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Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): July 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

भारत आर्टेमिस समझौते में शामिल

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान आर्टेमिस समझौते में शामिल होने की घोषणा की।
  • नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ह्यूस्टन, टेक्सास के जॉनसन स्पेस सेंटर से प्रशिक्षित भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को वर्ष 2024 में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में भेजने के लिये एक साथ कार्य करेंगे।

आर्टेमिस समझौता

परिचय

  • आर्टेमिस समझौता अमेरिकी विदेश विभाग और NASA द्वारा सात अन्य संस्थापक सदस्यों- ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़मबर्ग, संयुक्त अरब अमीरात और यूनाइटेड किंगडम के साथ वर्ष 2020 में नागरिक अन्वेषण को नियंत्रित करने तथा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये चंद्रमा, मंगल, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह तथा बाहरी अंतरिक्ष के उपयोग के लिये सामान्य सिद्धांत स्थापित किये गए हैं।
  • यह वर्ष 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि की नींव पर आधारित है।
  • बाह्य अंतरिक्ष संधि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की नींव के रूप में कार्य करती है जो संयुक्त राष्ट्र के तहत एक बहुपक्षीय समझौता है।
  • यह संधि अंतरिक्ष को मानवता के लिये साझा संसाधन के रूप में महत्त्व देती है, राष्ट्रीय विनियोग पर रोक लगाती है और अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करती है।

हस्ताक्षरकर्ता देश
Science and Technology (विज्ञान और प्रौद्योगिकी): July 2023 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly

  • भारत गैर-बाध्यकारी आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला 27वाँ देश बन गया।

समझौते के तहत प्रतिबद्धताएँ

  • शांतिपूर्ण उद्देश्य: हस्ताक्षरकर्ता अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अंतरिक्ष गतिविधियों का संचालन करने हेतु सरकारों या एजेंसियों के बीच समझौता ज्ञापन (MOU) को लागू करेंगे।
  • सामान्य अवसंरचना: हस्ताक्षरकर्ता वैज्ञानिक खोज और वाणिज्यिक उपयोग को बढ़ावा देने के लिये साझा अन्वेषण बुनियादी ढाँचे के महत्त्व को स्वीकार करते हैं।
  • पंजीकरण और डेटा साझाकरण: प्रासंगिक अंतरिक्ष वस्तुओं का पंजीकरण और वैज्ञानिक डेटा को समय पर साझा करना। जब तक हस्ताक्षरकर्ता की ओर से कार्य नहीं किया जाता तब तक निजी क्षेत्रों को छूट है।
  • धरोहर का संरक्षण: हस्ताक्षरकर्ताओं से ऐतिहासिक लैंडिंग स्थलों, कलाकृतियों और खगोलीय पिंडों पर गतिविधि के साक्ष्य को संरक्षित करने की उम्मीद की जाती है।
  • अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग: अंतरिक्ष संसाधनों के उपयोग से सुरक्षित और स्थायी अंतर्संचलानीयता को बढ़ावा और अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं की गतिविधियों में हस्तक्षेप न करना। हस्तक्षेप को रोकने के लिये स्थान और प्रकृति के विषय में जानकारी साझा की जानी चाहिये।
  • मलबे का शमन: हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा पुराने अंतरिक्ष यान के सुरक्षित निपटान और हानिकारक मलबे के उत्पादन को सीमित करने की योजना बनाना।

