परिचय
जलवायु उस मौसम की स्थितियों और परिवर्तनों का कुल योग है जो एक बड़े क्षेत्र में लंबे समय (तीस वर्षों से अधिक) तक होते हैं।
मौसम किसी क्षेत्र में किसी भी समय के लिए वायुमंडल की स्थिति को संदर्भित करता है।
मौसम और जलवायु
मौसम को एक विशेष दिन में बाहर हो रही घटनाओं के रूप में सोचें—चाहे वह गर्म, ठंडा, बारिश वाला या हवा वाला हो। दूसरी ओर, जलवायु लंबे समय तक औसत मौसम की स्थितियों को संदर्भित करती है।
मौसम के तत्व
ये वे चीजें हैं जो हमारे मौसम और जलवायु का निर्माण करती हैं:
ऋतुएं
एक वर्ष में, हम मौसम में पैटर्न देखते हैं, और हम वर्ष को ऋतुओं में विभाजित करते हैं:
भारत में विविधता
भारत विविध है, और मौसम इसकी गवाही देता है:
विविधता में एकता
भारतीय विभिन्नताओं के बावजूद एकता दिखाते हैं:
सरल शब्दों में, मौसम दिन-प्रतिदिन बदलता है, लेकिन हम हफ्तों और महीनों में पैटर्न देख सकते हैं, जो हमारे अनुभव किए गए विभिन्न ऋतुओं की ओर ले जाता है। और विविध मौसम के बावजूद, भारतीय अपने-अपने तरीकों से एक साथ आते हैं।
भारत के जलवायु को निर्धारित करने वाले कारक
भारत की जलवायु कई कारकों द्वारा नियंत्रित होती है, जिन्हें व्यापक रूप से दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है-
(क) स्थान और राहत से संबंधित कारक
इसलिए, भारत का मौसम इसके स्थान, भूमि के आकार और महासागर के निकटता का मिश्रण है।
(b) वायु दबाव और वायु से संबंधित कारक
1. वायु दबाव और वायु:
2. ऊपरी वायु संचलन और वैश्विक मौसम:
3. पश्चिमी चक्रवात और उष्णकटिबंधीय अवसाद:
तो, सरल शब्दों में, हमारे चारों ओर का वायु दबाव और वायु, वैश्विक स्तर पर ऊपरी वायु आंदोलनों, और चक्रवातों तथा अवसादों का प्रभाव सभी मिलकर भारत में सर्दियों और गर्मियों के दौरान अनुभव किए जाने वाले विभिन्न मौसम की परिस्थितियों को उत्पन्न करते हैं।
सरल शब्दों में, सर्दियों में, केंद्रीय एशिया के ऊपर एक विशाल हवा का ढेर सूखी हवा को दक्षिण की ओर धकेलता है। यह सूखी हवा उत्तर-पश्चिमी भारत में सामान्य हवाओं से मिलती है, मौसम को प्रभावित करती है। कभी-कभी, यह मिलन बिंदु पूर्व की ओर स्थानांतरित होता है, उत्तर-पश्चिमी और उत्तरी भारत के बड़े हिस्से को प्रभावित करता है।
सरल शब्दों में, सर्दियों में, केंद्रीय एशिया के ऊपर एक विशाल हवा का ढेर भारत की ओर सूखी और ठंडी हवा को धकेलता है। यह सूखी हवा उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य हवाओं के साथ मिलती है, और कभी-कभी यह क्षेत्र के बड़े हिस्से को कवर करती है।
सरल शब्दों में, सर्दियों में, हमें पश्चिम से विक्षोभ मिलते हैं, जबकि बंगाल की खाड़ी और भारतीय महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात कुछ तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा और तेज़ हवाएँ लाते हैं।
जुलाई में, ITCZ लगभग 20ºN (गंगा के मैदान के ऊपर) होता है, जिसे मानसून ट्रफ कहा जाता है। यह ट्रफ उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में एक थर्मल निम्न बनाता है। ITCZ का स्थानांतरण दक्षिणी गोलार्ध से व्यापारिक हवाओं को भूमध्य रेखा (40ºE से 60ºE) को पार कराकर दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बहने के लिए प्रेरित करता है, जिससे दक्षिण-पश्चिम मानसून बनता है।
सर्दियों में, ITCZ दक्षिण की ओर स्थानांतरित होता है। यह स्थानांतरण हवाओं को उलट देता है, जो उत्तर-पूर्व से दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हैं। इन हवाओं को उत्तर-पूर्व मानसून कहा जाता है।
सरल शब्दों में, ITCZ मानसून के मौसम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जुलाई में, यह दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रेरित करता है, जबकि सर्दियों में, इसका दक्षिण की ओर स्थानांतरण उत्तर-पूर्व मानसून लाता है।
