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International Relations (अंतर्राष्ट्रीय संबंध): November 2022 UPSC Current Affairs | Current Affairs (Hindi): Daily, Weekly & Monthly PDF Download

SCO परिषद के प्रमुखों की बैठक

चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शासनाध्यक्षों की बैठक की मेज़बानी की।

  • संगठन के व्यापार और आर्थिक एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करने एवं SCO के वार्षिक बजट को मंज़ूरी देने के लिये SCO के शासनाध्यक्षों की बैठक सालाना आयोजित की जाती है।
  • भारत ने वर्ष 2023 के लिये SCO के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला है और 2023 के मध्य में दिल्ली में एक शिखर सम्मेलन में सभी SCO देशों के नेताओं की मेज़बानी करेगा।
  • इससे पहले SCO शिखर सम्मेलन 2022 हाल ही में उज़्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • SCO सदस्य देशों के प्रतिनिधिमंडलों के प्रमुखों ने वैश्विक और क्षेत्रीय विकास के प्रमुख मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया, SCO के भीतर व्यापार, आर्थिक, सांस्कृतिक व मानवीय सहयोग बढ़ाने के लिये प्राथमिकता वाले कदमों पर चर्चा की।
  • भारत ने कहा कि SCO सदस्यों के साथ उसका कुल व्यापार केवल 141 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का हैजिसंके कई गुना बढ़ने की क्षमता है।
  • SCO देशों के साथ भारत का अधिकांश व्यापार चीन के साथ है, जो वर्ष 2022 में 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर को पार कर गया, जबकि रूस के साथ व्यापार 20 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से कम है।
  • मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार 2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से कम है और पाकिस्तान के साथ यह लगभग 500 मिलियनअमेरिकी डाॅलर है।
  • चीन के BRI (बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) पर निशाना साधते हुए, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) के कुछ हिस्सों से होकर गुज़रता है, भारत ने कहा कि कनेक्टिविटी परियोजनाओं को सदस्य राज्यों की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करना चाहिये।
  • भारत ने मध्य एशियाई राज्यों के हितों की केंद्रीयता पर निर्मित SCO क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी की आवश्यकता को रेखांकित किया, जो इस क्षेत्र की आर्थिक क्षमता को बढ़ाएगा जिसमें चाबहार बंदरगाह और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) सक्षम बन सकते हैं।
  • भारत ने जलवायु परिवर्तन की चुनौती से लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता और इस दिशा में हासिल की गई उपलब्धियों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया।
  • भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह और आईएनएसटीसी के माध्यम से अधिक व्यापार के लिये ज़ोर दिया, जिसका भारत हिस्सा है, इसका लक्ष्य मध्य एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार में सुधार करना है।
  • बैठक के बाद भारत को छोड़कर सभी देशों का नाम लेते हुए एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गई, जिसमें "यूरेशियन आर्थिक संघ के निर्माण के साथ 'बेल्ट एंड रोड' निर्माण के संरेखण को बढ़ावा देने के काम सहित बीआरआई के लिये उनके समर्थन की पुष्टि की गई।"

शंघाई सहयोग संगठन

  • परिचय:
    • यह एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसे वर्ष 2001 में बनाया गया था।
    • SCO चार्टर वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित किया गया था और वर्ष 2003 में लागू हुआ।
    • यह एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता बनाए रखना है।
    • इसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है, यह नौ सदस्यीय आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है तथा सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है।
  • आधिकारिक भाषाएँ:
    • रूसी और चीनी।
  • स्थायी निकाय:
    • बीजिंग में SCO सचिवालय।
    • ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) की कार्यकारी समिति।
  • अध्यक्षता:
    • अध्यक्षता एक वर्ष पश्चात् सदस्य देशों द्वारा रोटेशन के माध्यम से की जाती है।
  • उत्पत्ति:
    • वर्ष 2001 में SCO के गठन से पहले कज़ाखस्तानचीनकिर्गिज़स्तानरूस और ताजिकिस्तान शंघाई फाइव के सदस्य थे।
    • शंघाई फाइव (1996) सीमाओं के सीमांकन और विसैन्यीकरण वार्त्ता की एक शृंखला से उभरा, जिसे चार पूर्व सोवियत गणराज्यों ने चीन के साथ सीमाओं पर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आयोजित किया था।
    • वर्ष 2001 में संगठन में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद शंघाई फाइव का नाम बदलकर SCO कर दिया गया।
    • भारत और पाकिस्तान 2017 में इसके सदस्य बने।
    • वर्तमान सदस्य: कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान।
    • ईरान 2023 में SCO का स्थायी सदस्य बनने के लिये तैयार है।

