UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly  >  Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): October 2023 UPSC Current Affairs

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भारत में समलैंगिक विवाह

हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि समलैंगिक या समलैंगिक माता-पिता के बच्चे जरूरी नहीं कि समलैंगिक या समलैंगिक ही हो।

मुख्य विशेषताएं

  • समलैंगिक समूह भारत का लगभग 8% हिस्सा हैं, जिसका अर्थ है कि उनकी जनसंख्या 10 करोड़ से अधिक है।
  • 133 देशों में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन उनमें से केवल 32 देशों में समलैंगिक विवाह वैध है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बाद, समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की माँग उठी है।

समलैंगिक विवाह पर याचिकाएँ

  • हाल ही में LGBTQ समुदाय के कुछ लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की कि किन्हीं दो लोगों के बीच विवाह को उनके लिंग पर विचार किए बिना विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता दी जाए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा, जिस पर केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह के खिलाफ अपना हलफनामा पेश किया है।
  • इस मामले में एक तरफ एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के सदस्यों के जीवन, स्वतंत्रता, गरिमा और समान व्यवहार के संवैधानिक अधिकारों और दूसरी तरफ एक जैविक पुरुष और महिला के बीच केवल विवाहित मिलन पर विचार करने वाले विशिष्ट वैधानिक अधिनियमों के बीच एक "परस्पर क्रिया" की बात की गयी है।
  • तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने मामले को पांच-न्यायाधीशों की पीठ को संदर्भित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 145(3) का उपयोग किया।
  • अनुच्छेद 145(3) में यह प्रावधान है कि संविधान के पर्याप्त प्रश्नों और व्याख्या वाले मामलों की सुनवाई कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जानी चाहिए।
  • अब जनहित में मामले की सुनवाई का सीधा प्रसारण 18 अप्रैल से किया जाएगा।

समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15, और 16 लिंग के आधार पर भेदभाव का निषेध करते हैं, लेकिन समाज में इन अधिकारों का अक्सर उल्लंघन होता है।
  • समलैंगिक विवाह वाले व्यक्ति को संपत्ति, बीमा और पारिवारिक अधिकारों से वंचित किया जाता है।
  • जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) में पसंद और परिवार की गरिमा, विवाह, संतानोत्पत्ति और यौन रुझान शामिल हैं।
  • समान-लिंग वाले जोड़ों को विवाह की स्थिति से वंचित करना सीधे तौर पर साथी चुनने के उनके अधिकार को प्रभावित करता है।
  • कई बार समाज के रूढ़िवादी तत्वों द्वारा समलैंगिक जोड़ों पर शारीरिक या मानसिक हिंसा का भी प्रयोग किया जाता है।
  • इस प्रकार समान-सेक्स विवाह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों, सामाजिक अधिकारों और पारिवारिक अधिकारों के उपयोग में बाधा उत्पन्न करता है।
  • इसलिए समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जानी चाहिए, ताकि उन्हें उनका हक मिल सके।

समलैंगिक विवाह के खिलाफ तर्क

  • संसद द्वारा विवाह की परिभाषा में यह स्पष्ट है कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब एक "जैविक पुरुष" और एक "जैविक महिला" के बीच विवाह हो।
  • भारत में विवाह को यौन आवश्यकता नहीं बल्कि एक संस्कार माना जाता है जो विवाह की पवित्रता का द्योतक है।
  • भारतीय समाज में विवाह की अवधारणा एक पति, एक पत्नी और एक बच्चे पर आधारित है, जिसकी तुलना समलैंगिक परिवार से नहीं की जा सकती।
  • माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे अपराध घोषित कर दिया गया है।
  • यह समलैंगिक विवाह या आचरण के मौलिक अधिकार होने की पुष्टि नहीं करता है।
  • विशेष विवाह अधिनियम-1954 या हिन्दू विवाह अधिनियम-1955 में संशोधन की शक्ति विधायिका में निहित है न कि न्यायपालिका में।
  • इसलिए, विधायिका व्यक्ति की सामाजिक नैतिकता और स्वतंत्रता को संतुलित करते हुए इस प्रकार के विवाह को मान्यता देने की स्थिति पर विचार कर सकती है।

