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सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 4 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

द स्ट्रिंग आफ पर्ल्स


यह हिन्द महासागर क्षेत्र में संभावी चीनी मंशाओं संबंधी भू-राजनीतिक सिद्धांत है, यह संचार की इसकी समुद्री रेखाओं पर चीनी सेना और वाणिज्यिक सुविधाओं और संबंधों के नेटवर्क को दर्शाता है, जो चीन की भूमि से लेकर पोर्ट सूडान तक फैला है। यह समुद्री रेखाएँ अनेक मुख्य समुद्री चोक बिन्दुओं जैसे मंजेब की खाड़ी, मलक्का की, खाड़ी, होर्मुज की खाड़ी सहित पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, और सोमालिया से गुजरती है। भू-राजनीतिक अवधारणा के रूप में इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले आंतरिक अमेरिकी रक्षा रिपोर्ट एशिया में ऊर्जा भविष्य में किया गया था। इस शब्द का प्रयोग चीन सरकार द्वारा आधिकारिक रूप में कभी नहीं किया गया है, परन्तु भारतीय मीडिया में इसे प्रायः प्रयोग किया जाता है। स्ट्रिंग आफ पर्ल्स का प्रादुर्भाव पोतों, विमानपत्तनों, सैन्य बलों का विस्तार और आधुनिकीकरण और व्यापार भागीदारी के लिए सशक्त राजनयिक संबंधों को बढ़ावा देने के माध्यम से चीन के बढ़ते भू-राजनीतिक प्रभाव को दर्शाता है। चीन सरकार कहती है कि चीन की बढ़ती नौसेना रणनीति प्रकृति में पूर्णतः शांतिपूर्ण है और केवल क्षेत्रीय व्यापार हितों के संरक्षण हेतु है। इकोनॉमिस्ट द्वारा किए विश्लेषण में पाया गया कि चीन के कदम पूर्णतः वाणिज्यिक हैं। यद्यपि, यह दावा किया गया है कि चीन की कार्यवाही हिन्द महासागर में चीन और भारत के मध्य सुरक्षा संकट को निर्मित कर रही है, यह प्रश्न कुछ विश्लेषकों द्वारा उठाया गया है, जो चीन की मूल रणनीतिक भेद्याताओं की ओर इशारा करता है।

गैर-पारंपरिक खतरे


समुद्रीय आतंकवाद आतंकवादह ने सामान्य रूप में सुरक्षा परिदृश्य परिवर्तित कर दिया है और इससे कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रहा है, फिर भी चाहे यह भूमि, अंतरिक या समुद्र हो। भारतीय परिदृश्य में विशेषकर आतंकवाद का समुद्रीय सुरक्षा तैयारी पर काफी प्रभाव है। 1993 के सीरियल बम धमाके और मुम्बई पर 26/11 हमला इस बात के स्पष्ट उदाहरण हैं कि हमारे समुद्री मार्ग कितने भेद्य हैं और किसी देश में मानव और सामग्री घुसपैठ के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इनका निशाना निर्दोष सिविलियन परिसम्पत्तियाँ हो सकती हैं जैसे वाणिज्यिक केन्द्र, जनसंख्या केन्द्र, पारेषण, औद्योगिक केन्द्र, पोत, जहाजों सहित सामरिक महत्ता के पारंपरिक सैन्य लक्ष्य और अपतटीय तेल सुविधाएँ या परमाणु ऊर्जा संयंत्र।

समुद्र से भूमि को खतरा


1993 में मुम्बई सीरियल विस्फोटों के लिए विस्फोट सामग्री समुद्री मार्गों से नावों के द्वारा भारत के पश्चिमी तट पर पहुँची थी। 26/11 हमला आतंकियों के एक समूह द्वारा किया गया था, जो छिद्रयुक्त समुद्रीय सीमा से भारत में घुसे थे।