मध्य एशिया में बड़ा वायु पर्वत: कल्पना करें कि मध्य और पश्चिमी एशिया के ऊपर एक विशाल वायु पर्वत है। यह "वायु पर्वत" भारत के सर्दी के मौसम को प्रभावित करता है।
उत्तर से ठंडी, शुष्क हवा: सोचें कि हवा हिमालय के नीचे उत्तर से भारत की ओर एक नदी की तरह बह रही है। यह हवा शुष्क है और क्षेत्र में ठंडक लाती है।
उत्तर-पश्चिम भारत में नियमित हवाओं से मिलन: अब, इस शुष्क हवा को उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य हवाओं से मिलते हुए देखें। कभी-कभी, यह मिलन बिंदु स्थानांतरित होता है। जब ऐसा होता है, तो शुष्क हवा अधिक क्षेत्रों को कवर करती है, यहां तक कि मध्य गंगा घाटी तक पहुंच जाती है।
सरल शब्दों में, सर्दियों के दौरान, मध्य एशिया के ऊपर एक विशाल वायु का ढेर भारत की ओर शुष्क और ठंडी हवा को धकेलता है। यह शुष्क हवा उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य हवाओं के साथ मिलती है, और कभी-कभी यह क्षेत्र का बड़ा हिस्सा कवर करती है।
सर्दियों के चक्रवात: कल्पना करें कि सर्दियों के दौरान भारत में पश्चिम और उत्तर-पश्चिम से तूफानों जैसी विघटनाएं आ रही हैं। ये विघटन भूमध्य सागर के ऊपर शुरू होती हैं और एक तेज़ बहने वाली वायु धारा, जिसे पश्चिमी जेट स्ट्रीम कहा जाता है, द्वारा लाई जाती हैं।
गर्म रातें संकेत दे सकती हैं कि ये चक्रवात रास्ते में हैं।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात: अब, कल्पना करें कि बंगाल की खाड़ी और भारतीय महासागर के गर्म जल के ऊपर बड़े तूफान बन रहे हैं। इन तूफानों को उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है और ये शक्तिशाली होते हैं, जिनमें तेज़ हवाएं और भारी वर्षा होती है।
ये अक्सर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के तटों को प्रभावित करते हैं। इनकी तीव्र हवाओं और भारी बारिश के कारण, ये चक्रवात बहुत विनाशकारी हो सकते हैं।
सरल शब्दों में, सर्दियों के दौरान, हमें पश्चिम से विघटन मिलते हैं, जबकि बंगाल की खाड़ी और भारतीय महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात कुछ तटीय क्षेत्रों में भारी बारिश और तेज़ हवाएं लाते हैं।
ITCZ को एक निम्न-दाब क्षेत्र के रूप में सोचें, जो भूमध्यरेखा पर व्यापारिक हवाओं के मिलने से बनता है, जिससे हवा ऊपर उठती है। इसे प्रभावित करने वाले दो कारक हैं:
जुलाई - दक्षिण-पश्चिम मानसून: जुलाई में, ITCZ लगभग 20ºN (गंगा के मैदान के ऊपर) होता है, जिसे मानसून ट्रफ कहा जाता है। यह ट्रफ उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में एक थर्मल निम्न बनाता है।
ITCZ का स्थानांतरण दक्षिणी गोलार्ध से व्यापारिक हवाओं को भूमध्यरेखा को पार कराने के लिए प्रेरित करता है (40ºE से 60ºE) और कोरिओलिस बल के कारण दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बहता है, जिससे दक्षिण-पश्चिम मानसून बनता है।
सर्दी - उत्तर-पूर्वी मानसून: सर्दियों में, ITCZ दक्षिण की ओर स्थानांतरित होता है। इस स्थानांतरण के कारण हवाएं उलट जाती हैं, जो उत्तर-पूर्व से दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हैं। इन हवाओं को उत्तर-पूर्वी मानसून कहा जाता है।
सरल शब्दों में, ITCZ मानसून के मौसम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जुलाई में, यह दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रोत्साहित करता है, जबकि सर्दियों में, इसका दक्षिण की ओर स्थानांतरण उत्तर-पूर्वी मानसून लाता है।
