UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi  >  15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन - इतिहास,यु.पी.एस.सी

15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन

  • भारत पर मुस्लिम आक्रमण के फलस्वरूप भारत में इस्लाम का प्रादुर्भाव हुआ और भारत का बाह्य जगत से सम्पर्क हुआ। हिन्दू और मुसलमान दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए तथा दोनों समाजों में कुछ परिवर्तन हुए।
  • भारत में इस्लाम के आने से भारत का व्यापार प्रशान्त महासागर तथा भूमध्य सागर के देशों तक फैल गया। अरब के यात्राी भारत के माल को अपने देश में लाते थे। मुल्तान और कश्मीर होकर एशियाई देशों से थल मार्ग से व्यापार होने लगा। भारत से निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुएं कपड़ा, अनाज, नील, अफीम, आदि थीं जबकि आयात होने वाली प्रमुख वस्तुएं ऊंट, घोड़ा, शराब इत्यादि थीं।
  • राजपूत काल (600-1200 ई.) में भारत में छोटे-छोटे राज्यों का आविर्भाव हुआ था जो इस्लाम के आने के पश्चात एक सूत्र में आ गये, फलतः देश के बड़े भाग में शान्ति स्थापित हो गयी।
  • भारत में इस्लाम के आने से कला के क्षेत्र में एक नयी शैली विकसित हुई जिस पर हिन्दू शैली तथा ईरानी शैली का स्पष्ट प्रभाव है।
  • ईरानी तथा राजपूत चित्रकला के सम्मिश्रण से मुगल शैली का जन्म हुआ।

15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindiमुगल काल में कला, चित्रकला एवं संगीत

