UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi  >  सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 1

सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 1 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi PDF Download

सीमा सुरक्षा की चुनौतियाँ

  • सीमाएँ, राष्ट्र की संप्रभुत्ता, एकता और अखंडता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। सीमाओं को राष्ट्र के गौरव के प्रतीक के तौर पर भी देखा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सीमाओं के तीन प्रकार हैं-
    (i) थल सीमा
    (ii)
    समुद्री सीमा एवं
    (iii)
    वायु सीमा
  • वर्तमान विश्व व्यवस्था में सीमा प्रबंधन एक जटिल समस्या है। अपराधी हमेशा थल, जल और आवश्यकता पड़ने पर वायु मार्ग से घुसपैठ की तलाश में रहते हैं। सन् 1995 में पुरूलिया में हुई घटना ने पहले ही हमारी वायु मार्ग की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल के रख दी थी। इसलिए सीमा प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
  • सीमाओं का प्रबंधन कई कारणों से जटिल है। हमारी समुद्री सीमाओं में से कुछ अभी भी अस्थिर हैं। थल सीमाएँ भी पूरी तरह से सीमांकित नहीं हैं। हमारी सीमाओं का बंटवारा अधिकांशत: कृत्रिम सीमाओं पर आधारित है न कि प्राकृतिक।

भारतीय सीमाएँ अपने पड़ोसी देशों के साथ


भारत की अनुमानतः 1500 किलोमीटर लंबी सीमाएँ अपने पड़ोसी देशों के साथ लगती है। भारत की अपने पड़ोसी देशों के साथ सीमाएँ, प्रत्येक के पृथक् भौगोलिक परिवेश, अपने अनूठे विन्यास तथा समस्याओं वाली हैं। उदाहरणस्वरूप, भारत और पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाके चरम जलवायु परिस्थितियों में फैले हुए हैं जम्मू व कश्मीर में हिमालय की ठंडी वादियों से होकर गुजरती है। इसी तरह भारत के उत्तर में भारत-चीन सीमा, वर्ष भर बर्फ से ढकी ऊंची पर्वत शृंखलाओं के बीच से होकर गुजरती है। भारत और म्यांमार सीमा अपने असंख्य झाड़-झंखाड़ों सहित हरे-भरे उष्णकटिबंधीय जंगलों से आच्छादित है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर नदियाँ निरंतर अपने तल बदलती रहती हैं। विविध भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियाँ इन सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा एवं प्रशासनिक सेवाओं को पहुंचाने में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न करती हैं। साथ ही इन सीमाओं की मानव निर्मित प्रकृति कुछ गंभीर मुद्दे भी पैदा करते हैं, जैसे- सीमा विवाद, खुली सीमाएँ, सीमा पार जातीय और सामाजिक संबंध बनाए रखना इत्यादि भी पैदा करते हैं। कुल मिलाकर ये सीमाओं के प्रभावी प्रबंधन के लिए एक गंभीर चुनौती है।  

