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Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

इंस्पायर पुरस्कार

हाल ही में इंस्पायर पुरस्कार- मिलियन माइंड्स ऑगमेंटिंग नेशनल एस्पिरेशन एंड नॉलेज के तहत 9वीं ‘राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी और परियोजना प्रतियोगिता’ (NLEPC) शुरू हुई है।

इंस्पायर (Innovation in Science Pursuit for Inspired Research-INSPIRE) पुरस्कार

विषय

  • इसे 'स्टार्टअप इंडिया' पहल के साथ जोड़ा गया है और इसे DST (विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विभाग) द्वारा नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन- इंडिया (NIF), DST के एक स्वायत्त निकाय के साथ निष्पादित किया जा रहा है।
  • इस योजना के तहत देश भर के सभी सरकारी या निजी स्कूलों से छात्रों को आमंत्रित किया जाता है, भले ही उनका शैक्षिक बोर्ड (राष्ट्रीय और राज्य) कोई भी हों।
  • प्रत्येक को 10,000 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी ताकि वे योजना के लिये प्रस्तुत किये गए विचारों के अनुरूप प्रोटोटाइप विकसित कर सकें।
  • अगले चरण के रूप में उन्होंने संबंधित ज़िला स्तरीय प्रदर्शनी और परियोजना प्रतियोगिता (DLEPC) और राज्य स्तरीय प्रदर्शनी और परियोजना प्रतियोगिता (SLEPC) में प्रतिस्पर्द्धा की और अब राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी और परियोजना प्रतियोगिता (NLEPC) में अपनी जगह बनाई है।

लक्ष्य

  • छात्रों को भविष्य के नवप्रवर्तक और महत्त्वपूर्ण विचारक बनने के लिये प्रेरित करना।

उद्देश्य

  • विद्यालयी छात्रों में रचनात्मकता और नवोन्मेषी सोच की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये विज्ञान एवं सामाजिक अनुप्रयोगों में निहित दस लाख मूल विचारों/नवाचारों को लक्षित करना।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से सामाजिक ज़रूरतों को पूरा करना तथा छात्रों को संवेदनशील एवं ज़िम्मेदार नागरिक, भविष्य के नवाचारी बनने के लिये पोषित करना।

इंस्पायर पुरस्कार, 2022

  • 60 स्टार्टअप्स को इंस्पायर पुरस्कार प्रदान किया गया, साथ ही 53,021 छात्रों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई।
  • इस योजना ने देश के 702 ज़िलों (96%) के विचारों और नवाचारों का प्रतिनिधित्व करके समावेशिता के एक अद्वितीय स्तर को छुआ, जिसमें 124 आकांक्षी ज़िलों में से 123, लड़कियों का 51% प्रतिनिधित्व, ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्कूलों से 84% भागीदारी शामिल है। देश के 71% स्कूल राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों द्वारा चलाए जा रहे हैं।

इंस्पायर (INSPIRE) योजना

  • इंस्पायर (Innovation in Science Pursuit for Inspired Research-INSPIRE) योजना विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है।
  • इसका उद्देश्य देश की युवा आबादी को विज्ञान की रचनात्मक खोज के बारे में बताना, प्रारंभिक चरण में विज्ञान के अध्ययन के लिये प्रतिभा को आकर्षित करना तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रणाली अनुसंधान और विकास को मज़बूत व विस्तारित करने के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल के आधार का निर्माण करना है।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2010 से इंस्पायर (INSPIRE) योजना को सफलतापूर्वक लागू किया है। इस योजना में 10-32 वर्ष आयु वर्ग के छात्रों को शामिल किया गया है और इसके पाँच घटक हैं।
  • इंस्पायर पुरस्कार- मानक (MANAK), इसके घटकों में से एक है।
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संबंधित पहलें

  • राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति, 2020 का मसौदा: इसका उद्देश्य देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को उत्प्रेरित करने और भारतीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार (STI) पारिस्थितिकी तंत्र को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये STI पारिस्थितिकी तंत्र की ताकत तथा कमज़ोरियों की पहचान करना तथा उन्हें दूर करना है।
  • SERB-POWER योजना: यह भारतीय शैक्षणिक संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास (R&D) प्रयोगशालाओं में विभिन्न विज्ञान व प्रौद्योगिकी (S&T) कार्यक्रमों में विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान में लैंगिक असमानता को कम करने के लिये विशेष रूप से महिला वैज्ञानिकों हेतु तैयार की गई एक योजना है।
  • स्वर्ण जयंती फैलोशिप: इसके तहत अच्छे ट्रैक रिकॉर्ड वाले चयनित युवा वैज्ञानिकों को विशेष सहायता और अनुदान प्रदान किया जाता है ताकि वे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अग्रणी क्षेत्रों में बुनियादी अनुसंधान को आगे बढ़ा सकें।

