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प्रकाश (Optics)

विद्युत चुम्बकीय विकिरण

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  • अवरक्त क्षेत्र की तरंगों का दृष्टि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इन तरंगों का ऊष्मीय प्रभाव (heating effect) होता है, किन्तु इनका कोई रासायनिक (chemical) प्रभाव नहीं होता।
  • अवरक्त तरगें अपने ऊष्मीय प्रभाव से पहचानी जा सकती है। पराबैंगनी किरणा से प्रतिदीप्ति (fluorescence) तथा स्फुरदीप्ति (phosphorescence) के प्रभाव उत्पन्न होते है। इन दोनों स्थितियों में कोई पदार्थ पराबैंगनी किरणों का अवशोषण (absorption) करता है और अधिक लम्बे तरंग-दैध्र्य के दृश्य प्रकाश का विकिरण करता है।
  • प्रतिदीप्ति में ज्यों ही उत्तेजक (exciting) प्रकाश हटा लिया जाता है, प्रकाश-विकिरण खत्म हो जाता है, जबकि स्फुरदीप्ति में उत्तेजक प्रकाश के हटा लेने के बाद कुछ देर तक प्रकाश का विकिरण होता रहता है। प्रतिदीप्ति-स्त्रोत का एक सामान्य उदाहरण प्रतिदीप्त नलिका लैम्प है।

परावर्तन के नियम

  1. आपतित किरण, परावर्तित किरण और आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब सभी एक ही समतल में होते है।
  2. आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है।

समतल दर्पण में बने प्रतिबिम्ब

  1. वस्तु के आकार का होता है।
  2. दर्पण के उतना ही पीछे बनता है जितना वस्तु दर्पण के सामने।
  3. पार्श्विक रूप से परिवर्तित होता है।
  4. काल्पनिक होता है (यह पर्दे पर नहीं बनाया जा सकता)।

अवतल एवं उतल दर्पण

  • वह दर्पण जिसका तल धँसा हो उसे अवतल एवं जिसका तल उभरा हो उसे उत्तल दर्पण कहते हैं।
  • दर्पण जिस गोले का भाग होता है उस गोले के केन्द्र को दर्पण का वक्रता केन्द्र तथा त्रिज्या को वक्रता त्रिज्या कहते हैं।
  • अवतल दर्पण में एक समानान्तर किरणपुंज की सभी किरणें परावर्तन के बाद एक बिन्दु पर अभिसरित होती है, इस बिन्दु को फोकस कहते है।
  • जब मुख्य अक्ष के समानान्तर किरणें उत्तल दर्पण पर पड़ती हैं तो परावर्तित सभी किरणें दर्पण के पीछे मुख्य फोकस से आती हुई प्रतीत होती है। अतः अवतल दर्पण को वास्तविक तथा उत्तल दर्पण को काल्पनिक मुख्य फोकस होता है।
  • गोलीय दर्पण की फोकस दूरी उसकी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।

अवतल दर्पण के प्रयोग

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  1. सोलर कुकर में ऊष्मीय विकिरण को फोकस पर अभिसरित करने में।
  2. परावर्तन-दूरबीन (Reflecting Telescope) में।
  3. सर्चलाइटों में, मोटर गाड़ी के हेडलाइटों में, टाॅर्चों आदि में अवतल दर्पण के फोकस पर प्रकाश स्त्रोत को रखा जाता है।
  4. बड़ी वक्रता त्रिज्या वाले अवतल दर्पण का प्रयोग हजामत बनाने में किया जाता है, क्योंकि ये चेहरे का सीधा, बड़ा तथा काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनाते है।
  5. रोगियों के नाक, कान, गले आदि की जाँच के लिए। 

विद्युत-चुम्बकीय विकिरण

वि. चु. तरंग

 तरंग-दैध्र्य (मीटर में)

 आवृत्ति (Hz में)

