प्रस्तावना
इसलिए अब महासभा यह घोषणा करती है कि
मानवाधिकारों की यह विश्वव्यापी घोषणा सभी लोगों और सभी राष्ट्रों के लिए ऐसा सर्वमान्य मानदण्ड बनेगी जिसे वे प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। समाज का प्रत्येक अंग और प्रत्येक व्यक्ति इस घोषणा को हमेशा ध्यान में रखते हुए इस दिशा में प्रयल करेगा और शिक्षा तथा अध्यापन के माध्यम से इन अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं के लिए सम्मान बढ़ाएगा। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उत्तरोत्तर बड़ते कदम के रूप में सदस्य राष्ट्रों तथा उनके अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों, दोनों ही में इन्हें सर्वमान्य और प्रभावी तरीके से मान्यता देने तथा इन पर अमल के लिए प्रयास किये जायेंगे।
1. सन् 1992 में स्थापित 'इण्टरनेशनल लीग फॉर ह्यूमन राइट्स', सन् 1992 में गठित 'इण्टरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स' तथा सन् 1961 में बना 'एमनेस्टी इण्टरनेशनल' नामक स्वैच्छिक संगठन निरन्तर प्रयासरत है कि विश्व में मानवाधिकारों का प्रसार हो। ये संगठन विश्वभर में मानवाधिकारों की स्थिति पर कड़ी निगरानी रखते हैं। सम्बन्धित देश की सरकार एवं संयुक्त राष्ट्र को रिपोर्ट भी देते हैं। बहुत से देशों में बिना मुकदमा चलाए वर्षों तक व्यक्ति कैद में रहते हैं। कहीं पर कोड़े मार-कार कर प्राण निकाल दिये जाते हैं। कई देशों में गोरे-काले की रंग-भेद नीति है। मानवाधिकारों के लिए कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों के अनुसार इजरायल, ईरान, चीन, चिली, दक्षिण अफ्रीका, अफगानिस्तान, बर्मा (म्यांमार) तथा भारत में आज भी शोषण तथा अत्याचार यथावत् है।
2. हमारे देश में पंजाब में एक दशक तक फैले आतंकवाद तथा 'आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम, 1986' (टाडा) के प्रवर्तन के पश्चात् मानवाधिकारों की मांग अधिक उठने लगी। भारत सरकार ने भी स्वीकारा कि देश के पुलिस थानों में बलात्कार, यातना तथा मृत्यु अधिक होती है। इन सब परिस्थितियों ने सरकार को सोचने को बाध्य किया। भारत में मौलिक अधिकारों का संरक्षण सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय करते हैं लेकिन न्यायपालिका के पास कार्य का बोझ अधिक है, अत: मानवाधिकरों के उल्लंघन के मामलों की जाँच हेतु पृथक् से 'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' बनाना पड़ा।
आवश्यकता (Need)
यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की आवश्यकता क्यों है जबकि हमारे पास पुलित तथा सामान्य न्यायालय कार्यरत हैं। इसके उत्तर में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं
भारत की संसद ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 पारित करके अक्टूबर, 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग गठित किया। अधिनियम की धारा 20(2) के अन्तर्गत यह व्यवस्था है कि केन्द्र सरकार, आयोग की रिपोर्ट संसद में रखेगी तथा उस पर क्या कार्यवाही की, यह भी संसद को बतायी जायेगी। यह आयोग एक पूर्ण वैधानिक संस्था है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। देश का कोई भी नागरिक आयोग से मानवाधिकारों से सम्बन्धित मामलों में कार्यवाही करने की प्रार्थना कर सकता है।
कार्य (Functions)
आयोग स्वयं पहल करके अथवा किसी पीड़ित या अन्य व्यक्ति की याचिका पर निम्नांकित शिकायतों की जाँच करता है
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