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विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ (भाग - 3) - सामान्य विज्ञानं | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

हाइब्रिडोमा टेक्नोलाॅजी (Hybridoma Technology)

  • हाइब्रिडोमा प्रौद्योगिकी में एन्टीबाॅडी का फ्यूजन-कोसर कोशाओं के साथ लिम्पोसाइट्स का उत्पादन सम्मिलित है जो अनिश्चित रूप से हाइब्रिड कोशाओं को पैदा कर सके तथा सम्पूर्ण एन्टीजन का एकल प्रतिरोधी निर्धारक (Immunologic determinant) तक केवल एक मोनोक्लोनल एन्टीबाॅडी निकाल सके। मोनोक्लोनल (Monoclonal) माइक्रोबियल (Microbial) एन्टीजन के विश्लेषण के लिए अति विशिष्ट यन्त्रा है तथा ऐसे एजेन्ट्स को अलग करने में सहायता करते है, जो शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करे।
  • इनका दूसरा महत्व इस बात में निहित है कि ये विशिष्ट रोग प्रतिरोधी क्षमता से सम्बन्धित पाॅलिपेप्टिडेस की सबसे कम अवधि को परिभाषित करने में भी सक्षम है । इससे वैक्सीनों के रासायनिक संश्लेषण का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
  • इस नवीन प्रौद्योगिकी के द्वारा निम्नलिखित नवीन आधुनिक मोल्यूक्यूलट वैक्सीन तैयार करने में सफलता प्राप्त हो गई है -
  • हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B) के लिए सब-यूनिट वैक्सीन।
  •  हेपेटाइटिस बी के लिए रिकाॅम्बिनेन्ट डी.एन.ए. वैक्सीन।
  • एड्स और  हेपेटाइटिस बी के लिए संश्लेषणात्मक पेप्टाइड वैक्सीन (प्रयोगात्मक स्तर पर)।
  • एड्स,  हेपेटाइटिस बी, हरपीस सिम्पलेक्स (Herpes Simplex) तथा पोलियो के लिए एन्टीडायोटाइप एन्टीबाॅडी (Antidiotype Antibody) (प्रयोगात्मक स्तर पर)।
  • वैक्सीनों के विकास के क्षेत्रा में नई खोजों से कैंसर, एड्स,  हेपेटाइटिस जैसे कुछ ऐसे असाध्य रोगों से मानव जाति को बचाने के लिए वैक्सीन तैयार कर लेने का मार्ग तो प्रशस्त हो ही गया है, साथ ही रिवर्जन टू वायरूलेन्स (Reversion to Virulence) तथा वैक्सीनों के खराब हो जाने जैसे खतरे समाप्त हो गए है , लेकिन इसके साथ ही नई एवं आधुनिक वैक्सीनों का एक प्रमुख दोष रोगों से लड़ने की इनकी सीमित क्षमता का होना है। परन्तु वैज्ञानिकों का मानना है कि इनकी इम्यूनोजेनिसिटी (Immunogenicity)  को, कमजोर एन्टीजन्स को मीसेल्स(Micelles) के साथ मिलाकर अथवा लिपोसोम्स (Liposomes) बनाने के लिए फाॅस्फोलिपिड्स (Phospholipids) में जोड़कर अथवा संवाहक प्रोटीन्स के साथ मिलाकर बढ़ाया जा सकता है।

मस्तिष्क मृत्यु

  • मस्तिष्क में घातक चोट और आंतरिक कपालीय रक्तस्त्राव से जब शरीर का अंग एक-एक कर काम करना बंद कर देता है तो ऐसी परिस्थिति में रोगी को आक्सीजन कृत्रिम श्वसन विधि से शरीर में पहुँचाया जाता है। इसे ही ‘मस्तिष्क मृत्यु’ की संज्ञा दी गई है।
  • इस प्रकार के रोगी का मस्तिष्क मृत हो जाता है परन्तु हृदय की धड़कन मरने के कुछ घंटों बाद तक चलती रहती है। ऐसे मृतकों के अंगों का प्रत्यारोपण किया जा सकता है। परन्तु किसी व्यक्ति को इस प्रकार से मृत घोषित करने में उसके संबंधियों की अहम भूमिका होती है।

