UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi  >  लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति, समस्याएँ एवं नैतिकता के निर्धारक

लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति, समस्याएँ एवं नैतिकता के निर्धारक | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi PDF Download

लोक प्रशासन में नैतिकता के निर्धारक

लोक प्रशासन में नैतिकता के निर्धारण में मुख्य रूप से निम्न कारकों का उल्लेख किया जा सकता है

  • राजनीतिक विचारधाराएँ एवं राजनीतिक संस्कृति, लोक प्रशासन में नैतिकता की स्थिति पर विशेष रूप से प्रभाव डालते हैं। भारत की राजनीतिक संस्कृति में जनसहभागिता सर्वोपरि है। इस कारण से प्रशासन में नैतिकता के निर्धारक कारकों में इसका विशेष महत्व है। भारतीय प्रशासन में नैतिकता के आकलन का मूल आधार उसकी लोकतांत्रिक प्रवृत्ति अर्थात निर्णयन में जनसहभागिता और समावेशन के प्रति उसका उत्तरदायित्व अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति तक सेवा की आपूर्ति है।
  • सिविल सेवकों में नैतिक निर्णयन का कौशल उनकी अभिवृत्ति और उनके वैयक्तिक मूल्य का विशेष महत्व है। प्रभावी निर्णयन के लिये यह अनिवार्य है कि निर्णयन में तार्किकता और बुनियादी मूल्यों का सामंजस्य हो तथा निर्णय लेने के पूर्व सम्पूर्ण समाजशास्त्रीय परिदृश्य को ध्यान में रखा जाये। 
  • ऐसी अर्थव्यवस्थाएँ जहाँ संसाधन सीमित होते हैं व उसके लिये प्रतिस्पर्धा तीव्र होती है, वहाँ लोगों के लिये नैतिक रहना बहुत आसान नहीं रहता। ऐसे में आर्थिक कारक भी प्रशासक को अनैतिक होने के पर्याप्त अवसर प्रदान करते हैं।

लोक प्रशासन की बदलती प्रवृत्तियों में सिविल सेवा मूल्यों की आवश्यकता 
वर्तमान परिवर्तन के दौर में लोक प्रशासन प्रवृत्तियाँ भी तेजी से बदल रही हैं। आधुनिक रूपों में लोग, अपनी आकांक्षाओं के प्रति जागरूक रहते हैं। सोशल मीडिया या तकनीकी के अन्य साधनों द्वारा लोक प्रशासकों से जवाबदेही तय की जाती है व उनके निर्णय, कार्यों पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया दी जाती है। इसी जन जागरूकता का रूप है कि सरकारें अपनी परम्परागत भूमिका से हटकर सामर्थ्यकारी सरकार की भूमिका में कार्य कर रही हैं। और इस भूमिका का निर्वहन सरकार तथा जनता के बीच लोक प्रशासकों द्वारा एक कड़ी के रूप में किया जाता है। अतः एक व्यावहारिक लोकतंत्र की स्थापना के लिये सिविल सेवकों द्वारा जवाबदेही युक्त उत्तररायित्व को निभाना चाहिये। सिविल सेवा में मूल्यों के महत्व को निम्नांकित लामों के रूप में देखा जा सकता है

  •  मूल्यों युक्त प्रशासन से सुशासन को बढ़ावा मिलता है। 
  • प्रशासन में जनसहभागिता को बढ़ावा मिलता है। 
  • मूल्यों युक्त सेवा से विकास का लाभ समाज के सबसे निचले तबके तक पहुंचता है। 
  • सरकार तथा जनता के बीच विश्वास भावना बढ़ती है। 
  • देश में एक सुइद आगत-निर्गत (Input-Output) का निर्माण होता है।

लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति एवं समस्याएँ 

1. कई घोटालों,बोफोर्स से लेकर कोयला तक, ने लोगों का ध्यान लोक प्रशासकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के नीतिशास्त्रीय व्यवहारों पर केंद्रित किया है और यह स्थिति केवल भारत तक सीमित नहीं है वरन् अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों में भी देखी गयी है। एक ओर जहाँ भारत में यूपीए-2 शासन द्वारा दिये गये अच्छे कार्यों को घोटालों की श्रृंखला ने आच्छादित कर दिया, ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका में रोनाल्ड रीगन के आठ वर्षीय राष्ट्रपति कार्यकाल को नीतिशास्त्रीय समस्याओं ने आच्छादित कर दिया था। जिस प्रकार यूपीए-2 शासन में राष्ट्रमंडल घोटाला, आईपीएल घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम, कोलगेट, आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला, घूसकांड घोटाला जैसे घोटालों के कारण उच्च पदों पर बैठे कई लोगों को त्यागपत्र देना पड़ा, ठीक उसी प्रकार अमेरिका में रोनाल्ड रीगन के आठ वर्ष के कार्यकाल में रीगन प्रशासन द्वारा 150 से अधिक राजनीतिक नियुक्तियों को अनैतिक व्यवहार के कारण त्यागपत्र देना पड़ा था।
2. भारतीय समाज में अनेक समस्याएँ विद्यमान हैं जिनमें खाद्यान्न, अशिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ प्रमुख हैं। भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है अर्थात् प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है परंतु समस्या खाद्यान के वितरण, मंडारण से है। इसके समाधान के लिए खाद्यान्न का भंडारण ब्लॉक स्तर पर विकंद्रीकरण करके होना चाहिए और साथ ही शीत गृहों का भी निर्माण किया जाना चाहिए। जिससे कि खर्च व समय की बचत होगी तथा इनका भंडारण व वितरण समय से सभी को हो पाएगा एवं अनाजों के सड़ने की खबर भी कम सुनाई देगी।

3. शिक्षा सेवाओं में भी समस्याएँ हैं चाहे वह उच्च शिक्षा के लिए हो या प्राथमिक शिक्षा के लिए। प्राथमिक विद्यालय जहाँ आधारभूत संरचनाओं व अनियमितताओं का शिकार हो रहे हैं। वहीं उच्च शिक्षा जिसमें आजकल कुकुरमुत्ते की तरह खुल रहे इंजीनियरिंग, मेडिकल व मानविकीय विद्यालय जिम्मेदार है जो कि शिक्षा गुणवत्ता को कम कर रहे हैं। छात्र शोध के लिए कम जा रहे हैं। इसके उपाय के लिए नयी शिक्षा नीति को जल्द से जल्द लागू करके इन सभी कमियों को दूर किया जाना चाहिए।

4. स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें तो अब भी कई राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का अभाव है। डॉक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जाना पसंद नहीं करते जिसका प्रमुख कारण वहाँ सुविधाओं की कमी तथा आर्थिक आय है। इन सबके सुधार के लिए पहले सभी राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना उपलब्ध हो तथा महानगरों में उच्च सुविधा युक्त अस्पताल हो। नयी स्वास्थ्य नीति जल्द से जल्द लागू हो।

5. लोक प्रशासन की परंपरागत छवि प्रतिकूल रही है। नौकरशाही को लाल फीताशाही (Red tapism) अनग्यता, रूढ़िवाद, और संकट से निपटने में अनुशीलता एवं अनुसारक हॉचे के व्यवहार के रूप में देखा गया है। आमतौर पर नौकरशाहों में शिकायतों को दबाने, भूलों को ढंकने एवं फरियादों का उपहास करने की प्रवृत्ति होती है।

6. नई नस्ल के प्रशासकों से अधिक नव प्रवर्तक, प्रशासनिक तकनीकों के जानकार, और जनता की मांगों के प्रति अधिक अनुक्रियाशील होने की अपेक्षा की जाती है। उदीयमान समस्याओं को पहचानकर तथा औपचारिकता को न्यूनतम कर उन्हें तत्काल और परिशुद्ध कदम उठाना सीखना होगा।

7. वर्तमान सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए आधुनिक नौकरशाही (अधिकारी) को बहुल भूमिकाएँ ग्रहण करनी होंगी, यथाः 

