हाल ही में चीन के ‘चेंगदू’ शहर को ‘यांगून’ (म्याँमार) के माध्यम से हिंद महासागर तक पहुँच प्रदान करने वाला एक नया समुद्री-सड़करेल लिंक शुरू किया गया है।
नए ‘ट्रेड कॉरिडोर’ के विषय में
(i) यह नया व्यापार गलियारा मार्ग सिंगापुर, म्याँमार और चीन की लॉजिस्टिक लाइनों को जोड़ता है तथा वर्तमान में हिंद महासागर को दक्षिण-पश्चिम चीन से जोड़ने वाला सबसे सुविधाजनक भूमि और समुद्री चैनल है।
(ii) चीन की योजना म्याँमार के ‘रखाइन प्रांत’ के ‘क्युकफ्यू’ में एक और बंदरगाह विकसित करने की भी है, जिसमें युन्नान (चीन) से सीधे बंदरगाह तक प्रस्तावित रेलवे लाइन शामिल है, लेकिन म्याँमार में सैन्य शासन और अशांति के कारण इसकी प्रगति रुकी हुई है।
(iii) चीन ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के तहत म्याँमार में इस क्षेत्र को 'सीमा आर्थिक सहयोग क्षेत्र' के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है।
(iv) इस तरह यह क्षेत्र जहाँ एक ओर म्याँमार की आय का एक महत्त्वपूर्णस्रोत होगा, वहीं चीन के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण होगा।
(v) यह व्यापार गलियारा हिंद महासागर के लिये एक और प्रत्यक्ष चीनी आउटलेट है।
(vi) यह व्यापार मार्ग ‘मलक्का डाइलेमा’ के लिये भी चीन का विकल्प है।
ग्वादर पत्तन के बारे:
(i) ग्वादर को सुदूर पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में CPEC के हिस्से के रूप में विकसित किया जा रहा है।
(ii) ग्वादर को लंबे समय से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (People's Liberation Army Navy-PLAN) के संचालन हेतु उपयुक्त चीनी बेस के लिये स्थल के रूप में जाना जाता है।
(iii) चीन एक "रणनीतिक मज़बूत बिंदु" अवधारणा का अनुसरण करता हैजिसके तहत चीनी फर्मों द्वारा संचालित टर्मिनलों और वाणिज्यिक क्षेत्रों वाले रणनीतिक रूप से स्थित विदेशी बंदरगाहों का उपयोग इसकी सेना द्वारा किया जा सकता है।
(iv) इस तरह के "मज़बूत बिंदु" चीन के लिये हिंद महासागर की परिधि के साथ आपूर्ति, रसद और खुफिया केंद्रों का एक नेटवर्क बनाने की क्षमता प्रदान करते हैं।
(v) ग्वादर चीन के लिये तीन कारणों से महत्त्वपूर्ण है:
भारत के लिये निहितार्थ:
(i) बंगाल की खाड़ी में चीन का आर्थिक दाँव और यह नया व्यापार गलियारा इस क्षेत्र में एक बड़ी समुद्री उपस्थिति तथा नौसैनिक जुड़ाव का प्रतीक है, जो बदले में चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स को मज़बूती प्रदान करता है।
(ii) इस व्यापार गलियारे और चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के अलावा चीन, चीन-नेपाल आर्थिक गलियारे (CNEC) की भी योजना बना रहा है जो तिब्बत को नेपाल से जोड़ेगा।
भारत द्वारा चीन को प्रतिसंतुलित करने हेतु उठाए गए कदम:
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में तालिबान पर लाए गए एक संकल्प 2593 को भारत द्वारा अपनाया गया।
(i) फ्राँस, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा प्रायोजित इस संकल्प के पक्ष में भारत सहित 13 सदस्यों ने मतदान किया, जबकि इसके विपक्ष में कोई भी वोट नहीं पड़ा।
(ii) संकल्प को स्वीकार किया जाना सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अफगानिस्तान के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।
संकल्प 2593 के बारे में:
(i) संकल्प 1267 (1999) के अनुसार, नामित व्यक्तियों और संस्थाओं सहित यह अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्त्व को दोहराता है।
(ii) तालिबान से अफगानिस्तान छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिये सुरक्षित मार्ग की सुविधा प्रदान करने, मानवतावादियों को देश में प्रवेश की अनुमति देने, महिलाओं और बच्चों सहित मानवाधिकारों को बनाए रखने तथा समावेशी एवं बातचीत के ज़रिये राजनीतिक समझौता करने का आह्वान किया गया है।
रूस और चीन की तटस्थता:
(i) रूस ने इस संकल्प से स्वयं को अलग रखा क्योंकि इसमें आतंकी खतरों के बारे में पर्याप्त और विशिष्ट विवरण नहीं था, इसके अतिरिक्त संकल्प में अफगानों को निकालने से "ब्रेन ड्रेन" प्रभाव की बात नहीं की गई थी। साथ ही तालिबान के अधिग्रहण के बाद अफगान सरकार के अमेरिकी खातों को फ्रीज करने संबंधी अमेरिका के आर्थिक और मानवीय परिणामों को भी संकल्प के विवरण में संबोधित नहीं किया।
(ii) चीन ने रूस की कुछ चिंताओं को साझा किया। वह मानता हैकि वर्तमान अराजकता पश्चिमी देशों की "अव्यवस्थित वापसी" का प्रत्यक्ष परिणाम थी।
(iii) इसके अतिरिक्त रूस और चीन चाहते थे कि सभी आतंकवादी समूहों, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट (ISIS) और उइगर ईस्ट तुर्किस्तानइस्लामिक मूवमेंट (ETIM) को विशेष रूप से दस्तावेज़ में नामित किया जाए।
