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Economic Development (आर्थिक विकास): December 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

भारत की तेल निर्भरता

चर्चा में क्यों?

  • रूस लगातार दूसरे महीने नवंबर 2022 में पारंपरिक विक्रेताओं इराक और सऊदी अरब को पीछे छोड़कर भारत के लिये शीर्ष तेल आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है।
  • रूस के पास अब भारत के कुल कच्चे तेल के आयात की 22% हिस्सेदारी है, जो  इराक के 20.5% और सऊदी अरब के 16% की तुलना में अधिक है।
  • 5 दिसंबर से रूस के समुद्री तेल के आयात पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध ने रूस को लगभग 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन के लिये मुख्य रूप से एशिया में वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश करने के लिये प्रेरित किया है।

भारत के तेल आयात/खपत का वर्तमान परिदृश्य

  • अमेरिका और चीन के बाद भारत लगभग 5 मिलियन बैरल प्रतिदिन के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। देश में तेल की मांग सालाना 3-4 फीसदी की दर से बढ़ रही है।
    • इस अनुमान के आधार पर एक दशक में भारत प्रतिदिन लगभग 7 मिलियन बैरल की खपत कर सकता है।
  • पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के अनुसार, भारत ने वर्ष 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष में 196.5 मिलियन टन था।
    • अप्रैल 2022-23 में तेल आयात निर्भरता लगभग 86.4% थी, जो एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में 85.9% रही थी।
  • यह तर्क दिया गया है कि बढ़ती मांग के कारण तेल की खपत में वृद्धि हुई है, जिसने उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों को हाशिये पर डाल दिया है।
  • कच्चे तेल का उच्च आयात बिल व्यापक आर्थिक मापदंडों (Macroeconomic Parameters) को प्रभावित कर सकता है।

कच्चे तेल के आयात को कम करने के लिये की गई पहल

  • मार्च 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने ‘ऊर्जा संगम 2015’ क अनावरण किया जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को आकार देने के उद्देश्य से आयोजित भारत की सबसे बड़ी वैश्विक हाइड्रोकार्बन बैठक थी।
    • इस अवसर पर सभी हितधारकों से आग्रह किया गया कि वे तेल एवं गैस के घरेलू उत्पादन में वृद्धि करें ताकि वर्ष 2022 तक आयात निर्भरता को 77 प्रतिशत से घटाकर 67 प्रतिशत और वर्ष 2030 तक 50 प्रतिशत तक सीमित किया जा सके।
  • सरकार ने प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट (PSC) व्यवस्था, डिस्कवर्ड स्मॉल फील्ड पॉलिसी, हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP), न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी (NELP) आदि के तहत तेल और प्राकृतिक गैस के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिये विभिन्न नीतियाँ भी पेश की हैं।
    • हालाँकि घरेलू तेल उत्पादन के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि तेल और गैस परियोजनाओं में अन्वेषण से लेकर उत्पादन तक की लंबी प्रक्रियात्मक अवधि होती है। 
    • इसके अलावा मूल्य निर्धारण और कर नीतियाँ स्थिर नहीं हैं, साथ ही तेल तथा गैस व्यवसाय में बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है। निवेशक अक्सर जोखिम लेने के प्रति सावधान रहते हैं।
  • भारत सरकार कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP) को बढ़ावा दे रही है।
    • सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को वर्ष 2030 से पहले ही वर्ष 2025 तक पूरा कर लेने का निश्चय किया है।

भारत की तेल आयात निर्भरता को कम करने हेतु आवश्यक कदम: 

  • घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन: 10% सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि की ओर बढ़ते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि भारत में तेल की मांग केवल बढ़ने वाली है और यह भी कि आने वाले कई वर्षों तक भारत एक तेल अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
    • तेल संबंधी आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने का एकमात्र तरीका विदेशों में भारत के स्वामित्त्व वाली अन्वेषण एवं उत्पादन संपत्तियों को और विकसित करना है। चीन ने भी यही तरीका अपनाया है। 
    • सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज तेल कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) भी मौजूदा परिपक्व तेल-क्षेत्रों के पुनर्विकास और नए/सीमांत क्षेत्रों के विकास के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिये विभिन्न कदम उठा रही है।
  • वैकल्पिक हरित स्रोत: भारत के लिये एक अन्य विकल्प यह है कि अपने दायरे का विस्तार करे और हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करे। अर्थव्यवस्था के गति पकड़ने के साथ ही बिजली की मांग में तेज़ी आ रही है। CoP26 प्रतिबद्धताओं के साथ नवीकरणीय ऊर्जा की मांग अब तक के उच्चतम स्तर पर है, जिसके लिये पर्याप्त क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है।
    • नियामक समर्थन के साथ ही निजी निवेश और सरकारी पहलों के कारण पवन क्षेत्र ने गति पकड़ ली है।
    • हालाँकि सौर सेल एवं मॉड्यूल की वैश्विक आपूर्ति और अनुकूल नीतियों के समर्थन से सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनकर उभरी है।

ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स

चर्चा में क्यों?  

  • हाल ही में सरकार ने देश के तेज़ी से बढ़ते डिजिटल ई-कॉमर्स स्पेस को "लोकतांत्रिक" करने के उद्देश्य से ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स ( Open Network for Digital Commerce- ONDC) का पायलट चरण शुरू किया है, जिसमें वर्तमान में दो अमेरिकी मुख्यालय वाली फर्मों - अमेज़ॅन और वॉलमार्ट का वर्चस्व है। 

ONDC के बारे में

परिचय

  • ONDC वैश्विक स्तर पर अपनी तरह की पहली पहल है जिसका उद्देश्य डिजिटल कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण करना है और इसे एक प्लेटफॉर्म-केंद्रित मॉडल से एक खुले नेटवर्क की ओर ले जाना है। 
    • ONDC के तहत, यह परिकल्पना की गई है कि एक भाग लेने वाली ई-कॉमर्स साइट (उदाहरण के लिये-अमेज़ॅन) पर पंजीकृत खरीदार किसी अन्य प्रतिभागी ई-कॉमर्स साइट (उदाहरण के लिये, फ्लिपकार्ट) पर विक्रेता से सामान खरीद सकता है। 
    • वर्तमान में, खरीदारों और विक्रेताओं को एक ही प्लेटफॉर्म के माध्यम से होने वाले लेनदेन के लिये एक ही ऐप पर होना चाहिये। उदाहरण के लिये, किसी खरीदार को अमेज़ॅन पर किसी विक्रेता से उत्पाद खरीदने के लिये अमेज़ॅन पर जाना होगा। 
  • यह एक गैर-लाभकारी संगठन है जो उद्योगों में स्थानीय डिजिटल कॉमर्स स्टोर को किसी भी नेटवर्क-सक्षम एप्लीकेशन द्वारा खोजने और संलग्न करने में सक्षम बनाने के लिये एक नेटवर्क की पेशकश करेगा। 
    • खुले नेटवर्क की अवधारणा खुदरा क्षेत्र से परे, थोक, गतिशीलता, खाद्य वितरण, रसद, यात्रा, शहरी सेवाओं आदि सहित किसी भी डिजिटल वाणिज्य डोमेन तक फैली हुई है। 
  • यह न तो एक एग्रीगेटर एप्लीकेशन है और न ही एक होस्टिंग प्लेटफॉर्म है, और सभी मौजूदा डिजिटल कॉमर्स एप्लिकेशन और प्लेटफ़ॉर्म स्वेच्छा से अपनाने और ONDC नेटवर्क का हिस्सा बनने का विकल्प चुन सकते हैं। 
  • ONDC का उद्देश्य किसी भी विशिष्ट प्लेटफॉर्म पर स्वतंत्र, खुले विनिर्देशों और खुले नेटवर्क प्रोटोकॉल का उपयोग करके, ओपन-सोर्स पद्धति पर विकसित नेटवर्क को बढ़ावा देना है। 
  • ONDC का कार्यान्वयन, जिसके एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) की तर्ज पर होने की उम्मीद है, ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों द्वारा रखे गए विभिन्न परिचालन पहलुओं को एक ही स्तर पर ला सकता है। 
  • ओपन-सोर्स तकनीक पर आधारित नेटवर्क के माध्यम से ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म को एकीकृत करने की परियोजना को भारतीय गुणवत्ता परिषद को सौंपा गया है।  
  • ओपन सोर्स एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम या प्लेटफॉर्म को संदर्भित करता है जिसमें सोर्स कोड होता है जो आसानी से सुलभ होता है और जिसे किसी के द्वारा संशोधित या बढ़ाया जा सकता है। ओपन सोर्स एक्सेस किसी एप्लीकेशन के उपयोगकर्त्ताओं को टूटे हुए लिंक को ठीक करने, डिज़ाइन को बढ़ाने या मूल कोड में सुधार करने की अनुमति देता है। 