  • संघर्षरत सुधारक जो आदर्श समाज के पूर्वग्रहित विचारों के अनुसार सामुदायिक जीवन के किसी पहलू को रूपांतरित करने के लिए कृतसंकल्प हो। 
  • अज्ञात का सामना करने के लिए संभव युक्तियों से लैस अग्रसक्रिय नीति निर्माता।
  • सामाजिक परिवर्तन एजेंट जो नये आदशों को स्वीकार करने के लिए और उनको स्वीकार करने में अन्यों को धकेलने के लिए तैयार हो। 
  • संकट निवारक जो सुलगने में थीमा परन्तु करने में तेज और तात्कालिक काम चलाऊ प्रबन्ध करने में प्रतिभाशाली हो। 
  • गतिमान कार्यक्रम प्रबन्ध जो नये मार्गों को बनाने और चल रही व्यवस्थाओं के अनुरूप बनने में समर्थ हो। 
  • मानवतावादी नियोजन जो अपने कार्मिकों को सम्मानजनक व्यवहार और समुचित न्याय दे। 
  • राजनीतिक अभियानकर्ता जो सार्वजनिक आवश्यकताओं के प्रति अनुक्रियाशील और जनता के हितों का समर्थक हो। 
  • सुयोग्य प्रशासक जो न्यूनतम राजनीतिक उलझन के साथ प्रभावी निष्पादन सुनिश्चित करे। 
  • हितों का अभिकर्ता जो प्रतियोगी हितों में से चुनाव करे और परिणाम पर सबों को राजी कर ले। 
  • जन संपर्क विशेषज्ञ जो समर्थन जुटाने और अपने विचार को लाभप्रद दिखाने में निपुण हो। 
  • तेज निर्णायक जो जिम्मेदारी और स्पष्ट आदेश ग्रहण करने के लिए तैयार हो। 
  • रचनात्मक विचारक जो दूसरों के द्वारा आसानी से भटकाया न जा सके जो उसके दिमाग को अपने हित में बनाना चाहेंगे। 
  • आशावादी नेता जो प्रतिकूलता में सहज ही निरुत्साह न हो बल्कि अपने अधीनस्थों का ध्यान आकृष्ट करे और उन्हें उद्दीप्त करे।

स्पष्टतः प्रत्येक नौकरशाह से इतना ही बहुमुखी प्रतिभावान होने की अपेक्षा करना अयथार्थवारी होना है, शायर अप्राप्य की अपेक्षा करना है। तथापि, जहाँ तक संभव हो इस आदर्श को व्यवहार में लाने का प्रयास होना चाहिए। आदर्श तक ऐसे संकेतक को व्यवहार में लाने का प्रयास होना चाहिए। आदर्श एक ऐसे संकेतक का व्यवहार करे जो नौकरशाहों की शिक्षा, प्रशिक्षण और चयन व्यवस्थाओं का लक्ष्य हो। व्यवहार में प्रत्येक प्रशासक किसी समय में सामाजिक आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और परिचालनीय बाधाओं को ध्यान में रखते हुए सर्वोत्तम तरीके से कार्य करेगा। 

सफल प्रशासन के लिए निम्नलिखित चरों की पहचान की गई है।

  • पुराने को बदलने के बजाय नये समाधानों को मान्यता देना।
  • नई अनुक्रियाओं और पहलों को उगाहने के लिए समस्याओं का नये पदों में पुनर्निधारण करना।
  • संकट को लाभ में बदलना न्यूनतम उदासीनता से स्व-रूपांतर पैदा करने के लिए समस्या समाधान में
  • विचलन और कलह का प्रयोग करना।
  • अनिश्चितता और तरलता से निपटना और परिवर्तन, अस्थायित्व और पारस्परिक निर्भरता को अवशोषित करना।
  • विना अत्यधिक वाचन के अथवा समानुपात भाव खोये बिना ही विचलन, कलह एवं झंझट को सहना।
  • समस्याओं से निपटने के लिए संसाधन जुटाना और अन्तरविषयक समस्या समाधान में लगना।
  • तनाव या प्रतिबल में मानव और दयालु रहना।

भारत जैसे विकासशील देश के लिये यह बहुत आवश्यक है कि राष्ट्र के त्वरित विकास के लिए सरकारी तंत्र नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए जिम्मेदारियों को निष्ठापूर्वक निभाये। इसीलिये,सरदार पटेल ने देश की व्यवस्था को कायम करने के लिए सार्वजनिक सेवाओं को देश का स्टीलफ्रेम' कहा था और कौटिल्य ने भी सरकारी अधिकारियों में नैतिक मूल्यों के समावेश की सख्त वकालत की थी और नैतिक जिम्मेदारी निभाने में असफल अधिकारियों के लिये सजा का प्रावधान किया था।
आज देश के सामने तरह-तरह की समस्याएँ तथा चुनौतियाँ हैं। इनमें प्रमुख हैं गरीबी, भ्रष्टचार, बेरोजगारी, आतंकवाद, नक्सलियों की समस्या, अशिक्षा, स्वार्थपूर्ण राजनीति इत्यादि। इन सब समस्याओं के पीछे राजनीतिक प्रतिबद्धता का अभाव तो है ही परंतु साथ में हम प्रशासनिक संरचना की गैर-जिम्मेदारियों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।

