UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi  >  Politics and Governance (राजनीति और शासन): May 2023 UPSC Current Affairs

Politics and Governance (राजनीति और शासन): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

एल्डरमैन

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल द्वारा एल्डरमैन की नियुक्ति के खिलाफ दिल्ली सरकार द्वारा दायर की गई याचिका पर विचार करते हुए कहा कि उपराज्यपाल का सदस्यों को नामित करने का अधिकार निर्वाचित दिल्ली नगर निगम को अस्थिर कर सकता है। 

एल्डरमैन

  • परिचय:
    • व्युत्पन्न रूप से यह शब्द "एल्डर" और "मैन" के संयोजन से बना है जिसका अर्थ है वृद्ध व्यक्ति या अनुभवी व्यक्ति है।
    • यह शब्द मूल रूप से एक कबीले या जनजाति के बुजुर्गों के लिये संदर्भित था, हालाँकि जल्द ही यह उम्र पर विचार किये बिना राजा के वायसराय के लिये एक शब्द बन गया। साथ ही इसने नागरिक और सैन्य दोनों कर्तव्यों वाले एक अधिक विशिष्ट शीर्षक- "एक काउंटी के मुख्य मजिस्ट्रेट" को निरूपित किया।
    • 12वीं सदी CE में जैसे-जैसे संघ नगरपालिका सरकारों के साथ तीव्रता से जुड़ते गए, इस शब्द का प्रयोग नगर निकायों के अधिकारियों के लिये किया जाने लगा। यही वह अर्थ है जिसको आज तक प्रयोग किया जाता है
  • दिल्ली के संदर्भ में: 
    • दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अनुसार, 25 वर्ष से अधिक आयु के दस लोगों को उपराज्यपाल (LG) द्वारा निगम में नामित किया जा सकता है।
    • इन लोगों से नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव की अपेक्षा की जाती है।
    • वे सार्वजनिक महत्त्व के निर्णय लेने में सदन की सहायता करते हैं।

एल्डरमैन की नियुक्ति से संबंधित चिंताएँ

  • पहली चिंता नामित व्यक्तियों की उपयुक्तता से संबंधित है। उपराज्यपाल को सिफारिशें सौंपे जाने के बाद यह पता चला कि 10 नामांकित व्यक्तियों में से दो को तकनीकी रूप से पद के अनुपयुक्त माना गया था। यह नामांकन प्रक्रिया की संपूर्णता और पारदर्शिता पर सवाल उठाता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति जो इस भूमिका के लिये योग्य या उपयुक्त नहीं हैं, उन्हें नियुक्त नहीं किया जाना चाहिये।
  • दूसरी चिंता इस धारणा के इर्द-गिर्द घूमती है कि उपराज्यपाल द्वारा एल्डरमैन की नियुक्ति दिल्ली नगर निगम (Municipal Corporation of Delhi- MCD) के भीतर चुनाव में पराजित दल के नियंत्रण और प्रभाव को बनाए रखने का एक प्रयास है। यह दिल्ली नगर निगम के भीतर प्रतिनिधित्व के लोकतांत्रिक सिद्धांतों तथा शक्तियों की गतिशीलता की निष्पक्षता के संबंध में चिंता को दर्शाता है।

सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष

  • उपराज्यपाल का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत उपराज्यपाल की शक्तियों और राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासक के रूप में उनकी भूमिका के बीच अंतर है। उन्होंने दावा किया कि कानून के आधार पर एल्डरमैन के नामांकन में उपराज्यपाल की सक्रिय भूमिका है।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उपराज्यपाल को शक्ति देकर यह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित MCD को संभावित रूप से अस्थिर कर सकता है क्योंकि उनके पास मतदान की शक्ति होगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उपराज्यपाल के पास राष्ट्रीय राजधानी में व्यापक कार्यकारी शक्तियाँ नहीं हैं, जो शासन के अद्वितीय "असममित संघीय मॉडल" के तहत संचालित होती हैं।
    • यह शब्द "असममित संघीय मॉडल" शासन की एक प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें एक संघ के भीतर विभिन्न क्षेत्रों या घटकों के पास स्वायत्तता एवं शक्तियों का अलग-अलग क्षेत्राधिकार होता है।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उपराज्यपाल अनुच्छेद 239AA(3)(A) के तहत केवल तीन विशिष्ट क्षेत्रों में अपने विवेक से कार्यकारी शक्ति का प्रयोग कर सकता है:
    • सार्वजनिक व्यवस्था
    • पुलिस
    • दिल्ली में भूमि 
  • न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि उपराज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मंत्रिपरिषद से असहमत है, तो उसे लेन-देन के कार्य (Transaction of Business- ToB) नियम 1961 में उल्लिखित प्रक्रिया का पालन करना चाहिये।
    • लेन-देन के कार्य (Transaction of Business- ToB) नियम संविधान के अनुच्छेद 77(3) का भाग हैं, जो सरकार के विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के मध्य कार्य एवं ज़िम्मेदारियों के आवंटन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करये हैं। ये नियम सरकारी नीतियों के निर्माण, निर्णयों और कार्यों, अनुमोदन और कार्यान्वयन के लिये प्रक्रियाओं की रूपरेखा तैयार करने में सहायक होते हैं।

दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच क्या मतभेद है?

