UPSC Exam  >  UPSC Notes  >  सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi  >  उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान, सामान्य विज्ञान

उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान, सामान्य विज्ञान | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi PDF Download

उद्योग में रसायन (Chemistry in Industry)
पोर्टलैंड सीमेंट (Portland Cement)

  • पोर्टलैंड सीमेंट कैल्सियम के एल्युमिनेटों एवं सिलिकेटों के मिश्रण का महीन चूर्ण है जिसमें जल के साथ प्रतिक्रिया कर जमने तथा दृढ़ होने का गुण विद्यमान रहता है।
  • पोर्टलैंड सीमेंट का संघटन (Composition of Portland Cement)- साधारण सीमेंट का औसत संघटन निम्नलिखित है-

कैल्सियम आॅक्साइड (CaO)   60.70%
सिलिका (SiO2)         20.24%
एल्युमिना (Al2O3 )    3.8%
फेरिक आॅक्साइड (Fe2O3 )    2.4%
मैग्नीशियम आॅक्साइड (MgO)    1.4%
अन्य आक्साइड    3-11%

  • सीमेंट में सिलिका की अधिकता रहने पर वह कम दृढ़ होता है, किन्तु एल्युमिना की अधिकता रहने पर उसमें शीघ्र जमने का गुण आ जाता है।
  • सीमेंट का जमना (Setting of Cement)- जल के संपर्क में आने पर पोर्टलैंड सीमेंट जेली-जैसा (jelly like) बन जाता है जो कुछ समय के बाद कठोर ठोस का रूप धारण कर लेता है। सीमेंट के ठोस में परिवर्तन की इस प्रक्रिया को सीमेंट का जमना कहते है।
  • सीमेंट को जल के साथ मिलाने पर कैल्सियम सिलिकेट एवं एल्युमिनेट जलयोजित (hydrated)  होकर कोलाइडी जेल (colloidal gel) बनाते है। जल सीमेंट के रंध्रों में भर जाता है। सीमेंट के कणों की भीतरी निर्जल परत जेल (gel) में से जल का शोषण कर लेती है जिससे सतह कठोर हो जाती है।
  • सीमेंट के जमने में होनेवाली जलयोजन (hydration) की प्रतिक्रियाएँ ऊष्माक्षेपी (exothermic) होती है जिसमें ताप बढ़ जाता है। ऊष्मा का उत्सर्जन (emission) सीमेंट के जमने के प्रथम सात दिनों तक होता है, अतः जल डालकर उसे कम-से-कम सात दिनों तक ठंडा रखा जाता है। ठंडा नहीं रखने पर सीमेंट में दरारें पड़ जाती है।
  • पोर्टलैंड सीमेंट के उपयोग- निर्माण-कार्यों में सीमेंट का व्यवहार अकेले नहीं किया जाता, क्योंकि सीमेंट नमी के प्रति सुग्राही होता है और इसमें कई आंतरिक प्रतिबल भी विकसित हो जाते है। फलतः सीमेंट में दरारें पड़ जाती है और इसकी ताकत घट जाती है। इसी कारण किस तरह के निर्माण-कार्य में इसकी आवश्यकता है, इस आधार पर कुछ अन्य पदार्थों के साथ मिलाकर इसका उपयोग किया जाता है।
  • गारा (Mortar)- सीमेंट, बालू एवं जल का मिश्रण गारा (mortar) कहलाता है।
  • कंक्रीट (Concrete)- सीमेंट, बालू तथा जल के मिश्रण को जब पत्थर अथवा ईंट के छोटे-छोटे टुकड़ों के साथ मिलाया जाता है तब परिणामी द्रव्य कंक्रीट कहलाता है।

 

मिश्र धातु

मिश्र धातु के नाम

संघटक

वूड्स धातु

बिस्मथ

लेड

टीन

कैडमियम

न्यूटन धातु

सिलिका

लेड

टीन

 

ड्यूरीराॅन

लोहा

सिलिका

 

 

नाइक्रोम

निकेल

लोहा

क्रोमियम

मैग्नीज़

टाइप धातु

लेड

एन्टीमनी

स्टैनस

 

पीतल

तांबा

जस्ता

 

 

डच धातु

तांबा

जस्ता

 

 

जर्मन सिल्वर

तांबा

जस्ता

निकेल

 

मून्ज धातु

तांबा

जस्ता

 

 