रेडियो (radio) तरंग

6 x 102 से 1.5 तक

0.5 x 106 से 2 x 108 तक

सूक्ष्म (micro) तरंग

0.3 से 10-3 तक

109 से 3 x 1011 तक

अवरक्त तरंग

10.3 से 7 x10-7 तक

3x1011 से 4.3 x1014 तक

दृश्य प्रकाश

7 x 10-7 से 4 x 10-7 तक

4.3x 1014 तक से 75x1014

पराबैंगनी प्रकाश

4 x 10-7 से 3 x 10-8 तक

7.5 x 1014 से 1016 तक

एक्स-किरण

3 x 10-8 से 10-12 तक

1016 से 3 x 1020 तक

गामा-किरण

3 x 10-10 से 10-14 तक

1018 से 1022 तक

उत्तल दर्पण के प्रयोग

  • मोटर कारों में ”पाश्र्व दर्पण“ के रूप में।
  • पैरेलैक्स (Parallax): चलती हुई रेलगाड़ी के बाहर देखने पर भूदृश्य के पेड़ और अन्य वस्तुएँ एक-दूसरे की अपेक्षा चलती हुई दिखाई देती है। किसी दूसरे पेड़ की अपेक्षा कोई एक पेड़ किसी एक क्षण बायीं ओर तो कुछ सेकंडों बाद उसकी दायीं ओर दिखाई पड़ सकता है। ऐसा प्रेक्षक (आँख) की गति के कारण दो वस्तुओं की आभासी आपेक्षिक गति के कारण होता है, जिसे पैरेलैक्स या लम्बन-त्रुटि कहते है।

प्रकाश का अपवर्तन (Refraction of Light)

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  • एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रकाश की दिशा में हुए परिवर्तन को अपवर्तन कहते हैं।
    प्रकाश के अपवर्तन के दो नियम है -
    1. आपतित किरण तथा अपवर्तित किरण आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब के विपरीत ओर होती है और ये तीनों एक ही समतल में होते है।
    2. प्रकाश के किसी विशेष रंग के लिए आपतन कोण की (sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात किन्ही दो माध्यमों के लिए नियत होता है। इसे ‘स्नेल का नियम’ भी कहते है।
  • अपवर्तनांक (Refractive Index) : एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हुई एक किरण के लिए अनुपात Sini/Sinr का मान पहले माध्यम की अपेक्षा दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहलाता है। इसे प्रायः μ (म्यू) से सूचित किया जाता है।

पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection)

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  • क्रांतिक कोण (critical angle) सघन माध्यम में वह विशिष्ट आपतन कोण है जिसके लिए विरल माध्यम में  संगत अपवर्तन कोण 90° हो।
  • ऐसी स्थिति में अधिक घनत्व के माध्यम से कम घनत्व के माध्यम में जाती हुई प्रकाश की अपवर्तित किरण पृथक्कारी पृष्ठ को संस्पर्श करती हुई गमन करती है।
  • चूँकि अपवर्तन कोण 90° से अधिक नहीं हो सकता, इसलिए क्रांतिक कोण से बड़े सभी आपतन कोणों के लिए आपतित किरण का पूर्ण परावर्तन हो जाता है।
  • इसमें परावर्तन के नियमों का पालन होता है।
    पूर्ण आंतरिक परावर्तन के लिए शर्तें:
    1. प्रकाश की किरणों का गमन सघन माध्यम से विरल माध्यम में हो।
    2. सघन माध्यम में आपतन कोण, क्रांतिक कोण से अवश्य बड़ा हो।
  • हीरे की चमक: अपवर्तनांक (2.42) अधिक होने के कारण हीरे के लिए क्रांतिक कोण (24.4°) बहुत कम होता है। फलतः इसमें प्रवेश करने वाले किरण पुंज का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है और हीरा चमकता हुआ दिखाई देता है।
  • मृग मरीचिका: यह भी पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण दीखता है।
    अपवर्तन के कुछ अन्य प्रभाव
    1. पानी में छड़ी का मुड़ना।
    2. पानी से भरी बाल्टी की गहराई कम मालूम पड़ना।
    3. सूर्योदय से पूर्व तथा सूर्यास्त के बाद तक सूर्य का दीखना।
    4. तारों का टिमटिमाना।
  • तारों की तरह चन्द्रमा तथा ग्रह नहीं टिमटिमाते क्योंकि चन्द्रमा या ग्रह के डिस्क द्वारा बनाया गया कोण तारे द्वारा बनाये गये कोण की तुलना में बड़ा होता है। इसलिए चन्द्रमा या ग्रह से आती किरणों में वायुमंडलीय घट-बढ़ के कारण हुआ थोड़ा विचलन मालुम नहीं पड़ता है।

प्रिज्म (Prism)

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  • काँच का कोई पट्ट जिसके दोनों पाश्र्व समांतर नहीं होते, प्रिज्म कहलाता है।
  • वर्ण-विक्षेपण (Dispersion of light): प्रिज्म से गुजरने पर प्रकाश का विभिन्न घटकों में विभाजन वर्ण-विक्षेपण कहलाता है और इससे बने रंगीन प्रकाश की पट्टी को स्पेक्ट्रम कहते है।
  • प्रिज्म में विभिन्न रंगों (विभिन्न तरंग-दैध्र्यों) का विचलन अलग-अलग होता है। अधिक तरंगदैध्र्य (लाल रंग) के प्रकाश का विचलन, कम तरंग-दैध्र्य (बैंगनी) के प्रकाश की अपेक्षा कम होता है।
  • प्रिज्म में विभिन्न रंगों (विभिन्न तरंग-दैध्र्यों) का प्रकाश विभिन्न गति से चलता है।
  • इन्द्रधनुष: प्रकृति में इन्द्रधनुष (Rainbow) का बनना वर्ण-विक्षेपण की सबसे सामान्य घटना है। सूर्य से आने वाली किरणें पानी की छोटी-छोटी बुँदों द्वारा विक्षेपित होकर इन्द्रधनुष बनाती है।