  ‘मस्तिष्क मृत्यु’ के निम्नलिखित लक्षण है -

  • मस्तिष्क ने अपरिवत्र्य रूप से कार्य करना बंद कर दिया है।
  • मस्तिष्क क्रिया शून्य हो गई हो। दाता पूर्णतः अचेतावस्था में हो तथा उसके उत्तेजक अक्रियाशील हों। ई. ई. जी. (EEG— Electro Engio Gram) जांच से ऐसा सत्यापित किया जा सकता है।
  • मस्तिष्क की शाखाएं क्रियाशील न हों; आँख, गले की नली और श्वसन तंत्रा क्रियाशील न हों तथा दाताओं की श्वसन क्रिया स्वतः न चलती हो।
  • मस्तिष्क के क्रियाशील न होने तथा अचेतावस्था का पूर्णतः आकलन और निर्धारण होना चाहिए। यह कैट स्कैन (CAT SCAN) औषधि परीक्षण, ई. ई. जी., शारीरिक तापमान और एन्जियोग्राफी से संभव है।
  • मस्तिष्क, शीतलन, बाइयोथेपिया, स्नायु-मांसपेशियों में अवरोध और झटका लगने से पुनः क्रियाशील हो सकता है। यदि यह साबित हो जाता है कि मस्तिष्क में रक्त प्रवाहित नहीं हो रहा है तो रोगी का मस्तिष्क मृत हो जाता है।
  • यदि रोगी की ”मस्तिष्क मृत्यु“ हो जाती है तो अंग प्रत्यारोपण विधेयक सर्वप्रथम उसके अंगों के उपयोग की अनुमति निकट संबंधी जैसे माता, पिता, भाई और बहन को देता है।

हेपटाइटिस

  • हेपाटाइटिस आँत (Liver) का रोग है। इसमें आँत में सूजन (Inflammation) आ जाता है। इस रोग के कारक विषाणु (Virus), जीवाणु (Bacteria) तथा भौतिक एवं रासायनिक कारक हो सकते हैं। इस रोग के कारण अक्सर जाॅनडिस (Jaundice) हो जाता है। भूख कम लगती है, आँखें पीली पड़ जाती है तथा ज्वर रहता है।

परखनली शिशु

  • किसी महिला के अण्डाशय (Ovary) से अण्डाणुओं (Ova) को बाहर निकालकर पुरुष के शुक्राणुओं (Sperms) द्वारा बाहर ही किसी परखनली या डिश में निषेचित कराने के पश्चात् युग्मनज (Zygote) को गर्भाशय में पुनः स्थापित कर दिया जाता है। इस प्रकार उत्पन्न संतान को ‘परखनली शिशु’ कहा जाता है।
  • गर्भ से बाहर निषेचन (Fertilization) की प्रक्रिया को ‘इन विट्रो फर्टिलाइजेशन एण्ड एम्ब्रियो ट्रांसफर’ (IVFET) कहते है । इस तकनीक से सन्तानोत्पत्ति में असक्षम दम्पति भी सन्तान प्राप्त कर सकते है ।
  • इसके अन्तर्गत माँ के अण्डाणु शल्यक्रिया से निकालकर पिता के शुक्राणु से प्रयोगशाला की प्रायोगिक तश्तरी में उपयुक्त रासायनिक माध्यम में निषेचित कराया जाता है। निषेचन के उपरान्त निषेचित अण्ड को माँ के गर्भाशय (Uterus) में आरोपित कर दिया जाता है। यह अण्डाणु साधारण प्रक्रिया द्वारा माँ के गर्भ में बढ़ता है।
  • यह तकनीक उन स्त्रियों में अपनाई जाती है, जिनकी अण्डवाही नलिका (Fallopian tube) क्षतिग्रस्त हो जाती है।

ज्वाइंट मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप (जी.एम.आर.टी.) जी.एम.आर.टी. मीटर वेवलेंथ पर विश्व का सर्वाधिक शक्तिशाली टेलीस्कोप है। इसे पुणे से 80 किमीण् दूर खोद्दार नामक स्थान पर व्यवस्थित किया गया है। 25 वर्ग किमी. क्षेत्रा में वाई (Y) आकार म अवस्थित यह टेलीस्कोप विश्व के दूरस्थ सर्वाधिक मद्धिम (Slow)  रेडियो संकेतों को भी ग्रहण कर सकता है। 30 एंटिनों  की Y आकार की यह योजना 25 किलोमीटर व्यास वाली एकल बड़ी डिश एंटिना की तरह का ही परिणाम देगी। इसके माध्यम से भारत को रेडियो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्रा में शोध में मदद मिलेगी।