आर्टेमिस कार्यक्रम के अंतर्गत मुख्य मिशन

  • आर्टेमिस-I: चंद्रमा पर मानवरहित मिशन
    • आर्टेमिस कार्यक्रम 16 नवंबर, 2022 को नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) पर "ओरियन" नामक अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के साथ प्रारंभ हुआ।
    • SLS, एक सुपर हेवी-लिफ्ट लॉन्च वाहन, ओरियन को एक ही मिशन पर सीधे चंद्रमा पर ले गया।
  • आर्टेमिस-II: क्रू लूनर फ्लाई-बाई मिशन
    • वर्ष 2024 के लिये निर्धारित आर्टेमिस-II, आर्टेमिस कार्यक्रम के अंतर्गत पहला मानवयुक्त मिशन होगा।
    • SLS में चार अंतरिक्ष यात्री सवार होंगे क्योंकि यह पृथ्वी के चारों ओर विस्तारित कक्षा में कई गतिविधियाँ करता है।
    • मिशन में चंद्र उड़ान तथा पृथ्वी पर वापसी भी शामिल होगी।
  • आर्टेमिस-III: चंद्रमा पर मानव की वापसी
    • वर्ष 2025 के लिये निर्धारित आर्टेमिस-III मानव अंतरिक्ष अन्वेषण में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर सिद्ध होगा क्योंकि अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर लौटेंगे।
    • यह मिशन आर्टेमिस-II के चंद्र फ्लाई-बाई से आगे जाएगा, जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर उतरने के साथ चंद्रमा का अधिक व्यापक रूप से अध्ययन करने की अनुमति प्राप्त होगी।
    • साथ ही वर्ष 2029 के लिये लूनर गेटवे स्टेशन की स्थापना की योजना बनाई गई है। यह स्टेशन अंतरिक्ष यात्रियों के लिये डॉकिंग पॉइंट के रूप में काम करेगा तथा वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ प्रयोगों की सुविधा प्रदान करेगा।

भारत के लिये समझौते से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ

लाभ

  • आर्टेमिस समझौते में भारत की भागीदारी भारत को उन्नत प्रशिक्षण, तकनीकी प्रगति और वैज्ञानिक अवसरों तक पहुँच की सुविधा प्रदान करती है।
  • चंद्रयान-3 मिशन जैसे अपने चंद्र अन्वेषण लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में आर्टेमिस कार्यक्रम भारत के लिये लाभदायक हो सकता है।
  • नासा के साथ सहयोग से गगनयान मानव मिशन और आगामी महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियानों के लिये भारत की क्षमता में सुधार होगा।
  • साथ ही भारत के लागत प्रभावी मिशन और अभिनव दृष्टिकोण से आर्टेमिस कार्यक्रम को भी लाभ होगा जिससे अंतरिक्ष अन्वेषण में पारस्परिक प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।

चुनौतियाँ

  • चीन और रूस जैसी प्रमुख अंतरिक्ष शक्तियों (जिनके पास चंद्र अन्वेषण की अपनी योजनाएँ हैं) के खिला अमेरिका के साथ गठबंधन के रूप में देखे जाने की संभावना।
  • आर्टेमिस समझौते की कानूनी स्थिति और निहितार्थों को लेकर अनिश्चितता, खासकर उस प्रावधान के संबंध में जिससे चंद्रमा तथा अन्य खगोलीय पिंडों पर अनियमित अन्वेषण की अनुमति मिलती है।
  • किसी भी वर्तमान अथवा भविष्य के बहुपक्षीय अंतरिक्ष समझौते या संधियों के तहत इसकी प्रतिबद्धताओं और आर्टेमिस समझौते के बीच संतुलन बनाए रखने की अनिवार्यता।