रंग मिश्रण (Mixing of Colours)

  • सामान्य भौतिकी (भाग - 3) - भौतिकी विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindiकिसी वस्तु का रंग उस पर पड़ रहे प्रकाश की तंरग-दैध्र्य पर निर्भर करता है।
  • प्रकाश का जो भाग वस्तु द्वारा परावर्तित होता है वही वस्तु का रंग होता है।
  • यदि लाल रंग की वस्तु को हरे रंग के प्रकाश से प्रदीप्त किया जाए तो वह लगभग संपूर्ण प्रकाश को अवशोषित कर लेती है और वस्तु द्वारा परावर्तन नगण्य होता है। इसलिए हरे रंग के प्रकाश में यह वस्तु काली प्रतीत होती है।
  • लाल, हरे तथा नीले रंग के प्रकाश को प्राथमिक अथवा मूल रंग का प्रकाश कहते हैं। उन्हें विभिन्न अनुपात में मिलाने पर अन्य रंग प्राप्त किये जा सकते हैं।

ताल (Lens)

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  • लेंस किसी पारदर्शी पदार्थ (काँच, प्लास्टिक, स्फटिक आदि) के दो पृष्ठों द्वारा घिरा एक खंड होता है जिसका कम-से-कम एक सतह वक्र हो। ये मुख्यतः दो प्रकार के होते है-
    1. अवतल: जिसका कम-से-कम एक सतह धंसा हुआ हो। इसके द्वारा बना प्रतिबिम्ब, वस्तु से छोटा होता है।
    2. उत्तल: जिसका कम-से-कम एक सतह उभरा हुआ हो। यह वस्तु से बड़ा प्रतिबिम्ब बनाता है।
  • जिस गोला या सिलिंडर का अंश लेंस की सतह होती है, उसके केन्द्र को वक्रता केन्द्र कहते है।
  • यदि कोई सतह समतल हो तो उसके वक्रता केन्द्र को अनंत पर माना जाता है।
  • चूँकि प्रत्येक लेंस की दो सतहें होती हैं, इसलिए प्रत्येक लेंस के दो वक्रता केन्द्र होते है, और दो वक्रता-त्रिज्याएं भी।
  • किंतु दोनों वक्रता-त्रिज्याओं का परस्पर बराबर होना जरूरी नहीं है।
  • लेंस की सतहों के वक्रता केन्द्रों को मिलाने वाली रेखा को उसका ‘मुख्य अक्ष’ कहते है।
  • फोकस: मुख्य अक्ष के समांतर तथा निकट आपाती सभी किरणें लेंस से होकर गुजरने के बाद मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर अभिसारित होती है या जिस बिन्दु से अपसारित होती हुई प्रतीत होती है, वह बिन्दु लेंस का फोकस है।
  • अधिक वक्रता वाले मोटे लेंस की फोकस-दूरी पतले लेंस की अपेक्षा कम होती है। अर्थात् जितना ही कोई लेंस अधिक अपसारी या अभिसारी होता है उसकी फोकस दूरी (focal length) उतनी ही कम होती है।

लेंस की क्षमता (Power of Lens)

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  • लेंस की क्षमता (D) को उसकी फोकस दूरी (F) के व्युत्क्रम या विलोम द्वारा व्यक्त किया जाता है। D = 1/f
    जब f  मीटर में हो तो D का मात्रक डायोप्टर (Diopter) कहलाता है।
  • उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक (+) तथा अवतल लेंस की ऋणात्मक (-) में होती है।