भूमि से समुद्र को खतरा


2000 दशक के प्रारम्भ में अल कायदा ने अमरीकी नौसेना पोत यूएसएल कोल पर बमबारी कर 17 लोगों को मार गिराया था। 2003 में तीन ईराकी तेल टर्मिनलों पर विस्फोट से लदी स्पीड नावों द्वारा पर्शियन खाड़ी में हमला किया गया था। 2014 में अलकायदा आतंकियों ने उत्तर पश्चिमी हिन्द महासागर पर अमरीकी नौसेना पोत को निशाना बनाने के लिए पाकिस्तानी नौसेना नाव को जब्त करने का प्रयास किया था।

तस्करी


सुदूर समुद्र किसी एकल राष्ट्र या एजेन्सी के क्षेत्राधिकार के बाहर है, इसलिए इन क्षेत्रों की निगरानी की संभावनाएँ काफी कम होती हैं। इस अवसर का दोहन पर गैर-राज्य कारक तस्करी के अविनियमित कार्यकलापों में शामिल होते हैं। भारत की बायीं ओर स्वर्ण चापाकार और इसकी दायीं ओर स्वर्ण त्रिभुजक व्यापक पदार्थों और हथियारों की तस्करी हेतु समुद्र पर अनियमित आवाजाही के सतत दबाव में रहता है। तस्कर गहरे समुद्र का प्रयोग सामान को स्थानीय नावों में रखने की कार्यविधि के लिए करते हैं, जो बाद में अपतटीय मत्स्यन कार्यकलापों से मिलकर इस सामान को किसी भी स्थान पर पहुँचा सकती है। इस समस्या से जुड़ा एक आयाम हमारे पड़ोसी देशों से/में की जा रही परमाणु सामग्री की तस्करी भी है।

अवैध, असूचित और अविनियमित मत्स्यन


  • आईयूयू मानव लालच का परिणाम है, जो मानता है कि समुद्रीय संसाधन प्रकृति के असीमित उपहार हैं। परन्तु यह महसूस किया गया है कि समुद्रीय जीव संसाधन, यद्यपि नवीकरणीय, असीमित नहीं है और इनका संवहनीय आधार पर प्रबंधन करना आवश्यक है। आईयूयू में जीवित संसाधनों, समुद्रीय पर्यावरण, जैव-विविधता और तटीय जनता की भावी जीविका को खराब और यहाँ तक कि नष्ट करने का जोखिम है।
  • संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण-पश्चिमी हिन्द महासागर में मत्स्यन संसाधनों का 75% अपनी सीमा समाप्त कर चुका है और शेष 25% का दोहन परिस्थितिकीय संवहनीयता से अधिक किया गया है। यह भारत को प्रभावित कर रहा है चूंकि यह भारतीय मछुआरा समुदाय की जीविका सहित खाद्य और आर्थिक सुरक्षा को प्रभावित कर रहा है। भारत और श्रीलंका के मध्य पाल्क खाड़ी में विद्यमान तनाव मत्स्यन क्षेत्र संबंधी दावों और विभिन्न मत्स्यन विधियों के प्रयोग को लेकर है। इसी प्रकार भारतीय और पाकिस्तानी मछुआरों को एक-दूसरे की समुद्रीय और विधि प्रवर्तन एजेन्सियों द्वारा निरूद्ध किया जाता है, यदि वे अधिक लालच के कारण एक-दूसरे के क्षेत्र में घुसपैठ करते हैं।

जलवायु परिवर्तन


  • जलवायु परिवर्तन; वैश्विक तापन ने सम्पूर्ण विश्व में मौसमी तापमान और जलवायु पैटर्नों को परिवर्तित किया है। इसने भविष्य में सम्भावी बड़े प्रभावों के साथ समुद्रीय सुरक्षा को भी प्रभावित किया है। इसका प्रभाव, जीवित संसाधनों, निचले तटीय क्षेत्रों और द्वीपों के जलमग्न होने की संभावना, राष्ट्रीय क्षेत्र इत्यादि की क्षति पर पड़ेगा।
  • प्राकृतिक आपदाओं जैसे उष्णकटिबंधीय यह चक्रवात, तूफान, तटीय और समुद्रीय जलमग्नता की वर्तमान प्रवृत्ति जलवायु परिवर्तन के साथ बढ़ सकती है। हमें प्रभावी ढंग में प्रतिक्रिया करने हेतु अपनी प्राथमिकताओं का निर्धारण करना होगा।