  • जी.एम.आर.टी. का एक प्रमुख लक्ष्य न्यूट्राॅन से बनी पल्सार की खोज है। यह पल्सार तेजी से घूमने वाले सितारों की एक आकर्षक किस्म है।
  • भारत में पुणे के निकट खोद्दार स्थल को जी.एम.आर.टी. के लिए इसलिए चुना गया है क्योंकि वहां पर रेडियो हस्तक्षेप सापेक्षतया न्यूनतम है । यह न्यूनतम रेडियो हस्तक्षेप वाला विश्व का सबसे बेहतर स्थान है।

जेनीको प्रौद्योगिकी - आणविक जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र, क्वींसलैंड द्वारा विकसित इस प्रौद्योगिकी के माध्यम से आनुवंशिक रोगों और कई प्रकार के कैंसर होने की पूर्व सूचना उपलब्ध कराए जाने में सहायता मिलेगी। इस प्रौद्योगिकी के द्वारा वैज्ञानिक यह पूर्व निर्धारित कर सकेंगे कि माता-पिता से बच्चों में आनुवंशिक रोग पहुंचने की संभावना है या नहीं। इससे यह भी ज्ञात हो सकेगा कि डी.एन.ए. के निर्देश में कोई बदलाव या उत्परिवर्तन (Mutation)  हुआ है या नहीं। इस प्रौद्योगिकी से भविष्य में आनुवंशिक रोगों से बचाव में सहायता मिलेगी।
त्वचा बैक - इस प्रकार के बैकों में मुख्य रूप से मृत व्यक्तियों के शरीर से दान स्वरूप प्राप्त त्वचा सुरक्षित रखी जाती है। इस त्वचा को एक विशेष विधि द्वारा प्रशीतन के पश्चात् द्रव नाइट्रोजन में रखा जाता है। त्वचा बैक में उन्हीं मृत व्यक्तियों की त्वचा संग्रहीत की जाती है जो सभी प्रकार की बीमारियों से मुक्त हों। ज्ञातव्य है कि पूरे विश्व में रक्त बैक पहले से ही कार्यरत है।
फैक्स (Fax) - वर्तमान में अति प्रचलित फैक्स एक ऐसी आधुनिक मशीन है जिसकी सहायता से हस्तलिखित या मुद्रित किसी भी प्रकार के दस्तावेजों को टेलीफोन संजाल द्वारा यथास्वरूप एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित किया जाता है। यथास्वरूप से तात्पर्य यह है कि प्रेषक को संदेश की ऐसी प्रति मिलेगी जैसे कि वह मूल कापी की फोटी कापी हो। यह संदेश भेजने की अति आधुनिक, त्वरित और सस्ती प्रणाली है। इसे ‘फैसीमाइल’ भी कहा जाता है।
बैलून ट्यूबोप्लास्टी - यह बांझ महिलाओं को गर्भधारण कराने हेतु खोजी गयी नयी तकनीक है। इस पद्धति द्वारा महिलाओं की डिंब वाहिनियों में आयी रुकावट को दूर किया जाता है। इस तकनीक में एक पतली नली गर्भाशय के मुंह के ऊपर रखी जाती है एवं बाद में इस नली में लगे गुब्बारे (बैलून) को फुलाकर डिंब वाहिनी की रुकावट को अवरोधरहित कर दिया जाता है।
जीन बम - जैविक हथियारों में इसका नाम प्रमुख है। जीन संयोजन में फेरबदल कर इसका निर्माण किया जाता है। जीन बम असंख्य न्यूक्लियोटाइडों से निर्मित अत्यन्त जटिल संरचनाएं है जिसका प्रतिफल भयानक तबाही है। इस बम के प्रयोग से अनियन्त्रिात जीवाणु किसी भी राष्ट्र में क्षण भर में फैलाए जा सकते है । इन जीवाणुओं की विभाजन क्षमता असीमित होती है तथा ये शीघ्र ही पूरे वायुमंडल को जहरीला बनाने में सक्षम है । यह बम शांति मृत्यु का द्योतक है। इन बमों के प्रभाव से अनेक घातक बीमारियों के होने की संभावना है।