  • प्रष्ठभूमि: 
    • अनुच्छेद 239 और 239AA के सह-अस्तित्त्व के कारण NCT की सरकार और केंद्र सरकार तथा उसके प्रतिनिधि के रूप में उपराज्यपाल के मध्य एक न्यायिक संघर्ष की स्थिति रही है।
    • केंद्र सरकार का मानना है कि नई दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश है एवं अनुच्छेद 239 उपराज्यपाल को यहाँ की मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार देता है
    • जबकि दिल्ली की राज्य सरकार का मानना है कि संविधान का अनुच्छेद 239AA दिल्ली में विधायी रूप से निर्वाचित सरकार होने का विशेष दर्जा देता है।
    • यह दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उपराज्यपाल और राज्य सरकार की प्रशासनिक शक्तियों के मध्य विवाद की स्थिति को पैदा करता है
  • केंद्र और राज्य सरकारों के तर्क:
    • केंद्र सरकार का मानना है कि क्योंकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और देश का प्रतिनिधित्व करती है, इसलिये नियुक्तियों एवं तबादलों सहित प्रशासनिक सेवाओं पर केंद्र का अधिकार होना चाहिये।  
    • हालाँकि दिल्ली सरकार का तर्क है कि संघवाद की भावना में निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास स्थानांतरण और नियुक्ति पर निर्णय लेने की शक्ति होनी चाहिये। 
  • कानूनी मुद्दे : 
    • फरवरी 2019 में दो न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच शक्तियों के आवंटन पर निर्णय लेते समय यह मुद्दा सामने आया था।
    • उन्होंने प्रशासनिक सेवा नियंत्रण के सवाल को बड़ी बेंच द्वारा तय किये जाने के लिये छोड़ दिया था।
      • केंद्र सरकार की याचिका पर मई 2022 में तीन जजों की बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर कर दिया था।
      • तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने निर्णय लिया था कि प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के प्रश्न को "पुनः समीक्षा" की आवश्यकता है।
    • दूसरे मुद्दे में संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 शामिल है।  
      • अधिनियम में कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में उल्लिखित "सरकार" शब्द उपराज्यपाल को संदर्भित करेगा

फोरम शॉपिंग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) ने फोरम शॉपिंग की प्रथा की निंदा की। उल्लेखनीय है कि एक वकील द्वारा मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उसी मामले का उल्लेख किया गया जिसका उल्लेख उसने एक दिन पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के समक्ष भी किया था। 

फोरम शॉपिंग का अभ्यास

  • परिचय: 
    • फोरम शॉपिंग अनुकूल परिणाम प्राप्त करने की आशा में एक कानूनी मामले के लिये जान-बूझकर एक विशेष अदालत का चयन करने के अभ्यास को संदर्भित करता है।
    • वादी और वकील प्राय: इस रणनीति को अपनी मुकदमेबाज़ी योजना का हिस्सा मानते हैं।
      • उदाहरण के लिये वे अपने मामले पर अधिक ध्यान आकर्षित करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय (SC) जैसे उच्चतम न्यायालय का विकल्प चुन सकते हैं। हालाँकि अगर कोई स्पष्ट रूप से व्यवस्था में हेर-फेर करने या किसी विशेष न्यायाधीश से बचने की कोशिश कर रहा है, तो इसे अनुचित माना जाता है।
    • इसी तरह "बेंच हंटिंग" एक अनुकूल आदेश सुनिश्चित करने के लिये किसी विशेष न्यायाधीश या बेंच द्वारा अपने मामलों की सुनवाई हेतु प्रबंधन करने वाले याचिकाकर्त्ताओं को संदर्भित करता है।
  • लाभ: 
    • यह वादी को न्यायालय में न्याय और मुआवज़े की मांग करने की अनुमति दे सकता है जो कि उसके दावों या हितों के प्रति अधिक सहानुभूतिपूर्ण है।
    • यह न्यायालयों और न्यायाधीशों के बीच उनकी दक्षता और सेवा की गुणवत्ता में सुधार के लिये प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • हानि: 
    • फोरम शॉपिंग की न्यायाधीशों द्वारा आलोचना की गई है क्योंकि इससे प्रतिवादी पक्ष के साथ अन्याय हो सकता है और विभिन्न न्यायालयों के कार्यभार में असंतुलन पैदा हो सकता है।
      • न्यायाधीशों ने कुछ न्यायालयों पर अत्यधिक बोझ और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप का हवाला दिया है।
    • यह पूर्वाग्रह या पक्षपात की धारणा बनाकर न्यायालयों और न्यायाधीशों के अधिकार एवं वैधता को कमज़ोर कर सकता है।
    • यह कानूनों के टकराव और कई कार्यवाहियों में वृद्धि कर मुकदमेबाज़ी की लागत एवं जटिलता को बढ़ा सकता है। 
  • फोरम शॉपिंग को हतोत्साहित करना: 
    • यहाँ तक कि अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के न्यायालय भी फोरम शॉपिंग को हतोत्साहित/निषेध करते हैं। कॉमन लॉ/सामान कानून वाले देशों में फोरम शॉपिंग के अभ्यास को रोकने हेतु "फोरम गैर-सुविधा" के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और राष्ट्रमंडल सभी की कॉमन लॉ के साथ ब्रिटिश पृष्ठभूमि जुड़ी हुई है तथा इन राष्ट्रों की कानूनी प्रणालियाँ बड़े पैमाने पर कॉमन लॉ सिद्धांत पर आधारित हैं।
    • यह सिद्धांत एक न्यायालय को किसी मामले के अधिकार क्षेत्र को अस्वीकार करने की अनुमति देता है, यदि कोई अन्य न्यायालय इसे सुनने हेतु अधिक उपयुक्त हो। यह निष्पक्षता की गारंटी देता है एवं उपयुक्त न्यायिक अधिकारियों को मामले सौंपता है।

फोरम शॉपिंग न्याय और न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव

  • यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत से समझौता कर सकता है, जिसके लिये आवश्यक है कि निष्पक्ष न्यायाधिकरण के समक्ष प्रत्येक व्यक्ति की निष्पक्ष सुनवाई होनी चाहिये।
  • यह समानता के सिद्धांत का उल्लंघन कर सकता है, जिसके लिये यह आवश्यक है कि न्यायालयों को सामान्य हित के मामलों पर एक-दूसरे के निर्णयों का सम्मान करना चाहिये और उन्हें टालना चाहिये
  • यह अंतिमता के सिद्धांत को बाधित कर सकता है, जिसके लिये आवश्यक है कि मुकदमेबाज़ी किसी बिंदु पर समाप्त होनी चाहिये और अनिश्चित काल तक लंबी नहीं चलनी चाहिये।

