➤ भारत अपनी भौगोलिक स्थिति, भू-जलवायु एवं सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के कारण बाढ़, सूखा, सुनामी, चक्रवात, भूकम्प जैसी आपदाओं का संवेदनशील क्षेत्र रहा है। देश के 29 राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में से 27 आपदा संभावित राज्य हैं। कुछ समय पूर्व तक भारत में आपदा प्रबन्धन के संस्थागत संगठनों एवं नीतियों का फोकस आपदोपरान्त प्रबंधन, अर्थात् – राहत एवं पुनर्वास तक ही सीमित था, परन्तु 2004 की सुनामी त्रासदी के बाद इसमें व्यापक परिवर्तन हुआ है। भारत अब आपदा प्रबंधन के आपदा-पूर्व पक्षों पर अधिक जोर देता है, अर्थात् - आपदा तैयारी, पूर्व चेतावनी, आपदा न्यूनीकरण तथा आपदा रोकथाम पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इन प्रयासों का उद्देश्य विकासात्मक लाभों के संरक्षण के साथ-साथ जान-माल एवं सम्पदा के नुकसान में कमी करना है।
➤ प्राकृतिक आपदाओं के मामले में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। भारत में आपदाओं की रूप-रेखा मुख्यतः जलवायविक स्थितियों और स्थलाकृतिक विशेषताओं से निर्धारित होती है। देश के 60 प्रतिशत भाग में कभी भीषण, तो कभी हल्का सूखा पड़ता रहता है, क्योंकि ये अपेक्षाकृत कम वर्षा के क्षेत्र हैं। बाढ़ और नदी अपरदन से देश का लगभग 12 प्रतिशत भू-भाग प्रभावित होता है। देश की 7516 किमी लम्बी तटरेखा में से लगभग 5700 किमी चक्रवात और सुनामी से प्रभावित रहती है। भारत के भू-भाग का लगभग 58.6 प्रतिशत भाग भूकम्प प्रवण क्षेत्र है। साथ ही भू-स्खलन, बादल फटने, अग्निकाण्ड तथा अन्य प्राकृतिक एवं मानव जनित आपदाओं के काफी जन-धन की हानि होती है। आपदाओं के शमन, तैयारी और कार्यवाही सम्बंधी उपायों को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता भारत में लम्बे समय से महसूस की जा रही थी।
23 दिसम्बर, 2005 को भारत द्वारा लाए गए 'आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005' द्वारा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में समग्र एवं समन्वित दृष्टिकोण अपनाया गया। इस अधिनियम में आपदा प्रबंधन के प्रति एक समग्र एवं एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और कलेक्टर अथवा जिला मजिस्ट्रेट अथवा उपायुक्त की अध्यक्षता में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) की परिकल्पना की गई।
विकास सम्बंधी लाभों को बनाए रखने के लिए तथा जीवन, आजीविका और सम्पत्ति के नुकसान को कम करने के लिए राहत केन्द्रित दृष्टिकोण के स्थान पर अब सक्रिय रोकथाम, शमन और तैयारी आधारित दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है, ताकि एक सुरक्षित और आपदा प्रतिरोधी भारत का निर्माण किया जा सके। आपदा प्रबंधन की राष्ट्रीय नीति के निम्नलिखित पहलू हैं -
भारत में जिस प्रकार से सरकारें राष्ट्रीय स्तर से लेकर निचले स्तर तक गठित की गई है, उसी प्रकार आपदा प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय स्तर से लेकर निचले स्तर तक, अर्थात् – केन्द्र, राज्य, जिले एवं ग्रामीण स्तरों तक एक संगठित व्यवस्था की गई है।
राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन
राष्ट्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन का कार्य 'गृह मंत्रालय के अधीन होता है, जिसमें आपदा प्रबंधन से सम्बंधित राहत कार्य का प्रबंधन व निर्देशन 'केन्द्रीय राहत आयुक्त' करता है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला केन्द्रीय कैबिनेट, कुछ विशेष मंत्रियों का समूह, विभिन्न मंत्रालयों, जैसे - कृषि, रेलवे, स्वास्थ्य, नागरिक उड्डयन मंत्रालय से सम्बंधित अधिकारी आदि आपदा प्रबंधन से सम्बंधित निर्णय एवं निर्देशन हेतु उत्तरदायी संस्थाएं हैं। इनके अतिरिक्त केन्द्रीय जल आयोग, मौसम, रक्षा, भवन निर्माण विभाग आदि से सम्बंधित अधिकारी भी आपदा की स्थिति में अपना सहयोग देते हैं। उपरोक्त विभागों, समितियों एवं सम्बंधित अधिकारियों से मिलकर 'केन्द्रीय आपदा प्रबंधन समिति' का निर्माण होता है, जिसके कार्य निम्नलिखित हैं -
राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन
आपदा प्रबंधन की मुख्य जिम्मेदारी सम्बंधित राज्य पर होती है। राज्य सरकार द्वारा किए जाने वाले राहत कार्यों में केन्द्र सरकार अपना सहयोग देती है। राज्य सरकार पर 'राज्य राहत आयुक्त' आपदा प्रबंधन के कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है, जो सम्बंधित राज्य के मुख्यमंत्री के परामर्श से कार्य करता है। इसके अतिरिक्त ‘राज्य आपदा प्रबंधन समिति', जिसमें राज्य के पुलिस महानिदेशक, अग्निशमन विभाग, विभिन्न विभागों के सचिव तथा सिविल सोसाइटी के सदस्य होते हैं, भी आपदा प्रबंधन के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस समिति के निम्नलिखित कार्य हैं -
जिला स्तर पर आपदा प्रबधंन
जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन का उत्तरदायित्व जिला अधिकारी का होता है। जिला आपदा प्रबंधन समिति में जिला अधिकारी, जिला पुलिस प्रमुख, विभिन्न विभागों, जैसे - अग्निशमन, स्वास्थ्य, सिंचाई आदि के उच्चाधिकारी सम्मिलित होते हैं। इसके अलावा स्वयंसेवी संस्थाएं भी आपदा प्रबंधन में अपना योगदान देती है। इस समिति के कार्य निम्नलिखित हैं -
खण्ड स्तर पर आपदा प्रबंधन
खण्ड स्तर पर आपदा प्रबंधन के कार्य की देख-रेख के लिए 'खण्ड विकास अधिकारी' समिति का अध्यक्ष होता है। समिति के अन्य सदस्यों में अग्निशमन विभाग, स्वास्थ्य, विभाग, कल्याण विभाग, पुलिस विभाग, ग्रामीण जलपूर्ति विभाग के अधिकारी भी शामिल होते हैं। इसके अलावा समाजसेवी संस्थाएं भी अपना मुख्य योगदान देती है। इस समिति के निम्नलिखित कार्य हैं -
ग्राम स्तर पर आपदा प्रबंधन
'ग्रामीण आपदा प्रबंधन समिति' आपदा प्रबंधन का सबसे निचला स्तर है। इस समिति का अध्यक्ष गांव का 'मुखिया' होता है। इस समिति में गांव के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं -
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए)
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए)
राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण राज्य में आपदा प्रबंधन के लिए नीतियां और योजनाएं निर्धारित करता है। यह राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य योजना के अनुमोदन व कार्यान्वयन का समन्वय करता है। साथ ही आपदा तैयारी हेतु प्रावधानों की सिफारिश, न्यूनीकरण और शमन उपायों का एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए राज्य के विभिन्न विभागों की विकास योजनाओं की समीक्षा भी करता है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कार्यों में उसकी सहायता हेतु राज्य सरकार एक 'राज्य कार्यकारी समिति का गठन करती है, जिसका अध्यक्ष राज्य सरकार का मुख्य सचिव होता है। राज्य कार्यकारी समिति आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं के बारे में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को सूचना भी उपलब्ध कराएगी।
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए)
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए योजना, समन्वय और कार्यान्वयन निकाय के रूप में कार्य करता है। इसका अध्यक्ष जिला कलेक्टर, उपायुक्त अथवा जिला मजिस्ट्रेट तथा स्थानीय प्राधिकरण का निर्वाचित प्रतिनिधि सह-अध्यक्ष होता है। प्राधिकरण यह भी सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय तथा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा निर्धारित न्यूनीकरण, शमन, तैयारी और कार्यवाही सम्बंधी दिशा-निर्देशों का जिला स्तर पर विभिन्न विभागों एवं स्थानीय प्राधिकारियों द्वारा पालन किया जाए।
स्थानीय प्राधिकरण
आपदा प्रबंधन नीति के अनुसार स्थानीय प्राधिकरण के अन्तर्गत पंचायती राज्य संस्थाओं, नगर पालिकाओं, जिला और छावनी बोर्डी तथा नगर योजना प्राधिकरणों को शामिल किया जाता है। ये निकाय आपदा के समय नागरिक सेवाओं को संचालित करने तथा आपदाओं से निपटने के लिए अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की क्षमता निर्माण को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा यह प्राधिकरण प्रभावित क्षेत्रों में राहत पुनर्वास और पुनर्निर्माण गतिविधियां संचालित करता है तथा राष्ट्रीय एवं राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ मिलकर आपदा प्रबंधन योजनाएं तैयारी करता है।
राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष
वर्तमान में इसे 'राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही कोष' के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। यह 11वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित व्यापक रूपरेखा के तहत् कार्य कर रहा है। इसकी मूल संचित निधि 500 करोड़ रुपए है, जिसे सिगरेट, पान-मसाला, बीड़ी, तम्बाकू के अन्य उत्पाद और सेल्युलर फोन पर लगे राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता शुल्क के जरिए पूरा किया जाता है। इसे भारत सरकार के लोक खाते में रखा गया है, जिसे एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जिसमें कृषि, गृह, वित्त मंत्री और योजना आयोग उपाध्यक्ष शामिल हैं। राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता कोष से प्राप्त सहायता केवल तत्कालिक राहत और पुनर्वास के लिए होती है। इस कोष से आपदा राशि के लिए राज्य सरकार द्वारा ज्ञापन के जरिए दावा किया जाता है, जिसका मूल्यांकन इस प्रयोजन के लिए नियुक्त केन्द्रीय दल द्वारा किया जाता है। 13वें वित्त आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य के विभिन्न आपदा राहत कोषों का 'राज्य आपदा राहत कोष' में और राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष का 'राष्ट्रीय आपदा राहत कोष' में विलय कर दिया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री राहत कोष
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जनवरी, 1948 ई. में प्रधानमंत्री राहत कोष स्थापित किया था। इस कोष के संसाधनों का उपयोग मुख्यरूप से बाढ़, चक्रवात, भूकम्प आदि और प्रमुख दुर्घटनाओं व दंगों से पीड़ितों और उनके परिवारों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा इस कोष से हृदय, शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर के ईलाज हेतु सहायता दी जाती है । यह कोष केवल जनता के अंशदान से बना है और इसे कोई भी बजटीय सहायता नहीं मिलती है। कोष की धनराशि बैंकों में नियत जमा खातों में रखी जाती है, जिसे प्रधानमंत्री के अनुमोदन से ही वितरित किया जाता है।
आपदा राहत कोष
वर्तमान में आपदा राहत कोष मुख्यतः 11वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर आधारित है। इसका इस्तेमाल चक्रवात, सूखा, भूकम्प, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भू-स्खलन, बादल फटने और कीटों के आक्रमण से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत मुहैया कराने के लिए किया जाता है। यह कोष राज्य के लोक खाते (Public Account) के अन्तर्गत आता है, जिसमें केन्द्र एवं राज्य का हिस्सा क्रमशः 75 एवं 25 प्रतिशत होता है। इस कोष को राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में आपदा प्रबंधन की राज्य स्तरीय समिति द्वारा प्रशासित किया जाता है। गृह मंत्रालय सभी प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में राहत कार्यों पर नजर रखने वाला शीर्ष मंत्रालय है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान
यह संस्थान अन्य अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर प्रशिक्षण, अनुसंधान, राष्ट्रीय स्तर की सूचनाओं के प्रलेखन और विकास सहित, क्षमता विकास की अपनी प्रमुख जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है।
इसके अतिरिक्त केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बल, एनसीसी, नेहरू युवा केन्द्र संगठन, नागरिक सुरक्षा एवं होमगार्ड आदि आपदा से निपटने हेतु जनता को जागृत करने, राहत बल तैनात करने तथा आपदा न्यूनीकरण के विभिन्न प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही बल (एनडीआरएफ)
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत 'राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही बल' का गठन किया गया है। इसका सामान्य अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा किया जाता है । NDRF प्राधिकरण द्वारा निर्धारित व्यापक नीतियों और दिशा-निर्देशों के अन्तर्गत कार्य करता है। इस समय राष्ट्रीय आपदा कार्यवाही बल में 8 बटालियन शामिल हैं। इसका उद्देश्य किसी खतरनाक आपदा की स्थिति उत्पन्न होने अथवा रासायनिक, जैविक एवं परमाणु विकिरण की शुरुआत होने जैसी प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदाओं की स्थिति में विशिष्ट कार्यवाही करना है।
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