी जानी चाहिए। शून्य काल-संसद के दोनों सदनों में प्रश्न काल के ठीक बाद के समय को शून्य काल कहा जाता है। यह 12 बजे प्रारम्भ होता है और एक बजे तक चलता है। शून्य काल का लोकसभा या राज्यसभा की प्रक्रिया तथा संचालन नियम में कोई उल्लेख नहीं है। इस काल, अर्थात 12 बजे से 1 तक के समय, को शून्यकाल का नाम समाचार पत्रों द्वारा दिया गया। इस काल के दौरान सदस्य अविलम्बनीय महत्व के मामलों को उठाते है तथा उस पर तुरंत कार्यवाही चाहते है। |
प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार
संविधान के अनुच्छेद 131 में सर्वोच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार का उल्लेख मिलता है। अध्ययन की स विधा की दृष्टि से इसे दो वर्गों में रखा जा सकता है-
(क) प्रारम्भिक एकमेव क्षेत्राधिकार,
(ख) समवर्ती प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार।
(क) एकमेव प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार
(ख) समवर्ती प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार
अपीलीय क्षेत्राधिकार
संविधान के अनुच्छेद 132 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय को अपीलीय अधिकारिता भी प्रदान की गई है। इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को समस्त राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनने का अधिकार भी प्राप्त है। इस अधिकार क्षेत्रा को 4 वर्गों में बाँटा गया है-
(i) संवैधानिक
(ii) दीवानी
(iii) फौजदारी
(iv) विशिष्ट
(i) संवैधानिक
(ii) दीवानी
(iii) फौज़दारी
(iv) विशिष्ट अपील
महत्वपूर्ण तथ्य
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परामर्शदात्राी क्षेत्राधिकार
अन्य अधिकार
अभिलेख न्यायालय
न्यायिक पुनर्विलोकन
महत्वपूर्ण तथ्य
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