भारत के हालिया कदम:
(i) भारत ने विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और वरिष्ठ अधिकारियों के एक उच्च-स्तरीय समूह को भारत की तात्कालिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया है।
(ii) हाल ही में कतर में भारत के राजदूत ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख से मुलाकात की।
बहुपक्षीय संगठनों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्
(i) तालिबान के तहत अफगानिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व पर अनिश्चितता के साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में देश की सदस्यता को लेकर सवाल खड़ा हो गया है।
(ii) परंपरागत रूप से घरेलू राजनीतिक परिवर्तन के कारण देशों, क्षेत्रीय या वैश्विक प्लेटफार्मों की सदस्यता समाप्त नहीं होती है।
(iii) हालाँकि काठमांडू स्थित अंतर-सरकारी संगठन एकीकृत पर्वतीय विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre for Integrated Mountain Development-ICIMOD) में भी इसी तरह का सवाल उठने की संभावना है।
(i) भारत द्वारा 1988 प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता किये जाने की उम्मीद है जो तालिबान प्रतिबंधों की निगरानी करती है और अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के जनादेश का विस्तार करने संबंधी निर्णयन में भाग लेती है। इस दौरान भारत को रूस और चीन के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्राँस ब्लॉक की प्रतिस्पर्द्धी मांगों को भी संतुलित करना होगा।
(ii) भारत की अफगान नीति एक बड़े व्यवधान की स्थिति में है; वहाँ अपनी संपत्ति की रक्षा करने के साथ-साथ अफगानिस्तान में और उसके आसपास होने वाले 'ग्रेट गेम' में प्रासंगिक बने रहने के लिये भारत को तद्नुसार अपनी अफगानिस्तान नीति का पुनरावलोकन करना होगा।
हाल ही में तालिबान ने कहा हैकि अफगान लोग पाकिस्तान द्वारा डूरंड रेखा पर बनाई गई बाड़ (Fence) का विरोध करते हैं।
(i) डूरंड रेखा को 1893 में हिंदूकुश क्षेत्र में स्थापित किया गया, यह अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच आदिवासी भूमि से होकर गुज़रती है। आधुनिक समय में इसने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा को चिह्नित किया है।
(ii) डूरंड रेखा रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच 19वीं शताब्दी के ग्रेट गेम्स की एक विरासत है, जिसमें अफगानिस्तान को भयभीत अंग्रेज़ों
द्वारा पूर्व में रूसी विस्तारवाद के खिलाफ एक बफर ज़ोन के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
(iii) वर्ष 1893 में ब्रिटिश सिविल सेवक सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड और उस समय के अफगान शासक अमीर अब्दुर रहमान के बीच डूरंड रेखा
के रूप में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
(iv) द्वितीय अफगान युद्ध की समाप्ति के दो साल बाद 1880 में अब्दुर रहमान राजा बने, जिसमें अंग्रेज़ों ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया जो
अफगान साम्राज्य का हिस्सा थे। डूरंड के साथ उनके समझौते ने भारत के साथ अफगान "सीमा" पर उनके और ब्रिटिश भारत के "प्रभाव क्षेत्र" की सीमाओं का सीमांकन किया।
(v) ‘सेवन क्लॉज़’ एग्रीमेंट ने 2,670 किलोमीटर की रेखा को मान्यता दी, जो चीन के साथ सीमा से लेकर ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा तक फैली हुई है।
(v) इसने रणनीतिक खैबर दर्रा को भी ब्रिटिश पक्ष में कर दिया।
(vi) यह रेखा पश्तून आदिवासी क्षेत्रों से होकर गुज़रती है, जिससे गाँवों, परिवारों और भूमि को दो प्रकार से प्रभावित क्षेत्रों के बीच विभाजित किया जाता है।
(i) मैकमोहन रेखा
(ii) ब्रिटिश भारतीय सेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सर ‘आर्थर हेनरी मैकमोहन’ (जो ब्रिटिश भारत में एक प्रशासक भी थे) के नाम से प्रसिद्ध ‘मैकमोहन रेखा’ एक सीमांकन है जो तिब्बत और उत्तर-पूर्व भारत को अलग करती है।
(iii) इसे कर्नल मैकमोहन द्वारा 1914 के शिमला सम्मेलन में तिब्बत, चीन और भारत के बीच की सीमा के रूप में प्रस्तावित किया गया था।
(iv) यह हिमालय के शिखर के साथ भूटान की पूर्वी सीमा से शुरू होती है और ब्रह्मपुत्र नदी में तक पहुँचती है, जहाँ यह नदी अपने तिब्बती हिस्से से असम घाटी में निकलती है।
(v) इसे तिब्बती अधिकारियों और ब्रिटिश भारत द्वारा स्वीकार किया गया था तथा अब इसे भारत गणराज्य द्वारा आधिकारिक सीमा के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(vi) हालाँकि चीन मैकमोहन लाइन की वैधता को लेकर विवाद उत्पन्न करता रहा है।