लाभ

  • ONDC कैटलॉगिंग, इन्वेंट्री प्रबंधन, ऑर्डर प्रबंधन और ऑर्डर पूर्ति जैसे कार्यों का मानकीकरण करेगा, जिससे छोटे व्यवसायों के लिये नेटवर्क पर खोजे जाने योग्य और व्यवसाय का संचालन करना सरल और आसान हो जाएगा। 

संभावित मुद्दे

  • विशेषज्ञों ने ग्राहक सेवा और भुगतान एकीकरण से संबंधित मुद्दों के साथ-साथ साइन अप करने के लिये पर्याप्त संख्या में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म प्राप्त करने जैसे संभावित संभावित मुद्दों की ओर इशारा किया है। 

Economic Development (आर्थिक विकास): December 2022 UPSC Current Affairs | भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindiमहत्त्व

  • ONDC पर खरीदार और विक्रेता इस तथ्य के बावजूद लेनदेन कर सकते हैं कि वे एक विशिष्ट ई-कॉमर्स पोर्टल से जुड़े हुए हैं
  • यह छोटे ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं और नए प्रवेशकों को प्रोत्साहित कर सकता है। 
  • हालांँकि यदि यह अनिवार्य किया जाता है तो यह बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिये समस्यायुक्त हो सकता है, क्योंकि बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों ने संचालन के इन क्षेत्रों हेतु अपनी प्रक्रियाएंँ और प्रौद्योगिकी स्थापित कर रखे हैं। 
  • ONDC से संपूर्ण मूल्य श्रृंखला को डिजिटाइज़ करने, संचालन का मानकीकरण करने, आपूर्तिकर्ताओं के समावेशन को बढ़ावा देने, लॉजिस्टिक्स में दक्षता प्राप्त करने और उपभोक्ताओं के लिये मूल्य बढ़ाने की अपेक्षा है। 
  • यह मंच समान अवसर भागीदारी की परिकल्पना करता है और उपभोक्ताओं के लिये ई-कॉमर्स को अधिक समावेशी और सुलभ बनाने की अपेक्षा रखता है क्योंकि वे संभावित रूप से किसी भी संगत एप्लीकेशन/प्लेटफॉर्म का उपयोग करके किसी भी विक्रेता, उत्पाद या सेवा की खोज कर सकते हैं, जिससे उनकी पसंद की स्वतंत्रता बढ़ जाती है। 
  • यह किसी भी मूल्यवर्ग के लेनदेन को सक्षम करेगा, इस प्रकार ONDC को वास्तव में 'लोकतांत्रिक वाणिज्य हेतु खुला नेटवर्क' बना देगा। 
  • अगले पांँच वर्षों में ONDC नेटवर्क पर 90 करोड़ उपयोगकर्त्ताओ और 12 लाख विक्रेताओं को जोड़ने की अपेक्षा करता है, जिससे 730 करोड़ अतिरिक्त खरीदारी हो सकेगी। 

वैश्विक छंँटनी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बड़े पैमाने पर छंँटनी की घोषणा की है, जो पहले ही सितंबर और अक्तूबर 2022 में 60,000 को पार कर चुकी है।

  • छंँटनी, नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के प्रदर्शन से असंबंधित कारणों से रोज़गार की अस्थायी या स्थायी समाप्ति है।

