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भारत में कुपोषण

भारत कुपोषण के व्यापक बोझ के साथ एक उल्लेखनीय चुनौती का सामना कर रहा है। यह मुद्दा देश में सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक भिन्नताओं के जटिल मिश्रण से जुड़ा हुआ है। इस व्यापक समस्या की बहुमुखी प्रकृति पोषण संबंधी संकेतकों में आगे और गिरावट को रोकने के लिये तत्काल ध्यान देने और समर्पित संसाधनों का निवेश करने की मांग रखती है।

कुपोषण (Malnutrition):

  • परिचय:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कुपोषण का तात्पर्य किसी व्यक्ति की ऊर्जा एवं पोषक तत्व ग्रहण में कमी, अधिकता या असंतुलन से है।
    • यह ऐसी स्थिति है जो किसी व्यक्ति के आहार में ऐसे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्वों के अपर्याप्त सेवन से उत्पन्न होती है जो इष्टतम स्वास्थ्य, वृद्धि एवं विकास के लिये आवश्यक होते हैं।
  • प्रकार:
    • अल्पपोषण (Undernutrition):
      • वेस्टिंग (Wasting): कद अनुरूप निम्न वजन (Low weight-for-height) को ‘वेस्टिंग’ के रूप में जाना जाता है। यह तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति के पास खाने के लिये पर्याप्त भोजन नहीं होता है और/या उन्हें कोई संक्रामक बीमारी हो जाती है।
      • स्टंटिंग (Stunting): आयु अनुरूप निम्न कद (Low height-for-age) को ‘स्टंटिंग’ के रूप में जाना जाता है। यह प्रायः अपर्याप्त कैलोरी ग्रहण के कारण उत्पन्न होता है।
      • अल्प-वजन (Underweight): आयु अनुरूप निम्न वजन (low weight-for-age) को अल्प-वजन के रूप में जाना जाता है। अल्प-वजन से ग्रस्त बच्चे स्टंटिंग और वेस्टिंग या दोनों के शिकार हो सकते हैं।
    • सूक्ष्म पोषक तत्व संबंधी कुपोषण:
      • विटामिन A की कमी: विटामिन A के अपर्याप्त सेवन से दृष्टि दोष, कमज़ोर प्रतिरक्षा (immunity) और अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
      • लौह-तत्व की कमी: लौह-तत्व या आयरन की कमी एनीमिया का कारण बनती है जिससे शरीर की ऑक्सीजन परिवहन क्षमता प्रभावित होती है और इससे थकान एवं कमज़ोरी महसूस होती है।
      • आयोडीन की कमी: इस थायरॉइड से संबंधित विकार उत्पन्न होते हैं जो वृद्धि और संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करते हैं।
    • मोटापा (Obesity): अत्यधिक कैलोरी का सेवन, प्रायः गतिहीन जीवनशैली के साथ मिलकर मोटापे का कारण बन सकता है। यह शरीर में अतिरिक्त वसा के संचय के रूप में प्रकट होता है, जिससे हृदय संबंधी बीमारियाँ और मधुमेह जैसे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होते हैं।
      • वयस्कों में अति-वजन (overweight) को 25 या उससे अधिक के BMI (Body Mass Index), जबकि मोटापे को 30 या उससे अधिक के BMI के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • आहार-संबंधी गैर-संचारी रोग: इसमें हार्ट अटैक एवं स्ट्रोक जैसे हृदय संबंधी रोग शामिल हैं, जो प्रायः उच्च रक्तचाप से जुड़े होते हैं और जो मुख्यतः अस्वास्थ्यकर आहार एवं अपर्याप्त पोषण से उत्पन्न होते हैं।
  • वैश्विक व्यापकता:
    • वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2022 में 5 वर्ष से कम आयु के 149 मिलियन बच्चों के स्टंटिंग, 45 मिलियन बच्चों के वेस्टिंग और 37 मिलियन बच्चों के अति-वजन या मोटापे का शिकार होने का अनुमान लगाया गया था।
    • 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौतों के लगभग आधे हिस्से के लिये कुपोषण को ज़िम्मेदार माना जाता है।
    • 1.9 बिलियन वयस्क अति-वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि 462 मिलियन वयस्क अल्प-वजन के शिकार हैं।

