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तेज़ रेडियो विस्फोट

Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): December 2023 UPSC Current Affairs | विज्ञान और प्रौद्योगिकी (Science & Technology) for UPSC CSE

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक फास्ट रेडियो बर्स्ट्स (FRB) के एक नए पहलू को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जो दूर की आकाशगंगाओं से आने वाले रहस्यमय रेडियो सिग्नल हैं।

  • लेज़र इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटीना (LISA), जिसे 2030 के दशक की शुरुआत में लॉन्च करने की योजना है, FRB और रहस्यमय रेडियो संकेतों का अध्ययन करने में सहायता करेगा।

फास्ट रेडियो बर्स्ट्स/तेज़ रेडियो विस्फोट (FRB) क्या हैं?

  • फास्ट रेडियो बर्स्ट (FRB) गहरे अंतरिक्ष से उत्पन्न होने वाले रेडियो फ्रीक्वेंसी उत्सर्जन के शक्तिशाली और संक्षिप्त विस्फोट हैं। ये रहस्यमय और तीव्र संकेत केवल मिलीसेकेंड तक ही रहते हैं लेकिन करोड़ों सूर्यों के बराबर ऊर्जा की मात्रा छोड़ते हैं।
  • खगोलविदों ने प्रस्तावित किया है कि विस्फोट करने वाले तारों के अवशेषों से बनने वाले एक प्रकार के न्यूट्रॉन तारे, चुंबकीय ध्रुव, FRB के लिये एक संभावित उत्पत्ति हो सकते हैं।
  • चुंबकों का घूर्णन अन्य न्यूट्रॉन तारों की तुलना में तुलनात्मक रूप से धीमा होता है।
  • न्यूट्रॉन तारे तब बनते हैं जब कोई विशाल तारा टूटता जाता है। कोर का मुख्य केंद्रीय क्षेत्र टूटता है और प्रत्येक प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे को न्यूट्रॉन में बदल जाता है। ये नव-निर्मित न्यूट्रॉन एक न्यूट्रॉन तारे को पीछे छोड़ते हुए इसके पतन को रोक सकते हैं।
  • एक चुंबकीय क्षेत्र अन्य न्यूट्रॉन सितारों की तुलना में एक हज़ार गुना अधिक मज़बूत होता है और यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में एक खरब गुना अधिक शक्तिशाली होता है।

FRBs की उत्पत्ति में न्यूट्रॉन तारे कैसे शामिल हैं?

  • FRB की घटना दो न्यूट्रॉन तारों की टक्कर के परिणामस्वरूप हो सकती है।
  • टक्कर से दो अलग-अलग संकेत उत्पन्न हो सकते हैं: गुरुत्वाकर्षण तरंगें, जो अंतरिक्ष-समय में तरंग पैदा करती हैं और FRBs।
  • अतीत में न्यूट्रॉन स्टार विलय को  विद्युत चुंबकीय समकक्ष देखा गया है।
  • वर्ष 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी (LIGO) और इटली में विर्गो उपकरण ने पहली बार दो न्यूट्रॉन तारों की टक्कर से गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाकर एक अभूतपूर्व अवलोकन किया।
  • लेज़र इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटीना (LISA)
  • LISA यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के नेतृत्व में एक नियोजित अंतरिक्ष-आधारित गुरुत्वाकर्षण तरंग वेधशाला है। 
  • LISA को अंतरिक्ष के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण तरंगों के पारित होने के कारण त्रिकोणीय संरचना में तीन अंतरिक्ष यानों के बीच की दूरी में सूक्ष्म परिवर्तन को मापकर गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने और निरीक्षण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • इस अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला से ब्रह्मांड की हमारी समझ में योगदान देने वाले विशाल ब्लैक होल और अन्य खगोलीय घटनाओं के विलय जैसे ब्रह्मांडीय घटनाओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने की उम्मीद है।

LIGO क्या है?

परिचय:

  • LIGO का मतलब लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी है। 
  • यह एक अभूतपूर्व वेधशाला है जिसे गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने और उनका अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • यह ब्लैक होल टकराव या न्यूट्रॉन स्टार विलय जैसी घटनाओं द्वारा उत्पन्न अंतरिक्ष-समय में तरंगों को देखकर ब्रह्मांड के रहस्यों का पता लगाने का एक नया तरीका प्रदान करता है।
  • गुरुत्वाकर्षण तरंगों की जानकारी: 
  • अमेरिका में LIGO ने पहली बार वर्ष 2015 में गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2017 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
  • ये गुरुत्वाकर्षण तरंगें 1.3 अरब वर्ष पूर्व दो ब्लैक होल के विलय से उत्पन्न हुई थीं, जिनका द्रव्यमान सूर्य से लगभग 29 और 36 गुना अधिक था।
  • ब्लैक होल विलय कुछ सबसे मज़बूत गुरुत्वाकर्षण तरंगों का स्रोत है।