  • ईरानी तथा हिन्दू लोगों के सम्मिश्रण से नये राग-रागनियों का आविष्कार हुआ। इस दिशा में अमीर खुसरो ने महत्वपूर्ण कार्य किया।
  • अमीर खुसरो ने ध्रुपद के समीकरण से ख्याल का आविष्कार किया तथा उसने ईरानी और हिन्दू रागों के मिलाप से मुजीर, साजगरी, ऐमान, बराग, वसीद, कौल तथा जित्फ रागनियों का निर्माण किया।
  • प्राचीन भारतीय वीणा तथा तम्बूरे के सम्मिश्रण से सितार का आविष्कार हुआ। खुसरो ने मृदंग को तबले का रूप दिया।
  • आधुनिक समय की कव्वाली तथा गजल मुस्लिम सभ्यता की ही देन है।
  • हिन्दुओं ने मुसलमानों से तोपखाने तथा बारुद आदि का प्रयोग सीखा।
  • भारत में इस्लाम के अभ्युदय से ब्राह्मणों की श्रेष्ठता की परम्परा को ठेस पहुँचता था जात-पाँत का सर्वत्रा विरोध हुआ।
  • इस्लाम के आने के पश्चात् भारत में व्यक्तियों स्त्रियों  की दशा में गिरावट आ गयी और उसकी स्वतन्त्राता पर भी आघात हुआ। इसी समय से पर्दा प्रथा का चलन प्रारम्भ हुआ।
  • मुसलमानों ने हिंदुओं को ज्योतिष के क्षेत्र में गणना के लिए तांत्रिक का प्रयोग सिखाया। ज्योतिष के ग्रन्थ अल मजिस्ती का अरबी से संस्कृत में अनुवाद हुआ।
  • पूर्व मध्यकालीन इतिहास की जानकारी के लिये तबकाते नासिरी, ताजुल मसीर, तारीखे फिरोजशाही तथा मध्यकालीन इतिहास के ज्ञान के लिए बाबरनामा, हुमायूं नामा, आइने अकबरी, तारीख शेरशाही, मुन्तखा उत तवारीख, तुजुके जहाँगीरी, बादशाहनाम आदि ग्रन्थों की रचना हुई।
  • भारत में इस्लाम का प्रसार उन क्षेत्रों में सर्वाधिक हुआ जहाँ उच्च एवं निम्न वर्ग में अत्यधिक अन्तर था तथा जाति प्रथा के विरुद्ध प्रबल असंतोष था।
  • मुसलमानों ने हिन्दुओं के दलित वर्ग से पर्याप्त संख्या में इस्लाम के अनुयायी बनाये।
  • इस्लाम के विकास काल में उस पर यूनानी तथा भारतीय दर्शनों का भी प्रभाव पड़ा था। इन विचारों ने सूफी मत के विकास की पृष्ठभूमि तैयार की।
  • भारत में निम्न वर्ग के बहुत से हिन्दुओं ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया परन्तु उन्होंने अपने पुराने अंधविश्वासों तथा रीतिरिवाजों को कायम रखा जिसके कारण इस्लाम अपने मूल धर्म सिद्धान्त ‘शरियत’ से अलग होने लगा।
  • इस्लाम धर्म में सुधार के लिए कई रहस्यवादी संगठनों अथवा सिलसिला का आविर्भाव हुआ। आइने अकबरी में अबुल फजल ने 14 सिलसिलाओं का उल्लेख किया है परन्तु इनमें से अधिकांश रहस्यवादी समूह अथवा सिलसिलाओं की उपशाखाएं थीं। इनमें चिश्ती, सुहरावर्दी, कादरी, सूत्री तथा नक्शबंदी महत्वपूर्ण थे।
  • इस्लाम के अन्तर्गत रहस्यवादियों का एक समूह पनपा जो आगे चलकर सूफी कहलाने लगे। सूफी महान भक्त थे तथा इस्लामी साम्राज्य में उत्पन्न नैतिक पतन के कारण दुखी थे।
  • सूफी विचारधारा में गुरु (पीर) और शिष्य (मुरीद) के बीच सम्बन्ध का काफी महत्व था। प्रत्येक गुरु अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करता था जो बाद में उसके कार्य को आगे बढ़ाता था।
  • सूफी सिलसिले मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित थे, पहला ‘बा-शर’ अर्थात् जो इस्लामी विधान को मानते थे और दूसरा ‘बे-शर’ अर्थात् वे जो इस्लामी विधान से बंधे हुए नहीं थे। ‘बे-शर’ घुमक्कड़ सूफी सन्त थे।
  • ‘बा-शर’ सिलसिलों में से दो-चिश्ती और सुहरावर्दी भारत में अधिक प्रचलित हुए।
  • भारत में चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने किया था। इनका जन्म 1142 में मध्य एशिया में हुआ था। वे बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और उन्होंने ख्वाजा उस्मान हसन को अपना गुरु बनाया था। वे 1192 में भारत में आए तथा अजमेर में जाकर बस गये।
  • ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की 1235 में मृत्यु हो गयी। आज भी प्रतिवर्ष उनकी दरगाह पर मेला लगता है तथा हिन्दू व मुसलमान दोनों सम्प्रदाय के लोग इन्हें मानते हैं।
  • शेख मुइनुद्दीन के शिष्य थे बख्तियार काकी और उनके शिष्य थे फरीद-उद्दीन गंज-ए-शकर, जिन्होंने हाँसी (हरियाणा) और अजोधन (पंजाब) को अपना कार्य क्षेत्रा बनाया।
  • निजामुद्दीन औलिया और नसीरुद्दीन चिराग-ए-दिल्ली चिश्ती सन्तों में सबसे प्रसिद्ध सन्त हुए। ये सन्त हिन्दुओं तथा निम्न वर्ग के लोगों के साथ समान सम्बन्ध रखते थे। निजामुद्दीन औलिया ने योग की प्राणायाम पद्धति अपनायी।
  • सुहरावर्दी सिलसिले का कार्य क्षेत्रा मुख्यतः पंजाब और मुल्तान रहा तथा इस मत के प्रमुख सन्त शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी और हमीदउद्दीन नागौरी हुए। सुहरावर्दी सन्त फक्कड़ जीवन नहीं बिताते थे तथा वे राज्य की सेवा स्वीकार करते थे।
  • इस्लाम में पहला रहस्यवादी पंथ कादरी सिलसिला था जिसे अब्दुल कादिर जीलानी ने स्थापित किया था। भारत में इस पंथ की शुरुआत सैयद मोहम्मद जीलानी ने की थी जो 1482 में आकर मुल्तान में बसे गये थे।
  • भारत में शत्तारी तथा फिरदौसी सिलसिला का आरम्भ तो हुआ परन्तु इनका अधिक प्रभाव नहीं हुआ।
  • नक्शबन्दी सिलसिला का प्रसार अकबर के शासन के अन्तिम वर्षों में हुआ। यह पंथ कट्टरवादी था तथा अकबर की उदार धर्म नीति का प्रतिकार करता था। यह आन्दोलन शेख अहमद सरहिन्द के  नेतृत्व में उत्कर्ष पर पहुँचा। सरहिन्द शिया और हिन्दुओं का विरोधी था तथा शरीयत का पालन किये जाने का समर्थक था। सरहिन्द के सिद्धांतों ने औरंगजेब को बहुत प्रभावित किया।
  • ख्वाजा फखरुद्दीन का जन्म 1173 में काबुल में हुआ था तथा उन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागकर साधु जीवन अपनाया। हिन्दू और मुसलमान दोनों इनके भक्त थे।
  • गेसूदराज का जन्म 1321 में दिल्ली में हुआ। दिल्ली में महामारी के दौरान इन्होंने लोगों की बहुत सेवा की।
  • रहस्यवादियों ने भक्ति मार्ग को श्रेष्ठ बताया। इन्होंने शराबखोरी, जुआ, दास प्रथा आदि बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई जिससे भारत के सामान्य लोग प्रभावित हुए।