भारत का समुद्रीय सुरक्षा प्रबंधन


  • ऐतिहासिक रूप में भारत की समुद्री यात्रा परम्पराएँ और समुद्रीय परम्पराएँ और समुद्रीय क्षमताएँ जो इसे पूर्व में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों और पश्चिम में पर्शिया, मेसोपोटामिया और रोम के तटों तक ले गई प्रलेखित नहीं है। जब हम दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों जैसे मलेशिया, इण्डोनेशिया, थाइलैंड की ओर देखते हैं तो हम पाते हैं कि ये भारतीय संस्कृति, भाषा एवं वास्तुकला से काफी प्रभावित हैं, यहाँ तक कि इनके खान-पान पर भी भारत का विशिष्ट प्रभाव है। यह इन क्षेत्रों में स्पष्ट दिखाई देता है और यह वहाँ केवल कई शताब्दियों के आपसी समुद्रीय सम्पर्क द्वारा ही पहुँच सकता है। यह 13वीं शताब्दी तक भारत के पूर्वी तट पर विकसित होने वाले राजवेशों के अनुक्रमण द्वारा पल्लवित समुद्री यात्रा कार्यकलापों और समुद्रीय परंपराओं को प्रयोग सिद्धि प्रमाण है। इसी प्रकार पश्चिम तट से भारतीय नौसैनिक पार्शिया मेसोपोटामिया और रोम के साथ व्यापार कर रहे थे।
  • पिछली सहस्त्राब्दि में हमारे शासकों द्वारा समुद्री सीमा की अनदेखी और स्वतंत्रता उपरांत सामरिक दिशा की कमी ने वित्तीय कमी के साथ मिलकर हमारी समुद्रीय सुरक्षा तैयारी को अत्यधिक निचले स्तर पर पहुँचा दिया। यह विगत दो दशकों में ही हुआ कि कुछ कारकों और घटनाओं ने भारत को अपनी समुद्रीय सुरक्षा प्रबंधन पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए बाध्य किया। ये नीचे दिए गए हैं -
  • 1990 में अर्थव्यवस्था के खुलने के बाद, भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और ऊर्जा आवश्यकता में वृद्धि हुई। चूंकि अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्रीय मार्ग से किया जाता है, समुद्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए और विभिन्न प्रकार के खतरों से समुद्र के पोत परिवहन मार्गों के सुरक्षित रखने सहित इसकी काफी महत्ता है।
  • अपने अखड़ व्यवहार के साथ सैन्य और आर्थिक शक्ति के रूप में चीन का विकास, किसी भी समय भारत के साथ लड़ाई का कारण बन सकता है। हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की भौगौलिक स्थिति इसे चीन की हवाई शक्ति और सेना की ताकत से तुलना करने का अवसर देती है। भारत को अपनी भौगोलिक स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिए समुद्र में तैयार रहना चाहिए।
  • भारत ने समुद्री क्षेत्र में अपनी कमजोरी को मुम्बई सीरियल बम धमाकों और मुम्बई हमले की घटनाओं के बाद ही महसूस किया।
  • उदारीकरण के बाद सतत जीडीपी विकास भारतीय नौसेना की लंबित परियोजनाओं के कार्यान्वयन हेतु संसाधनों/निधियों को सृजित कर रही है।

चुनौतियों का प्रबंधन


➤   26/11 हमले ने भारत सरकार एवं भारतीय समुद्रीय सुरक्षा में तीन मूल कमियों को महसूस किया।