''सभ्य सरकार और यहाँ तक कि, मैं सोचता हूँ, स्वयं सभ्यता का भविष्य एक सेवा और दर्शन एवं सभ्य समाज के सार्वजनिक कार्यों को करने में समर्थ प्रशासन के व्यवहार को विकसित करने की हमारी क्षमता पर निर्भर करता है।"

The document लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति, समस्याएँ एवं नैतिकता के निर्धारक | नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC

Top Courses for UPSC

FAQs on लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति, समस्याएँ एवं नैतिकता के निर्धारक - नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi

1. लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति क्या है?
उत्तर: नीतिशास्त्र लोक प्रशासन में एक महत्वपूर्ण कारक है। यह विभिन्न नीतियों और निर्देशों के माध्यम से लोगों के आचरण और संगठन को नियंत्रित करने में मदद करता है। नीतिशास्त्र की स्थिति यह निर्धारित करती है कि कैसे नीतियों को तैयार किया जाता है, कैसे उन्हें कार्यान्वित किया जाता है और कैसे उनका परिणामस्वरूप प्रभाव चलता है।
2. लोक प्रशासन में कौन सी समस्याएं हैं?
उत्तर: लोक प्रशासन में कई समस्याएं हो सकती हैं। इनमें से कुछ मुख्य समस्याएं शामिल हैं - भ्रष्टाचार, बदलते नीतियों का अस्थायीकरण, संगठनात्मक विपरीतताएं, निर्णयों की देरी और कार्यवाही की कमी, और जनता के साथ संचार की कमी।
3. लोक प्रशासन में नैतिकता क्या है और इसके क्या निर्धारक हैं?
उत्तर: नैतिकता लोक प्रशासन में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो नैतिक मूल्यों और आदर्शों के अनुसार आचरण और कार्यवाही को निर्धारित करती है। इसके निर्धारकों में शामिल हो सकते हैं - सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, कर्मठता, प्रशासनिक न्याय, और जनहित की प्राथमिकता।
4. यूपीएससी क्या है और यह किस परीक्षा से संबंधित है?
उत्तर: यूपीएससी (UPSC) भारतीय संघ लोक सेवा आयोग का एक महत्वपूर्ण संगठन है। यह भारतीय नागरिकों के लिए विभिन्न संघीय स्तरीय नौकरियों की भर्ती करता है। यूपीएससी के माध्यम से भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय विदेश सेवा, और अन्य संघीय स्तरीय नौकरियों की भर्ती की जाती है।
5. लोक प्रशासन के क्षेत्र में कौन से प्रश्न अधिकतर गूगल पर खोजे जाते हैं?
उत्तर: लोक प्रशासन के क्षेत्र में निम्नलिखित प्रश्न अधिकतर गूगल पर खोजे जाते हैं: 1. लोक प्रशासन क्या है? 2. लोक प्रशासन में कौन कौन से नैतिक मूल्य होते हैं? 3. नीतिशास्त्र क्या है और इसका महत्व क्या है? 4. लोक प्रशासन में भ्रष्टाचार कैसे कम किया जा सकता है? 5. लोक प्रशासन में समस्याएं और उनके समाधान क्या हैं?
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Viva Questions

,

past year papers

,

लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति

,

Important questions

,

practice quizzes

,

Summary

,

सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi

,

study material

,

सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi

,

सत्यनिष्ठा एवं अभिवृत्ति for UPSC CSE in Hindi

,

MCQs

,

Objective type Questions

,

Semester Notes

,

Sample Paper

,

समस्याएँ एवं नैतिकता के निर्धारक | नीतिशास्त्र

,

Extra Questions

,

video lectures

,

समस्याएँ एवं नैतिकता के निर्धारक | नीतिशास्त्र

,

Free

,

लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति

,

ppt

,

Exam

,

लोक प्रशासन में नीतिशास्त्र की स्थिति

,

shortcuts and tricks

,

mock tests for examination

,

Previous Year Questions with Solutions

,

समस्याएँ एवं नैतिकता के निर्धारक | नीतिशास्त्र

,

pdf

;