भक्ति आन्दोलन

15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

  • भक्ति आन्दोलन तुर्कों के भारत आगमन के पूर्व से ही प्रारम्भ हो गया था और यह सोलहवीं शताब्दी तक जोर पकड़ता गया।
  • भक्ति आन्दोलन ने व्यक्ति और ईश्वर के बीच रहस्यवादी सम्बन्ध को बल देने का प्रयत्न किया।
  • प्रथम चरण में जहाँ भक्ति आन्दोलन का उद्देश्य वैदिक कर्मकाण्डों तथा बौद्ध सिद्धांतों में सामंजस्य स्थापित करना था वहीं द्वितीय चरण में इसका उद्देश्य इस्लाम के प्रतिक्रियास्वरूप भारत में धर्म के क्षेत्रा में क्रान्ति उत्पन्न करना था।
  • भक्ति आन्दोलन की जड़ सातवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य दक्षिणी भारत में जमीं।
  • दक्षिण भारत में भक्ति आन्दोलन का प्रचार वैष्णव अलवार तथा शैव नयनार लोगों ने किया जिन्होंने जैनियों एवं बौद्धों के अपरिग्रह को अस्वीकार करके ईश्वर के प्रति भक्ति को ही भक्ति का मार्ग बताया। इन्होंने प्रेम और ईश्वर भक्ति का संदेश दिया तथा वर्ण और जाति भेद को अस्वीकार कर दिया।
  • रामानुजाचार्य-रामानुजाचार्य का जन्म 1016 ई. में दक्षिण भारत में हुआ था। वे वैष्णव धर्म मानते थे तथा द्वैतवादी थे। वे कट्टर हिन्दू थे इसलिए वेदों के पूर्ण समर्थक थे। रामानुजाचार्य ने अपने विचारों का प्रचार करने के लिए देश में 700 मठों की स्थापना की। रामानुजाचार्य के दर्शन को विशिष्टाद्वैत के नाम से जाना जाता है।
  • माधवाचार्य-माधवाचार्य का जन्म 1200 ई. में शृंगेरी में हुआ था। ये विष्णु के उपासक थे तथा इन्होंने वेदान्त सूत्रा पर महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा। ये द्वैतवादी थे।
  • निम्बार्काचार्य-निम्बार्काचार्य मध्यमार्गी थे तथा द्वैत और अद्वैत दोनों का समर्थन करते थे। ये कृष्ण भक्ति के प्रबल समर्थक थे। ये द्वैताद्वैतवादी थे।
  • वल्लभाचार्य-का जन्म 1469 में तेलुगु प्रदेश में हुआ था। ये कृष्ण के उपासक थे तथा इन्होंने शुद्धाद्वैतवाद का प्रचार किया। इन्होंने 7 ग्रन्थों की रचना की।
  • रामानन्द-रामानन्द का जन्म प्रयाग में चौदहवीं शताब्दी के अंत में हुआ था। ये रामानुज के शिष्य थे। ये वैष्णव धर्म के उपासक थे तथा राम-सीता की पूजा करते थे। भक्ति आन्दोलन को दक्षिणी भारत से उत्तर भारत में लाने का श्रेय रामानन्द को है। रामानन्द ने एकेश्वरवाद पर जोर देकर हिन्दू मुसलमानों में प्रेम भक्ति सम्बन्ध के साथ सामाजिक समाधान प्रस्तुत किया। उन्होंने भक्ति के द्वारा जन-जन को नया मार्ग दिखाया। रामानन्द जाति प्रथा के घोर विरोधी थे। उनके शिष्यों में सभी जातियों के लोग थे।
  • कबीर-कबीर को एक विधवा ब्राह्मणी ने काशी में जन्म दिया था। उसने लोकभय से कबीर को जन्म के तुरन्त बाद लहरताला नामक एक तालाब के पास छोड़ दिया। कबीर का पालन-पोषण नीरू व नीमा नामक जुलाहे दम्पत्ति ने किया। कबीर अद्वैतवादी थे तथा उन्होंने निर्गुण ब्रह्म की उपासना पर जोर दिया। कबीर ने हिन्दू व इस्लाम दोनों धर्मों के तत्वों को समझा और वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के हिमायती बने। उन्होंने उपवास व्रत, जप तथा धार्मिक रीति-रिवाजों की आलोचना की तथा जात-पात, मूर्ति-पूजा और अवतारवाद का विरोध किया। कबीर रहस्यवादी कवि थे तथा उनके अनुयाइयों को कबीर पंथी कहा जाता है। कबीर की शिक्षाएं बीजक में संग्रहीत हैं तथा सरल हिन्दी मे लिखी इन शिक्षाओं का जनसाधारण पर बहुत प्रभाव पड़ा।