दृष्टि दोष और उनके सुधार 

  • सामान्य आँख अनंत पर स्थित वस्तु को देख सकती है।
  • जिस न्यूनतम दूरी तक सामान्य आँखों द्वारा वस्तुओं को साफ-साफ देखा जा सकता है, उसे ”स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी“ कहते है और इसका मान 25 सें. मी. है।
  • अर्थात् सामान्य आँख अनंत (दूर-बिन्दु) से 25 सै. मी. (निकट-बिन्दु) तक वस्तुओं को स्पष्ट देखने के लिए समायोजन कर सकती है।
    दृष्टि दोष मुख्यतः तीन प्रकार के है-
    1. दीर्घ दृष्टि (Long Sight): इस दोष से ग्रसित व्यक्ति अनंत पर स्थित वस्तुओं को तो देख सकता है, किंतु इसका निकट-बिन्दु 25 से. मी. से कुछ दूर होता है। अर्थात्, 25 सें. मी. पर रखी वस्तु उसे धुँधला दिखाई देगा, क्योंकि इस दूरी के लिए आँख का लेंस रेटिना के पीछे केवल एक बिन्दु पर स्पष्ट प्रतिबिम्ब बना सकता है। इसका सुधार ‘उत्तल लेंस के चश्मे’ द्वारा होता है।
    2. निकट-दृष्टि (Short Sight): इस प्रकार के व्यक्ति का निकट-बिन्दु सही रहता है, किन्तु दूर-बिन्दु कम हो जाता है। ऐसी आँखों के लिए वास्तविक दूर-बिन्दु 1 मीटर या उससे भी कम हो सकता है। इसका सुधार ”अवतल लेेंस के चश्मे“ द्वारा होता है।
    3. अबिन्दुकता (Astigmatism): आखों की वक्रता के समानता (evenness) में कमी होने  पर अबिन्दुकता दोष उत्पन्न होता है। इस कारण अलग-अलग समतलों से आँख में प्रवेश करने वाली किरणें रेटिना से अलग-अलग दूरियों पर फोकस होती हैं।
      - इसलिए वस्तु के एक बिन्दु के रूप में होने पर भी उसके प्रतिबिम्ब की शक्ल रैखिक, वृत्ताकार अथवा बिन्दु को छोड़कर किसी दूसरी शक्ल की हो सकती है। इस दोष का सुधार ‘बेलनाकार लेंस’ से होता है।

प्रकाशिक यंत्र

सरल सूक्ष्मदर्शी (Simple Microscope)

  • यह एक प्रकाशिक यंत्र है जिसमें छोटी फोकस-दूरी का एक उत्तल लेंस होता है।
  • इसका उपयोग किसी वस्तु का आवर्धित प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
  • अगर लेंस की फोकस दूरी 1 सें. मी. के करीब हो, तो भी इस लेंस के द्वारा 30 से अधिक आवर्धन प्राप्त नहीं किया जा सकता।
  • फोकस दूरी कम करने से आवर्धन बढ़ता है।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (Compound Microscope)

  • इस यंत्र में कम फोकस दूरी वाले दो उत्तल लेंस होते है जिनके बीच की दूरी बदली जा सकती है। इनमें से पहला लेंस जो अभिदृश्यक (Object lens) कहलाता है, अपने समीप स्थित वस्तु का बड़ा, वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब बनाता है।
  • दूसरे लेंस, जो नेत्रिका (Eye lens) कहलाता है, के लिए उक्त प्रतिबिम्ब वस्तु का काम करता है।
  • नेत्रिका काल्पनिक आवर्धित प्रतिबिम्ब बनाती है।
  • इस सूक्ष्मदर्शी का उपयोग जीव विज्ञान की प्रयोगशालाओं में होता है।

स्मरणीय तथ्य

• किसी वस्तु को भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर ले जाते समय उसका भार बढ़ता जाता है।

• वर्षा की बूँदें पृथ्वी तनाव के कारण गोल हो जाती है।

• फर्मी नाभिकीय त्रिज्याओं को नापने का मात्रक है। 1 फर्मी = 10.15 मीटर।

• नाॅट समुद्री जहाज की गति नापने का मात्रक है। 1 नाॅट = 1852 मीटर/घण्टा।

•  नाॅटीकल मील समुद्री दूरी के नापने का मात्रक है। 1 नाॅटीकल मील = 1852 मीटर।

• पारा तरल धातु है जिसे क्विक सिल्वर (Quick Silver) के नाम से भी पुकारते है।

• भारत का प्रथम उपग्रह रूस के कोस्मोड्रोम (Cosmodrome) से प्रक्षेपित किया गया था।

• राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (National Science Day)  28 फरवरी को मनाया जाता है। यह इस दिन सी. वी. रमन की खोज ‘रमन प्रभाव’ के प्रकाश में आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

• यूरेनस का सूर्य के परितः भ्रमणकाल लगभग 84 वर्ष है।

• सी. वी. रमन को सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

दूरबीन (Telescope)

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  • दूरबीन यंत्र का उपयोग दूर की वस्तुओं के निरीक्षण के लिए किया जाता है।
  • दूरबीन का कार्य उस कोण को बढ़ाना है जो एक दूरस्थ वस्तु आँख पर बनाती हुई मालूम पड़ती है और इसलिए ऐसा प्रभाव उत्पन्न करती है मानो वस्तु या तो बड़ी है या आँख के निकटतर है।
  • इसमें भी दो लेंस होते हैं अभिदृश्यक (Objective lens) तथा नेत्रिका (Eye lens)।