छंँटनी के कारण

  • लागत में कटौती
    • वैश्विक मंदी की चर्चा के साथ तकनीकी कंपनियाँ, जिन्हें आमतौर पर बड़े खर्च करने वाली के रूप में देखा जाता है, अब लागत में कटौती का सहारा ले रही हैं।
    • लागत में कटौती छंँटनी के मुख्य कारणों में से एक है क्योंकि कंपनियाँ अपने खर्चों को कवर करने के लिये पर्याप्त लाभ नहीं कमा रही हैं या उन्हें ऋण चुकाने के लिये पर्याप्त अतिरिक्त नकदी की आवश्यकता है।
    • भारतीय स्टार्टअप्स को भी इस परेशानी का सामना मीडिया रिपोर्ट्स से करना पड़ा है, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2022 में मुख्य रूप से एडटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में स्टार्टअप्स द्वारा दस हज़ार से अधिक कर्मचारियों की छंँटनी की गई है।
  • आर्थिक मंदी का डर
    • ये कंपनियाँ संभावित आर्थिक मंदी से आशंकित हैं, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) ने महामारी और चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष को देखते हुए वर्ष 2022 तथा 2023 दोनों में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) वृद्धि के पूर्वानुमान को निराशाजनक बताया है।
  • ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर निर्भरता का कम होना
    • महामारी के दौरान, मांग में वृद्धि आई क्योंकि लोग लॉकडाउन में थे और वे इंटरनेट पर बहुत समय बिता रहे थे। समग्र खपत में वृद्धि देखी गई जिसके बाद कंपनियों ने बाज़ार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपने उत्पादन में वृद्धि की।
    • मांगों को पूरा करने के लिये कई तकनीकी कंपनियों ने महामारी के बाद भी उछाल जारी रहने की उम्मीद में कंपनी में भर्ती की होड़ शुरू कर दी।
    • हालाँकि जैसे-जैसे प्रतिबंधों में ढील दी गई और लोगों ने अपने घरों से बाहर निकलना शुरू किया, खपत में कमी आई, जिसके परिणामस्वरूप इन बड़ी टेक कंपनियों को भारी नुकसान हुआ। मांग में अचानक उछाल के कारण इनमें से कुछ संसाधनों को उच्च लागत पर काम पर रखा गया था।

भारतीय व्यवसायों का भविष्य

  • भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी सेवा कंपनियाँ संगठित क्षेत्र में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से हैं और किसी भी वैश्विक आर्थिक प्रवृत्ति का उनके विकास संबंधी अनुमानों पर प्रभाव पड़ना तय है।
  • क्योंकि वे निवेशकों के प्रति उत्तरदायी होते हैं, प्रबंधन खर्च को कम करने और लाभ मार्जिन बनाए रखने की कोशिश करते समय कर्मचारियों के स्तर पर सावधानीपूर्वक विचार करता है।
  • हालाँकि अभी तक इससे संबंधित कोई स्पष्ट रुझान नहीं है, फिर भी कुछ संकेत हैं जो बता सकते हैं कि अगले कुछ महीनों में क्या होने की आशा है?
  • विप्रो को छोड़कर, सभी प्रमुख व्यवसायों के राजस्व और शुद्ध लाभ में वृद्धि हुई। सितंबर तिमाही के लिये, विप्रो का शुद्ध लाभ पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 9% कम रहा।
  • शीर्ष दो फर्मों, TCS और इन्फोसिस प्रति 100 कर्मचारियों की संख्या, यह दर्शाती है कि ये दरें अभी भी उच्च हैं, जिसका अर्थ है कि प्रतिस्पर्धियों के कर्मचारियों को आकर्षित करने के लिये इस क्षेत्र के लिये पर्याप्त व्यवसाय है।
  • भारतीय स्टार्ट-अप फ्रंट में छंँटनी की खबरें मुख्य रूप से एडटेक या एजुकेशनल टेक्नोलॉजी फ्रंट में हैं।