  • रैदास-रैदास पेशे से चमार थे तथा निर्गुण पंथ के रहस्यवादी संत थे। ये रामानन्द के शिष्य थे। रैदास के गीता में हास्य भाव की संवेदना निहित थी।
  • कबीर के शिष्य दादू दयाल अहमदाबाद के जुलाहा परिवार के थे तथा वे निर्गुण समूह के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्याख्याता थे। उन्होंने जात-पात का विरोध किया तथा ईश्वर प्रेम और भक्ति पर आधारित धर्म का उपदेश दिया।
  • निर्गुण समुदाय के भक्ति मार्ग संतों में मलूकदास, धरतीदास, दरियासाहब इत्यादि उल्लेखनीय हैं।
  • चैतन्य महाप्रभु-चैतन्य महाप्रभु का जन्म 1445 ई. में बंगाल में नदिया नामक  स्थान पर हुआ था। वे कृष्ण के उपासक थे तथा उनकी मान्यता थी कि कृष्ण की भक्ति एवं गुणगान से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। वे आत्मा तथा परमात्मा को एक-दूसरे से भिन्न व अभिन्न दोनों मानते थे। वे जाति-प्रथा के विरोधी थे तथा उनके द्वारा चलाये गये सम्प्रदाय को गुसाईं कहते हैं।
  • उत्तर भारत के प्रमुख अध्यात्मवादी रहस्यवादी संत सूरदास, तुलसीदास, चैतन्य महाप्रभु, मीराबाई इत्यादि थे।
  • सूरदास कृष्ण भक्ति शाखा के प्रधान कवि व संत थे। सूरदास ने समर्पण की भावना को सर्वाधिक महत्व दिया और भक्ति के संदेशों को ललित पदों में प्रस्तुत किया।
  • तुलसीदास महान कवि व राम के प्रबल भक्त थे। उन्होंने राम को ईश्वर के अवतार के रूप में चित्रित किया और विश्वास दिलाया कि सच्ची भक्ति व समर्पण की भावना से मोक्ष संभव है।
  • मीराबाई जोधपुर के संस्थापक राजा जोधा की परपोती तथा भगवान कृष्ण की उपासिका थी। उन्होंने अपनी कविताओं में कृष्ण को प्रेमी, सहचर तथा पति मानकर चित्रित किया है। मीरा ने भक्ति प्रेम तथा समर्पण को कृष्ण के वैयक्तिक तथा आनन्दमय स्वरूप में आरोपित करके एक प्रतीक बना दिया।

गुरु नानक

  • गुरु नानक का जन्म लाहौर के समीप तलवंडी नामक ग्राम में 1469 में हुआ था।

15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन - इतिहास,यु.पी.एस.सी | इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

  • उन्होंने मूर्ति-पूजा, ऊंच-नीच, जात-पात का विरोध किया तथा वे कर्म, पुनर्जन्म तथा सेवा में विश्वास करते थे। उनके उपदेशों का संग्रह आदि ग्रन्थ में है। उनके प्रमुख सिद्धांत एकेश्वरवाद तथा मानव मात्रा की एकता था। गुरु नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की।
  • महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन के संतों में ज्ञानेश्वर तथा नामदेव तथा तुकाराम प्रमुख हैं।
  • संत ज्ञानेश्वर ने भगवत गीता की समीक्षा लिखी तथा मराठी भाषा में उपदेश दिया।