(vii) चीन दावा करता हैकि तिब्बत एक संप्रभु सरकार नहीं है और इसलिये तिब्बत के साथ की गई कोई भी संधि अमान्य है।
(ix) पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) का संरेखण (Alignment) वर्ष 1914 की मैकमोहन रेखा के साथ ही है।
(i) इसने ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया।
(ii) इसका नाम इस लाइन के वास्तुकार सर सिरिल रैडक्लिफ के नाम पर रखा गया है, जो सीमा आयोग के अध्यक्ष भी थे।
(iii) रेडक्लिफ रेखा पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) और भारत के मध्य पश्चिम की तरफ तथा उपमहाद्वीप के पूर्वी हिस्से में भारत एवं पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के बीच खींची गई थी।
(iv) रेडक्लिफ रेखा का पश्चिमी भाग अभी भी भारत-पाकिस्तान सीमा के रूप में तथा पूर्वी भाग भारत-बांग्लादेश सीमा के रूप में कार्य करता है।
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री (PM) ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से छठे पूर्वी आर्थिक मंच (EEF) के पूर्ण सत्र को संबोधित किया।
प्रधानमंत्री के संबोधन की मुख्य बातें:
पूर्वी आर्थिक मंच के बारे में:
भारत-रूस संबंधों का महत्त्व:
(i) चीनी आक्रामकता के खिलाफ संतुलन: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रामकता ने भारत-चीन संबंधों की प्रगति को प्रभावित किया है, हालाँकि यह भारत-चीन के बीच तनाव को कम करने में रूस की क्षमता को भी दर्शाता है।
(ii) आर्थिक जुड़ाव के उभरते नए क्षेत्र: हथियार, हाइड्रोकार्बन, परमाणु ऊर्जा (कुडनकुलम), अंतरिक्ष (गगनयान) तथा हीरे जैसे सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा भारत और रूस के बीच आर्थिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों (जैसे- रोबोटिक्स, नैनोटेक, बायोटेक, खनन, कृषि- औद्योगिक एवं उच्च प्रौद्योगिकी) में अवसरों के उभरने की संभावना है।
(iii) यूरेशियन आर्थिक संघ को पुनर्जीवित करना: रूस यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन की वैधता के लिये भारत की सॉफ्ट पॉवर का लाभ उठाने के साथ शीत युद्ध के समय की तरह ही इस क्षेत्र पर अपने आधिपत्य को फिर से स्थापित करने का प्रयास करा रहा है।
(iv) आतंकवाद का मुकाबला: भारत और रूस साथ मिलकर अफगानिस्तान में अपनी पहुँच को बढ़ाने के लिये कार्य कर रहे हैं, साथ ही दोनों देशों ने ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) को शीघ्र ही अंतिम रूप दिये जाने की मांग की है।
(v) बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन: इसके अतिरिक्त रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
(vi) डिप्लोमेसी: रूस लंबे समय से भारत का मित्र रहा है; इसने न केवल भारत को एक दुर्जेय सैन्य प्रोफाइल बनाए रखने के लिये हथियार प्रदान किये बल्कि विभिन्न क्षेत्रीय मुद्दों पर अमूल्य राजनयिक समर्थन भी दिया।
(vii) रक्षा सहयोग: हालाँकि भारत जान-बूझकर अन्य देशों से अपनी नई रक्षा खरीद में विविधता लाया है, लेकिन इसके रक्षा उपकरण (60 से 70%) का बड़ा हिस्सा अभी भी रूस से है।
हाल ही में भारत और क्रोएशिया के विदेश मंत्रियों के बीच हुई बैठक में दोनों देशों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि हिंद-प्रशांत, अफगानिस्तान की स्थिति, आतंकवाद का मुकाबला करने और साझा आर्थिक हितों जैसे मुद्दों पर दोनों देशों की स्थिति काफी हद तक समान है।
बैठक की मुख्य बातें:
(i) पर्यटन एक बहुत ही महत्त्वपूर्णक्षेत्र है और दोनों ही देश हवाई संपर्क का विस्तार करने का प्रयास करेंगे।
(ii) दोनों का मानना हैकि रेलवे, फार्मास्यूटिकल्स, डिजिटल और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टर में काफी संभावनाएंँ विद्यमान हैं।
(iii) यूरोपीय संघ-भारत संबंध, अफगानिस्तान की स्थिति, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग तथा कोविड के बाद की रिकवरी सहित आपसी हित के कई विषयों पर भी इस बैठक में चर्चा की गई।
भारत-क्रोएशिया संबंधों के बारे में:
(i) क्रोएशिया अपनी भू-रणनीतिक स्थिति, यूरोपीय संघ और नाटो का सदस्य होने के साथ-साथ एड्रियाटिक समुद्र तट के माध्यम से यूरोप के लिये गेटवे के दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण मध्य यूरोपीय देश है।
(ii) पूर्व यूगोस्लाविया के दिनों से ही भारत और क्रोएशिया के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण रहे हैं।
(iii) भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टिटो, दोनों ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अग्रदूत थे।
