UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  सामंतवाद - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस

सामंतवाद - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सामंतवाद

  • इस काल में एक ऐसे नए राजनीतिक-आर्थिक ढांचे का विकास हुआ जो पहले उत्तर में और आगे चलकर दक्षिणी भारत में सबल हुआ। मोटे तौर पर इसे सामंतवाद कहा जा सकता है।
  • भारतीय सामंतवाद में आर्थिक अनुबंध पर उतना बल नहीं दिया गया जितना यूरोपीय सामंतवाद के कुछ रूपों में दिया जाता था।
  • राजा अपने अधिकारियों अथवा चुने हुए जमींदारों को कमोबेश मात्रा में भूमि से मिलने वाली आय प्रदान करता था और उनकी हैसियत वही होती थी जो यूरोप में जागीरदारों की होती थी।
  • सातवीं शताब्दी से नकद वेतन के स्थान पर दिए जाने वाले भूमि अनुदान ने सामंती प्रक्रिया को बल प्रदान किया।
  • कृषि का कार्य कृषकों, आमतौर पर शूद्रों द्वारा ही किया जाता था, जो वास्तव में भूमि से बंधे होते थे और अपनी पैदावार का एक निश्चित अंश जमींदार को देते थे।
  • सामंत राजा द्वारा मिली हुई अपनी भूमि किसानों को लगान पर दे सकते थे जिनसे वे एक ऐसा राजस्व वसूल करते थे जो दोनों की सहमति से निश्चित हुआ हो। इस राजस्व का एक भाग वे राजा को भेज देते थे।
  • जागीरदार से यह आशा की जाती थी कि शेष बचे राजस्व से वह एक सामंती सेना रखे जिसे, राजा के प्रति ली हुई निष्ठा की शपथ के अनुसार, वह राजा की सेवा में भेजने के लिए वचनबद्ध था।
  • सामंत अपनी पुत्री का विवाह राजा से करने के लिए भी बाध्य किया जा सकता था; वह अपने स्वामी की मुद्रा का उपयोग करता था, और जिन स्मारकों, शिलालेखों आदि का वह निर्माण कराता था उनमें वह कर्तव्यवश अपने राजा के नाम का उल्लेख करता था।
  • जागीरदार का राजा से संबंध घनिष्ठ परंतु अधीनस्थ का था।
  • कुछ अधिक शक्ति-संपन्न जागीरदारों को राजा से अनुमति लिए बिना ही भूमि प्रदान करने का अधिकार था। इस प्रकार के सामंतों के बहुधा अपने उप-सामंत होते थे, और इससे एक पूरी सामंत परंपरा निर्मित होने लगती थी।
  • गुप्त काल के बाद के समय के एक शिलालेख में इसका उल्लेख मिलता है और यह सामंती परंपरा के प्रारंभ का प्राचीनतम प्रमाण है। बाद के चालुक्यों के शिलालेखों में इस परंपरा का बार-बार उल्लेख हुआ है।
  • कुछ खास अवसरों पर जैसे राजा के जन्म दिवस पर सामंतों का दरबार में उपस्थित होना अनिवार्य था।
  • सामंतों की हैसियत के अनुसार उनकी उपाधियों में भी अंतर होता था। अधिक महत्वपूर्ण सामंत महासामंत, महामंडलेश्वर आदि उपाधियां ग्रहण कर लेते थे। छोटे सामंत राजा, सामंत, राणका, ठाकुर, भोक्ता आदि उपाधियां ग्रहण करते थे।
  • जब विभिन्न राज्यों में युद्ध बहुधा होने लगे तो सामंती संबंधों का सैनिक रूप अधिकाधिक महत्वपूर्ण होता गया। कभी-कभी राजाओं को सैनिक देने के बदले में वार्षिक भेंट दी जाने लगी, परंतु साधारणतया ऐसा नहीं होता था।
  • शांति-काल में राजा अपने स्वामित्व की पुष्टि करने तथा इन सामंती सैनिकों का निरीक्षण करने के लिए समय-समय पर सामंती सैनिकों की परेड आयोजित करता था।
  • सिद्धांत रूप में सामंतों को केवल भूमि का राजस्व ही दिया जाता था, भूमि नहीं, और यदि वे अनुदान की शर्तों का पालन करने में असमर्थ होते थे तो राजा उनकी भूमि को जब्त कर सकता था।
  • यह अनुदान एक व्यक्ति को जीवन-भर के लिए दिया जाता था और उसकी मृत्यु होने पर वह पुनः अन्य व्यक्ति को दिया जा सकता था। परंतु व्यावहारिक रूप में सामंत को प्राप्त भूमि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती थी, विशेषतया उस स्थिति में जब राजा का नियंत्रण कमजोर हो जाता था।
  • अर्थतंत्र की दृष्टि से ग्राम आत्म-निर्भर होते गए, जहां उत्पादन स्थानीय जरूरतों के अनुरूप होता था।
  • अतिरिक्त उपज से कृषकों को कुछ लाभ न होता, क्योंकि इससे जमींदार अधिक भाग की मांग करते।
  • सामंतों और राजाओं का अतिरिक्त धन वस्तु उत्पादन अथवा व्यवसाय में नहीं लगता था वह सारा का सारा फिजूल की चीजों पर खर्कर दिया जाता था।
  • इस सामंती ढांचे में विविध स्तरों पर उप-सामंतों की वृद्धि के कारण भूमि से प्राप्त होने वाली आय अनेक छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाती थी।
  • इससे कृषक और राजा की स्थिति दुर्बल हो गई और बिचैलियों के हाथ में आय चली जाने से उन्हें क्षति उठानी पड़ी।