फोरम शॉपिंग पर सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण

  • डॉ. खैर-उन-निसा और अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश एवं अन्य 2023:
    • जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक ही कारण होने के बावजूद अदालत की विभिन्न शाखाओं के समक्ष कई याचिकाएँ दायर करके फोरम शॉपिंग में शामिल होने हेतु याचिकाकर्त्ताओं पर एक लाख रुपए का ज़ुर्माना लगाया।
  • विजय कुमार घई बनाम पश्चिम बंगाल राज्य 2022:  
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फोरम शॉपिंग को "अदालतों द्वारा एक विवादित प्रथा" करार दिया, जिसे "कानून में कोई मंज़ूरी और सर्वोच्चता नहीं है"।
  • धनवंतरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस बनाम राजस्थान राज्य 2022:
    • राजस्थान उच्च न्यायालय ने फोरम शॉपिंग में शामिल होने के लिये एक पार्टी पर 10 लाख रुपए का ज़ुर्माना लगाने के आदेश को बरकरार रखा।
  • भारत संघ और अन्य बनाम सिप्ला लिमिटेड 2017: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फोरम शॉपिंग के लिये अपनाए जाने वाले "कार्यात्मक परीक्षण" को निर्धारित किया।
      • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित "कार्यात्मक परीक्षण" यह निर्धारित करने के लिये था कि क्या एक वादी वास्तव में न्याय की मांग कर रहा है या फोरम शॉपिंग के माध्यम से चालाकी की रणनीति में संलग्न है।
  • रोस्मेर्टा HSRP वेंचर्स प्रा. लिमिटेड बनाम दिल्ली सरकार और अन्य 2017:
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक निजी कंपनी पर ज़ुर्माना लगाया जिसमें पाया गया कि वह मध्यस्थता के मामले में “फोरम हंटिंग” में लिप्त थी।
  • कामिनी जायसवाल बनाम भारत संघ 2017: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "बेईमान तत्त्व" हमेशा अपनी पसंद की अदालत या मंच खोजने के लिये तत्पर रहते हैं लेकिन कानून द्वारा उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं है
  • चेतक कंस्ट्रक्शन लिमिटेड बनाम ओम प्रकाश 1988:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि वादियों को अपनी सुविधा के लिये न्यायालय चुनने की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिये। कोर्ट ने कहा कि “फोरम शॉपिंग” के किसी भी प्रयास को दृढ़ता से हतोत्साहित किया जाना चाहिये।

UNSC और ब्रेटन वुड्स में सुधार 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में जापान के हिरोशिमा में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) और ब्रेटन वुड्स संस्थानों में सुधारों का आह्वान किया है जिसमें कहा गया है कि वर्तमान आदेश पुराना, बेकार और अनुचित है।

  • कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से आर्थिक अस्थिरता के कारण उक्त संस्थान वैश्विक सुरक्षा तंत्र के रूप में अपने मूल कार्य को पूरा करने में विफल रहे हैं।

ब्रेटन वुड्स प्रणाली

  • परिचय: 
    • ब्रेटन वुड्स प्रणाली वर्ष 1944 में न्यू हैम्पशायर, संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में 44 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा बनाया गया एक मौद्रिक ढाँचा था। इसका उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा में स्थिरता और सहयोग स्थापित करना था।
    • ब्रेटन वुड्स समझौते ने दो महत्त्वपूर्ण संगठन बनाए- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक
      • वर्ष 1970 के दशक में ब्रेटन वुड्स प्रणाली को भंग कर दिया गया था। इसके बाद IMF और विश्व बैंक (ब्रेटन वुड्स संस्थान) दोनों ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के आदान-प्रदान के लिये सुदृढ़ स्तंभ बने हुए हैं। 
  • ब्रेटन-वुड्स संस्थानों में सुधार की आवश्यकता:
    • इन संस्थानों ने अपने पहले 50 वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया है, जबकि हाल के दिनों में वे बढ़ती समस्याओं से संघर्ष कर रहे हैं
    • असमानता, वित्तीय अस्थिरता और संरक्षणवाद के मामले फिर से उभर कर सामने आए हैं।
    • जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक तनाव, बढ़ती आपदाएँ और साइबर सुरक्षा तथा  महामारी जैसे नए खतरों के बीच विश्व को एक नए अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे की आवश्यकता है। 
    • निधि आवंटन और अनियमित विशेष आहरण अधिकार (SDR) में पक्षपात किया गया, IMF ने महामारी के दौरान SDR में 650 बिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किये।
      • 77.2 करोड़ लोगों की आबादी वाले G-7 देशों को 280 अरब डॉलर, जबकि 1.3 अरब लोगों की आबादी वाले अफ्रीकी महाद्वीप को केवल 34 अरब डॉलर दिये गए।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC)

  • परिचय: 
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी और यह संयुक्त राष्ट्र के 6 प्रमुख अंगों में से एक है।
    • UNSC में 15 सदस्य हैं: 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 गैर-स्थायी सदस्य 2 वर्ष के लिये चुने जाते हैं।
      • 5 स्थायी सदस्य (P5) हैं: अमेरिका, रूस, फ्राँस, चीन और यूके।
    • भारत जो कि वर्ष 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92, 2011-12 की अवधि में परिषद का गैर-स्थायी सदस्य रहा ने 8वीं बार वर्ष 2021 में UNSC में प्रवेश किया तथा वर्ष 2021-22 की अवधि के लिये परिषद में गैर-स्थायी सदस्य बना।
  • UNSC से संबद्ध मुद्दे: 
    • विकासशील देशों के लिये समस्याएँ उत्पन्न करना:
      • विकासशील देश नैतिक, शक्ति संबंधी और व्यावहारिक जैसे तीन आयामों में समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
      • अमीर देशों के पक्ष में वैश्विक आर्थिक और वित्तीय ढाँचे में एक प्रणालीगत और अनुचित पूर्वाग्रह "विकासशील विश्व के देशों में निराशा" का भाव उत्पन्न कर रहा है।
    • प्रतिनिधित्व को सीमित करना:
      • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से अफ्रीका, साथ ही भारत, जर्मनी, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की अनुपस्थिति को एक महत्त्वपूर्ण कमी के रूप में देखा जाता है।
      • यह महत्त्वपूर्ण राष्ट्रों के प्रतिनिधित्व और वैश्विक मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को सीमित करता है तथा जटिल एवं परस्पर संबंधित समस्याओं पर प्रभावी निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करता है।
    • वीटो पावर का दुरुपयोग: 
      • P5 के पास UNSC में कालानुक्रमिक वीटो पावर है, जिसे अलोकतांत्रिक होने और P5 में से किसी के असहमत होने पर महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की परिषद की क्षमता को सीमित करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है।
      • कई लोगों का तर्क है कि इस तरह के कुलीन निर्णय लेने वाले ढाँचे मौजूदा वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य के लिये उपयुक्त नहीं हैं।