डी.एन.फिंगर प्रिंट - डी.एन.ए. एक तरह से मनुष्य का आनुवंशिक कोड है तथा इसके रेखाचित्रा  (Profile) से व्यक्ति विशेष की पहचान की जा सकती है। किन्हीं भी दो व्यक्तियों का डी.ए.न. रेखाचित्रा समान नहीं हो सकता है। आजकल इस तकनीक का उपयोग अपराधियों की धरपकड़ तथा बच्चे के बारे में विवाद होने पर वास्तविक माता-पिता का पता लगाने में किया जाता है। जड़ से उखाड़े गए बाल, खून की बूंदे, लार, वीर्य के धब्बे अथवा त्वचा के किसी हिस्से से यह रेखाचित्रा तैयार किया जा सकता है। इस तकनीक का विकास 1988 में हैदराबाद स्थित कोशकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केन्द्र के डा. लालजी सिंह द्वारा किया गया था।
अस्वाक (ASWAC) - भारतीय खोजी विमान, अस्वाक (एअरबोर्न सर्विलेंस वार्निंग एण्ड कंट्रोल) हमारी वायु रक्षा प्रणाली के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका विकास HS - 748 परिवहन विमान पर किया जा रहा है। यह अमेरिकी खोजी विमान अवाक्स (ASWAC) का भारतीय रूपान्तर है। यह विमान दुश्मन की वायु तथा थल सैनिक गतिविधियों को अपनी टोही आंखों से कैद कर के सैन्य विशेषज्ञों को उपलब्ध कराता है। यह विमान अपनी राष्ट्रीय सीमा (वायु सीमा) में उड़ान भरता हुआ 1000 किमी. के भीतर तक की सैनिक गतिविधियों की टोह ले सकता है। इस प्रकार यह दुश्मन की तरफ से होने वाले किसी भी वायु या थल हमले की पूर्व सूचना देकर सेना को सतर्क कर सकता है। इसकी पहली परीक्षण उड़ान 5 नवंबर, 1990 को हुई थी। आगे भी इसके परीक्षण जारी है ।
फ्रोजन स्मोक - यह कैंलीफोर्निया की राष्ट्रीय प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया सर्वाधिक हल्का (पारदर्शी) ठोस पदार्थ है। यह धुंए की तरह दिखाई पड़ता है इसलिए इसका नाम फ्रोजन स्मोक रखा गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार राकेट एवं अंतरिक्ष विज्ञान तथा कास्मिक (ब्रह्मांडीय) धूल के सूक्ष्म कणों को एकत्रित करने में इसका महत्वपूर्ण प्रयोग संभव है।
-लैंप - अमेरिका में कैलीफोर्निया स्थित इंटरसोर्स टेक्नोलाजी कम्पनी द्वारा निर्मित यह बल्ब (इनकंडेसेंट लैंप, ई-लैंप) भविष्य में ऊर्जा खपत को कम करने में सहायक होगा। इस बल्ब से ऊर्जा की कम खपत के साथ-साथ रोशनी अधिक मिलती है। ई-लैंप की कार्यप्रणाली सामान्य लैंप से पूर्णतया भिन्न होती है। इसमें रेडियो तरंगों की सहायता से प्रकाश उत्पन्न किया जाता है। इस बल्ब की भीतरी सतह पर फास्फोरस का लेप किया जाता है, जो रेडियो तरंगों के संपर्क में आकर उत्तेजित हो जाता है और इसी से बल्ब प्रकाशमान होता है। इस लैंप के अन्दर फिलामेंट न होने से इसके फ्यूज होने का खतरा भी नहीं होता है। ई- लैंप का जीवन काल लगभग 20 हजार घण्टे है।
जीन गन - खतरनाक मस्तिष्क रोग पारकिंसन से ग्रसित रोगियों के लिए विकसित यह नयी तकनीक रोगियों के लिए अति लाभदायक है। जीन गन नामक यह नयी तकनीक ऐसी विकसित आधुनिक जैव तकनीक है, जिसकी सहायता से बाह्य जीन को मस्तिष्क ऊतक में प्रत्यारोपित किया जा सकता है। इस प्रकार से प्रत्यारोपित जीन कोशिका में डोपामाइन का निर्माण करता है। यह डोपामाइन मस्तिष्क कोशिकाओं में अंतरकोशिकीय संचरण में सहायक होता है। जैसा कि विदित है पारकिंसन रोग से ग्रसित व्यक्ति के मस्तिष्क ऊतकों में अंतरकोशिकीय संचार नहीं होता है जिसके कारण रोगी का मानसिक विकास नहीं हो पाता है।