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना (BRI)

  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जो एशिया, अफ्रीका और यूरोप महाद्वीप में फैले कई देशों के बीच कनेक्टिविटी एवं सहयोग पर केंद्रित है।  बीआरआई लगभग 150 देशों (चीन का दावा) में फैला हुआ है।
  • वर्ष 2013 में प्रारंभ में इस परियोजना में रोडवेज़, रेलवे, समुद्री बंदरगाहों, पावर ग्रिड, तेल और गैस पाइपलाइन तथा संबंधित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के नेटवर्क का निर्माण शामिल है।
  • इस परियोजना के दो भाग हैं।
  • सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्टयह चीन को मध्य एशिया, पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप से जोड़ने हेतु  भूमि मार्ग है।
  • 21वीं सदी का समुद्री रेशम मार्गयह चीन के दक्षिणी तट को भूमध्यसागर, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया से जोड़ने हेतु समुद्री मार्ग है।

G-20 शिखर सम्मेलन 2022

चर्चा में क्यों?
हाल ही में G-20 के 17वें वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की गई जिसे इंडोनेशिया की अध्यक्षता में बाली में 'रिकवर टुगेदर, रिकवर स्ट्रॉन्गर' विषय के तहत आयोजित किया गया।

  • अब भारत ने G-20 की अध्यक्षता का प्रभार संभाल लिया है और 18वाँ शिखर सम्मेलन 2023 में भारत में आयोजित किया जाएगा।

शिखर सम्मेलन के परिणाम

  • रूसी आक्रामकता की निंदा:
    • सदस्य देशों ने यूक्रेन में रूस की आक्रामकता की "कड़े शब्दों मेंनिंदा करते हुए एक घोषणा को अपनाया और इसे बिना शर्त वापस लेने की मांग की।
    • उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि अधिकांश सदस्यों ने यूक्रेन में युद्ध की निंदा की, "स्थिति और प्रतिबंधों को लेकर विभिन्न विचार और अलग-अलग आकलन थे"।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था पर फोकस:
    • G-20 अर्थव्यवस्थाओं ने अपनी घोषणा में ब्याज दरों में वृद्धि को सावधानीपूर्वक गति देने पर सहमति व्यक्त की और मुद्रा के मामले में "बढ़ी हुई अस्थिरता" को लेकर चेतावनी दी है, जिसमें कोविड-19 महामारी को ठीक करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • खाद्य सुरक्षा:
    • नेताओं ने खाद्य सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये समन्वित कार्रवाई करने का वादा किया और ब्लैक सी ग्रेन पहल की सराहना की।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • G-20 नेताओं ने वैश्विक तापमान वृद्धि को5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की, यह पुष्टि करते हुए कि वे जलवायु परिवर्तन पर 2015 पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्य के साथ खड़े हैं।
  • डिजिटल परिवर्तन:
    • नेताओं ने सतत् विकास लक्ष्यों तक पहुँचने में डिजिटल परिवर्तन के महत्त्व को पहचाना।
    • उन्होंने विशेष रूप से महिलाओं, लड़कियों और कमज़ोर स्थितियों में रह रहे लोगों के लिये डिजिटल परिवर्तन के सकारात्मक प्रभावों का दोहन करने हेतु डिजिटल कौशल एवं डिजिटल साक्षरता को और अधिक विकसित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित किया।
  • स्वास्थ्य:
    • नेताओं ने स्वस्थ और स्थायी रिकवरी को बढ़ावा देने के लिये अपनी निरंतर प्रतिबद्धता व्यक्त की जो सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को प्राप्त करने और उसे बनाए रखने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।
    • उन्होंने विश्व बैंक द्वारा आयोजित महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया ('महामारी कोष') के लिये एक नए वित्तीय मध्यस्थ कोष की स्थापना का स्वागत किया।
    • नेताओं ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अग्रणी और समन्वय भूमिका तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से समर्थन के साथ वैश्विक स्वास्थ्य शासन को मज़बूत करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

