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वैज्ञानिक अनुसंधानों में महिलाओं की भागीदारी | विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science & Technology) for UPSC CSE PDF Download

ज्ञान अर्थव्यवस्था के विकास में महिलाओं की भूमिका

संदर्भ:

  • हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि देश भर के अनुसंधान और विकास संस्थानों के 280,000 वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, और प्रौद्योगिकीविदों में केवल 14% ही महिलाएं हैं। जबकि तीव्र आर्थिक वृद्धि के लिए भारत को उच्च तकनीकी कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता है जो आज के ज्ञान अर्थव्यवस्था युग में विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सतत विकास 2030 के घोषित लक्ष्यों में विज्ञान और लैंगिक समानता दोनों ही महत्वपूर्ण है। विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की सशक्त भूमिका सुनिश्चित करने के साथ-साथ लैंगिक सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 22 दिसंबर 2015 को प्रति वर्ष 11 फरवरी को ‘इंटरनेशनल डे ऑफ वूमेन एंड गर्ल्स इन साइंस’ (विज्ञान में महिलाओं और बालिकाओं हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस) दिवस को मनाने की घोषणा की गई थी। इस दिवस को यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र महिला संघ (यूएन वूमेन) के द्वारा संयुक्त रूप से मनाया जाता है।
  • पिछले कुछ दशकों में विज्ञान में महिलाओं और लड़कियों की भूमिका को बढ़ाने हेतु काफी सारे प्रयास किए गए हैं लेकिन अभी भी महिलाओं और लड़कियों की भूमिका विज्ञान क्षेत्र में काफी सीमित है। अगर हम आंकड़ों पर नजर डाले तो वर्तमान में शोधकर्ता महिलाओं की हिस्सेदारी 30% से भी कम है। यूनेस्को के आंकड़ों (2014 से 2016) पर हम नजर डालें तो हमें पता चलता है कि कुल महिला छात्रों में से मात्र 30% महिलाएं उच्च शिक्षा में STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और गणित -एसटीईएम या स्टेम) क्षेत्रों का चयन करती हैं। अगर हम STEM क्षेत्र में महिलाओं का नामांकन देखे तो निम्न तथ्य सामने आते हैं-आईसीटी (3 प्रतिशत), प्राकृतिक विज्ञान, गणित और सांख्यिकी (5 प्रतिशत) और इंजीनियरिंग, विनिर्माण और निर्माण (8 प्रतिशत)। 2015 के ‘जेंडर बायस विदाउट स्टडीज’ की रिपोर्ट के अनुसार STEM क्षेत्रों की नौकरियों में महिलाओं का हिस्सा मात्र 12% था।

क्या होती है ज्ञान अर्थव्यवस्था?

  • ज्ञान अर्थव्यवस्था शब्द का सबसे पहले प्रयोग 1960 के दशक में तब शुरू हुआ जब अर्थव्यवस्थाओं का विकास पारंपरिक तरीकों से ज्ञान आधारित तरीकों की ओर स्थानांतरित होने लगा।
  • ज्ञान अर्थव्यवस्था या ज्ञान अर्थतंत्र या नॉलेज एकनॉमी (knowledge economy) उस अर्थव्यवस्था को इंगित करता है जिसमें ज्ञान का महत्व अधिकाधिक है।
  • सरल शब्दों में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था को कहा जाता है जिसमें विकास का मुख्य स्रोत खेत अथवा खनिज नहीं बल्कि ज्ञान होता है। यह अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से ज्ञान एवं सूचना के सृजन, उसके प्रबंधन, वितरण और उपभोग पर आधारित होती है।
  • वर्तमान समय तकनीकी प्रधान है अर्थात जो देश तकनीकी के मामले में जितना अग्रणी होगा उसका आर्थिक आधार उतना ही सशक्त होगा।
  • तकनीकी प्रगति के लिए ज्ञान का आधार अति आवश्यक है। ज्ञान के आधार पर ही नवाचार को गति प्रदान की जा सकती है तथा नवाचार ही नवोन्मेष एवं तकनीकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • विश्व बैंक के अनुसार, ज्ञान अर्थव्यवस्था के निम्नलिखित चार स्तंभों हो सकते हैं:
    • आधारभूत संस्थागत संरचनाएं जो उद्यमिता और ज्ञान के उपयोग को प्रोत्साहन प्रदान करतीं हों,
    • कुशल श्रम की उपलब्धता और उच्च स्तरीय शिक्षा प्रणाली
    • सूचना एवं संचार तकनीकी बुनियादी ढांचा और उसकी पहुंच,
    • एक ऐसा नवाचार को प्रोत्साहन देने वाला परिवेश जिसमें शिक्षाविद, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज को सक्रिय सहभागिता हो।