(iv) क्रोएशिया के लोगों की भारत में गहरी दिलचस्पी है। ज़ाग्रेब विश्वविद्यालय में इंडोलॉजी विभाग छह दशकों से भी अधिक समय से अस्तित्व में है और एक दशक पहले भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) हिंदी पीठ की स्थापना की गई थी।
हाल ही में डीएनए साक्ष्य पूर्वावलोकन द्वारा खोजी गई एक नई टोपी, जो यह प्रमाणित करती हैकि यह नेपोलियन बोनापार्ट की थी, को हॉन्गकॉन्ग के एक नीलामी घर में प्रदर्शित किया गया है।
संक्षिप्त परिचय :
(i) नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त, 1769 को कोर्सिका (भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीप) की राजधानी अजाशियो ( Ajaccio) में हुआ था।
(ii) एक फ्राँसीसी सैन्य प्रमुख और सम्राट जिसने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप के अधिकांश हिस्से पर विजय प्राप्त की।
(iii) 5 मई, 1821 को सेंट हेलेना द्वीप पर उसका निधन हो गया।
नेपोलियन बोनापार्ट का उदय:
(i) फ्राँसीसी क्रांति: नेपोलियन बोनापार्ट फ्राँसीसी क्रांति के दौरान सेना के स्थापित रैंकों के माध्यम से शीघ्रता से पदोन्नत हुआ।
(ii) कैम्पो फॉर्मियो की संधि (1797): उत्तरी इटली में ऑस्ट्रियाई लोगों के खिलाफ जीत के बाद उसने कैंपो फॉर्मियो (Campo Formio) की संधि पर विचार किया।
(iii) नील नदी का युद्ध (1798): उसने मिस्र (1798-99) को जीतने का प्रयास किया, लेकिन नील नदी के युद्ध में होरेशियो नेल्सन के नेतृत्व में अंग्रेज़ों ने उसे हरा दिया।
(iv) 18 ब्रूमेयर का तख्तापलट (1799): इस घटना में नेपोलियन एक ऐसे समूह का हिस्सा था जिसने फ्राँसीसी निर्देशिका को सफलतापूर्वक उखाड़ फेंका।
(v) मारेंगो की लड़ाई (1800): नेपोलियन की सेना ने फ्राँस के स्थायी शत्रुओं में से एक ऑस्ट्रिया को हराया और उसे इटली से बाहर कर दिया।
नेपोलियन बोनापार्ट का शासनकाल:
(i) नेपोलियन से संबंधित युद्ध: वर्ष 1803 से 1815 तक फ्राँस नेपोलियन से संबंधित युद्धों में लगा हुआ था, जो कि यूरोपीय देशों के विभिन्न गठबंधनों के साथ प्रमुख संघर्षों की एक शृंखला है।
(ii) लुइसियाना खरीद: वर्ष 1803 में आंशिक रूप से भविष्य के युद्धों के लिये धन जुटाने के साधन के रूप में नेपोलियन ने उत्तरी अमेरिका में फ्राँस के लुइसियाना क्षेत्र को नए स्वतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका को $15 मिलियन में बेच दिया, इस लेन-देन को बाद में ‘लुइसियाना’ खरीद के रूप में जाना जाने लगा।
(iii) ट्रफैलगर की लड़ाई: अक्तूबर 1805 में अंग्रेज़ों ने ट्रफैलगर की लड़ाई में नेपोलियन के बेड़े का सफाया कर दिया।
नेपोलियन द्वारा शुरू किये गए सुधार:
(i) नेपोलियन संहिता: 21 मार्च, 1804 को नेपोलियन ने नेपोलियन संहिता की स्थापना की, जिसे फ्राँसीसी नागरिक संहिता के रूप में जाना जाता है, जिसके कुछ हिस्से आज भी दुनिया भर में उपयोग में हैं।
(ii) दासता और सामंतवाद की समाप्ति: नेपोलियन बोनापार्ट ने लोगों को स्वतंत्र करने के लिये देश में "दासता और सामंतवाद" को समाप्त कर दिया।
(iii) शिक्षा: नेपोलियन ने स्कूलों की एक विस्तृत प्रणाली की स्थापना की, जिसे लाइसी (lycées) कहा जाता है, जो अभी भी उपयोग में है। वह सार्वभौमिक शिक्षा का प्रस्तावक था।
नेपोलियन का पतन:
(i) महाद्वीपीय प्रणाली: यह ब्रिटिश वाणिज्य एवं व्यापार को समाप्त करके ग्रेट ब्रिटेन को पंगु बनाने के लिये नेपोलियन द्वारा डिज़ाइन की गई नाकाबंदी थी। यह काफी हद तक अप्रभावी साबित हुई और अंततः नेपोलियन के पतन का कारण बनी।
(ii) प्रायद्वीपीय युद्ध (1807–1814): यह नेपोलियन के सैन्य अभियानों के दौरान इबेरियन प्रायद्वीप के नियंत्रण के लिये फ्रांँस की आक्रमणकारी नीति के खिलाफ स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और पुर्तगाल द्वारा लड़ा गया सैन्य संघर्षथा।
(iii) रूस का आक्रमण: नेपोलियन ने यूनाइटेड किंगडम पर शांति स्थापित करने के लिये दबाव बनाने को ब्रिटिश व्यापारियों के साथ व्यापार बंद करने हेतु रूस के ज़ार अलेक्जेंडर को गुप्त रूप से मजबूर किया।
(iv) वर्ष 1812 में रूस के विनाशकारी आक्रमण के बाद फ्राँसीसी प्रभुत्व का तेज़ी से पतन हुआ। वर्ष 1812 में कई कारणों के चलते नेपोलियन रूस पर विजय प्राप्त करने में विफल रहा, जैसे- दोषपूर्ण रसद, खराब अनुशासन, बीमारी,और प्रतिकूल मौसम ।
हाल ही में श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मुद्रा मूल्यह्रास और तेज़ी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार को रोकने के लिये आर्थिक आपातकाल की घोषणा की है।
श्रीलंकाई आर्थिक संकट के लिये ज़िम्मेदार कारक:
(i) अंडरपरफॉर्मिंग टूरिज़्म इंडस्ट्री: पर्यटन उद्योग जो देश के सकल घरेलू उत्पाद के 10% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है और विदेशी मुद्रा का स्रोत है, कोरोनावायरस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
(ii) मुद्रा का मूल्यह्रास: विदेशी मुद्रा की आपूर्ति के अत्यधिक कम होने के साथ श्रीलंकाई लोगों को सामान आयात करने के लिये आवश्यक विदेशी मुद्रा खरीदने हेतु जितना पैसा खर्च करना पड़ा है, वह बढ़ गया है।
(iii) बढ़ती मुद्रास्फीति: श्रीलंका अपनी बुनियादी खाद्य आपूर्ति, जैसे- चीनी, डेयरी उत्पाद, गेहूँ, चिकित्सा आपूर्ति को पूरा करने के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
(iv) विदेशी मुद्रा का कम होना: महामारी ने विदेशी मुद्रा आय के सभी प्रमुख स्रोतों जैसे- निर्यात, श्रमिकों के प्रेषण आदि को प्रभावित किया है।
(v) खाद्यान में कमी: श्रीलंका सरकार का हाल ही में रासायनिक उर्वरकों के आयात पर प्रतिबंध लगाने और "केवल जैविक" दृष्टिकोण अपनाने का निर्णय।
आपातकालीन संकट के तहत उठाए गए कदम:
(i) आपातकालीन प्रावधान सरकार को आवश्यक खाद्य पदार्थों के लिये खुदरा मूल्य निर्धारित करने और व्यापारियों से स्टॉक ज़ब्त करने की अनुमति देते हैं।
(ii) आपातकालीन कानून अधिकारियों को वारंट के बिना लोगों को हिरासत में लेने, संपत्ति को ज़ब्त करने, किसी भी परिसर में प्रवेश करने और तलाशी लेने, कानूनों को निलंबित करने तथा आदेश जारी करने में सक्षम बनाता है, इन पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
(iii) सेना उस कार्रवाई की निगरानी करेगी जो अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की शक्ति देती हैकि आवश्यक वस्तुओं को सरकार द्वारा गारंटीकृत कीमतों पर बेचा जाए।
कदम की आलोचना:
(i) खतरा यह हैकि असंतोष को दबाने की वर्तमान सरकार की प्रवृत्ति को देखते हुए विरोध और अन्य लोकतांत्रिक कार्रवाइयों को रोकने के लिये आपातकालीन नियमों का इस्तेमाल किया जाएगा।
(ii) श्रीलंका के पास एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली या राशन कार्ड नहीं है जो यह सुनिश्चित कर सके कि आवश्यक सामान सभी उपभोक्ताओं तक पहुँच सके।
(iii) राज्य संस्थानों के बढ़ते सैन्यीकरण संबंधी मुद्दे भी चिंता का विषय हैं।
(iv) श्रीलंका में यह आर्थिक आपातकाल भारतीय संविधान के तहत वित्तीय आपातकाल से बहुत अलग है।
(i) घोषणा का आधार: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-360 राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है यदि वह संतुष्ट हैकि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, जिसके कारण भारतीय राज्यक्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता या क्रेडिट को खतरा है।
(ii) संसदीय अनुमोदन और अवधि: वित्तीय आपातकाल की घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा इसके जारी होने की तारीख से दो महीने के भीतर अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है।
(iii) वित्तीय आपातकाल का प्रभाव
हाल ही में भारत और अमेरिका ने एक एयर-लॉन्च्ड अनमैन्ड एरियल व्हीकल (ALUAV) या ड्रोन को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिये एक परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये हैं जिसे विमान से लॉन्च किया जा सकता है।
परियोजना समझौते (PA) के बारे में:
(i) लक्ष्य: सहयोग के तहत दोनों देश ALUAV प्रोटोटाइप के सह-विकास के लिये सिस्टम के डिज़ाइन, विकास, प्रदर्शन, परीक्षण और मूल्यांकन की दिशा में काम करेंगे।
(i) भारतीय प्रतिभागी: यह परियोजना समझौता (PA), वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला, भारतीय वायु सेना तथा रक्षा अनुसंधान और विकास
संगठन (DRDO) के बीच सहयोग हेतु रूपरेखा तैयार करता है।
(ii) निष्पादन: भारतीय और अमेरिकी वायु सेना के साथ परियोजना समझौता (PA) के निष्पादन के लिये डीआरडीओ में स्थापित वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (ADE) तथा वायु सेना अनुसंधान प्रयोगशाला ( AFRL ) में स्थापित एयरोस्पेस सिस्टम निदेशालय प्रमुख संगठन हैं।
(iii) महत्त्व: यह समझौता रक्षा उपकरणों के सह-विकास के माध्यम से दोनों राष्ट्रों के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग को मज़बूत करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल (DTTI):
(i) गठन: ‘रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल’ (DTTI) को वर्ष 2012 में सैन्य प्रणालियों के सह-उत्पादन और सह-विकास के लिये एक महत्त्वाकांक्षी पहल के रूप में घोषित किया गया था, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद इस पहल में वास्तव में कोई प्रगति नहीं की जा सकी है।