इन मुद्दों के समाधान के उपाय

  • ब्रेटन वुड्स: 
    • तीन वैश्विक संस्थानों- IMF, WBG और विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) को फिर से आकार देने एवं पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जहाँ:
      • IMF उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की सख्त निगरानी और वैश्विक संकटों पर उनके प्रभाव के साथ व्यापक आर्थिक नीति और वित्तीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करेगा।
      • पुनर्गठित विश्व बैंक समूह स्थिरता, साझा समृद्धि और प्रभावी रूप से निजी पूंजी से लाभ की प्राप्ति को प्राथमिकता देगा। वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने एवं वित्त के वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता के रूप में कार्य करने के लिये इसे मिलकर कार्य करने की आवश्यकता।
      • निष्पक्ष व्यापार, त्वरित विवाद समाधान और आपात स्थिति में तीव्र प्रतिक्रिया क्षमता के लिये एक सशक्त WTO की आवश्यकता है। 
    • व्यवधानों और राजनीतिक प्रभावों से बचने के लिये प्रणाली में अधिक स्वचालित और नियम-आधारित वित्तपोषण तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
    • SDR, वैश्विक प्रदूषण करों और वित्तीय लेन-देन आधारित करों से संबंधित मुद्दों का नियमित आकलन करने की आवश्यकता है।
      • यह उचित रूप से संरचित G-20 ब्रेटन वुड्स प्रणाली और अन्य संस्थानों के साथ इसके संबंधों को व्यापक मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC): 
    • शक्ति और अधिकार के विकेंद्रीकरण के साथ-साथ अफ्रीका सहित सभी क्षेत्रों के लिये समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की आवश्यकता है,यह सभी राष्ट्रों को अपने देशों में शांति एवं लोकतंत्र से संबंधित मुद्दों को उठाने की अनुमति देगा जो कि निर्णयन को अधिक भागीदारीपूर्ण और लोकतांत्रिक बनाएगा। 
    • P5 देशों के विशेषाधिकारों को संरक्षित करने के बजाय वैश्विक मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये UNSC के अधिक लोकतांत्रिक एवं वैध शासन को सुनिश्चित करने हेतु P5 तथा शेष विश्व के मध्य शक्ति को संतुलित करने के लिये तत्काल सुधार की आवश्यकता है। 
    • अंतर-सरकारी वार्ता (Intergovernmental Negotiation- IGN) प्रक्रिया, जो UNSC में सुधार पर चर्चा करती है, को संशोधित किया जाना चाहिये और प्रगति में बाधा डालने वाली प्रक्रियात्मक रणनीति से बचना चाहिये।

आदर्श आचार संहिता 

चर्चा में क्यों?

जैसे-जैसे कर्नाटक विधानसभा चुनाव करीब आ रहे हैं, राजनीतिक दल एक-दूसरे के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने के आरोप लगा रहे हैं।

  • आदर्श आचार संहिता (MCC) के उल्लंघन को लेकर पार्टियों ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) से शिकायत की है।

आदर्श आचार संहिता (MCC)