सरल शब्दों में, सर्दियों के दौरान, मध्य एशिया के ऊपर एक विशाल वायु का ढेर भारत की ओर शुष्क और ठंडी हवा को धकेलता है। यह शुष्क हवा उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य हवाओं के साथ मिलती है, और कभी-कभी यह क्षेत्र का बड़ा हिस्सा कवर करती है।
सर्दियों में, भारत में पश्चिम और उत्तर-पश्चिम से आ रहे विक्षोभों की कल्पना करें। ये विक्षोभ भूमध्य सागर के ऊपर से शुरू होते हैं और एक तेज़ बहाव वाली हवा के धार, जिसे हम वेस्टर्न जेट स्ट्रीम कहते हैं, द्वारा लाए जाते हैं। गर्म रातें यह संकेत देती हैं कि ये चक्रवात हमारे पास आ रहे हैं।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बात करें, तो कल्पना करें कि बड़े तूफान बंगाल की खाड़ी और भारतीय महासागर के गर्म जल पर बन रहे हैं। ये तूफान उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहलाते हैं और ये शक्तिशाली होते हैं, जिनमें तेज़ हवाएँ और भारी वर्षा होती है। ये अक्सर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और उड़ीसा के तटों पर हमला करते हैं। इनकी तीव्र हवाओं और भारी बारिश के कारण, ये चक्रवात बहुत विनाशकारी हो सकते हैं।
सरल शब्दों में, सर्दियों में हमें पश्चिम से विक्षोभ मिलते हैं, जबकि बंगाल की खाड़ी और भारतीय महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात कुछ तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा और तेज़ हवाएँ लाते हैं।
ITCZ को एक निम्न-दाब क्षेत्र के रूप में सोचें जो भूमध्य रेखा पर होता है, जहाँ व्यापारिक हवाएँ मिलती हैं, जिससे हवा ऊपर उठती है। इसे प्रभावित करने वाले दो कारक हैं:
जुलाई - दक्षिण-पश्चिम मानसून: जुलाई में, ITCZ लगभग 20ºN (गंगा के मैदान के ऊपर) होता है, जिसे मानसून ट्रफ के रूप में जाना जाता है। यह ट्रफ उत्तरी और उत्तर-पश्चिम भारत पर एक थर्मल निम्नता बनाने में मदद करता है। ITCZ का स्थानांतरण दक्षिणी गोलार्ध से व्यापारिक हवाओं को भूमध्य रेखा को पार करने और दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बहने के लिए प्रेरित करता है, जिससे दक्षिण-पश्चिम मानसून बनता है।
सर्दी - उत्तर-पूर्व मानसून: सर्दियों में, ITCZ दक्षिण की ओर स्थानांतरित होता है। इस स्थानांतरण के कारण हवाएँ उलट जाती हैं, जो उत्तर-पूर्व से दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम की ओर बहती हैं। इन हवाओं को उत्तर-पूर्व मानसून कहा जाता है। सरल शब्दों में, ITCZ मानसून के मौसमों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जुलाई में, यह दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रोत्साहित करता है, जबकि सर्दियों में, इसका दक्षिण की ओर आंदोलन उत्तर-पूर्व मानसून लाता है।
सरल शब्दों में, सर्दियों में हमें पश्चिम से विक्षोभ मिलते हैं, जबकि बंगाल की खाड़ी और भारतीय महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवात कुछ तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा और तेज़ हवाएँ लाते हैं।
ITCZ को एक निम्न-दाब क्षेत्र के रूप में सोचें जो भूमध्य रेखा पर होता है, जहाँ व्यापारिक वायु मिलती हैं, जिससे वायु उठती है। इसे प्रभावित करने वाले दो कारक हैं:
जुलाई - दक्षिण-पश्चिम मानसून:
सर्दी - उत्तर-पूर्व मानसून:
सरल शब्दों में, ITCZ मानसून के मौसमों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जुलाई में, यह दक्षिण-पश्चिम मानसून को प्रोत्साहित करता है, जबकि सर्दियों में, इसका दक्षिण की ओर बढ़ना उत्तर-पूर्व मानसून लाता है।
सतही दबाव और वायु
उपर्युक्त दबाव और वायु का पैटर्न केवल ट्रोपोस्फीयर के स्तर पर बनता है। जून में, एक पूर्वी जेट स्ट्रीम प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग पर बहती है, और इसकी अधिकतम गति 90 किमी प्रति घंटे होती है। अगस्त में, यह 15ºN अक्षांश तक सीमित होती है, और सितम्बर में यह 22ºN अक्षांश तक पहुँचती है। सामान्यतः, पूर्वी हवाएँ ऊपरी वायुमंडल में 30ºN अक्षांश के उत्तर तक नहीं पहुँचती हैं।