भारत में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति

  • यूनेस्को द्वारा 2018 में संकलित आंकड़ों के अनुसार विज्ञान के शोधकर्ताओं में सिर्फ 28.8% शोधकर्ता ही महिलाएं हैं और भारत में यह अनुपात 13.9% ही है।
  • अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण (AIHES) 2017-18 के अनुसार, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रमों की केवल छह प्रतिशत महिलाएं ही स्नातकोत्तर के बाद शोध क्षेत्र (पीएचडी) का चयन कर रही हैं जबकि साइंस स्ट्रीम में यह संख्या तीन फीसदी से भी कम है।
  • भारत में अन्तरिक्ष के क्षेत्र में शोध से संबन्धित सबसे बड़े संस्थान इसरो के 16,000 कर्मचारियों में से केवल 20% कर्मचारी ही महिलाएँ हैं।
  • नीति आयोग ने 2016-17 में पछले पाँच वर्षों में विभिन्न विषयों में महिला नामांकन की तुलना करने वाली एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। जिसके अनुसार
    • भारत में 2015-16 में स्नातक पाठ्यक्रम में 9.3% महिलाओं को इंजीनियरिंग में दाखिला दिया गया था, जबकि स्नातक पाठ्यक्रम के तहत इंजीनियरिंग में कुल 15.6 प्रतिशत छत्रों द्वारा नामांकन कराया गया था।
    • चिकित्सा विज्ञान में कुल नामांकन की तुलना में महिलाएं सिर्फ 4.3 प्रतिशत ही नामांकित थी।
    • विभिन्न विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में वैज्ञानिक और प्रशासनिक कर्मचारी के रूप में कार्य करने वाले व्यक्तियों में महिलाये सिर्फ 20% ही है।
    • पोस्ट-डाक्टोरल फ़ेलोशिप प्राप्त करने वालों में महिलाओं का अनुपात 28.7% है।
    • कुल पीएचडी स्कालरों में 33.5% महिला स्कालर हैं।
  • विज्ञान में महिलाओं के लिए राष्ट्रीय कार्य बल की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अनुसंधान और विकास कार्यबल में केवल 15 प्रतिशत महिलाएं हैं, जबकि वैश्विक औसत 30 प्रतिशत है। कंप्यूटर विज्ञान और भौतिकी जैसे क्षेत्रों में यह असंतुलन सबसे अधिक है जबकि जीव विज्ञान और चिकित्सा-विज्ञान में तुलनात्मक रूप से कम है।

