प्रज्ञता मापने के लिए सबसे पहला वैज्ञानिक प्रज्ञता परीक्षण बिने (Binet) तथा साइमन (Simon) ने 1905 में विकसित किया। इस परीक्षण में प्रज्ञता को मानसिक आयु के रूप में मापकर अभिव्यक्ति किया गया परन्तु इससे मनोवैज्ञानिकों को अधिक सन्तुष्टि नहीं हुई। 1916 में बिने-साईमन परीक्षण का सबसे महत्त्वपूर्ण संशोध न टरमैन (Terman) ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (Stanford University) में किया। इसी संशोधन में प्रज्ञता लब्धि (intelligence quotient or IQ) के अवधारणा का जन्म हुआ और प्रज्ञता मापने में मानसिक आयु की जगह पर प्रज्ञता-लब्धि (10) का प्रयोग होने लगा हालांकि प्रज्ञता लब्धि के बारे में विलियम स्टर्न (Willian Stern) ने 1912 में सबसे पहले सुझाव दे चुके थे।
प्रज्ञता लब्धि (IQ) मानसिक आयु तथा तैथिक आयु का एक ऐसा अनुपात है जिसमें 100 से गुणा कर प्राप्त किया जाता है। यही कारण है कि इस अनुपात को अनुपात प्रज्ञता लब्धि (ratio IQ) भी कहा जाता है। सूत्र के रूप में इसे इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
प्रज्ञता = (मानसिक आयु/तैथिक आयु) x100
या, IQ% = (MA/CA)x100
इसका एक उदाहरण इस प्रकार है- मान लिया जाय कि किसी प्रज्ञता परीक्षण द्वारा मापन पर 6 साल के बच्चे की मानसिक आयु 5 साल की आती है और एक 4 साल के बच्चे की मानसिक आयु 5 साल की आती है तो पहले बच्चे की प्रज्ञता लब्धि 5/6 x 100 = 83 आयेगी तथा दूसरे बच्चे की प्रज्ञता लब्धि 5/4 x 100 = 125 आयेगी। स्पष्टत: दूसरा बच्चा पहले बच्चे से प्रज्ञता में अधिक प्रखर है। इस तरह प्रज्ञता लब्धि द्वारा हमें प्रारम्भ के उम्रों में होने वाली तीन बौद्धिक विकास (rapid intellectual growth) का स्पष्ट ज्ञान होता है। चूंकि बौद्धिक विकास कम उम्र में यानी 3-4 साल में अधिक तेजी से होती है और अधिक उम्र जैसे 15-16 साल की उम्र होने पर इसकी गति धीमी हो जाती है। अत: मानसिक आयु तथा तैथिक आयु में समान अन्तर होते हुए भी इन दो अवस्थाओं के प्रज्ञता लब्धि में अधिक अन्तर हो जायेगा। उदाहरणार्थ, मान लिया जाय कि एक 5 साल के बच्चे की मनसिक आयु 4 साल की है तथा एक 15 साल के बच्चे की मानसिक आयु 14 साल है। क्या इन दोनों बच्चों का बौद्धिक स्तर समान है? क्या इन दोनों की प्रज्ञता लब्धि समान है। कदापि नहीं। 15 साल के बच्चे की प्रज्ञता लब्धि 14/15 x 100 = 93 आता है जबकि 5 साल के बच्चे को प्रज्ञता लब्धि 4/5 - 100 = 80 आता है। स्पष्टतः मानसिक आयु तथा तैथिक आयु में समान अन्तर (अर्थात एक-एक साल का) होने पर भी दोनों बच्चे की प्रज्ञता लब्धि में अन्तर हो जाता है। ऐसा क्यों? इसलिए कि कम उम्र में बौद्धिक विकास तीव्रता से होता है।
भिन्न-भिन्न प्रज्ञता-लब्धि का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है। मनोवैज्ञानिकों ने प्रज्ञता लब्धि के भिन्न-भिन्न मान के अर्थ को स्पष्ट एवं वस्तुनिष्ठ करने के लिए एक सामान्य तालिका बनायी है जिसे तालिका में दिखलाया गया है
इस तरह से हम देखते हैं कि प्रज्ञता लब्धि द्वारा हमें व्यक्ति के बौद्धिक स्तर का पता आसानी से चल जाता है।
यद्यपि प्रज्ञता लब्धि द्वारा व्यक्ति के प्रज्ञता को अभिव्यक्ति ठीक ढंग से होती है, फिर भी आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने प्रज्ञता लब्धि के इस अर्थ के प्रति असन्तोष व्यक्त किया है। इन लोगों का कहना है कि व्यक्ति की मानसिक आयु सामान्यतः 18-19 साल के उम्र के बाद नहीं बढ़ती है परन्तु उसकी तैथिक आयु में वृद्धि होती जाती है। ऐसी परिस्थिति में 19 साल के बाद के प्रत्येक उम्र के व्यक्तियों की प्रज्ञता लब्धि यदि उक्त सूत्र से ज्ञात किया जाए तो वह उत्तरोत्तर कम होती जायेगी। अत: आधुनिक मनोवैज्ञानिक ने प्रज्ञता लब्धि का आजकल एक नया अर्थ बतलाया है। इस नये अर्थ में प्रज्ञतालब्धि प्राप्तांक (IQ score) द्वारा किसी प्रज्ञता परीक्षण पर समान उम्र के अन्य व्यक्तियों की तुलना में व्यक्ति के निष्पादन (performance) का पता चलता है। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति के प्राप्तांक की व्याख्या उसके अपने उम्र के मानक (norms) से किया जाता है। प्रत्येक उम्र या आयु के माध्य प्राप्तांक को स्वेच्छा से 100 मान लिया जाता है और यदि किसी प्रज्ञता परीक्षण पर किसी व्यक्ति का प्राप्तांक अपने आयु के लिए निर्धारित माध्य अर्थात् 100 से अधिक होता है, तो उसे औसत से ऊपर प्रज्ञता का परन्तु यदि प्राप्तांक निर्धारित माध्य मध्य से कम आता है, तो उसे औसत से नीचे प्रज्ञता का समझा जाता है। दूसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति का प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक से इस नये अर्थ में यह पता चलता है कि औसत जिसे विचलन प्रज्ञता लब्धि (deviation IQ) कहा गया है, से किसी प्रज्ञता परीक्षण पर व्यक्ति का निष्पादन कितना विचलित (deviate) होता है। स्पष्टत: तब प्रज्ञता लब्धि के नवीनतम अर्थ में मानसिक आयु (mental age) के अवधारणा को हटा दिया गया है।
फ्लिन (Flynn, 1989) ने संसार के आठ प्रमुख देशों अर्थात् आस्ट्रेलिया, बेलजियम, कनाडा, फ्रांस, ग्रेट | ब्रिटेन, जापान, नीदरलैंड एवं संघीय राज्य यानी अमेरिका से प्रतिदर्श लेकर एक अध्ययन किया और पाया कि हाल के दशको में सभी उम्र के व्यक्तियों के औसत प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक में पर्याप्त वृद्धि हुई है जिस कारण विभन्न प्रज्ञता परीक्षणों के मानकों को इसके साथ समायोजित करने की आवश्यकता है। इस तरह के प्रभाव को इन्होंने अपने नाम से जोड़कर नामकरण किया, जिसे फ्लिन्न प्रभाव (Flymn effect) की संज्ञा दी गयी है। इसके अध्ययन के अनुसार प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक में सबसे अधिक वृद्धि फ्रांस और उसके बाद जापान तथा नीदरलैंड में हुआ है। संघीय राज्य अमेरिका में ऐसी वृद्धि तुलनात्मक रूप से कम हुई है। ट्रबकॉट एण्ड फ्रैंक (Trubcott & Franke, 2001) के अनुसार प्रज्ञता लब्धि में वृद्धि पुरुष एवं महिलाओं तथा विभिन्न प्रजातीय समूहों में लगभग एक समान ढंग से हो रहा है। अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि 1910 से संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रज्ञता लब्धि में 28 बिन्दु तथा 1942 से ब्रिटेन में करीब इसी ढंग की वृद्धि प्रज्ञता में हुई है। उसक मतलब यह हुआ कि पश्चिमी देशों में प्रति दशक प्रज्ञता लब्धि में करीब औसतन 3 प्रज्ञता हुआ है।
फ्लिन प्रभाव का कारण तो स्पष्ट नहीं है परंतु. कई तरह की संभावनाएँ इसके लिए जताई गई है। एक संभावित कारण यह है कि पहले की तुलना में मिलने वाले उत्तम पोषण से व्यक्तियों की प्रज्ञता लब्धि में वृद्धि हुई है। दूसरा संभावित कारण उत्तम एवं जटिल अधिगत की परिस्थितियाँ (Complex learning environment) है जिसके साथ निबटने के लिए जटिल युक्ति को व्यक्ति अपनाता है तथा जिससे भी उसकी मानसिक समता में वृद्धि हुई है। तीसरा संभावित कारण तरह-तरह के तकनीकी प्रगति है जिनसे व्यक्ति का वैश्लेषिक एवं अमूर्त तर्कणा कौशल (abstractreasoning skill) में काफी वृद्धि हुई है जिसके कारण प्रज्ञता परीक्षणों पर व्यक्ति का प्रज्ञता प्राप्तांक अधिक उच्च हुआ है।
मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि 6 साल के उम्र के पहले की प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक बहुत निर्भर योग्य एवं विश्वसनीय नहीं होते हैं। दो साल के उम्र में प्राप्त प्रज्ञता प्राप्तांक 18 साल की आयु में प्राप्त प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक के साथ मात्र 0.31 तक ही सह-संबधित पाये गए। इसका मतलब यह हुआ कि दो साल के उम्र में किसी बच्चे की आयु के बारे में जानकर हम यह सही-सही नहीं बतला सकते हैं कि उसकी प्रतता लधि 16 था 18 साल की आयु में भी ऐसा ही होगा। परंतु, जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, अर्थात् उनकी आयु बढ़ती जाती है, उनकी प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक में स्थिरता आते जाती है। मध्य बाल्यावस्था अर्थात् लगभग 10-11 साल की आयु होने पर प्राप्त प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक में परिवर्तन कम होता है। कैनिवेज एवं बैटकिन्स (Canivez & Watkins, 1998) के अध्ययन के अनुसार इस अवस्था में प्राप्त प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक में मात्र 5 बिन्दु का परिवर्तन ऊपरी या निचली दिशा में होता है।
जैसाकि हम जानते हैं, व्यक्ति की प्रज्ञता लब्धि मूलतः शिक्षा, परिपक्वता, अनुभव एवं जन्मजात प्रज्ञता के अंश को प्रतिविम्बित करता है। इसका परिणाम यह होता है कि 40 साल की आयु तक प्रज्ञता परीक्षण के प्राप्तांकों में थोड़ा-थोड़ा करके धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी होते जाती है। इस तथ्य की पुष्टि इक्रोन, हंट तथा हॉन्जिक (Eichorn, Hunt & Honzik 1981) के अध्ययन से भी हो चुका है, परन्तु प्रज्ञता प्राप्तांकों में बढ़ोत्तरी का यह दर एक औसत दर माना गया है क्योंकि कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अपने प्रज्ञता प्राप्तांक में तो अधिक वृद्धि कर लेते हैं, परंतु कुछ ऐसे होते हैं, जिनकी प्रज्ञता प्राप्तांक में काफी कमी भी हो जाती है। हॉजिक (Honzik, 2001) के अनुसार उन व्यक्तियों द्वारा अपनी प्रज्ञता लब्धि में अधिक बढ़ोत्तरी की जाती है जिनको आरंभिक व्यस्कावस्था में बौद्धिक उत्तेजन (intellectual stimlation) अधिक प्राप्त होता है, परंतु जिन व्यक्तियों की जीवन शैली अनउत्तेजक (unstimulating) होती है तथा जो चिरकालिक बीमारी के चपेट में होते हैं, उनकी प्रज्ञता लब्धि प्राप्तांक में काफी कमी हो जाती है।
कुछ अध्ययनों में मध्य आयु (middle age) के बाद प्रज्ञता लब्धि में कम गिरावट होते पाया गया है जबकि कुछ अध्ययन में इन अवस्था के बाद कोई परिवर्तन या बहुत कम परिवर्तन होते देखा गया है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस परस्पर विरोधी तथ्य की व्याख्या इस प्रकार की गयी है- जब प्रज्ञता प्राप्तांकों में हम लोगों का बल बोध (comprehension) या सामान्य ज्ञान (general knowledge) पर होता है तो 40 साल की आयु तक प्रज्ञता लब्धि में गिरावट न के बराबर होता है परंतु जब प्रज्ञता प्राप्तांकों में बल प्रत्यक्षज्ञानात्मक गति (perceptual speed) या तीव्र सूझ (rapid insight) पर होता है तो 40 साल के बाद प्रज्ञता लब्धि में तेजी से गिरावट आती है। विनट्ब (2003) के अध्ययन के अनुसार प्रज्ञता में उप सम्बन्धित हास, स्वास्थ एवं प्रशिक्षण व्यक्तियों के लिए सामान्यतः औसत से कम ही होता है, अर्थात् ऐसे लोगों में प्रज्ञता लब्धि की स्थिरता पायी जाती है। सुडफेल्ड एवं पाइड्राहिटा (Suedfeld & Piedrahita, 1984) ने प्रज्ञता तथा बढ़ती आयु के बीच एक अद्भुत संबंध के बारे में बतलाया है। इनका मानना है कि जीवन के कुछ अंतिम सालों में प्रज्ञता लब्धि में एक अचानक सीमान्त हास (terminal decline) देखने को मिलता है। इसका कारण शायद यह है कि व्यक्ति को अपने संभावित मृत्यु का एहसास होने लगता है क्योंकि मस्तिष्क में कुछ सार्थक परिवर्तन हो जाते हैं। सामान्य स्वास्थ्य होने के बावजूद मृत्यु के पांच साल पहले ही व्यक्ति की प्रज्ञता लब्धि में इस तरह का सीमान्त हास को आसानी से मापा जा सकता है।
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