आगे बढ़ने का रास्ता

  • इतनी बड़ी आबादी (करीब 10 करोड़) को लेकर फैसले लेते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत है।
  • स्पेशल मैरिज एक्ट एक ऐसा कानून है जिसे मूल रूप से इंटरफेथ यूनियनों को वैध बनाने के लिए पारित किया गया था।
  • तो विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलिंगी विवाहों को मान्यता दी जा सकती है।
  • तेजी से बदलते समाज और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाना भी जरूरी है।

बिहार में जाति-जनगणना

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बिहार राज्य सरकार ने जाति-सर्वेक्षण, 2023 के निष्कर्ष जारी किये, जिसमें पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) संयुक्त रूप से राज्य की कुल आबादी का 63% हैं।

  • माना जाता है कि ये निष्कर्षों राज्य और राष्ट्रीय चुनावों के साथ ही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिये इच्छित लाभार्थियों की पहचान करने में व्यापक रूप से सहायक साबित होंगे।

बिहार के जाति-सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष

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जाति सर्वेक्षण में अपनाई गई प्रक्रिया

यह सर्वेक्षण दो चरणों में किया गया, जिनमें से प्रत्येक के अपने मानदंड और उद्देश्य थे।

  • पहला चरण:
    • इस चरण के दौरान, बिहार के सभी घरों की संख्या दर्ज़ की गई।
    • प्रगणकों को 17 प्रश्नों का एक सेट दिया गया था जिनका उत्तर प्रत्यर्थी को अनिवार्य रूप से देना था।
  • दूसरा चरण:
    • इस चरण के दौरान घरों में रहने वाले व्यक्तियों, उनकी जातियों, उप-जातियों और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के संबंध में डेटा एकत्र किया गया।
    • हालाँकि परिवार के मुखिया का आधार संख्या, जाति प्रमाण पत्र संख्या और राशन कार्ड संख्या अंकित करना वैकल्पिक था।

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बिहार जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों का महत्त्व

  • OBC कोटा बढ़ाना:
    • इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष से OBC कोटा को 27% से अधिक बढ़ाने और EBC कोटे के अंतर्गत कोटे की मांग में बढ़त होने की संभावना है।
    • वर्ष 2017 से OBC के उप-वर्गीकरण पर विचार कर रहे जस्टिस रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और इसकी सिफारिशें अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई हैं।
  • आरक्षण सीमा का पुनर्निर्धारण:
    • यह सर्वेक्षण डेटा इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में अपने ऐतिहासिक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाई गई आरक्षण पर 50% की सीमा पर बहस को फिर से शुरू कर देगा।
    • OBC की जनसंख्या के आधार पर, जाति समूहों के विभिन्न वर्ग जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण कोटा बढ़ाने की मांग कर सकते है।
  • संवैधानिक दायित्व की पूर्ति:
    • जाति सर्वेक्षण संविधान के भाग IV में उल्लिखित राज्य नीतियों के निदेशक सिद्धांतों (DPSP) में बताए गए उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा।
    • इससे संविधान निर्माताओं द्वारा उल्लिखित सामाजिक-आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रमुख रूप से मदद मिलेगी।
  • सर्वोदय की प्राप्ति:
    • लक्षित उपायों को विकसित करने के लिये जाति जनगणना का उचित उपयोग किया जा सकता है ताकि राज्य भर में व्याप्त असमानता को कम किया जा सके और भविष्य में समानता एवं सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया जा सके।