भारतीय मानसून की प्रकृति
मानसून को समझना:
हालिया सफलता:
दक्षिण एशिया में कारणों का अध्ययन:
सरल शब्दों में, विज्ञानियों का प्रयास मानसून के रहस्यों को सुलझाने का है। उन्होंने इसे वैश्विक दृष्टिकोण से देखने और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में विशिष्ट कारणों का अध्ययन करके प्रगति की है, जिससे यह समझने में मदद मिली है कि यह कब शुरू होता है, वर्षा लाने वाली प्रणालियाँ इसे कैसे प्रभावित करती हैं, और मानसून में रुकावटें क्यों होती हैं।
मानसून की शुरुआत
गर्मी और मानसून की हवाएं:
अप्रैल और मई - तीव्र गर्मी:
भारतीय महासागर में उच्च दाब:
मानसून हवाओं का निर्माण:
जेट स्ट्रीम की भूमिका:
भारत में मानसून का प्रवेश:
दक्षिण-पश्चिम मानसून आमतौर पर 1 जून तक केरल तट पर शुरू होता है और तेजी से 10 से 13 जून के बीच मुंबई और कोलकाता की ओर बढ़ता है। मध्य जुलाई तक, दक्षिण-पश्चिम मानसून पूरे उपमहाद्वीप को कवर कर लेता है।
सरल शब्दों में, मानसून की हवाएँ गर्मियों में भूमि और समुद्र के तीव्र गर्म होने से सक्रिय होती हैं। यह एक निम्न-दबाव क्षेत्र बनाता है, जो हवाओं को आकर्षित करता है, जो अंततः दक्षिण-पश्चिम मानसून बन जाती हैं, और जून और जुलाई के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों में पहुँचती हैं।
वृष्टि-प्रदायक प्रणाली और वर्षा वितरण
भारत में दो वृष्टि-प्रदायक प्रणाली:
पश्चिमी घाटों के沿 वर्षा: पश्चिमी घाटों में बहुत अधिक वर्षा होती है, मुख्यतः नमी भरी हवा के अवरोध के कारण, जो घाटों के साथ ऊपर उठने के लिए मजबूर होती है। इस प्रकार की वर्षा को ओरोग्राफिक वर्षा कहा जाता है।
पश्चिम तट पर वर्षा की तीव्रता को प्रभावित करने वाले कारक: पश्चिम तट पर वर्षा की तीव्रता पर दो मुख्य कारक प्रभाव डालते हैं:
(i) तटवर्ती मौसम संबंधी स्थिति।
(ii) अफ्रीका के पूर्वी तट के साथ-साथ भूमध्यरेखीय जेट स्ट्रीम की स्थिति।
वर्षा की आवृत्ति में परिवर्तनशीलता:
वर्षा के पैटर्न:
सरल शब्दों में, भारत में वर्षा दो मुख्य प्रणालियों से होती है - एक बंगाल की खाड़ी से और दूसरी अरब सागर से। पश्चिमी घाटों में अवरुद्ध आर्द्र हवा के कारण बहुत वर्षा होती है। पश्चिम तट पर वर्षा की तीव्रता तटवर्ती परिस्थितियों और भूमध्यरेखीय जेट स्ट्रीम पर निर्भर करती है। वर्षा की परिवर्तनशीलता उष्णकटिबंधीय अवसादों की आवृत्ति और मार्गों से प्रभावित होती है, जो अंततः मानसून ट्रफ की स्थिति से जुड़ी होती है।
EI-Nino और भारतीय मॉनसून
El Niño एक जटिल मौसम प्रणाली है जो हर तीन से सात वर्षों में होती है, जिससे वैश्विक स्तर पर विभिन्न मौसम की चरम स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जैसे सूखा और बाढ़।
महासागरीय और वायुमंडलीय घटनाएँ:
धाराओं का अस्थायी प्रतिस्थापन:
El Niño के प्रभाव: (i) भूमध्यरेखीय वायुमंडलीय परिसंचरण का विकृति:
(ii) समुद्री जल वाष्पीकरण में अनियमितताएँ:
(iii) प्लवक और मछलियों पर प्रभाव:
नाम की उत्पत्ति:
भारत में मॉनसून पूर्वानुमान में उपयोग:
सरल शब्दों में, El Niño एक मौसम की घटना है जिसमें पेरू के तट के निकट गर्म धाराएँ होती हैं, जो वैश्विक मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती हैं। इसे "बच्चा मसीह" कहा जाता है क्योंकि यह अक्सर क्रिसमस के आसपास होती है। भारत में, इसका उपयोग मॉनसून वर्षा की भविष्यवाणी के लिए किया जाता है, और 1990-91 में, एक शक्तिशाली El Niño ने मॉनसून के आगमन में देरी की।
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