छंँटनी का प्रभाव

  • श्रमिकों के लिये नुकसान: छंँटनी मनोवैज्ञानिक रूप से और साथ ही वित्तीय रूप से प्रभावित श्रमिकों के साथ-साथ उनके परिवारों, समुदायों, सहयोगियों और अन्य व्यवसायों के लिये हानिकारक हो सकती है।
  • संभावनाओं का नुकसान:
    • जिन भारतीय श्रमिकों को नौकरी से निकाला गया है, उनकी चिंता बहुत बड़ी है। यदि वे 60 दिनों के भीतर एक नया नियोक्ता खोजने में असमर्थ हैं, तो उन्हें अमेरिका छोड़ने और बाद में फिर से प्रवेश करने की संभावना का सामना करना पड़ता है।
    • मामलों को बदतर बनाने के लिये, इन भारतीय श्रमिकों की घर वापसी की संभावनाएंँ भी कमज़ोर हैं।
    • अधिकांश भारतीय आईटी कंपनियों ने नियुक्तियों को फ्रीज या धीमा कर दिया है क्योंकि अमेरिका में मंदी की आशंका और यूरोप में उच्च मुद्रास्फीति ने मांग को कम रखा है।
  • ग्राहकों की संभाव्यता में कमी:
    • जब कोई कंपनी अपने कर्मचारियों छंँटनी करती है तो इससे ग्राहकों में यह संदेश जाता है कि वह किसी प्रकार से संकटग्रस्त है।
  • भावनात्मक संकट:
    • यद्यपि जिस व्यक्ति को नौकरी से निकाल दिया जाता है,वह सबसे अधिक संकट में होता है लेकिन शेष कर्मचारी भी भावनात्मक रूप से भी पीड़ित होते हैं। भय के साथ काम करने वाले कर्मचारियों का उत्पादकता स्तर कम होने की संभावना होती है।

पूर्ववर्ती वैश्विक मंदी के दौरान भारत की स्थिति

  • पूर्ववर्ती वैश्विक मंदी के दौरान यद्यपि कंपनियों ने शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से छंँटनी की घोषणा की थी लेकिन वे सभी उन कर्मचारियों को निकालना चाहते थे जिनका प्रदर्शन स्तर काफी नीचे था।
  • जो कंपनियाँ विशेष रूप से खराब दौर से गुज़र रही थीं उन्होंने बेंच स्ट्रेंथ (समूह के प्रतिभाशाली लोगों की संख्या) में कटौती की। इसके बाद यदि कोई व्यक्ति समूह में केवल एक महीने पुराना था (यानी, उनके पास कोई परियोजना नहीं थीा), तो उसे कुछ प्रशिक्षण कार्यों आदि के लिये साइन अप करने के लिये कहा जा सकता था।
  • यदि किसी पेशेवर ने बेंच/समूह में तीन महीने से अधिक समय लगाया और एक भी परियोजना पूरी नहीं की थी, तो सिस्टम स्वयं उसे बाहर निकाल देता था।।
  • 2008 की मंदी का परिणाम यह हुआ कि कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि को धीमा करना शुरू कर दिया।
  • कैंपस से किये जाने वाले नियोजित परिवर्द्धन में कमी की गई अथवा नियोजन का प्रस्ताव तो दिया जाता था लेकिन चयनित व्यक्ति को कंपनी के साथ जुड़ने में 9-12 महीने का समय लगता था।

आगे की राह

  • भारतीय स्टार्टअप अपने पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में तेज़ गति से आगे बढ़े हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि एक स्टार्टअप ने विकास के क्रम में आसमान छू लिया है तो उसके कर्मचारियों की नौकरियाँ भी सुरक्षित होंगी।
  • स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति कार्यक्रम व्यक्तियों को सुचारू रूप से सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ने में सक्षम बना सकते हैं।

GDP और GVA

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (2022-23 या वित्त वर्ष 2023) के लिये भारत के आर्थिक विकास के आँकड़े जारी किये।

  • भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दूसरी तिमाही में 6.3% बढ़ा और इसी दौरान सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) में वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 5.6% वृद्धि हुई।
  • विशेष रूप से भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहा क्योंकि चीन ने जुलाई-सितंबर, 2022 में 3.9% की ही आर्थिक वृद्धि दर्ज की।
  • GDP और GVA देश के आर्थिक प्रदर्शन का पता लगाने के दो मुख्य तरीके हैं।