विज्ञान में महिलाओं की कम भागीदारी के कारण

  • उपरोक्त विश्लेषण से हमारे सामने जो निष्कर्ष आता है वह यही दर्शाता है कि विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका काफी कम है एवं इसे बढ़ाने के लिए इस दिशा में सभी को सम्मिलित प्रयास करना होगा। लैंगिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण, रोल मॉडल का अभाव और सहयोग न देने वाली या प्रतिरोधी नीतियां एवं पितृसत्तात्मक मानसिकता उन्हें इन क्षेत्रों में अपना भविष्य बनाने से रोकती हैं। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में महिलाओं के पीछे रह जाने के कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं।
  • शिक्षा का निर्णय पारिवार के द्वारा: हमारे देश में शैक्षिक निर्णय आम तौर पर पारिवारिक निर्णय होते हैं न कि व्यक्तिगत, क्योंकि शिक्षा में सामूहिक पारिवारिक संसाधनों का निवेश किया जाता है जिसका प्रभाव पूरे परिवार पर होता है। अतः पूरे परिवार पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हुये ही शिक्षा से संबन्धित निर्णय किए जाते है। इस प्रकार पारिवारिक और सामाजिक परिणाम किसी बालिका की रुचि और इच्छा की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
  • आर्थिक कारक: ये शैक्षिक निर्णयों में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं और महिलाओं के लिए विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने में मुख्य बाधा उत्पन्न करते हैं। यहां तक कि साधन सम्पन्न परिवारों में भी आर्थिक आधार महिलाओं को विज्ञान में डिग्री हासिल करने से रोकता है। आमतौर पर विज्ञान या इंजीनियरिंग की डिग्री को कला या वाणिज्य की डिग्री से अधिक महंगा विकल्प माना जाता है।
  • लिंग रूढ़िवादिता और लैंगिक भूमिका: पारिवारिक जिम्मेदारियां और बेटियों पर घरेलू कार्य सीखने का दबाव उनके लिए विज्ञान के अध्ययन को कम अनुकूल बना देता है। भारतीय सांस्कृति परिवारों का स्वरूप पितृसत्तात्मक है जिसमें महिलाओं और पुरुषों की भूमिकाएं अलग-अलग होती हैं। जिसमें एक परिवार की सभी घरेलू जिम्मेदारियां महिला सदस्यों के कंधों पर होती हैं।
  • सामाजिक अपेक्षाओं का अनुपालन: आमतौर पर बेटियों से परिवार की यही उम्मीद होती है कि बेटियां विवाह के बाद अपने पति के परिवार के प्रति दायित्वों को निभाएँ। कई परिवार तो यहाँ तक सोचते हैं कि एक बेटी की शिक्षा मुख्य रूप से उसके ससुराल वालों को लाभान्वित करेगी।
  • पुरुष-वर्चस्व वाला परिवेश: STEM में महिलाएँ हमेशा से अल्पसंख्यक ही रही हैं। विज्ञान और इंजीनियरिंग में पुरुष-प्रधानता की सामाजिक स्वीकारिता महिलाओं की भागीदारी के लिए एक प्रमुख बाधा है। इसके अलावा पुरुष प्रधान माहौल विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए लड़कियों को असहज महसूस करता हैं, हालांकि अब ज्यादा से ज्यादा महिलाएं विज्ञान करियर बनाने के लिए आगे आ रही हैं।
  • रोल मॉडल की कमी: जब अधिक से अधिक महिलाएं किसी क्षेत्र में सफलता अर्जित करने लगती हैं तो उससे अन्य लड़कियों का आत्मविश्वास बढ़ता है और उस क्षेत्र में उनको आगे बढ्ने का प्रोत्साहन मिलता हैं। रोल मॉडल की कमी से भी STEM विषयों को करियर विकल्प के रूप में चुनने से लड़कियां बचती हैं।
  • महिलाओं की अनौपचारिक नेटवर्क तक पहुंच की कमी है जो हाई-प्रोफाइल परियोजनाओं में काम करने के अवसर प्रदान करते हैं, जिसमें विदेश में सम्मेलनों में भाग लेना या नौकरी के अवसर शामिल होते हैं। इससे उनके पास काम के अनुभव की कमी रहती है जो उन्हें उच्च पदों में पहुँचने और विकास मॉडल की विस्तृत श्रृंखला तक पहुंच प्रदान करने में सक्षम बना सकता था।

सरकार द्वारा उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदम
भारत सरकार विभिन्न पहलों और कार्यक्रमों के माध्यम से विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास कर रही है। भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) विज्ञान और प्रौद्योगिकी के डोमेन में महिलाओं के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करने सक्रिय रूप से लगा हुआ है। भारत सरकार द्वारा किए जा रहे कुछ महत्वपूर्ण प्रयास निम्नलिखित हैं:

  • किरण (KIRAN): 2014 में DST ने सभी महिला विशिष्ट कार्यक्रमों को एक अम्ब्रेला कार्यक्रम “पोषण के माध्यम से अनुसंधान उन्नति में ज्ञान भागीदारी (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing-KIRAN)” के रूप में पुनर्गठित किया। यह मुख्य रूप से अनुसंधान और विकास क्षेत्र में अधिक महिला प्रतिभाओं को शामिल करके विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लैंगिक समानता लाने के लिए लक्षित है।
  • महिला प्रौद्योगिकी पार्क: महिला प्रौद्योगिकी पार्क (WTP) विविध प्रौद्योगिकियों के अभिसरण के लिए एकल खिड़की हब के रूप में कार्य करते हैं। महिला प्रौद्योगिकी पार्क महिलाओं के लिए आजीविका प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने के लिए एक प्रौद्योगिकी मॉडुलन और प्रशिक्षण केंद्र है। ग्रामीण महिलाओं के लिए खाद्य सुरक्षा और आजीविका उत्पादन के लिए यहाँ प्रौद्योगिकी प्रबंधन पैकेज विकसित किए जाते हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं डब्ल्यूटीपी में प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं। संगठन भी लगातार कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास करते हैं और स्थान-विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी पैकेजों को संशोधित करते हैं।
  • वूमेन इन टेक फोरम:
    • इस मंच का गठन रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (RBS), भारत की अगुवाई में प्रौद्योगिकी कॉरपोरेट्स, शिक्षाविदों और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से किया गया है।
    • मंच का उद्देश्य बहु-आयामी दृष्टिकोण के माध्यम से जमीनी स्तर पर लैंगिक- अंतर को संबोधित करना है।
    • इस मंच को बेटी बचाओ, बेटी पढाओ के राष्ट्रीय एजेंडा में तेजी लाने में मदद करने के लिए डिजाइन किया गया है।
    • इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी क्षेत्र में महिलाओं की रोजगार क्षमता में निरंतर वृद्धि को बढ़ावा देना
    • इसकी एक पहल शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे गैर-सरकारी संगठनों(NGO) के सहयोग से निधियों के एक स्वतंत्र कोष का निर्माण करना भी है।
  • वूमेन एंटरप्रेन्योर क्वेस्ट (WEQ): WEQ एक व्यापक मंच है जो वास्तविक व्यवसाय वृद्धि के लिए परामर्श, सीखने और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करता है। इस प्रतियोगिता का उद्देश्य महिला उद्यमियों द्वारा स्थापित प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप को प्रोत्साहित करना, बढ़ावा देना और उनका प्रदर्शन करना है। इसका आयोजन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा किया जाता है।
  • विज्ञान ज्योति: यह छात्राओं के लिए विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए एक समर्पित कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य उच्च शिक्षा हासिल करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए छात्राओं को प्रोत्साहित करना है। साथ ही ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाली छात्राओं को यह समझने में मदद करना है कि वे विज्ञान के क्षेत्र में स्कूल से कॉलेज और उसके बाद शोध से लेकर नौकरी तक कैसे आगे बढ़े।
  • अन्य प्रमुख योजनाये:
    • ‘क्यूरी’ (महिला विश्वविद्यालयों में नवाचार और उत्कृष्टता के लिए अनुसंधान कार्यों का समेकन) कार्यक्रम
    • महिला वैज्ञानिक योजना (WOS)
    • STEMM में महिलाओं के लिए इंडो-यूएस फैलोशिप
    • इंस्पायर योजना और इंस्पायर अवार्ड मानक योजना
    • बायो-टेक्नोलॉजी करियर एडवांसमेंट एंड रेओरिएंटशन (बायो-केयर) स्कीम;

ज्ञान-विज्ञान में महिलाओं को आगे लाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव
अनेक बाधाओं के बावजूद भी भारत में महिलाओं ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी को अधिक से अधिक बढ़ाने और उसे बनाए रखने के लिए लैंगिक-भेदभाव को को कम करने की मजबूत प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। इसे प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित सुझावों में अमल किया जा सकता है:

  • जागरूकता फैलाकर: लड़कियों को विज्ञान में कैरियर बनाने के लिए जागरूक करना उतना कठिन नहीं है जितनी कि उनके अभिभावकों को। परिवार के समर्थन और प्रोत्साहन से लड़कियां विज्ञान में उच्च उपलब्धियां हासिल कर सकती हैं।
  • मेंटरिंग(Mentoring): परिवार के समर्थन के साथ, शिक्षकों द्वारा STEM विषयों में लड़कियों को कैरियर बनाने की सलाह देने और प्रोत्साहित करने से अधिक प्रभाव पड़ सकता है। माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के लिए समय समय पर मेंटरशिप कार्यक्रम चलाये जाने की आवश्यकता है।
  • लिंग-संवेदनशील शिक्षा: जेंडर संवेदीकरण में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षण की प्रक्रिया में सम्मिलित सभी तत्वों जैसे-विद्यालय, शिक्षक, पाठ्य पुस्तक, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण कक्ष सभी का समान योगदान है। सभी के द्वारा बालिका को बालक के समान परिवेश दिया जाना चाहिए। इस हेतु एक समान पाठ्यचर्चा, शिक्षण पद्धतियों एवं शैक्षणिक सामाग्री होनी चाहिए जो किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह तथा जेंडर-रूढ़िवादिता से मुक्त हो।
  • मेधावी लड़कियों को STEM छात्रवृत्ति: स्कूल स्तर पर STEM की मेधावी लड़कियों को छात्रवृत्ति के प्रावधान किए जा सकते है। इससे उनमें स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर विज्ञान विषय के चयन और विज्ञान में कैरियर बनाने को बढ़ावा मिलेगा है।
  • मीडिया का उपयोग: विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाली महिलाओं को मीडिया के माध्यम से रोल मॉडल की तरह दिखाया जा सकता है। इस प्रकार मीडिया महान महिला वैज्ञानिकों और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में सफलता अर्जित करने वाली महिलाओं की दृश्यता में वृद्धि करके STEM क्षेत्रों में युवा लड़कियों की रुचि बनाने और उन्हे प्रोत्साहित करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।