  •  क्लोनिंग (Cloning) - किसी एकाकी जीवकोशिका या जीव से प्राकृतिक या अप्राकृतिक (Unnatural)  अलैंगिक प्रजनन द्वारा एक समान संतान का बनाना। उच्च गुणों वाली जातियां या प्रजातियां इस विधि से बनायी जाती है।
  • एयरोपोनिक्स (Airoponics) -  इस विधि द्वारा हवा में पौधे उगाऐ जाते है । इसमें पौधे की जड़ें खुली रहती हैं और मिट्टी की आवश्यकता नहीं पड़ती। पौधों को पोषक तत्व मशीन द्वारा पहुँचायें जाते है या उनकी बौछार की जाती है। आजकल इस विधि में कम्प्यूटर का प्रयोग भी किया जा रहा है और वर्ष भर अपनी इच्छा के पौधों को उगाया जा सकता है।
  • जयपुर फुट (Jaipur Foot) - राजस्थान के डा. पी. के सेठी द्वारा विकलांगों के लिए तैयार किया गया कृत्रिम पांव। इस आविष्कार के लिए डा. सेठी को रमन नेफ्लेसे पुरस्कार प्रदान किया गया था।
  • मंदक (Moderator) - परमाणु संयंत्रों में नाभिकीय विखंडन करने वाले न्यूट्राॅन कणों की गति अगर बहुत तीव्र होगी तो वे परमाणु-ईंधन के नाभिकों को भेदे बिना बाहर निकल जायेंगे और ऊर्जा उत्पादन नहीं होगा। अतः इन न्यूट्रान कणों की गति धीमी करने के लिए परमाणु संयंत्रों में ग्रेफाइट अथवा भारी जल (Heavy Water) अर्थात ड्यूटीरियम आक्साइड (D2O) मंदक के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
  • अंतरिक्ष रोग (Space Sickness) अंतरिक्ष यात्रा की अवधि में यात्राी प्रायः बीमार हो जाते है । सामान्यतः अंतरिक्ष उड़ानों के लिए यह गंभीर समस्या है। वहां यात्राी को हर काम भारहीनता की स्थिति में मछली की भांति तैर कर करना पड़ता है। उसके पैरों के नीचे कोई दृढ़ सहारा नहीं होता। इसी को अंतरिक्ष रोग कहते है । भारहीनता की स्थिति में अंतरिक्ष यात्राी का रक्त भी भारहीन होता है जिसके कारण शरीर में इसका प्रवाह सामान्य अवस्था से भिन्न होता है। रक्त की मात्रा शरीर के ऊपरी भाग में बढ़ जाती है तथा सिर की ओर रक्त का बहाव अधिक हो जाता है।
  • सौर ऊर्जा पार्क (Solar Energy Park) - दिल्ली के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में गैर परम्परागत ऊर्जा स्त्रोतों से ऊर्जा उपलब्ध कराने की योजना के अन्तर्गत कई गैर परम्परागत ऊर्जा पार्क स्थापित किये गए है । इन पार्कों के द्वारा आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में पाईप से रसोई गैस उपलब्ध कराई जाती है तथा लोगों को गैर परम्परागत ऊर्जा के साधनों के उपकरणों का व्यवहारिक उपभोग दर्शाया जाता है। इसके सामूहिक गोबर गैस संयंत्रा के अलावा सौर ऊर्जा से पानी गर्म करने के यन्त्रा, फोटो बोल्टिक सेल से विद्युत उत्पादन, पवन बिजली निर्माण आदि संयंत्रा कार्यशील है।
  • अन्तरलिंग (Inter sex) - आधुनिक वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि प्रत्येक जनद से नर व मादा, दोनों प्रकार के हाॅर्मोन स्त्रावित होते है । सामान्यतः वृषणों ;जमेजमेद्ध से नर हार्मोन ‘एन्ड्रोजेन’ अधिक और मादा हाॅर्मोन ‘ईस्ट्रोजेन’ कम मात्रा में स्रावित होते है । इसी प्रकार, अण्डाशयों (Ovaries)  से ‘ईस्ट्रोजन’ की अधिक और ‘एंड्रोजन’ की कम मात्रा स्रावित होती है। यदि किसी कारण नर व मादा हाॅर्मोनों के स्त्रावण का वह अनुपात बिगड़ जाता है तो लड़कों में लड़कियों जैसे व लड़कियों में लड़कों जैसे कुछ लक्षण विकसित हो जाते है । ऐसे ही व्यक्ति अन्तरलिंग कहलाते है ।
  •  एल्बिडो - (Albedo) यह वह अनुपात है जो एक धरातल द्वारा परावर्तित प्रकाश की मात्रा और धरातल पर पड़ने वाले प्रकाश की मात्रा में बीच होता है। एल्बिडो शब्द सौर-परिवार के खगोलीय पिण्डों के लिए प्रयोग किया जाता है। चन्द्रमा पर जितना सूर्य का प्रकाश पड़ता है उसका वह 7ः प्रकाश परावर्तित कर देता है। इस प्रकार चन्द्रमा का ऐल्बिडो 0.07 है।