ब्रह्मोस मिसाइल 

हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिये अतिरिक्त दोहरी भूमिका वाली ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने हेतु ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के साथ 1700 करोड़ रुपए के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • दोहरी भूमिका क्षमता का तात्पर्य भूमि के साथ-साथ जहाज़-रोधी हमलों के लिये ब्रह्मोस मिसाइलों के उपयोग से है। उन्हें स्थल, वायु एवं समुद्र से लॉन्च किया जा सकता है और तीनों वेरिएंट भारतीय सशस्त्र बलों के तहत सेवा में हैं

समझौते का महत्त्व

  • इन दोहरी भूमिका वाली आधुनिक मिसाइलों के भारतीय नौसेना में शामिल होने से बेड़े की मारक क्षमता और परिचालन गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होगी।
  • इस प्रकार की महत्त्वपूर्ण संचार हथियार प्रणाली से स्वदेशी उत्पादन को एक बढ़ावा मिलेगा।
  • ब्रह्मोस मिसाइलों से स्वदेशी उद्योग की सक्रिय भागीदारी के साथ गोला-बारूद में भी वृद्धि की उम्मीद है

ब्रह्मोस मिसाइल

  • भारत-रूस संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
  • इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
  • यह दो चरणों वाली (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे में तरल रैमजेट) मिसाइल है।
  • यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है जिसे स्थल, वायु एवं समुद्र में बहुक्षमता वाली मिसाइल से सटीकता के साथ लॉन्च किया जा सकता है जो खराब मौसम के बावजूद दिन और रात में काम कर सकती है।
  • यह "फायर एंड फॉरगेट/दागो और भूल जाओ" सिद्धांत पर काम करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): September 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthlyहालिया विकासक्रम

  • अप्रैल 2022 में भारतीय नौसेना तथा अंडमान और निकोबार कमांड द्वारा संयुक्त रूप से ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के एक एंटी-शिप संस्करण का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।
  • जनवरी 2022 में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के एक विस्तारित रेंज के समुद्र-से-समुद्र संस्करण का परीक्षण स्टील्थ गाइडेड मिसाइल विध्वंसक INS विशाखापत्तनम से किया गया था।

भारत और क्वांटम कंप्यूटिंग 


चर्चा में क्यों?
IBM के एक अध्ययन के अनुसार, भारत क्वांटम कंप्यूटिंग में बढ़ती रूचि देख रहा है, जिसमें छात्रों, विकासकर्त्ताओं और अकादमिक सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। नतीजतन, देश क्वांटम कंप्यूटिंग के लिये प्रतिभा केंद्र के रूप में उभर रहा है।

क्वांटम कंप्यूटिंग

परिचय

  • क्वांटम कंप्यूटिंग एक तेज़ी से उभरती हुई तकनीक है जो पारंपरिक कंप्यूटरों के लिये बहुत जटिल समस्याओं को हल करने हेतु क्वांटम यांत्रिकी के नियमों का उपयोग करती है।
  • क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की उपशाखा है जो क्वांटम के व्यवहार का वर्णन करता है जैसे- परमाणु, इलेक्ट्रॉन, फोटॉन, और आणविक एवं उप-आणविक क्षेत्र।
  • यह अवसरों से परिपूर्ण नई तकनीक है जो हमें विभिन्न संभावनाएँ प्रदान करके कल हमारी दुनिया को आकार देगी।
  • यह आज के पारंपरिक कंप्यूटिंग प्रणालियों की तुलना में सूचना को संसाधित करने का एक मौलिक रूप से अलग तरीका है।

विशेषताएँ

पारंपरिक कंप्यूटर से अलग

  • जबकि आज के पारंपरिक कंप्यूटर बाइनरी 0 और 1 अवस्थाओं के रूप में जानकारी संग्रहीत करते हैं, क्वांटम कंप्यूटर क्वांटम बिट्स का उपयोग करके गणना करने के लिये प्रकृति के मूलभूत नियमों पर आधारित होते हैं।
  • बिट के विपरीत जो कि 0 या 1 क्यूबिट अवस्थाओं के संयोजन में हो सकता है, इसके विपरीत क्वांटम बड़ी गणना की अनुमति देता है और उन्हें जटिल समस्याओं को हल करने की क्षमता देता है जो कि सबसे शक्तिशाली पारंपरिक सुपर कंप्यूटर भी सक्षम नहीं हैं।

