UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): July 2023 UPSC Current Affairs

History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): July 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर

हाल ही में केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री ने गुजरात के गांधीनगर में राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर, लोथल की समीक्षा की।

  • NMHC परिसर में विश्व का सबसे ऊँचा लाइटहाउस संग्रहालय, एशिया का सबसे बड़ा जलीय समुद्री संग्रहालय और भारत का सबसे भव्य नौसेना संग्रहालय होगा।

परिचय

  • गुजरात में लोथल के ऐतिहासिक सिंधु घाटी सभ्यता क्षेत्र में NMHC का निर्माण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत किया जा रहा है।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य प्राचीन से लेकर आधुनिक काल तक की भारत की समुद्री विरासत को प्रदर्शित करना, शिक्षा और मनोरंजन के सहयोगात्मक दृष्टिकोण का उपयोग एवं नवीनतम तकनीक को शामिल करना है।

महत्त्व

  • NMHC विश्व का सबसे बड़ा समुद्री संग्रहालय परिसर और एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल बनेगा।
  • यह आगंतुकों/पर्यटकों को भारत के समृद्ध समुद्री इतिहास के बारे में शिक्षित करने और वैश्विक समुद्री क्षेत्र में भारत की छवि को नया आयाम प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • यह सागरमाला परियोजना का एक हिस्सा है और इसे सार्वजनिक तथा निजी संस्थानों, संगठनों एवं कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल की भागीदारी के साथ विकसित किया जा रहा है। भारत के प्रमुख बंदरगाहों ने इस परियोजना का समर्थन करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की है।

NMHC की विशेषताएँ

  • इसमें लोथल मिनी-रिक्रिएशन जैसी कई विशेषताएँ होंगी; जिसमें चार थीम पार्क हैं- मेमोरियल थीम पार्क, मैरीटाइम एंड नेवी थीम पार्क, क्लाइमेट थीम पार्क और एडवेंचर एंड एम्यूज़मेंट थीम पार्क।

लम्बानी कला

कर्नाटक के हम्पी में G20 संस्कृति कार्य समूह (CWG) की तृतीय बैठक एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखी गई, क्योंकि इस कार्यक्रम में 'थ्रेड्स ऑफ यूनिटी' शीर्षक से 'लम्बानी वस्तुओं के सबसे बड़े प्रदर्शन' के लिये गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड स्थापित किया गया था।

  • इस उपलब्धि ने कर्नाटक में खानाबदोश लम्बानी समुदाय की 450 से अधिक लम्बानी महिला कारीगरों और सांस्कृतिक अभ्यासकर्ताओं के सामूहिक प्रयासों को प्रदर्शित किया।
  • लम्बानी कारीगरों का समर्थन करके यह पहल महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता में योगदान देती है। यह CWG की तीसरी प्राथमिकता 'सांस्कृतिक और रचनात्मक उद्योगों और रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना' के अनुरूप है।

लम्बानी कला

  • लम्बानी कला, लम्बानी या बंजारा समुदाय द्वारा प्रचलित कपड़ा अलंकरण का एक रूप है, जो भारत के कई राज्यों विशेषकर कर्नाटक में रहने वाला एक खानाबदोश समूह है।
  • इसकी विशेषता रंगीन धागे, दर्पण का काम के साथ ढीले बुने हुए कपड़े पर सिलाई पैटर्न की समृद्ध शृंखला है।
    • इसमें एक सुंदर पैचवर्क बनाने के लिये अनुपयोगी कपड़े के छोटे टुकड़ों को कुशलतापूर्वक एक साथ सिलाई करना भी शामिल है।
  • इसे एक टिकाऊ अभ्यास के रूप में मान्यता प्राप्त है जो रीसाइक्लिंग के साथ पुन:उपयोग के सिद्धांत पर काम करता है।
  • लम्बानी कढ़ाई तकनीक तथा सौंदर्यशास्त्र पूर्वी यूरोप, पश्चिम एशिया और मध्य एशिया में कपड़ा निर्माण की परंपराओं के साथ समानता रखते हैं, जो वैश्विक कपड़ा कला के अंतर्संबंध को प्रदर्शित करते हैं।
    • संदुर लम्बानी कढ़ाई, कर्नाटक के संदुर क्षेत्र की एक विशिष्ट प्रकार की लम्बानी कला को वर्ष 2010 में भौगोलिक संकेतक टैग प्रदान किया गया था। 

आधुनिक युवाओं के लिये बुद्ध की प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?  