भारत-पाक सीमा

  • भारत-पाक सीमा तीन विभिन्न शीर्षकों में वर्गीकृत है-
    (i) रेडक्लिफ लाइन- 2308 किमी. लम्बी, गुजरात से लेकर केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू व कश्मीर में जम्मू जिले के कुछ हिस्सों तक फैली है।
    (ii) नियंत्रण रेखा - 776 किमी. लम्बी, जम्मू संभाग के कुछ हिस्सों, राजौरी, पुंछ, बारामूला, कुपवाड़ा, कारगिल और लद्दाख के लेह के कुछ भागों तक फैली है।
    (iii) वास्तविक भूमि स्थिति रेखा -110 किमी. लम्बी, एनजे 9842 से उत्तर में इंदिरा कॉल तक फैली है।
  • नियंत्रण रेखा और ए.जी.पी.एल., दोनों देशों की सेनाओं तथा सीमा सुरक्षा बलों के बीच सीमा झड़पों एवं फायरिंग के साथ लगातार तनाव का प्रतिबिम्ब पेश करती है। एल.ओ.सी. पर हमेशा विदेशी आतंकवादियों व कश्मीरी अलगाववादियों की घुसपैठ का खतरा तथा पाकिस्तानी सैनिकों का जमावड़ा लगा रहता है।
  • बांग्लादेश सीमा की तरह ही भारत-पाक सीमा पर भी कोई भौगोलिक रुकावट नहीं है। यह विविधतापूर्ण भू-भाग, जैसे-रेगिस्तान, दलदल, मैदानी इलाके, बर्फ से ढकी पहाड़ियों से होकर गुजरती है तथा गाँवों, घरों और कृषि भूमि के माध्यम से अपना रास्ता बनाती है जो इसे अत्यंत झिरझिरा बनाते हैं। सीमा का झिराझिरापन, तस्करी, ड्रग्स व हथियारों की तस्करी एवं घुसपैठ को बढ़ाता है। हेरोइन और नकली भारतीय मुद्रा सीमा से तस्कर होने वाली दो प्रमुख वस्तुएँ हैं। वहीं दूसरी ओर केसर, कपड़ा और पारा इत्यादि पाकिस्तान से तस्कर होने वाली कुछ अन्य वस्तुएँ हैं। सीमा से सटे क्षेत्रों के ग्रामीण भी कथित तौर पर बड़े पैमाने पर तस्कर गतिविधियों में संलिप्त होते हैं। पंजाब में खासकर लुधियाना में एक बड़े पैमाने का हवाला नेटवर्क प्रकाश में आया है। इसके अलावा ये सीमाएँ, सीमावर्ती लोगों को गुमराह करने तथा उनकी वफादारी को डगमगाने के लिए पाकिस्तान द्वारा किए जाने वाले दुष्प्रचार का भी केन्द्र बिन्दु होती हैं। सर क्रीक का क्षेत्र, अपनी अजीब बनावट से, सीमा रक्षक बलों को उनकी गतिविधियों से अत्यंत परेशानी पैदा करने के साथ-साथ खाड़ियों में अवैध मछली पकड़ने की गुंजाइश को भी बढ़ाता है।
  • प्रतिकूल राजनीतिक संबंध, तीन युद्ध और पंजाब एवं जम्मू कश्मीर की सीमावर्ती राज्यों में पृथकतावादी आतंकियों हेतु पाकिस्तान की सामग्री सहायता ने भारत को पाकिस्तान के साथ अपनी अंतर्राष्ट्रीय सीमा मजबूत करने के लिए बाध्य किया। अंदरूनी अर्थव्यवस्था की ओर केन्द्रित और क्षेत्रीय आर्थिक एकता हेतु अनिवार्यता की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप सीमा पर लोगों और सामान की प्रतिबंधित आवाजाही है तथापि, विगत दशक में दोनों देशों के साथ मिलकर उभरती भारतीय अर्थव्यवस्था चाहती है कि स्वयं को रचनात्मक कार्यों में लगाया जाए, इसने सीमा को हल्का किया है और भारत-पाकिस्तान ने क्रमिक रूप में अपने द्वारा अधिक व्यापार और यात्रा के लिए खोल दिए तथापि, अपर्याप्त जनशक्ति, संसाधनों की कमी और पाकिस्तान के अपर्याप्त सहयोग ने सीमा का प्रबंधन कठिन बना दिया। इसके परिणामस्वरूप भारत को निरंतर सीमा पर शांति बनाए रखने की अनिवार्यता हेतु सीमापार आतंकवाद के विरुद्ध अवरोधक के रूप में कार्य करना पड़ता है। ताकि इसे नरम कर व्यापार और यात्रा का बहाव विनियमित किया जा सके।