नामदेव

  • नामदेव का जन्म चैदहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में महाराष्ट्र में हुआ था। वे दर्जी थे तथा संत बनने के पूर्व डाकजनी करते थे। उनकी मराठी भाषा में लिखी रचनाएं ईश्वर के प्रति प्रेम व भक्ति को व्यक्त करता है। उन्होंने व्रत, उपवास, तीर्थ, बलिदान तथा धार्मिक अंधविश्वासों की कटु आलोचना की।
  • तुकाराम-तुकाराम निम्न जाति में पैदा हुए थे तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे।
  • दक्षिण भारत में उत्पन्न भक्ति आन्दोलन सम्पूर्ण भारत में फैलकर सम्पूर्ण राष्ट्र के जनजीवन को प्रभावित किया। इस आन्दोलन के फलस्वरूप क्षेत्राीय भाषाओं की उन्नति, बन्धन में छूट, मानवता एवं सहिष्णुता की भावना का विस्तार तथा इस्लाम के साथ आंशिक समझौता सम्भव हो सका।
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FAQs on 15वीं तथा 16वीं शताब्दी के धार्मिक आन्दोलन - इतिहास,यु.पी.एस.सी - इतिहास (History) for UPSC CSE in Hindi

1. 15वीं और 16वीं शताब्दी में कौन-कौन से धार्मिक आंदोलन हुए थे?
उत्तर: 15वीं और 16वीं शताब्दी में कई धार्मिक आंदोलन हुए थे। कुछ मुख्य आंदोलन इसमें शामिल हैं - प्रोटेस्टेंट रीफॉर्मेशन, काथोलिक काउंटर रीफॉर्मेशन, भक्ति आंदोलन और सिख धर्म के प्रभावशाली आंदोलन।
2. प्रोटेस्टेंट रीफॉर्मेशन क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: प्रोटेस्टेंट रीफॉर्मेशन एक धार्मिक आंदोलन था जो 16वीं शताब्दी में मार्टिन लूथर द्वारा प्रारंभ किया गया। इसमें विशेष रूप से काथोलिक चर्च के विरोध के रूप में उठाई गई थी। इस आंदोलन का महत्व था कि यह एक नया धार्मिक धारा की उत्पत्ति को प्रेरित करने वाला हुआ और पूरे यूरोप में असर डाला।
3. काथोलिक काउंटर रीफॉर्मेशन क्या है और इसका महत्व क्या है?
उत्तर: काथोलिक काउंटर रीफॉर्मेशन एक धार्मिक आंदोलन था जो 16वीं शताब्दी में कैथोलिक चर्च द्वारा प्रारंभ किया गया। इसमें कैथोलिक चर्च ने प्रोटेस्टेंट रीफॉर्मेशन के आंदोलन का उत्तर दिया और अपने धर्म को सुधारा और मजबूत बनाने का प्रयास किया। यह महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे काथोलिक चर्च ने अपने प्रशंसार्थ नए उपदेशों का विकास किया और अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाई।
4. भक्ति आंदोलन किस प्रकार का था और इसका प्रभाव क्या रहा?
उत्तर: भक्ति आंदोलन एक धार्मिक आंदोलन था जो 15वीं और 16वीं शताब्दी में भारत में व्याप्त हुआ। इसमें भक्ति और आध्यात्मिकता के माध्यम से जीवन में भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण को प्रोत्साहित किया गया। इस आंदोलन का प्रभाव रहा क्योंकि यह एक सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन की प्रक्रिया को शुरू किया और भारतीय समाज को सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से प्रभावित किया।
5. सिख धर्म के प्रभावशाली आंदोलन कौन-कौन से थे?
उत्तर: सिख धर्म के प्रभावशाली आंदोलन में शामिल हैं - गुरु नानक के धर्म की स्थापना, गुरु अर्जुन देव के समय के सिख आंदोलन, गुरु गोविंद सिंह के सिख आंदोलन और खालसा पंथ के स्थापना। ये आंदोलन सिख धर्म के विकास और सिख समाज की संघटना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं हैं।
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