निष्कर्ष

  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित, जिसे सामूहिक रूप से STEM के रूप में जाना जाता है, वर्तमान में यही चार प्राथमिक शैक्षणिक विषय हैं जो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए जिम्मेदार हैं। STEM कार्यबल भारत के आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसमें महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम है। भारत में विज्ञान से स्नातक महिलाओं का केवल कुछ प्रतिशत महिलाए ही विज्ञान में सफल अकादमिक करियर को आगे बढ़ा पति है। 
  • अनुसंधान और प्रशासन में में तो बहुत ही कम महिलाए पहुँच पाती हैं। सतत विकास के लिए एजेंडा-2030 सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लक्षित करता है। एक समृद्ध और टिकाऊ समाज के निर्माण के लिए लैंगिक-समानता सबसे महत्वपूर्ण है। STEM विषयों में सीखने के समान अवसर मिलने से महिलाओं को इस क्षेत्र में रोजगार के सृजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। हालाँकि भारत ने लड़कियों की शिक्षा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी STEM में महिलाओं की भागीदारी और प्रदर्शन अभी भी एक चुनौती है।

भारत में महिला वैज्ञानिक

चर्चा में क्यों?
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा संकलित डेटा के अनुसार, वर्ष 2018-19 में बाह्य अनुसंधान और विकास परियोजनाओं में प्रतिभागियों में से 28% महिलाएँ थीं, जो वर्ष 2000-01 की तुलना में 13% अधिक हैं, यह सरकार द्वारा की गई विभिन्न सकारात्मक पहलों का परिणाम है।

  • मंत्रालय का लक्ष्य वर्ष 2030 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) में महिलाओं की भागीदारी को 30% तक बढ़ाना है।
  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research -CSIR) की पहली महिला महानिदेशक के रूप में डॉ एन. कलाइसेल्वी की हालिया नियुक्ति ने विज्ञान अनुसंधान में महिलाओं की भागीदारी की महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति को रेखांकित किया।

प्रमुख बिंदु

  • DST निष्कर्ष:
    • शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में मुख्य अनुसंधानकर्त्ता महिलाओं की संख्या वर्ष 2000-01 में 232 से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 941 हो गई थी।
    • शोधकर्त्ताओं में महिलाओं का प्रतिशत वर्ष 2015 में 13.9% से बढ़कर वर्ष 2018 में 18.7% हो गया।
    • जबकि समग्र डेटा ऊपर की ओर रुझान दिखाते हैं, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में महिला शोधकर्त्ता प्राकृतिक विज्ञान, स्वास्थ्य और कृषि की तुलना में कम हैं।
    • हालाँकि, सामाजिक विज्ञान और मानविकी में महिला शोधकर्त्ताओं का प्रतिशत 36.4% से बहुत अधिक है।
    • डॉक्टरेट के बाद के स्तर पर, वैश्विक औसत से कम महिला शोधकर्त्ता हैं।
    • स्नातकोत्तर स्तर तक महिलाओं की स्वस्थ भागीदारी है।
    • लेकिन अधिकांश शोध अनुसंधान वाले पोस्ट-डॉक्टरेट स्तर पर महिला भागीदारी में कमी है, हालाँकि यह अनुपात बढ़ रहा है लेकिन अभी भी वैश्विक औसत के 30% के  से बहुत कम है।
  • उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) 2019:
    • AISHE के अनुसार, स्नातक स्तर पर विज्ञान शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी क्रमश: 53% और स्नातकोत्तर स्तर पर 55% है।
    • लेकिन डॉक्टरेट स्तर पर, 44% महिला स्नातक पुरुषों के 56% से कम हैं।

विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी की समग्र स्थिति:

  • राष्ट्रीय स्थिति :
    • भारत में विज्ञान शोधकर्त्ताओं की संख्या वर्ष 2014 में 30,000 से दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 60,000 से अधिक हो गई है।
    • जैव प्रौद्योगिकी में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक 40% और चिकित्सा में 35% है।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग:
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के 97 वैज्ञानिकों में से 35 महिलाएँ हैं।
    • सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि DST में 18 में से 11 डिवीजन का नेतृत्त्व महिलाओं द्वारा किया जा रहा है तथा यह किसी भी सरकारी विभाग में नेतृत्त्व करने वाली महिलाओं का सबसे बड़ा प्रतिशत है।
  • अन्य संस्थान:
    • आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (CDRI) में 18%, राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (NIPER), हैदराबाद में 21% और बंगलुरु में डिफेंस बायो-इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रो-मेडिकल लैब (DEBEL) में महिलाओं की हिस्सेदारी 33% हैं।
    • दिल्ली विश्वविद्यालय में महिलाओं की भागीदारी 33% है, जबकि असम में तेजपुर विश्वविद्यालय में 17% है।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिये सरकार द्वारा की गई पहल:

  • संस्थानों में बदलाव हेतु लैंगिक उन्नति (GATI)/ गति:
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा संस्थानों में बदलाव हेतु लैंगिक उन्नति (GATI) के लिये लैंगिक उन्नत्ति कार्यक्रम लॉन्च किया गया था।
    • यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में लैंगिक समानता का आकलन करने के लिये एक व्यापक चार्टर और एक रूपरेखा विकसित करेगा।
    • गति के पहले चरण में DST द्वारा 30 शैक्षिक और अनुसंधान संस्थानों का चयन किया गया है, जिसमें नेतृत्त्व भूमिका संकाय में महिलाओं की भागीदारी और महिला छात्रों और शोधकर्त्ताओं की संख्या पर ध्यान दिया गया है।
  • विज्ञान ज्योति योजना:
    • विज्ञान ज्योति योजना, DST द्वारा शुरू की गई है।
    • इसका उद्देश्य हाई स्कूल में मेधावी लड़कियों के लिये विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) को उनकी उच्च शिक्षा में आगे बढ़ाने के लिये एक समान अवसर प्रदान करना है।
    • यह ग्रामीण पृष्ठभूमि की छात्राओं को विज्ञान के क्षेत्र में स्कूल से उनकी पसंद की नौकरी तक की यात्रा की योजना बनाने में मदद करने के लिये एक्सपोजर भी प्रदान करता है।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा (STEMM) कार्यक्रम में महिलाओं के लिये भारत-अमेरिका फैलोशिप:
    • महिला वैज्ञानिक अमेरिका में रिसर्च लैब में काम कर सकती हैं।
  • महिला विश्वविद्यालयों में नवाचार और उत्कृष्टता के लिये विश्वविद्यालय अनुसंधान का समेकन (CURIE) कार्यक्रम:
    • महिला विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टता पैदा करने के लिये अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना में सुधार करना और अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना करना।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी

  • विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व नियुक्त एवं पदोन्नति से लेकर पुरस्कृत किये जाने और विज्ञान अकादमियों के सदस्य/फेलो के रूप में चुने जाने से लेकर वैज्ञानिक संस्थानों में नेतृत्वकारी पदों पर आसीन किये जाने तक समग्र कैरियर प्रक्षेपवक्र में नज़र आता है। विज्ञान अकादमियों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति वैज्ञानिक समुदाय के अंदर उनकी समग्र स्थिति को दर्शाती है। इस समस्या को दो स्तरों पर संबोधित किये जाने की आवश्यकता है- पहला, सामाजिक स्तर पर जिसके लिये दीर्घकालिक प्रयास की आवश्यकता और दूसरा, नीतिगत एवं संस्थागत स्तर पर, जिसे तत्काल प्रभाव से शुरू किया जा सकता है।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