  1. इसकी तटरेखा में छिद्रता।
  2. अपने समुद्रीय क्षेत्र की निगरानी में अपर्याप्तता।
  3. समुद्रीय सुरक्षा में भूमिका निभाने वाली विभिन्न एजेन्सियों के मध्य समन्वय की कमी।

➤   इन कमियों को दूर करने के लिए तटीय और अपतटीय सुरक्षा ढांचे को तदनुसार भारतीय नौसेना को केन्द्रीय एजेन्सी तथा तटरक्षक को सहायक सहित राज्य पुलिस और अन्य एजेंसियों की अधिक भूमिका के साथ तैयार किया गया।

➤   भारत सरकार द्वारा किए गए उपाय नीचे दिए गए हैं-

  1. अनेक राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों सहित सभी समुद्रीय अंशधारकों और केन्द्रीय एजेन्सियों का नई तटरेखा सुरक्षा तंत्र में एकीकरण, मंत्रिमण्डल सचिव की अध्यक्षता में राष्ट्रीय समुद्रीय एवं तटीय सुरक्षा सुदृढ़ीकरण समिति।
  2. नौसेना कमांडर-इन चीफ को तटीय पुलिस के कमांडर-इन-चीफ के रूप में पद नामित किया गया।
  3. महानिदेशक, तटरक्षक को कमांडर तटीय कमांडर का नया पदनाम दिया गया और तटीय सुरक्षा के मामलों में केन्द्रीय और राज्य एजेन्सियों के साथ तटीय सुरक्षा के मामलों में केन्द्रीय और राज्य एजेन्सियों के साथ सम्पूर्ण समन्वय का उत्तरदायित्व दिया गया।
  4. सागर प्रहरी बल/समुद्र हमला टुकड़ी का गठन भारतीय नौसेना द्वारा नौसेना बेसों और अन्य क्षेत्रों के संरक्षण के लिए किया गया।
  5. सागर सुरक्षा दल, मछुआरों और तटीय क्षेत्रों के प्रशिक्षित स्वयंसेवियों का समूह है, जिन्हें निगरानी और आसूचना इकट्ठा करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  6. भी मछुआरों के लिए पहचान-पत्र जारी करना और मछली पकड़े वाली 2 लाख नावों की पहचान और ट्रेनिंग हेतु इनका पंजीकरण करना।
  • तटरेखा सुरक्षा हेतु सभी तटीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की पुलिस, इनका प्रशासन, भारतीय नौसेना, गृह मंत्रालय और अन्य केन्द्रीय मंत्रालय समन्वय में काम कर रहे हैं। तटीय राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा तटरक्षक के साथ परामर्श में किए गए भेद्यता/अंतर विश्लेषण के आधार पर तटीय सुरक्षा स्कीम चरण-1 और चरण-2 हेतु प्रस्ताव को स्वीकृत कर दिया गया है।

तटीय सुरक्षा स्कीम चरण 1 और 2


इस स्कीम को 1 वर्ष के विस्तार के साथ 5 वर्षों में कार्यान्वयन हेतु जनवरी 2005 में स्वीकृत किया गया था, यह स्कीम मार्च 2011 में पूरी हो जाएगी चरण 2 को 1 अप्रैल, 2011 से अगले पाँच वर्षों हेतु कार्यान्वयन के लिए 24 सितम्बर, 2010 को स्वीकृत किया गया था।