  • परिचय:
    • यह निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के विनियमन तथा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
    • यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुरूप है, जिसके तहत निर्वाचन आयोग (EC) को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की निगरानी और संचालन करने की शक्ति दी गई है।
    • आदर्श आचार संहिता उस तारीख से लागू हो जाती है जब निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा की जाती है और यह चुनाव परिणाम घोषित होने की तारीख तक लागू रहती है।
  • विकास:
    • आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी, जब राज्य प्रशासन ने राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के लिये एक ‘आचार संहिता' तैयार की थी।
    • इसके पश्चात् वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग (EC) ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों को फीडबैक के लिये आचार संहिता का एक प्रारूप भेजा, जिसके बाद से देश भर के सभी राजनीतिक दलों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है।
    • वर्ष 1991 में चुनाव के नियमों के बार-बार उल्लंघन और भ्रष्टाचार जारी रहने के बाद चुनाव आयोग ने MCC को और सख्ती से लागू करने का फैसला किया।
  • राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों हेतु MCC:
    • प्रतिबंधित:
      • राजनीतिक दलों की आलोचना केवल उनकी नीतियों, कार्यक्रमों, पिछले रिकॉर्ड और कार्य तक सीमित होनी चाहिये।
      • जातिगत और सांप्रदायिक भावनाओं को आहत करने, असत्यापित रिपोर्टों के आधार पर उम्मीदवारों की आलोचना करने, मतदाताओं को रिश्वत देने या डराने और किसी के विचारों का विरोध करते हुए उसके घर के बाहर प्रदर्शन या धरना देने जैसी गतिविधियाँ पूर्णतः निषिद्ध हैं।
    • बैठकें:
      • पार्टियों को किसी भी बैठक के स्थान और समय के बारे में स्थानीय पुलिस अधिकारियों को समय पर सूचित करना चाहिये ताकि पुलिस पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था कर सके।
    • जुलूस:
      • यदि दो अथवा दो से अधिक उम्मीदवार एक ही मार्ग से जुलूस निकालने की योजना बनाते हैं, तो राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करने के लिये पहले से संपर्क कर लेना करना चाहिये ताकि जुलूस में आपसी टकराव न हो।
      • राजनीतिक दलों के सदस्यों का प्रतिनिधित्त्व करने वालों को पुतले ले जाने और जलाने की अनुमति नहीं है।
    • चुनाव के दिन:
      • केवल मतदाताओं और चुनाव आयोग से प्राप्त वैध पास वाले लोगों को ही मतदान केंद्रों में प्रवेश करने की अनुमति होती है।
      • मतदान केंद्रों पर सभी अधिकृत पार्टी कार्यकर्त्ताओं को उपयुक्त बैज अथवा पहचान पत्र दिया जाना चाहिये।
      • उनके द्वारा मतदाताओं को दी जाने वाली पहचान पर्ची सादे (सफेद) कागज़ पर होगी और उसमें कोई प्रतीक, उम्मीदवार का नाम अथवा पार्टी का नाम नहीं होगा।
    • प्रेक्षक:
      • कोई भी उम्मीदवार चुनाव के संचालन के संबंध में समस्याओं की रिपोर्ट चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षकों को कर सकता है।
    • सत्ताधारी पार्टी:
      • MCC ने सत्ताधरी पार्टी के आचरण को विनियमित करते हुए वर्ष 1979 में कुछ प्रतिबंधों को शामिल किया। मंत्रियों की आधिकारिक यात्राएँ और चुनाव कार्य पृथक होने चाहिये अथवा चुनाव कार्य के लिये आधिकारिक साधनों का उपयोग नहीं करना चाहिये।
      • पार्टी को सरकारी संसाधनों की कीमत पर विज्ञापन देने अथवा चुनावों में जीत की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये उपलब्धियों के प्रचार हेतु आधिकारिक जन मीडिया का उपयोग करने से बचना चाहिये।
      • आयोग द्वारा चुनावों की घोषणा किये जाने के समय से मंत्रियों और अन्य अधिकारियों को किसी भी वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं करनी चाहिये, सड़कों के निर्माण, पीने के जल की व्यवस्था आदि का वादा नहीं करना चाहिये। अन्य दलों को सार्वजनिक स्थानों तथा विश्रामगृहों का उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिये और इन पर सत्ताधरी पार्टी का एकाधिकार नहीं होना चाहिये।
    • चुनावी घोषणापत्र:
      • भारतीय निर्वाचन आयोग का निर्देश है कि राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को किसी भी चुनाव (संसद/राज्य विधानमंडल) के लिये चुनावी घोषणा पत्र जारी करते समय निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है:
        • इस चुनाव घोषणापत्र में संविधान में निहित आदर्शों और सिद्धांतों के खिलाफ कुछ भी नहीं होगा।
        • राजनीतिक दलों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिये जिनसे चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता धूमिल होने या मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डालने की संभावना हो।
        • घोषणापत्र में वादों के औचित्य को प्रतिबिंबित करना चाहिये और इसके लिये वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के तरीकों एवं साधनों को व्यापक रूप से इंगित करना चाहिये।
      • जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 के तहत एकल या बहु-चरणीय चुनावों के लिये निर्धारित प्रतिबंधात्मक अवधि के दौरान घोषणापत्र जारी नहीं किया जाएगा।

MCC में कुछ हालिया परिवर्द्धन

  • ECI द्वारा अधिसूचित अवधि के दौरान ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल का विनियमन।
  • मतदान के दिन और उससे एक दिन पहले प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों पर प्रतिबंध जब तक कि विषय-वस्तु स्क्रीनिंग समितियों द्वारा पूर्व-प्रमाणित न हो।
  • चुनाव अवधि के दौरान राजनीतिक पदाधिकारियों की विशेषता वाले सरकारी विज्ञापनों पर प्रतिबंध।

MCC कानूनी रूप से लागू करने योग्य

  • हालाँकि MCC के पास कोई वैधानिक समर्थन नहीं है, लेकिन निर्वाचन आयोग द्वारा इसके सख्त प्रवर्तन के कारण पिछले एक दशक में इसने शक्ति हासिल की है।
    • MCC के कुछ प्रावधानों को IPC 1860, CrPC 1973 और RPA 1951 जैसे अन्य कानूनों में संबंधित प्रावधानों के साथ लागू किया जा सकता है।
  • वर्ष 2013 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय संबंधी स्थायी समिति ने MCC को कानूनी रूप से बाध्यकारी तथा RPA 1951 का हिस्सा बनाने की सिफारिश की।
  • हालाँकि ECI इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने के खिलाफ है। इसके अनुसार, चुनावों को अपेक्षाकृत कम समय या 45 दिनों के करीब पूरा किया जाना चाहिये क्योंकि न्यायिक कार्यवाही में सामान्यतः अधिक समय लगता है, इसलिये इसे कानून द्वारा लागू करने योग्य बनाना संभव नहीं है।

MCC की आलोचनाएँ

  • कदाचार पर अंकुश लगाने में अप्रभावी:
    • MCC हेट स्पीच, फेक न्यूज़, धन बल, बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को डराने-धमकाने और हिंसा जैसी चुनावी कदाचारों को रोकने में विफल रही है।
    • ECI को नई प्रौद्योगिकियों और सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्मों द्वारा भी चुनौती दी जाती है जो गलत सूचना को तीव्र रूप से फैलाने तथा उसका व्यापक रूप से प्रसार करते हैं।
  • कानूनी प्रवर्तनीयता का अभाव:
    • MCC, वैद्यानिक रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ नहीं है, वह अनुपालन के लिये केवल नैतिक अनुनय और जनमत पर निर्भर करती है।
  • शासन के साथ हस्तक्षेप:
    • MCC नीतिगत निर्णयों, सार्वजनिक व्यय, कल्याणकारी योजनाओं, स्थानांतरण और नियुक्तियों पर प्रतिबंध लगाती है।
    • MCC को बहुत जल्दी या बहुत देर से लागू करने, विकास गतिविधियों और सार्वजनिक हित को प्रभावित करने के लिये ECI की अक्सर आलोचना की जाती है।
  • जागरूकता और अनुपालन की कमी:
    • इसे व्यापक रूप से मतदाताओं, उम्मीदवारों, पार्टियों और सरकारी अधिकारियों द्वारा नहीं समझा जाता है।

दया याचिका

चर्चा में क्यों?