निष्कर्ष:

वैज्ञानिक दूर की आकाशगंगाओं से आने वाले संक्षिप्त और शक्तिशाली संकेतों फास्ट रेडियो बर्स्ट्स (FRBs) की जाँच कर रहे हैं। मैग्नेटार, विस्फोटित तारों के घने अवशेष, प्रस्तावित स्रोत हैं। न्यूट्रॉन तारे की टक्कर से FRBs एवं गुरुत्वाकर्षण तरंगें दोनों उत्पन्न हो सकती हैं, जैसा कि LIGO और Virgo द्वारा देखा गया है। आगामी लेज़र इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटीना (LISA) का उद्देश्य ब्रह्मांडीय घटनाओं के बारे में हमारी समझ को गहरा करना है।


ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम

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चर्चा में क्यों?

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) कुछ रोज़मर्रा की प्रौद्योगिकियों में से एक है जिसने नागरिक, सैन्य, वैज्ञानिक और शहरी क्षेत्रों पर क्रांतिकारी प्रभाव डाला है, इसने किसी स्थान को लेकर हमारी समझ/ज्ञान को फिर से परिभाषित किया है तथा वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया है।

ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम क्या है?

परिचय:

  • वर्ष 1973 में अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा शुरू किये गए GPS में तीन मुख्य खंड शामिल हैं,
  • अंतरिक्ष: अंतरिक्ष खंड का विवरण देते हुए 6 कक्षाओं में 24 उपग्रह वैश्विक कवरेज सुनिश्चित करते हैं, जिससे रिसीवर को एक साथ कम-से-कम चार उपग्रहों (सटीक स्थिति के लिये एक मूलभूत आवश्यकता) से सिग्नल तक पहुँच बनाने/संपर्क साधने की अनुमति मिलती है।
  • सभी छह कक्षाएँ पृथ्वी से 20,200 किमी. की ऊँचाई पर स्थित हैं और प्रत्येक कक्षा में हर समय चार उपग्रह होते हैं। प्रत्येक उपग्रह एक ही दिन में दो कक्षाएँ पूरी करता है।
  • नियंत्रण: धरातल आधारित स्टेशनों द्वारा प्रबंधित नियंत्रण खंड वर्ष 2020 में प्रकाशित स्टैंडर्ड पोज़िशनिंग सर्विस (SPS) मानकों का पालन करते हुए उपग्रह प्रदर्शन और सिग्नल की सटीकता सुनिश्चित करता है। विश्व भर के प्रमुख स्टेशन इस प्रणाली की विश्वसनीयता का प्रबंधन एवं अनुवीक्षण करते हैं।
  • SPS मानक विश्व भर में कहीं भी एप्लीकेशन डेवलपर्स और उपयोगकर्त्ताओं को जीपीएस सिस्टम से होने वाले लाभों के बारे में अवगत कराता है।
  • उपयोगकर्त्ता: उपयोगकर्त्ता खंड के अंतर्गत कृषि से लेकर सैन्य संचालन से जुड़े विविध क्षेत्र शामिल हैं, वर्ष 2021 में विश्व भर में GNNS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) डिवाइस की अनुमानित संख्या 6.5 बिलियन थी, जिसके विषय में उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2031 तक यह संख्या बढ़कर 10 बिलियन तक हो सकती है, ये आँकड़े इसके व्यापक प्रभाव को रेखांकित करते हैं।

GPS की कार्यक्षमता:

  • GPS रिसीवर कुछ आवृत्तियों (50 बिट्स/सेकंड पर L1 और L2 आवृत्तियों) पर उपग्रहों द्वारा प्रदान किये गए रेडियो संकेतों को प्राप्त करता है और उनका आकलन करता है, जो अंतरिक्ष के तीन डायमेंशन एवं समय के एक डायमेंशन में सटीक स्थान निर्धारण में मदद करता है।

सटीकता और संशोधन:

  • सटीकता में सुधार लाने के लिये त्रुटियों में सुधार किया गया है, जो GPS गणनाओं की सूक्षमता को दर्शाता है।
  • परमाणु घड़ियों के उपयोग से उपग्रह GPS के लिये समय की सटीकता को बनाए रखते हैं। ये घड़ियाँ महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि समय के छोटे से भी अंतर से स्थान संबंधी बड़ी त्रुटियाँ हो सकती हैं।

क्या अन्य देशों में GNSS है?