GDP और GVA

  • GDP:
    • सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) किसी देश की सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट समय अवधि, आम तौर पर 1 वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। यह एक राष्ट्र की समग्र आर्थिक गतिविधि का एक व्यापक माप है।
  • चार प्रमुख "GDP विकास के इंजन":
    • भारतीयों द्वारा अपने निजी उपभोग (अर्थात् निजी अंतिम उपभोग व्यय या PFCE) के लिये खर्च किया गया सारा पैसा।
    • सरकार द्वारा अपने वर्तमान उपभोग पर खर्च किया गया सारा पैसा, जैसे कि वेतन [सरकारी अंतिम उपभोग व्यय या GFCE]
    • अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता को बढ़ावा देने के लिये निवेश किया गया सारा पैसा। इसमें फैक्टरियों में निवेश करने वाली व्यावसायिक फर्म या सड़कों और पुलों का निर्माण करने वाली सरकारें शामिल हैं [सकल स्थायी पूंजीगत व्यय]।
    • निर्यात का शुद्ध प्रभाव (विदेशियों ने हमारी वस्तुओं पर जो खर्च किया) और आयात (भारतीयों ने विदेशी वस्तुओं पर जो खर्च किया) [शुद्ध निर्यात या NX]।
  • GDP की गणना:
    • GDP = निजी खपत + कुल निवेश + सरकार द्वारा निवेश + सरकार द्वारा खर्च + (आयात-निर्यात)
  • सकल मूल्य वर्द्धन (Gross Value Added- GVA):
    • GVA आपूर्ति पक्ष के संदर्भ में राष्ट्रीय आय की गणना करता है।
    • यह विभिन्न क्षेत्रों के सभी मूल्य वर्द्धन का योग करता है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, किसी क्षेत्र के GVA को आउटपुट के मूल्य में से मध्यवर्ती इनपुट के मूल्य को घटा कर प्राप्त मूल्य के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह "मूल्य वर्द्धन " उत्पादन, श्रम और पूंजी के प्राथमिक कारकों के बीच साझा किया जाता है।
    • GVA वृद्धि को देखकर यह समझना आसान है कि अर्थव्यवस्था के कौन- से क्षेत्र मज़बूत है और कौन- क्षेत्र संघर्षशील है।

GDP और GVA में संबंध

  • GDP का मुख्य आधार GVA डेटा होता है।
  • GDP और GVA निम्नलिखित समीकरण द्वारा संबंधित हैं: GDP = (GVA) + (सरकार द्वारा अर्जित कर)-(सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी) ।
  • जैसे, अगर सरकार द्वारा अर्जित कर उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी से अधिक है, तो सकल घरेलू उत्पाद GVA से अधिक होगा।
  • सकल घरेलू उत्पाद डेटा वार्षिक आर्थिक विकास का आकलन करने और देश के आर्थिक विकास की तुलना बीते समय अथवा किसी अन्य देश की आर्थिक विकास से करने काफी सहायक होता है।

समर्थ योजना

चर्चा में क्यों?
वस्त्र मंत्रालय की समर्थ योजना के तहत विगत तीन वर्षों में 13,235 से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षित किया गया है

समर्थ योजना

  • परिचय: 
    • समर्थ (वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण योजना) एक प्रमुख कौशल विकास योजना है जिसे 12वीं पंचवर्षीय योजना (FYP) के लिये एकीकृत कौशल विकास योजना, आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति की निरंतरता में अनुमोदित किया गया है।  
    • विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) का कार्यालय राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम (NHDP) के घटक 'हस्तशिल्प क्षेत्र में कौशल विकास' के तहत हस्तशिल्प कारीगरों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये समर्थ (SAMARTH) का कार्यान्वयन कर रहा है। 
  • उद्देश्य:
    • वस्त्र मंत्रालय के संबंधित क्षेत्रीय प्रभागों/संगठनों के माध्यम से पारंपरिक क्षेत्रों में कौशल और कौशल उन्नयन को बढ़ावा देने के लिये संगठित वस्त्र एवं संबंधित क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में उद्योग के प्रयासों को प्रोत्साहित करने हेतु मांग-आधारित रोज़गार -उन्मुख कौशल प्रदान करना।
    • देश में समाज के सभी वर्गों को आजीविका प्रदान करना।  

भारत में वस्त्र क्षेत्र की स्थिति:

  • परिचय: 
    • वस्त्र और परिधान उद्योग एक श्रम गहन क्षेत्र है जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और रोज़गार के मामले में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर है। 
    • भारत का वस्त्र क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है तथा पारंपरिक कौशल, विरासत एवं संस्कृति का भंडार व वाहक है। 
  • इसे दो खंडों में विभाजित किया जा सकता है: 
    • असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने का है जो पारंपरिक उपकरणों और विधियों का उपयोग करता है। इसमें हथकरघाहस्तशिल्प एवं रेशम उत्पादन शामिल हैं।
    • संगठित क्षेत्र आधुनिक मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करता है तथा इसमें कताईपरिधान एवं वस्त्र शामिल हैं।
  • वस्त्र क्षेत्र की अन्य योजनाएँ:
    • एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP): इसे वर्ष  2005 में शुरू किया गया, इसका उद्देश्य उद्योग को अपनी वस्त्र इकाइयों की स्थापना के लिये विश्व स्तरीय अत्याधुनिक बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करना है।
    • पावर-टेक्स इंडिया: इसमें पावरलूम टेक्सटाइल में नए अनुसंधान और विकास, नए बाज़ार, ब्रांडिंग, सब्सिडी व श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजनाएंँ शामिल हैं।
    • रेशम समग्र योजना: यह योजना घरेलू रेशम की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है ताकि आयातित रेशम पर देश की निर्भरता कम हो सके।
    • संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Amended Technology Upgradation Fund Scheme- ATUFS): यह कपड़ा उद्योग के प्रौद्योगिकी उन्नयन और आधुनिकीकरण के लिये पूंजी निवेश को उत्प्रेरित करने हेतु एक क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल इन्वेस्टमेंट सब्सिडी (CIS) योजना है।
    • राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: भारत में हथकरघा बुनकर समुदाय के महत्त्व को चिह्नित करने के लिये प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है।
    • राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन: मिशन का उद्देश्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार का आकार 40 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़ाकर 50 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक कर भारत को तकनीकी वस्त्रों में एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करना है।

सोने का आयात और तस्करी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वित्त मंत्री ने कहा है कि अधिकारियों को यह पता लगाना चाहिये कि क्या उच्च सोने के आयात और तस्करी के बीच कोई संबंध है साथ ही तस्करी का पता लगाने हेतु  क्या तरीका है।

  • यह ज्ञात है कि जब भी सोने के आयात में वृद्धि होती हैसोने की तस्करी भी आमतौर पर बढ़ जाती है।

भारत में सोने की तस्करी

  • परिचय:
    • डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) की स्मगलिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 में कुल 833 किलोग्राम तस्करी का सोना ज़ब्त किया गयाजिसकी कीमत लगभग 500 करोड़ रूपए थी।
    • वर्ष 2020-21 में खाड़ी क्षेत्र से तस्करी में गिरावट देखी गई थी क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण हवाई उड़ानें रद्द कर दी गई थीं।
    • अगस्त 2020 तक पाँच वर्षों में भारत भर के हवाई अड्डों पर तस्करी के 16,555 मामलों में 11 टन से अधिक सोना ज़ब्त किया गया है।
    • उपर्युक्त रिपोर्ट किये गए आँकड़े ज़ब्त किये गए सोने के थे, हालाँकि जो तस्करी सफल रही हैं वह एजेंसियों द्वारा ज़ब्त की गई राशि से कहीं अधिक हो सकती है।
    • विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold CouncilWGC)  के अनुसार, सोने पर आयात शुल्क 7.5% से बढ़ाकर 12.5% करने के कारण तस्करी पूर्व कोविड अवधि की तुलना में वर्ष 2022 में 33% बढ़कर 160 टन तक पहुँच सकती है।
    • पिछले 10 वर्षों में महाराष्ट्र में भारत में अधिकांश सोने की तस्करी हुई है उसके बाद तमिलनाडु और केरल का स्थान है।
  • पूर्वोत्तर तस्करी मार्ग:
    • DRI की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ब्त किये गए सोने का 73 फीसदी म्याँमार और बांग्लादेश के जरिये लाया गया था।
    • वित्त वर्ष 2012 में ज़ब्त किये गए सोने का 37% म्याँमार से था। इसका 20% हिस्सा पश्चिम एशिया से ज़ब्त किया गया है।
    • कई अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों से पता चलता है कि तस्करी का सोना चीन से म्याँमार में क्रमशः रुइली और म्यूज़ के शहरों के माध्यम से लाया जाता है।
    • म्यूज़ पूर्वोत्तर म्याँमार में शान राज्य में स्थित है और रुइली युन्नान प्रांतचीन के देहोंग दाई प्रांत में स्थित है।