भारत-चीन सीमा

  • सम्पूर्ण भारत-चीन सीमा; पश्चिमी एलएसी सहित, मध्य में छोटा विवादरहित क्षेत्र, और पूर्व में मैकमोहन रेखा 4056 किमी. लम्बी है और चार भारतीय राज्यों उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश तथा केन्द्रशासित प्रदेश लद्दाख से गुजरती है। चीन की ओर यह रेखा मध्य स्वायत्त क्षेत्र से गुजरती है, यह सीमांकन 1962 के युद्ध के बाद भारत और चीन के मध्य अनौपचारिक युद्ध विराम के रूप में 1993 तक विद्यमान रहा, जब द्विपक्षीय समझौते के उपरांत इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में स्वीकार किया गया।
  • चीन के पास जम्मू और कश्मीर में भारतीय क्षेत्र का लगभग 38,000 वर्ग किमी. क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त तथाकथित चीन-पाकिस्तान समझौता, 1963 के अंतर्गत पाकिस्तान ने पाकिस्तानी अधिग्रहित जम्मू कश्मीर में 5180 वर्ग किमी. क्षेत्र चीन को सौंप दिया। चीन, अरुणाचल प्रदेश में भारतीय क्षेत्र के 90,000 वर्ग किमी. और भारत-चीन सीमा के मध्य क्षेत्र के लगभग 2000 वर्ग किमी. पर अपना दावा करता है।
  • चीन और भारत के मध्य सीमा को कभी आधिकारिक रूप में सीमांकित नहीं किया गया है। दोनों देशों के मध्य सीमा के पूर्वी भाग पर चीन की स्थिति संगत है। किसी भी चीनी सरकार ने अवैध मैकमोहन रेखा को मान्यता प्रदान नहीं की है। चीन हेतु मैकमोहन रेखा देश पर साम्राज्यवादी आक्रमण का चिह्न है। तथाकथित ‘अरुणाचल प्रदेश’ विवाद चीन का सबसे विवादास्पद सीमा मुद्दा है। चूंकि भारत और चीन की स्थितियों का अंतर काफी व्यापक है, इसलिए दोनों देशों के लिए सहमति पर पहुँचना काफी कठिन है। इस विवादित क्षेत्र का क्षेत्रफल ताइवान से तीन गुना, बीजिंग से छह गुना और मालवेनास द्वीप समूह से दस गुना है। यह सपाट और जल एवं वन संसाधनों में समृद्ध है।
  • अरुणाचल प्रदेश एकमात्र मुद्दा है, जिसमें भारत और चीन के मध्य युद्ध हेतु संभावना है। यदि कभी भी भारत और चीन इस मुद्दे पर युद्ध करते हैं, भारत मानता है कि भारत-चीन सीमा झड़पों में इसकी सुरक्षा के लिए खतरा है। युद्ध के बाद से प्रत्येक ओर ने अपनी सैन्य तंत्र क्षमताओं को इस विवादित क्षेत्र में बढ़ाया है। चीन ने अक्साई-चिन क्षेत्र का नियंत्रण अपने पास रखा है, जहाँ उसने जियांग और जिंगयांग स्वायत्त क्षेत्रों को जोड़ने के लिए सामरिक राजमार्ग बनाया है। चीन का इस क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखने में अहम सैन्य हित है, जबकि भारत का प्राथमिक हित अरुणाचल प्रदेश में है।

