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The Hindi Editorial Analysis - 1st November 2022 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में विस्तार


संदर्भ

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को लागत प्रभावी उपग्रहों के निर्माण और कम व्यय पर विदेशी उपग्रहों के अंतरिक्ष में स्थापन के लिये वैश्विक स्तर पर चिह्नित किया जाता है। वर्तमान में भारत वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2-3% की हिस्सेदारी रखता है और वर्ष 2030 तक अपनी हिस्सेदारी को 10% से अधिक करने की महत्त्वाकांक्षा रखता है।

  • निरस्त्रीकरण पर जिनेवा सम्मेलन (Geneva Conference on Disarmament) के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के एक अंग के रूप में भारत बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण एवं असैन्य उपयोग का समर्थन करता है और अंतरिक्ष क्षमताओं या कार्यक्रमों के किसी भी शस्त्रीकरण का विरोध करता है।
  • लेकिन चूँकि अंतरिक्ष क्षेत्र में वाणिज्यीकरण की गति बढ़ रही है, भारत के लिये एक प्रमुख खिलाड़ी बने रहना अधिक चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। इस परिदृश्य में, यह उपयुक्त समय है कि भारत अपनी दुविधाओं से बाहर आए और अंतरिक्ष क्षेत्र में अपनी उपस्थिति पर पुनर्विचार करे।

अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की हाल की प्रगति

  • रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी: भारत ने हाल ही में रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Defence Space Research Organisation- DSRO) द्वारा समर्थित रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (Defence Space Agency-DSA) की स्थापना की है जिसे ‘किसी प्रतिद्वंद्वी की अंतरिक्ष क्षमता को कमतर करने, बाधित करने, नष्ट करने या धोखा दे सकने’ (degrade, disrupt, destroy or deceive an adversary’s space capability) हेतु आयुध निर्माण का कार्य सौंपा गया है।
  • इसके अलावा, भारत के प्रधानमंत्री द्वारा गांधीनगर में आयोजित डिफेंस एक्सपो 2022 में रक्षा अंतरिक्ष मिशन (Defence Space Mission) का शुभारंभ किया गया।
  • उपग्रह विनिर्माण क्षमताओं का विस्तार: भारत का उपग्रह विनिर्माण अवसर वर्ष 2025 तक 3.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा जो वर्ष 2020 में 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • हाल ही में भारत के हैवी-लिफ्ट रॉकेट GSLV Mk-III (जिसे मिशन के लिये लॉन्च व्हीकल मार्क-3 का नाम दिया गया था) ने यूके अवस्थित ‘OneWeb’ कंपनी के 36 उपग्रहों को सफलतापूर्वक निर्धारित कक्षाओं में स्थापित किया।
  • IN- SPACe: भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग कर सकने के मामले में निजी कंपनियों को एकसमान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre-  IN-SPACe) की स्थापना की गई है।
  • यह मंच भारत के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने अथवा अंतरिक्ष से संबंधित गतिविधियों में भागीदारी की इच्छा रखने वाले निकायों और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करता है।
  • ‘संवाद’ कार्यक्रम: स्कूली छात्रों के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रोत्साहन एवं संपोषण के लिये ‘इसरो’ ने अपने बेंगलुरु केंद्र पर संवाद (SAMVAD) नामक छात्र आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया है।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबद्ध वर्तमान चुनौतियाँ

