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भारत में शिक्षा के समक्ष चुनौतियाँ


संदर्भः-

शिक्षा सामाजिक उन्नति की अग्रदूत होती है, जो व्यक्तियों को ज्ञान और कौशल प्रदान करके राष्ट्रीय विकास को गतिशील बनाती है। भारत में शैक्षिक प्रणाली बहुआयामी चुनौतियों से जूझ रही है, जिसमें राजनीतिक हस्तक्षेप से लेकर ट्यूशन संस्कृति का व्यापक उदय शामिल है।

The Hindi Editorial Analysis- 22nd December 2023 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

चुनावी सौदेबाजी और तात्कालिक आवश्यकताएं:

  • भारत में चुनावों के दौरान आर्थिक रूप से वंचित लोग अपनी मतदान शक्ति का इस्तेमाल गंभीर समस्याओं के तुरंत समाधान के लिए करते हैं। वे मुफ्त की चीजें, कम कीमतें और बेहतर भविष्य के वादे चाहते हैं। लेकिन इससे हम वास्तव में महत्वपूर्ण मुद्दों को भूल जाते हैं, जैसे यह सुनिश्चित करना कि सभी के पास जीवनयापन के लिए पर्याप्त पैसा हो, आजीविका के लिए नौकरी हो और अच्छे स्कूल एवं अस्पताल हों। आमतौर पर सरकार का झुकाव दीर्घकालिक और स्थायी सुधारों के बजाय अल्पकालिक और लोकप्रिय उपायों की ओर होता है।

शिक्षा क्षेत्र में चुनौतियाँ:

  • भारत का शिक्षा क्षेत्र संकटपूर्ण स्थिति में है, जहां शिक्षा का व्यापारीकरण और राजनीतिकरण स्थिति को और संकटपूर्ण बना रहे हैं। इस क्षेत्र को नया रूप देने के लिए सावधानीपूर्वक चरणबद्ध रणनीति अति आवश्यक है। हाल की घटनाएं तकनीक पर अत्यधिक भरोसे की सीमाओं को उजागर करती हैं, जहां एडटेक स्टार्ट-अप धन की लालसा में शिक्षा का व्यावसायीकरण कर रहे हैं।
  • प्रौद्योगिकी के उपयोग को शिक्षा प्रणाली में गहराई से व्याप्त मुद्दों के लिए रामबाण के रूप में देखने के प्रति सावधानी बरतने की आवश्यकता है। शिक्षा में व्यापक निवेश आधारित प्रौद्योगिकी को प्राथमिकता देने वाले बाजार-संचालित दृष्टिकोण की भी आलोचना की जा रही है। वर्तमान में 58 अरब रुपये से अधिक का तेजी से बढ़ता ट्यूशन उद्योग सरकारी नीतियों के प्रणालीगत विफलताओं का एक स्पष्ट प्रमाण है।
  • ट्यूशन सेंटरों के लिए माता-पिता की प्राथमिकता: माता-पिता का पारंपरिक स्कूलों की तुलना में ट्यूशन सेंटरों की ओर झुकाव चिंताजनक है। इन अनियमित केंद्रों में व्याप्त दबाव और नकारात्मक प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप बच्चे मानसिक तनाव से प्रेरित होकर आत्महत्याएं कर रहे हैं। सरकारी निगरानी और शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार में नाकाम रहने से ट्यूशन सेंटरों का प्रसार बढ़ता जा रहा है।
  • सामाजिक-आर्थिक अंतराल और गुणवत्ता का असंतुलन: मौजूदा शिक्षा प्रणाली अनजाने में "सुशिक्षित" अमीर परिवारों और "कम पढ़े-लिखे" निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों के बीच के अंतराल को तेजी से बढ़ा रही है। सभी स्तरों पर शिक्षण की गुणवत्ता चिंताजनक स्थिति में है, जो ट्यूशन सेंटरों के प्रसार का मुख्य कारण है। ASER रिपोर्ट 2023 के आंकड़े छात्रों के बुनियादी कौशल में निपुणता के स्तर के बारे में चिंताजनक आंकड़े प्रस्तुत करते हैं।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढांचा:
    • UDISE (2019-20) के अनुसार, केवल 12% स्कूलों में इंटरनेट सुविधाएं हैं और 30% में कंप्यूटर हैं।
    • 42% के पास फर्नीचर नहीं है, 23% स्कूलों में बिजली नहीं है, 22% के पास विकलांगों के लिए रैंप नहीं है और 15% के पास WASH सुविधाएं नहीं हैं।
  • उच्च ड्रॉपआउट दर:
    • प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर अधिक है।
    • NFHS-5 रिपोर्ट के अनुसार 21.4% लड़कियां और 35.7% लड़के पढ़ाई में रुचि न होने के कारण पढ़ाई छोड़ देते हैं।
  • प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन):
    • शीर्ष संस्थानों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा, कई छात्रों को विदेश में शिक्षा लेने के लिए प्रेरित करती है।
    • शिक्षा का मात्रात्मक विस्तार तो हुआ है, लेकिन गुणात्मक पहलू पीछे छूट रहे हैं।
  • व्यापक निरक्षरता:
    • विभिन्न प्रयासों के बावजूद लगभग 25% भारतीय निरक्षर हैं, जिससे सामाजिक और डिजिटल बहिष्करण होता है।
  • भारतीय भाषाओं की उपेक्षा:
    • भारतीय भाषाएं शिक्षा के माध्यम के रूप में पूर्णतः विकसित नहीं हो पाईं हैं। अंग्रेजी, विज्ञान के विषयों पर अभी भी हावी बनी हुई है, जिससे असमान अवसर पैदा होते हैं।
    • भारतीय भाषाओं में मानक प्रकाशन का अभाव है।
  • तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का अभाव:
    • सामान्य ज्ञान वाली शिक्षा प्रणाली, तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के अभाव की ओर ले जाती है।
    • यह शिक्षित बेरोजगार व्यक्तियों की बढ़ती संख्या में योगदान देता है।
  • आर्थिक असमानता:
    • ग्रामीण क्षेत्रों में कम आय के कारण शिक्षा से अधिक काम को प्राथमिकता दी जाती है। ○ जागरूकता और वित्तीय स्थिरता की कमी, विशेष रूप से उच्च शिक्षा में नामांकन में बाधा उत्पन्न करती है।
  • लैंगिक असमानता:
    • विविध प्रयासों के बावजूद गरीबी, कन्या भ्रूण हत्या और बाल विवाह जैसी सांस्कृतिक प्रथाओं से प्रेरित लैंगिक असमानता बनी हुई है।
  • स्वच्छता का अभाव:
    • देश भर के स्कूलों में स्वच्छता के मुद्दे शैक्षिक प्रगति में बाधक हैं।