खगोलीय दूरबीन (Astronomical Telescope)

  • इसमें दो उत्तल लेंस होते है जिनके बीच की दूरी उनकी फोकस-दूरियों के योग के बराबर होता है।
  • बहुत दूर की वस्तु जैसे तारा, जो प्रभावतः अनंत पर है, के लिए उसके किसी बिन्दु से आती किरणें दूरबीन पर पहुँचने पर समांतर होती है।
  • प्रेक्षक की आँखों में प्रवेश करने वाली समांतर किरणों से आँखों के लेंस द्वारा स्पष्ट प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जो उल्टा होता है।

गैलीलियो की दूरबीन

  • गैलीलियो ने 1609 में एक दूरबीन का आविष्कार किया जो दो तालों की सहायता से वस्तु का सीधा प्रतिबिम्ब बनाती है।
  • इसमें अभिदृश्यक बड़े द्वारक (Aperture) तथा बड़ी फोकस-दूरी का एक उत्तल लेंस होता है और नेत्रिका छोटी फोकस-दूरी का अवतल लेंस होता है।
  • अभिदृश्यक की फोकस-दूरी के भीतर नेत्रिका होती है और इस तरह दोनों लेंसों  के बीच की दूरी उनकी फोकस दूरियों के अन्तर के बराबर होती है।
  • अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत पर बनता है।

प्रकाश का व्यतिकरण (Interference of Light)

  • अध्यारोपण का सिद्धांत बताता है कि जब एक ही प्रकृति की दो या दो से अधिक तरंगें एक ही समय एक ही बिन्दु से गुजरती हैं, तब उस बिन्दु पर का विस्तार (Aperture) उन तरंगों के विस्तारों का योग होता है।
  • अध्यारोपन के क्षेत्र में प्रकाश की तीव्रता का रूपांतरण ही व्यतिकरण कहलाता है।

प्रकाश का विवर्तन (Diffraction of light)

  • जब प्रकाश के गमन रेखा के सामने एक छोटा अवरोध आता है, तब प्रकाश अवरोध के कोने पर मुड़ सी जाती है।
  • प्रकाश के मुड़ने की इस घटना को ही प्रकाश का विवर्तन कहते है।
  • ”प्रकाश सीधी रेखा में गमन करता है“, यह विवर्तन सिद्ध करता है।

चुम्बकत्व एवं विद्युत धारा (Magnetism & Electric Current)

  • ‘मैग्नेटाइट’ नामक खनिज के टुकड़ों में लोहे के पदार्थों को आकर्षित करने के गुण को ही चुम्बकत्व कहते है। इसके ये गुण ईसा पूर्व छठी सदी से ही ज्ञात है।
  • दण्ड चुम्बक के दोनों ध्रुवों से गुजरने वाली काल्पनिक सरल रेखा को उस चुम्बक का ”चुम्बकीय अक्ष“ कहते हैं।
  • दोनों ध्रुवों के बीच की दूरी को ”चुम्बकीय लम्बाई“ कहते है।
  • मुक्त रूप से लटकता दण्ड-चुम्बक जब स्थिर रहता है तब उसके अक्ष से होकर गुजरते हुए एक उध्र्वाधर समतल को ”चुम्बकीय याम्योत्तर“ कहते है।
  • चुम्बक के प्रभाव-क्षेत्र को ”चुम्बकीय क्षेत्र“ (Magnetic field) कहते है।
  • पृथक ध्रुव का अस्तित्व मात्र कल्पना है, फिर भी इकाई शक्ति के पृथक उत्तरी ध्रुव की कल्पना करें। इस ध्रुव के ऊपर चुम्बकीय क्षेत्र के किसी बिन्दु पर जो बल लगेगा, उसी बल को उस बिन्दु पर ”चुम्बकीय तीव्रता“ (Magnetic Intensity) कहा जाता है।
  • विद्युत-धारा का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है। किसी दीवार में धारावाही चालक प्रच्छन्न है या नहीं, इस बात की जानकारी कम्पास सूई से की जा सकती है।
  • अगर दीवार में धारावाही चालक प्रच्छन्न है तो उसके समीप कम्पास सूई ले जाने पर सूई विक्षेपित होगी, अन्यथा नहीं।

फ्लेमिंगका वामहस्त नियम 

  • बायें हाथ की मध्यमा (middle finger), तर्जनी (fore finger) तथा अंगूठे (thumb) को परस्पर-लम्बवत् फैलाने पर यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र को तथा मध्यमा धारा को व्यक्त करे तो अँगूठा धारा पर लगे बल की दिशा व्यक्त करेगा।