जी-20 के सदस्य देशों के समक्ष चुनौतियाँ

  • यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का प्रभाव:
    • रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण ने न केवल बड़े पैमाने पर भू-राजनीतिक अनिश्चितता पैदा की है बल्कि वैश्विक मुद्रास्फीति को भी बढ़ा दिया है।
    • पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने स्थिति को और भी खराब कर दिया है।
    • कई देशों में ऐतिहासिक मुद्रास्फीति के उच्च स्तर ने इन देशों में क्रय शक्ति को कम कर दिया है, इस प्रकार आर्थिक विकास को धीमा कर दिया है।
  • बढ़ती मुद्रास्फीति का प्रभाव:
    • उच्च मुद्रास्फीति के जवाब में देशों के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में वृद्धि की है जिसके कारण आर्थिक गतिविधियों में कमी आई है।
    • यूएस और यूके जैसी कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ मंदी का सामना करने के लिये तैयार हैं; अन्य, जैसे कि यूरो क्षेत्र के देशों की गति धीमी होकर लगभग ठप होने की संभावना है।
  • प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की मंदी:
    • वैश्विक विकास के प्रमुख इंजनों में से एक चीन में तीव्र मंदी देखी जा रही है क्योंकि यह एक रियल एस्टेट संकट से जूझ रहा है।
  • बढ़ते भू-राजनीतिक मतभेद:
    • विश्व की अर्थव्यवस्था भू-राजनीतिक बदलावों से जूझ रही है, जैसे कि अमेरिका और चीन के बीच तनाव, जिन्हें दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ माना जाता है या फिर ब्रेक्ज़िट निर्णय के मद्देनज़र ब्रिटेन और यूरोपीय क्षेत्र के बीच व्यापार में गिरावट।

G-20 समूह

  • परिचय:
    • G20 का गठन वर्ष 1999 के दशक के अंत के वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में किया गया था, जिसने विशेष रूप से पूर्वी एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया को प्रभावित किया था।
    • इसका उद्देश्य मध्यम आय वाले देशों को शामिल करके वैश्विक वित्तीय स्थिरता को सुरक्षित करना है।
    • साथ में G20 देशों में दुनिया की 60% आबादी, वैश्विक जीडीपी का 80% और वैश्विक व्यापार का 75% शामिल है।
  • सदस्य:
    • G20 समूह में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

आगे की राह

  • जी-20 देशों का पहला काम बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण करना है।
  • साथ ही सरकारों को कर्ज़ के स्तर को अनिवार्य रूप से बढ़ाए बिना कमज़ोर लोगों की मदद करने के तरीके खोजने होंगे। इससे संबंधित एक प्रमुख चिंता यह सुनिश्चित करना होगा कि बाहरी ज़ोखिमों की सावधानीपूर्वक निगरानी की जाए।
  • एक मज़बूत, टिकाऊ, संतुलित और समावेशी रिकवरी के लिये G-20 द्वारा संयुक्त कार्रवाई की आवश्यकता है और बदले में इस तरह की संयुक्त कार्रवाई के लिये यूक्रेन में शांति स्थापित करने के साथ-साथ "आने वाले समय में उसके विखंडन को रोकने में मददकी भी आवश्यकता है।
  • व्यापार को लेकर G-20 नेताओं को "अधिक खुलेस्थिर और पारदर्शी नियम-आधारित व्यापार" पर ज़ोर देने की आवश्यकता है जो वस्तु की वैश्विक कमी को दूर करने में मदद करेगा।
  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के लचीलेपन को मज़बूत करने से भविष्य के झटकों से बचने में मदद मिलेगी।

कार्बन बॉर्डर टैक्स

चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सहित विभिन्न देशों के संघ ने शर्म अल शेख, मिस्र में पार्टियों के सम्मेलन (COP) के 27वें संस्करण में यूरोपीय संघ (EU) द्वारा प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर टैक्स का संयुक्त रूप से विरोध किया है।