डार्क पैटर्न


  • परिचय
    • डार्क पैटर्न, जिसे भ्रामक पैटर्न के रूप में भी जाना जाता है, वेबसाइट्स और एप्स द्वारा उपयोगकर्ताओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिये मनाने या ऐसे कार्य जो व्यवसायों के लिये फायदेमंद नहीं हों, उन्हें हतोत्साहित करने हेतु उपयोग की जाने वाली रणनीति है।
    • इस शब्द का वर्ष 2010 में एक यूज़र एक्सपीरियंस (UX) डिज़ाइनर, हैरी ब्रिग्नुल द्वारा प्रथम बार प्रयोग किया गया था।
    • इस पैटर्न में अधिकतर संज्ञानात्मक पूर्वा ग्रहों का फायदा उठाते हुए अनुचित तात्कालिकता, जबरन कार्रवाई, छिपी हुई लागत आदि जैसी रणनीति अपनाई जाती है।
    • यह स्पष्ट रूप से ध्यान देने योग्य युक्तियों से लेकर अधिक सूक्ष्म तरीकों तक किसी भी रूप में हो सकता है जिन्हें उपयोगकर्ता तुरंत पहचान नहीं सकते हैं।
  • डार्क पैटर्न के प्रकार: उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उपयोग किये जा रहे नौ प्रकार के डार्क पैटर्न की पहचान की है:
    • झूठी तात्कालिकता: उपभोक्ताओं में खरीदारी या कोई कार्रवाई को बाधित करने की तात्कालिकता या कमी की भावना पैदा करता है।
    • बास्केट स्नीकिंग: उपयोगकर्ता की सहमति के बिना शॉपिंग कार्ट में अतिरिक्त उत्पाद या सेवाएँ जोड़ने के लिये डार्क पैटर्न का उपयोग किया जाता है।
    • पभोक्ता को शर्मिदा करने संबंधी गतिविधि: किसी विशेष विश्वास या दृष्टिकोण के अनुरूप न होने के लिये दोषी साबित कर उपभोक्ताओं की आलोचना या उन पर हमला करना।
    • जबरन कार्रवाई: यह उपभोक्ताओं को ऐसी कार्रवाई करने के लिये प्रेरित करता है जो वे नहीं करना चाहते, जैसे- सामग्री तक पहुँच हेतु किसी सेवा के लिये साइन-अप करना।
    • नुक्ताचीनी/आलोचना(Nagging): लगातार आलोचना, शिकायतें और कार्रवाई के लिये अनुरोध करना।
    • सदस्यता जाल: किसी सेवा से जुड़ना आसान है लेकिन छोड़ना अत्यंत कठिन है यहाँ विकल्प अदृश्य है या इनमें कई चरणों की आवश्यकता है।
    • प्रलोभन और युक्ति: एक निश्चित उत्पाद या सेवा का विज्ञापन करना, लेकिन उत्पाद का प्रायः निम्न गुणवत्ता का वितरण करना।
    • अदृश्य लागतें: अतिरिक्त लागतों को छिपाना जब तक कि उपभोक्ता पहले से ही खरीदारी करने के लिये प्रतिबद्ध न हो जाए।
    • छद्म विज्ञापन: उपयुक्त सामग्री की तरह दिखने के लिये निर्मित किया गया, जैसे- समाचार लेख या उपयोगकर्ता-जनित सामग्री आदि।
  • परिणाम
    • डार्क पैटर्न इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के अनुभव को खतरे में डालते हैं, साथ ही उन्हें बिग टेक फर्मों द्वारा वित्तीय और डेटा शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं।
    • डार्क पैटर्न उपयोगकर्ताओं को भ्रमित करते हैं, ऑनलाइन बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, साथ ही सरल कार्यों को अधिक समय लेने वाला बनाते हैं, उपयोगकर्ताओं को अवांछित सेवाओं/उत्पादों के लिये भी साइन-अप करते हैं तथा उन्हें अधिक पैसे देने या उनकी इच्छा से अधिक व्यक्तिगत जानकारी साझा करने के लिये मज़बूर करते हैं।

कंपनियों द्वारा डार्क पैटर्न का उपयोग

  • सोशल मीडिया कंपनियाँ तथा एप्पल, अमेज़न, स्काइप, फेसबुक, लिंक्डइन, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनियाँ अपने लाभ के लिये उपयोगकर्ता अनुभव को कम करने के लिये डार्क या भ्रामक पैटर्न का उपयोग करती हैं।
    • अमेज़न प्राइम सब्सक्रिप्शन में भ्रामक, बहु-चरणीय रद्दीकरण प्रक्रिया के लिये अमेज़न को यूरोपीय संघ में आलोचना का सामना करना पड़ा। अमेज़न ने वर्ष 2022 में यूरोपीय देशों में ऑनलाइन ग्राहकों के लिये अपनी रद्दीकरण प्रक्रिया को आसान बना दिया है।
  • लिंक्डइन उपयोगकर्ताओं को अक्सर प्रभावशाली लोगों से अनचाहे एवं प्रायोजित संदेश प्राप्त होते हैं।
    • इस विकल्प को अक्षम करने के लिये अनेक चरणों वाली एक कठिन प्रक्रिया का पालन करना होता है जिसके लिये उपयोगकर्ताओं का प्लेटफॉर्म नियंत्रण से परिचित होना आवश्यक है।
  • गूगल के स्वामित्व वाला यूट्यूब (YouTube) उपयोगकर्ताओं को पॉप-अप के साथ यूट्यूब प्रीमियम के लिये साइन-अप करने के लिये बाध्य करता है जिससे वीडियो के अंतिम सेकंड अन्य वीडियो के थंबनेल के कारण अस्पष्ट हो जाते हैं।