  • वैश्विक रुझान : 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कई यूरोपीय अकादमियों में महिला वैज्ञानिकों को सदस्य के रूप में स्वीकृति प्रदान की गई थी। ‘जेंडर इन साइंस, इनोवेशन, टेक्नोलॉजी एंड एन्जनिरिंग (Gender in Science, Innovation, Technology and Engineering- GenderInSITE), इंटर एकेडमी पार्टनरशिप (InterAcademy Partnership- IAP) और इंटरनेशनल साइंस काउंसिल (International Science Council- ISC) द्वारा संयुक्त रूप से किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि वरिष्ठ अकादमियों (senior academies) में महिलाओं की निर्वाचित सदस्यता में मामूली वृद्धि हुई है जो वर्ष 2015 में 13% थी जो वर्ष 2020 में बढ़कर 16% हो गई है।
    • हालाँकि यूथ एकेडमी (Young Academies) के मामले में स्थिति बेहतर है, लेकिन महिलाओं का प्रतिनिधित्व (42% औसत हिस्सेदारी) वहाँ भी कम है।
    • वरिष्ठ अकादमियों में ‘अकैडमी ऑफ़ साइंसेज़ ऑफ क्यूबा’ (Academy of Sciences of Cuba) 33% महिला प्रतिनिधित्व के साथ सबसे आगे है।
  • भारत-विशिष्ट आँकड़े: वर्ष 2020 में किये गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (Indian National Science Academy- INSA) के 1,044 सदस्यों में से केवल 89 महिलाएँ हैं जो कुल मात्र का 9% है। वर्ष 2015 में उनके प्रतिनिधित्व में और अधिक कमी देखगी गई जिसमें 864 सदस्यों में मात्र 6% महिला वैज्ञानिक सदस्य शामिल थी।
  • इसी प्रकार, INSA के शासी निकाय में वर्ष 2020 में कुल 31 सदस्यों में से केवल 7 महिलाएँ शामिल थीं जबकि वर्ष 2015 में इसमें कोई महिला सदस्य शामिल नहीं थी।
  • तीन अकादमियाँ—भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (INSA), भारतीय विज्ञान अकादमी (IAS) और नेशनल अकादमी (NAS) पेशेवर निकायों और संबंधित संस्थानों सहित विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को प्रोत्साहन देने हेतु शुरू की गई पहलें 

  • देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science Technology Engineering and Mathematics- STEM) के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व की समस्या को संबोधित करने हेतु ‘विज्ञान ज्योति कार्यक्रम’ (Vigyan Jyoti Programme) शुरू किया गया था।
    • आरंभ में इसे स्कूल स्तर पर शुरू किया गया था जहाँ कक्षा 9-12 की मेधावी छात्राओं को STEM क्षेत्र में उच्च शिक्षा और करियर बनाने हेतु प्रोत्साहित किया गया।
    • हाल ही में कार्यक्रम के दूसरे चरण का 100 ज़िलों में विस्तारित किया गया है।
  • महिला वैज्ञानिकों को शैक्षणिक और प्रशासनिक स्तर पर अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 में ‘किरण योजना’ (KIRAN scheme ) शुरू की गई।
    • योजना के तहत शामिल 'महिला वैज्ञानिक योजना' बेरोज़गार महिला वैज्ञानिकों एवं प्रौद्योगिकीविदों को करियर के अवसर प्रदान करती है, विशेषकर उन महिलाओं को जिनके करियर में एक अवरोध आया है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence-AI) नवाचारों को बढ़ावा देने और भविष्य में AI-आधारित नौकरियों के लिये कुशल जनशक्ति तैयार करने के लक्ष्य के साथ महिला विश्वविद्यालयों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रयोगशालाएँ भी स्थापित की हैं।
  • महिलाओं के लिए इंडो-यूएस फेलोशिप कार्यक्रम के तहत महिला वैज्ञानिकों को अमेरिका में अनुसंधान प्रयोगशालाओं में कार्य करने का अवसर प्रदान किया गया है।
  • महिला विश्वविद्यालयों में नवाचार और उत्कृष्टता हेतु विश्वविद्यालय अनुसंधान का समेकन (Consolidation of University Research for Innovation and Excellence in Women Universities- CURIE) कार्यक्रम का उद्देश्य महिला विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्टता के सृजन हेतु अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना में सुधार लाना और अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना करना है।
  • STEM क्षेत्र में लैंगिक समानता का आकलन करने हेतु एक व्यापक चार्टर एवं फ्रेमवर्क विकसित करने के लिये ‘जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस’ (Gender Advancement for Transforming Institutions- GATI) कार्यक्रम शुरू किया गया।

महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के प्रमुख कारण 

  • रूढ़िबद्धता: STEM क्षेत्र में महिलाओं की कमी केवल कौशल अपर्याप्तता के कारण नहीं है बल्कि निर्दिष्ट रूढ़िवादी लिंग भूमिकाओं (Stereotypical Gender Roles) का भी परिणाम है।
    • किसी महिला वैज्ञानिक को नौकरी देने या उसे नेतृत्वकारी पद प्रदान करने का निर्णय लेते समय उसकी योगता के बजाय उसकी पारिवारिक स्थिति या फिर जीवन साथी के स्तर को ध्यान में रखा जाता है।
    • यह एक सामान्य मानदंड सा बन गया है कि पहले से ही काम पर रखे गए फैकल्टी की महिला पत्नियों को वरीयता नहीं दी जायेगी चाहे वे कितनी भी मेधावी हों।
  • पितृसत्तात्मक सोच और सामाजिक कारण: नियुक्ति या फेलोशिप एवं अनुदान आदि प्रदान करने में पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण प्रकट होता है।
    • विवाह एवं संतानोत्पत्ति से संबंधित तनाव, सामाजिक मानदंडों के अनुरूप होने का दबाव और घरेलू बंधन (घर चलाने से संबंधित ज़िम्मेदारी, बुजुर्गों की देखभाल आदि) इन 'गैर-पारंपरिक' क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में और अवरोध उत्पन्न करते हैं।
  • रोल मॉडल का अभाव: लैंगिक समानता को अवरुद्ध करने में संगठनात्मक कारकों ने भी बड़ी भूमिका है। महिला नेतृत्वकर्त्ताओं और महिला रोल मॉडलों की कमी ने भी संभवतः अधिकाधिक महिलाओं को इन क्षेत्रों में प्रवेश को अवरुद्ध किया है।
  • सहायक संस्थागत संरचना का अभाव: गर्भावस्था के दौरान सहायक संस्थागत संरचनाओं की अनुपस्थिति और फील्डवर्क एवं कार्यस्थल में सुरक्षा-संबंधी समस्याएँ महिलाओं को कार्यबल से बाहर होने को विवश करती हैं।
    • इन क्षेत्रों में महिलाओं की कम संख्या के लिये न केवल सामाजिक मानदंड बल्कि गुणवत्ताहीन शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित समस्याएँ भी ज़िम्मेदार हैं।

आगे की राह 

  • विज्ञान अकादमियों की भूमिका: यद्यपि सभी क्षेत्रों में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व देखा जाता है। विज्ञान के क्षेत्र में इस स्थिति को देखते हुए वैज्ञानिक समुदाय एवं विज्ञान अकादमियों को महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिये रणनीतियों को विकसित करने की आवश्यकता है।
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि विज्ञान अकादमियों में महिलाओं को बढ़ावा देने और उन्हें बनाए रखने के लिये उनकी भूमिका एवं योगदान को प्रतिबिंबित करना होगा और इस तरह विज्ञान के क्षेत्र को महिलाओं के प्रति भी समावेशी और संवेदनशील बनाना होगा।
  • व्यवहारिक परिवर्तन लाना: सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से कमज़ोर लैंगिक भागीदारी उत्पन्न होती है जिसे लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाकर संबोधित किया जा सकता है।
    • इसे तभी परिवर्तित किया जा सकता है जब महिलाओं को नेतृत्वकारी पद प्रदान किया जाए।
    • STEM क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिये ताकि वे अगली पीढ़ी की बालिकाओं के लिये STEM क्षेत्र में आगे बढ़ने हेतु रोल मॉडल बन सकें।
    • यह आवश्यक है कि हम लिंगभेद एवं संस्थागत बाधाओं को समझें और दूर करें जो अधिक महिलाओं के अधिक से अधिक वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रवेश को अवरुद्ध करते हैं।
  • उच्च प्रतिनिधित्व के महत्त्व को समझना: समावेशी एवं धारणीय समाजों का निर्माण करने के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व आवश्यक है।
    • लैंगिक समानता न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है बल्कि एक व्यावसायिक प्राथमिकता भी है। जिन संगठनों द्वारा अपनी कार्यकारी टीमों में अधिक विविधता को बढ़ावा दिया जाता है उन संगठनों की लाभ और नवाचार क्षमता अधिक होने की संभावना होती हैं।
    • यथास्थिति को तेज़ी से परिवर्तित करने के लिये हम सभी को अपने प्रयासों को बढ़ाना होगा। लैंगिक असमानता के विरुद्ध इस युद्ध में परिवारों, शैक्षणिक संस्थानों, कंपनियों और सरकारों सभी को साथ मिलकर कार्य करना होगा।
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