गन धातु

तांबा

स्टेनस

जस्ता

 

मैग्नेलियम

एल्युमीनियम

मैग्नीशियम

 

 

इलेक्ट्राॅन धातु

मैग्नीशियम

जस्ता

तांबा

 

एल्युमिनियम कांस्य

तांबा

एल्युमिनियम

 

 

फाॅस्फर कांस्य

तांबा

टीन

फाॅस्फोरस

 

ड्यूरेलियम

एल्युमिनियम

तांबा

मैग्नीशियम मैंगनीज सिलिका

 

सोल्डर

लेड

टीन

 

 

बब्वीट धातु

टीन

एन्टीमनी

तांबा

 



प्रबलित सीमेंट कंक्रीट

  • जब कंक्रीट को शक्ति प्रदान करने के लिए इस्पात या लोहे की छड़ों अथवा तार के जालों का व्यवहार होता है तब उसे प्रबलित सीमेंट कंक्रीट (Reinforced Cement Concrete or RCC) कहते है। इसमें काफी उच्च दाब सहने की क्षमता आ जाती है।
  • मकान की छतों, बाँधों आदि के निर्माण में यह प्रयुक्त होता है।

काँच

  • काँच की रचना किसी ठोस की भाँति सुव्यवस्थित अथवा रवेदार (crystalline) नहीं होती। इसका कोई निश्चित द्रवणांक (melting point) भी नहीं होता।
  • साधारण काँच सिलिका तथा सोडियम एवं कैल्सियम के सिलिकेटा (Na2O , CaO. 6SiO2 अथवा Na2SiO3 . CaSiO3 .4SiO3 ) का एक समांगी (homogeneous) मिश्रण होता है।
  • वास्तव में काँच कोई ठोस नहीं है बल्कि उसे अतिशीतलित (super-cooled) द्रव कहा जाता है।
  • किसी द्रव को उसके हिमांक (freezing point) के नीचे अथवा संबंधित ठोस के द्रवणांक (melting point) के नीचे, बिना किसी ठोस के बने ठंडा किया जा सकता है। इस प्रकार, वैसे द्रव जो अपने हिमांक के नीच ठंडा किए जा सकते है, अतिशीतलित द्रव (super-cooled liquid) कहलाते हैं। ये द्रव बहुत स्थायी होते है जबकि ठोस की अल्पमात्रा भी उनमें उपस्थित नहीं रहे।
     