समुद्रीय सुरक्षा संबंधी कुछ परियोजनाएँ


  • आंतरिक जल इस शब्द से आधार रेखा ;उदाहरण निम्न जल रेखा के सभी चल भूभाग और तट संदर्भित हैं। देश का विद्यमान कानून सामान्य कानून सहित इसके आंतरिक जल और इसके ऊपर वायु क्षेत्र पर भी प्रयोज्य होगा। इस मार्ग में निर्दोषता से गुजरने का अधिकार नहीं है।
  • प्रादेशिक जल तट रेखा से 12 एनएम की दूरी के भीतर समुद्र पर देश का विद्यमान कानून, सामान्य कानून सहित इसके आंतरिक जल और इसके ऊपर वायुक्षेत्र पर भी प्रयोज्य होगा। इस मार्ग से निर्दोषता से गुजरने का अधिकार होगा। सतह पर नौवहन के लिए पनडुब्बियों और अन्य पानी के अंदर चलने वाले यानों को अपना झण्डा दिखाना होगा।
  • संस्पर्शी क्षेत्र- यह क्षेत्र समुद्र के प्रादेशिक जल के आगे परन्तु आधार रेखा से 24 एनएम की दूरी को इंगित करता है। इस संस्पर्शी क्षेत्र और इसके ऊपर के वायु क्षेत्र पर देश के कानून के अनुसार किसी भी उल्लंघन हेतु राजकोषीय कानून या रिवाज, उत्प्रवास या स्वच्छता और ऐसे उल्लंघन के लिए दण्ड देने का अधिकार होगा।
  • विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र यह प्रादेशिक जल से आगे समुद्र का क्षेत्र है परन्तु यह आधार रेखा से 200 एनएम की दूरी के भीतर का क्षेत्र है। इस क्षेत्र पर प्राकृतिक संसाधनों के सम्बन्ध में देश के अन्य सभी कानून प्रयुक्त होंगे। प्रादेशिक जल के समान ही अधिकार और शक्तियाँ हैं।

वायु क्षेत्र सुरक्षा, चुनौतियाँ एवं प्रबंधन


  • सुरक्षा खतरों और चुनौतियों का बदलता परिदृश्य राष्ट्रों को अपनी सारी सीमाएँ सुरक्षित करने के लिए बाध्य करता है। भूमि और समुद्र सहित रक्षा की एक परत सुरक्षित वायु क्षेत्र भी है, इसके लिए अंतरिक्ष या इस क्षेत्र को निशाना बनाने वाले खतरे को कुचलने के लिए सुरक्षा तैयारी की आवश्यकता होती है।
  • वायु क्षेत्र के सुरक्षा पहलूओं में प्रवेश करने से पहले हमें वायु क्षेत्र की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। वस्तुतः यह राष्ट्र के ऊपर वायुमंडल का क्षेत्र है। बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में यात्रियों, कार्गों और सैन्य परिसंपत्तियों की आवाजाही हेतु विमानों के अंतर्राष्ट्रीय प्रयोग में वृद्धि हुई और इसने वायु सम्प्रभुता के प्रश्न को पैदा किया। वायु क्षेत्र और वायु क्षेत्र सम्प्रभुता की परिभाषा में कुछ स्पष्टता लाने का पहला प्रयास पेरिस संधि 1919, द्वारा किया गया था। इसके अनुसार “प्रत्येक राष्ट्र का इसके प्रादेशिक जल सहित इसके सीधे ऊपर के वायु क्षेत्र पर विशिष्ट संप्रभुता अधिकार होता है”
  • इसके बाद 1944 में अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन की वायु क्षेत्र के समन्वय और विनियमन प्रयोग हेतु स्थापना की। वर्तमान में आईसीएओ के भारत सहित 191 सदस्य राष्ट्र हैं। इन दोनों संधियों को वायु क्षेत्र प्रबंधन में मील का पत्थर माना जाता है।