हाल के एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सज़ा को कम करने के लिये सरकार को निर्देश देने से इनकार कर दिया है, इसके बजाय इसने सरकार को आवश्यकता पड़ने पर दया याचिका पर निर्णय लेने की अनुमति दी है।

  • बलवंत सिंह राजोआना को वर्ष 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या का दोषी ठहराया गया था।
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि चूँकि राज्य और भारत संघ 10 वर्ष से अधिक समय से लंबित दया याचिका पर निर्णय नहीं ले पाए हैं, इसलिये मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना चाहिये।

न्यायालय का अवलोकन

  • न्यायालय ने गृह मंत्रालय के इस निष्कर्ष का हवाला दिया कि अब दया याचिका पर फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता होगा।
  • न्यायालय ने कहा है कि दया याचिका पर फैसला टालने के मंत्रालय के फैसले की "जाँच" करना न्यायालय के ऊपर नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि दया याचिका पर फैसला टालने का मंत्रालय का आह्वान वास्तव में याचिका को फिलहाल के लिये खारिज करने जैसा है।

दया याचिका

  • परिचय:
    • दया याचिका एक औपचारिक अनुरोध है, यह अनुरोध किसी ऐसे व्यक्ति, जिसे मृत्युदंड या कारावास की सज़ा दी गई हो, द्वारा राष्ट्रपति या राज्यपाल से दया की मांग करते हुए किया जाता है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और भारत जैसे कई देशों में दया याचिका के विचार का पालन किया जाता है।
      • सभी को जीने का मूल अधिकार प्राप्त है। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार के रूप में भी वर्णित किया गया है।
  • संवैधानिक ढाँचा:
    • भारत में संवैधानिक ढाँचे के अनुसार, दया याचिका के लिये राष्ट्रपति से अनुरोध करना अंतिम संवैधानिक सहारा है। जब एक दोषी को कानून की अदालत द्वारा सज़ा सुनाई जाती है तो दोषी भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति को दया याचिका पेश कर सकता है।
    • इसी प्रकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यों के राज्यपालों को क्षमा प्रदान करने की शक्ति दी गई है।
      • अनुच्छेद 72:
        • राष्ट्रपति के पास किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा करने, उसे रोकने, विराम देने या कम करने या सज़ा को निलंबित करने, परिहार करने की शक्ति होगी।
        • उन सभी मामलों में जहाँ सज़ा या सज़ा कोर्ट मार्शल द्वारा दी गई हो;
        • उन सभी मामलों में जहाँ सज़ा या किसी ऐसे मामले से संबंधित किसी कानून के खिलाफ अपराध के लिये है, जिस पर संघ की कार्यकारी शक्ति का विस्तार होता है;
        • सभी मामलों में जहाँ मौत की सज़ा दी गई है।
      • अनुच्छेद 161:
        • इसके तहत किसी राज्य के राज्यपाल के पास किसी मामले से संबंधित किसी भी कानून के खिलाफ किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा, राहत देने, विराम या छूट देने या निलंबित करने, परिहार करने या कम करने की शक्ति होगी जिससे राज्य की शक्ति का विस्तार होता है।
          • वर्ष 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी राज्य का राज्यपाल मृत्युदंड की सज़ा वाले कैदियों को क्षमा कर सकता है, लेकिन वह न्यूनतम 14 साल की जेल की सज़ा काट चुका हो।
  • दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया:
    • दया याचिकाओं से निपटने के लिये कोई वैधानिक लिखित प्रक्रिया नहीं है, लेकिन व्यवहार में कानून की अदालत में सभी राहतों को समाप्त करने के बाद दोषी व्यक्ति या उसकी ओर से उसका रिश्तेदार राष्ट्रपति को लिखित याचिका प्रस्तुत कर सकता है। राष्ट्रपति की ओर से राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा याचिकाएँ प्राप्त की जाती हैं, जिन्हें बाद में गृह मंत्रालय को उनकी टिप्पणियों और सिफारिशों के लिये भेज दिया जाता है।
  • दया याचिका दायर करने का आधार:
    • दया का कार्य कैदी का अधिकार नहीं है। वह इसका दावा नहीं कर सकता।
    • दया या क्षमादान उसके स्वास्थ्य, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य, उसकी पारिवारिक वित्तीय स्थितियों के आधार पर दी जाती है क्योंकि वह रोजी रोटी का एकमात्र अर्जक है या नहीं।
  • न्यायिक समीक्षा:
    • एपुरु सुधाकर और आंध्र प्रदेश सरकार (2006) एवं अन्य के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 72 और अनुच्छेद 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
    • न्यायालय ने कुछ आधार निर्धारित किये जिन पर याचिकाकर्त्ता द्वारा (b) है:
      • यदि आदेश बेबुनियादी तरीके से पारित किया जाता है।
      • यदि पारित आदेश दुर्भावनापूर्ण है।
      • यदि आदेश पूरी तरह से अप्रासंगिक विचारों के प्रभाव में पारित किया गया है।
      • अगर आदेश में मनमानी की भावना व्याप्त है।

दया याचिका से जुड़े कुछ अहम फैसले

  • मारू राम बनाम भारत संघ (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 72 के तहत क्षमा देने की शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाना चाहिये।
  • धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1994): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के तहत शक्ति का प्रयोग केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किया जा सकता है, न कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा।
  • केहर सिंह बनाम भारत संघ (1989): सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति के दायरे की विस्तार पूर्वक जाँच की थी।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 की न्यायिक शक्ति के तहत अपराध के लिये दोषी करार दिये गए व्यक्ति को राष्ट्रपति क्षमा अर्थात् दंडादेश का निलंबन, प्राणदंड स्थगन, राहत और माफी प्रदान कर सकता है।