कार्बन बॉर्डर टैक्स

  • कार्बन बॉर्डर टैक्स उत्पाद के उत्पादन से उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर आयात पर एक शुल्क है। यह कार्बन को कीमती बनाकर उत्सर्जन को हतोत्साहित करता है। व्यापार से संबंधित उपाय के रूप में यह उत्पादन और निर्यात को प्रभावित करता है।
  • यह प्रस्ताव यूरोपीय आयोग के यूरोपीय ग्रीन डील का हिस्सा है जो वर्ष 2050 तक यूरोप को पहला जलवायु-तटस्थ महाद्वीप बनाने का प्रयास करता है।
  • कार्बन बॉर्डर टैक्स यकीनन राष्ट्रीय कार्बन टैक्स में एक सुधार है।
  • राष्ट्रीय कार्बन टैक्स एक ऐसा शुल्क है जिसे सरकार देश के भीतर किसी भी उस कंपनी पर लगाती है जो जीवाश्म ईंधन का उपयोग करती है।

कार्बन टैक्स लगाने का कारण

  • यूरोपीय संघ और जलवायु परिवर्तन शमन: यूरोपीय संघ ने वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में कम से कम 55% की कटौती करने की घोषणा की है। अब तक इन स्तरों में 24% की गिरावट आई है।
  • हालाँकि आयात से होने वाले उत्सर्जन का यूरोपीय संघ द्वारा CO2 उत्सर्जन में 20% योगदान है जिसमे और भी वृद्धि देखी जा रही है।
  • इस प्रकार का कार्बन टैक्स अन्य देशों को GHG उत्सर्जन कम करने तथा यूरोपीय संघ के कार्बन पदचिह्न को और कम करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
  • कार्बन लीकेज़: यूरोपीय संघ की उत्सर्जन व्यापार प्रणाली कुछ व्यवसायों के लिये उस क्षेत्र में संचालन को महँगा बनाती है।
  • यूरोपीय संघ के अधिकारियों को डर है कि ये व्यवसाय उन देशों में अपना व्यवसाय स्थानांतरित करना पसंद कर सकते हैं जहाँ उत्सर्जन सीमा को लेकर विशेष सीमाएँ नहीं हैं।
  • इसे 'कार्बन लीकेज़' के रूप में जाना जाता है और इससे दुनिया में कुल उत्सर्जन में वृद्धि होती है।

मुद्दे

  • ‘बेसिक’ (BASIC) देशों की प्रतिक्रिया: ‘BASIC’ देशों (ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन) के समूह ने एक संयुक्त बयान में यूरोपीय संघ के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि यह ‘भेदभावपूर्ण’ एवं समानता तथा 'समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्वों और संबंधित क्षमताओं' (CBDR-RC) के सिद्धांत के विरुद्ध है।
  • ये सिद्धांत स्वीकार करते हैं कि विकसित देश जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने हेतु विकासशील और संवेदनशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने हेतु उत्तरदायी हैं।
  • भारत पर प्रभाव: यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। यूरोपीय संघ, भारत निर्मित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि कर भारतीय वस्तुओं को खरीदारों के लिये कम आकर्षक बना देगा जो मांग को कम कर सकता है।
  • यह कर बड़ी ग्रीनहाउस गैस फुटप्रिंट वाली कंपनियों के लिये निकट भविष्य में गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न करेगा।
  • ‘रियो घोषणा’ के साथ असंगत: पर्यावरण के लिये दुनिया भर में एक समान मानक स्थापित करने की यूरोपीय संघ की धारणा ‘रियो घोषणा’ के अनुच्छेद-12 में निहित वैश्विक सहमति के विरुद्ध है, जिसके मुताबिक, विकसित देशों के लिये लागू मानकों को विकासशील देशों पर लागू नहीं किया जा सकता है।
  • जलवायु-परिवर्तन व्यवस्था में परिवर्तन: इन आयातों की ग्रीनहाउस सामग्री को आयात करने वाले देशों की ग्रीनहाउस गैस सूची में भी समायोजित करना होगा, जिसका अनिवार्य रूप से तात्पर्य है कि जीएचजी सूची को उत्पादन के आधार पर नहीं बल्कि खपत के आधार पर गिना जाना चाहिये।
  • यह पूरे जलवायु परिवर्तन व्यवस्था को उलट देगी।
  • संरक्षणवादी नीति: नीति को संरक्षणवाद का प्रच्छन्न रूप भी माना जा सकता है।
  • संरक्षणवाद सरकारी नीतियों को संदर्भित करता है जो घरेलू उद्योगों की सहायता के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है। ऐसी नीतियों को आमतौर पर घरेलू अर्थव्यवस्था के भीतर आर्थिक गतिविधियों में सुधार के लक्ष्य के साथ लागू किया जाता है।
  • इसमें जोखिम है कि यह एक संरक्षणवादी उपकरण बन जाता है, जो स्थानीय उद्योगों को तथाकथित 'हरित संरक्षणवाद' में विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाता है।