 

स्मरणीय तथ्य

  • भूमिदान के माध्यम से राजा द्वारा प्रशासनिक अधिकारों के हस्तांतरण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम यह था कि अपने राज्य में राजा का नियंत्रण ढीला पड़ गया जिससे केन्द्रीय शासन की शक्ति कमजोर हो गई।
  • चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय ने 625 ई. में फारस के राजा खुसरो शाह प्प् के पास अपना राजदूत भेजा।
  • मौखरियों का राज्य आधुनिक उत्तर प्रदेश में था और वे तेजी से शक्ति वृद्धि कर रहे थे। उन्होंने मगध का कुछ भाग जीत लिया था तथा उस वंश की एक शाखा गया जिले में भी थी। उनमें से दो राजाओंµईशानवर्मन और सर्ववर्मन ने अपने को महाराजाधिराज कहा है और इस उच्च उपाधि की सार्थकता हेतु उन्होंने विस्तृत क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी। उनके अधीन आंध्र प्रदेश भी था।
  • गुप्त साम्राज्य के खंडहरों पर भटार्क के नेतृत्व में मैत्रक लोगों ने सौराष्ट्र में अपना राज्य स्थापित किया था और वल्लध्भी को अपनी राजधानी बनाया था। इस वंश के आरंभिक शासक गुप्तों के करद थे। मैत्रिक लोग 300 वर्षों तक महत्वपूर्ण शक्ति समझे जाते थे। उसके बाद संभवतः सिन्ध के अरब लुटेरों ने उनको निकाल बाहर किया।

 

The document सामंतवाद - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
398 videos|676 docs|372 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on सामंतवाद - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. सामंतवाद के दौरान गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था कैसी थी?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था सामरिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा थी। कृषि मुख्य रूप से मुख्य खेती और सब्जी उत्पादन पर आधारित थी, जिसमें धान, गेहूं, जौ, और तिलहन शामिल थे। कृषि का विकास नर्मदा तटबंध, आवारा बांदी, और कृषि प्राथमिक संरचनाओं के अवतरण के साथ जुड़ा था।
2. गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था के इतिहास पर क्या ज्ञान है?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल के दौरान कृषिक व्यवस्था का इतिहास बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस काल में कृषि विज्ञान और तकनीकी में महत्वपूर्ण प्रगति हुई और कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई। इसके साथ ही, गुप्तोत्तर काल में खेती को लेकर अनेक यात्राओं की गईं और नए खेती तकनीक और फसलों का प्रयोग किया गया।
3. गुप्तोत्तर काल में कृषि कैसे संगठित थी?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में कृषि संगठित थी और कृषि क्षेत्रों को वर्गीकृत किया गया था। खेती व्यवस्था में राजाओं का महत्वपूर्ण योगदान था, जो व्यापार, उद्योग और कृषि के लिए प्रशासनिक और आर्थिक संरचना का ध्यान रखते थे। जनता में खेती और उपजाऊ संपदा के लिए विशेष जागरूकता थी और कृषि क्षेत्रों के विकास का प्रमुख कारण एक अच्छी बरसाती ऋतु थी।
4. गुप्तोत्तर काल में कृषि कौन-कौन सी फसलों पर आधारित थी?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में कृषि धान, गेहूं, जौ, और तिलहन जैसी मुख्य फसलों पर आधारित थी। इन फसलों का प्रमुख उत्पादन होता था और इन्हें खाद्यान्न, अन्न और तेल के उद्योगों के लिए उपयोग किया जाता था। इन फसलों के अलावा, गुप्तोत्तर काल में फल और सब्जियों का भी उत्पादन किया जाता था।
5. गुप्तोत्तर काल में कृषि व्यवस्था का विकास किस तकनीकी प्रगति के साथ हुआ?
उत्तर: गुप्तोत्तर काल में कृषि व्यवस्था का विकास तकनीकी प्रगति के साथ हुआ। कृषि विज्ञान और तकनीकी में नई उपलब्धियों के प्रयोग से खेती की उत्पादकता में वृद्धि हुई। नए खेती तकनीक जैसे कि जलाशय, नहर, और नदी के बाँध निर्माण और अन्य कृषि संरचनाएं खेती को सुगम और उत्पादक बनाने में मदद करती थीं।
398 videos|676 docs|372 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Semester Notes

,

इतिहास

,

practice quizzes

,

Sample Paper

,

pdf

,

Extra Questions

,

सामंतवाद - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था

,

यूपीएससी

,

इतिहास

,

past year papers

,

सामंतवाद - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था

,

यूपीएससी

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Summary

,

Objective type Questions

,

इतिहास

,

Free

,

Exam

,

Viva Questions

,

Important questions

,

study material

,

सामंतवाद - गुप्तोत्तर काल में कृषिक व्यवस्था

,

MCQs

,

video lectures

,

यूपीएससी

,

ppt

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

mock tests for examination

,

shortcuts and tricks

,

आईएएस | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

,

Previous Year Questions with Solutions

;