डार्क पैटर्न से निपटने के लिये वैश्विक प्रयास

  • मार्च 2021 में कैलिफोर्निया, अमेरिका में कैलिफोर्निया उपभोक्ता गोपनीयता अधिनियम में संशोधन पारित किया गया जिससे उपभोक्ताओं के गोपनीयता अधिकारों का प्रयोग करने में बाधा डालने वाले डार्क पैटर्न पर रोक लगा दी गई।
  • यूनाइटेड किंगडम ने अप्रैल 2019 में दिशा-निर्देश जारी किये, जिन्हें बाद में डेटा संरक्षण अधिनियम, 2018 के तहत लागू किया गया, ताकि कंपनियाँ कम उम्र के उपयोगकर्ताओं को लुभाने के लिये चालाकीपूर्ण रणनीति का उपयोग न कर सकें।

आगे की राह

  • एक टास्क फोर्स की स्थापना और दिशा-निर्देश विकसित करने की दिशा में काम करके सरकार का लक्ष्य भ्रामक प्रथाओं को रोकना और उपयोगकर्त्ता के हितों की रक्षा करना है। यह कदम अमेरिका तथा ब्रिटेन जैसे देशों द्वारा किये गए समान प्रयासों के अनुरूप है।
  • उपयोगकर्ताओं के बीच डार्क पैटर्न के बारे में जागरूकता फैलाना और विभिन्न वेबसाइट्स द्वारा उपयोग की जाने वाली चतुर युक्तियों की पहचान करने के संबंध में उन्हें सशक्त बनाना आवश्यक हैI

चंद्रयान-3

चर्चा में क्यों?  

  • चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण के साथ ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रमा पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग कराने की तैयारी में है।
  • भारत का लक्ष्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन की कतार में शामिल होकर यह उपलब्धि हासिल करने वाला विश्व का चौथा देश बनना है। 

चंद्रयान-3 मिशन

  • परिचय
    • चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का दूसरा प्रयास है।
    • इस मिशन के तहत चंद्रयान-3 ने 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2:35 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से उड़ान भरी थी।
    • इसमें एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल (LM), प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) और एक रोवर शामिल है जिसका उद्देश्य अंतर ग्रहीय मिशनों के लिये आवश्यक नई प्रौद्योगिकियों को विकसित एवं प्रदर्शित करना है। 
  • चंद्रयान-3 मिशन का उद्देश्य
    • चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सुगम लैंडिंग करना।
    • रोवर को चंद्रमा पर घूमते हुए प्रदर्शित करना। 
    • यथास्थान वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना।
  • विशेषताएँ
    • चंद्रयान-3 के लैंडर (विक्रम) और रोवर पेलोड (प्रज्ञान) चंद्रयान-2 मिशन के समान ही हैं।
    • लैंडर पर वैज्ञानिक पेलोड का उद्देश्य चंद्रमा के पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना है। इन पेलोड में चंद्रमा पर आने वाले भूकंपों का अध्ययन, सतह के तापीय गुण, सतह के पास प्लाज़्मा में बदलाव और पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी को सटीक रूप से मापना शामिल है। 
    • चंद्रयान-3 के प्रणोदन मॉड्यूल में एक नया प्रयोग किया गया है जिसे स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) कहा जाता है।
    • SHAPE का लक्ष्य परावर्तित प्रकाश का विश्लेषण कर संभावित रहने योग्य छोटे ग्रहों की खोज करना है।
  • चंद्रयान-3 में बदलाव और सुधार
    • इसके लैंडिंग क्षेत्र का विस्तार किया गया है जो एक बड़े निर्दिष्ट क्षेत्र के भीतर सुरक्षित रूप से उतरने की सुविधा देता है।
    • लैंडर को अधिक ईंधन से लैस किया गया है ताकि आवश्यकतानुसार लैंडिंग स्थल अथवा वैकल्पिक स्थानों तक लंबी दूरी तय की जा सके।
    • चंद्रयान-2 में केवल दो सौर पैनल की तुलना में चंद्रयान-3 लैंडर में चार तरफ सौर पैनल लगाए गए हैं।
    • चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से प्राप्त उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों का उपयोग लैंडिंग स्थान निर्धारित करने के लिये किया जाता है और साथ ही स्थिरता तथा मज़बूती बढ़ाने के लिये इसमें कुछ संशोधन किया गया है।
    • लैंडर की गति की निरंतर निगरानी करने और आवश्यक सुधार के लिये चंद्रयान-3 में अतिरिक्त नेविगेशनल एवं मार्गदर्शन उपकरण मौजूद हैं।
    • इसमें लेज़र डॉपलर वेलोसीमीटर नामक एक उपकरण शामिल है जो लैंडर की गति का माप करने के लिये चंद्रमा की सतह पर लेज़र बीम उत्सर्जित/छोड़ेगा करेगा।
  • प्रक्षेपण और समयरेखा
    • चंद्रयान-3 को लॉन्च करने के लिये  LVM3 M4 लॉन्चर का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है
    • LVM3 के उड़ान भरने के लगभग 16 मिनट बाद अंतरिक्ष यान रॉकेट से अलग हो गया। यह एक अंडाकार पार्किंग कक्षा (EPO) में प्रवेश कर गया।
    • चंद्रयान-3 की यात्रा में लगभग 42 दिन लगने का अनुमान है, 23 अगस्त, 2023 को  इसकी चंद्रमा पर लैंडिंग निर्धारित है।
    • लैंडर और रोवर का मिशन लाइफ, एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन) का होगा क्योंकि वे सौर ऊर्जा पर कार्य करते हैं।
    • चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के समीप है।