  • निजी क्षेत्र के लिये अपर्याप्त अवसर: भारत में अंतरिक्ष विभाग (DoS) प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन कार्यरत है और प्रत्यक्ष रूप से इसरो को नियंत्रित करता है। इसरो की एक वाणिज्यिक शाखा भी है जिसे ‘एंट्रिक्स’ (Antrix) के नाम से जाना जाता है; यह इसरो के अंतरिक्ष उत्पादों एवं प्रौद्योगिकियों का प्रसार अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक आधार तक करती है।
  • इस प्रकार, सरकार नियामक और वाणिज्यिक निष्पादक की दोहरी भूमिका निभाती है, जिसके कारण निजी क्षेत्र की भागीदारी में महत्त्वपूर्ण अड़चनें उत्पन्न हुई हैं।
  • इसके कारण निजी क्षेत्र अपनी बौद्धिक संपदा (intellectual property) को सरकार के साथ साझा करने को लेकर भी एक चिंता रखते हैं।
  • वाणिज्यीकरण के संबंध में विनियमों का अभाव: Starlink-SpaceX द्वारा इंटरनेट सेवाओं के लिये और जेफ़ बेज़ोस द्वारा परिकल्पित अंतरिक्ष पर्यटन के लिये निजी उपग्रह अभियानों के विकास के कारण बाह्य अंतरिक्ष के वाणिज्यीकरण की गति बढ़ रही है।
  • यदि एक विनियामक ढाँचे का निर्माण नहीं किया जाता है तो संभव है कि बढ़ता वानिज्यीकरण भविष्य में एकाधिकार की स्थिति को जन्म देगा।
  • अंतरिक्ष मलबे की वृद्धि: बाह्य अंतरिक्ष अभियानों की वृद्धि के साथ ही अंतरिक्ष मलबों (Space Debris) का संचय भी बढ़ेगा। चूँकि कोई भी पिंड अत्यंत तेज़ गति से पृथ्वी की परिक्रमा करता है, अंतरिक्ष मलबे का एक छोटा-सा टुकड़ा भी अंतरिक्ष यान के लिये भारी घातक साबित हो सकता है।
  • अंतरिक्ष मलबे ओजोन रिक्तीकरण (ozone depletion) में भी योगदान कर सकते हैं।
  • चीन की अंतरिक्ष छलांग: अन्य देशों की तुलना में चीनी अंतरिक्ष उद्योग का तेज़ी से विकास हुआ है। इसने सफलतापूर्वक अपना स्वयं का नेविगेशन सिस्टम ‘BeiDou’ लॉन्च किया है।
  • इस बात की प्रबल संभावना है कि चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के सदस्य देश भी चीनी अंतरिक्ष क्षेत्र में योगदान देंगे या इसमें शामिल होंगे जिससे चीन की वैश्विक स्थिति सुदृढ़ होगी।

अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का और अधिक उपयोग कैसे किया जा सकता है?

  • अंतरिक्ष-आधारित तकनीक का उपयोग कर स्मार्ट खेती: भारत दूर संवेदी उपग्रह विकसित करने में अपनी अंतरिक्ष अनुसंधान क्षमता का उपयोग कर सकता है जो मृदा, सूखे की स्थिति और फसल विकास की निगरानी के लिये महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करता है।
  • उपग्रहों के माध्यम से वर्षा का आकलन किसानों को उनकी फसलों के लिये आवश्यक सिंचाई के समय और मात्रा की योजना बनाने में मदद कर सकता है।
  • इसके साथ ही, उपग्रह आधारित निगरानी के माध्यम से खेतों को कीटों के हमले से बचाने के लिये पूर्व-चेतावनी प्रणाली विकसित की जा सकती है।
  • राष्ट्रीय कृषि सूखा मूल्यांकन और निगरानी प्रणाली (National Agricultural Drought Assessment and Monitoring System- NADAMS) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत सृजित अवसंरचना एवं परिसंपत्तियों की जियो-टैगिंग इस दिशा में सराहनीय कदम है।
  • भारत के लिये Space4Women जैसी परियोजना: Space4Women बाह्य अंतरिक्ष मामलों के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office for Outer Space Affairs- UNOOSA) परियोजना है जो अंतरिक्ष क्षेत्र में लैंगिक समता एवं महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है।
    • भारत में ग्रामीण स्तर पर अंतरिक्ष जागरूकता कार्यक्रम शुरू करना लाभप्रद होगा। इसके अतिरिक्त, विशेष रूप से छात्राओं के लिये ‘कॉलेज-इसरो इंटर्नशिप कॉरिडोर’ का निर्माण किया जा सकता है ताकि वे धरती से पार अंतरिक्ष में भी अपने पंख पसार सकने की संभावनाओं से परिचित हो सकें।
    • भारत की 750 स्कूली छात्राओं द्वारा निर्मित आज़ादीसैट (AzaadiSAT) इस दिशा में एक दृढ़ कदम है।
  • अस्पतालों को परस्पर जोड़ना, जीवन की रक्षा करना: भारत ‘टेलीमेडिसिन’ के क्षेत्र में उपग्रह संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकता है। भारत के प्रमुख शहरों में अवस्थित विशेषज्ञ अस्पतालों को देश के ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों के सैकड़ों छोटे अस्पतालों से संबद्ध कर ग्रामीण क्षेत्रों में सटीक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान की जा सकती है।
  • आत्मरक्षा क्षमताओं का विकास: चूँकि अंतरिक्ष एक चौथे युद्धक्षेत्र के रूप में उभर रहा है, भारत को पर्याप्त अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • काली (Kilo Ampere Linear Injector- KALI) को देश की शांति को बाधित करने के उद्देश्य से आने वाले किसी भी मिसाइल के सक्षम प्रतिरोध के रूप में डिज़ाइन किया जा रहा है।
    • अंतरिक्ष में दक्षता सेनाओं को भी एक शक्ति निर्माण में सक्षम करेगी जहाँ वृक्ष-शीर्ष के ऊपर की किसी भी गतिविधि को देखा जा सकेगा और उसका प्रतिरोध किया जा सकेगा।
    • अंतरिक्ष दक्षता वैश्विक शक्ति समीकरण में पदानुक्रम की भी एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक होगी। इसलिये, वास्तविक अर्थों में एक विकसित भारत’ को एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति के रूप में भी उभरना होगा।
  • स्वच्छ अंतरिक्ष के लिये तकनीकी हस्तक्षेप: सेल्फ-ईटिंग रॉकेट, सेल्फ-वैनिशिंग सैटलाइट और अंतरिक्ष मलबों को पकड़ने के लिये रोबोटिक आर्म जैसी तकनीकें भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक खोजकर्ता सह समस्या समाधानकर्ता बनने में मदद कर सकती हैं।
  • अंतरिक्ष बाज़ार हब के रूप में उभरना: भारत अंतरिक्ष बाज़ार के लिये लागत-प्रतिस्पर्द्धी विश्वस्तरीय उत्पादों एवं सेवाओं की प्रतिकृति के लिये स्थानीय बाज़ार स्थितियों (प्रतिभा पूल, निम्न श्रम लागत, इंजीनियरिंग सेवाओं) का लाभ उठा सकता है।
  • अंतरिक्ष में एक स्थायी उपस्थिति की स्थापना करना: भारत के लिये अपनी अंतरिक्ष उपस्थिति पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है और इस क्रम में इसरो ने मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित किया है जिसकी शुरुआत आगामी गगनयान मिशन के साथ हुई है।
  • भारत को अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग की पहल करनी चाहिये और दीर्घावधि में एक ग्रह रक्षा कार्यक्रम की योजना बनानी चाहिये।
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FAQs on The Hindi Editorial Analysis - 1st November 2022 - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

1. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्या है?
उत्तर: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी वह विज्ञान है जो अंतरिक्ष में उपग्रहों, उर्जा संसाधनों, यातायात और अन्य बाहरी वस्त्रों का अध्ययन करता है और उनका उपयोग करता है। इसमें रॉकेट साइंस, उपग्रह प्रौद्योगिकी, नव यान प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष जीविका विज्ञान, खागोल विज्ञान और अंतरिक्ष यात्रा शामिल होते हैं।
2. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में उपग्रहों का क्या महत्व है?
उत्तर: उपग्रहों का अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान होता है। वे सूचना संचार, निरीक्षण, भू-वैज्ञानिक अनुसंधान, मौसम पूर्वानुमान, जीविका समर्थन और दूसरे उद्देश्यों के लिए उपयोग होते हैं। उपग्रहों का निर्माण, प्रक्षेपण, संचालन और उनकी व्यवस्था अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का मुख्य ध्येय होता है।
3. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्या-क्या शामिल करती है?
उत्तर: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी कई विषयों को शामिल करती है। इसमें रॉकेट साइंस, उपग्रह प्रौद्योगिकी, नव यान प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष जीविका विज्ञान, खागोल विज्ञान और अंतरिक्ष यात्रा शामिल होते हैं। यह विभिन्न विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्रों को मिलाकर अंतरिक्ष में उपयोग के लिए तकनीकी, वैज्ञानिक और व्यावसायिक तत्वों का अध्ययन करती है।
4. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लाभ क्या हैं?
उत्तर: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लाभ विशाल हैं। इसके माध्यम से हम निरीक्षण, संचार, यातायात, भू-वैज्ञानिक अनुसंधान, खागोल विज्ञान, मौसम पूर्वानुमान, जीविका समर्थन और अन्य कई उद्देश्यों को पूरा कर सकते हैं। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी द्वारा हम भू-वैज्ञानिक डेटा, सूचना संचार, और विभिन्न तकनीकी और वैज्ञानिक अवधारणाओं का अध्ययन कर सकते हैं।
5. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की उपयोगिता कैसे बढ़ाई जा सकती है?
उत्तर: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की उपयोगिता को बढ़ाने के लिए हमें नवीनतम तकनीकी और वैज्ञानिक अवधारणाओं का अध्ययन करना चाहिए। इसके लिए हमें अधिक अंतरिक्ष अनुसंधान और मिशनों को शुरू करने की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लिए वैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, और तकनीकी क्षेत्रों में तरबूजी की आवश्यकता होती है ताकि हम नई और सुदृढ़ क्षमताओं को विकसित कर सकें।
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