शिक्षा में सुधार के लिए व्यापक समाधान:

  1. सामाजिक भागीदारी और स्वयंसेवा:
    • शिक्षा प्रणाली में योगदान के लिए वरिष्ठ नागरिकों, सिविल सोसायटी और स्वयंसेवकों को शामिल किया जाना चाहिए।
    • शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया में नए दृष्टिकोण लाने के लिए समाज के सामूहिक ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाया जाना चाहिए ।
  2. माता-पिता की भागीदारी के लिए सशर्त प्रोत्साहन:
    • महिलाओं को दी जाने वाली नकद राशि को बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन से जोड़कर माता-पिता की भागीदारी और वित्तीय लाभों के बीच सीधा संबंध स्थापित करना चाहिए ।
    • बच्चे की शैक्षिक यात्रा के लिए माता-पिता की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  3. शिक्षक की जवाबदेही और कम सरकारी हस्तक्षेप:
    • शिक्षकों को छात्रों के परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। भविष्य को आकार देने में शिक्षकों की भूमिका पर जोर दिया जाना चाहिए।
    • शैक्षणिक संस्थानों को नवाचार करने और बदलती जरूरतों के अनुसार समायोजन करने की स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप को कम से कम किया जाना चाहिए।
  4. समावेशी बजट आवंटन:
    • यह स्वीकार करते हुए कि निरंतर विकास और प्रगति एक सुशिक्षित आबादी पर निर्भर करती है, शिक्षा बजट को दोगुना किया जाए।
    • बढ़ा हुआ बजट आवंटन यह सुनिश्चित करे कि बुनियादी ढांचे, शिक्षक प्रशिक्षण और शैक्षिक संसाधनों में अपेक्षित सुधार लाए।

अनुभव आधारित शैक्षिक दृष्टिकोण:

  • पाठ्यक्रम में समस्या-समाधान और निर्णयन जैसे विषयों को शामिल करना।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को सम्बद्ध करने से अनुभव आधारित शिक्षा को बढ़ाया जा सकता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का कार्यान्वयन:

  • 10+2 से 5+3+3+4 प्रणाली की ओर बदलाव सुनिश्चित करना।
  • पूर्व-विद्यालयी आयु वर्ग के बच्चों को औपचारिक शिक्षा व्यवस्था में शामिल करना।

शिक्षा को रोजगार आधारित बनाना:

  • व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ एकीकृत करना।
  • छात्रों को उपयुक्त कैरियर मार्गदर्शन प्रदान करने की प्रणाली विकसित की जानी चाहिए।

भाषाई बाधा को कम करना:

  • अंग्रेजी के साथ-साथ भारतीय भाषाओं को भी समान महत्व देना।
  • अनुवाद के लिए विशेष प्रकाशन एजेंसियां स्थापित की जानी चाहिए।

अतीत से भविष्य के लिए सीखना:

  • प्राचीनकाल की समग्रतापूर्ण गुरुकुल प्रणाली से प्रेरणा ली जा सकती है।
  • आत्मनिर्भरता, सहानुभूति, रचनात्मकता और ईमानदारी जैसे मूल्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • व्यावहारिक ज्ञान अनुप्रयोग का मूल्यांकन करने वाली मूल्यांकन प्रणाली को लागू किया जाए।

निष्कर्ष:

भारत की निरंतर प्रगति और वैश्विक नेतृत्व के लिए शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण रूपांतरण की आवश्यकता है। वर्तमान बजटीय आवंटन पिछले दो दशकों से सकल घरेलू उत्पाद के 3% से कम है, जो एक संपन्न शैक्षिक परिदृश्य को विकसित करने के लिए आवश्यक संसाधनों से कम है। शिक्षा में निवेश भारत के भविष्य में एक निवेश है। यह आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देता है और भावी पीढ़ियों को कौशल और ज्ञान से परिपूर्ण बनाता है। इस रूपांतरणकारी यात्रा के लिए न केवल बढ़े हुए संसाधनों की आवश्यकता है, बल्कि साहसिक दृष्टि, नवीन दृष्टिकोण और अटूट प्रतिबद्धता की भी आवश्यकता है।

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FAQs on The Hindi Editorial Analysis- 22nd December 2023 - Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

1. भारत में शिक्षा के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर: भारत में शिक्षा के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं। कुछ मुख्य चुनौतियाँ शिक्षा की असमानता, गुरुकुल पद्धति का महत्वाकांक्षी छात्रों की अभाव, ऊर्जा की कमी और विद्यालयों में अधिक छात्रों की बढ़ती संख्या शामिल हैं।
2. भारत में शिक्षा की असमानता क्या है?
उत्तर: भारत में शिक्षा की असमानता एक मुख्य चुनौती है जिसमें विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर में अन्योन्य अंतर है। इसके कारण, गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को गुणवत्ता और समान शिक्षा की पहुंच में कई समस्याएं होती हैं।
3. गुरुकुल पद्धति का महत्वाकांक्षी छात्रों की अभाव क्या है?
उत्तर: गुरुकुल पद्धति का महत्वाकांक्षी छात्रों की अभाव एक चुनौती है जहां छात्रों को गुरुकुलों में प्रशिक्षण और शिक्षा की कमी होती है। यह उन छात्रों को प्रभावित करता है जो गुरुकुल पद्धति से वंचित हो जाते हैं और अधिकतर शिक्षा की सुविधा के लिए नगरों और शहरों में आवास करने की आवश्यकता होती है।
4. ऊर्जा की कमी किस तरह शिक्षा के समक्ष चुनौती होती है?
उत्तर: ऊर्जा की कमी शिक्षा के समक्ष एक महत्वपूर्ण चुनौती है क्योंकि घरेलू और बगीचे में ऊर्जा की कमी से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यालयों को बिजली की आवंटन में समस्या होती है। यह छात्रों को पढ़ाई और उनकी प्रदर्शन में असहजता का कारण बनती है।
5. विद्यालयों में बढ़ती संख्या के चलते छात्रों को क्या समस्याएं हो सकती हैं?
उत्तर: विद्यालयों में बढ़ती संख्या के कारण विद्यार्थियों को कई समस्याएं हो सकती हैं। इसमें शिक्षक-छात्र अनुपात में कमी, सुविधाओं की कमी, शारीरिक संरचना में समस्या, और अव्यवस्थित शिक्षा की कमी शामिल हो सकती हैं।
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