रंगीन काँचः यदि रंगीन काँच बनाना हो तो काँच बनाते समय पिघले हुए काँच में भिन्न-भिन्न धातु-यौगिक मिला दिये जाते है; जैसे- हरे रंग के लिए फेरस आक्साइड, क्रोमिक आॅक्साइड पीले रंग के लिए फेरिक आॅक्साइडगहरे नीले रंग के लिए कोबाल्ट आॅक्साइड माणिक्य लाल रंग के लिए गोल्ड क्लोराइड लाल रंग के लिए सोना, सेलेनियम, क्यूप्रस आॅक्साइड नीले रंग के लिए क्यूप्रिक आॅक्साइड चटक लाल रंग के लिए कैडमियम सल्फाइड
1. मृदु अथवा साधारण काँच (Soft Glass)- यह सोडियम एवं कैल्सियम सिलिकेट का मिश्रण है। इससे काँच की नलियाँ, बोतलें तथा साधारण बरतन बनाये जाते है। इसका मृदुभवन (softening) कम ताप पर होता है; अतः इसे आसानी से ढाला जा सकता है।
2. कठोर काँच (Hard Glass)- इसे सोडियम कार्बोनेट (Na2CO3) की जगह पोटैशियम कार्बोनेट (K2CO3) का उपयोग कर बनाया जाता है। इसका मृदुभवन (softening) ताप मृदु काँच (soft glass) की तुलना में उच्च होता है और इसी कारण इसे कठोर काँच कहते है। यह प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त होने वाले उपकरणों के बनाने के काम आता है।
3. फ्लिंट काँच (Flint Glass)- इसे सोडियम कार्बोनेट, पोटैशियम कार्बोनेट, बोरिक आॅक्साइड एवं सिलिका का उपयोग कर बनाया जाता है। इससे बिजली के बल्ब तथा प्रकाशीय यंत्रों (optical instruments) के लिए लेंस (lens) एवं प्रिज्म (prism) बनाए जाते है। इसमें लगभग 45% Na2O, 4% K2O, 3% CaO, 44% या अधिक PbO रहता है।
4. जेना काँच (Jena Glass)- यह जिंक एवं बेरियम बोरो सिलिकेट का मिश्रण है। यह अत्यंत दुर्गलनीय तथा रासायनिक प्रतिकारकों (chemical reagents) द्वारा न्यूनतम प्रभावित होने वाला काँच है। इससे प्रयोगशाला के उपकरण बनाये जाते है।
5. पाइरेक्स काँच (Pyrex Glass)- पाइरेक्स काँच एल्युमिनियम एवं सोडियम बोरो सिलिकेट का मिश्रण है। इसे प्रायः 80% सिलिका (SiO2), 12% बोरिक आॅक्साइड (B2O3), 3-4% सोडियम आॅक्साइड (Na2O), 0.5% पोटैशियम आॅक्साइड (K2O) एवं 3% एल्युमिनियम आॅक्साइड (Al2O3) का मिश्रण प्रयुक्त करके बनाया जाता है। इसके गुण जेना काँच के समान है। यह उच्च कोटि के उपकरण बनाने के काम आता है।
- इसका ऊष्मीय प्रसार (expansion due to heat) बहुत कम है, अतः यह ताप के एकाएक कम या अधिक होने से टूटता नहीं है। यह काँच ऊष्मा-प्रतिरोधी (heat resistant) है, इस कारण इससे प्रयोगशालाओं के उपकरण तथा खाना पकाने के बरतन बनाये जाते है।
6. रेशेदार काँच (Fibre Glass)- द्रवित काँच (liquefied glass) को महीन तुंडो (nozzles) के बीच से उच्च दाब (high pressure) पर प्रवाहित करके तंतुओं के रूप में इसका उत्पादन किया जाता है। यह विद्युत, ध्वनि एवं ऊष्मा के प्रति एक अति प्रभावशाली विसंवाहक पदार्थ (insulating material) के रूप में प्रयुक्त होता है। इसका उपयोग कर ऊष्मा-प्रतिरोधी तांतकों (heat resistant fabrics) का उत्पादन भी किया जाता है।
7. क्रूक्स काँच (Crookes Glass)- इस काँच में सीरियम आॅक्साइड (CeO2) मिला रहता है जो हानिकारक पराबैंगनी (ultra-voilet) किरणों को शोषित कर लेता है। इसलिए, इससे चश्मों के लेंस बनाये जाते है।
8. क्राउन काँच (Crown Glass)- काँच का निर्माण करते समय सिलिका की मात्रा थोड़ी कम करके उसकी जगह फाॅस्फोरस पेंटाक्साइड (P2O5) का उपयोग करने पर क्राउन काँच प्राप्त होता है। इसके उपयोग से चश्मों के लेंस बनाये जाते है।
 

नाम

 

 

क्वथनांक

 

 

संघटक

 

 

उपयोग

1. असंघनित गैस

कमरे के ताप तक

CH4 से C5 H12

ईंधन-गैस के रूप में ऊष्मा एवं प्रकाश उत्पन्न करने के लिए, कार्बन ब्लैक बनाने के लिए आदि।

2. कच्चा नैफ्था (Solvent Naphtha) इसका पुनः स्त्रवण किया जाता है जिससे निम्नांकित अंश (fraction) प्राप्त होते है-

40° से 150°C

C5 H12 से C11 H24

 

(i) पेट्रोलियम ईथर

40°  से 60°C

 

औद्योगिक घोलक (industrial solvent) के रूप में।

(ii) पेट्रोल

70° से 90°C

 

इंजनों में ईंधन के रूप में तथा पेट्रोल-गैस बनाने में।

(ii) लिग्रोइन (Ligroin)

90° से 120°C

 

घोलक के रूप में तथा हवाई जहाज के इंजनों में।

(iv) घोलक नैफ्था (Solvent Naphtha)

120° से 150°C

 

वसाओं और वार्निशों के घोलक के रूप में तथा निर्जल धुलाई (dry cleaning) में।

3. किरासन तेल या मिट्टी का तेल (Kerosene oil)

150° से 300°C

C11 H24 से C16 H34

ऊष्मा (स्टोव-ऊर्जा) एवं प्रकाश उत्पन्न करने के लिए तथा तेल-गैस (oil-gas) बनाने में।