एक्युपंक्चर (Acupuncture) - यह एक अति प्राचीन चीनी चिकित्सा पद्धति है। दर्द को दूर करने तथा अनेक प्रकार की रोगी दशाओं (मलेरिया और गठिया को मिलाकर) के उपचार हेतु इसमें सुइयों का प्रयोग किया जाता है। बहुत पातली सुईयां शरीर के विनिर्दिष्ट बिन्दुओं (Specified Points) में प्रवेश करा दी जाती है। इसका प्रयोग अब बहुत से देशों में किया जाने लगा है।
बायोमास (Biomass) - वातावरण जीवधारियों व गैर-जीवधारियों दोनों से मिलकर बना है। किसी निश्चित क्षेत्रा में पाये जाने वाले जीवधारियों (जन्तुओं तथा वनस्पतियों) का कुल भार ही उस क्षेत्रा का बायोमास (Biomass) है। परम्परागत रूप में हम अपनी ऊर्जा सम्बन्धी तथा अन्य आवश्यकताओं के लिए उपलब्ध बायोमास पर बहुत अधिक निर्भर करते आये है , जैसे - ईंधन जलाने की लकड़ी, खादों के निर्माण और  (Biogas)  आदि।
एम.एस.टी.राडार - एम.एस.टी. (मीजोस्फीयर, स्ट्रेटो- स्फीयर, ट्रोपोस्फीयर) राडार तिरुपति के निकट गादान्की नामक स्थान पर स्थापित किया गया है। इसका डिजाइन इलेक्ट्रानिकी विभाग, बम्बई की एक इकाई ‘समीर’ द्वारा किया गया है। इस राडार का उपयोग वायुमण्डलीय गति विज्ञान, वायुमण्डलीय हलचल और उसके विस्तार का मापन, वायुमण्डलीय प्रदूषण, हवा के दबाव की दिशा तथा मेघ हलचल आदि से सम्बन्धित अध्ययनों में किया जायेगा। यह राडार वायुमंडल की निचली सतह से 5 से 100 किमी. तक अन्वेषण करने में सक्षम है।
संड्स रोग - सामान्यतः गरीब तबके के लोगों में फैलने वाला रोग संड्स (SUNDS - सडन अनएक्सपेक्टेड नाॅक्टरनल डेथ सिंड्रोम) बहुत ही घातक रोग है। इसमें एकाएक सोते हुए रोगी की मृत्यु हो जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार संभवतः यह रोग पोषण की कमी के कारण होता है तथा 30 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते रोगी मौत की नींद में सो जाता है। अभी इस रोग के सम्बन्ध में शोध चल 
 रहे हैं।
अंतरिक्ष दर्पण - रूस के एक मानव रहित अन्तरिक्ष यान प्रोग्रेस पर लगे एक बड़े दर्पण ‘अंतरिक्ष दर्पण की सहायता से सूर्य की किरणों को पृथ्वी के अंधेरे हिस्सों की ओर प्रक्षेपित करने में वैज्ञानिकों को 4 फरवरी, 93 को सफलता मिली। इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य में ऐसे दर्पणों को बनाने में किया जा सकता है जिनसे (सौर ऊर्जा की मदद से) किसी विशेष भू-भाग में रात को दिन में बदला जा सकेगा।