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महत्त्व

  • क्वांटम कंप्यूटर सूचना में हेरफेर करने के लिये क्वांटम यांत्रिक परिघटना को शामिल कर सकते हैं और आणविक एवं रासायनिक अंतः क्रिया की प्रक्रियाओं, अनुकूलन समस्याओं का समाधान करने एवं कृत्रिम बुद्धि की शक्ति को बढ़ावा दे सकतें है।
  • ये नई वैज्ञानिक खोजों, जीवन रक्षक दवाओं और आपूर्ति शृंखलाओं में सुधार, लॉजिस्टिक और वित्तीय डेटा के मॉडलिंग के अवसर प्रदान कर सकते हैं।

क्वांटम कम्प्यूटिंग के लिये IBM इंडिया की पहल

  • किस्किट (Qiskit) चैलेंज: किस्किट क्वांटम डेवलपर समुदाय के लिये IBM द्वारा निर्मित एक ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट किट है।
  • किस्किट इंडिया वीक ऑफ क्वांटम: IBM नियमित रूप से भारत-केंद्रित कार्यक्रमों का आयोजन करता है जैसे कि किस्किट इंडिया वीक ऑफ क्वांटम, जो महिलाओं को क्वांटम में अपनी यात्रा शुरू करने के लिये मनाया गया जिसमे लगभग 300 छात्रों ने भाग लिया था।
  • किस्किट पाठ्यपुस्तक: किस्किट पाठ्यपुस्तक तमिल, बंगाली और हिंदी में उपलब्ध है और अकेले वर्ष 2021 में भारत में छात्रों द्वारा 30,000 से अधिक बार इसका उपयोग किया गया था।
  • IBM क्वांटम एजुकेटर्स प्रोग्राम: IBM क्वांटम एजुकेटर्स प्रोग्राम के माध्यम से भारत में अग्रणी शिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है।
  • इन संस्थानों के संकाय और छात्र शैक्षिक उद्देश्यों के लिये IBM क्लाउड पर IBM क्वांटम सिस्टम, क्वांटम लर्निंग रिसोर्सेज और क्वांटम टूल्स का उपयोग करने में सक्षम होंगे।

भारत सरकार द्वारा शुरू की गई प्रमुख पहलें

  • क्वांटम प्रौद्योगिकियों और अनुप्रयोगों पर राष्ट्रीय मिशन: सरकार ने अपने वर्ष 2021 के बजट में क्वांटम कंप्यूटिंग, क्रिप्टोग्राफी, संचार और सामग्री विज्ञान में विकास को बढ़ावा देने के लिये क्वांटम प्रौद्योगिकियों और अनुप्रयोगों पर राष्ट्रीय मिशन की ओर 8000 करोड़ रुपए आवंटित किये।
  • क्वांटम कंप्यूटिंग प्रयोगशाला: दिसंबर 2021 में भारतीय सेना द्वारा मध्य प्रदेश के महू में एक सैन्य इंजीनियरिंग संस्थान में एक क्वांटम कंप्यूटिंग प्रयोगशाला और एक कृतिम बुद्धिमत्ता केंद्र स्थापित किया गया। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) का भी समर्थन प्राप्त है।
  • क्वांटम कम्युनिकेशन लैब: सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (CDOT) ने अकतूबर 2021 में एक क्वांटम कम्युनिकेशन लैब लॉन्च की। यह 100 कि.मी. से अधिक मानक ऑप्टिकल फाइबर का सहयोग कर सकता है।
  • सहयोग: उन्नत प्रौद्योगिकी के रक्षा संस्थान (DIATऔर 'सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग' (CDAC) क्वांटम कंप्यूटरों को सहयोग और विकसित करने के लिये सहमत हुए।
  • I-HUB क्वांटम टेक्नोलॉजी फाउंडेशन: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और IISER पुणे के लगभग 13 अनुसंधान समूहों द्वारा क्वांटम तकनीक के विकास को और बढ़ाने के लिये I-HUB क्वांटम टेक्नोलॉजी फाउंडेशन (I-HUB QTF) लॉन्च किया गया है।
  • स्टार्टअप: कई स्टार्ट-अप जैसे कुनु लैब्स, बंगलुरु; बोसॉनक्यू, भिलाई भी उभरे हैं और इसके परिणामस्वरूप वे इस क्षेत्र में पैठ बना रहे हैं।