  • कई देश जीपीएस के साथ-साथ अपने स्वयं के ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) संचालित करते हैं। ऐसी प्रणालियाँ वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया, चीन, यूरोपीय संघ (ईयू), भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस और यू.के. द्वारा संचालित की जाती हैं।
  • इनमें से रूस का GLONASS, ईयू का गैलीलियो और चीन का बाइडू सिस्टम वैश्विक हैं।
  • भारत ने 2006 में अपने स्वयं के भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम पर विचार किया, जिसे बाद में ‘नेविगेशन विद इंडियन कांस्टेलेशन (NavIC)’ नाम दिया गया। इसके अंतरिक्ष क्षेत्र में सात उपग्रह हैं: तीन भूस्थैतिक कक्षाओं में और चार भूतुल्यकाली कक्षाओं में।
  • मई 2023 तक उपग्रहों की न्यूनतम संख्या (चार) भूमि-आधारित नेविगेशन की सुविधा प्रदान कर सकती है। मुख्य नियंत्रण सुविधाएँ कर्नाटक के हासन और मध्य प्रदेश के भोपाल में स्थित हैं।
  • NavIC उपग्रह रूबिडियम परमाणु घड़ियों का उपयोग करते हैं और L5 और S बैंड में डेटा संचारित करते हैं, साथ ही नए उपग्रह भी L1 बैंड में डेटा संचारित करते हैं।
  • भारत जीपीएस-एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) प्रणाली भी संचालित करता है, जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा विकसित एवं स्थापित किया गया था।
  • गगन का प्राथमिक उद्देश्य "भारतीय हवाई क्षेत्र में नागरिक उड्डयन अनुप्रयोगों की सुरक्षा" और "जीपीएस के लिये सुधार एवं अखंडता संबंधी संदेश" प्रदान करना है।

वेब ब्राउज़र

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चर्चा में क्यों?

वेब ब्राउज़र इंटरनेट के विशाल ब्रह्मांड के लिये हमारे डिजिटल पासपोर्ट जैसा है, जिससे हमारे लिये केवल एक क्लिक से वेबपेजों को खोजना और उन तक पहुँचना सरल हो जाता है।

वेब ब्राउज़र क्या है?

परिचय:

  • वेब ब्राउज़र WWW (वर्ल्ड वाइड वेब) का पता लगाने के लिये एक एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर है। यह सर्वर और क्लाइंट के बीच एक इंटरफेस प्रदान करता है तथा वेब दस्तावेज़ों एवं सेवाओं के लिये सर्वर से अनुरोध करता है।
  • यह हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (HTML) को रेंडर करने के लिये एक कंपाइलर के रूप में काम करता है जिसका उपयोग वेबपेज को डिज़ाइन करने के लिये किया जाता है।
  • जब भी हम इंटरनेट पर कुछ भी खोजते हैं, तो ब्राउज़र HTML में लिखा एक वेबपेज लोड करता है, जिसमें टेक्स्ट, लिंक, छवियाँ और स्टाइलशीट तथा जावास्क्रिप्ट फंक्शन जैसे अन्य आइटम शामिल होते हैं।
  • गूगल क्रोम, माइक्रोसॉफ्ट एज, मोज़िला फायरफॉक्स और सफारी वेब ब्राउज़र के उदाहरण हैं।

उत्पत्ति:

  • इंटरनेट के शुरुआती दिनों में ब्राउजिंग एक टेक्स्ट-आधारित उद्यम था, जब तक कि टिम बर्नर्स-ली ने वर्ष 1990 में वेब ब्राउज़र, 'वर्ल्डवाइडवेब' के साथ वर्ल्ड वाइड वेब की शुरुआत नहीं की।
  • वर्ष 1993 में परिवर्तनकारी मोज़ेक ब्राउज़र वेब परिदृश्य में छवियों को लाया, जिससे उपयोगकर्त्ता इंटरैक्शन में क्रांति आ गई।
  • नेटस्केप नेविगेटर के आगमन ने बुकमार्क एवं उपयोगकर्त्ता-अनुकूल सुविधाओं को पेश करके ब्राउज़िंग को और बढ़ाया, जिससे इसके एवं इंटरनेट एक्सप्लोरर के बीच 'ब्राउज़र युद्ध' छिड़ गया।

विकासवादी कदम :