4. ईंधन तेल या भारी तेल (Fuel Oil or Heavy Oil)

300°C से ऊपर

C16 H34 से C18 H38

डीजल ईंजन में ईंधन के रूप में।

5. वाष्पित्र में बचे अवशेष का निर्वात में स्त्रवण (Vacuum Distillation) करने पर प्राप्त अवयव

400°C से ऊपर

 

 

(i) स्नेहक तेल (Lubricating Oil)

-

C17 H36 से C20 H42

स्नेहन (lubrication)  के लिए।

(ii) ग्रीस और वेसलीन (Grease and Vaseline)

-

C18 H38 से C22 H46

मशीनों में घर्षण-अवरोध कम करने के लिए, श्रृंगारर- सामग्री में।

(iii)  पैराफिन मोम  (Paraffin Wax)

-

C20 H42 से C30 H62

मोमबत्तियाँ, रिकार्ड, पालिश, क्रीम, चित्रकारी आदि में।

(iv)  पिच या कोलतार

-

C30 H62 से C40 H82

सड़क पर बिछाने, रंग एवं वार्निश बनाने में।


प्लास्टिक एवं सांश्लेषिक रेशे

  •  प्लास्टिक- आधुनिक युग में प्लास्टिक एक अत्यंत प्रचलित नाम है। इससे अनेक उपयोगी वस्तुएँ बनायी जाती है; जैसे- मोटरों के पार्ट, बटन, बाल्टियाँ, जग, चाय पीने के कप एवं प्लेट, दाँत धोने के ब्रश, फिल्में, टेलीविजन एवं रेडियो के कैबिनेट, कंघियाँ, लिखने की कलम, बिजली के स्विच एवं अन्य यंत्रा, अनेक अन्य सामान जिनका हमारे दैनिक जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है।
  • लाह (lac) एक प्राकृतिक प्लास्टिक (natural plastic) है।
  • प्लास्टिक की प्रकृति- असंतृप्त हाइड्रोकार्बनों (unsaturated hydrocarbons) में एक विशेष प्रकार का गुण पाया जाता है जिसमें उपयुक्त परिस्थितियों में उनके दो या उससे अधिक अणु जुड़कर एक बड़े अणु का निर्माण करते है। इस तरह की प्रक्रिया बहुलीकरण (polymerisation) कहलाती है। बहुलीकरण की क्रिया के द्वारा निर्मित पदार्थ बहुलक (polymer) कहलाते है। यथा- एसीटिलीन (C2 H2) गैस को तांबे की एक तप्त (400°C पर) नली से प्रवाहित करने पर उसके तीन अणु जुड़कर एक बड़े अणु, बेंजीन (C6 H6), का निर्माण करते है।

उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान, सामान्य विज्ञान | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

ऐसीटिलीन    400°C   बेंजीन
    इसी प्रकार, इथिलीन (C2 H4) के बहुत-से अणु ऊँचे ताप एवं उत्प्रेरक की उपस्थित में जुड़कर पौलीइथिलीन बनाते है।
nC2H4 (इथिलीन) → (C2H4)n  (पौलीइथिलीन)

  • जहाँ n अणुओं की संख्या है जिसका मान 100 से 1000 के बीच होता है।
  • प्लास्टिक उच्च अणु-भार (10से 107 तक) वाले बहुलक (polymer) है। इन्हें बनाने के लिए बड़ी संख्या में लघु अणुओं को आपस में संयोजित किया जाता है अथवा वैसी प्रतिक्रिया करायी जाती है जिसमें सरल अणुओं के मध्य जल का निष्कासन होता है। पौलीइथिलीन, टेफ्लाॅन, बेकेलाइट आदि प्रमुख रूप से प्रयोग में लाये जाने वाले प्लास्टिक हैं।
  • जो प्लास्टिक पदार्थ दोबारा गर्म करने पर मुलायम हो जाते है (या पिघल जाते है) तथा किसी भी वांछित आकृति (desired shape) में बार-बार ढाले जा सकते है, उन्हें थर्मोप्लास्टिक या ताप-सुघट्य प्लास्टिक कहते है। ठण्डा होने पर वे ढाली गई आकृति को बनाए रखते है।
  • थर्मोप्लास्टिकों (या ताप-सुघट्य प्लास्टिकों) के कुछ उदाहरण है: पाॅलीथीन; पाॅली-विनाइल क्लोराइड (PVC); पाॅलीएस्टर तथा नायलाॅन (कृपया नोट करे कि थर्मोप्लास्टिक या ताप-सुघट्य प्लास्टिक को थर्मोप्लास्टिक बहुलक या ताप-सुघट्य बहुलक भी कहते है)।
  • ताप-दृढ़ प्लास्टिकों को किसी वांछित आकृति में केवल एक बार ढाला जा सकता है। उन्हें दोबारा गर्म करके बार-बार नहीं ढाला जा सकता। अर्थात् ताप-दृढ़ प्लास्टिक अनुत्क्रमणीय बहुलक (irreversible polymer) होते है।
  • ताप दृढ़ प्लास्टिकों (या थर्मोसेटिंग प्लास्टिकों) के उदाहरण है: बेकेलाइट (फीनोल फार्मल्डीहाइड बहुलक), तथा मैलामाइन (मैलामाइन-फार्मल्डीहाइड बहुलक)।
The document उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान, सामान्य विज्ञान | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi is a part of the UPSC Course सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi.
All you need of UPSC at this link: UPSC
74 videos|226 docs|11 tests