(ii) उद्देश्य: पारंपरिक ‘क्रेता-विक्रेता’ की धारणा के बजाय सहयोगी दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ते हुए अमेरिका और भारत के रक्षा औद्योगिक आधार को मज़बूत करना।
(iii) परियोजाएँ: DTTI के तहत परियोजनाओं की पहचान निकट, मध्यम और दीर्घकालिक के रूप में की गई है।
(iv) संयुक्त कार्यसमूह: DTTI के तहत संबंधित डोमेन में पारस्परिक रूप से सहमत परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने हेतु थल, नौ, वायु और विमान वाहक प्रौद्योगिकियों पर संयुक्त कार्यसमूहों की स्थापना की गई है।
भारत और अमेरिका के बीच अन्य प्रमुख समझौते
(i) मूलभूत विनिमय तथा सहयोग समझौता ( Basic Exchange and Cooperation Agreement - BECA) बड़े पैमाने पर भू-स्थानिक खुफिया जानकारी और रक्षा के लिये मानचित्रों एवं उपग्रह छवियों पर जानकारी साझा करने से संबंधित है।
(ii) संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security AgreementCOMCASA) पर वर्ष 2018 में हस्ताक्षर किये गए थे।
(iii) लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर पूरे 14 साल बाद वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किये गए थे।
(iv) वर्ष 2002 में सरकार द्वारा सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
हाल ही में प्रधानमंत्री ने 13वें ब्रिक्स वार्षिक शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की, जो कि वर्चुअल माध्यम से आयोजित किया गया था।
प्रधानमंत्री का संबोधन
ब्रिक्स आतंकवाद विरोधी कार्ययोजना
यह आतंकवाद विरोधी सहयोग के क्षेत्रों के प्रति ब्रिक्स देशों के दृष्टिकोण और कार्यों को परिभाषित करती हैजिसमें शामिल हैं: कट्टरता और ऑनलाइन आतंकवादी खतरों का मुकाबला, सीमा प्रबंधन, सूचना/खुफिया साझाकरण आदि।
स्वीकृत दिल्ली घोषणा:
(i) घोषणा में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) सहित संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों में सुधार का आह्वान किया गया।
(ii) अफगानिस्तान के अलावा ब्रिक्स नेताओं ने म्याँमार, सीरिया में संघर्ष, कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव, इज़रायल-फिलिस्तीन हिंसा और अन्य क्षेत्रीय विवादों को भी उठाया।
कोविड-19 संबंधी
ब्रिक्स
(i) ब्रिक्स दुनिया की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
(ii) ब्रिक्स विश्व के पाँच सबसे बड़ेविकासशील देशों को एक साथ लाता है, जो वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24% और वैश्विक व्यापार का 16% प्रतिनिधित्व करता है।
(iii) ब्रिक्स शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता प्रतिवर्ष B-R-I-C-S के क्रमानुसार सदस्य देशों के सर्वोच्च नेता द्वारा की जाती है।
(iv) वर्ष 2014 में ब्राज़ील के फोर्टालेजा में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान BRICS नेताओं ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये। उन्होंने सदस्यों को अल्पकालिक लिक्विडिटी सहायता प्रदान करने हेतु ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (BRICS Contingent Reserve Arrangement) पर भी हस्ताक्षर किये।
हाल ही में अमेरिकी ऊर्जा मंत्रालय के साथ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान संशोधित ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ (SCEP) को लॉन्च किया गया।
SCEP को वर्ष 2021 की शुरुआत में आयोजित ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में दोनों देशों द्वारा घोषित ‘यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा 2030 पार्टनरशिप’ के तहत लॉन्च किया गया था।
(i) यूएस-इंडिया एजेंडा 2030 पार्टनरशिप:
(ii) संशोधित सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (SCEP):
(iii) भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु ऊर्जासहयोग की समीक्षा:
(iv) ‘गैस टास्क फोर्स’ का रूपांतरण:
(v) ‘इंडिया एनर्जी मॉडलिंग फोरम’ का संस्थानीकरण:
(vi) ‘(PACE)-R’ पहल के दायरे का विस्तार:
(vii)अमेरिका-भारत संबंधों पर हालिया पहल:
हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश एवं रक्षा मंत्रियों ने नई दिल्ली में पहली भारत-ऑस्ट्रेलिया 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता में हिस्सा लिया।
(i) इंडो-पैसिफिक पर फोकस: एक खुला, मुक्त, समृद्ध और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र [यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के अनुरूप] बनाए रखने हेतु सहमति व्यक्त की गई।