दक्षिणी ध्रुव के समीप चंद्रमा की लैंडिंग का महत्त्व

  • ऐतिहासिक रूप से चंद्रमा के लिये अंतरिक्ष यान मिशनों ने मुख्य रूप से भूमध्यरेखीय क्षेत्र को उसके अनुकूल भूखंड और परिचालन स्थितियों के कारण लक्षित किया है।
  • हालाँकि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव भूमध्यरेखीय क्षेत्र की तुलना में काफी अलग और अधिक चुनौतीपूर्ण भू-भाग है।
  • कुछ ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्य का प्रकाश दुर्लभ है जिसके परिणामस्वरूप उन क्षेत्रों में हमेशा अंधेरा रहता है जहाँ तापमान -230 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है। 
  • सूर्य के प्रकाश की कमी के साथ अत्यधिक ठंड उपकरणों के संचालन एवं स्थिरता के लिये कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है।
  • चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अत्यधिक विपरीत स्थितियाँ प्रदान करता है जो मनुष्यों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है लेकिन यह उन्हें प्रारंभिक सौरमंडल के बारे में बहुमूल्य जानकारी का संभावित भंडार बनाता है।
  • इस क्षेत्र का पता लगाना महत्त्वपूर्ण है जो भविष्य में गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण को प्रभावित कर सकता है।

भारत के अन्य चंद्रयान मिशन  

  • चंद्रयान-1
    • भारत का चंद्र अन्वेषण मिशन 2008 में चंद्रयान-1 के साथ शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य चंद्रमा का त्रि-आयामी एटलस निर्मित करना और खनिज मानचित्रण करना था।
    • प्रक्षेपण यान: PSLV-C11.  
    • चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी और हाइड्रॉक्सिल का पता लगाने सहित महत्त्वपूर्ण खोजें कीं।
  • चंद्रयान-2: आंशिक सफलता और खोज
    • चंद्रयान-2 में एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल थे, जिसका लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की खोज करना था।
    • प्रक्षेपण यान: GSLV MkIII-M1 
  • यद्यपि लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए, ऑर्बिटर ने सफलतापूर्वक डेटा एकत्र किया और सभी अक्षांशों पर पानी के प्रमाण पाए।
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मंगल ग्रह पर कार्बनिक पदार्थ

चर्चा में क्यों?  