  • भविष्य में इस दर्पण का प्रयोग भूकम्प, बाढ़ आदि से प्रभावित इलाकों में रात को राहत कार्यों को (प्रकाशित कर) चलाने में किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त ध्रुवीय प्रदेशों, जहां सूर्य की रोशनी कम पहुंच पाती है, यह तकनीक अति लाभकारी सिद्ध होगी।

फ्लोर कार्बन इमल्शन अर्थात् नीला रक्त - अमेरिका स्थित राइट विश्वविद्यालय, ओहियो के वैज्ञानिकों ने मानव रुधिर के एक नए प्रतिरूप नीले रक्त की खोज की है। शरीर से अधिक खून निकल जाने, जहरीले पदार्थों के सेवन से या जलने से विषाक्त रक्त के स्थान पर इसका बेहिचक प्रयोग किया जा सकता है। इस रक्त की विशेषता यह है कि इसे किसी भी रक्त ग्रुप के व्यक्ति को दिया जा सकता है। इससे सामान्य रक्त प्लाज्मा की अपेक्षा हृदय को तीन गुना अधिक आॅक्सीजन मिलती है। इस विधि के प्रयोग से किसी प्रकार के संक्रमण की समस्या भी नहीं रहती है। इस नवीन खोज ने मानव को जीवनदान दे दिया है।
डीआईपीविधि - डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग (डी. आई. पी.) आज की कम्प्यूटर नीति का एक नया चमत्कार है। इस विधि से धुंधले और काले पड़ चुके बेकार निगेटिवो से भी वह चित्रा तैयार किया जा सकता है जो उस वक्त आपके कैमरे से खीचे गए थे। इस विधि से तैयार किए गए चित्रों की विशेषता यह है कि यह पारंपरिक विधि द्वारा स्पष्ट न हो पाने वाली आकृतियों को भी स्पष्ट रूप से दर्शा देती है। इस विधि का प्रयोग सशास्त्र सेनाओं और खुफिया संगठनों द्वारा किया जाता है। यह विधि अवरक्त प्रकाश किरणों पर आधारित होती है।
लिथोट्रिप्सी - इस चिकित्सा पद्धति की सहायता से बिना शल्य क्रिया के गुर्दे तथा पेट की तथा अन्य हिस्सों की पत्थरी निकाली जाती है। पथरी निकालने की यह अति आधुनिक, बेहतर और सुरक्षित विधि है। यह प्रणाली सर्वप्रथम 1982 में जर्मनी के डा. क्लास द्वारा प्रारंभ की गयी। इस विधि में रोगी को 40 हजार पोंड प्रति सेकेण्ड के झटके वाली तरंगें दी जाती है जिससे पथरी टूटकर महीन कणों में बदल जाती है। ये महीन कण मूत्रा द्वारा बाहर आ जाते है ।
फाइबर आप्टिक्स - दूरसंचार के क्षेत्रा में क्रांतिकारी परिवर्तन कर देने वाली इस तकनीक में बालों के समान बारीक कांच के तन्तुओं का प्रयोग तारों के स्थान पर किया जाता है। ये बारीक कांच के तन्तु दूरस्थ स्थान पर भेजे जाने वाले संदेशों को बिल्कुल स्पष्ट एवं शुद्ध रूप में पहुंचते हैं। इस प्रकार फाइबर आप्टिक्स प्रकाश की गति से संदेशों/संकेतों को शुद्ध व स्पष्ट रूप से तत्काल संचारित करने की नयी तकनीक है।
तेल भक्षक जीवाणु ‘सुपरबग’ - भारत में नागपुर स्थित पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान ने ऐसे जीवाणु विकसित किया है जो तेल खाते है । इस खोज से विश्व में होने वाले तेल रिसावों से निपटने में बड़ी मदद मिलेगी। आनुवंशिकी इंजीनियरिंग की मदद से इन जीवाणुओं में ऐसे जीन डाले गए है कि ये समुद्र के खारे पानी में जीवित रह सकें और हवा से नाइट्रोजन ग्रहण कर सकें। इस प्रकार के जीवाणुओं के प्रथम आविष्कारक अमेरिका में बसे भारतीय डा. आनन्द चक्रवर्ती हैं। ये जीवाणु तीन तरह से कार्य करते है । कुछ जीवाणु तेल को इमल्सीफाई करते है , कुछ कम कार्बन परमाणु वाले तेल यौगिकों को तोड़ते है तथा कुछ ज्यादा कार्बन परमाणुओं वाले तेल यौगिकों को तोड़ते हैं।
नाइट्रिक आक्साइड - इसको वर्ष का कण (Molecule of the year)  घोषित किया गया। यह प्रकृति में पाये जाने वाले अति सूक्ष्मतम कणों में से एक है। इसका जीवनकाल बहुत ही कम है (लगभग 10 सेकेण्ड)। इसे नाइट्रेट्स और नाइट्राइट में बदला जा सकता है। वातावरण में ऊंचाई पर पहुँच कर यह ओजोन लेयर को क्षति पहुंचती है। स्वाचालित वाहनों में इसका प्रयोग एक्जास्ट ;मगींनेजद्ध की तरह होता है। यह हानिकारक गैस फोटोकेमिकल स्माग और तेजाबी वर्षा उत्पन्न करती है। इस गैस का लाखवां भाग भी पौधों और जानवरों के लिए हानिकारक है।