भारत द्वारा आयातित सोने की मात्रा

  • विदेशी मुद्रा के अधिक बहिर्वाह के साथ, आधिकारिक चैनलों के माध्यम से सोने के आयात में वृद्धि देखी जा रही है।
  • वर्ष 2020-21 में 2.54 लाख करोड़ रूपए के सोने के आयात की तुलना में वर्ष 2021-22 में 3.44 लाख करोड़ रूपए का आयात दर्ज किया गया।
  • वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता भारत, एक साल में लगभग 900 टन सोने का आयात करता है। वर्ष 2021 में भारत में इसकी खपत 797.3 टन थी (विगत 5 वर्षों में सबसे अधिक)।
  • भारत गोल्ड डोर बार(gold dore bar) के साथ-साथ परिष्कृत सोने(refined gold) का आयात करता है।
  • विगत पाँच वर्षों में, सोने की डोर बार का आयात, भारत में पीली धातु के कुल आधिकारिक आयात का 30% रहा।
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FAQs on Economic Development (आर्थिक विकास): December 2022 UPSC Current Affairs - भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) for UPSC CSE in Hindi

1. भारत की तेल निर्भरता क्या है?
उत्तर: भारत की तेल निर्भरता उसकी तेल आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता को दर्शाती है। यह देश के तेल उत्पादन और तेल आयात के बीच का संतुलन होता है। तेल निर्भरता के माध्यम से देश अपने आवश्यकताओं को स्वतंत्रता से पूरा कर सकता है और तेल संबंधित विपणन विघटन से मुक्त हो सकता है।
2. ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स क्या है?
उत्तर: ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) एक सरकारी पहल है जो भारत में डिजिटल कॉमर्स को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई है। इसका मकसद देश में डिजिटल व्यापार के लिए एक संघटित और उपयोगकर्ता मित्रात्मक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना है। ONDC उत्पादकों, विपणन स्थानों, और उपभोक्ताओं के बीच सीमाहीन और उचित व्यापार सुनिश्चित करने के लिए एक साझा डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म बनाने का प्रयास करता है।
3. वैश्विक छंटनी का प्रभाव क्या है?
उत्तर: वैश्विक छंटनी का प्रभाव विभिन्न देशों और उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर वैश्विक मानव संसाधन और पूंजी की वितरण में होने वाले प्रभाव को दर्शाता है। यह वित्तीय, वाणिज्यिक, और सांस्कृतिक बदलावों का कारण बनता है। वैश्विक छंटनी के कारण बदलते दुनिया में व्यापार, निवेश, और अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में बदलाव हो सकते हैं।
4. GDP और GVA में क्या अंतर है?
उत्तर: GDP (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) और GVA (ग्रॉस वैल्यूएड एडडेड) दोनों आर्थिक माप तत्व हैं, लेकिन उनमें थोड़ा अंतर है। GDP देश की संपूर्ण उत्पादन को मापता है, जबकि GVA केवल उत्पादक क्षेत्र (व्यापार, निर्माण, सेवाएं आदि) को मापता है। GVA में केवल सीमित क्षेत्र का माप होता है जबकि GDP उसके सभी व्यापारिक क्षेत्रों को शामिल करता है।
5. सोने का आयात और तस्करी क्या है?
उत्तर: सोने का आयात और तस्करी सोने के साथ व्यापारिक गतिविधियों को दर्शाता है। यह शामिल कर सकता है सोने की आयात, सोने की खरीद, सोने की बिक्री, और सोने से जुड़े व्यापारिक प्रक्रियाओं को। सोने का आयात और तस्करी आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि इससे बाजार में सोने की सप्लाई और डिमांड का प्रभाव हो सकता है।
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