भारत के राष्ट्रपति ने धर्म चक्र प्रवर्तन दिवस (3 जुलाई) के अवसर पर युवाओं से भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से सीखने, खुद को समृद्ध बनाने और एक शांतिपूर्ण समाज, राष्ट्र तथा विश्व के निर्माण में योगदान देने का आह्वान किया।

  • राष्ट्रपति ने यह स्मरण कराया कि आषाढ़ पूर्णिमा पर ही भगवान बुद्ध ने अपने पहले उपदेश के माध्यम से धम्म के मध्य मार्ग की शुरुआत की थी

भगवान बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएँ

  • अस्तित्व के तीन चिह्न: ये सभी घटनाओं की विशेषताएँ हैं जिन्हें हर किसी को समझना और स्वीकार करना चाहिये। ये हैं- अनित्यता (अनिच्च), असंतोषजनकता (दुक्खा) और गैर-आत्म (अनत्ता)।
  • चार आर्य सत्य: ये दुख, दुख समुदय, दुख निरोध और दुख निरोध मार्ग के विषय में हैं। दुख का कारण अज्ञान, राग एवं द्वेष है।  
    • आर्य आष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करके दुखों का निवारण संभव है:

History, Art & Culture (इतिहास, कला और संस्कृति): July 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

  • चार उदात्त अवस्थाएँ: ये सकारात्मक मानसिक गुण हैं जिन्हें व्यक्ति को विकसित करना चाहिये तथा सभी प्राणियों में प्रसारित करना चाहिये। ये हैं- प्रेम-कृपा (मेट्टा), करुणा (करुणा), सहानुभूतिपूर्ण आनंद (मुदिता) और समभाव (उपेक्खा)।
    • इन अवस्थाओं को विकसित करके व्यक्ति सद्भाव, सहानुभूति, परोपकारिता तथा शांति को बढ़ावा दे सकता है।
  • पाँच उपदेश: ये बुनियादी नैतिक सिद्धांत हैं जो बुद्ध ने अपने सामान्य अनुयायियों के लिये निर्धारित किये थे। 
    • ये हैं- हत्या, चोरी करना, यौन दुराचार, झूठ बोलना और नशा करने से बचना।
    • ये स्वयं एवं दूसरों को नुकसान पहुँचाने से बचने, जीवन और संपत्ति का सम्मान करने, पवित्रता एवं ईमानदारी बनाए रखने तथा स्पष्टता और जागरूकता बनाए रखने में सहायता करते हैं। 

युवा जीवन की चुनौतियाँ और बुद्ध के प्रेरक प्रसंग

  • मूल आधार के रूप में सचेतन (Mindfulness): बुद्ध की शिक्षाओं के केंद्रीय सिद्धांतों में से एक है सचेतन का अभ्यास।
    • सचेतन व्यक्तियों को वर्तमान क्षण के विषय में गहरी जागरूकता पैदा करने, उनके विचारों, भावनाओं और कार्यों की बेहतर समझ को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित करता है। 
    • युवा लोग विकर्षणों से भरे विश्व में पूर्ण रूप से उपस्थित और सलग्न रहने की बुद्ध की अवधारण से प्रेरित हो सकते हैं। 
    • सचेतन का अभ्यास करके युवा तनाव को प्रबंधित करना सीख सकते हैं, ध्यान एवं एकाग्रता में सुधार कर सकते हैं और आत्म-जागरूकता की भावना का पोषण कर सकते हैं, जिससे मानसिक कल्याण तथा व्यक्तिगत विकास में सुधार हो सकता है।
  • नश्वरता और अनासक्ति: बुद्ध की शिक्षाएँ सभी घटनाओं की नश्वरता (केवल एक सीमित अवधि तक बने रहने की स्थिति या तथ्य) और लगाव की निरर्थकता पर ज़ोर देती हैं।
    • तात्कालिक संतुष्टि से प्रेरित भौतिकवादी समाज में युवा इस समझ के साथ सांत्वना और प्रेरणा पा सकते हैं कि सब कुछ क्षणिक है। 
    • आनंद एवं पीड़ा दोनों की नश्वरता को पहचानकर युवा व्यक्ति एक ऐसी मानसिकता विकसित कर सकते हैं जो अनुकूलनीय, लचीली और परिवर्तनशील हो।
    • परिणामों, संपत्तियों और यहाँ तक कि रिश्तों के प्रति लगाव का त्याग काना युवाओं को अनावश्यक पीड़ा से मुक्त कर सकता है तथा उन्हें अधिक शांति के साथ जीवन को अपनाने की अनुमति दे सकता है।
  • करुणा और सहानुभूति: समकालीन विश्व में जहाँ विभाजन और संघर्ष जारी है, युवा प्रेम-कृपा तथा करुणा पर आधारित बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
    • युवा सहानुभूति का विकास करके तथा दूसरों के संघर्षों से गहरी समझ विकसित कर  एकता एवं संपर्क की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • आत्म-खोज और आंतरिक परिवर्तन: युवा, जो सामन्यत: पहचान और उद्देश्य के प्रश्नों से जूझते रहते हैं, आत्म-अन्वेषण पर बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।
    • आत्म-निरीक्षण और आत्म-चिंतन में संलग्न होकर युवा अपने वास्तविक स्वभाव, जुनून के साथ आकांक्षाओं में अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं।
  • सामाजिक और पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी में संलग्न होना: बुद्ध की शिक्षाएँ सभी प्राणियों के परस्पर संपर्क पर बल देती हैं, साथ ही एक ज़िम्मेदार कार्रवाई की वकालत करती हैं।
    • युवा समानता, न्याय और टिकाऊ प्रथाओं की दिशा में कार्य करके सामाजिक एवं पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी में सक्रिय रूप से शामिल हो सकते हैं।
    • वे सामुदायिक पहलों में भाग ले सकते हैं, साथ ही हाशिए पर खड़े समूहों की वकालत कर सकते हैं और पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी बन सकते हैं।
    • इन शिक्षाओं को मूर्तरूप देकर वे एक अधिक न्यायसंगत, सामंजस्यपूर्ण और पर्यावरण के प्रति जागरूक समाज के निर्माण में योगदान देते हैं