यूनाइटेड स्टेट्स नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के पर्सीवरेंस रोवर ने मंगल ग्रह के क्रेटर में कार्बनिक यौगिकों के साक्ष्य के विषय में बारे में पता लगाया है।

  • जेज़ेरो क्रेटर में रोवर का लैंडिंग स्थान बीते किसी समय में यहाँ जीवन की प्रबल संभावना को इंगित करता है। कार्बोनेट, मृदा और सल्फेट जैसे विभिन्न खनिजों की प्रचुरता से पता चलता है कि यह क्षेत्र पहले एक झील बेसिन (lake basin) था।

मंगल ग्रह पर कार्बनिक पदार्थ की उपस्थिति से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष 

  • पूर्व के मिशनों ने पहले ही उल्कापिंडों एवं गेल क्रेटर में मंगल ग्रह की उत्पत्ति वाले कार्बनिक रसायनों की पहचान कर ली थी।
    • केवल मार्स फीनिक्स लैंडर और क्यूरियोसिटी रोवर ने पहले विकसित गैस विश्लेषण एवं गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके मंगल पर कार्बनिक पदार्थ का पता लगाया था।
  • पर्सिवियरेंस रोवर के माध्यम से नवीनतम शोध में एक नया उपकरण, स्कैनिंग हैबिटेबल एन्वायरननमेंट विद रमन एंड ल्यूमिनसेंस फॉर ऑर्गेनिक्स एंड केमिकल्स (SHERLOC) उपकरण प्रस्तुत किया गया है, जो मंगल ग्रह पर बुनियादी रासायनिक यौगिकों का पता लगाने में सहायता करता है।
  • इससे पता चलता है कि मंगल ग्रह के पास अधिक जटिल कार्बनिक भू-रासायनिक चक्र है।
    • इस ग्रह पर कार्बनिक अणुओं के कई भंडार के विद्यमान होने की संभावना प्रस्तावित की गई है, जिससे संभावना बढ़ गई है कि यह ग्रह जीवन का समर्थन कर सकता है।
    • अध्ययन में जलीय प्रक्रियाओं से जुड़े अणु भी पाए गए, जो यह दर्शाता है कि जल ने मंगल पर विद्यमान कार्बनिक पदार्थों की शृंखला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।
  • जीवन के लिये आवश्यक प्रमुख निर्माण खंडों की विस्तारित उपस्थिति से पता चलता है कि मंगल ग्रह पहले की तुलना में लंबे समय तक जीवन समर्थन योग्य रहा होगा।

पर्सिवरेंस रोवर

  • परिचय: पर्सिवरेंस एक कार के आकार का मार्स रोवर है जिसे NASA के मार्स 2020 मिशन के हिस्से के रूप में मंगल पर जेज़ेरो क्रेटर का पता लगाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इसका निर्माण जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला द्वारा किया गया और 30 जुलाई, 2020 को लॉन्च किया गया।
    • इसने सात महीने की यात्रा के बाद 18 फरवरी, 2021 को मंगल ग्रह पर लैंडिग की।
  • ऊर्जा स्रोत: एक मल्टी-मिशन रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर (MMRTG) जो प्लूटोनियम (प्लूटोनियम डाइऑक्साइड) के प्राकृतिक रेडियोधर्मी क्षय से ऊष्मा को विद्युत में परिवर्तित करता है।
  • प्रमुख उद्देश्य:  
    • प्राचीन जीवन के संकेतों की खोज और पृथ्वी पर संभावित वापसी के लिये चट्टान एवं मिट्टी के नमूने एकत्र करना।
    • मंगल ग्रह के भूविज्ञान एवं जलवायु तथा समय के साथ हुए परिवर्तन का अध्ययन करना।
    • ऐसी तकनीकों का प्रदर्शन करना जो भविष्य में मंगल ग्रह पर मानव अन्वेषण को सक्षम कर सकें जैसे कि मंगल ग्रह के वातावरण से ऑक्सीजन का उत्पादन और एक लघु हेलीकॉप्टर का परीक्षण

स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

  • केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI), नई दिल्ली द्वारा इस्पात मंत्रालय और प्रमुख इस्पात विनिर्माण कंपनियों के सहयोग से विकसित नवीन स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी वेस्ट टू वेल्थ मिशन की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रही है।
  • यह तकनीक सड़क निर्माण में क्रांति के साथ स्टील स्लैग कचरे की पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान कर रही है।