भारत-बांग्लादेश सीमा

  • भारत, बांग्लादेश के साथ सीमा का सबसे लम्बा भाग 4096 किमी. साझा करता है। बांग्लादेश की सीमा भारतीय राज्यों, पश्चिम व उत्तर में पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर में असम व मेघालय तथा पूर्व में त्रिपुरा व मिजोरम के साथ लगती है। इस सीमा को बंगाल सीमा आयोग द्वारा प्राकृतिक बाधाओं के अनुसरण के बदले तैयार किया गया था, जो गाँवों, कृषि भूमि और नदियों से होकर गुजरती हुई कई विवादित खंडो के साथ इसे अत्यंत झिरझिरा बनाती है। असीमांकित भू-भाग, परिक्षेत्र और प्रतिकूल अधिकृत क्षेत्र, भारत और बांग्लादेश के सीमा रक्षक बलों के बीच परस्पर वैमनस्य का कारण होते हैं।
  • बांग्लादेश की मुक्ति के तीन वर्षों बाद सन् 1974 में, भारत एवं बांग्लादेश के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी एवं शेख मुजीब-उर-रहमान ने थल सीमा मामलों को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इंदिरा-मुजीब समझौते में भारत-बांग्लादेश सीमा के विभिन्न विवादित हिस्सों को रेखांकित किया गया। समझौते के अनुसार, भारत के पास दक्षिणी परिक्षेत्रों का आधा हिस्सा है और बांग्लादेश के पास इन परिक्षेत्रों का दूसरा आधा हिस्सा है। सन् 2015 में भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते के तहत भारत-बांग्लादेश सीमा विवाद को हल कर दिया गया।
  • खुली सीमा, आर्थिक अवसरों की कमी, गरीबी और अल्प विकास, छोटे अपराधें के प्रति लोगों का रवैया, सतर्कता में ढील, अपराधियों और पुलिस एवं अपराधियों और सीमा रक्षक बलों के बीच कथित आपसी गठजोड़, ये सभी सीमा पार के अपराधें को बढ़ाने में योगदान देते हैं।
  • मवेशियों की तस्करी अत्यंत चिंता का विषय बन गई है। प्रतिदिन हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से मवेशियों से भरे ट्रक भारत-बांग्लादेश सीमा पर जाहिर तौर से चरने के लिए भेजे जाते हैं और यहाँ से, इन मवेशियों को बांग्लादेश में तस्कर कर दिया जाता है। सीमा सुरक्षा बल नियमित तौर पर मवेशियों को जब्त करता है। भारत-बांग्लादेश सीमा पर मवेशियों के साथ-साथ, हथियारों और अन्य आवश्यक सामान, जैसे- चीनी, नमक और डीजल, मानव और नशीले पदार्थों की तस्करी, जाली भारतीय मुद्रा, अपहरण और चोरी इत्यादि काफी बड़े पैमाने पर होते हैं।

भारत-नेपाल सीमा

  • निकट पड़ोसियों के रूप में भारत और नेपाल मित्रता और सहयोग के विशिष्ट संबंध को खुली सीमाओं और लोगों के मध्य आपसी संपर्क और संस्कृति के द्वारा लक्षित किया जाता है। सीमाओं के आर-पार मुक्त आवाजाही का लम्बा इतिहास है। पूर्व, दक्षिण और पश्चिम में पाँच भारतीय राज्यों-सिक्किम, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में इसके साथ लगी सीमा 1850 किमी. है और उत्तर में चीन गणराज्य के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र हैं।
  • भारत-नेपाल शांति और मैत्री संधि 1950 भारत और नेपाल के मध्य विशेष संबंधें का आधार है। इस संधि के उपबंधों के अंतर्गत नेपाली नागरिकों को भारत में अतुल्य लाभ मिले हैं, भारतीय नागरिकों के समान सुविधाएँ और संभावनाएँ मिलती हैं।
  • विवाद के अनेक मुद्दे हैं, अधिकतर अशांत हिमालयी नदियों, विशेषकर कालापानी और कोसी द्वारा निरंतर मार्ग बदलने का परिणाम है। क्षेत्रों के पानी में डूबने, नाश और सीमा स्तंभों को हटाना और दोनों ओर के लोगों द्वारा अतिक्रमण और अधिक समस्या को बढ़ाते हैं। कई बार अतिरेक साक्षेप, जैसे विवादित सीमा पर दोनों ओर डराकर और जबरदस्ती भूमि अतिक्रमण जैसी समस्याएँ भी सामने आती हैं। विवादित सीमा ने न केवल दो देशों के मध्य असहजता निर्मित की है, बल्कि इनकी स्थानीय जनसंख्या के मध्य भी असहजता उत्पन्न की है। इन वर्षों में अप्रतिबंधित प्रवास ने अन्य देश के लोग द्वारा बहुल प्रादेशिक पॉकेटों को निर्मित किया है।
  • खुली सीमा आतंकियों और विद्रोहियों को आसान अधिगम प्रदान करती है। 1980 के दशक के अंत में सिख और कश्मीरी आतंकियों ने नेपाल से भारत में प्रवेश किया था। विगत में उल्फा, एनडीबीएफ, और केएलओ ने खुली सीमा का दुरुपयोग किया है। इससे पूर्व नेपाल सुरक्षा एजेंसियों द्वारा माओवादियों की तलाश के दौरान वे प्रायः भारतीय सीमा में घुस जाते थे। विद्रोहियों और आतंकियों के अलावा अनेक खतरनाक अपराधी खुली सीमा के कारण भाग जाते हैं। आईएसआई, एनईटी और अन्य आतंकी संगठन प्रायः नेपाल को ट्रांजिट मार्ग के रूप में प्रयोग करते हैं और नेपाल से ही कार्य करते हैं। वे खुली झीरझीरी सीमा का लाभ उठा रहे हैं।
The document सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 1 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC

Top Courses for UPSC

FAQs on सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 1 - आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

1. सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं, जैसे आतंकवादी हमले, अवैध आप्रवास, तस्करी, नक्सलवाद, अवैध वस्त्रों और वस्त्र सामग्री का व्यापार, शीत युद्ध आदि। ये चुनौतियाँ सीमा सुरक्षा बलों को नियमित रूप से सामरिक और आईटी उपकरणों का उपयोग करके प्रबंधित की जाती हैं।
2. सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ की व्यापकता क्या है?
उत्तर: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ व्यापक होती हैं क्योंकि ये क्षेत्र देश की सीमाओं के पास स्थित होते हैं और एक देश से दूसरे देश में अवैध आप्रवास या अवैध व्यापार का मार्ग बन सकते हैं। इन क्षेत्रों में आतंकवादी संगठन भी अपने गतिरोधी कार्यों को संचालित कर सकते हैं, जो देश की सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं।
3. सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ प्रबंधित करने के लिए कौन-कौन से उपाय अपने जाते हैं?
उत्तर: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ प्रबंधित करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपने जाते हैं: 1. सीमा सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण: सीमा सुरक्षा बलों को नियमित रूप से अपडेट करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे उनकी क्षमताएं और तकनीकी ज्ञान मजबूत होता है। 2. सामरिक उपकरणों का उपयोग: आधुनिक सामरिक उपकरणों का उपयोग करके सीमा सुरक्षा बलों को संख्यात्मक एवं गुणात्मक लाभ प्राप्त करने में मदद मिलती है। 3. ग्रामीण सुरक्षा: सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थानीय ग्रामीणों को सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूक किया जाता है ताकि वे खुद भी सुरक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभा सकें। 4. सीमा संबंधी सहयोग: अन्य देशों के साथ सीमा संबंधी सहयोग करना सुरक्षा चुनौतियों का प्रबंधन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 5. जासूसी और नजरबंदी: आईटी उपकरणों का उपयोग करके सीमावर्ती क्षेत्रों में जासूसी और नजरबंदी का अभ्यास किया जाता है ताकि आपत्तिजनक गतिविधियों का पता चला सके और उनसे निपटा जा सके।
4. सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ कैसे निपटाए जा सकती हैं?
उत्तर: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियों का प्रबंधन करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपने जाते हैं: 1. सुरक्षा बलों की बढ़ती हुई ताकत: सुरक्षा बलों की ताकत को बढ़ाना एक प्राथमिक उपाय है, जिससे वे आपत्तिजनक गतिविधियों के खिलाफ सशक्त रूप से संघर्ष कर सकें। 2. सामरिक उपकरण
34 videos|73 docs
Download as PDF
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Semester Notes

,

practice quizzes

,

Exam

,

video lectures

,

shortcuts and tricks

,

mock tests for examination

,

past year papers

,

Sample Paper

,

ppt

,

MCQs

,

Previous Year Questions with Solutions

,

Free

,

Viva Questions

,

सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 1 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 1 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

,

study material

,

Extra Questions

,

Objective type Questions

,

Summary

,

Important questions

,

pdf

,

सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन - 1 | आंतरिक सुरक्षा और आपदा प्रबंधन for UPSC CSE in Hindi

;