आगे की राह

  • तेज़ी से बढ़ते कृत्रिम बुद्धिमत्ता बाज़ार के समान, क्वांटम कंप्यूटिंग, एक अन्य तकनीक के रूप में, एक दौड़ में शामिल होने और नेतृत्व की स्थिति हासिल करने के लिये विश्व स्तर पर देशों और कंपनियों के मध्य एक लहर पैदा कर दी है।
  • इसलिये समय की आवश्यकता है कि पर्याप्त मात्रा में कम्प्यूटेशनल क्षमता का निर्माण, व्यावहारिक आकार और सस्ती लागत वाले क्वांटम कंप्यूटर के निर्माण और संचालन में कौशल विकसित करना, विभिन्न व्यावहारिक अनुप्रयोगों को साकार करने के लिए अनुसंधान जारी रखना और स्नातक में शैक्षिक पाठ्यक्रमों में सामग्री पेश करना और विश्वविद्यालय स्तर पर क्वांटम विज्ञान और इंजीनियरिंग को एक विषय के रूप में विकसित करने के लिये स्नातकोत्तर स्तर जो बड़ी संख्या में विज्ञान और प्रौद्योगिकी से कौशलयुक्त मानव संसाधन का विकास करेगा।

सिकल सेल एनीमिया के लिये CRISPR-Cas9 


चर्चा में क्यों?
भारत ने वर्ष 2021 में सिकल सेल एनीमिया के निदान हेतु क्‍लस्‍टर्ड रेग्‍युलरली इंटरस्‍पेस्‍ड शॉर्ट पैलिनड्रॉमिक रिपीट्स (Clustered Regularly Interspaced Short Palindromic Repeats- CRISPR) विकसित करने के लिये 5 वर्ष की परियोजना को मंज़ूरी दी।

  • सिकल सेल एनीमिया पहली बीमारी है जिसे भारत में CRISPR आधारित चिकित्सा के लिये लक्षित किया जा रहा है।
  • प्री-क्लिनिकल फेज़ (पशु विषयों पर ट्रायल) शुरू होने वाला है

CRISPR तकनीक

परिचय

  • यह एक जीन एडिटिंग तकनीक है, जो Cas9 नामक एक विशेष प्रोटीन का उपयोग करके वायरस के हमलों से लड़ने के लिये बैक्टीरिया में प्राकृतिक रक्षा तंत्र की प्रतिकृति का निर्माण करती है।
  • यह आमतौर पर जेनेटिक इंजीनियरिंग के रूप में वर्णित प्रक्रिया के माध्यम से आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।
  • CRISPR तकनीक में बाहर से किसी नए जीन को जोड़ना शामिल नहीं है।
  • CRISPR-Cas9 तकनीक को अक्सर 'जेनेटिक कैंची' के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • इस तकनीक की तुलना अक्सर सामान्य कंप्यूटर प्रोग्रामों के 'कट-कॉपी-पेस्ट' या 'ढूंढें-बदलें' कार्यात्मकताओं से की जाती है।
  • डीएनए अनुक्रम में गड़बड़ी, जो बीमारी या विकार का कारण होती है, को काटकर हटा दिया जाता है और फिर एक 'सही' अनुक्रम से बदल दिया जाता है।
  • इसे प्राप्त करने के लिये उपयोग किये जाने वाले उपकरण जैव रासायनिक यानी विशिष्ट प्रोटीन और आरएनए अणु हैं।
  • प्रौद्योगिकी कुछ बैक्टीरिया में एक प्राकृतिक रक्षा तंत्र की नकल करती है जो स्वयं को वायरस के हमलों से बचाने के लिये एक समान विधि का उपयोग करती है।

