डीजीपी/आईजीपी सम्मेलन:
चुनौतियां:
- हाल के सम्मेलनों में चर्चा के लिए विषयों का प्रसार, और विभिन्न विषयों को कवर करने के लिए प्रतिनिधियों की बढ़ती संख्या की उपस्थिति किसी भी गहन चर्चा के लिए बहुत कम गुंजाइश छोड़ती है।
- आज के सुरक्षा खतरों का एक व्यापक चरित्र है इस कारण पुलिसिंग में भविष्य के कई विषयों पर गहराई से चर्चा करने की आवश्यकता है, जैसे कि साइबर अपराध, डार्क वेब, क्रिप्टो, समुद्री सुरक्षा, ड्रोन से होने वाले खतरे, और अनियंत्रित सोशल मीडिया से उत्पन्न समस्याएं आदि।
- ये नक्सलवाद, आतंकवाद का मुकाबला, नशीली दवाओं, तस्करी और सीमा मुद्दों जैसे परम्पारगत विषयों के अतिरिक्त हैं।
- इन मामलों पर विस्तार से चर्चा करने के लिए पर्याप्त समय की कमी, बहस की गुणवत्ता और संभावित परिणामों दोनों को कमजोर करती है।
- एक और समस्या खुफिया और जांच एजेंसियों सहित कई सुरक्षा एजेंसियों की उपस्थिति है, जो शायद ही कभी एक सामान्य उद्देश्य के साथ कार्य करती हैं।
- उनकी तकनीक और तौर-तरीके अलग-अलग होते हैं, जिससे अक्सर दृष्टिकोण में विरोधाभास होता है।
- एजेंसियों के प्रसार का उद्देश्य, विशेष आवश्यकताओं के लिए विशेष एजेंसियों का निर्माण करना था, जबकि ऐसा नहीं हुआ है।
- अलग-अलग एजेंसियां बोझ कम करना तो दूर, वे अकसर सही विश्लेषण और जांच में भी रुकावट डालती हैं।
- बदलता हुआ सुरक्षा परिदृश्य, कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का निर्माण कर रहा है। 21वीं सदी की प्रगति के साथ, भविष्य में विभिन्न सुरक्षा समस्याएं उत्पन्न होंगी।
- उनके आयाम अभी तक स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन जो पहले से ही स्पष्ट है वह यह है कि उभरती चुनौतियों को तेजी से तकनीकी परिवर्तन और डेटा युद्ध के उदय से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए अधिक नवीनता और चपलता के साथ-साथ नए संज्ञानात्मक कौशल के प्रदर्शन की आवश्यकता होगी।
- इन परिस्थितियों में निर्णय लेने की प्रक्रिया में बुनियादी बदलावों की आवश्यकता है, जिससे उच्च स्तर पर अधिक उद्देश्यपूर्ण चर्चा होती हो सके।
- यह विषय वर्तमान में प्रौद्योगिकी और भीड़ प्रबंधन दोनों में नए कौशल के संयोजन की मांग करता है, जो सुरक्षा एजेंसियों के बीच आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।
- देश के अधिकांश सुरक्षा बलों का ध्यान अनिवार्य रूप से आतंकवाद जैसे चल रहे खतरों पर केंद्रित रहता है, जिसके परिणामस्वरूप कानून और व्यवस्था प्रबंधन को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
- आज के गुस्से और अक्सर अनियंत्रित भीड़ को संभालने के लिए केवल तकनीक के अलावा, कौशल और अंतर्निहित क्षमताओं के एक नए सेट की आवश्यकता है।
- भारी-भरकम दृष्टिकोण वाला उपाय, समस्या हल करने की तुलना में अधिक समस्याएं पैदा करता है। इस तरह का कोई भी दृष्टिकोण कानून प्रवर्तन एजेंसियों और जनता के बीच विनाशकारी विभाजन की ओर ले जाता है, ऐसे समय में जब नई प्रथाएं और कौशल उचित उपाय हो सकते हैं।
- पुराने समाधानों को दोहराने की तुलना में, स्पष्ट रूप से आवश्यक है कि कृत्रिम बुद्धि सहित प्रौद्योगिकी कई समस्याओं का उत्तर दे सकती है, अतः इनका प्रयोग किया जाना चाहिए।
- आंदोलनकारी भीड़ के मनोविज्ञान को समझना और बदले में, मामले के हाथ से निकलने से पहले उन्हें अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों के खतरों का एहसास कराना जन्मजात कौशल नहीं है, बल्कि एक अर्जित कौशल है और इस पर बेहतर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को सही गुण प्रदान किये जाने चाहिए, और उन्हें पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
- इसके लिए टॉप-डाउन दृष्टिकोण की आवश्यकता है, क्योंकि हथियार और प्रौद्योगिकी में प्रगति जैसे अन्य मदों के लिए एजेंसियों के भीतर से संसाधनों के लिए काफी प्रतिस्पर्धा होगी।
- सुरक्षा एजेंसियों में, विशेष रूप से पुलिस के लिए कर्मियों के चयन के लिए भी पूर्ण बदलाव की आवश्यकता है।
- 21वीं सदी 20वीं सदी से बहुत अलग साबित हो रही है और सुरक्षा एजेंसियों को संभालने के लिए कर्मियों के चुनाव पर इस काम के लिए समर्पित होने की तुलना में अधिक उच्च-स्तरीय ध्यान देने की आवश्यकता है।
- पुलिस बल अक्सर विभिन्न प्रकार की रणनीति और कौशल का उपयोग करते हैं और सोशल मीडिया और ट्विटर सहित विकासशील स्थितियों पर नज़र रखने के लिए सामान्य दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं।
- पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए, केवल नए कौशल प्राप्त करने से ज्यादा, उन्हें एक अलग मानसिकता विकसित करनी चाहिए, जिसमें यह भी शामिल होना चाहिए कि बल हर स्थिति का जवाब नहीं हो सकता है।
- ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस का उचित उपयोग आज कई कानून और व्यवस्था की स्थितियों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण कारक बन सकता है।
- वर्तमान में आवश्यकता और खुले स्रोतों से जानकारी का सर्वोत्तम उपयोग करने के बीच एक बड़ा अंतर मौजूद है।
निष्कर्ष :
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