अल्लूरी सीताराम राजू

चर्चा में क्यों

  • 4 जुलाई 2023 को  हैदराबाद में अल्लूरी सीताराम राजू का 125 वां जन्मोत्सव मनाया गया। 

मुख्य बिंदु

  • इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि अल्लूरी सीताराम राजू के मूल्यों को आत्मसात करना ही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
  • राष्ट्रपति ने कहा, समाज के वंचित वर्गों की भलाई के लिए निःस्वार्थ और निडर होकर काम करना आदिवासी योद्धा के जीवन से लिया जाने वाला संदेश है।
  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस अवसर पर  तेलुगु फिल्म अल्लूरी सीतारम राजू और श्री श्री के गीत "तेलुगु वीरा लेवारा...दीक्षा बूनी सागर (शपथ लें और आगे बढ़ें)" का जिक्र किया। 
  • राष्ट्रपति ने कहा कि अल्लूरी सीताराम राजू का चरित्र जाति और वर्ग के आधार पर बिना किसी भेदभाव के समाज को एकजुट करने का उदाहरण है। 

अल्लूरी सीताराम राज

  • अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई, 1897 ई. (कुछ स्त्रोतों में 1898) को भीमावरम के निकट मोगल्लू गांव ,वर्तमान आंध्रप्रदेश  में, हुआ था।
  • पैतृक गांव में ही स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात उच्च शिक्षा के लिए वे विशाखापत्तनम चले गए।
  • 18 वर्ष की आयु में उन्होंने सन्यास ले लिया तथा  कृष्णदेवीपेट में आश्रम  बनाकर ध्यान व साधना आदि में लग गए।
  • आदिवासियों ने उन्हें ऐसा संत माना , जो उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों के अपमानजनक अस्तित्व से मुक्ति दिलाएगा ।

राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान

  • असहयोग आंदोलन के दौरान सीताराम राजू ने स्थानीय पंचायतों में आपसी विवादों को सुलझाने और औपनिवेशिक अदालतों का बहिष्कार करने के लिए आदिवासियों को प्रेरित किया।
  • कुछ समय पश्चात गांधीवादी आंदोलन से उनका मोहभंग हो गया और अगस्त,1922 में उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध 'रम्पा विद्रोह' आरम्भ किया।
  • रम्पा प्रशासनिक क्षेत्र में लगभग 2800 जनजातियाँ रहती थीं , जो खेती में 'पोड़ु' प्रणाली का प्रयोग करती थीं। 'पोड़ु' प्रतिवर्ष जंगलों को काटकर की जाने वाली खेती है।
  • 'मद्रास वन अधिनियम, 1882' के तहत 'पोड़ु' खेती पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • इस आदेश के विरुद्ध आदिवासियों ने सशस्त्र विद्रोह प्रारंभ कर दिया , जिसे ' मान्यम ' के नाम से जाना जाता है।
  • इन आदिवासियों ने पहाड़ी क्षेत्रों में सड़कों और रेलवे लाईनों के निर्माण में बंधुआ मजदूरों के रूप में काम करने से मना कर दिया।
  • सीताराम राजू ने उनके लिए न्याय की मांग की और अंग्रेजों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया।
  • 22 अगस्त, 1922 को उन्होंने पहला हमला चिंतापल्ली में किया। अपने 300 सैनिकों के साथ शस्त्रों को लूटा। उसके बाद कृष्णदेवीपेट के पुलिस स्टेशन पर हमला कर किया और विरयया डोरा को मुक्त करवाया।
  • सीताराम राजू को पकड़वाने के लिए सरकार ने स्कार्ट और आर्थर नाम के दो अधिकारियों को इस काम पर लगा दिया और उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 10,000 रुपये इनाम की घोषणा की।
  • आदिवासियों पर अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार के कारण सीताराम राजू ने आत्मसमर्पण कर दिया, ये सोचकर कि उनके साथ न्याय होगा।
  • 7 मई 1924 को उन्हें धोखे से फंसाया गया और एक पेड़ से बांधकर गोली मार दी गई।
  • 8 मई 1924 को उनका अंतिम संस्कार किया गया।
  • उनकी वीरता और साहस के लिए उन्हें ' मान्यम विरुहु' ( जंगल का नायक ) उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • प्रत्येक वर्ष आंध्र प्रदेश सरकार उनकी जन्म तिथि, 4 जुलाई को राज्य उत्सव के रूप में मनाती है।
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