(ii) सप्लाई चेन रेज़ीलियेंस इनीशिएटिव पर ध्यान देना: महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य, प्रौद्योगिकी तथा अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये विश्वसनीय व भरोसेमंद व्यापारिक भागीदारों के बीच आपूर्ति शृंखला में विविधता लाने हेतु बहुपक्षीय और क्षेत्रीय तंत्र के माध्यम से मिलकर काम करना।
(iii) गति को बनाए रखना: इसकी निरंतरता को बनाए रखने के लिये इस प्रारूप के तहत प्रत्येक दो वर्षों में कम-से-कम एक बार मिलने का फैसला लिया गया।
(iv) अफगानिस्तान पर साझा दृष्टिकोण: हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्ज़ा किये जाने के बाद अफगान संकट के संदर्भ में दोनों देशों द्वारा एकसमान दृष्टिकोण प्रदर्शित किया गया।
(v) आतंकवाद का मुकाबला करना: आतंकवाद और कट्टरपंथ का मुकाबला करने के लिये तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (Comprehensive Convention on International Terrorism- CCIT) पर एक साथ मिलकर काम करना जारी रखना।\
(vi) द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना: द्विपक्षीय व्यापार, वैक्सीन, रक्षा उत्पादन, सामुदायिक संपर्क, समुद्री सुरक्षा, साइबर और जलवायु सहयोग जैसे क्षेत्रों में संबंधों को मज़बूत करने पर चर्चा की गई।
(vii) कोविड-19 पर सहयोग: क्वाड फ्रेमवर्क के तहत वैक्सीन निर्माण में सहयोग को और मज़बूत करने तथा इंडो-पैसिफिक भागीदारों को गुणवत्तापूर्णवैक्सीन प्रदान करने हेतु समझौता किया गया।
(viii) दोनों देशों के शोधकर्त्ता ऑस्ट्रेलिया-भारत रणनीतिक अनुसंधान कोष द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं के माध्यम से कोविड-19 स्क्रीनिंग को आगे बढ़ाने और वायरस का भविष्य के स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन करने के लिये मिलकर काम कर रहे हैं।
(ix) रक्षा संबंध: ऑस्ट्रेलिया ने भारत को भविष्य के टैलिसमैन सेबर अभ्यासों (Talisman Sabre Exercises) में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया है जो अंतर-संचालनीयता को बढ़ाएगा, जबकि दोनों पक्ष रसद समर्थन के मामले में दीर्घकालिक पारस्परिक व्यवस्था का पता लगाएंगे।
(x) आर्थिक समझौते: द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते को अंतिम रूप देने के लिये नए सिरे से समर्थन व्यक्त किया गया।
(xi) अन्य: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता हेतु भारतीय उम्मीदवारी के समर्थन की पुष्टि करते हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को ऑस्ट्रेलियाई 1 मिलियन डॉलर और आपदा अनुकूल अवसंरचना के लिये गठबंधन को ऑस्ट्रेलियाई 10 मिलियन डॉलर का अनुदान (दोनों भारत के नेतृत्व वाली पहल)।
(i) 2+2 वार्ता दोनों देशों के मध्य उच्चतम स्तर का संस्थागत तंत्र है।
(ii) ‘टू-प्लस-टू वार्ता’ भारत-अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों के नेतृत्त्व में आयोजित की गई।
(iii) भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ ‘टू-प्लस-टू’ स्तर की वार्ता आयोजित की जाती है।
(i) भू-राजनीतिक संबंध: पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण चीन सागर में व्यापक द्वीप निर्माण सहित चीन की कार्रवाइयों ने विश्व के कई देशों की चिंता बढ़ा दी है।
(ii) रक्षा संबंध: भारत-ऑस्ट्रेलिया संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (AUSINDEX), Ex AUSTRA HIND (सेना के साथ द्विपक्षीय अभ्यास) पिच ब्लैक सैन्य अभ्यास (ऑस्ट्रेलिया का बहुपक्षीय हवाई युद्ध प्रशिक्षण अभ्यास) और मालाबार अभ्यास।
(iii) बहुपक्षीय सहयोग:
(iv) अन्य राजनयिक जुड़ाव: एक असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर सितंबर 2014 में हस्ताक्षर किये गए थे।
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत (जलवायु) ने भारत के केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री के साथ दोनों देशों के बीच ‘क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग’ (CAFMD) शुरू किया है।
क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग’
(i) यह अप्रैल 2021 में ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में लॉन्च किये गए ‘भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030’ साझेदारी का हिस्सा है।
(ii) यह दोनों देशों को जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में सहयोग को नवीनीकृत करने के साथ ही इससे संबंधित वित्तीय पहलुओं को संबोधित करने और पेरिस समझौते के तहत परिकल्पित अनुदान एवं रियायती वित्त के रूप में जलवायु वित्त प्रदान करने का अवसर देगा।
(iii) साथ ही यह प्रदर्शित करने में भी मदद करेगा कि किस प्रकार दुनिया राष्ट्रीय परिस्थितियों और सतत् विकास प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए समावेशी एवं लचीले आर्थिक विकास के साथ तेज़ी से जलवायु कार्रवाई को संरेखित कर सकती है।