क्षमादान की शक्ति से संबंधित कुछ कीवर्ड

  • क्षमा (Pardon): इसमें दंड और बंदीकरण दोनों को हटा दिया जाता है तथा दोषी की सज़ा को दंड, दंडादेशों एवं निरर्हताओं से पूर्णतः मुक्त कर दिया जाता है।
  • लघुकरण (Commutation): इसमें दंड के स्वरूप में परिवर्तन करना शामिल है, उदाहरण के लिये मृत्युदंड को आजीवन कारावास और कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।
  • परिहार (Remission): इसमें दंड कीअवधि को कम करना शामिल है, उदाहरण के लिये दो वर्ष के कारावास को एक वर्ष के कारावास में परिवर्तित करना।
  • विराम (Respite): इसके अंतर्गत किसी दोषी को प्राप्त मूल सज़ा के प्रावधान को किन्हीं विशेष परिस्थितियों में बदलना शामिल है। उदाहरण के लिये महिला की गर्भावस्था की अवधि के कारण सज़ा को परिवर्तित करना।
  • प्रविलंबन (Reprieve): इसका अर्थ है अस्थायी समय के लिये किसी सज़ा (विशेषकर मृत्युदंड) के निष्पादन पर रोक लगाना। इसका उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा या लघुकरण प्राप्त करने के लिये समय देना है।

अन्य देशों के प्रावधान

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका का संविधान महाभियोग के मामलों को छोड़कर राष्ट्रपति को संघीय कानून के तहत अपराधों के लिये प्रविलंबन अथवा क्षमादान करने की समान शक्तियाँ प्रदान करता है। हालाँकि राज्य कानून के उल्लंघन के मामलों में यह शक्ति राज्य के संबंधित राज्यपाल को दी गई है।
  • यूनाइटेड किंगडम: यूनाइटेड किंगडम में संवैधानिक राजा मंत्रिस्तरीय की सलाह द्वारा अपराधों हेतु क्षमा या दंडविराम कर सकता है।
  • कनाडा: आपराधिक रिकॉर्ड अधिनियम के तहत राष्ट्रीय पैरोल बोर्ड ऐसी राहत देने हेतु अधिकृत है।

निष्कर्ष

  • दया याचिका एक दोधारी तलवार के रूप में कार्य करती है जो स्थिति और परिस्थितियों के आधार पर वरदान या अभिशाप दोनों हो सकती है। दया याचिका को मंज़ूरी देने में अनावश्यक बाधाएँ एवं देरी से दोषियों तथा पीड़ितों दोनों को गंभीर असुविधा हो सकती है।
  • यह अनजाने/अनायास न्याय में देरी कर सकता है जिससे पीड़ितों को कभी भी उचित एवं निष्पक्ष न्याय नहीं मिल पाता है।
  • यह पीड़ित के दर्द और पीड़ा को और बढ़ाएगा। भारतीय न्यायपालिका की उचित सुविधा एवं सुचारु कामकाज़ हेतु दया याचिका दायर करने तथा क्षमा देने में अनावश्यक देरी को रोकने के लिये उचित सीमा अवधि व उचित नीतियों की आवश्यकता है।

भारत ने धन शोधन निवारण अधिनियम में किया बदलाव 

चर्चा में क्यों? 

भारत ने वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) के तहत वर्ष 2023 में प्रस्तावित आकलन से पहले खामियों को दूर करने के लिये विभिन्न परिवर्तनों के हिस्से के रूप में धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के अंतर्गत आने वाले धन शोधन कानून में बदलाव किये हैं।  

PMLA के तहत बदलाव

  • वित्तीय संस्थानों, बैंकिंग कंपनियों अथवा मध्यस्थों जैसी रिपोर्टिंग संस्थाओं द्वारा गैर-सरकारी संगठनों का अधिक प्रकटीकरण।
  • "राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्तियों" को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करना, जिन्हें किसी विदेशी राष्ट्र द्वारा प्रमुख सार्वजनिक कार्य सौंपा गया हैं, बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये नो योर कस्टमर (Know Your Customer- KYC) मानदंडों और एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक के वर्ष 2008 के परिपत्र के साथ एकरूपता लाना।
  • अपने ग्राहकों की ओर से वित्तीय लेन-देन करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्सकंपनी सचिवों और लागत तथा कार्य लेखाकारों को पेश करने के कार्य को धन शोधन कानून के दायरे में लाना
    • वित्तीय लेन-देन में निम्नलिखित शामिल हैं: 
      • किसी अचल संपत्ति का क्रय-विक्रय।
      • ग्राहक के पैसे, प्रतिभूतियों अथवा अन्य संपत्तियों का प्रबंधन करना।
      • बैंक, बचत या प्रतिभूति खातों का प्रबंधन।
      • कंपनियों के निर्माण, संचालन अथवा प्रबंधन के लिये योगदान संबंधी संगठन।
      • कंपनियों का निर्माण, संचालन या प्रबंधन, सीमित देयता भागीदारी या ट्रस्ट।
      • व्यापारिक संस्थाओं की खरीद और बिक्री।
  • सरकार ने धन शोधन निवारण अधिनियम के लिये गैर-बैंकिंग रिपोर्टिंग संस्थाओं की सूची बनाई है। जो आधार के माध्यम से अपने ग्राहकों की पहचान को सत्यापित करेंगी, जिसमें अमेज़ॅन पे (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, आदित्य बिरला हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड और IIFL फाइनेंस लिमिटेड जैसी 22 वित्तीय संस्थाएँ शामिल हैं।