वान एलेन विकिरण पट्टी (Van Allen Radiation belt)

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  • सूर्य से पृथ्वी की ओर असंख्य आवेषित कण आते है।- विषुवत् रेखा के समीप पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण इन आवेषित कणों की धारा पर बल लगते है। इसके परिणामस्वरूप ये पृथ्वी के ऊपर विषुवतीय क्षेत्र को घेरते है। विषुवतीय क्षेत्र में पृथ्वी के ऊपर आवेषित कणों के इस वितरण को ”वान एलेन रेडियेशन बेल्ट“ कहते है।
  • गतिशील आवेशों पर चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव का उपयोग टेलीविजन के दोलनदर्शी तथा ऐसे संयंत्रों में किया जाता है जिनकी सहायता से वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए आवेशित कणों को उच्च वेगों तक त्वरित किया जाता है। परिवर्ती ऊर्जा साइक्लोट्राॅन एक ऐसा ही संयंत्र है।
  • चुम्बकीय क्षेत्र में धारा की तीव्रता (Intensity) का मात्रक न्यूटन/एम्पियर-मीटर होता है। 1 न्यूटन/एम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता को ”1 टेसला“ (T) कहते है।

स्मरणीय तथ्य

• बहुत नीचे के तापों के अध्ययन को निम्नतापिकी (Cryogenics) कहते है।

•  थर्मोस्टेट किसी वस्तु का ताप एक निश्चित बिन्दु पर बनाए रखने का यंत्र है।

•  डायनेमोमीटर इंजन द्वारा उत्पन्न शक्ति को मापने का यंत्र है।

•  कुछ वस्तुएं ताप शोषित करने के बाद इसे प्रकाश में परिवर्तित कर देती है

•  जिसके कारण इनसे प्रकाश की किरण निकलती है। ऐसी घटना को तापदीप्ति (Calorescence) कहा जाता है।

 

स्मरणीय तथ्य

• प्रकाश वर्ष दूरी का मात्रक है। एक प्रकाश वर्ष = 9.46 x 1012 किलोमीटर।

• ऐस्ट्रोनाॅमिकल मात्रक (A.U.) सूर्य और पृथ्वी के मध्य औसत दूरी के बराबर होता है। इसका मान 1.496 x 108 किमी. है।

• पारसेक दूरी का मात्रक है तथा 1 पारसेक = 3 x 1016 मीटर।

• यदि किसी मीनार से एक गेंद को उध्र्वतः नीचे तथा दूसरी गेंद को क्षैतिजतः प्रक्षेपित किया जाए तो दोनों गेंदे  पृथ्वी पर गिरने में समान समय लेंगी।

• लैम्प की बत्ती में तेल केशिकीय उन्नयन (Capillary ascent) के कारण चढ़ जाता है। ऐसा पृष्ठ तनाव के कारण होता है।

• एक समान वृत्तीय गति में त्वरण तथा वेग दोनों ही परिवर्तित होते रहते है। परन्तु चाल नियत रहती है।

• समुद्र तट पर वायुमण्डलीय दाब 1 बार होता है।

• एक चन्द्र दिवस पृथ्वी के 28 दिनों के बराबर होता है।

• अन्तरिक्ष यान की गति धीमी करने के लिए पश्चगतिक राकेट (Retro-rocket) प्रयुक्त किए जाते है।

विद्युत चुम्बक 

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  • नर्म लोहे की छड़ पर लिपटी विसंवाहित (Insulated) कुंडली से विद्युत-धारा प्रवाहित करने पर जो कृत्रिम चुम्बक बनता है उसे विद्युत चुम्बक कहते है।
  • विद्युत-चुम्बकत्व का उपयोग यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न करने तथा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युतीय ऊर्जा में बदलने के लिए किया जाता है।

डायनेमो

  • यह एक युक्ति है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
  • यह विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित है।
  • एक साधारण डायनेमो में एक कुंडली होती है जो एक शक्तिशाली नाल चुम्बक के ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष पर चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करती है जिससे कुंडली में विद्युत वाहक बल (Electro motive force) प्रेरित होती है और इस प्रकार प्रत्यावर्ती धारा का उत्पादन होता है।