CAFM के स्तंभ:
(i) जलवायु कार्रवाई स्तंभ:
(ii) वित्त स्तंभ:
(iii) अनुकूलन और लचीलापन:
भारत के लिये अवसर:
(i) ऊर्जासंक्रमण (Energy Transition) में निवेश करने हेतु कभी भी बेहतर समय नहीं रहा। अक्षय ऊर्जा पहले से कहीं ज़्यादा सस्ती है।
(ii) वास्तव में विश्व में कहीं और की तुलना में भारत में सोलर फार्मबनाना सस्ता है।
(iii) वैश्विक स्तर पर निवेशक अब स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं और महामारी के सबसे बुरे दौर के बाद ऊर्जासंक्रमण पहले से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा है तथा अब एक वर्ष में निवेश किये गए 8.4 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के महामारी पूर्व की स्थिति के रिकॉर्ड को तोड़ने के लिये तैयार है।
(iv) अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान हैकि यदि भारत स्वच्छ ऊर्जा के अवसर का लाभ उठाता है, तो यह बैटरी और सौर पैनलों हेतु विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार बन सकता है।
हाल ही में अमेरिका ने घोषणा की कि क्वाड देशों की पहली व्यक्तिगत बैठक अमेरिका के न्यूयॉर्क में आयोजित होगी। बैठक में चारों देशों (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका) के प्रमुख शामिल होंगे।
क्वाड का गठन :
(i) हिंद महासागर सुनामी (2004) के पश्चात् भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने आपदा राहत प्रयासों में सहयोग करने के लिये एक अनौपचारिक गठबंधन बनाया।
(ii) वर्ष 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने गठबंधन को चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता या क्वाड के रूप में औपचारिक रूप प्रदान किया ।
(iii) क्वाड को एशियन आर्क ऑफ डेमोक्रेसी स्थापित करना था, लेकिन इसके सदस्यों के बीच सामंजस्य की कमी के कारण बाधा उत्पन्न हुई और आरोप हैकि यह अधिकांशत: चीन विरोधी समूह था।
(iv) वर्ष 2017 में चीन के बढ़ते खतरे का सामना करते हुए चार देशों ने क्वाड को पुनर्जीवित किया, इसके उद्देश्यों को व्यापक बनाया और एक तंत्र का निर्माण किया जिसका उद्देश्य धीरे-धीरे एक नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करना था।
(v) वर्ष 2020 में भारत-अमेरिका-जापान त्रिपक्षीय मालाबार नौसैनिक अभ्यास का विस्तार ऑस्ट्रेलिया को शामिल करने के लिये किया गया, जो वर्ष 2017 में इसके पुनरुत्थान के बाद से क्वाड के पहले आधिकारिक समूह को चिह्नित करता है।
(vi) मार्च 2021 में क्वाड समूह के नेताओं ने पहली बार आभासी शिखर-स्तरीय बैठक में डिजिटल रूप से मुलाकात की और बाद में 'द स्पिरिट ऑफ द क्वाड' शीर्षक से एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें समूह के दृष्टिकोण और उद्देश्यों को रेखांकित किया गया था।
क्वाड के उद्देश्य:
चीन के साथ क्वाड का संबंध:
(i) क्वाड के प्रत्येक सदस्य को दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्रवाइयों और ‘वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट’ जैसी पहलों के माध्यम से अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने के प्रयासों से खतरा है।
(ii) दूसरी ओर चीन क्वाड के अस्तित्व को स्वयं को घेरने की एक बड़ी रणनीति के हिस्से के रूप में देखता है और उसने समूह के साथ सहयोग करने से बचने के लिये बांग्लादेश जैसे देशों पर दबाव डाला है।
क्वाड से संबंधित मुद्दे:
(i) अपरिभाषित दृष्टि: सहयोग की संभावना के बावजूद क्वाड परिभाषित रणनीतिक मिशन के बिना एक तंत्र बना हुआ है।
(ii) समुद्री समूहन: इंडो-पैसिफिक पर पूरा ध्यान क्वाड को एक भूमि-आधारित समूह के बजाय एक समुद्र का हिस्सा बनाता है, यह सवाल उठता हैकि क्या सहयोग एशिया-प्रशांत और यूरेशियन क्षेत्रों तक फैला हुआ है।
(iii) भारत की गठबंधन प्रणाली का विरोध: तथ्य यह हैकि भारत एकमात्र सदस्य है जो संधि गठबंधन प्रणाली के खिलाफ है, इसने एक मज़बूत चतुष्पक्षीय जुड़ाव बनाने की प्रगति को धीमा कर दिया है।
आगे की राह
(i) स्पष्ट दृष्टि की आवश्यकता: क्वाड राष्ट्रों को सभी के आर्थिक एवं सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक व्यापक ढाँचे में इंडो- पैसिफिक विज़न को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की ज़रूरत है।
(ii) क्वाड का विस्तार: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के कई अन्य साझेदार हैं, भारत ऐसे में इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देशों को इस समूह में शामिल होने के लिये आमंत्रित कर सकता है।
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