Top Courses for UPSC

FAQs on उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान, सामान्य विज्ञान - सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

1. रसायन विज्ञान क्या है?
उत्तर: रसायन विज्ञान, द्रव्यमान के रसायनिक गुणों, संरचना, गतिविधियों और प्रभावों का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। यह विज्ञान रासायनिक पदार्थों के रसायनिक प्रक्रियाओं को समझने, समाधान करने और विकास करने में मदद करता है।
2. रसायन विज्ञान के उद्योग में क्या भूमिका होती है?
उत्तर: रसायन विज्ञान उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह उद्योगों को नई रसायनिक पदार्थों की खोज, विकास और उत्पादन में मदद करता है। यह विज्ञान उद्योगीय क्रियाओं और प्रक्रियाओं को सुरक्षित और उत्पादनशील बनाने में मदद करता है।
3. रसायन विज्ञान के आधार पर उद्योगों में कौन-कौन से क्षेत्र हैं?
उत्तर: रसायन विज्ञान के आधार पर उद्योगों में कई क्षेत्र हैं, जैसे उद्योगिक रसायन (उत्पादन, संशोधन), उपयोगिता रसायन (वाणिज्यिक, व्यावसायिक), पर्यावरणीय रसायन (प्रदूषण नियंत्रण, सुरक्षा), औषधीय रसायन (दवाओं का विकास, उत्पादन), आदि।
4. रसायन विज्ञान क्या विकास के लिए महत्वपूर्ण है?
उत्तर: रसायन विज्ञान विकास के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नई रसायनिक पदार्थों की खोज और विकास को संभव बनाता है। यह उद्योगों को नए उत्पादों की उत्पादन तकनीकों और प्रक्रियाओं को विकसित करने में मदद करता है, जो उद्योगों को आगे बढ़ने और प्रगति करने की संभावना देता है।
5. रसायन विज्ञान के आधार पर उद्योगों में उपयोग होने वाले कुछ उत्पादों के नाम क्या हैं?
उत्तर: रसायन विज्ञान के आधार पर उद्योगों में कई उत्पादों का उपयोग होता है, जैसे औषधीय दवाएं, केमिकल उत्पाद, प्लास्टिक, रंग, खाद्य और पेय, औद्योगिक उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, उत्पादन प्रक्रियाएं, आदि।
Explore Courses for UPSC exam

Top Courses for UPSC

Signup for Free!
Signup to see your scores go up within 7 days! Learn & Practice with 1000+ FREE Notes, Videos & Tests.
10M+ students study on EduRev
Related Searches

Semester Notes

,

MCQs

,

practice quizzes

,

past year papers

,

Summary

,

सामान्य विज्ञान | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान

,

Viva Questions

,

Important questions

,

mock tests for examination

,

Free

,

उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान

,

Objective type Questions

,

उद्योग में रसायन (भाग - 1) - रसायन विज्ञान

,

Previous Year Questions with Solutions

,

shortcuts and tricks

,

Extra Questions

,

pdf

,

सामान्य विज्ञान | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

Exam

,

video lectures

,

study material

,

ppt

,

सामान्य विज्ञान | सामान्य विज्ञानं (General Science) for UPSC CSE in Hindi

,

Sample Paper

;