आगे की राह

  • भारत यूरोपीय संघ की इस नीति का लक्ष्य नहीं है, लक्ष्य रूस, चीन और तुर्की हैं जो कार्बन के बड़े उत्सर्जक हैं तथा यूरोपीय संघ को इस्पात एल्यूमीनियम के प्रमुख निर्यातक हैं।
  • भारत के विपक्ष में सबसे आगे होने का कोई कारण नहीं है। इसके बज़ाय उसे सीधे यूरोपीय संघ से बात करनी चाहिये और द्विपक्षीय रूप से इस मुद्दे को सुलझाना चाहिये।
  • सीमाओं पर आयातित सामानों पर शुल्क लगाने हेतु कार्बन बॉर्डर टैक्स जैसा तंत्र स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रेरित कर सकता है।
  • लेकिन यदि यह नई तकनीकों और वित्त की पर्याप्त सहायता के बिना होता है, तो यह विकासशील देशों के लिये नुकसानदेह हो जाएगा।
  • जहाँ तक भारत का संबंध है उसे इस कर के लागू होने से होने वाले फायदों और नुकसानों का आकलन करना चाहिये तथा द्विपक्षीय दृष्टिकोण के साथ यूरोपीय संघ से बात करनी चाहिये।

बिम्सटेक के कृषि मंत्रियों की दूसरी बैठक

चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने बंगाल की खाड़ी बहुक्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग उपक्रम (बिम्सटेक) की दूसरी कृषि‍ मंत्री-स्तरीय बैठक की मेज़बानी की।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ

  • भारत ने सदस्य देशों से कृषि क्षेत्र में परिवर्तन के लिये आपसी सहयोग को मज़बूत करने के लिये एक व्यापक क्षेत्रीय रणनीति विकसित करने में सहयोग करने का आग्रह किया।
  • इसने सदस्य देशों से एक पोषक भोजन के रूप में बाजरा के महत्त्व और उसके उत्पादों को प्रोत्साहित करने के लिये भारत द्वारा किये गए प्रयास-अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष - 2023 के दौरान सभी के लिये एक अनुकूल कृषि खाद्य प्रणाली और एक स्वस्थ आहार अपनाने का भी आग्रह किया।
  • कृषीय जैवविविधता के संरक्षण एवं रसायनों के उपयोग को कम करने के लिये प्राकृतिक और पारिस्थितिक कृषि को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • डिजिटल खेती और सटीक खेती के साथ-साथ भारत में 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण के तहत कई पहलें भी साकार होने की दिशा में हैं ।
  • क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा, शांति और समृद्धि के लिये बिम्सटेक देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने पर मार्च 2022 में कोलंबो में आयोजित 5वें बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भारत के वक्तव्य पर प्रकाश डाला गया।
  • बिम्सटेक कृषि सहयोग (2023-2027) को मज़बूत करने के लिये कार्य योजना को अपनाया गया।
  • बिम्सटेक सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं और कृषि कार्य समूह के तहत मत्स्य पालन एवं पशुधन उप-क्षेत्रों को लाने की मंज़ूरी दी गई है।

बिम्सटेक (BIMSTEC)

  • परिचय:
    • बिम्सटेक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें सात सदस्य देश शामिल हैं: पाँच दक्षिण एशिया से हैं, जिनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया से म्याँमार एवं थाईलैंड दो देश शामिल हैं।
    • यह उप-क्षेत्रीय संगठन 6 जून, 1997 को बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
    • बिम्सटेक क्षेत्र में लगभग 1.5 बिलियन लोग शामिल है, जो 2.7 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ वैश्विक आबादी का लगभग 22% है।
    • बिम्सटेक सचिवालय ढाका में है।
  • संस्थागत तंत्र:
    • बिम्सटेक शिखर सम्मेलन
  • मंत्रिस्तरीय बैठक
    • वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक
    • बिम्सटेक वर्किंग ग्रुप
    • व्यापार मंच और आर्थिक मंच
  • महत्त्व:
    • तेज़ी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में विकास सहयोग के लिये एक प्राकृतिक मंच के रूप में बिम्सटेक के पास विशाल क्षमता है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक धुरी के रूप में अपनी अनूठी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
    • बिम्सटेक के बढ़ते मूल्यों को इसकी भौगोलिक निकटता, प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक और मानव संसाधनों तथा समृद्ध ऐतिहासिक संबंधों एवं क्षेत्र में गहन सहयोग को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक विरासत को महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
    • बंगाल की खाड़ी में हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण केंद्र बनने की क्षमता है, यह ऐसा स्थान है जहाँ पूर्व और दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों के रणनीतिक हित टकराते हैं।
    • यह एशिया के दो प्रमुख उच्च विकास केंद्रों- दक्षिण और दक्षिण- पूर्व एशिया के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है।