वायु क्षेत्र में कुछ परिभाषाएँ


  • नियंत्रित वायु क्षेत्र- यह वायु क्षेत्र के भीतर मापित आयाम है, जिसमें एयर ट्रैफिक कंट्रोल उपाय प्रदान किए जाते हैं।
  • अनियंत्रित वायु क्षेत्र- अनियंत्रित वायुक्षेत्र में हर प्रकार के विमानों को उड़ने की अनुमति है, जहाँ विमान यदि चाहें तो विमान सूचना सेवाएँ प्राप्त कर सकते हैं।
  • प्रतिबंधित क्षेत्र- वायु क्षेत्र में प्रतिबंधित क्षेत्र सामान्यतः राष्ट्रीय सुरक्षा और कई बार पर्यावरण चिन्ताओं को ध्यान में रखकर परिभाषित किया जाता है। इस क्षेत्र में विमानों को किसी भी समय या स्थिति में जाने की अनुमति नहीं है।
  • निषिद्ध क्षेत्र- वायु क्षेत्र का निषिद्ध क्षेत्र किसी राष्ट्र के भू-भाग या प्रादेशिक जल के ऊपर का वह निर्धारित आयाम है, जिसने विशिष्ट स्थितियों के साथ वायुयानों की उड़ान निषिद्ध होती है।
  • खतरनाक क्षेत्र- यह वायु क्षेत्र का काफी बड़ा भाग हो सकता है जिसमें सैन्य अभ्यास, मिसाइल, प्रक्षेपण और अन्य कार्यकलाप किए जाते हैं और इसलिए इस क्षेत्र में विमानों की उड़ानें निषिद्ध होती हैं।
  • हम देखते हैं कि ऐसे जोन वायु क्षेत्र को नागर विमानन ट्रैफिक हेतु काफी सीमित क्षेत्र में निषिद्ध करते हैं। चूँकि अधिसूचना के उपरांत निषिद्ध क्षेत्र और खतरा क्षेत्र काफी लम्बे समय के लिए सक्रिय रखते हैं, वायु क्षेत्र के वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु इष्टतम प्रयोग के लिए वायु क्षेत्र का लचीला प्रयोग की एक अवधारणा विकसित की गई है।

भारतीय वायु क्षेत्र


आर्थिक उदारीकरण के परिणामस्वरूप बढ़ता हवाई ट्रैफिक और व्यापार मार्गों की निगरानी हमारे वायु क्षेत्र के प्रबंधन को महत्वपूर्ण ओर चुनौतीपूर्ण बनाती है। किसी अन्य वायु क्षेत्र की तरह भारतीय वायु क्षेत्र में भी नागरिक विमानन हेतु काफी कम जगह है और अधिकतर वायु क्षेत्र प्रतिबंधित, निषिद्ध या खतरे वाले जोन हैं। यद्यपि इन जोनों की सुरक्षा महत्वपूर्ण पहलू है, परन्तु आर्थिक और वाणिज्यिक पहलूओं के प्रभावी प्रबंधन हेतु निगरानी में अधिक निवेश और अन्य सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। वाणिज्यिक प्रयोजनों हेतु प्रभावी प्रयोग के लिए हमारे वायु क्षेत्र में भी यूरोपीयन अवधारणा को शामिल किया जा रहा है।

उपाय


हमारे इस बड़े वायु क्षेत्र को सुरक्षित रखने और इस क्षेत्र के भीतर एयर ट्रैफिक प्रबंधन हेतु भारत को विद्यमान अवसंरचनाओं और प्रक्रियाओं को अपग्रेड करने की आवश्यकता है। हमारे वायु क्षेत्र के सभी अंशधारकों को मिलकर अपनी रणनीतिक सुरक्षा चिन्ताओं के सुरक्षोपायों सहित एयर ट्रैफिक प्रबंधन हेतु संस्थागत वायु क्षेत्र प्रबंधन स्थापित करना चाहिए। वायु क्षेत्र प्रबंधन में भारतीय वायु सेना द्वारा भारतीय सेना और कतिपय क्षेत्रों में भारतीय नौसेना के संयोजन में किए जाने वाले वायु रक्षा उपाय, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, भारतीय वायु सेना द्वारा प्रदान की जाने वाली एयर ट्रैफिक सेवाएं और कुछ हद तक हिन्दुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड और भारतीय वायु सेना और नौसेना की सीमित वायु रक्षा भूमिकाएं सम्मिलित हैं।

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