भारत में कुपोषण की गंभीरता (Severity of Malnutrition):

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार:
    • कुपोषण की व्यापकता:
      • 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे स्टंटिंग के शिकार हैं
      • 19.3% बच्चे वेस्टिंग के शिकार हैं
      • 32.1% बच्चे अल्प-वजन के शिकार हैं
      • 3% बच्चे अति-वजन के शिकार हैं
      • 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में कुपोषण का स्तर 18.7% है
    • एनीमिया की व्यापकता:
      • पुरुषों में 25.0% (15-49 वर्ष)
      • महिलाओं में 57.0% (15-49 वर्ष)
      • किशोर बालकों में 31.1% (15-19 वर्ष )
      • किशोर बालिकाओं में 59.1% (15-19 वर्ष )
      • गर्भवती महिलाओं में 52.2% (15-49 वर्ष)
      • बच्चों में 67.1% (6-59 माह)
  • विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2023: भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार ग्रहण करने का सामर्थ्य नहीं रखती, जबकि 39% पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त करने में अक्षम रहते हैं।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2023: भारत का वर्ष 2023 का GHI स्कोर 28.7 है, जो GHI सेवेरिटी ऑफ हंगर स्केल के अनुसार गंभीर स्थिति को प्रकट करता है।
    • भारत में बच्चों की वेस्टिंग दर 18.7 है, जो रिपोर्ट में सर्वाधिक है।

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भारत में कुपोषण के परिणाम

  • स्वास्थ्य संबंधी निहितार्थ:
    • अवरूद्ध वृद्धि: कुपोषण, विशेष रूप से बच्चों में, अवरूद्ध वृद्धि का कारण बन सकता है, जिससे शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास प्रभावित हो सकता है।
    • कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली: कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण कुपोषित व्यक्ति संक्रमण के प्रति अधिक भेद्य/संवेदनशील होते हैं, जिससे रुग्णता और मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
    • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी: सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी वाले भोजन के लगातार सेवन से आयरन, विटामिन A और ज़िंक की कमी हो सकती है, जिससे प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर हो सकता है।
  • शैक्षिक परिणाम:
    • संज्ञानात्मक हानि: आरंभिक बाल्यावस्था के दौरान कुपोषण की स्थिति संज्ञानात्मक कार्य को प्रभावित कर सकती है, जो अधिगम/लर्निंग क्षमताओं और शैक्षणिक प्रदर्शन में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
    • स्कूल ड्रॉपआउट दर में वृद्धि: कुपोषित बच्चों को नियमित रूप से स्कूल जाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और उनके स्कूल छोड़ने की संभावना अधिक होती है, जिससे उनकी समग्र शिक्षा प्रभावित होती है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • उत्पादकता की हानि: कुपोषण के कारण बाल्यावस्था और वयस्कता दोनों में कार्य उत्पादकता में कमी आ सकती है, जिससे देश का समग्र आर्थिक उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
    • स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि: कुपोषण की व्यापकता स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर उच्चतर बोझ डालती है, जिससे सरकार और व्यक्तियों के लिये स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि होती है।
  • अंतर-पीढ़ीगत प्रभाव:
    • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य: एनीमिया से पीड़ित माताओं में एनीमिया से पीड़ित बच्चों को जन्म देने की संभावना अधिक होती है, जिससे पोषण संबंधी कमियों का चक्र जारी रहता है।
    • दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव: कुपोषित बच्चों द्वारा वयस्कता में स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने की अधिक संभावना होती है, जिससे आबादी के समग्र स्वास्थ्य एवं सेहत पर असर पड़ता है।
  • सामाजिक परिणाम:
    • भेद्यता की वृद्धि: कुपोषण प्रायः हाशिए पर स्थित और आर्थिक रूप से वंचित समुदायों को अधिक प्रभावित करता है, जिससे सामाजिक असमानताएँ बढ़ती हैं।
    • कलंक और भेदभाव: कुपोषण का सामना करने वाले व्यक्तियों को सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य एवं सेहत पर असर पड़ सकता है।
  • राष्ट्रीय विकास:
    • मानव पूंजी में कमी: कुपोषण मानव पूंजी के विकास में बाधा उत्पन्न करता है, जिससे आर्थिक और सामाजिक प्रगति की संभावना सीमित हो जाती है।
    • स्वास्थ्य देखभाल बोझ में वृद्धि: कुपोषण की व्यापकता स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों पर बढ़ते बोझ में योगदान करती है, जिससे अन्य आवश्यक स्वास्थ्य पहलों से ध्यान एवं संसाधनों के विचलन की स्थिति बनती है।