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क्रियाविधि

  • पहला काम जीन के उस विशेष क्रम की पहचान करना है जो परेशानी का कारण है।
  • एक बार ऐसा करने के बाद एक आरएनए अणु को कंप्यूटर पर 'ढूंढें' या 'खोज' फ़ंक्शन की तरह डीएनए स्ट्रैंड पर इस अनुक्रम का पता लगाने के लिये प्रोग्राम किया जाता है।
  • इसके बाद Cas9 का उपयोग डीएनए स्ट्रैंड को विशिष्ट बिंदुओं पर काटने और खराब अनुक्रम को हटाने के लिये किया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि DNA सिरा के जिस विशिष्ट भाग को काटा या हटाया जाता है उसमें प्राकृतिक रूप से पुनर्निर्माण, मरम्मत की प्रवृति होती है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा स्वत: मरम्मत या पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में ही हस्तक्षेप किया जाता है और आनुवंशिक कोड में वांछित अनुक्रम या परिवर्तन की क्रिया पूरी की जाती है, जो अंततः टूटे हुए DNA सिरा पर स्थापित हो जाता है।
  • इसकी समग्र प्रक्रिया प्रोग्राम करने योग्य है और इसमें उल्लेखनीय दक्षता भी है, हालाँकि त्रुटि की संभावना पूरी तरह से खारिज नहीं की जा सकती है।

CRISPR-आधारित चिकित्सीय समाधान का महत्त्व

  • विशिष्ट उपचार: CRISPR अंतर्निहित आनुवंशिक समस्या को ठीक करके रोग के उपचार में सहायता करता है। CRISPR आधारित चिकित्सीय समाधान गोली या दवा के रूप में नहीं हैं। इसके बजाय, प्रत्येक रोगी की कुछ कोशिकाओं को निकाला जाता है, जीन को प्रयोगशाला में एडिट (Edit) किया जाता है तथा उपचारित जीन को पुनः रोगियों में इंजेक्ट किया जाता है।
  • अलग-अलग मामलों में जीन एडिटिंग अलग-अलग तरीके से की जाती है। इसलिये प्रत्येक बीमारी या विकार के लिये एक विशिष्ट उपचार की आवश्यकता है।
  • उपचार, विशेष आबादी या नस्लीय समूहों के लिये विशिष्ट हो सकते हैं, क्योंकि ये भी जीन पर निर्भर हैं।
  • आनुवंशिक अनुक्रम में परिवर्तन का प्रभाव संबंधित व्यक्ति में देखा जाता है और संतान में स्थानांतरित नहीं होता है।
  • आनुवंशिक रोगों/विसंगतियों का स्थायी इलाज: बड़ी संख्या में रोग और विकार प्रकृति में अनुवांशिक होते हैं अर्थात् वे अवांछित परिवर्तन या जीन में उत्परिवर्तन के कारण होते हैं।
  • इनमें सामान्य रक्त विकार जैसे सिकल सेल एनीमिया, आँखों की बीमारियाँ जिनमें कलर ब्लाइंडनेस, कई प्रकार के कैंसर, मधुमेह, एड्स और यकृत एवं हृदय रोग शामिल हैं। इनमें से कई वंशानुगत भी हैं।
  • CRISPR इनमें से कई बीमारियों का स्थायी इलाज खोजने की संभावना व्यक्त करता है।
  • विकृत या धीमी गति से विकास, भाषण विकार या खड़े होने या चलने में असमर्थता जैसी विकृतियाँ जीन अनुक्रमों में असामान्यताओं के कारण उत्पन्न होती हैं।
  • CRISPR ऐसी असामान्यताओं के इलाज के लिये एक संभावित उपचार भी प्रस्तुत करता है।

संबंधित नैतिक दुविधाएँ

  • किसी व्यक्ति में भौतिक परिवर्तन को प्रेरित करने के लिये CRISPR का संभावित रूप से दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • वर्ष 2018 में एक चीनी शोधकर्त्ता ने बताया कि अंतर्निहित आनुवंशिक रोग की/समस्याओं के उपचार के लिये उन्होंने CRISPR तकनीक का सहारा लेकर ‘डिज़ाइनर बेबी’ को विकसित किया है।
  • यह 'डिज़ाइनर बेबी' बनाने का पहला प्रलेखित मामला था और इसने वैज्ञानिक समुदाय में व्यापक चिंता पैदा की
  • विशेष लक्षण प्राप्त करने के लिये निवारक हस्तक्षेप कुछ ऐसा नहीं है जिसके लिये वैज्ञानिक वर्तमान में प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहते हैं।
  • इसके अलावा चूँकि भ्रूण में ही परिवर्तन किये गए थे, नए अधिग्रहीत लक्षणों के साथ आने वाली पीढ़ियों में इसके स्थानांतरित होने की संभावना है।
  • हालाँकि तकनीक अत्यंत सफल है फिर भी यह 100% सटीक नहीं है, फलस्वरूप यह कुछ त्रुटियों को भी प्रेरित कर सकती है, जिससे अन्य जीनों में परिवर्तन हो सकता है। जिसका दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर पीढ़ियों पर पड़ने की आशंका है।
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