परिवर्तन से संबंधित मामले

  • परिवर्तन में रिपोर्टिंग संस्थाओं को सभी लेन-देन के रिकॉर्ड बनाए रखने और प्रत्येक निर्दिष्ट लेन-देन से पहले KYC कराने की आवश्यकता होती है। अनुपालन में विफल रहने पर दंड एवं जाँच एजेंसियों द्वारा कार्रवाई की जा सकती है।
  • PMLA के अधीन न्यूनतम दोषसिद्धि दर, लेकिन एक अत्यंत कठिन प्रक्रिया से गुज़रना
  • PMLA के अंतर्गत आने वाली संस्थाओं की नई परिभाषा में वकीलों और वैधानिक पेशेवरों को बाहर करने की कुछ पेशेवरों द्वारा आलोचना की गई है।
  • कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि इन नए निगमित पेशेवरों को पूर्व से ही संसद के विभिन्न अधिनियमों के तहत गठित पेशेवर निकायों द्वारा विनियमित किया जाता है, जिससे ये उपाय अनावश्यक हो जाते हैं।

PMLA, 2002

  • पृष्ठभूमि:
    • धन शोधन के खतरे से निपटने के लिये भारत की वैश्विक प्रतिबद्धता (वियना कन्वेंशन) के जवाब में PMLA अधिनियमित किया गया था। इसमें शामिल हैं:
      • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों में अवैध तस्करी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1988
      • सिद्धांतों का बेसल वक्तव्य, 1989 
      • मनी लॉन्ड्रिंग पर वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स की चालीस सिफारिशें, 1990
      • वर्ष 1990 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई राजनीतिक घोषणा और वैश्विक कार्रवाई कार्यक्रम 
  • परिचय: 
    • यह एक आपराधिक कानून है जो धन शोधन/मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों से प्राप्त या इसमें शामिल संपत्ति की ज़ब्ती का प्रावधान करने के लिये बनाया गया है।
    • यह मनी लॉन्ड्रिंग (काले धन को वैध बनाना) से निपटने के लिये भारत द्वारा स्थापित कानूनी ढाँचे का मूल है।
    • इस अधिनियम के प्रावधान सभी वित्तीय संस्थानों, बैंकों (RBI सहित), म्यूचुअल फंडबीमा कंपनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं।
  • उद्देश्य: 
    • आपराधिक गतिविधियों के माध्यम से शोधित, उत्पन्न या अर्जित किये गए अपराध की आय को ज़ब्त और अधिग्रहण करना।
    • मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण की रोकथाम के लिये एक कानूनी ढाँचा स्थापित करना।
    • मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों की जाँच और अभियोजन के लिये तंत्र को सुदृढ़ और बेहतर बनाना।
    • मनी लॉन्ड्रिंग और संबंधित अपराधों के विरुद्ध लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना।
  • नियामक प्राधिकरण:
    • प्रवर्तन निदेशालय (ED): प्रवर्तन निदेशालय PMLA के प्रावधानों को लागू करने और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जाँच करने के लिये ज़िम्मेदार है। 

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF)

  • परिचय: 
    • FATF वर्ष 1989 में स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये मनी लॉन्ड्रिंगआतंकवादी वित्तपोषण और अन्य संबंधित खतरों का मुकाबला करने हेतु एक वैश्विक मानक निर्धारक है। 
    • FATF एक नीति-निर्माण निकाय के रूप में कार्य करता है जो वित्तीय अपराधों से निपटने के लिये कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है।
  • उद्देश्य: 
    • FATF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मानकों को स्थापित करना और मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण तथा सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार से निपटने के उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।
  • गठन: 
    • मनी लॉन्ड्रिंग और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में बढ़ती चिंताओं के जवाब में G7 देशों की पहल पर FATF का गठन किया गया था। 
    • इसने शुरुआत में मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिये सिफारिशों और सर्वोत्तम प्रथाओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया।
      • वर्षों से आतंकवादी वित्तपोषण का मुकाबला करने और नए उभरते खतरों को संबोधित करने के लिये इसके जनादेश का विस्तार हुआ।
  • ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट: 
    • FATF की दो प्रमुख सूचियाँ हैं: "ग्रे लिस्ट" और "ब्लैक लिस्ट"।
    • ग्रे लिस्ट में ऐसे क्षेत्राधिकार शामिल हैं जिनके धन शोधन रोधी एवं आतंकवाद रोधी वित्तपोषण ढाँचे में रणनीतिक कमियाँ हैं।
      • ग्रे लिस्ट में रखा जाना सुधार की आवश्यकता को दर्शाता है, साथ ही यह FATF द्वारा निगरानी बढ़ाने के अधिकार क्षेत्र को विषय बनाता है।
    • ब्लैक लिस्ट, जिसे आधिकारिक तौर पर "कार्रवाई हेतु आह्वान (Call for Action)" के रूप में जाना जाता है, में ऐसे देश शामिल हैं जिनके धन शोधन और आतंकवाद रोधी वित्तपोषण प्रयासों में गंभीर कमियाँ हैं।
      • ब्लैक लिस्ट में शामिल करने से अंतर्राष्ट्रीय रोक एवं प्रतिबंध लग सकते हैं।
  • सदस्य देश: 
    • वर्तमान में FATF के 39 सदस्य हैं: 37 क्षेत्राधिकार और 2 क्षेत्रीय संगठन (खाड़ी सहयोग परिषद एवं यूरोपीय आयोग)।
    • वित्तीय अपराधों से निपटने में वैश्विक सहयोग को मज़बूत करने हेतु FATF संयुक्त राष्ट्र जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करता है।
  • भारत और FATF: 
    • भारत वर्ष 2010 में FATF का सदस्य बना था।
The document Politics and Governance (राजनीति और शासन): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
184 videos|557 docs|199 tests

Top Courses for UPSC

184 videos|557 docs|199 tests
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Politics and Governance (राजनीति और शासन): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Viva Questions

,

Semester Notes

,

Free

,

Sample Paper

,

Previous Year Questions with Solutions

,

pdf

,

MCQs

,

shortcuts and tricks

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

ppt

,

past year papers

,

Summary

,

video lectures

,

Extra Questions

,

mock tests for examination

,

Objective type Questions

,

Politics and Governance (राजनीति और शासन): May 2023 UPSC Current Affairs | भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity) for UPSC CSE in Hindi

,

Exam

,

practice quizzes

,

Important questions

,

study material

;