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FAQs on विज्ञान से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ (भाग - 3) - सामान्य विज्ञानं - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. विज्ञान क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: विज्ञान एक विशेष ज्ञान क्षेत्र है जो हमें प्राकृतिक और तकनीकी घटनाओं को समझने और उन्हें विश्लेषण करने की क्षमता प्रदान करता है। यह हमें नई तकनीकों, रोचक खोजों और विज्ञानिक अविष्कारों की संभावनाओं को समझने और उन्हें अपनी जीवन में उपयोग करने की अनुमति देता है। विज्ञान का महत्व इसलिए है क्योंकि यह हमें बेहतर जीने के लिए जरूरी ज्ञान प्रदान करता है और मानव समाज को आगे बढ़ाने में मदद करता है।
2. विज्ञान क्या-क्या शाखाएं हैं और उनका महत्व क्या है?
उत्तर: विज्ञान कई शाखाओं में विभाजित होता है जो विभिन्न क्षेत्रों की अध्ययन करती हैं। कुछ महत्वपूर्ण शाखाएं निम्नलिखित हैं: 1. भौतिकी (Physics): इसका मुख्य क्षेत्र वस्तुओं, ऊर्जा, गतिविज्ञान और बहुत कुछ का अध्ययन है। यह हमें बेसिक नियमों को समझने और तकनीकी उपयोग के लिए अवधारणाओं को विकसित करने में मदद करती है। 2. रसायन शास्त्र (Chemistry): इसका मुख्य क्षेत्र रासायनिक पदार्थों के गुणों, संरचना और उनके रासायनिक विचारों का अध्ययन होता है। यह हमें दवाओं, उपादान, खाद्य और औद्योगिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करती है। 3. जीवविज्ञान (Biology): इसका मुख्य क्षेत्र जीवित पदार्थों, उनके संरचना, कार्य और जीवजंतुओं के अध्ययन पर आधारित होता है। यह हमें जीवजंतुओं के विकास, आरोग्य और पर्यावरण के बारे में समझने में मदद करती है। 4. भूगर्भ विज्ञान (Geology): इसका मुख्य क्षेत्र पृथ्वी के संरचना, उसकी विभिन्न परतों, धातुओं और उनके गुणों का अध्ययन है। यह हमें ज्वालामुखी, भूकंप और भूकम्पीय गतिविधियों को समझने में मदद करती है। 5. गणित (Mathematics): इसका मुख्य क्षेत्र गणितीय संचालन, रीखीय और अभिकल्पित गणित होता है। यह हमें तार्किक विचार करने, समस्याओं को हल करने और नए गणितीय अल्गोरिदमों का अध्ययन करने में मदद करती है।
3. विज्ञान क्या है और उसके विभिन्न प्रकार क्या हैं?
उत्तर: विज्ञान एक तरह का ज्ञान है जिसमें हम प्राकृतिक और तकनीकी घटनाओं को समझने और उन्हें विश्लेषण करने की क्षमता प्राप्त करते हैं। यह विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे: 1. प्राकृतिक विज्ञान (Natural Science): इसमें प्राकृतिक विशेषताओं, प्रक्रियाओं और प्राकृतिक नियमों का अध्ययन होता है। यह भौतिकी, रसायन शास्त्र और जीवविज्ञान को सम्मिलित करता है। 2. तकनीकी विज्ञान (Technical Science): इसमें तकनीकी और उद्योगिक विचारों, तकनीकों और
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