स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी

परिचय 

  • स्टील स्लैग रोड तकनीक अधिक मज़बूत और अधिक टिकाऊ सड़कों के निर्माण के लिये स्टील स्लैग, स्टील उत्पादन के दौरान उत्पन्न अपशिष्ट का उपयोग करने की एक नवीन विधि है।
  • प्रौद्योगिकी में अशुद्धियों और धातु सामग्री को हटाने के लिये स्टील स्लैग को संसाधित करना और फिर इसे सड़क आधार या उप-आधार परतों के लिये एक समुच्चय के रूप में उपयोग करना शामिल है।
  • प्रसंस्कृत स्टील स्लैग में उच्च शक्ति, कठोरता, घर्षण प्रतिरोध, स्किड प्रतिरोध और जल निकासी क्षमता होती है, जो इसे सड़क निर्माण के लिये उपयुक्त बनाती है।
  • यह इस्पात संयंत्रों द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट स्टील स्लैग के बड़े पैमाने पर उपयोग की सुविधा प्रदान करता है, जिससे भारत में उत्पादित लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग का प्रभावी ढंग से प्रबंधन होता है
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लाभ

  • पर्यावरण-अनुकूल अपशिष्ट उपयोग
    • सड़क निर्माण में अपशिष्ट स्टील स्लैग का उपयोग करके प्रौद्योगिकी औद्योगिक अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये एक पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण प्रदान करती है।
    • इससे लैंडफिल पर बोझ कम हो जाता है और स्टील स्लैग निपटान से जुड़े पर्यावरणीय प्रभाव कम हो जाते हैं।
  • लागत प्रभावी और टिकाऊ
    • स्टील स्लैग सड़कें लागत प्रभावी साबित हुई हैं, क्योंकि पारंपरिक फर्श विधियों की तुलना में उनका निर्माण लगभग 30% सस्ता है।
    • इसके अतिरिक्त ये सड़कें असाधारण स्थायित्व को प्रदर्शित करती हैं तथा मौसम परिवर्तन का विरोध करती हैं जिसके परिणामस्वरूप रखरखाव लागत काफी कम हो जाती है।
  • प्राकृतिक संसाधनों पर कम निर्भरता
    • पारंपरिक सड़क निर्माण काफी हद तक प्राकृतिक गिट्टी पर निर्भर करता है जिससे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो जाते हैं।
    • स्टील स्लैग सड़क तकनीक प्राकृतिक सामग्रियों की आवश्यकता को समाप्त करती है। यह तकनीक मूल्यवान संसाधनों के संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में सहायता करती है।
  • स्टील स्लैग अपशिष्ट चुनौती को संबोधित करना
    • भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है जो ठोस अपशिष्ट के रूप में लगभग 19 मिलियन टन स्टील स्लैग उत्पन्न करता है। यह आँकड़ा वर्ष 2030 तक आश्चर्यजनक रूप से 60 मिलियन टन तक बढ़ने का अनुमान है। प्रति टन स्टील उत्पादन के परिणामस्वरूप लगभग 200 किलोग्राम स्टील स्लैग अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
    • कुशल निपटान विधियों की कमी के कारण इस्पात संयंत्रों के आसपास स्लैग के विशाल ढेर जमा हो गए हैं जो जल, वायु और भूमि प्रदूषण में योगदान दे रहे हैं।

सफल कार्यान्वयन

  • प्रौद्योगिकी में सूरत का चमत्कार 
    • गुजरात के सूरत में स्टील स्लैग रोड तकनीक का उपयोग करके बनाई गई पहली सड़क ने अपनी प्रौद्योगिकी उत्कृष्टता के लिये मान्यता प्राप्त की है।
  • सीमा सड़क संगठन का योगदान
    • प्रौद्योगिकी की सफलता भारत-चीन सीमा तक है, जहाँ सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) ने CRRI और टाटा स्टील के साथ मिलकर अरुणाचल प्रदेश में एक स्टील स्लैग रोड का निर्माण किया। 
    • इस परियोजना ने चुनौतीपूर्ण इलाकों और महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे के लिये प्रौद्योगिकी की उपयुक्तता का प्रदर्शन किया।

राष्ट्रव्यापी स्वीकृति को बढ़ावा देना

  • स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी की सफलता ने विभिन्न सरकारी एजेंसियों और मंत्रालयों का ध्यान आकर्षित किया है।  
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सहयोग से इस्पात मंत्रालय देश भर में इस तकनीक के व्यापक उपयोग को बढ़ावा देने के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।
    • सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा देकर भारत का लक्ष्य स्थायी सड़क अवसंरचना के विकास का नेतृत्व करना और अपने 'वेस्ट टू वेल्थ' मिशन को पूरा करना है।
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