माइक्रोफोन

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  • यह यंत्र ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिणत करता है, तारों द्वारा यह विद्युत ऊर्जा लाउडस्पीकर में पहुँचायी जाती है और लाउडस्पीकर विद्युत ऊर्जा को पुनः ध्वनि ऊर्जा में परिणत करता है।
    • माइक्रोफोन का उपयोग टेलीफोन में भी होता है।
    • दिक्पात (Declination) किसी स्थान पर ”चुम्बकीय याम्योत्तर“ वह उध्र्वाधर समतल है जो पृथ्वी के चुम्बकीय अक्ष से गुजरता है। उस स्थान पर ”भौगोलिक याम्योत्तर“ वह उध्र्वाधर समतल है जो पृथ्वी के भौगोलिक अक्ष से गुजरता है। किसी स्थान पर चुम्बकीय याम्योत्तर तथा भौगोलिक याम्योत्तर के बीच के कोण को उस स्थान का ”दिक्पात“ कहते है।
    • नमन कोण (Angle of dip)  किसी स्थान का नमन कोण यह बतलाता है कि उस स्थान पर पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्रा क्षैतिज दिशा पर कितने अंश के कोण से झुका है।
    • चुम्बकीय तूफान (Magnetic Storm): किसी स्थान पर चुम्बकीय तत्त्वों में समय के साथ नियमित परिवर्तन होते रहते है। किंतु कभी-कभी अचानक कुछ अनियमित परिवर्तन भी होते है। अनियमित परिवर्तन का परिमाण बहुत अधिक होता है। पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र  के तत्वों के ऐसे परिवर्तन को चुम्बकीय तूफान कहा जाता है।
    • आवेश: विद्युत आवेश के मूल स्त्रोत प्रोटाॅन तथा इलेक्ट्राॅन है। ये वस्तु में ही विद्यमान रहते है। वस्तु में इलेक्ट्राॅन के घटने या बढ़ने पर ही वस्तु धनावेषित या ऋणावेषित होती है।
    • विद्युत चालक एवं विद्युतरोधी: सभी धातुओं में मुक्त इलेक्ट्राॅन होते है। इनके स्थानान्तरण से धातु में विद्युत-चालन होता है। अतः ताँबा, चाँदी, ऐल्यूमिनियम, सोना आदि विद्युत चालक होते है।
    • जिन पदार्थों में परमाणु के सभी इलेक्ट्राॅन, परमाणु के साथ दृढ़ता से बंधे रहते है, उनमें पदार्थ के भीतर मुक्त इलेक्ट्राॅन नहीं होते। अतः इनमें विद्युत-चालन नहीं होता, ऐसे पदार्थ विद्युतरोधी कहे जाते है। सल्फर, काँच, चीनी मिट्टी, अभ्रक आदि विद्युतरोधी है।
    • ओम का नियम: यदि चालक का ताप स्थिर रहे तो चालक से प्रवाहित धारा (I) चालक के सिरों के बीच के विभवान्तर (V) के समानुपाती होता है। 
    • यदि विद्युत परिपथ से I KW (1000 वाट) की दर से 1 घंटे तक कार्य संपादित हो तो परिपथ में 1 घंटे में 1 किलोवाट-घंटा विद्युत ऊर्जा उपयुक्त होती है।

अवतल दर्पण से बने प्रतिबिम्ब

वस्तु की स्थिति

प्रतिबिम्ब की स्थिति

प्रतिबिम्ब की प्रकृति

1. अनन्त दूरी पर

फोकस तल में

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से बहुत छोटा

2. अनन्त तथा वक्रता केन्द्र के बीच

फोकस तथा वक्रता केन्द्र के बीच

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से छोेटा

3. वक्रता केन्द्र पर

वक्रता केन्द्र पर

वास्तविक, उल्टा, वस्तु के बराबर

4. वक्रता केन्द्र तथा फोकस के बीच

वक्रता केन्द्र तथा अनन्त के बीच

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से बड़ा

5. फोकस पर

अनन्त पर

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से बहुत बड़ा

6. फोकस और ध्रुव के बीच

दर्पण के पीछे

आभासी, सीधा, वस्तु से बड़ा

उत्तल लेंस से बने प्रतिबिम्ब

वस्तु की स्थिति

प्रतिबिम्ब की स्थिति

प्रतिबिम्ब की प्रकृति

1. अनन्त दूरी पर

दूसरी ओर फोकस तल में

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से बहुत छोटा

2. अनन्त व 2f के बीच

दूसरी ओर लेंस और 2f के बीच

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से छोटा

3.  2f पर

दूसरी ओर 2f पर

वास्तविक, उल्टा, वस्तु के बराबर

4. 2f और f के बीच

दूसरी ओर 2f से परे

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से बड़ा

5. f पर

दूसरी ओर अनन्त पर

वास्तविक, उल्टा, वस्तु से बहुत बड़ा

6. f और लेंस के बीच

लेंस के उसी ओर

आभासी, सीधा, वस्तु से बड़ा

 