बिम्सटेक की चुनौतियाँ

  • बैठकों में विसंगति: बिम्सटेक ने हर साल मंत्रिस्तरीय बैठकें आयोजित करने और हर दो साल में शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई, लेकिन 20 वर्षों में केवल पाँच शिखर सम्मेलन हुए हैं।
  • सदस्य देशों द्वारा उपेक्षित: ऐसा लगता है कि भारत ने बिम्सटेक का उपयोग केवल तभी किया है जब वह क्षेत्रीय विन्यास में SAARC के माध्यम से काम करने में विफल रहा और अन्य प्रमुख सदस्य देश जैसे कि थाईलैंड तथा म्याँमार बिम्सटेक के बज़ाय ASEAN की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • व्यापक फोकस क्षेत्र: बिम्सटेक का फोकस बहुत व्यापक है, जिसमें कनेक्टिविटी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि आदि जैसे सहयोग के 14 क्षेत्र शामिल हैं। यह सुझाव दिया जाता है कि बिम्सटेक को छोटे फोकस क्षेत्रों के लिये प्रतिबद्ध रहना चाहिये और उनमें कुशलतापूर्वक सहयोग करना चाहिये।
  • सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय मुद्दे: बांग्लादेश म्याँमार के रोहिंग्याओं के सबसे खराब शरणार्थी संकटों में से एक का सामना कर रहा है जो म्याँमार के रखाइन राज्य में क़ानूनी कार्यवाही करने से बच रहे हैं। म्याँमार और थाईलैंड के बीच सीमा पर संघर्ष चल रहा है।
  • BCIM: चीन की सक्रिय सदस्यता के साथ एक और उप-क्षेत्रीय पहल, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार (BCIM) फोरम के गठन ने बिम्सटेक की अनन्य क्षमता के बारे में अधिक संदेह पैदा किया है।
  • आर्थिक सहयोग पर अपर्याप्त फोकस: अधूरे कार्यों और नई चुनौतियों पर ध्यानाकर्षण होने पर ज़िम्मेदारियों के बोझ बढ़ता है।
  • वर्ष 2004 में एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हेतु रूपरेखा के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बावज़ूद बिम्सटेक इस लक्ष्य से बहुत दूर है।

आगे की राह

  • सदस्य देशों के बीच बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की आवश्यकता है।
  • चूँकि यह क्षेत्र स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है और एकजुटता तथा सहयोग की आवश्यकता पर बल दे रहा है जिससे एफटीए बंगाल की खाड़ी को संपर्क, समृद्धि एवं सुरक्षा का पुल बना देगा।
  • भारत को इस धारणा का मुकाबला करना होगा कि बिम्सटेक एक भारत-प्रभुत्व वाला ब्लॉक है, इस संदर्भ में भारत गुजराल सिद्धांत का पालन कर सकता है जो द्विपक्षीय संबंधों में लेन-देन के प्रभाव को सशक्त करने का इरादा रखता है।
  • बिम्सटेक को भविष्य में नीली अर्थव्यवस्था, डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्ट-अप तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के बीच आदान-प्रदान तथा लिंक को बढ़ावा देने जैसे नए क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

भारत और ब्रिटेन के बीच युवा छात्रों एवं पेशेवरों का आदान-प्रदान

चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और ब्रिटेन ने वर्ष 2023 में ‘यंग प्रोफेशनल्स’ योजना शुरू करने का निर्णय लिया है।