भारत में कुपोषण से निपटने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ:

  • आर्थिक असमानता: निम्न आर्थिक स्थिति के कारण गरीब लोग प्रायः पौष्टिक भोजन का वहन नहीं कर पाते या उनकी पहुँच सीमित होती है। प्राकृतिक आपदाओं, संघर्षों या कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण भी उन्हें खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
    • भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने में अक्षम है।
  • अपर्याप्त आहार सेवन और आहार में बदलाव: आहार पैटर्न विविध और संतुलित विकल्पों से प्रसंस्कृत और शर्करा-युक्त विकल्पों की ओर स्थानांतरित हो गया है। भारत में कुपोषण के लिये आहार विविधता की कमी और निम्न गुणवत्तापूर्ण भोजन का सेवन भी प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
    • भारतीय आहार में प्रायः आयरन, विटामिन A और ज़िंक जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती है।
  • स्वच्छता की खराब स्थिति: स्वच्छता और साफ-सफाई अभ्यासों की खराब स्थिति रोगजनकों और परजीवियों से संपर्क बढ़ा सकती है जो संक्रमण एवं बीमारियों का कारण बन सकता है। ये सूक्ष्मजीव शरीर में पोषक तत्वों के अवशोषण एवं उपयोग को प्रभावित कर सकते हैं और कुपोषण का कारण बन सकते हैं।
    • NFHS-5 में पाया गया कि केवल 69% घर ही बेहतर स्वच्छता सुविधा का उपयोग करते हैं।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य अवसंरचना का अभाव: भारत में बहुत-से लोग टीकाकरण, प्रसवपूर्व देखभाल या संक्रमण के उपचार जैसी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अभाव रखते हैं। इससे बीमारियों और स्वास्थ्य-संबंधी जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है जो कुपोषण की स्थिति को और बदतर बना सकता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रति 1000 लोगों की आबादी पर एक चिकित्सक और 3 आदर्श नर्स घनत्व की अनुशंसा है, जबकि भारत में प्रति 1000 लोगों पर 0.73 चिकित्सक और 1.74 नर्स ही उपलब्ध हैं।
  • विलंबित और असंगत आपूर्ति: कार्यक्रम कार्यान्वयन में देरी और सेवाओं की असंगत आपूर्ति पोषण संबंधी हस्तक्षेपों में अंतराल में योगदान करती है।
    • NFHS-5 के अनुसार, 6 वर्ष से कम आयु के केवल 50.3% बच्चों को ही आंगनवाड़ी से कोई सेवा प्राप्त हुई।
  • अपर्याप्त निगरानी और मूल्यांकन: कमज़ोर निगरानी और मूल्यांकन तंत्र कार्यक्रम की प्रभावशीलता के आकलन में बाधा डालते हैं।
    • कार्यक्रम के परिणामों पर सटीक डेटा के अभाव में कमियों की पहचान करना और आवश्यक सुधार लागू करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

कुपोषण के विरुद्ध भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • मिशन पोषण 2.0
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY)
  • मध्याह्न भोजन योजना
  • किशोर बालिकाओं के लिये योजना (SAG)
  • माँ का पूर्ण स्नेह (MAA) कार्यक्रम
  • पोषण वाटिकाएँ

भारत में कुपोषण से प्रभावी ढंग से कैसे निपटा जा सकता है?

  • ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ को अपनाना: मुख्य खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण के दौरान आवश्यक पोषक तत्वों को शामिल करना अपेक्षाकृत निम्न लागत वाली विधि है, जो इसे बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाती है।
    • वर्ष 1992 में राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (National Iodine Deficiency Disorders Control Programme) के तहत आयोडीन युक्त नमक को अपनाने से घेंघा रोग की दर में व्यापक रूप से कमी आई।
  • एक केंद्रित SBCC कार्ययोजना विकसित करना: सरकार को कुपोषण को संबोधित करने के लिये विशेष रूप से तैयार एक सुसंरचित एवं केंद्रित सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (Social and Behavior Change Communication- SBCC) कार्ययोजना विकसित करने के लिये सहकार्यता स्थापित करनी चाहिये।
    • इस योजना में प्रभावी संचार के लिये उद्देश्यों, लक्षित लोगों, मुख्य संदेशों और रणनीतियों की रूपरेखा होनी चाहिये।
  • स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना को उन्नत बनाना: सरकार को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करने और कुपोषण का शीघ्र पता लगाने एवं प्रबंधन करने के उपाय करने चाहिये। कुपोषण के निदान एवं उपचार के लिये स्वास्थ्यकर्मियों की क्षमता में सुधार पर और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • भारत को अपनी आबादी की स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को उपयुक्त रूप से पूरा करने के लिये 3.5 मिलियन अतिरिक्त अस्पताल बिस्तरों की आवश्यकता है।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP) ने वर्ष 2025 तक सरकार के स्वास्थ्य व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के मौजूदा 1.2% से बढ़ाकर 2.5% करने की अनुशंसा की है।
  • निगरानी और मूल्यांकन: पोषण संबंधी हस्तक्षेपों के प्रभाव का पता लगाने के लिये व्यापक रूप से सक्षम निगरानी एवं मूल्यांकन प्रणाली स्थापित किये जाएँ।
    • उदाहरण के लिये, ‘पोषण ट्रैकर’ (Poshan Tracker) प्रत्येक आंगनवाड़ी में कुपोषित और ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ बच्चों पर रियल-टाइम डेटा रिकॉर्ड करता है।
  • स्थानीय रूप से उपलब्ध पौष्टिक भोजन का उपभोग करना: सरकार को ऐसे स्थानीय रूप से उपलब्ध और पारंपरिक खाद्य पदार्थों के उपभोग को बढ़ावा देना चाहिये जो आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर हों। विभिन्न प्रकार के स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थों के उपभोग को प्रोत्साहित करने से आहार विविधता बढ़ती है।
  • सामुदायिक सशक्तीकरण: पोषण कार्यक्रमों को अभिकल्पित और कार्यान्वित करने में स्थानीय समुदायों को संलग्न करें। समुदाय-आधारित पहलों से पौष्टिक खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा।
  • संचार रणनीतियाँ: लाभार्थियों के बीच विश्वास निर्माण के लिये सामुदायिक रेडियो, वीडियो जैसे संचार माध्यमों और घर-घर तक पहुँच जैसे उपायों का उपयोग करना आवश्यक है।
    • स्थानीय संदर्भों को संबोधित करते हुए बेहतर समझ और संलग्नता सुनिश्चित करने के लिये संदेशों को स्थानीय भाषाओं में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

‘शून्य भुखमरी’ के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 2 की प्राप्ति और कुपोषण के उन्मूलन के लिये भारत को अपनी आबादी के स्वास्थ्य एवं सेहत को प्राथमिकता देनी चाहिये तथा इसमें निवेश करना चाहिये। एक व्यापक एवं सहयोगात्मक रणनीति के माध्यम से, भारत कुपोषण को कम करने, अपने लोगों की पूरी क्षमता को उजागर करने और एक स्वस्थ, अधिक समृद्ध भविष्य को बढ़ावा देने की दिशा में सार्थक कार्य कर सकता है।

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