ट्रांसफाॅर्मर

इसका काम धारा के विभव को घटाना-बढ़ना है। यह दो प्रकार का होता है:
(i) स्टेप-अप ट्रांसफाॅर्मर: यह प्रत्यावर्ती धारा के विभव को उच्च करता है। इसके दो कुंडली में से एक कुंडली के तार मोटे तथा कम चक्कर वाले होते है, जबकि दूसरी कुंडली के तार पतले तथा अधिक चक्कर वाले होते है। जब विद्युत धारा ”मोटी तार वाली कुंडली“ से ”पतली तार वाली कुंडली“ में प्रवाहित होती है तो अधिक विभव की धारा दूसरी कुंडली में प्रेरित होती है।
(ii) स्टेप-डाउन ट्रांसफाॅर्मर: जब विद्युत धारा ‘पतली तार वाली कुंडली’ से ‘मोटी तार वाली कुंडली’ में प्रवािहत होती है तो कम विभव की विद्युत धारा उत्पन्न होती है।

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FAQs on सामान्य भौतिकी (भाग - 3) - भौतिकी विज्ञान, सामान्य विज्ञान, UPSC - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. प्रकाश (Optics) क्या है?
उत्तर: प्रकाश (Optics) एक भौतिकी शाखा है जो प्रकाश के स्वरूप, प्रसारण और प्रकाशिकी के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करती है। यह विज्ञान बताता है कि प्रकाश कैसे उत्पन्न होता है, कैसे प्रसारित होता है और कैसे तथ्यों का उपयोग करके इसका आवेदन किया जा सकता है।
2. प्रकाश (Optics) के मुख्य विभाग क्या हैं?
उत्तर: प्रकाश (Optics) के मुख्य विभाग निम्नलिखित हैं: - ज्योतिर्मिति विज्ञान (Geometrical Optics): इस विभाग में प्रकाश के स्वरूप, प्रसारण, रिफ्रेक्शन और रिफ्रेक्शन के कानूनों का अध्ययन होता है। - प्रकाशिकी (Physical Optics): इस विभाग में प्रकाश की इंटरफेरेंस, डिफ्रेक्शन और प्रकाशिक गतियाँ का अध्ययन होता है। - उच्च तार प्रकाशिकी (Optoelectronics): इस विभाग में प्रकाश के उच्च तार के प्रभाव और तथ्यों का अध्ययन होता है।
3. प्रकाशिकी (Physical Optics) क्या है?
उत्तर: प्रकाशिकी (Physical Optics) प्रकाश की डिफ्रेक्शन, इंटरफेरेंस, प्रकाशिक गतियाँ और उनके अनुप्रयोगों का अध्ययन करती है। यह विभाग प्रकाश के असाधारण गुणों और प्रकाशिक तथ्यों का विश्लेषण करता है जो ज्योतिर्मिति विज्ञान (Geometrical Optics) के परिधीय विस्तार के बाहर होते हैं।
4. प्रकाशिकी (Physical Optics) के अनुप्रयोग क्या हैं?
उत्तर: प्रकाशिकी (Physical Optics) के अनुप्रयोग निम्नलिखित हो सकते हैं: - होलोग्राफी: होलोग्राफी एक तकनीक है जिसमें प्रकाश के इंटरफेरेंस का उपयोग करके तीन-बायो-एक आवर्ती छवि को बनाया जाता है। - लेजर: लेजर प्रकाशिकी का एक महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है। यह उच्च तार प्रकाशिकी का उपयोग करके एक संकेतक प्रकाश का निर्माण करता है। - क्वांटम प्रकाशिकी: क्वांटम प्रकाशिकी में प्रकाश के अनुच्छेद-व्याप्ति और अनुच्छेद-व्याप्ति के गतिविधियों का अध्ययन होता है।
5. प्रकाशिकी (Physical Optics) के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य क्या हैं?
उत्तर: कुछ दिलचस्प प्रकाशिकी (Physical Optics) तथ्य निम्नलिखित हैं: - प्रकाश की डिफ्रेक्शन एक तकनीक है जिसमें प्रकाश के माध्यम से गुजरते हुए वस्तु की आकृति में परिवर्तन होता है। - इंटरफेरेंस में, दो या अधिक प्रकाश तत्वों का मिलन प्रदर्शित होता है और ज्योतिर्मिति के विभिन्न प्रकारों को बनाता है। - प्रकाशिक गतियाँ, प्रकाश की तत्वावधानिकता और भिन्न ऋणात्मक और धनात्मक दोषों का प्रभाव बताती हैं। - प्रकाशिकी से आपूर्ति तथा इंटरफेरेंस के माध्यम से विद्युतीय उपकरणों की निर्माण प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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