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The Hindi Editorial Analysis- 9th March 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC PDF Download

पितृसत्ता और अवैतनिक घरेलू कार्यों के परिदृश्य में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी 

The Hindi Editorial Analysis- 9th March 2024 | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly - UPSC

संदर्भ:न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भी श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी एक महत्वपूर्ण विषय बनता जा रहा है। किसी राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि का उसके कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के स्तर के साथ गहरा संबंध होता है। इस सह-संबंध को स्वीकार करने के बावजूद, भारत अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी की वृद्धि में चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह लेख भारत में श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की पड़ताल करता है जिसमें पितृसत्ता, सामाजिक मानदंड और अवैतनिक घरेलू कार्य का बोझ शामिल है। 

पितृसत्ता की भूमिका

  • भारतीय समाज में गहरी पैठ बना चुकी पितृसत्ता, श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी में मूलभूत बाधा के रूप में कार्य करती है। 
  • यह एक ऐसी सामाजिक संरचना को कायम रखता है जहां परिवार, समुदाय और बड़े पैमाने पर समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं पर प्रभुत्व रखते हैं। यह प्रभुत्व संपत्ति, आय और धन के असमान वितरण के साथ-साथ समाज द्वारा समर्थित मानदंडों और मूल्यों में भी प्रकट होता है। 
  • शिक्षा और आर्थिक विकास में प्रगति के बावजूद, पितृसत्तात्मक मानदंड गहराई तक व्याप्त हैं, जिससे कार्यबल में भागीदारी के लिए महिलाओं के अवसर सीमित हो गए हैं।
  • पितृसत्तात्मक व्यवस्था के तहत, महिलाओं की मुख्य रूप से गृहिणी की भूमिका निर्धारित को जाती है जो घरेलू कामों और देखभाल के कर्तव्यों के लिए उत्तरदायी होती हैं। 
  • इस कार्य के महत्व के बावजूद, यह आर्थिक नीतियों और राष्ट्रीय विमर्श में काफी हद तक अवैतनिक और अदृश्य बना हुआ है। 
  • इस श्रम के लिए मान्यता की कमी इसकी निम्न स्थिति को पुष्ट करती है, जो दोहराए जाने वाले कार्यों, सीमित ऊर्ध्वगामी गतिशीलता और सेवानिवृत्ति लाभों की अनुपस्थिति की विशेषता है। 
  • परिणामस्वरूप, महिला श्रम शक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा निम्न-उत्पादकता वाली भूमिकाओं तक ही सीमित रहता है जिससे श्रम बाजार में लैंगिक असमानताएँ बनी रहती हैं।

अवैतनिक घरेलू काम का बोझ

  • श्रम बाजार में महिलाओं की कम भागीदारी का एक प्रमुख कारण अवैतनिक घरेलू काम का बोझ है जो उन पर असंगत रूप से पड़ता है। 
  • महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी व्यावसायिक आकांक्षाओं के साथ-साथ घरेलू जिम्मेदारियाँ भी निभाएँ, जिससे प्रायः गतिशीलता और करियर विकल्प सीमित हो जाते हैं। 
  • बुनियादी ढांचे के समर्थन की कमी, जैसे कि पानी तक आसान पहुंच और कुशल खाना पकाने की सुविधाओं का आभाव, घरेलू काम के बोझ को और बढ़ा देती हैं, जिससे महिलाओं की घर से बाहर रोजगार के अवसरों को तलाशने की क्षमता बाधित होती है।
  • अवैतनिक घरेलू काम के मुद्दे को संबोधित करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें नीतिगत हस्तक्षेप और सामाजिक बदलाव दोनों शामिल हों। पुरुषों और महिलाओं के बीच घरेलू जिम्मेदारियों को अधिक समान रूप से पुनर्वितरित करके, परिवार महिलाओं पर तनाव को कम कर सकते हैं और श्रम बाजार में उनकी भागीदारी के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बना सकते हैं। 
  • इसके अलावा, बुनियादी ढांचे और सहायता सेवाओं में निवेश करने से महिलाओं द्वारा घरेलू कामों पर खर्च किए जाने वाले समय और ऊर्जा को कम किया जा सकता है, जिससे उन्हें अपने प्रयासों को शैक्षिक और व्यावसायिक गतिविधियों में लगाने में मदद मिलेगी।