  • वर्ष 2004-2005 में मोज़िला फायरफॉक्स द्वारा इंटरनेट एक्सप्लोरर के प्रभुत्व के एकाधिकार का उन्मूलन किया,टैब्ड ब्राउज़िंग और ऐड-ऑन के साथ नवाचार को बढ़ावा दिया गया तथा नए मानक स्थापित किये गए।
  • Google का Chrome, अपनी गति और अतिसूक्ष्मवाद के साथ वर्ष 2008 में उभरा, जिससे ब्राउज़र बाज़ार में पुनरोद्धार हुआ।
  • अन्य प्रतियोगी जैसे कि Apple की Safari और Microsoft Edge (इंटरनेट एक्सप्लोरर का उत्तराधिकारी) विकसित हुए, जो उपयोगकर्त्ता की प्राथमिकताओं के अनुरूप विविध विकल्प प्रदान करते हैं।

वेब ब्राउज़र की एनाटॉमी:

  • अनुरोध और प्रतिक्रिया: वेबसाइट पर विज़िट शुरू करने से डिजिटल संचार का एक क्रम शुरू हो जाता है, जो सर्वर के नेटवर्क के माध्यम से संदेश भेजने और प्राप्त करने के समान है।
    • प्रतिक्रिया को विखंडित करना: वेबपेज की जानकारी HTML, CSS (कैस्केडिंग स्टाइल शीट्स) और जावास्क्रिप्ट में एन्कोड की गई फाइलों में आती है, जिसमें से प्रत्येक अंतिम वेबपेज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • HTML एक वेबपेज का आर्किटेक्चर ब्लूप्रिंट प्रदान करता है शीर्षक, पैराग्राफ, चित्र और लिंक जैसे तत्त्वों की रूपरेखा होती है।
    • CSS को डिजिटल दुनिया का इंटीरियर डिज़ाइनर माना जाता है। यह जानकारी रंग योजनाओं, फॉन्ट, रिक्ति और स्थिति जैसी विशेषताओं को नियंत्रित करके HTML संरचना में स्टाइल और एस्थेटिक्स प्रदान करती है।
    • जावास्क्रिप्ट एक गतिशील इंजन है, जो वेबपेजों को इंटरैक्टिव और प्रतिक्रियाशील बनाता है। किसी इमारत में विद्युत प्रणाली के अनुरूप, जावास्क्रिप्ट भी स्थिर सामग्री में जान डाल देता है। यह पॉप-अप, फॉर्म, एनिमेशन और रियल टाइम अपडेट जैसे इंटरैक्टिव तत्त्वों की अनुमति देता है, जिससे एक उपयोगकर्त्ता को आकर्षक अनुभव प्राप्त होता है।
  • रेंडरिंग: ब्राउज़र HTML संरचना को डिकोड करके, एस्थेटिक्स के लिये CSS लागू करके और इंटरैक्टिविटी के लिये जावास्क्रिप्ट निष्पादित करके, कुछ ही सेकंड में वेबपेज़ को असेंबल करता है।
  • डेटा प्रबंधन: कुकीज़ निर्बाध नेविगेशन के लिये ब्राउज़िंग डेटा संग्रहीत करती है, जबकि कैश बार-बार एक्सेस की गई फाइलों को बरकरार रखता है, जिससे पेज़ लोडिंग समय में तेज़ी आती है।
  • सुरक्षा उपाय: उपयोगकर्त्ताओं को संभावित खतरों से बचाने और सचेत करने के लिये ब्राउज़र HTTPS तथा चेतावनी प्रणाली जैसे एन्क्रिप्शन प्रोटोकॉल का उपयोग करते हैं।

ब्राउज़िंग का भविष्य क्या है?

  • जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती है, वेब ब्राउज़र भी उसी के साथ विकसित होते जाते हैं। ये WebAssembly, एक ऐसा प्रारूप जो ब्राउज़र वातावरण के भीतर लगभग मूल प्रदर्शन को सक्षम बनाता है, जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपना रहे हैं।
  • आभासी वास्तविकता (VR) और संवर्धित वास्तविकता (AR) अनुभवों के लिये समर्थन भी होराइज़न पर है, जो व्यापक ऑनलाइन इंटरैक्शन का वादा करता है।
  • इसके अतिरिक्त, गोपनीयता सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है, जिससे उपयोगकर्त्ताओं को अपने डिजिटल फुटप्रिंट पर अधिक नियंत्रण मिल सके।
  • वेब ब्राउज़र हमारे डिजिटल प्रयासों के नायक हैं, जो गतिशील वेबपेजों में कूट का अनुवाद करते हैं जो हमारे ऑनलाइन अनुभवों का आधार हैं।
  • उनके संचालन को रेखांकित करने वाली प्रक्रियाओं की जटिल प्रणालियों को उजागर करके, हम प्रत्येक क्लिक के साथ उत्पन्न होने वाले त्वरित परिणाम की एक नई समझ प्राप्त कर सकते हैं।

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