  • ब्रिटेन 18-30 वर्ष आयु वर्ग के 3000 डिग्रीधारक भारतीयों को दो साल तक काम करने का अवसर प्रदान करेगा।
  • यह योजना वर्ष 2023 के प्रारंभ में शुरू होगी जिसमें ब्रिटिश नागरिकों को भी भारत में इसी तरह की सुविधा प्रदान की जाएगी।

भारत-ब्रिटेन साझेदारी का महत्त्व

  • ब्रिटेन के लिये: बाज़ार में हिस्सेदारी और रक्षा क्षेत्र दोनों के संदर्भ में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन के लिये भारत एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक भागीदार है, जैसा कि वर्ष 2015 में भारत और ब्रिटेन के बीच रक्षा एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा साझेदारी पर हस्ताक्षर द्वारा रेखांकित किया गया था।
  • भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की सफलता ब्रिटेन को उसकी 'ग्लोबल ब्रिटेन' की महत्त्वाकांक्षा को बढ़ावा देगी क्योंकि यूके ब्रेक्ज़िट के बाद से ही यूरोप के बाहर अपने बाज़ारों का वैश्विक विस्तार करने का इच्छुक है।
  • ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्रों में विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं में अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है।
  • भारत से अच्छे द्विपक्षीय संबंधों के साथ वह इस लक्ष्य को बेहतर ढंग से हासिल करने में सक्षम होगा।
  • भारत के लिये: हिंद प्रशांत में UK एक क्षेत्रीय शक्ति है क्योंकि इसके पास ओमान, सिंगापुर, बहरीन, केन्या और हिंद महासागर क्षेत्र में नौसैनिक सुविधाएँ हैं।
  • यूके (UK) ने भारत में अक्षय ऊर्जा के उपयोग का समर्थन करने के लिये ब्रिटिश अंतर्राष्ट्रीय निवेश निधि के 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर की भी पुष्टि की है, जिससे इस क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं सौर ऊर्जा के विकास में मदद मिलेगी।
  • भारत ने मत्स्य पालन, फार्मा और कृषि उत्पादों के लिये बाज़ार तक आसान पहुँच के साथ-साथ श्रम-गहन निर्यात के लिये शुल्क रियायत की भी मांग की है।

इन दोनों देशों के बीच वर्तमान प्रमुख द्विपक्षीय मुद्दे

  • भारतीय आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण:
    • यह मुद्दा भारतीय आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण का है जो वर्तमान में ब्रिटेन की शरण में हैं और अपने लाभ के लिये कानूनी प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
    • विजय माल्या, नीरव मोदी और ऐसे अन्य अपराधियों ने लंबे समय से ब्रिटिश प्रणाली के तहत शरण ले रखी है, जबकि भारत में उनके खिलाफ मामले हैं, जिनके प्रत्यर्पण की आवश्यकता है।
  • ब्रिटिश और पाकिस्तान के बीच गहरे संबंध :
    • उपमहाद्वीप में लंबे समय तक रहे ब्रिटिश राज की विरासत की बदौलत ब्रिटेन जम्मू और कश्मीर में पाकिस्तान की भूलों के कारण विभाजन करने में सक्षम हुआ।
    • ब्रिटेन में उप-महाद्वीप के एक बड़े मुस्लिम समुदाय की उपस्थिति, विशेष रूप से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के मीरपुर जैसे क्षेत्रों से वोट बैंक की राजनीति के जाल के अलावा असंगति को बढ़ाती है।
  • श्वेत ब्रिटिश द्वारा गैर-स्वीकृति:
    • श्वेत ब्रिटिश लोगों द्वारा एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उदय की अस्वीकार्यता एक और मुद्दा है।
    • वर्तमान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत ने जीडीपी के मामले में ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है और पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
    • ब्रिटिश साम्राज्य की शाही विरासत के संदर्भ में एक आधुनिक और आत्मविश्वासी भारतीय तथा एक ब्रिटिश औपनिवेशिक भारतीय के बीच कोई अंतर नहीं है

आगे की राह

  • संस्कृति, इतिहास और भाषा के गहन संबंध पहले से ही ब्रिटेन को एक संभावित मज़बूत आधार देते हैं जिसे आधार बनकर भारत के साथ संबंधों को और गहरा किया जा सकता है।
  • नई परिस्थितियों के साथ भारत और ब्रिटेन को यह स्वीकार करना चाहिये कि दोनों को अपने बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक-दूसरे की आवश्यकता है।
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