जाति जनगणना से जुड़े मुद्दे

  • जाति जनगणना के परिणाम:
    • जाति में एक भावनात्मक तत्त्व होता है और इस प्रकार जाति जनगणना के राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभाव होते हैं।
    • ऐसी चिंताएँ रही हैं कि जाति की गिनती से अस्मिता को मज़बूत बनाने में सहायता मिल सकती है।
    • इन दुष्परिणामों के कारण, SECC (Socio-Economic and Caste Census) के लगभग एक दशक बाद, जाति जनगणना से संबंधित डेटा की एक बड़ी मात्रा अप्रकाशित है या केवल अंशों में जारी की गई है।
  • जाति की संदर्भ-विशिष्टता:
    • भारत में जाति कभी भी वर्ग या अभाव का प्रतीक नहीं रही है; यह एक विशिष्ट प्रकार का अंतर्निहित भेदभाव है जो अक्सर वर्ग से परे होता है।
  • उदाहरण:
    • दलित उपनाम वाले लोगों को रोज़गार के लिये साक्षात्कार के लिये बुलाए जाने की संभावनाएँ कम होती हैं, भले ही उनकी योग्यता उच्च जाति के उम्मीदवारों से बेहतर हो।
    • मकान मालिकों द्वारा उन्हें किरायेदार के रूप में स्वीकार किये जाने की संभावनाएँ भी कम होती हैं।
    • आज भी देश भर में एक सुशिक्षित, संपन्न परिवार के दलित लड़के से विवाह उच्च जाति की महिलाओं के परिवारों में हिंसक प्रतिशोध की भावना को भड़का सकता है।

भारत में अंतिम जाति-जनगणना का आयोजन

  • वर्ष 1931 की जाति-जनगणना
    • अंतिम जाति-जनगणना वर्ष 1931 में आयोजित की गई थी और इससे संबंधित डेटा तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया गया था।
    • यह जाति-जनगणना मंडल आयोग की रिपोर्ट और उसके बाद सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण नीतियों के कार्यान्वयन का आधार बनी।
  • वर्ष 2011 की जनगणना
    • वर्ष 2011 की जनगणना आज़ादी के बाद पहली ऐसी जनगणना है जिसमे जाति-आधारित डेटा एकत्र किये गए।
    • हालाँकि राजनीतिक पक्षपात और अवसरवादिता के भय से जाति से संबंधित आँकड़े सार्वजनिक नहीं किये गये।
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FAQs on Indian Society and Social Issues (भारतीय समाज और सामाजिक मुद्दे): October 2023 UPSC Current Affairs - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

1. भारत में समलैंगिक विवाह क्या है?
उत्तर: समलैंगिक विवाह एक ऐसी संगठनित प्रक्रिया है जिसमें दो समलैंगिक व्यक्ति आपस में विवाह में बंधने के लिए कानूनी तौर पर मंजूरी प्राप्त करते हैं। भारत में वर्तमान में समलैंगिक विवाह कानूनी रूप से मान्य नहीं है, लेकिन कुछ राज्यों और कोर्टों ने इसकी स्वीकृति दी है।
2. भारत में समलैंगिक विवाह की कानूनी स्थिति क्या है?
उत्तर: भारतीय कानून के तहत, समलैंगिक विवाह अभी तक कानूनी रूप से मान्य नहीं है। भारतीय पेनल कोड के अनुसार, विवाह केवल दो व्यक्तियों के बीच एक पुरुष और एक महिला के बीच मान्य हो सकता है। तथापि, कुछ राज्यों ने व्यक्तिगत स्तर पर समलैंगिक सम्बंधों को कानूनी मान्यता दी है और कुछ कोर्टों ने इसे मान्यता दी है।
3. बिहार में समलैंगिक विवाह कानूनी है क्या?
उत्तर: नहीं, बिहार में समलैंगिक विवाह कानूनी रूप से मान्य नहीं है। भारतीय कानून के तहत, सिर्फ एक पुरुष और एक महिला के बीच विवाह को मान्यता दी जाती है। तथापि, यह महत्वपूर्ण है कि कुछ राज्यों और कोर्टों ने समलैंगिक सम्बंधों को मान्यता दी है और वर्तमान में भारतीय सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही है।
4. समलैंगिक विवाह अधिकार के बारे में भारतीय संविधान क्या कहता है?
उत्तर: भारतीय संविधान में समलैंगिक विवाह के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि, भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार और संरक्षण की गारंटी दी गई है, जो सभी धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं की समानता को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, कुछ कोर्टों ने समलैंगिक सम्बंधों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक पहलू मानते हुए उन्हें संविधानिक संरक्षण दिया है।
5. क्या भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी?
उत्तर: वर्तमान में, भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली है। हालांकि, कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर समलैंगिक सम्बंधों को मान्यता दी है और कुछ कोर्टों ने इसे मान्यता दी है। वर्तमान में भारतीय सुप्रीम कोर्ट भी इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही है और इसके निर्णय के बाद ही समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलेगी।
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