श्रम बाज़ार में महिलाओं का शोषण

  • हालाँकि श्रम बाज़ार में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को प्रायः लैंगिक असमानताओं के समाधान के रूप में देखा जाता है लेकिन विशेष रूप से घरेलू कामगारों के बीच शोषण की व्यापकता को पहचानना आवश्यक है। 
  • कई महिलाएं, विशेष रूप से उच्च शिक्षा और पेशेवर योग्यता वाली महिलाएं, घरेलू कामगारों के रूप में कार्यबल में प्रवेश करती हैं, अनिश्चित कामकाजी परिस्थितियों और न्यूनतम श्रम अधिकारों का सामना करती हैं। 
  • अर्थव्यवस्था में उनके योगदान के बावजूद, घरेलू कामगारों को प्रायः न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा और सीमित काम के घंटों जैसी बुनियादी सुरक्षा का अभाव होता है।घरेलू कामगारों का शोषण व्यापक श्रम सुधारों और मौजूदा नियमों के मजबूत प्रवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित करता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानक, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा उल्लिखित, घरेलू श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा और श्रम बाजार में उनके उचित व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करते हैं। 
  • हालाँकि, भारत में इन सम्मेलनों के अनुसमर्थन की कमी घरेलू श्रम में लगी महिलाओं सहित कमजोर श्रमिकों के कल्याण को प्राथमिकता देने में व्यापक विफलता को दर्शाती है।

श्रम बाज़ार में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना

  • श्रम बाजार में लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से कहीं अधिक की आवश्यकता है; इसके लिए सामाजिक दृष्टिकोण और मानदंडों में मूलभूत बदलाव करना होगा । 
  • पुरुषों को घरेलू जिम्मेदारियों को साझा करने में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, जिससे महिलाओं पर बोझ कम होगा और श्रम के अधिक न्यायसंगत विभाजन को बढ़ावा मिलेगा। 
  • इसके अतिरिक्त, महिलाओं की शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और रोजगार के अवसरों तक पहुंच बढ़ाने के प्रयास उन्हें कार्यबल में प्रवेश करने और आगे बढ़ने के लिए सशक्त बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • पितृसत्ता और अवैतनिक घरेलू काम के आसमान मूल्यांकन सहित लैंगिक असमानता के मूल कारणों को संबोधित करके, भारत एक अधिक समावेशी और गतिशील श्रम बाजार बना सकता है। 
  • महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने और कार्यस्थल में उनके अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से नीतिगत पहल इस दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में आवश्यक कदम हैं। 
  • अंततः, श्रम बाजार में लैंगिक समानता प्राप्त करना केवल आर्थिक आवश्यकता का मामला नहीं है, बल्कि एक मौलिक मानवाधिकार अनिवार्यता है जिसके लिए समाज के सभी वर्गों से सामूहिक कार्रवाई और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष में, भारत के श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी पितृसत्ता, सामाजिक मानदंडों और अवैतनिक घरेलू काम के बोझ सहित कई कारकों की एक जटिल परस्पर क्रिया से प्रभावित होती है। यद्यपि हाल के वर्षों में प्रगति हुई है परंतु कार्यबल में महिलाओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण बाधाओं को दूर किया जाना अभी शेष है। पितृसत्तात्मक संरचनाओं को चुनौती देकर, घरेलू जिम्मेदारियों का पुनर्वितरण करके और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण का समर्थन करने वाली नीतियों को बढ़ावा देकर, भारत अपनी महिला कार्यबल की पूरी क्षमता का दोहन कर सकता है और समावेशी वृद्धि एवं  विकास को आगे बढ़ा सकता है। श्रम बाजार में लैंगिक समानता हासिल करना न केवल एक आर्थिक अनिवार्यता है, बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता है जिसके लिए नीति निर्माताओं, नियोक्ताओं के साथ समाज के ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।

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